Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 830
________________ काल अवग्रह ऋतुबद्ध (आठमास) तथा वर्षाकाळ (चारमास) नो अवग्रह एम बे भेदे छेआचा० हवे भाव 'अवग्रह बतावें छे सूत्रम् • मइउग्गहो य गहणुग्गहो य भावुग्गहो दुहा होइ । इंदिय नोइंदिय अत्थवंजणे उग्गहो दसहा ॥ ३१८ ॥ ॥१०४५॥ भाव अवग्रह चे प्रकारनो छे, मति अवग्रह अने ग्रहण अवग्रह छे, तेमां मति अवग्रह पण बे पकारनो छे, अर्थावग्रह अने 6॥१०४५॥ व्यंजन अवग्रह छे, तेमां अर्थावग्रह इंद्रिय तथा नोइंद्रिय (मन) ना भेदथी छ प्रकारनो छे, अने व्यंजन अवग्रह चक्षु इंद्रिय अने मन छोडीने बाकी चार इंद्रियोनो अवग्रह छे, ते बधाए भेदवाळो दस प्रकारनो मतिभाव अपग्रह ( मतिवडे पदार्थोनो जे समान्य वोध || समजाय ते ) छे, हवे ग्रहण अवग्रह बतावे छे गहणुग्गहम्मि अपरिग्गहस्स समणस्स गहणपरिणाभो । कह पाडिहारियाऽपाडिहारिए होइ ? जइयव्वं ॥ ३१९ ॥ ___अपरिग्रहवाळो ते मुनि छे, तेने ज्यारे पिंड गोचरी वसति [स्थान] वस्त्र पातरां लेवानो विचार थाय, त्यारे ते ग्रहण भाव अवग्रह छे. ते वखते साधुने एवी बुद्धि होवी जोइए के केवी रीते ते वसति विगेरे मने शुद्ध मळी शके ? तथा प्रातिहारिक पार्छ अपाय ते पाट पाटला विगेरे अप्रतिहारक ( पार्छ न अपाय ते गोचरी विगेरे ) मने शुद्ध मळे तेमां यत्न करवो, अने प्रथम 4. Real पांच प्रकारनो इंद्र विगेरेनो अवग्रह बताव्यो ते आ ग्रहण अवग्रहमां समजवो. आ प्रमाणे नाम निष्पन्न निक्षेपो थयो, हवे सूत्रानुगममां मूत्र कहे छे समणे भविस्सामि अणगारे अकिंचणे अपुत्ते ! अपमू परदत्तभोई पावं कम्मं नो करिस्सामित्ति समुहाए सव्वं भंते ! SSSSSSSSSS DRESECRECRA-NCR-7-x

Loading...

Page Navigation
1 ... 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890