Book Title: Prakashit Jain Sahitya
Author(s): Pannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
Publisher: Jain Mitra Mandal
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. 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Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बन मित्र मंडल ट्रैक्ट नम्बर १४३ प्रकाशित जैन साहित्य सयोजक श्री पन्नालाल जैन अग्रवाल सम्पादक श्री ज्योतिप्रसाद जैन एम ए., एल एल. बी (पी. एच. डी.) प्रकाशक जैन मित्र मंडल, दिल्ली मुल्य प्रथमावृत्ति) २००० प्रति } भाषाढ वीर सं० २४८४, वि० सं० २०१५ २०१२ जून १९५८ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक जैन मित्र मंडल धर्मपुरा, दिल्ली dostassbestosteste deste deste desteste deste desteste stededostosastostad stastestosta de stedestestech.ee सर्वाधिकार सुरक्षित कदपककककककककककककककककककककककककककककककका मुद्रक श्री देशभूषण प्रेस, ४११, एप्सलेनेड रोड. दिल्ली - ६ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम प्रकाशकीय वक्तव्य आदीश्वर प्रसाद एम० ए० . २ प्राथमिक डा० हीरालाल जैन ३ प्राक्कथन हा. वासुदेव' शरण अग्रवाल ४ संकेत-सूची ५ प्रास्ताविक श्री जुगल किशोर पुस्तार ६ भूमिका जैन साहित्य अथ सूची । प्रशस्ति आदि साहित्यिक इतिहास मुद्रणकला का प्रभाव पुस्तक सूची की आवश्यक्ता जैन प्रकाशनो की दशा जैन लेखको की दशा मुद्रणकला का इतिहास - जैन प्रकाशन का इतिहास युगविभाजन-आन्दोलन बुग ३४, प्रगतियुग ४२, वर्तमान युग ५३ सामयिक पत्र-पत्रिकायें विवरण-सूची का सक्षिप्त सार जैनाध्ययन का महत्त्व और प्रगति ७. विज्ञप्ति ८६ प. प्रकाशित जनसाहित्य विवरण-सूची ११-२८६ हिन्दी, सस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश विभाग १ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धर्म पर प्रकाशित महत्त्वपूर्ण भाषण जैन सामायिक पत्र-पत्रिकाएं उर्दु पुस्तकें मराठी भाषा की पुस्तकें गुजराती भाषा को पुस्तकें बंगला भाषा का जैन साहित्य Jaina Literature in English २. परिशिष्ट १०. ११. (१) सार्वजनिक बैन पुस्तकालय, शास्त्र भडार (२) जैन साहित्यिक संस्थाएं २५८ २६० २६६ २७६ २८ १ २८५ २८६ ३०६ ३०७ ३०६-३११ (३) जैन पुस्तक विक्रेता ३०६ (४) वर्तमान के ग्रंथप्ररणेता साहित्य सेवी विशिष्ट विद्वान ३०६ (५) वर्तमान के जैन - साहित्यसेवी प्रसिद्ध भजन विद्वान् ३११ प्रावश्यक निवेदन ३१२ शुद्धिप ३१३ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय वक्तव्य माज से ४३ वर्ष पूर्व समाज के कुछ नवयुवको के हृदय मे जैन धर्म के सिद्धान्तो के प्रचार की भावना जागृत हुई । उन्होने ३० मार्च १९१५ को इस संस्था की नीव 'जैन मित्र मण्डल' के नाम से देहली मे डाली । जैन मित्र मण्डल ने अब तक केवल एक ही उद्देश्य रखा है और वह है 'जैन धर्म का साहित्य द्वारा प्रचार' । मण्डल का सारा कार्य, मण्डल की सारी लगन और उसकी सारी चिन्ताए इसी दिशा में लगी रही हैं। २ मण्डल ने अपने शैव काल के ६ वर्षों मे ही जैन धर्म तथा साहित्यप्रचार मे इतना अधिक कार्य किया कि सन १९२१ की सरकारी जनगणना census मे इसको भारत को 'Chief jain literary Society 'प्रमुख साहित्यिक संस्था' घोषित किया गया। ३. जैन मित्र मण्डल जिस समय दो वर्षों का ही था इसने भारतप्रसिद्ध देहली शास्त्रार्थ “ईश्वर-कर्तृत्व और तीर्थ कर सर्वज्ञ हो सकते है या नही" इस विषय पर 'प्रार्यकुमारसभा' से देहली मे किया। ४. अभी मण्डल इस कार्य से निबटा ही था कि डाक्टर गौडने 'हिन्दू कोड" 'Hindu Code' नाम की एक पुस्तक लिखी जिसमे जैन धर्म तथा जैनो के विषय में बहुत सी गलत बातें लिख डाली । यह पुस्तक भारत सरकार द्वारा मान्यता दी जाने को ही थी कि मण्डल ने इस विषय मे आन्दोलन चलाया और एक पृथक 'जन कोड' बनाने का विचार किया। डाक्टर गौड के प्राकोपो का करारा उत्तर दिया। दो पुस्तकें 'Jainism and Hindu Code' और 'Jains of India and Dr. H.S Gour' प्रकाशित की । इस मबके फलस्वरूप डा० गौड ने अपनी पुस्तक की दूसरी आवृत्ति मे अपनी गलतियो को ठीक किया । ५. मण्डल ने, अपनी स्थापना के १० वर्ष पश्चात् यह कटु अनुभव किया Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कि जहाँ देश मे अन्य सर्व धर्मों के प्रर्वतको के भगवान कृष्ण, राम, मोहम्मद, ईसा, गुरु नानक के-जन्म उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाये जाते हैं वहाँ जन धर्म के किसी भी तीर्थ कर का जन्म उत्सव नही मनाया जाता, इसी भावना से प्रोत प्रोत होकर जैन मित्र मण्डल ने सर्व