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तेटला माटेज आ जिनेश्वरना कहेला मार्गमांज उत्तम साधुए उद्यमवाला थवु, तेज सूत्रमा कहे छे के आ कर्मभूमी छे. जेमां मो-४ आचा०
| क्षना झाडना बीज समान सोधी (सम्यक्त्व) तथा सर्व संवर रूप चारित्र पामीने कर्ममा जेम लेप न थाय, नवां कर्म न बंधाय तेम आ उत्तम मार्गमां वर्तवं, ते विदित वेद्य (पंडित) जाणवो, जो ते मार्ग उलंघीने बतावेलां धर्म अनुष्ठान न करे तो कर्मनो बंध थाय.
सूत्रम् ॥३८३॥
४ तेथी आ सत्पुरुषोनो मार्ग छे तेथी पोते चारित्र लेतां प्रथम सर्व जीवने समाधि आपवारूप प्रतिज्ञा करी ठे, ते छेवटनो उच्छवास 8 ॥३८३॥ है लेता सुधी पाळवी जोइए. का छे के:
"लजां गुणोघजननी जननीमिवार्यामत्यन्तशुद्धहृदयामनु वर्तमानाः । तेजस्विनः सुखमसूनपि ।
सन्त्यजन्ति; सत्यस्थितिव्यसनिनो न पुनः प्रतिज्ञाम ॥१॥" गुणना समूहनी माता तथा अत्यंत शुद्ध हृदय बनावनारी जे लज्जा छे, तेने श्रेष्ठ माता माफक मानीने तेनी पाछळ चालनारा तेजस्वी पुरुषो (साधुओ) सुखे करीने पोताना प्राण पण त्यजे छे, परंतु सत्य स्थितिने चाहनारा तेश्रो पोतानी प्रतिमानो भंग करता & नथी. आप्रमाणे सुधर्मास्वामी जंबूस्वामीने कहे छे केः-में उपर प्रमाणे जे कयुं ते महावीरप्रभुनां चरणसेवन करतां सांभळ्यु ।
छे, ते तने कधु छे, माटे परिग्रहथी आत्माने दुर कर; ए जे कयुं छे, ते संसारी-वासनाना उच्छेद विना न थाय; अने ते संसारी-वासना पांच प्रकारना इन्द्रियोना विषयरसने अनुसरनारा अभिलापो छे, अने ते तजवा मुश्केल छे. तेथी कहे छे के:-- कामा दुरतिकमा, जीवियं दुप्पडिवूहगं,। कामकामी खलु अयं पुरिसे, से सोयइ जूरइ तिप्पइ परितप्पइ है।
SARKAAHARASHI
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