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सूत्रम्
आचा०
जिनेश्वरे कहेल; ते फरी अनित्य केम थाय ? अथवा अनित्य ते, नित्य केम थाय ? कारणके, ते बन्ने परस्पर विरोधी छे.
ते प्रमाणे अपच्युत अनुप्सन स्थिर एक स्वभाववाल्लं नित्य छे. अने तेथी उलटुं दरेक क्षणे नाश पामनारुं अनित्य छ, विगेरे है। ॥६१९॥ असम्यक्भावने पामे छे, पण ते एवं विचारतो नथी, के अनंत धर्मवाळी अने बधा नयना समूहथी युक्त वस्तु छे, ते मंद बुद्धिवा18ळाने ते मानवु अति गहन होवाथी अशक्य छे, पण श्रद्धाथी मानवा योग्य छे, पण हेतुथी क्षोभायमान न थq, का छे केः
- सर्वनयर्नियतनेगमसंग्रहायेरेकैकशो विहिततीर्थिकोशासनैर्यत् ॥
निष्ठां गतं बहुविधै र्गमपर्ययस्तैः श्रद्धेयमेव वचनं न तु हेतुगम्यम् ॥ (इत्यादि) बधा नयोवडे एटले नैगम संग्रह विगेरे अने कथा नियत एक एक अंशथी अन्य तीर्थीक शासनवाळाए वतावेल जे बहु प्रकारना गमपर्यायोवडे संपूर्णता पामेलुं तमारं वचन श्रद्धा करवा योग्य छे. पण त्या हेतुथी जाणवा योग्य नथी,
जेथी विचार के हेतुतो एक नयना अभिप्राय प्रमाणे वर्ते छे. तथा एक धर्मने साधे छे, पण वधा धर्मने साथे साधनारने | हेतुनो असंभव छे, (तेथी तेने शङ्का थाय छे.)(२)वळी विचित्र भावनाने बतावे छे, के कोइ मिथ्यात्वना लेशथी मुझाएलाने शङ्का थाय के शब्द पुद्गलनो केवीरीते बने एवं उलटुं मानीने मिथ्यात्वना परमाणुओना उपशमपणाथी पछीथी शंका विगेरे गुरुना उपदेथी दूर थतां ते श्रद्धावाळो थाय हे के जो शब्द पुद्गलनो बनेलो न होय तो तेनो करेलो अनुग्रह अथवा उपघात कान उपर केवी रीते थाय? कारण के आकाश माफक शब्द अमूर्त होय तो कानने कांइ पण न थाय एम समजीने सम्यक्त्व पामे छे (३) कोइने आग
मानवकवरबद्र