प्रथम सन् १९२५ मे 'महावीर जयन्ती महोत्सव' देहली मे मनाया जिसमे मौलाना मोहम्मद अली, महात्मा भगवानदीन, प० अर्जुनलाल सेठी जैसे विद्वानो के भाषण हुए। समाज में इस प्रकार के उत्सव मनाने पर विरोध भी हुआ, मडल के कर्मठ सैनिकों को प्राक्षेप भी सहने पडे, परन्तु उत्सव की उपयोगिता तथा उसकी सफलता ने उनके उत्साह को बढाया और उसके बाद ३३ वर्षों मे मडल ने महावीर जयन्ती को एक बहुत ही प्रभावशाली, सुन्दर आकर्षक तथा सार्वजनिक रूप दे ला । नाज मण्डल को इस बात का गौरव है कि समस्त भारत मे महावीरजयन्ती मनाने तथा मनवाने का श्रेय इसी संस्था को है। महावीर ज्यन्ती को अधिक से अधिक उपयोगी बनाने के हेतु मडन कविमम्मेलन, सगीतसम्मेलन, उर्दु मुशायरा तथा व्याख्यानो का बडा ही सुन्दर तथा रोचक पोग्राम रखता है । इस अवसर पर मडल भारत के राष्ट्रपति, प्रधान मत्री, विदेशो के राजदूत, भारतसघ के मन्त्रीगगा, भारत राज्य के राज्यपालो तथा अन्य सभी जाति तथा धर्म के नेताओ को आमत्रित करता है और उनसे इस आयोजन के विषय मे तथा भगवान महावीर के सिद्धान्तों व आज के युग में उनकी प्रावश्यकता पर सुन्दर तथा प्रभावशाली लेख तथा सन्देश मगाता है और उन्हे सहस्रो की संख्या में प्रकाशित कर देश तथा विदेशों मे वितरण करता है । ६. जैन मित्र मडल देहली जैन समाज मे पुस्तक प्रकाशन में एक अद्वितीय स्थान रखता है। मडल ने अपना उद्देश्य जैन धर्म के शास्त्रो के प्रकाशन का नही रखा बल्कि इसने अंग्रेी नागरी तथा उर्दू मे नये प्रकार के साहित्य का निर्माण कराया । माज के युग मे निता इतना भी समय . Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नहीं है कि वह अपने धर्म के मोटे मोटे शास्त्रो को पढ सके, माज का युग चाहता है छोटी छोटी पुस्तकें जो कि वह अवकाश के समय सुगमता से पहसक। मंडल ने अपनी कार्य पद्धति इसी ओर रखी। उसने समाज के प्रकाण्ड विद्वानरे से, जन ही नहीं किन्तु प्रजनो से भी जैनधर्म तथा इसके सिद्धान्तो पर छोटे छोटे ट्रैक्ट लिखवाए, जिनको हजारो की संख्या में प्रकाशित कर विना मूल्य देश-विदेशो तथा जैन व अजैन जनता मे वितरण किया । ससार का कोई भी देश ऐसा नहीं होगा जहाँ जैन मित्र मडल के ट्रैक्ट न पहुचे हो। इस प्रकार की १४२ पुस्तके मडल प्रकाशित कर चुका है । शायद कोई ही दूसरी ऐसी जैव सस्था होगी कि जो इतन'पुष्प' अबतक प्रकाशित कर सकी हो। ७ पिछले वर्ष साहित्य प्रचार में जैन मित्र मडल ने एक बहुत ही बडा कदम उठाया । ससार को चकित कर देने वाला राष्ट्रपति द्वारा कहा गया 'ससार का पाठवा पाश्चर्य' ७१८ भाषामयी ग्रन्थराज भूवलय' के प्रकाशन का कार्य इस सस्था ने उठाया । और गत वर्ष 'इसका मगल प्राभूत' 'इसके कतिपय सारगभित श्लोक' तथा इसमे अन्तर्गत 'भगवद्गीता' नाम की तीन पुस्तके प्रकाशित की जिनका उदघाटन काँग्रेस के मनोनीत अध्यक्ष श्री देवर भाई ने प्राचार्य श्री १०८ देशभूषण जी महाराज की उपस्थिति मे किया। ८. मण्डल के पास सदैव 'जनमा हत्य' के विषय मे परि प्रश्नात्मक पत्र प्राते रहते हैं और जैन धर्म जानने तथा जैन साहित्य के पढने के इच्छुक सदैव जैन साहित्य की मांग जैन मित्र मडल में करते रहते है । अब तक 'दिगम्बर जैन समाज' में इस प्रकार की कोई पुस्तक या सूची नहीं थी कि जिससे प्रकाशित जैन साहित्य का पता चल सकता हो । इसी कमा को दृष्टि में रखते हुए जैन समाज के मर्व अधिक 'मूक' तथा ठोम सेवक ला० पन्नालाल जी अग्रवाल देहली द्वारा सयोजित तथा प्रसिद्ध ऐतिहासिक लेखक डा० जो . प्रसाद जी लखन ऊ द्वारा सम्पादित 'प्रकाशित जन साहित्य की सन्न् १९४५ तक की यह सूची प्रकाशित करते हुए हमे वडार्ग हो रहा है। हम इन दोनो ही के बहुत कृतज्ञ हैं कि उन्होने इसमे अपना अमूल्य समय देकर यह पुस्तक Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 出 सम्पादित की है। साथ ही हम प्राचार्य श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार प्रविष्टता श्रीरमेवामन्दिर, श्री वासुदेवशरण जी अग्रवाल, प्रोफेसर बनारस विश्वविद्यालय तथा डा० हीरालाल जी म्रध्यक्ष प्राकृत विद्यापीठ मुजफ्फरपुर ( बिहार ) के भी बहुत आभारी है जिन्होंने इस पुस्तक के प्रास्ताविक, प्राक्कथन, प्राथमिक लिखकर इस पुस्तक की उपयोगिता को बहुत बढ़ा दिया है। श्री पं० परमानन्द जी तथा श्री मुनीन्द्रकुमार जी ने इस पुस्तक के कुछ प्रूफ देखे हैं, जिसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं हम श्री रामचंद्र जैन भारत सरकार valuation officer, पुन-निवास मत्रालय तथा श्री अलि भा० दिसम्बर जनकेन्द्रीय महासमिति देहली के प्रभारी हैं जिन्होने इस पुस्तक के प्रकाशन