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आचा०
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छे ते कहे छे:— अथवा 'परं ' ते आत्मा छे, तेने मोक्षमां लइ जाय छे, ते 'नाय' (मागधी सूत्र प्रमाणे) छे तेनो अर्थ आ छे. के जे, लोकनो संयोग त्यजे; तेज श्रेष्ठ आत्माना मोक्षनो न्याय छे. सदुपदेशथी मोक्ष मेळवनारो कहेवाय छे. एम हो; पण, ते उपदेश केवो छे ते कहे छे:
जं दुक्खं पवेइयं इह माणवाणं, तस्स दुक्खस्स कुलला परिन्नमुदाहरंति, इह कम्मं परिन्नाय, सर्व्वसो जेअणन्नंसी, से अणन्नारामे, जे अणपणारामे, से अणन्नदंसी, जहा पुण्णस्स कत्थइ, तहा तुच्छस्स कत्थइ, जहा तुच्छस्स कत्थइ जहा पुणस्स कत्थइ (सू० १०५ ) जे दुःख अथवा दुःखनुं कारण अथवा, लोकना ममत्वथी वन्धातुं कर्म तीर्थकरोए बतान्युं छे के, आ संसारमां जीवोने आवा आवां दुःखो छे, ते दुःखने अथवा तेनां कर्मने धर्मकथानी लब्धि प्राप्त करेला जैन तथा जैनेतर मतना जाण गीतार्थ योग्य बिहार करनारा; बोले तेनुं पाळनारा, निद्रा जीतेला इन्द्रियो वश राखनारा, देशकाळ विगेरेनुं स्वरूप जाणनारा; उत्तम गुणवाळा साधुओ विगेरे आवी परिज्ञा बतावे छे के, दुःखोनुं मूळ कारण तथा तेनुं रोकावानुं कारण आ प्रमाणे छे. ते जाणीने इ-परिज्ञावडे प्रत्याख्यान परिज्ञावडे पापने त्यागे छे. वळी, उपर दुःख थवानो विचार विगेरे मनुष्य तथा वीजा जीवोनुं कनुं ते दुःख जाणवानी तथा दुःखनुं मूळ पाप त्यागवानी वे प्रकारनी परिज्ञा - गीतार्थ साधुओएवतावी. ते परिज्ञा करीने तथा पापनां मूळ आश्रवद्वार जाणीने छोड़वा ते कहे छे:
सूत्रम्
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