Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
छे, त्यां केवी जमीन उपर स्थंडील मात्रं (झाडो पेसोब) करवं ते बतावे छे, एना नाम निष्पन्न निक्षेपामां उच्चार- प्रश्रवण आचार एयु नाम छ, तेनी निरुक्तिने माटे नियुक्तिकार कहे छे
सुत्रमू उच्चावइ सरीराओ उच्चारो पसवइत्ति पासवणं । तं कह आयरमाणस्स होइ सोही न अइयारो ? ।। ३१२ ।। ॥१०६०॥
शरीरमांथी जोरथी दूर करे, अथवा मेल साफ करे चिरे] ते उच्चार (विष्ठा) छे, तथा प्रकर्षथी श्रवे (नीकळे) ते पेसाब ॥१०६ ६ एकिका (आ शब्द केटली जग्याए तेज रुपे चपराय छे, एटले निशाळमां छोकराने पेशाब करवा जर्व होय तो मास्टरने कहे के मास्टर एकी जाउं ?) आ स्थंडिल तथा मात्रु केवी रीते करे तो अतिचार न लागे ते पछीनी गाथामां बतावे छे,
मुणिणा छक्कायदयावरेण मुत्तभणियंमि आगासे । उच्चारविउसग्गो, कायनो अप्पमत्तेणं ।। ३१२ ॥ ६ छ जीव निकायना रक्षणमा प्रयत्न करनार साधुए हवे पछी कहेवाता सूत्र प्रमाणे स्थंडिलमा उच्चार प्रश्रवण अप्रमत्तपणे 8 करवां नियुक्ति अनुगम पछी सूत्र अनुगम कहे छे,
से भि० उच्चारपासवणकिरियाए उब्वाहिज्जमाणे सयस्स पायपुंछणस्स असईए तओ पच्छा साहम्मियं जाइज्जा ।। से मि० से ज पु० थंडिल्लं जाणिज्जा सअंडं. तह पंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा ॥ से भि० 'जं पुण थं० अप्पपाणं जाव.संतणयं तह. थं. उच्चा० वोसिरिजा ॥ से भि० से जं० अस्सिपडियाए एगं साहम्मियं समुधिस्स वा अस्सि. बहवे साहम्मिया स० अस्सि प० एगं साइम्मिणि स० अस्सिप० बहवे साहम्मिणीओ स० अस्सि बद्दचे समण पगणिय २ समु० पाणाई ४ जाव उद्देसियं चेएइ, तह. थंडिल्लं -पुरिसंतरकड जाव चहियानीहडं वा अनी. अन्नयरंसि वा
USESTROGRESS4-534

Page Navigation
1 ... 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890