Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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आवा०
॥१०५५॥
आसां प्रतिमा व नारा साधुओ जिनकल्पी विगेरे जिनेश्वरनी आज्ञामां होवाथी यथाशक्ति पाळता' होवाथी वधारे पाळनारो होय ते पोताने उंचो न माने तेम बीजानी निंदा न करे. ए वधुं पिंडऐषणा माफक जाणवुं.
सुयं मे आउसंतेण भगवया एवमक्खायं - इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं पंचविहे उग्गहे पन्नेत्ते, तं०- देविंद उग्गहे १ राय उग्गहे २ गाहावइउग्गहे ३ सागारियउग्गहे ४ साहम्मिय उग० ५ एवं खलु तस्सा भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं ( सू० १६२ ) उग्गहपडिमा सम्मत्ता | अध्ययनं समाप्तं सप्तमम् ।। २-१-७-२ ॥
सुधर्मास्वामी जंबूस्वामीने कहे छे के भगवान महावीरे आ उद्देशामां बतावेलो देवेंद्र विगेरेनो अवग्रह सारी रीते ममजीने साधुए पाळवो. (ए साधुनी साधुता हे) अवग्रह प्रतिमा नामनुं सातनुं अध्ययन समाप्त थयुं तथा आचारांगनी पहेली चूला समाप्त थर. सप्तसप्तकाख्या द्वितीया चूला ।
V
पहेली चूलिकानां सात अध्ययन कह्यां हवे बीजी चूलिका कहे छे तेनो पहेली साथै आ प्रमाणे संबंध छे.
गइ चूलामां वसतिनो अवग्रह बताव्यो, ते स्थानमां रहीने केवा स्थानमां कार्योत्सर्ग तथा स्वाध्याय उच्चार पेसाव विगेरे करवो ते अहींआ बतावे छे. आ चूलामां सात अध्ययन छे एवं निर्युक्तिकार बतावे छे.
सत्तिक्कगाणि इक्कस्सरगाणि पुन्व भणियं तर्हि ठाणं । उद्धट्टाणे पगयं निसीहियाए तहिं छकं ॥ ३२० ॥
सात अध्ययनोमां बीजा उद्देशा नथी, माटे एक सरवाळा छे. तेमां पहेलुं अध्ययन स्थान नामनुं छे. तेनी व्याख्या अहीं करे छे. आ संबंधे आवेला आ अध्ययनना चार अनुयोगद्वार थाय छे, [ए पूर्वे बतावेल छे ] उपक्रममां अध्ययननो अर्थाधिकार आ छे,
सूत्रम्
॥१०५५ ॥

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