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'पासमूयंति' हे शिष्य ! तुं मुंगा अथवा मन्मन (बोबडे) बोलनाराने जो,! ते गर्भना दोषधी अथवा पछवाडेथी ६५ प्रकारना आचा०
मुखनारोगो सात आयतन [स्थान]मां थाय छे, ते आयातन नीचे मुजब छे, १ होठ २ दांतनु मूळ ३ दांत ४ जीभ ५ ताळQ ६
कंठ ए' बां मळीने सात छे, तेमांवे होठना आठ रोग छे, दंतमूळमां १५, दांतना आठ छे, जीभना ५ छे, ताळवाना ९ छे, ॥६५२॥ ५ कंठमां १७ अने बधाना साथे मळीने त्रण छे. कुल ६५ छे, 'मूणियंति' शून्यपणुं श्वयथु [सोजानो] रोग वात पित्त श्लेष्म संनिपात रक्त अने अभिघात ( मार लागवाथी) थी छ प्रकारनो छे, का छे के
शोफः स्यात् षड्विधो घोरो, दोपै रुषेध लक्षणः यस्तैः समस्तैश्चापीह तथा रक्ताभिघातजः शोफ नामनो छ प्रकारनो घोर रोग जुदा जुदा के, सामटा दोषथी शरीर फुलेलं देखाय; ते लोहीना बिगाडथी थाय छे. एटले, श्लोक पहेलां वताव्या प्रमाणे वात, पित्त, कफ, अने संनिपात, रक्त, अने अभिघातथी सोजानो रोग थाय छे, तथा 4 "गिलासणिति" ते भस्मक नामनो व्याधि छे. ऊष्णता, वात, अने पित्तना ऊत्कटपणाथी, अने कफना न्यूनपणाथी तथा गरमी , वधारे थवाथी थाय छे, तथा वेवइंति ते वायुथी उत्पन्न थयेल शरीरनां अवयवो कंपरूप छे. कयुं छे केः
प्रकामं वेपते यस्तु, कंपमानश्च गच्छति, कलाप खंजं तं विद्या, न्मुक्त संधिनिबंधनम् ॥१॥ जे घणो कंपे, 'तथा कंपतो चाले, तेने संधि निबंधनथी मुकाएलो कलाप खंज (लकवानो रोग) जाणवो. तेज प्रमाणे है "पिढसप्पिं च ति" जीवने गर्भना दोषथी ते पीढ सर्पिपणे उत्पन्न थाय छे, अथवा जन्म्या पछी अशुभ कर्मना दोषथी थाय छे, )
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ॐवनावमा