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आचा०
सूत्रम्
॥४९२॥
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अने कपायना समूहने दूर करवाथी ते दूर करनार साधुने कोइथी भय रहेतो नथी; अथवा चराचर लोकने आगमनी आज्ञा | ममाणे समजीने चाले; तेने आलोक-परलोक अपाय; ने सारीरीते देखवाथी (सीधे मार्गे चालनाराने) क्यायथी भय न
उपर बतावेलो भय शस्त्रथी थाय छे, पण ते शस्त्रनी प्रकर्पगति छे के नहि? उत्तर-छे, ते वतावे छे..
तेमां द्रव्यशस्त्र तलवार विगेरे छे. ते परथी पण पर छे, तीक्ष्णथी पण तीक्ष्ण थाय छे. कारण के, लोढा उपर पाणी विगेरे ॥४९२॥ R चढावानो संस्कार कराय छे. अथवा, शस्त्रएटले, उपघातकारी. तेथी एक पीडाकारीथी बीजो पीडाकारी उत्पन्न थाय छे. ते न्याये । . एकथी वीजो अपर छे ते वतावे छे. जेमके-तलवारना घाथी धनुर्वा थाय; तेनाथी माथानी वेदना थाय; तेनाथी ताव चढे; पछी लं, मुखमां शोप पडे; अने छेवटे, मूर्छा विगेरे थाय छे. ____पण भावशस्त्र परंपराए जोडेला मूत्रथी सूत्रकार महाराज पोतानी मेळेज प्रत्याख्यान परिज्ञाना द्वारवडे कद्देशे के जेवीरीते हैं शस्त्रनी प्रकर्पगति छे, अथवा परंपराए विद्यमान छे, पण अशस्त्रने तेम नथी, ते बतावे छे, के अशस्त्र ते संयम छे, ते संयम परथी । बीजुं पर नथी, एटले ते प्रकर्ष गतिने पामेल नथी, ते आ प्रमाणे.
पृथ्वी विगेरेनी समानता करवी, तेमां मंद तीव्रनो भेद नथी, एटले पृथ्वी विगेरेमां समभावपणुं धारवाथी सामायिकनी सिद्धी छे. अथवा शैलेशी अवस्थामा रहेला संयमथी बीजो संयम नथी, अर्थात् तेनाथी बीजुं गुणस्थान उपर कोइ नथी.
जे क्रोधना उपादानथी बन्ध करे छे. ते स्थिति तथा विपाकथी तथा अनंतानुवन्धीना लक्षणथी जे कर्म बन्धाय तेना क्षयने आश्रयी प्रत्याख्यान परिज्ञावडे जे जाणे छे ते साधु अपर मान विगेरेने पण तोडवानुं देखनारो छे, ते पछीना मुत्रमा बतावे छे.
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