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आचा०
सूत्रम्
॥१०१७॥
G॥१०१७॥
योग्य छे, सरखी बांधणीवाळा शोभीता छे. विगेरे निरवद्य भाषा बोलवी.
से मिक्खू वा २:असणं वा० उवक्खडियं तहाविहं नो एवं वइज्जा, तं० सुकडेति वा मुहकडे इ वा साहुकडे इ वा कल्लाणे इ वा करणिज्जे इ वा, एयप्पगारं भास सावज्जं जाब नो भासिज्जा ॥ से भिक्खू वा २ असंणं वा ४ उवक्खडियं पेहाप एवं वइज्जा, तं०-आरंभकडेत्ति वो सावज्जकडेत्ति वा पयत्तकंडे इ वा भदयं भत्ति वा ऊसद ऊसढे इ वा रसियं २ मणुनं २. एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासिज्जा ।। (मू०१३७)
साधुए कोइ जग्याए रस्सोइ तैयार थएली जोइ होय तो एम न कहेवू के पकवान सारां : कर्या छे, सारां तळ्यां छे, सुंदर | बनाव्यां छे, कल्याण करनारां छे, बीजाए आवां करवा योग्य छे, आवु सावध वचन साधुए बोलवु नहि. | पण जरुर पडतां तेवु चारे प्रकारर्नु अशन विगेरे जोइने कहेवू के आरंभथी सावध प्रयासे बनावेलुं छे, तथा सारां होय तो सारां ताजा होय तो ताजां रमवाळां मनोज्ञ एम निर्दोष भाषा बोलबी.' फरीथी अभाषणीय बतावे छे
से मिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा गोणं वा महिसं वा मिगं वा पसुं वा पक्खि वा सरीसिवं वा जलचरं वा से तं। परिवूढकायं पेहाए नो एवं वइज्जा-धूले इ वा पामेइले इ वा वटे इ वा वझे इ वा पाइमे इ वा, एयप्पगारं भासं सावज्नं जाव नो भासिज्जा ॥ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा जाव जलयरं वा सेत्तं परिवृढकार्य पेहाए एवं वइज्जा परिवूढकाएत्ति वा उवचियकाएत्ति वा थिरसंघयणेत्ति वा चियमंससोणिएत्ति वा बहुपडिपुन्नइंदिइएत्ति वा, एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव भासिज्जा ॥ से भिक्खु वा २ विरूवरूवाओ गाओ पेहाए नो एवं वइज्जा, तंजहा-गाओ दुज्झाओत्ति
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