मे १३१ क्रमश. तथा ५१ ) दान देकर इस पुस्तक की उपयोगिता को अपनाया है । हमे प्राशा है कि पुस्तक की उपयोगिता से जनता प्रभावित होकर इस पुस्तक को अपनायेगी । जितप्रसाद जैन ठेकेदार सभापति महताबसिंह जैन महामन्त्री मादीश्वरप्रसाद जैन मंत्री पन्नालाल जैन मंत्री जैन मित्र मंडल, धर्मपुरा, देहली Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राथमिक जैन संस्कृति की धारा बहुत प्राचीन और महत्त्वपूर्ण है। किन्तु दुर्भाग्यतः जैन धर्मानुयायी अपनी वस्तु को स्थिर रूप देने व उसे संसार के सम्मुख उपस्थित करने में बहुत शिथिल और दीर्घसूत्री रहे हैं। उदाहरणार्थ, जबकि वैदिक परम्परा के प्रथ कम से कम चार हजार वर्ष पुराने पाये जाते हैं, तब महावीर भगवान से पूर्व का कोई जैन साहित्य सुरक्षित नहीं है। भगवान महावीर की वाणी को उनके शिष्यो ने उन्ही के जीवन-काल मे द्वादशांग रूप रच लिया था, ऐसी जैन श्रु त-परम्परा है। किन्तु इसे कोई एक हजार वर्ष तक लिखित रूप नही दिया जा सका । दिगम्बर परम्परानुसार तो वह समस्त द्वादशांग श्रु त कोई छह सातसो वर्षों मे ही क्रमशः विस्मृत और विलुप्त हो गया, और जो रहा उसके आधार पर नये सिरे से षट्खडादि प्रथो की रचना की गई । श्वेताम्बर परम्परा में महावीर निर्वाण से लगभग एक हजार वर्ष पश्चात् उसके बचे खुचे प्रशो का सकलन कर उन्हें पुस्तको का रूप देने का प्रयत्न किया गया। चीन देश मे प्रथो के मुद्रण का कार्य नौवी शती मे प्रारम्भ हो गया चा । यूरोप मे मुद्रण कार्य पन्द्रहवी शती मे तथा भारत में सोलहवी शती में पारम्भ हुआ । किन्तु जैव प्रथो का प्रकाशन सन १८५० से पूर्व का कोई नही पाया जाता । अभी अभी तक धार्मिक ग्रथो के मुद्रण का समाज में विरोध भी होता रहा है। आज सम्य ससार का उपलब्ध प्राचीन साहित्य प्रायः समस्त ही प्रकाशित हो चुका है और उसके प्रमुख भाग अन्य भाषाओ में भी मनुदित हो गये हैं । किन्तु एक जैन साहित्य ही ऐसा है जिसका प्रति प्रचुर भाग, नष्ट होते होते जो कुछ बचा है, वह अभी भी शास्त्र भडारो की अधेरी कोठरियो मे बन्द पड़ा है। यह दशा आज सभ्यता के विकास की दृष्टि से नितान्त शोचनीय है । हमारी साहित्यिक निधि का लेखा-जोखा लगाने मे और Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशा सुधारने मे प्रस्तुत पुस्तक वहुत उपयोगी सिद्ध होगी, इसमे सन्देह नही । श्रीयुत पन्नालाल जैन अग्रवाल जैन साहित्य की बहुत कुछ सेवा कर चुके हैं और उन्हें जैन साहित्य प्रकाशन का खासा परिचय है । प्रस्तुत पुस्तक में उन्होंने जैन साहित्य की प्रकाशित हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश आदि भाषा की रचनाओ की प्रकारादि क्रम से सक्षिप्त सूची प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है । इसके आधार से साहित्यक विद्वान जैन प्रकाशन की गति-विधि का पता लगा सकेंगे । जिन्हे ग्रंथ-सग्रह करना है वे इसके द्वारा अपने पुस्तकालय को पूर्णता की ओर अग्रसर कर सकते हैं । और जिन्हें यह समझना है कि अभी भी कितना साहित्य प्रकाशित होना शेष है, वे इस सूची मे उल्लिखित आधुनिक रचनामो के अतिरिक्त प्राचीन सस्कृत की केवल १८०, प्राकृत की ४४, अपभ्रंश की १८ और प्राचीन हिन्दी की २७५ पुस्तकों को डा० वेलणकर कृत 'जैन रत्न कोश' तथा विविध जैन भडारो की नई सूचियो प्रादि से मिलान कर देखे, तो उन्हें पता चलेगा कि अभी भी सैकडो नही महस्रो प्राचीन जैन रचनाये अधेरे मे पड़ी हुई हैं। इस सूची की भूमिका रूप जो 'जैनियों की साहित्य सेवा और प्रकाशित जैन साहित्य" शीर्षक निबन्ध सम्पादक द्वारा प्रस्तुत है वह अपने विषयगत बहुत महत्वपूर्ण मामग्री को लिए हुए है। ___ मैं इस ग्रथ का हृदय से स्वागत करता हू और उसके सयोजक, सम्पादक तथा प्रकाशक और साथ ही वीर सेवा मन्दिर को, जिसके तत्वावधान मे सम्पादन का मब कार्य सम्पन्न हुआ है , विशेष धन्यवाद देता हुमा यह आशा करता है कि इसके द्वारा भविष्य मे जैन साहित्य के प्रकाशन और प्रसार का मार्ग अधिक प्रशस्त बनेमा। १४-२-१९५८ होरालाल जैन मुजफ्फरपुर डायरेक्टर 'माकृत जैन विद्यापीठ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'प्राक्कथन श्री पन्नालाल जैन की इस छोटी किन्तु उपयोगी पुस्तक का में स्वागत करता हूँ । इसमे जैन वाङमय के क्षेत्र मे अब तक के साहित्यिक कार्य का अच्छा परिचय दिया गया है। उस वर्णन मे पर्याप्त जानकारी का संग्रह है। श्री पन्नालालजी ने अध्यवसाय पूर्वक अपने आप को उस विभाग से अद्याक षिक अवगत रक्खा है । जहाँ तक भारतीय संस्कृति और वाङ्मय का सम्बन्ध है हम उसके अखड स्वरूप की आराधना करते हैं । ब्राह्मण और श्रमण दोनों धारापो से उसका स्वरूप सम्पादित हुआ है। श्रमण संस्कृति के प्रतर्गत जैव संस्कृति साहित्य, धर्म, दर्शन, कला इन चार क्षेत्रो में प्रति समृद्ध सामग्री प्रस्तुत करती है। नई दृष्टि से उसका अध्ययन और प्रकाशन आवश्यक है। यह देखकर प्रसन्नता होती है कि जैन विद्वान निष्ठा के साथ इस कार्य में लगे हैं। उनके प्रयत्न उत्तरोत्तर फलवान हो रहे हैं। प्राकृत और अपम्र श भाषाओं की सामग्री मे तो अब प्राय देश के सभी विद्वानो की अभिरुचि बढ रही है। वह समय परिपक्क है जब इन ग्रथो को नए ढंग से सशोधित रूप में सम्पादित करके प्रकाशित किया जाय । जो कार्य अब तक हुअा है उसका एक लेखा-जोखा जान लेने पर नवीन कार्य की प्रेरणा प्राप्त हुआ करती है। इस दृष्टि से यह वृत्तान्त उपयोगी है । इसके अन्त मे जैन भडारों और पुस्तकालयों की एक सूची जोड दी जाय तो और अच्छा रहेगा । हमे यह देखकर आनन्द होता है कि सरस्वती भंडारो के स्वामी और प्रबन्धक अब प्राय उदार दृष्टिकोण अपनाने लगे हैं । सम्पादन और प्रकाशन के लोकहितकारी कार्यों मे उन से मिलने वाले सहयोग की मात्रा बढ रही है। इस महती शताब्दी के उत्तरार्ष मे जैन साहित्य के समुचित प्रकाशन की धारा और अधिक वेगवती बद मकेगी, ऐसी आशा होती है। अनेक केन्द्रों से वितत कार्य के सूत्रो का सम्मिलित पट मोर सुन्दर बनेगा, ऐसे शुभ लक्षण प्रकट हो रहे हैं। इस समय जो विद्वान Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोर जो संस्थाए इस पुनीत कार्य मे सलग्न हैं उनकी नामावली प्रथ के प्रारम्भिक भाग मे आ गई है उन-उन विशिष्ट मित्रो के यशस्वितम परिश्रम को दृष्टि पथ मे लाते हुए मन पाश्वस्त होता है कि इस वाङ्मय रूपी कल्प वृक्ष का प्रगले पचास वर्षों मे शतश. सहस्रशः विस्तार सम्भव हो सकेगा। यद्यपि प्राचीन पागम साहित्य प्रकाशित हो चुका है, किन्तु उसको नियुक्ति, चूरिण, भाष्य, टीका आदि के साथ अभिनव रूप मे भूमिका, टिप्पणी, शब्दानुक्रमणी प्रादि के साथ पुन. प्रकाशित करने के कार्य शेष ही है। जब वे इस रूप में उपलब्ध होगे तभी उनसे सास्कृतिक सामग्री के दोहन का कार्य पूरा किया जा सकेगा। इस युग का महनीय उद्देश्य तो भारतीय राष्ट्र का सर्वांग पूर्ण सांस्कृतिक इतिहास है। यह कितना विशाल कार्य और कैसा उदात्त लक्ष्य है इसकी कल्पना सहसा मन मे नही पाती। किन्तु अभी तो कार्य का प्रारम्भ मात्र है। सांस्कृतिक इतिहास के निर्माण की कला अभी विकसित होने लगी है। यह महान कार्य अनेक सकल्पवानु साधको की अपेक्षा रखता है। एक-एक शब्द का मूल्य मणिमुक्ता की भाँति चतुराई से परखना होगा, उसके सूत्रो को बौद्ध साहित्य, संस्कृत साहित्य एव प्रादेशिक भाषामो के साहित्य मे ढूढना होगा। तब सब की सम्मिलित आभा से ऐतिहासिक के मन मे अर्थों का पूरा मालोक प्रकट हो सकेगा। इसकी कल्पना से ही रोमाञ्च होता है। भारत के भावी इतिहासकारो के लिए सास्कृतिक सामग्री के सुमेरू स्तब्ध खड़े हैं, जिनकी परिक्रमा लगानी होगी। हम जिस इष्टि कोण की कल्पना कर रहे है उसमे इतिहास, साहित्य, संस्कृति, कला, धर्म, दर्शन और जीवन-परम्परा-इन सात सूत्रो को एक साथ मिलाकर भारती महाप्रजा के राष्ट्रीय पुरावृत्त का दिव्य इन्द्रायुधाम्बर सम्पन्न करना होगा। यहाँ मभेद, समन्वय, सप्रीति का दृष्टिकोण मुख्य है । काल के प्रवाह मे जो कुछ बचा रह गया है वह मात्रा मे कितना विस्तृत है इसकी टकसाली साक्षी जैन शास्त्र भडारो में उपलब्ध पप राशि से प्राप्त हुई है। श्री बेलगकर द्वारा संगृहीत "जिनरत्नकोश' इस क्षेत्र का भव्य प्रयत्न है। यह Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बानकर प्रसन्नता होती है कि वीर सेवा मंदिर दिल्ली की ओर से लगभग ६००० अप्रकाशित ग्रन्थों की एक सूची तैयार कराई गई है। राजस्थान के मंगरों की छान बीन श्री कस्तूरचन्द्र कासलीवाल और श्री अगरचन्द नाहटा बराबर आगे बढ़ा रहे हैं। प्राशा है अगले बीस वर्षों में भंडारों के पर्यवेक्षण का कार्य पूरा कर लिया जायगा । और तदनुसार प्रकाशन की शक्तिशाली पोषनाए भी राष्ट्र में बन जाएगी। इस पुस्तक में प्रकाशित जैन साहित्य की एक प्रकारादि क्रम से नाम सूची संग्रहीत की गई है। इसमे लगभग २७०० पुस्तको का संक्षिप्त परिचय दिया है ! तैयार यादी की भाति यह सूची पाठकों के लिये उपयोगी रहेगी। बो ग्रंथ इस सूची मे छूट गए हों उनके नाम भी पपनी जानकारी के अनुसार मोड़ लिए जा सकते हैं। श्री पन्नालाल जी का यह उत्साहमय प्रयत्न बहुत काशी विश्वविद्यालय फाल्गुन शुक्ल १२, स. २०१४ वासुदेवशरण अग्रवाल Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कान्नु = मनुवाद - अनुवादक 1 सम० =अपभ्रंश अंग्रेजी - प्रा० प्रावृत्ति, प्राचार्य ई० = ईस्वी का० ती ० = काव्यतीर्थं गु० गुजराती जि० - जिला टी०= टीका टीकाकार = डा० = डाक्टर दा० वी० = दानवीर दि० दिगम्बर न० = नम्बर न्या०ग्रा०=न्यायाचार्य न्या० ती ० = न्यायतीथं प० = न्यायालंकार न्या० ल०= = पडित पृ० = पृष्ठ प्र० = प्रकाशक- प्रकाशित प्रा० प्राकृत प्रो० = प्रोफेसर बा० =बाबू ब्र० = ब्रह्मचारी भा० =भाषा म० ० = महिलारत्व मा० मास्टर संकेत-सूची मिमिस्टर मु० = मुन्शी मू० = मूल्य ले० लेखक-लेखिका व० वर्ष = वा० = वार्षिक वि० २० = विद्यारत्न स० भ० सत्यभक्त सं० = संस्कृत, संपादक सक० =सकलनकर्ता संग्र० = = सग्रहकर्ता सपा० • सपादक-मपादिका संशो० = सशोधक सा० प्र०= = साहित्याचायें सा० २० = साहित्यरत्न सि० = सिद्धात मि० च सिद्धांत चक्रवर्ती सि० शा० = सिद्धांत शास्त्री से ० = मेठ = स्वर्गीय स्व०=== हि० = हिन्दी Ed Editor, Edited Trad Translated Pub = Publisher Tr = Translator Dy. = Digambar jain C.R. = Champat Rai J. L. = jagmander lal G. R. == Ghasi Ram Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रास्ताविक इस पुस्तकके सयोजक बा० पन्नालालजी बैन प्रवाल अपने चिरपरिचित मित्र हैं। आप बडे ही मेवाभावी और साहित्य मी सज्जन हैंसाहित्य सेवियो को अपनी सेवाएं प्रदान करनेमे सदा ही उदार एव परिश्रमशौल रहा करते हैं। कई वर्ष तक भाप वीर-सेवा-मन्दिरके मंत्री रह चुके हैं। इस पुस्तक का आयोजन भी आपके उक्त मवित्व-कालमे ही हुआ है। पुस्तक के प्रायोजनादि-सम्बन्धकी कुछ रोचक-कथा इस प्रकार है, जिसे उन पत्रोम जाना जाता है जिन्हे सयोजकबीने अपने पास सुरक्षित रख छोडा है____डा० माताप्रसादजी गुप्त एम० ए० प्रयाग सन् १९४३ मे 'हिन्वो पुस्तकसाहित्य' नामकी एक ग्रन्यसूची लिख रहे थे, जिसमे हिन्दीकी चुनी हुई पुस्तकोका परिचय उन्हें देना था और वह भी सन् १८६७ से १६४३ तक १०० वर्ष के भीतर प्रकाशित पुस्तकोका-लिखितका नही । नवम्बर १९४३ मे डा० साहब के तीन पत्र बा० पन्नालालजी (संयोजकजी) को प्राप्त हुए, जिनमे यह इच्छा व्यक्त की गई कि यदि हिन्दीके जैन ग्रन्थोकी कोई अभीष्ट सूची उनके पास तय्यार हो या वे तय्यार कराके दे सकें तो उसका उपयोग उक्त सूची में किया जा सकता है। इन पत्रो पर से सयोजकजीको हिन्दी जैन ग्रन्थोकी एक ऐसी सूची तय्यार करनेकी प्रेरणा मिली जिसमे वे ग्रन्थ भी शामिल थे जो मूलत भले ही सस्कृत-प्राकृतादि भाषाम्रो मैं हो परन्तु उनके अनुवादादिक हिन्दी भाषामे लिखे गये हो। तदनुसार उन्होने हिन्दी जैन ग्रन्थो की एक सूची नय्यार की और उसे देखने-जाँचने के लिये मेरे पास सरसावा वीर-सेवा-मन्दिर में भेज दिया। यह सूची अपने को जनवरी १९४४ के मंतमे प्राप्त हुई और उसे सस्था के विद्वान प० परमानन्दजीको जांच आदि के लिये सुपुर्द कर दिया गया । १० परमानंद जीने Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ वृद्धि करने के बाद मार्चको डा० सा० मा० ने सूची को के प्रेस चले जाने जाँचने, सुधारने और कितने ही नये ग्रंथो की उसमे उसे फरी के अन्त मे वापिस कर दिया और वह दूसरी के पास प्रयाग भी पहुच गई, जिसकी पहुच देते हुए डा० बड़े ही परिश्रमसे तैयार हुई बतलाया और अपनी सूची की सूचना करते हुए यह परामर्श दिया कि यदि विषयो के अनुसार वर्गीकृत होकर वह अनेकान्त (मासिक) मे प्रकाशित हो जावे तो बड़ा अच्छा हो । साथ ही उसी पत्र तथा २० मार्च के पत्र में यह श्राश्वासन भी दिया कि वे यथा संभव उस सूची का उपयोग करके उसे बापिस लौटा देंगे । १६ अप्रेल १९४५ से पहले तक यह सूची वापिस नही लौटी, २२ जुलाई तथा २ नवम्बर के पत्र मे सूची के उपयोग सम्बध मे इतनी ही सूचना की गई - 'सूची जरा देर से प्राप्त हुई थी इस कारण उसमे पूरा लाभ नही उठा सका । श्रापकी सूची के प्राचीन प्रथो सनतान्त अपरिचित होने के कारण कुछ को चुनना और शेष को छोड़ना ठीक नही लगा । श्राधुनिक ग्रथो मे से जो महत्व पूर्ण हैं उनमे से अधिकांश मेरी सूची में पहले से थे। जैनधर्मका परिचय कराने वाले प्राघुनिक ग्रथ एकाध आपकी सूची से भी मिलगए हैं ।' डा० माताप्रसादजी की उक्त सूची 'हिन्दी पुस्तक साहित्य' नाम से अप्रेल १६४५ मे प्रकाशित हो गई, उसे देख कर हमारे सयोजक जी को प्रकाशित न ग्रथो की एक बड़ी सूची तय्यार करने की विशेष प्रेरणा मिली । फलतः उन्होने हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत, प्राकृत, और अपभ्रंश भाषा के प्रथो की मी एक सूची सकलित की भोर उसे धारा के जैन सिद्धान्तभास्कर (त्रैमासिक) में खपाना चाहा, परन्तु