________________
सूत्रम् ॥३४६॥
आलोकमांज नास्तिक केदमां पडी दुःख भोगवे छे, तोपण तेनी आशा पुराती नथी; अने आस्तिक भोगने रोग मानी तेनी आशा नमके छे, तो ते देवनी माफक पूजाय छे. तेथी गुरुमहाराज शिष्यने कहे छे के तमारे पोताना वशमा रहेलुं संयम सुख मेळववामां
मदृढ रहे. पण आधुं न विचार के थोडा वर्ष पछी अथवा वृद्धावस्थामां धर्म करीश. कारण के मृत्युन आवq अनिश्चत छे के हमणा ॥३४६॥ मृत्यु नहि आवे. कारण के सोपक्रम आयुष्यवाळा जीवने कोइ अवस्था एवी नथी के-जेमां कर्मरूपी अग्निमां पडनारा लाखना
गोळा माफक जीव पीगळी न जाय. कधं छे के
शिशुमशिशुं कठोरमकठोरमपण्डितमपि च पण्डितं, धीरमधीर मानिनममानिनमपगुणमपि च बहुगुणम् । यतिमयति प्रकाशमवलीनमचेतन मथ सचेतनं, निशि दिवसेऽपि सान्ध्य समयेऽपि विनश्यति कोऽपि कथमपि ॥१॥" बाळक, जुवान, कठोर कोमळ, मूर्ख, पंडित धीर, अधीर, अहंकारी दीन गुण रहित, घणा गुणवाळो, साधु, असाधु, प्रकाशवाळो अप्रकाशवाळो, अचेतन, सचेतन, अर्थात् जेटला जीवो संसारमा छे. ते वधा काळ ( मृत्यु ) थी दिवसमां, रात्रीमां अथवा संध्याना समयमां पण कोइ रीते नाश पामे छे. तेथी मृत्युना सर्वेने कडवापणाने समजीने उत्तम पुरुष अहिंसा विगेरे महावतोमा सावचेत थर्बु जोइए. शा माटे ते कहे छे.
"सव्वे पाणा पियाउया"
594ROSSANA
CAAAACASH