________________
आचा
॥४४७॥
AAAAAA-AR
नामनां बार स्थान कहे छे. नामकर्मनी प्रकृतिनां बार सत्तास्थान छे, ते आ प्रमाणे:
सुत्रम् - (१) ९३ (२) ९२ (३) ९१ (४) ८८ (५) ८६ (७) ७९ (८) ७८ (९) ७६ [१०] ७५ [११]९ [१२] ८ तेनी विगतः- गति चार, पांच जाति, पांच शरीर, पांच संघात, पांच बंधन, छ संस्थान अंगोपांग त्रण, संहनन छ, वर्ण पांच, गंध बे, रस
॥४४७॥ पांच, आठ स्पर्श, अनुपूर्वी चार.
अगुरु लघु, उपघात, पराधात, उछ्वास आतप, उद्योत. ए छ तथा प्रशस्त अने अप्रशस्त, ए चे विहायोगति, तथा प्रत्येक शरीर, त्रस, शुभ, सुभग, सुस्वर सूक्ष्म, पर्याप्त स्थिर आदेय अने यश आ दश शुभ छे अने तेनाथी उलटी बीजी दश अशुभ छे. कुल २० तथा निर्माण अने तीर्थकर एम वधी मळीने नाम कर्मनी ९३ प्रकृति छे.
तेमांथी तीर्थकर नामना अभावमा ९२ छे अने आहारक शरीर संघात बंधन अंगोपांग ए चारना अभावमां ९३मांथी ४ बाद ४ करतां ८९ छे तेमांथी पण तीर्थकर नामकर्म बाद करता ८८ तथा देवगति तथा अनुपूर्वी वमेली बाद करतां ८६ अथवा नरकगति !
योग्य बांधतां तेनी गति तथा अनुपूर्वी तथा वैक्रिय चतुष्ट बांधनारने ८० साथे आ छ मेळवनां ८६ छे तथा,देवगति पायोग्य बांधनारने पण ८६ छे अने नरक गति तथा अनुपूर्वी मळी बे तथा वैक्रिय चतुष्क चार-ए छ वमता ८० रहे छे. बळी मनुष्यगति अनुपूर्वी बन्ने वमतां ७८ छे. आ अक्षपक जीवोनां कर्मनां सत्ता स्थान छे अने हवे क्षपकवाळानां कहे छे.
९३ प्रकृतिमांथी नरक तिर्यक गति तथा अनुपूर्वी बन्नेनी मळी तथा १, २, ३, ४, इन्द्रिय जाति मळी चार तथा आतप लि