________________
आचा०
॥५५७॥
पापस्थानने ते बाल जीव करे छे, (आत्मनेपद क्रियापद लेवाथी पोताने माटे ते करे छे, ) तेनुं फळ बतावे छे, क्रूर कर्मना विपा| कथी मेळवेला दुःखवडे शुं करवु ? एम विचारमां मूढ बनेलो क्या कृत्यथी मारुं आ दुःख दूर थशे, एम मोहथी मोहित थयेलो विषर्यास (उलटो रस्तो) पामे छे, एटले ते मूढ जे प्राणीनी घात विगेरे पापकृत्यो जे दुःख मळवानां कारणो छे, तेज हिंसाना कृत्य दूर करवा माटे फरी करे छे ! वळी 'मोहेण' मोह अज्ञान छे, अथवा मोहनीयकर्म छे, ते मिध्यात्व कषाय विषयनो अभिलाषरुप छे, तेना वडे मूढ थयेलो नवां अशुभ कर्म बांधे छे, तेनाथी गर्भमां जाय छे, पछी जन्म बालावस्था कुमार यवन बुढापो विगेरे तेने मळे छे वळी ते विषय कपाय विगेरेथी कर्म नवां वांधीने आयुना क्षयथी मरण पामे छे, आदि शब्दथी पाछो गर्भ जन्म विगेरे मेळवे, एम जाणवुं. पछी ते नरक विगेरेनां दुःख पामे छे, ते कहे छे. 'एत्थ' उपर कहेला मोह कार्य ते गर्भ मरण विगेरेमां वारंवार अनादि अनंत चार गतिरूप संसार कांतारमां ते जीव भ्रमण करे छे, पण तेनाथी मुक्त थतो नथी, त्यारे केवीरीते भ्रमण न करे ? उत्तरः -- मिध्यात्व कषाय अने विषयना अभिलाषथी दूर रहेतो ते केवी रीते दूर थाय ? उत्तर:- विशिष्ट ज्ञाननी उत्पत्तिथी ? प्र-ते केवी रीते मळे ? उः - मोहना अभावधी ? जो आ प्रमाणे एक वीजाने आश्रये रहेलां छे, जेमके मोह अज्ञान अथवा मोहनीयकर्म तेनो अभावधी विशिष्ट ज्ञान, ते पण मोहनीय कर्म दूर थवाथी ए प्रमाणे इतर इतर आश्रय दोष खुलोज थाय छे, ? एटले एम थयुं के ज्यां सुधी विशिष्ट ज्ञान प्राप्ति न थाय त्यां सुधी कर्म शांत करवानी प्रवृत्ति पण न थाय. उः - तमारो कहेलो दोष | लागतो नथी. कारण के अर्थ (पदार्थ) नो संशय आवतां पण प्रवृत्ति थती देखाय छे, ते सूत्र कहे छे:
संसयं परिआणओ संसारे परिन्नाए भवइ, संसयं अपरियाणओ संसारे अपरिन्नाए भवइ (सू० १४३ )
k
सूत्रम्
॥५५७॥