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आचा०
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वेदनीय-कर्मनां वे सत्तास्थान छे. ते आ प्रमाणे:
(१) साता अने असाता बन्ने होय. (२ तथा बन्नेमांथी एक साता, अथवा असाता ज्यारे पोते शैलीशी अवस्थामा सौथी छेल्लाल समयना पहेला समयमां मोक्ष जवाना काळभां होय; त्यारे कोइपण एक साता के, असाता भोगवे ते वीजुं स्थान छे. मोहनीयकर्मनां । पंदर सत्तास्थान छे ते आ प्रमाणे:- .
(१) सोळ कपाय, नव नो कपाय अने त्रण दर्शन होय, त्यारे सम्यक्ष्टि जीवने अठ्ठावीश प्रकृति होय छे.. (२) सम्यक्स.वमतां मिश्रदृष्टिए सत्तावीश होय छे.
(३) स्वभावथी अनादि मिथ्यादृष्टि होय; अथवा चे दर्शन वमतां छवीश होय (४) सम्यक्दृष्टिने अट्ठावीश प्रकृतिमाथी अनंता-1 नुबंधी चार कपाय वमतां अथवा, क्षय यतां चोवीश होय. (५) तेनेज मिथ्यात्व क्षय यतां २३ (६) मिश्रदृष्टि क्षय थता २२ (७) क्षायिक सम्यक्दृष्टिने २१ (८) अप्रत्याख्यान अने प्रत्याख्यान-कषाय जतां १३ (९) कोइपण एक वेद क्षय यतां १२ (१०) बीजो टी
वेद क्षय यतां ११ (११) हास्यादि छ दूर थतां ५ (१२) पुरुषवेदना अभावमां ४ (१३) संज्वलन क्रोध क्षय थतां ३ [१४] मान व क्षय थतां २ (१५) मायाक्षय थतां ए एक लोभ रहे. .
अने ए लोभ दूर थतां मोहनीय सत्ता पण गइ. ___सामान्यथी आयुष्य कर्मनी सत्तानां ये स्थान छे ते आ प्रमाणे:-(१) परभवना आयुना बंधना उत्तर काळमां बे आयुष्य होय; अने तेना बंधना अभावमां जे आयुमा होय; तेज़ वीजें स्थान छे.
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