वहाँ क्रमश प्रकाशित करने की बात उठी, जो उचित नही जाँची । तदन तर भारतीय ज्ञान पीठ के प्रधान विद्वान न्यायाचार्य प० महेन्द्र कुमार जी से इसके विषय मे पत्र व्यवहार हुआ और वह मार्च १९४६ मे उनके पास बनारस भेज दी गई । न्यायाचार्य जीने उसे देखकर ८ अप्रेल के पत्र में लिखा कि "इस (सूची) में बहुत परिश्रम करनेकी आकश्यकता है, तब कही यह छपने योग्य होगी । श्रभी हमारे यहा छपाई का सिलसिला भी ठीक नहीं हो सका है"। इस बीच मे संयोजकजीने बा० ज्योतिप्रसादजी Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ एम० ए० लखनऊपे भी पत्रव्यवहार किया, जिन्हे हाल मे पी एच० डी० की उपाधि भी प्राप्त हो गई है, और उन्हें सूचीके सम्पादन की प्रेरणा का, ' जिसके उत्तर मे उन्होने अपने ४ अप्रेल १९४६ के पत्र मे लिखा कि "हिन्दी सूची भी में मम्पादन करदूगा आप मगालें।" इस स्वीकृति के अनुसार वह सूची उन्हे बनारस से भिजवादी गई और उन्हें ११ अप्रेल को मिल गई, जिसकी पहुंच के पत्र तथा बाद के भी कुछ पत्रो मे उन्होने सूची के सम्पादन की कुछ कठिनाइयो तया अपने इकले की असमर्थतादि का उल्लेख करते हुए मुझ स परामर्श करने तथा वीर सेवामन्दिर की मार्फत इस कार्य के सम्पन्न होने आदि का सुझाव रक्खा । फलतः इस मंथसूची पर उस वक्त तक कोई खास काम नहीं हो सका जब तक कि श्री ज्योतिप्रसादजी की नियुक्ति १ ली अक्त वर १९४६ को वीर सेवामन्दिर मे नही हो गई। मुझे उक्त सूची की स्थिति प्रादि का पहले से कोई विशेष परिचय नही था, और इस लिये यह समझ लिया गया था कि बा. ज्योतिप्रसाद जी. * जिन्होने सूचीका सम्पादन स्वीकार किया है, अपने अवकाशके समयो मे उस काम को भी करते रहगे, तदनुसार ही उन्हें उसकी याददिहानी करा दी गई, परन्तु वैसा कुछ नही हो सका । साथ ही, यह मालूम पड़ा कि सूची में कितना ही सशोधन, परिवर्तन और परिबर्द्धन किया जाने को है। प्रतः पाफिस वर्क के रूप मे इस कार्य सम्पादन के लिए बाबू ज्योतिप्रसाद जी की खास तौर , योजना की गई और कार्य की रूप-रेखा भी प्राय निर्धारित कर दी गई । उस वक्त तक वह सूची कोष्ठको के रूप मे थी, मकारादि कम से अथ उसमे जरूर दिये थे परन्तु वह क्रम बहुधा कोश-क्रम के अनुसार ठीक नही था-कितने ही ग्रन्थ आगे पीछे लिखे हुए थे, कुछ दोबारा तिबारा प्रविष्ट हो गये थे, बहुत से अन्य लिखने से छूट गये थे और कुछ प्रथो का परिचय भी कही कही त्रुटित तथा गलत हो रहा था । इन सब दोषोको दूर करते हुए प्रत्येक ग्रन्थके परिचयको जिनरत्नकोशादि की तरह धाराप्रवाह (running) रूप में एक साथ देने की व्यवस्था की गई और Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ यह भी निश्चय किया गया कि जैनियोकी साहित्य सेवाको प्रदर्शित करनेवाली एक अच्छी प्रभावक भूमिका भी साथ में रहे, जिससे इस पुस्तक की उपयोगिता बढ जाय । तदनुसार ही वीरसेवामन्दिर मे उक्त सूची पर नयेकार्डीकरणादि द्वारा सम्पादन कार्य हुआ, जिसके फल स्वरूप उसे वर्त्तमान रूप प्राप्त हुआ है और उसमें सामयिक पत्रो तथा भाषगो के अतिरिक्त लगभग साढे छह सौ ग्रन्थो का नई वृद्धि हुई है-उर्दू, मराठी, गुजराती, बगला श्रीर अग्रेजी की तो सभी पुस्तके गई प्रविष्ठ की गई है । बा० ज्योतिप्रसाद जी का कार्य-काल वीरसेवामन्दिर में ३१ जुलाई १६४७ तक रहा। अपने इस द गहीने के कार्यकाल मे उनका अधिकांश समय प्रस्तुत सूची के सम्पादन मे ही व्यतीत हुआ, जिसे ६-७ महीने का पूरा समय कहा जा सकता है। जुलाई के अन्त मे जैसे-जैसे भूमिका का कार्य पूरा होकर सूची का सम्पादन कार्य समाप्त हुआ। अपने इस सम्पादन कार्य मे, जिसमें वीरसेवामन्दिर के दूसरे विद्वानो प० परमानन्द जी शास्त्री तथा न्यायाचार्य प० दरबारी लालजी का भी कुछ महयोग प्राप्त होना रहा है, सम्पादक जी कहाँ तक सफल रहे उसे विज्ञपाठक स्वयं समझ सकते हैं । सूची का सम्पादन समाप्त होनेसे पहले ही सयोजक जी का उसके शीघ्र छाने की चिन्ता, जम उन्होने अनेक पुस्तक प्रकाशको स पत्र व्यवहार क्रिया -- बडौदा के प्रोस्विटल इन्स्टिट्यूट, इलाहाबाद ल जर्नल कम्पनी, डा० मानाप्रमादती गुप्त और इलाहाबाद के रायसाहब रामदयाल जी प्रवाल तक को पुस्तक प्रकाशन के लिये प्रेरा की गई, परन्तु कही से भी सफलता प्राप्त नही हुई— सभी ने अपनी अपनी परिस्थतियों के वश छपान मे असमर्थता व्यक्त की । उस समय कागज का भी बडा अकाल था, सारे देश मे उसका सकट व्याप्त था और कागज के सरकारी कोटे की भरी ट थी, इसी से प० नाथूराम जी प्रेमी ने उन्हे बम्बई में लिखा था कि ' प्रकाशित करने के लिए में किसे बनाऊँ । इस समय तो शायद ही कोई छापने को तम्पार हो ।" वीरसेवामन्दिर