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आचा०
॥१०७९॥
अने परलोक परमाधामी (जमडा) ना मार खावा पडशे एम विचारीने मोड छोटे, अथवा आ लोक के परलोकना, खीना के देवीना शब्दोमां न ललचाय, तथा तेवा शब्दो सांभळ्या होय, के नहि, अथवा साक्षात् मळ्या होय के नहि, तो पण मांग न करे, तेमां गृद्धता न करे, तेमां मुंझाय नहि, न तल्लीन थाय, अर्थात् जे कानने कबजामां राखी मधुरमां आनंद न माने, हितना छे. | कडवा शब्दोमां खेद न माने. तेज तेनुं पूर्ण साधुपणं
. जो तेम इंद्रियोने कबजामां न राखी शब्द सांभळवा जाय, तो भणवुं गणवुं न थाय, तथा राग द्वेष थाय, ए प्रमाणे वीज़ा पण आ लोक परलोक संबंधी दुःखो जाणीने विचारवा.
रुप सप्तक नामनुं पांचमुं अध्ययन
चोथुं सप्तक कहीने हवे रूप सप्तक कहे छे, तेनो आ प्रमाणे संबंध छे, गया उद्देशामां श्रवण इंद्रिय आश्रयी रागद्वेपनी उत्पत्ति निषेधी. तेम अहीं आंखने आश्रयी निषेधशे, आ संबंधे ' आवेला अध्ययनना नाम नि- निक्षेपामां (रूप सप्तक एकक) नाम छे. रुपना चार प्रकारे निक्षेपा छे
नाम स्थापना सुगम छोडीने द्रव्यभाव निक्षेपा कहेवा नियुक्तिकार गाथा कहे छे.
ठाणाई भावो वन्न कसिणं सभावो य । [ दव्वं सद (रूव) परिणयं भावो उ गुणा य कित्ती य ] ॥ ३२४ ॥ नो आगमथी द्रव्य व्यतिरिक्तमां पांचे स्थानो परिमंडळ (पूर्ण गोळा) विगेरे आकारी छे, अने भावरूप वे प्रकारे वर्णथी तथा स्वभावथी छे, तेमां वर्णथी वधा (पांचे) वर्णो छे अने स्वभाव रूप ते अंदरमां रहेला क्रोध विगेरेथी भाषण चढावी कपाळमां सळ
सूत्रम्
॥१०७१ ॥