Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 839
________________ । सूत्रम् "बीजा साधुने आवो अभिग्रह होय छे के हुं वीजा साधुओ माटे अवग्रह याचीश अथवा बीजाए याचेला अवग्रहमां रहीश. आचा० प्रथमनी प्रतिमामा सामान्य छे अने आ प्रतिमा तो गच्छमा रहेला उद्युक्त विहारीने होय, तेओ साथे गोचरी करता हाय है अथवा न पण करता होय-तो पण साथे उतरता होवाथी एक वीजा माटे वसति याचे छे. ॥१०५४॥ त्रीजी प्रतिमावाळो साधु एमो विचार करे के हुं पोते बीजाने माटे अवग्रह याचीश, पण वीजाना याचेलामां रहोश नहि. 5॥१०५४। आ प्रतिमा आहालंदिक साधुओने माटे छे. कारण के तेओ गच्छवासी आचार्य पासे सूत्र अर्थ भगता होवाथी आचार्य माटे में मकान याचे छे. . चोथी प्रतिमामां ए अभिग्रह छे. के हुं बीजाने माटे अवग्रह याचीश नहि. पण बीजाए मागेला अवग्रहमा रहोश, आ अभिग्रह 8 गच्छमां रहेला अभ्युदत विहारी गच्छमां रहीने जिनकल्ली थवाने माटेज अभ्यास करता होय नेमने माटे छे. पांचमी प्रतिमा आ प्रमाणे छे के हुँ पोतेना माटे अवग्रह याचीश, पण वीजा त्रण, चार, पांच माटे अवग्रह नहि याचु, आ जिनकल्पी थवाने माटे अभिग्रह छे. अवग्रह याचीश पण त्यांज उत्कट विगेरे संथारो लइश; नहि तो उत्कुटुक अथवा बेठेलो के उभेलो आखी रात पुरी करीश. आ छट्ठी प्रतिमा जिनकल्पी विगेरेने छे. * सातमी पनिमा उपर प्रमाणे छे के हुँ उपर बतावेल संथारो करवा शिलादिक विगेरे तैयार हशे तेज लइश. आमा विशेष एटलं छे के तैयार होय तोज ले, नहि तो बेठे बेठे के उभे उभे रात्री पुरी करे. आ पण जिनकल्पी विगेरेनी छे. . २.०८SC-CRENCELSSSSSR -55

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