को कागज का कोटा बहुत ही कम प्राप्त Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ या मीर कोटे से अधिक कागज दूसरे मत से भी खरीद कर नही लगाया. सकता था, यह बडी दिक्कत दरपेश थी और इसलिये मैंने सयोजकजी-को लिख दिया था कि 'ऐसी हालत में यदि प्राप किसी दूसरे प्रकाशक से इसे प्रकाशित करना चाहें तो उसमे अपने को कोई खास आपत्ति नही हो सकती ।' इस तरह प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन जो उस समय रुका तो वह अनेक परिस्थितियों के वश श्रमें तक रूका ही पड़ा रहा। वीरशासनसघ कलकत्ता के मंत्री बा० छोटे लाल जी के पास भी यह दो एक वर्ष प्रकाशन की वाट जहता हुआ पा रहा । कलकत्ता से ग्रन्थ की प्रेस कापी वापिस आने पर सयोजक जी जैनमित्रमंडल दिल्ली के मंत्रियो बा० महतावसिहजी बी० ए० मौर बा० प्रादीश्वरप्रसाद जी एम० ए० से इस ग्रंथ को मंडल से छपाने की अनुमति प्राप्त करने में ही नही किन्तु उसे प्रेस को दे देने मे भी सफल हो गये, और इम तरह इस ग्रंथ के दुर्भाग्य का उदय समाप्त हुआ, यह बड़ी खुशी की बात है और इसके लिये जैन मित्र मंडल और उसके उक्त दोनो मंत्री विशेष धन्यवाद के पात्र हैं । बा० पन्नालालजी का सम्बन्ध जैन मित्र मंडल से बहुत पुराना है, आप कई वर्ष तक उसके सहायक मत्री रहे है और आप के उस मत्रित्व काल मे जैनमित्रमंडल चमक उठा था । ऐनी स्थिति मे आपकी एक उपयोगी कृति चिरकाल तक यो ही पडी रहे यह उसे कहाँ तक सहन हो सकता था ग्राविर काल-लब्धि भाई और उसे हो उस पुस्तक को छपाने के लिये विवश होना पड़ा, जिसके छपाने में वह भी पहले उपेक्षाभाव दर्शा चुका था । इसके आयोजनादि - सम्बन्धी की कुछ रोचक कथा । मुझे इस पुस्तक के प्रसे मे जाने का हाल उस समय मालूम पडा जब कि ५-७ फार्म ही छपने को बाकी रह गये थे । यदि प्रेसमे जाने से पहले मुझसे इस विषय में परामर्श कर लिया गया होता तो उसमे कितना ही सुधार हो जाता - कम से कम मुद्रणकला की जो खटकन वाली त्रुटिया पाई जाती है Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० वेता न रहने पाती, भोर छपाने मे भी इतनी प्रशुद्धियां न रहती । प्रस्तु जैसी कुछ भी है यह पुस्तक अब पाठकों के सामने उपस्थित है और अपने उस उद्देश्य को पूरा करने में बहुत कुछ समर्थ है जिसे लेकर वह प्रस्तुत की गई है । जिस पुस्तक के पीछे वीरसेवामन्दिर की भारी शक्ति लगी हो और कितना ही अर्थ व्यय हुमा हो उसे इतने वर्षों के बाद पाठक के हाथो जाता हुआ देखकर मेरी प्रसन्नताका होना स्वाभाविक है । अन्त में यह जान कर मुझे बडी प्रसन्नता हुई कि डा० बासुदेवशरण जी अग्रवाल और डा० हीरालालजी जैसे प्रमुख विद्वानोंने अपने अपने वक्तव्यो ( प्राथमिक, प्राक्कथन ) मे इस पुस्तक का अभिनन्दन किया है, और इसके लिए में दोनो ही विद्वानो का हृदय से आभारी हूँ । प्राशा है समाज की सभी संस्थाएं और साहित्य प्रेमी सज्जन इससे इधर-उधर बिखरे हुए अपने अज्ञात साहित्यका एकत्र परिचय प्राप्त कर उससे यथेष्ट लाभ उठाने में समर्थ हो सकेंगे । वीर सेवा मन्दिर २१ दरियागज, दिल्ली ज्येष्ठ वदि ३, स २०१५ HIRAV Put जुगलकिशोर मुख्तार Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनियों की साहित्य सेवा और प्रकाशित जैन साहित्य किमी भी देश अथवा जाति के मास्कृतिक विकाम का मापदण्ड उसका माहित्य होता है । जातीय माहित्य की विपुलता, विविधता और उत्कृष्टता ही जातीय मस्कृति की उन्नतावस्या की द्योतक होती है। भारतीय मस्कृति की श्रमगधाग को प्रधान एव सर्व प्राचीन प्रतिनिधि जैन गम्कृति विशुद्ध भारतीय हाने क साथ ही साथ प्रायसर्व देशव्यापी भी रही है । जैनधर्म का सम्बन्ध कभी भी देश के किसी एक ही भाग विशेप अथवा जाति या वर्ग विशेप मे नही रहा वरन मदैव मे ही न्यूनाधिक अश मे यह धर्म मम्पूर्ण दशव्यापी रहता चला पाया है और प्राय प्रत्येक जाति तथा वर्ग के व्यक्ति टमले अनुयायी रहे है । एक प्रसिद्ध पुरातत्त्वज्ञ के कथनानुसार नो सम्पूर्ण भारतवा मे शायद एक भी ऐमा स्थान नही मिल मकता जिसे केन्द्र बना कर यदि बारह मील व्यास का एक काल्पनिक वृत्त खीचा जाय तो उसके भीतर एक या अधिक जैन मन्दिर,तीर्थ, बस्ती या पुराना अवशेष न मिले । वर्तमान मे जैन धर्मानुयायियो की मख्या यद्यपि अत्यल्प-लगभग २५-३० लाख रह गई है, तथापि आज भी वे देश में मर्वत्र फैले हा हे पोर विभिन्न प्रान्तो, जातियो, वर्गो और श्रेणियो के व्यक्ति उनमे मम्मिलित है। साथ ही वर्तमान जैन समाज प्रधानतया वर्तमान भारतीय समाज के समुन्नत, सुशिक्षित एव समृद्ध भाग का ही एक महत्त्वपूर्ण अश है। वह प्रगतिमान है और अपने लोकोपयोगी कार्यो