Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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आचा०
॥१०७९ ॥
अन्यना छ प्रकारे निक्षेपा, छे. नाम-स्थापना सुगम छे. द्रव्य अन्य निक्षेपामां पर शब्दमां जे खुलासो कर्यो छे तेम अहीं पण जाणवुं. अहीं परक्रिया के अन्य क्रिया कारण प्रसंगे गच्छवासीने करवी पड़े तेमां जयणा राखवी, गच्छमांथी नीकळेलाने औषध विगेरे क्रियानुं प्रयोजन नथी, तें निर्युक्तिकार बतावे छे.
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जयमाणस्स परो जं करेइ जयंणाए नत्य अहिंगांरो । निप्पडिकम्मस्स उ अन्नमन करणं अजुत्तं तु ॥ ३२६ ॥
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सत्तिकाणं निज्जुत्ती समत्ता ॥
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साधुए जयणाथी कामकरं करावं रागद्वेष न करवा, पण जीनेकल्पीने ते घटतुं नथी, तेओ दवा विगेरेथी, दूर छे, से भिक्खू वा २ अन्नमन्न किरियं अज्झत्थियं संसेइयं नो तं सायए २ ॥ "पाए आमज्जिज्ज वा० नो तं०, सेसं 'अन्नननं र्त चैत्र, एयं खलु० जइज्जासि (मृ० १७४ ) तिबेमि ॥ सप्तमम् ॥ २-२-७ ॥
अन्यो अन्य एटले. परस्पर क्रिया ते साधुए मांहो मांहे पण खास कारण विना चोळवु चांप दावयुं विगेरे न कर. जरुर पडे करतां राग द्वेष न करो.
आप्रमाणे बीजी चलिका, समाप्त थइ.
भावना नामनी श्रीजी चूलिका.
बीजी कहीने हवे त्रीजी चूलिका कहे छे, तेनों आ प्रमाणे संबंध छे, के आ आचारांग सूत्रनो विषय प्रथम वर्धमान स्वामिए कयों, ते उपकारी होवाथी तेनी वक्तव्यता खुलासाथी कहेवा तथा पंचमहाव्रत लीवेला साधुएं पिंड शय्या विगेरे ( संयम शरीर
सूत्रम्
॥१०७९॥

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