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सुत्रम्
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ते साधु के साध्वी रस्तामां माणश चळद मृग पशु पक्षी सरीसृप जलचर कोइ पण पुष्ट शरीरवाळु देखें तो आबुं न बोलवू, 18 के "आ, स्थुल प्रमेदुर वृत्त अथवा वध करवा योग्य अथवा वहन करवा योग्य छे, अथवा मारीने संधवा योग्य छे, अथवा देवताने
बळी आपवा योग्य छे." . .. ॥१०१९
. पण माणसथी लइने जलचर सुधीन कोइ पण पशु पंखी के जंतु परिबद्ध (जाडा) शरीरवाल्लं देखीने जरुर पडतां आवी रीते 14 बोलवू के आ जाडा शरीरनो छे, उपचित (पुष्ट) कायवाळो छे, स्थिर संघयणवाळो छे, अथवा लोही मांसे पुष्ट छे, अथवा पांच | इंद्रयो पुरी छे, आवी निर्दोप भाषा बोले.
तेज प्रमाणे जुदा जुदा रुपवाळी गायोने साधु देखे, तो तेणे आवु न कहेवू, के आ गायो दोहवा योग्य छे, अथवा दोहवानो वखत छे, अथवा आ गोधलो (जुवान बन्द ) वाहन करवा जेवो छे, अथवा रथने योग्य छे, आवी सवाथ भाषा न बोलवी, पण IM जरूर पडतां जुदी जुदी गायोने जोइ आ प्रमाणे बोलवू के आ युवान गाय छे, अथवा रसवती धेनु छे, आ नानो बळद छे, आ|
मोटो छे, अथवा महाव्यय (मूल्य) वाळो छे, संवहन छे, आवो निरवध भाषा बोले. 8 तेज प्रमाणे साधु उद्यनमा जतां पर्वत वन विगेरेमां मोटां झाड देखीने आबुं न बोले के, आ महेल बनाववा योग्य, तोरण
योग्य छे, घर योग्य, फलिहाने योग्य, अर्गला नाव के पाणी लाववाने परनाळ वनववा, योग्य अथवा द्रोण वनाववा योग्य पीढ चंगबेर हळ कुलिकयंत्रनी लाकळी (घाणी) नाभि गडि असाण विगेरे ओजारनी वस्तुओ बनाववा योग्य छे, तथा सुवानां पाटी गाडी गाड़ां उपाश्रय बनाववा योग्य छे. अथवा तेवू कंइ पण बीजुं सावध वचन न बोले.
॥१०१२॥
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