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आचा०
14/1८२६॥
भगवाने वतान्यो) (१५) वळी वे प्रकारवाळा ते द्विविध कर्म छे, इर्या प्रत्यय, अने सांपसयिक छे, ते वन्नेने पण सर्वज्ञ प्रभुए 8 जाणीने संयम अनुष्ठानरूप जे कर्म छेदवाने माटे अन्यत्र नथी, तेवी अनन्य सदृशी क्रिया बतावी.
सूत्रम् । '०-भगवान केवा इता ? उ०-ज्ञानी, (केवळज्ञान प्राप्त थया पछी तेमणे आ क्रिया बतावी.) । ॥८२६॥
प्र०-वळी तेमणे बीजं शुं कां ? उ०-जेनावडे नवां कर्म लेवाय ते आंदान खोटुं ध्यान छे; तथा इंद्रियोना विकार संबंधी ते । स्रोत छे. माटे जे आदान स्रोत छे, तेने जाणीने तथा जीव हिंसारूप तथा तेना लक्षणथी मृषावाद विगेरे पापोने तथा मन वचन
कायाना व्यापारवाळु दुर्ध्यान छे ते वधे प्रकारे कर्म बंधने माटे छे एम जाणीने तेमणे संयम लक्षणवाळी निर्दोष क्रिया बतावी. बळी1 अईवत्तियं अणाउसियमन्नेसिं अकरणयाए; जस्सिस्थिओ परिन्नाया, सबकम्मावहा उ स अदक्खु ॥१७॥
आकुट्टी (हिंसा) ने त्यागवाथी अहिंसा छे, ते पापथी अति क्रांत होवाथी निर्दोष छे, ते महावीर प्रभुए पोतेज प्रथम अहिंसा || स्वीकारीने वीजाओने पण हिंसानी प्रवृत्तिथी दर राख्या, तथा जेमने खीओ स्वरूपथी तथा विपाकथी कडवां फळ आपनारी छे,181 एवं ज्ञान छे, ते परिज्ञात भगवान छे, तथा तेज स्त्रीओ सर्व कर्म समूहो एटले सर्व पापोना उपादान भूत छे. ते पण एमणे जोयुत छे, तेथीज तेओ संसारनुं रूप जाणनारा थया तेनो भावार्थ ए छे केः-स्त्रीना स्वभावना आवा परिज्ञानथी तथा ते जाणीने | त्यागवाथीज भगवान परमार्थदर्शी थया छे मूळ गुणो वतावीने हवे उत्तर गुण प्रकट करवा कहे छे:3 अहाकडं न से सेवे सवसो कम्म अदक्खू; यं किंचि पावगं भगवं, तं अकुवं वियड भुंजित्था ॥१८॥8