Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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आचा०
॥१०३६॥
पात्राएषणा नामर्नु छटुं अध्ययन. पांचमुं कहीने हवे छठे अध्ययन कहे छे, तेनो आ प्रमाणे संबंध छे. प्रथम अध्ययनमां पिंडविधि बतावी, ते आगममां कहेल सूत्रम् विधिए वसतिमा आवीने वापर, माटे वीजामां वसतिनी विधि बतावी, ते शोधवा माटे त्रीजामा इर्यासमिति कही, पिंडैपणाम नीकळेलाए केवी भाषा वापरवी, तेथी भाषामिति कही, अने ते पडेला विना पिंड न लेवाय माटे पांचमामां वस्त्रएपणा कही, ते ।
॥१०३६॥ पिंडने पात्र विना लेवाय नहि, माटे आ संबंधवडे पात्र एवणा अध्ययन आव्यु, एना चार अनुयोगद्वारा थाय छे, तेमां नाम निष्पन्न निक्षेपामां पात्रएपणा अध्ययन छे, एनो निक्षेपो अर्थाधिकार एना पूर्वना अध्ययनमांज टुंकाणमां बताववा माटे नियुक्तिकारे कहेलो छे, सूत्रानुगममा अस्खलितादि गुणयुक्त मूत्र उच्चार, जोइए ते आ छे.
से भिक्खू वा अभिकंखिज्जा पायं एसित्तए, से जं पुण पादं जाणिज्जा, तजहा-अलाउयपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा, तहप्पगारं पायं जे निग्गंथे तरुणे जाव थिरसघयणे से एगं पायं धारिज्जा नो विइयं ॥ से भि० परं अद्धजोयणमेराए पायपडियाए नो अभिसंधारिज्जा गमणाए ॥ से भि० से जं अस्सि पडियाए एगं साहम्मियं समुदिस्स पाणाई ४ जहा पिंडेषणाए चत्वारि आलावगा, पंचमे बहवे समण पगणिय २ तहेव ॥ से भिक्खू वा०. अस्संजए भिक्खुपडियाए बहवे समणमाहणे० वत्थेसणाऽऽलावओ ॥ से भिक्खू वा० से जाइं पुण पायाइं जाणिज्जा विरुवरुवाई महद्धणमुल्लाई, त०अयपा याणि वा तउपाया० तंबपाया० सीसगपा० हिण्णपा० सुवण्णपा० रीरिअपाया हारपुडपा० मणिकायकंसपाया०

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