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सूत्रम् ॥३६८॥
॥३६८॥
छे, तथा पोते " अयंसधि" छे, एटले पोतानां दरेक कार्य योग्यवखते करनारो छे. ज्यारे जे करवु होय; ते प्रमाणे करे छे. कपडां जोवां; ध्यान राखवूसिद्धांत भणवो गोचरी जवू, प्रतिक्रमण करई. विगेरे दरेक क्रिया एकवीजाने 'बाधा' विना समये समये करे छे, तेज परमार्थने जोनारो जाणवो. तथा ते मुनि “ अदक्खु"छे, एटले जे आर्य छे, आर्यबुद्धिवाळो छे. आर्यदर्शी छे, काळने जाणनारो छे, तेज परमार्थने जाणनारो जाणवो. वीजी प्रतिभा सूत्रपाठमां भेद छे, ते,
____ अयं संधिमदक्खु छेतेनो अर्थ कहे छे:-पूर्वे वतावेला उत्तम विशेषणवाळो साधु कर्तव्यकाळने जाणे छे, एटले जे परस्पर हित-अहित मेळव, छोड विगेरे क्रियाने वाधा न करतां; प्रथम अवसरने जाणे छे, अने ते प्रमाणे करे छे. ते परमार्थने जाणनारो छे.
भावसंधि-ज्ञान दर्शन अने चारित्र तेनी वृद्धि शरीर विना न थाय, अने शरीरनो निर्वाह आहारना कारण विना न थाय, 1 अने तेमां पण सावधनो त्याग करवानो छे. तेथी ते भिक्षुक जे उत्तम साधु छे, ते पोते दोषित आहारने ग्रहण न करे तेम बीजा | पासे लेवडावे नहीं, अथवा कोइ लेतो होय तेने अनुमोदे नहीं, अथवा इंगाल दोप, अथवा धुम दोष, न लगाडे, एटले सारा आहारनी स्तुति न करे, तेम खराब आहारनी निंदा पण न करे, तेज प्रमाणे बीजा पासे तेवा दोषो न लागवा दे, तथा तेवा निंदा स्तति करनारानी प्रशंसा पण न करे, तथा आम गंधने छोडे एटले अशुद्ध आहार बडे दोष न लगाडवो जोइए.
शंका-पूति शब्दनो अर्थ अशुद्ध छे, तो आम शब्द शा माटे वापर्यो ?
AARA