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* कहे त्यारे पण साधुए ना पाडवी., आचा०
बळी गृहस्थ पोतानी वेन विगेरेने कहे के कोरुं पातरुं न ओप, पण ते पात्राने तेल घी माखण छासवडे घसीने आप, तथा * पाणीथी धोइने अथवा काचु पणी के कंद विगेरे खाली करीने आप, अथवा कहे के हे साधु ! तमे बे घडी पछी फरीने आवो, तो 2
73/ सूत्रमू ॥१०४०॥ अमे अशनपान खादिम स्वादिम तैयार करीए छीए, अथवा संस्कारवाळु बनावीए छीए, तेथी हे आयुष्मन् ! हे साधु ! तमने / ॥१०४०॥
६ भोजन पाणी सहित पातरां आपीशुं, एकला खाली पात्रां साधुने आपवाथी शोभा न वधे. आ सांभळीने साधुए कहेवु के हे भव्या। त्मन ! अमने अमारा माटे बनावेलु के वधारे रांधेलं भोजन पाणी खावा पीवाने काम लागतुं नथी, माटे तैयार न करो, न संस्कार
रवाळु बनावो, जो पात्रां आपवानी इच्छा होय, तो एमने एमज आपो. ४ आq कहेवा छतां गृहस्थ हठ करी साधु माटे रांधीने के संस्कारी बनावीने पात्रां भरी आपवा मांडे तो अप्रासुक जाणीने 8
साधुए लेवां नहि, कदाच एमने एम पात्रां बहार लावीने मुके, तो तेने कहेवू के हे गृहस्थ ! हुं तमारा देखतांज आ पात्रां देखी है। लउं के तेनी अंदर नानां जंतुओ के बीज के वनस्पति होय तो केवळो प्रभु तेमां दोष बतावे छे, माटे साधुए प्रथम जोइ लेवां, अने जंतु विगेरेथी संयुक्त होय तो ते जीवो दूर करी शकाय तेम न होय तो अमासुक जाणीने पात्रां लेवां नहि, पण जो तेवां जंतु विगेरे न होय तो लेवां, (ते बधुं वस्त्रएषणा माफक जाणी लेवू ) आमां विशेष एटलं छे के तेल घी नवनीत के वसा (छाश) थी धोइने ते चीकटवाळु पात्रांनुं धोवण कोइ अचीच जग्या जोइने पडिलेही प्रमार्जीने परठवे, आज साधुनी साधुता छे के जयणाथी दरेक कार्य करे.
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