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अध्यात्म-दर्शन
पीछे केवल भ्रान्तिरण देहागणी पिया है, आमम गपूर्वक गुन्द्र पामस्वरूप में रमणना और पाक्षारित त्याग नहीं है। बल्कि या. यानी परमात्ममिलन के लिए भी एन प्रकार के अनतापवंग आरमदानमय तीन आतं-रीद्र ध्यान होने मे नरक और नियंगति की प्रान होने की मी मम्भावना है।
इस प्रकार जन्ममरण के चक्कर में कमाने बानी गृटनापूर्ण वा श्री वा दिग्दर्शन कग कर श्रीआनन्दघनजी इसके सम्बन्ध में विशेष पाटीकरण करते हैं
कोई पतिरजन अतिघणो तप करे रे, पतिरजन तन-ताप । ए पतिरंजन मे नवि चित्त धयु रे रजन धातुमेलाप ऋषम०॥४॥
अर्थ कई व्यक्ति पति (परमात्मा=नाय) को प्रसन्न करने के लिए अत्यन्त कठोर तप करते हैं। इस प्रकार का पतिरंजन शरीर को तपाना-कष्ट देना है। मैंने अपने चित्त में इस प्रकार के पतिरंजन (परमात्मा को गश करने के तरीके) को स्थान नहीं दिया। मैं एक धातु से दूसरो धातु के मना (एकमेक हो जाने से होने वाले रंजन को ही परमात्मारूपी पति का रजन मानता है।
भाप्य
पतिग्जन के लिए मूढतापूर्ण तप परमात्मा की प्रीति-मम्पादन के इच्छुक व्यक्तियो द्वारा परमात्मापी पति को रजन करने के नाना उगायो को बना कर धीआनन्दपनजी अपना निर्णय स्पष्टरूप गे बताते हुए कहते है-जैगे मागारिक जीवन में विविध प्रकार के काम-भोगो की अभिलापिणी स्त्रिया आने पति को युग करने में लिए अनेक प्रकार के तप करती हैं , कई अपने सुहाग को अमर रखने के लिए महीने-महीने तक उपवाग, एकाशन, या चन्द्रायण आदि जनेक कष्टदायक नप करती हैं, सौभाग्यसूचक चिह्न धारण करती है, कई बार रानि-जागरण करती है, भगवान् को मनाने हेतु रात-दिन नाम-जप करती हैं, पति के खानेपीने से पहले म्यय नही माती-पीती , इत्यादि अनेक कष्ट मह कर वे देदमन करती हैं। चंगे ही ई तयााधित गावु-गन्यागी अथवा भत्ता -