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निवेदन प्रिय पाठकवृन्द
एक साधारण एवं सांसारिक विषयवासनाओंसे अन्धे प्राणिके लिये ईश्वर एवं आत्मिक प्राप्तिका पथ ढूंढ़ निकालना बहुधा कठिन ही नहीं अपितु अशक्यसा है । उसके उस कार्यमें केवल उसकी अज्ञानता ही बाधक नहीं होती अपितु कई अन्य तेड़े भी उसके मार्गमें अड़े रहते हैं जो उसके धैर्यकी प्राप्तिमें बाधक सिद्ध होते हैं। ऐसी दशामें उसका कार्य तबतक सम्पन्न नहीं होता जबतक कि कोई एक ऐसी महान् विभूति, जो कि उस मार्गपर प्रयाण कर चुकी है, आकर उसका हाथ पकड़ कर उसे उठावें और उसका पथप्रदर्शक बन उसे सांसारिक विषयवासनाओं एवं मोह-मायाके निविड़ बनके टेढेपेढे मार्गोंसे निष्कंटक निकाल कर उसके वांछित स्थानको न पहुंचा दें, नहां पर उसकी खोज समाप्त हो जाती है और सब प्रकारके दुःखोंका अन्त हो जाता है। यह प्राप्ति या आत्मिकप्राप्ति अन्य शब्दोंमें अपने आपको पहचानना मात्र है ( Knowing of the Self as the Real Self कण्ठभूषणवत् नित्य प्राप्तिकी प्राप्ति) . जिज्ञासु प्राणियोंके लिये मुनिसुन्दरमूरिकी यह अद्भुत कृति एक अचूक एवं सच्चा पथप्रदर्शक है । इस ग्रन्थमें उस महान विभूतिने वह मंत्र कूट २ कर भरा है जो कि एक सच्चाईके पूनारीको सच्चे आत्मिक सुख एवं आनन्दकी असीम सीमा तक पहुंचानेमें सहायक हो सकता है।