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॥५७५॥
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राध करवाथी पण संपूर्ण अपरा
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परिवार. तेम वेषधारीने नोकर-चाकर अने चेला-चेलीनो व्यवसाय आ ममत्वभावे परिग्रह छे.) आचा०
अथवा आ छ जीवनिकायमांज अथवा विषयभूत वस्तुरूप] थोडं विगेरे जे द्रव्य का तेमांमूर्छा करतां परिग्रहधारी बने छे. सूत्रम्
तेज प्रमाणे अविरत [संसारी रह्या छतां हुं विरत छ, एवं बोलतो अल्प-परिग्रह राखवाथी पण परिग्रहधारी बने छे. एज प्रमाणे ॥५७५॥
बीजां व्रतोमां पण जाणवु, कारणके तेणे आस्रवोर्नु निवारण न करवाथी एक देश (थोडो) अपराध करवाथी पण संपूर्ण अपराध* पणानो संभव थाय छे..
शंका-जो, आ प्रमाणे अल्प-परिग्रह पण राखवाथी परिग्रहपणुं थाय छे. तो. हाधमां भोजन करनारा दिगम्बर-वस्त्ररहित] तथा सरजस्क बोटिक विगेरे जे छे, तेओ अपरिग्रहवाळा मुनि थशे. कारणके, तेमने तेवा थोडा परिग्रहनो पण अभाव छे. __आचार्य- समाधान-तेम नथी; कारणके, 'परिग्रहोनो अभाव छे.' ए हेतु अप्रसिद्ध [जूठो छे. सांभळो सरजस्कने अस्थि विगेरेनो परिग्रह छे, अने बोटिकोने पीच्छी विगेरेनो परिग्रह छे. आ (बाह्य परिग्रह छे) तथा अंदरनो परिग्रह पण छे. कारणके, शरीरधारी छे, तथा आहार विगेरे परिग्रह तेमने विद्यमान छे.
धर्मने टेको आपवारूप ते होवाथी निर्दोष छे एम कहेशो; तो, अमने पण ते समानज छे. तो पछी, दिगम्बर (नग्नपणाना) P आग्रहनो कदाग्रह शा माटे जोइए ? हवे, जे अल्प (थोडो) विगेरे पण परिग्रह राखे छे, अने अपरिग्रहपणानो अभिमान राखे छे,
तेमनो आहार शरीर विगेरे मोटा अनर्थने माटे थाय छे, ते बतावे छे 'एत देव' ए अल्पबहुपणा विगेरेना परिग्रहवढे केटलाकने 81 परिग्रहपणुं नरकादि गमनना हेतुपणाथी अथवा वधाने तेनो अविश्वास थतो होवाथी महाभयरूप थाय छे, कारणके आ प्रकृति ।
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