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आचा०
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धोयरता वत्थाई धारिजा, अपलिओमाणे गामंतरेसु ओमचेलिए, एयं खु वत्थधारिस्स सामग्गियं ( सू० २९९ )
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पण,
अहीं प्रतिमा धारी अथवा जिनकल्पी जे अछिद्र हाथ (लब्धि) वाळो मुनि जाणवो; कारणके, तेनेज पात्र निर्योग युक्त पात्र, तथा कल्पत्रय (वस्त्रनी) आवी ओघ उपधि होय छे, तेने औपग्रहिक (संथारीउं विगेरे) उपधि होती नथी; तेमां ठंडमां शिशिर विगेरे ऋतुमां क्षौमिक (सूत्रांचे कपडां (२||) हाथ लांबा पहोळां होय छे, अने त्रीजुं उननुं होय छे, तेवा मुनिने ठंड विशेष होय; तो साधु वीजुं कपहुं इच्छतो नथी ते बतावे छे. जे भिक्षु त्रण कपडांथी निर्वाह करनारो छे, ते ठंडमां एक कपड़े ओढे छे. जो उन्ड वधारे लागे; अने सहन न थाय तो, बीजुं ओढे, ते बन्नेथी पण, घणी उन्डना लीधे न सहाय तो, त्रीनुं उननुं कपड़े पण ते बन्ने उपर ओढे छे. उनना कपडाने बहारना भागमां सर्वथा राख; अंदर तो, सूत्रज राखबुं. ए त्रण वस्त्रो केवां छे? ते बतावे | छे. 'पात्र चतुर्थैः' पडता आहारने न पडवा दे ते पात्र छे, अने ते पात्र ना लेवाथी पात्रनो निर्योग सात प्रकारनो पण लीधो जा| वो कारण के तेना विना पात्र लेवाय नहीं. ते आ प्रमाणे छे:
'पत्तं पत्ताबन्धो, पायट्टवणं च पायकेसरिआ । पडलाइ रयत्ताणं च गोच्छओ पायणिज्जोगो ॥ १ ॥
[१] पात्र [२] पात्रानुं बन्ध [३] पात्रानु स्थापन ( ४ ) पात्र केशरिका (पंजणी) (५) पडला (६) रज खाण [७] गुच्छो आ सात पात्रानो निर्योग छे. आ प्रमाणे सात प्रकारनो पात्र निर्योग तथा कल्प त्रण, तथा रजोहरण [ ओघो] मुखवस्त्रिका (मुहपत्ति )
अथवा घणी
सूत्रम
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