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आचा०
सूत्रम्
॥५६३॥
॥५६॥
चार (ते चर धातुनो अर्थ गति तथा खावाना अर्थमां छे, तेनुं भावमा चार रुप बने छे,) तथा चर्या शब्द (३-१-१०. ना & सूत्र प्रमाणे) बने छे, तेम चरण पण बने छे, एक ते अभिन्न, अर्थ (समान अर्थ ) वाळा ते एकार्थ कहेवाय छे. जेना वढे अर्थ ।
प्रगट कराय ते व्यंजन शब्द छे, अर्थात् चार, चर्या अने चरण ए त्रणे शब्द एक अर्थवाला छे, तेथी तेना जुदा निक्षेपा छ प्रकारे छे, नाम स्थापना मुगमने छोडीने ज्ञ शरीर भव्य शरीस्थी जुदो 'द्रव्य चार' ते अडधी गाथामां वताव्यो छे, 'दव्वं तु तु शब्दनो अर्थ पुनः छे, द्रव्य आवी रीते याय छे, दारु (लाकडं) चाले छे, तेजलमां तथा स्थलमां चाले छे, तेथी ते प्रथम कहे छे, ते लाकडं जलमा स्थलमा अनेक प्रकारे चाले छे, एटले लाकडानो पूल विगेरे पाणीमां बनावे छे, अने स्थलमा खाडा विगेरे ओळंगवा माटे लाकडां गोठवे छे, तेमज जलमां लाकडानी नाववढे चलाय छे, जमीन उपर रथ विगेरेथी चलाय छे तेमज आदि शब्दथी ते लाकडं महेल बनाववा विगेरेमां दादर बनाववामां काम लागे छे, . तथा जे जे द्रव्य एक देशथी बीजा देशमां जवा माटे वपराय ते द्रव्य चार छे. हवे क्षेत्र चार विगेरे कहे छे, खित्तं तु मि खित्ते, कालो काले जहिं भवे चारो । भावंमि नाण देसण, चरणं तु पसत्थ मपसत्थ ॥२४७॥
जे क्षेत्रमा चार (चालवान) करीये अथवा जेटलं क्षेत्र चालीए, ते क्षेत्र चार कहेवाय छे, ते प्रमाणे जे कालमां चालीए, अथवा जेटलो काळ चालीए ते काळ चार छे.
• भावमां चारके चरण वे प्रकार- छे, प्रशस्त चरण अने अप्रशस्त छे. तेमा प्रशस्त चरण ते 'शान दर्शन अने चारित्र' छे, अने |
कब-कवावलम..