Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 851
________________ ३७६२-६२-६८. २२ कालयी जबा जबजब है सुत्रमू ___ साधु साध्वीए नीचली जग्याए स्थंडिल न जवू-ते बतावे छे-जे जग्यामां गृहस्था अथवा तेना पुत्रो विगेरे कंद बीज 8 आचा० विगेरे त्रणे काळमां नाखता होय, तथा गृहस्थलोक अथवा तेना पुत्रो विगेरेए शाली चोखा वीही मग अडद कलथी जब जवजव वाव्यां होय, वावता होय अथवा वाववाना होय; अथवा ज्यां आमोक ते कचराना ढगला (उकरडा) मां घास भूमिराजीआ-भिलुक में ॥१०६४॥ सूक्ष्मभूमिराजीओ विज्जल स्थाणु तथा कडय प्रगर्ता-मोटाखाडा, तथा दरीमदुर्ग भीतो तथा कोल्ला बुरुज आ बतावेला स्थान 5॥१०६४॥ दूध वखते सम होय कोइ जग्याए विपम होय (माटो विगेरे पडवानो डर होय) तेथी तेवी जग्याए स्थंडिल जतां पोते पडी जाय , तो आत्मविराधना थाय, अने वीजा जीवो नीचे चगदाइ जतां संयम विराधना थाय तथा माणसोने माटे रांधवानी जग्या (चूला) होय, अथवा भेंस बळध घोडा कुकडां माकडां (वांदरा) हय लावक वट्टय तितर कबुतर कपिंजल विगेरे पशु पक्षो माटे खावा पीवान 8 अथवा शीखवान के तेथु बोजु कंइ पण कार्य थतुं होय तथा ते स्थानमा तेमने रखातां होय ते जग्याए स्थंडिल जवाथी. लोक विरुद्ध प्रवचननो उपघात विगेरे थाय माटे त्यां न जवू, वळी आपघात करवानां स्थान जेमां झाडे फांसो खाय लोक मरतां होय, गीध विगेरे पक्षीओ पासे काया चुंथावी मरवा लोही चोपडी मुतां होय, झाड उपरथी नीचे कुदीने मरतां होय, अथवा झाड माफक स्थिर थइ अनशन वडे मरतां होय, मेरु (पर्वत) उपरथी पडीने मरतां होय, तथा विषभक्षण करी मरतां होय, अग्निमां बळी मरतां होय, अथवा तेवां बीजां मरवांनां स्थान होय, त्यां साधुए स्थंडिल न जवू, तेज प्रमाणे आराम [जेमां काळा विशेष हाय] उद्यान वन वनखंड देवल सभा परब विगेरेनी जग्यामां स्थंडिल न जाय, अट्टालक चरिय दरवाजा गोपुर अथवा तेवा गाम शहेरना कोट कील्लानां स्थान होय त्यां स्थंडिल न जg, तेज प्रमाणे त्रिकोण चतुष्क [ज्यां त्रण के चार रस्ता मळतां हाय ] के चौतारो ।

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