Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 856
________________ आचा० सूत्रम् ॥१०६९॥ REOSROSORR विगेरेमां मधुर शब्दो सांभळवा न जq तथा आराम उघन वन वनखंड देरां सभा परव विगेरेमा वाजां सांभळवा न जवु तथा अट्ट अट्टालक चरित दरवाजा तथा नगरना दरवाजे शब्द सांभळवा न जq तथा त्रिक चोक चोतरो चोमुख स्थानमा न जवं तथा पाडा बळद घोडा हाथी विगेरेनां. ते कपिजल सुधीनां कळा शीखववाना स्थानमा जोवा न जवू तथा ज्यां तेमन मैथुन थां होय त्यां न जवं, तेम तेमर्नु युद्ध थतुं होय अथवा तेमनी क्रिया थती होय ते जोवा न जg से भि० जाव सुणेइ, तंजहा-अक्खाइयठाणाणि वा माणुम्माणियहाणाणि वा महताऽऽहयनगीयवाईयत्तीतलतालतुडियपडुप्पवाइयटाणाणि वा अन्न तह सद्दाई नो अभिसं० ।। से भि० जाव सुणेइ, तं०-कलहाणि वा डिवाणि वा डमराणि वारज्जाणि वा वेर० विरुद्धर० अन्न तह० सद्दाई नो० ॥ से भि० जाव सुणेइ खुड्डियं दारियं परिभुत्तमंडियं अलंकियं निवुज्झमाणि पेहाए एगं वा पुरिसं वहाए नीणिजमाणं पेहाए अन्नयराणि वा तह० नो अभि० ।। से मि० अन्नयराई विरूवा महासवाई एवं जाणेज्जा तंजहा-बहुसगडाणि वा बहुरहाणि वा बहुमिलक्खूणि वा बहुपच्चंताणि वा अन्न तह. विरूव० महासवाई कन्नसोपडियाए नो अभिसंधारिज्जा गमणाए ॥ से भि० अन्नयराई विरूव० महस्सवाई एवं जाणिज्जा तंजहा-इत्थीणि वा पुरिसाणि वा थेराणि वा डहराणि वामज्झिमाणि वा आभरणविभूसियाणि वा गार्यताणि वा वायंताणि वा नचंताणि वा हसंताणि वा रमंताणि वा मोहताणि वा विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं परिभुजंनाणि वा परिभायंताणि वा विछट्टियमाणाणि वा विगोवयमाणाणि वा अन्नय० नह० विरूव० महु० कन्नसोय० ॥ से भि० नो इहलोइएहिं C - R -C

Loading...

Page Navigation
1 ... 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890