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पदार्थ जाणनारो सम्यक दृष्टि जिनवचन माननारो गीतार्थ साधु छे ते मोक्ष सीवाय वीजा मार्गमां रमतो नथी.
हेतु अने हेत्वाळा-भाववढे मूत्रने जोडवा कहे छे के जे भगवानना उपदेशथी अन्य स्थानमा स्मणता न करनारो ते अनन्यदर्शी छे अने जे अनन्यदर्शी छे ते वीजे रमे नही का छे के"शिवमस्तु कुशास्त्राणां वैशेषिकषष्टि तंत्र बोद्धानाम् । येषां दुर्विहितत्वाद्भगवत्यनुरज्यते चेतः ॥१॥
'कुशास्त्रो जे, "वैशेषिकपष्टितंत्र" तथा चौद्धनां रचेलां छे, तेमन पण भलुं थाओ; कारणके, तेमनामां विसंवाद जोइने जिनेपू चिरना वचनमां अमाझं मन रंजित थाय छे. मा प्रमाणे सम्यक्त्वनुं स्वरूप कहेल छे, ते कहेनार रागद्वेप दर करनारो थाय छे ते बतावे छे.
जहा पुण्णस्स. विगेरे. तीर्थकर, गणधर, आचार्य विगेरे जे प्रकारे इन्द्र चक्रवर्ती मांडलीक राजा विगेरे पुन्यवान-जीवने उपदेश करे छे. तेज प्रमाणे कठीयारा विगेरे तुच्छ जीवोने पण उपदेश करे छे. (बन्नेमां तेमनो समभाव छे,) अथवा पूर्ण ते जाति, कुळ, रूप, विगेरेथी पुण्यवान
के, अने नीच जाति कुरुपवाळो ते तुच्छ छे, अथवा, विज्ञानवाळो पूर्ण तथा, अन्य सामान्य बुद्धिवाळो तुच्छ छे, ते दरेकने उत्तम ४ पुरुपो समानभावे उपदेश करे छे. का छे केः
"ज्ञानेश्वर्यधनोपेतो, जात्यन्वय बलान्वितः । तेजस्वी मतिमान् ख्यातः पूर्णस्तुच्छा विपर्ययात् ॥१॥"