________________
ओato
॥ ५८९ ॥
आत्माने सर्व सम्यक्प्रकारे आवेलं [ मळेलं ] प्रज्ञान ते वधा पदार्थोनो प्रकाश करनारुं छे. तेवा आत्मावडे ( पदार्थोनुं पुरुं ज्ञान | प्राप्त करेलाए) जे पापकृत्यो करवा योग्य नथी ते पोते कदीपण करवाने इच्छतो नथी, अर्थात् पोते परमार्थने जाणेलो होवाथी पोते सावध अनुष्ठान करतो नथी, जे सम्यग् प्रज्ञान छे, आ जगत प्रत्यागत सूत्रवडेज बतावे छे. सम्यग् एटले सम्यग्ज्ञान अथवा सम्यक्त्व छे. तेनी साथे चारित्र छे, आ वन्नेनुं सहभावपणुं होवाथी एकनुं ग्रहण करवाथी बीजुं पण ग्रहण करेलं जाणवु, ए न्याय छे, जे आ सम्यग्ज्ञान अथवा सम्यक्त्व छे, ते [ हे शिष्यो ] तमे जुओ के मुनिनो भाव ते मौन छे, एटले संयम अनुष्ठान ते मौन छे. तेने जुओ, तथा जे मौन छे, ते सम्यग्ज्ञान अथवा निश्चय सम्यक्त्व छे. ते तमे जुओ, कारणके ज्ञाननुं फळ विरति छे. तथा ज्ञान छेते सम्यक्त्वने प्रकट करवापणे छे. तेथी ते सम्यक्त्वज्ञान चरण त्रणेनी एकता जाणवी, अने आ जेवा तेवाथी पाळं शक्य नथी, माटे | कहे छे के आ सम्यक्त्व विगेरे ऋण सारीरीते करवां तेने शक्य नथी ने कोने ? शिथिल पुरुषो जेओ अल्प परिणामपणे मंद वीवाळा छे, तथा जेमनांमां संयम तपनी धीरज तथा दृढपणुं नथी तेमने संयम पाळवो अशक्य छे, वळी [आंद्रे:] पुत्र कलत्र विगेरेना | प्रेमथी जेमनुं हृदय भींजायलुं छे, तेमने पण संयम दुष्कर छे, तथा जेमने गुणो ते शब्द विगेरेनो आस्वाद छे, तेमने संयम अशक्य छे, वळी वक्र समाचारवाळा (कपटी) ओने अशक्य छे, तथा विषय कपाय विगेरेथी प्रमादी छे तथाजेओने घर उपर ममल छे. ते अगर सेवनारा (मटधारी वनेला) ने पाप वर्जनरूप संयम (मौन) अनुष्ठान करवुं अशक्य छे, [सूत्रमां अ नो लेप थवाथी गार छे. पण अगार लेबुं . ] प्रः - त्यारे केवी रीते शक्य थाय? मुनि ते त्रण जगत्ने माननारो, तेनुं मौन ते मुनिपणुं (वधां पापकर्म त्यागवारूप) छे. ते ग्रहण करीने औदारिक शरीर अथवा कर्म शरीर दूर करे, ते धूनन ( दूर करं) केवी रीते - थाय ? ते कहे छे. मान्तवासी अथवा
सूत्रम्
॥५८९ ॥