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8/ गुणकारी थाय छे, तेथी तमारी 'शंका' नकामी छे.
पाणीने अथवा आत्माने दुःख दे (दंडे) माटे दंड छे, ते मन वचन कायाए त्रण प्रकारनो छे, ए त्रण दंडथी दूरथयेला ते आचा० उपरत दंड कहेवाय, ते बधा जीव उपर उपकारनी बुद्धिए उपदेश देवाय, एटले जेमणे दंड तज्यो छे, तेवा मुनिओ संयममां स्थिरता
* सूत्रम् ॥५०८॥ करे, अने नवा गुणो प्राप्त करे, अने बीजां दंड न तजेला (ग्रहस्थीओ) ते दंडने तजे, माटे तीर्थकर उपदेश आपे छे,
॥५ ॥ तथा संग्रहकराय ते उपधि छे, ते द्रव्यथी सोनु विगेरे छे, अने भावथी कपट छे, ते राखनार उपधिवाला छे, ते सोपधिक छे, बाकीना तेथी उलटा अनुपधिक छे, तेओने माटे पण उपदेश छे, संयोग (संबंध) ते पुत्र स्त्री मित्र विगेरे उपर प्रेमनो छे, तेमां। रक्त थयेला ते संयोगरत कहेवाय, अने तेथी उलटा एकत्व भावना भावनारा मुनि असंयोगरत कहेवाय; ते बन्नेने पण भगवाने उपदेश आपेल छे, तेथी ते सत्य छे. (च शब्द नियम अर्थ वतावे छे, माटे) भगवाननुं वचन सत्य छे, तेम यथायोग्यपणे वस्तुनो
सद्भाव कह्याथी ते वाच्य पण छे. ते वतावे छे के, प्रभुए आ प्रमाणे का के:-" सर्वे जीवो हणवा न जोइए" विगेरे. आ. राप्रमाणे सम्यग्दर्शननुं श्रद्वान राखवू; अने ते श्रद्धान-जिनेश्वरनां प्रवचनमां छे. जे सम्यक्मोक्षमार्गने आपनार छे. वळी, ते बधा।
भना प्रवन्धथी दुर होवाथी प्रकर्षथी वोलाय छे, (माटे ते प्रवचन.) पण, वीजा मतमां तेवो अहिंसा धर्म बताव्यो नथी. जेमके-५ अन्य मतवाळा प्रथम कहे के, सर्व जीवोने न हणवा. ("न हिंस्यात्सव भूतानि") कहीने यज्ञमां पशुवधनी आज्ञा आपे छे. एटले,
प्रथमनां वचनने तेमनां पाछळनां वचनथी वाधा लागे छे. (माटे, ते प्रवचन नथी.) आ प्रमाणे सम्यक्त्वनुं स्वरुप कहीने तेनी है प्राप्तिमां शुं करवू ते वतावे छे.
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