Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 859
________________ आचा० ॥१०७२॥ SACRACKERACHA-CONGRES पाडीने आंख लाल करीने अनुचित वचन बोलवां, एथी विपरीत प्रसन्न थइने रागनां वचन बोलवां, का छे के रुहस्स खरा दिट्ठी उप्पलधवला. पसन्नचित्तस्स । दुड़ियास ओमिलायइ गंतुमणस्सुस्मुआ होइ ॥१॥ । क्रोधीने आंख लाल होय, अने प्रसन्न थएलानी कमळ जेवी धोळी होय, दुःखी जीवनी मींचायला जेवी होय, अने जवा सुत्रमू इच्छनारनी खांख उत्सुक होय.' 5॥१०७२॥ से भि. अहावेगइयाई रूवाई पासइ, तं० गंथिमाणि वा वेढिमाणि वा पूरिमाणि वा संघाइमाणि वा कटकम्माणि वा पोत्थकम्माणि वा चित्तक० मणिकम्माणि वा दंतक पत्तछिज्जकम्माणि वा विविहाणि वा वेढिमाई अन्नयराई विरू० चक्खुदसणपडियाए नो अभिसंधारिज गमणाए, एवं नायव वा जहा सद्दपडिमा सव्वा वाइत्तवज्जा रूवपडिमावि ॥ (मू० १७१) पञ्चमं सत्तिकयं ॥ २-२-५॥ ते भाव साधु गोचरी विगेरेना कारणे बहार फरतां जुदी जुदी जातिनां रुपो जुए, तेमां मोह न करे, हवे ते रुपांनी विगन | बतावे छे. फुलो विगेरेथी साथीओ विगेरे गुंथीने बनाव्यो होय, तथा वस्त्र विगेरे वींटीने पुतळी विगेरे बनावेल होय, तथा अमुक चीजो पुरीने पुरुष विगेरेनो आकार बनाव्यो होय, तथा कपडांना ककडा शीवीने कांचळी विगेरे बनावे-ते संघातिम छे, लाकडानां 15 स्थ विगेरे काष्ट कर्म छे. तथा पुस्तको, लेपर्नु काम, चित्रो, तथा जुदां जुदां मणि रत्नोवडे साथीआ विगेरे बनावेल होय, हाथीदांतनी पुतळी विगेरे होय, पांदडां छेदीने आकार बनाव्यो होय, आ प्रमाणे अनेक मनोहर वस्तुओ देखीने आंखने प्रसन्न करवानी इच्छाथी न जाय, अर्थात् जq तो दूर रहो पण मनमां अभिलाषा पण देखवानी न करे, तथा पूर्वे शब्दोना अधिकारमा बताव्युं ते

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