Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 833
________________ (तमारी इच्छा प्रमाणे तमे जेटलो काळ आज्ञा, आपो, जेटली जग्या वापरवा आपो, ते प्रमाणे अमे अहीं रहीए, एटले हे गृहस्थ तमे जेटली जग्या वापग्वा आपशो, तेटलो समय अमे तथा अमारा साधुओ आ जग्या वापरशुं, तेथी आगळ (पछी) विहार करीशुं, आचा० म पछी मालिके ते मकानमा उतरवानी जग्या आप्या पछी साधुएं शुं कर, ते कहे छे. ते जग्याए केटलाएक परोणा साधुओ ॥१०४८॥ एक समाचारी आचरनारा उद्युक्त विहारी आवे, तेमने पूर्वना मोक्षाभिलाषी साधुए उतरवा देवा, तथा विहार करता पोतानी ॥१०४८॥ ₹ मेळे त्यां तेवा उत्तम साधुओ आव्या होय तेमने अशन पान विगेरे चारे आहार लावीने तेमनी इच्छानुसार लेवा पार्थाना करवी || के आ हु आहार विगेरे लाव्यो छु, आपनी इच्छा प्रमाणे लइने मारा उपर अनुग्रह करो. पण बीजा साधुना लावेला आहारनी | परभारी निमंत्रणा पोते न करे, पण पोते जाते लावीने तेमनी इच्छानुसार आपे. से आगंतारेसु वा ४ जाव से किं पुण तत्थोग्गहंसि एवोग्गहियंसि जे तत्थ साहम्मिा अन्नसंभोइआ समणुन्ना उवाग- ' च्छिज्जा जे तेण सयमेसित्तए पीढे वा फलए वा सिज्जा वा संथारए वा तेण ते साहम्मिए अन्नसंभोइए समणुन्ने उवनिमंतिज्जा नो चेवणं परवडियाए ओगिज्झिय उवनिमंतिज्जा ॥ से आगंतारेसु वा ४ जाव से किं पुण तत्थुग्गहंसि एवोग्गहियंसि जे तत्थ गाहावईण वा गाहा० पुत्ताणं वा सूई वा पिप्पलए वा कण्णसोहणए वा नहच्छेयणए वा तं अप्पणो एगस्स अट्ठाए पाडिहारियं जाइत्ता नो अन्नमन्नस्स दिज्ज वा अणुपइज्ज वा, सयंकरणिज्जतिकटु, से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा २ पुव्वामेव उत्ताणए हत्थे कह भूमीए वा ठवित्ता इमं खलु २ ति आलोइज्जा, नो चेवणं सयं पाणिणा परपाणिसि पञ्चप्पिणिज्जा ।। (सू० १५७) -CICROCROREOGRUECRECARE

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