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चा० 18. उत्तरः-धर्मकथाना अवसरमां, प्र:-तेओए केवो धर्म कह्यो ? एवी शंका दूर करवा कहे छे. 'समिय' समता एटले, शत्रु
मित्रमा समभाव राखवो; तेनावडे आर्योए धर्म कहेलो छे. कयुं छे के:५७९॥ जो चंदणेण बाहुँ, आलिंपइ वासिणाव तच्छेति । संथुणइ जोअणिंदति, महेसिणो तत्थ समभावा ॥१॥
जे कोइ भक्तिथी मुनिने भुजा उपर चंदननो लेप करे, अथवा वांसलाथी चामडी छोले, अथवा कोइ स्तुति करे, कोइ निंदे, ॐ तो पण ते मुनि बधा जीवो उपर समभाव राखे छे. (तेज महर्षि छे) अथवा आर्य एटले देशथी भाषाथी के उत्तम आचरणर्थी तेओ है आर्य (सुधरेला) छे, ते वधा उपर भगवाने समभाव राखी उपदेश आपेलो छे. तेज का, छे के:
जहा पुण्णस्स कत्थइ, तहा तुच्छस्स कत्थइ-विगेरे जेम पुण्यवानने धर्म संभळावे, तेम तुच्छने पण धर्म संभलावे अथवा शमि (शम शांतिधारक) नो भाव ते शमिता ते शांत हृदय राखीने वधा हेय धर्म (कुरीवाजो) ने त्यागवाथी आर्य वनेला तेमणे प्रकर्षथी अथवा प्रथमथी आ धर्म कह्यो छे अर्थात् पांचे इन्द्रियो तथा मनने कबजे करवा वढे (केवळज्ञान प्रप्त करी) तीर्थकरोए धर्म कह्यो. ठीक एम हशे, तेवीरीते बीजाओए पण
पोताना अभिप्राय प्रमाणे धर्मो कह्या छेज, आवी शंका थाय, ते दूर करवा आचार्य कहे छे, के तेम नहीं. आ धर्म भगवानेज कह्यो 8 छे, ते कहे , 'जइत्थ' विगेरे देवता अने मनुष्यनी सभामां भगवाने आ प्रमाणे का, जेम में अहीं ज्ञान विगेरे मोक्ष संधि
(अवसर) सेवन कर्यो छे, अथवा आ ज्ञानदर्शन चारित्ररूप मोक्षमा मां अथवा समभावरुपमां तथा इन्द्रिय नोइन्द्रियना उपशममां में है
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