Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 867
________________ आचा० ॥१०८० ॥ रक्षार्थे ) लेवा, ते बे चूलिकामां बतान्युं तेज प्रमाणे महावतीने बरोबर पाळवा माटे भावना भाववी, ते आ त्रीजी चूलिकामां कहेंगे. तेथी आवा संबंधे आवेली आ चूलिका (चूडा) ना चार अनुयोग द्वार कहेवा, तेमां उपक्रम द्वारमा रहेलो आ अर्थाधिकार छे, के अप्रशस्त भावना त्यागीने प्रशस्त भावना भाववी, नामनि-निक्षेपामा 'भावना' ए नाम छे, तेना नाम स्थापना विगेरे चार कारनो निक्षेप छे, नाम स्थापना सुगमने छोडी द्रव्यादि निक्षेपो नियुक्तिकार कहे छे. दव्वं गंधंगतिलाइए सीउण्हविसहणाईसु । भावमि होइ दुविधा पसत्थ तह अप्पसत्या य ।। ३२७ ॥ नो आगमथी, द्रव्य भावना व्यतिरिक्तमां ज़ोइ वगेरेना फूलो विगेरे गंधवाळा द्रव्यथी जे तेल वगेरे द्रव्य (पदार्थ) मां जे वासना (सुगंधी) लावे, ते द्रव्य वासना, छे, तथा शीतमां उछरेलो माणस शीत (ठंड) सहे, उष्ण देशमां उछरेलो ताप सहे, तथा कसरत करना अनेक कायकष्ट सहे, तेज प्रमाणे बीजा कोइ पण पदार्थ बडे अथवा पदार्थनी जे भावना (धर्म समज्या विनानी) होय ते द्रव्य भावना छे, अने भाव संबंधी जे प्रशस्त अ प्रशस्त भेद वंडे वे प्रकारनी भावना छे, तेमां प्रथम अमशस्तं कहे छे, पाणिहमुसावाए अदत्तमेहुणपरिरंगहे चेत्र । कोहे माणे माया लोभे य हवति अपसत्था ॥ ३२८ ॥ जीवहिंसा जूठ चोरी मैथुन परिग्रह क्रोध मान माया अने लोभ ए नव पापोमां प्रथम शंकाधी अने पछी वारंवार निठुर थइने निःशंकपणे वर्त्ते, ते अमशस्त भावना कहीं छे के: करोत्यादौ तावत्सघृणहृदयः किञ्चिदशुभं, द्वितीयं सापेक्षो विमृशति च कार्य च कुरुते । तृतीयं निःशङ्को विगतघृणमन्यत्प्रकुरुते, ततः पापाभ्यासात्सततमशुभेषु परमते ॥ १ ॥ fus सूत्रमू ।। १०८० ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890