Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 865
________________ आचा० ।। १०७८ ॥ ( सू० १७३ ) तिमि ||छट्टओ सत्तिक्कओ ।। २-२-६ ।। साधु को मास शुद्ध अथवा अंशुद्ध वचनवळ ते मंत्र विगेरेथी रोग समावे ( विछु विगेरे :उतारे ) तो पोते सारु जाणे नहि तथा वीजो मांदा साधुनी देवा माटे कंदमूळ विगेरे खोदीने खोदावीने लावीने दवा करे तो तेने सारुं न जाणे बनी शके तो दुःख भोगवतां आवी भावना भाववी के पूर्वे जीवे कर्म कर्यो छे अने तेनां फळ भोगवे छे माटे बीजा कंदमूळ विगेरेने दुःख दइने तथा बीजा प्राणीओने शरीर मन संबंधी पीडा आपीने पोते फरीथी दुःख भोगवशे, कारणके प्राणी भूत जोव सत्त्वो ते हाल दरेक पोताना पूर्वे करेला कृत्यना विपाकने भोगवे छे क छे के छ, पुनरपि सहनीयो दुःखपाकस्तत्रायें न खलु भवति नाशः कर्मणां सञ्चितानाम् । इति सहगणयित्वा यद्यदायाति सम्यक्, सदसदिति विवेकोऽन्यत्र भूयः कुतस्ते ? ॥ १ ॥ हे साधु! तारे आ दुःखनो विपाक सहेवो जोइए; कारण के पूर्वे करेला कर्मोनो संचय करेलो छे ते समजीने हवे पछी जे जे सुख दुःख आवे ते समभावे सहन कर, ए सिवाय बीजे तारो विवेक क्यांथी होय? आ ममाणे छट्टाथी तेरमा सुबी सात अध्ययन समाप्त छे. पूर्वे का प्रमाणे बीजाए करेली क्रिया अनुमोदवी नहि. तेम अहीं सातमा अध्ययनमां अन्य अन्य क्रिया पण करवानी निषेध: करे छे. आ प्रमाणे छट्ठा सातमा अध्ययननो संबंध छे, नाम नि. निक्षेपामा अन्यो अन्य क्रिया एवं नाम छे तेनी बाकी रहेली अधी गाथाने नियुक्तिकार कहे छे. अन्ने छकं तं पुण तदन्नमाएसओ चेत्र ।। ३२५ ।। सूत्रम् ॥१०७८ ॥

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