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सूत्रम
PRECASSA
॥६५८॥
कोटि १२॥ लाख छे, पक्षीओनी कुल कोटि १२ लाख, अने चोपगांनी १० लाख, ऊर परि सर्वनी १० लाख, भुज-परिसर्पनी आचा०९ लाख छे, अने जुदी जुदी वेदना तिर्यचोनी जे छे, ते प्रत्यक्षज छे. का छे केः
क्षुत्तड् हिमात्युप्ण भयार्दितानां, पराभि योगव्यसना तुराणां अहो ! तिरश्चामति दुःखिताना, सुखानु पंगः किलबार्तमेतद् ॥१॥ ॥६५८॥ भूख तरस, ठंड ताप तथा भयथी दुःखी थएला तथा पारकाना कयजामा रहेवाना दुःखथी सदा पीडायेला एवा तिर्यचो जे
अति दुःखी छे, तेमनामां सुखनो अनुसंग शोधयो ने तो निश्चे एक वार्ता मात्र छे! (अर्थात् सुखतो लेश पण नथी) विगेरे छे. मनुष्य गतिमां पण १४ लाख योनि तथा १२ लाख कुल कोटि अने आवी रीतनी वेदनाओ छे.
दुःखं स्त्री कुक्षिमध्ये प्रथममिह भवे गर्भवासे नराणां बालत्वेचापि दुःखं मललुलिततनुः स्त्रीपयः पानमिश्रं ॥
तारुण्येचापि दुःखं भवति विरहजं वृद्धभावोप्यसारः संसारे रे मनुष्या वदत यदिसुखं स्वल्पमप्यस्ति किंचित् ॥१॥ प्रथम मातानी कुखमां आ भवमा पहेलं दुःख मनुष्योने गर्भवासमा रहेवार्नु छे, अने जन्म्या पछी बालपणामां मलथी खरडायलं शरीर संबंधी तथा मान दूध पीवानुं दुःख छे, जुवानीमां पण (स्त्री पुरुष तथा दीकरा दीकरी मावाप सगांना) विरहनु दुःख छे, अने वृद्धावस्था तो असारज छे, (माटे डायो माणस मुग्ध जीवने पूछे छे के) हे मनुष्यो! जो तमने कयांय पण संसारमां थोडं पण सुख देखातुं होय तो बोलो! (अर्थात् संसार दुःख सागरज छे)
बाल्यात प्रभृति चरोगै, दृष्टो भिभवश्च यावहिह मृत्युः शोक वियोगायोगै, दर्गत दोपैश्च नैकविधैः ॥२॥ बालपणमांथीज रोगोबडे डंखायलो, अने मृत्यु सुधी (मर्ण पर्यंत) शोक वियोग तथा कुयोग वडे तथा अनेक प्रकारना गरी
वनवासस्वलन
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