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आचा०
सूत्रम्
ॐवन
॥६५७॥
शरीरमां वळता राखेला छे. -
भृज्ज्यन्तेज्वलदम्बरीषहुतभुग ज्वालाभिराराविणो, दीप्तां गारनिभेषु वज्र भवनेष्वं गारके त्थिताः ॥ . दह्यन्ते विकृतोर्ध्व वाहुवदनाः दन्त आस्वनाः पश्यन्तः कृपणा दिशो विशरणा खाणायको नो भवेत् ॥ ६॥ ॥६५७॥
वळी, ते नारकीना जीवो वळता अंबरीय अग्निनी ज्वाळावडे पोकार कराता भुंजाय छे, तथा बळता अंगारावाळा बज्रभवन माफक अंगारामां ऊभा थयेला रांकडा मेवाळा ऊंचा हाथ करीने खोखरा अवाजवाळा रडता बळे छे. अने ते विचारा नारकीना जीवो शरणरहित थइने बधी दिशामां (आश्रय) आपनारने देखे छे, पण तेमने बचाववा कोइ समर्थ नथी; विगेरे, नारकीनां दुःख छे. तथा तियग्गतिमां पृथ्वीकायनी ७ लाख योनि छे, तथा बार लाख कुल कोटि छे. तेमने नीचली (पीडाओ) छे.
स्वकाय-परकायनां शस्त्रोथी पीडा छे, तथा शीत-ऊष्णनी पीडा छे. तेज प्रमाणे अप्काय (पाणी) ना जीवोनी ७लाख | योनि, तथा कुल कोटि, तथा जुदी जुदी जातिनो वेदनाओ छे. अग्निकायनी ७ लाख योनि, तथा ३ लाख कुल कोटि, अने पूर्व माफक वेदना छे. वायुनी पण ७ लाख योनि, तथा ७ लाख कुल कोटि, अने ठंड-ऊष्णतानी जुदा जुदा प्रकारनी वेदना छे.181 प्रत्येक वनस्पतिनी दशलाख योनि, साधारण वनस्पतिनी १४ लाख योनि, अने बनेनी २८ लाख कुल कोटि छे. तेमां गयलो जीवदा | अनंतकाळ सुधी पण छेदन-भेदन मोटन विगेरेनी जुदी जुदी वेदनाने अनुभवे छे.' '
- विकळइंद्रिय, बेइंद्रिय, तीनइंद्रिय, 'चारइंद्रियनी बबे लाख योनि, तथा कुल कोटि ७-८-९ लाख अनुक्रमे छे, अने ते दरेकने भूख तरंस, ठंड-ताप, विगेरेथी थतुं दुःख आपणे प्रत्यक्ष जोइए छीए. तीर्यच-पंचेन्द्रियनी चारलाख योनि छे, अने जळचरनी कुल