के लिए प्रसिद्ध है । उसके प्रागनत तीर्थ, देवालय, Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शास्त्र भंडार तथा अन्य साहित्यिक एव लोकोपकारी सस्थाए सुव्यवस्थित और सुचारू रूप से संचालित है । धर्म वैशिष्टय और सस्कृति वैशिष्टय के रहते हुए भी जैन समाज ने सदैव से अपने आपको अखिल भारतीय समाज एव भारतीय राष्ट्र का अविभाज्य अग समझा है और आज भी समझती है । जैन हिन्दू है था नही इस सम्बन्ध मे जो मतभेद है उनका कारण धर्म वैभिन्य ही है । धार्मिक एव तत्सबधित सास्कृतिक परम्परा की दृष्टि से जैन अवश्य ही हिन्दू नही हैं किन्तु राष्ट्रीयता एवं भारतीयता की दृष्टि से वे हिन्दू ही है इसमे कोई सदेह नही । उनका धर्म, सस्कृति और वे स्वय प्राचीन काल से भारत के ही मूलत. शुद्ध अधिवासी रहे है । वे यही जन्मे और फले फूले है । वे भारत के ही है और भारत उनका है। जैन साहित्य-एक अत्यन्त प्राचीन काल से चली आई देश व्यापी संस्कृति के रूप मे जैन सस्कृति ने अखिल भारतीय संस्कृति की धर्म, दर्शन, साहित्य, कला, विज्ञान, राजनीति, समाज-व्यवस्था, रीति रिवाज एव आचारविचार इत्यादि विविध शाखाप्रो को अनगिनत, अमूल्य एव स्थायी महत्व की देनें प्रदान की हैं । ज्ञान सवर्द्धन एव साहित्य निर्माण के क्षेत्र मे ही जैनो ने प्राचीन व अर्धाचीन विभिन्न भारतीय भाषाओ मे विविध विषयक विपुल साहित्य का सृजन करके, भारती के भडार को सुसमृद्ध एव समलकृत किया है। संस्कृत साहित्य को जैन विद्वानो की देने साधारण नहीं है, किन्तु उन्होने प्राचीन काल से प्राकृत एव तत्पश्चात् अपभ्र श जैसी अपने-अपने समय की लोक भाषाप्रो को विशेषकर इसी कारण अपनाया और साहित्य का माध्यम बनाया जिससे कि सर्व साधारण उक्त रचनामो का लाभ उठा सके । इसी उद्देश्य को लक्ष्य बनाते हुए उन्होने विभिन्न प्रान्तीय, देसी भाषामो मे ग्रथ रचनाए करके उक्त भाषाम्रो के विकास मे अत्यधिक महत्त्वपूर्ण योग दान दिया। तामिल भाषा के प्राचीन 'सगम' साहित्य का पर्याप्त एव श्रेष्ठतर भाग जैन विद्वानो की ही कृति है, और कनाडी भाषा का तो तीन चौथाई से अधिक साहित्य जैनो द्वारा ही निर्मित हुआ है। गुजराती एव राजस्थानी भाषामो के साहित्य की जैनो द्वारा Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ↑ ( ३ ) महती अभिवृद्धि हुई और तैलगु, मलयालम्, मराठी, उडिया, बगाली, बिहारी गुरुमुखी आदि प्राय प्रत्येक प्रान्तीय भाषा मे अल्पाधिक जन साहित्य उपलब्ध है । आधुनिक देसी भाषाओ की जननी प्रपत्र श पर तो जैनो का प्राय स्वाधिकार सा रहा ही था, हिन्दी की भी प्राचीनतम ज्ञात एव उपलब्ध रचनाए जैनो की ही प्रतीत होती हैं। पुरातन हिन्दी के गद्य-पद्य साहित्य का एक बड़ा प्रश जैन प्रणीत है, और वह कोई साधारण अथवा उपेक्षणीय कोटि का भी नही है । व्यापार की प्रधान सकेत लिपि 'मु ंडिया' में एकमात्र साहित्यिक रचना अभी जैनो की ही उपलब्ध है । इसके अतिरिक्त उर्दू, फारसी, अगरेजी, जर्मन, फ्रेन्च, इटालियन आदि भाषाओ मे भी जैन साहित्य विद्यमान है । जहा तक लेखन शैली का प्रश्न है, जैन साहित्यकारो ने विभिन्न भाषात्रो की गद्यपद्यमयी अनेक नवीन शैलियों का श्राविष्कार किया और प्राय. सर्व ही प्रचलित शैलियों को अपनाया एव विकसित किया। मुक्तक एव स्फुट काव्य, खण्ड काव्य, महा काव्य, नाटक, चम्पू, आख्यान उपाख्यान, चारित्र पुराण, ऐति हासिक कल्पित, घटनात्मक, नीत्यात्मक, वर्णनात्मक अथवा भावात्मक, सूत्र, वृत्ति, वार्तिक, निर्युक्ति, चूरिंग, टीका टिप्पणि, भाष्य व्याख्या, वैज्ञानिक विवेचन, से युक्त निबंध प्रबंध, रासा विलास, ढमाल चोपई, स्तुति स्तोत्र, पद भजन प्राय सर्व ही प्राचीन अर्वाचीन शैलियों मे रचनाए की तथा विभिन्न प्रचलित एव नवीन छन्दो, रस अलकार आदि का सफल प्रयोग किया । आधुनिक जैन साहित्यकार भी वर्तमान मे प्रचलित सभी शैलियों का सफल प्रयोग कर रहे है । यद्यपि जैन साहित्य की सृष्टि मे प्रधानतया धार्मिक प्रकृति ही कार्य करती रही है तथापि उसके सृजको ने उसे लोकरजक एव लोकोपयोगी बनाने का भी यथाशक्य प्रयत्न किया और वे इसमे सफल भी हुए । भाषा एवं शैली के सुचारू एव उपयुक्त चुनाव के द्वारा उन्होने अत्यन्त शुष्क एव नीरस विषयो और प्रसगो को भी रुचिकर, पठनीय, सुबोध एव सर्व ग्राह्य बनाने का प्रयत्न किया । जैन श्रमण संस्कृति निवृत्ति प्रधान है, अतएव स्वभावत उसके साधको एव उपासको द्वारा निर्मित साहित्य सामान्यत वैराग्यमयी, चारित्र प्रवण और Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) शान्त रम प्रधान रहा, तथापि प्राय प्रत्येक लोकोपयोगी एव समयापयुक्त विषय पर इन विद्वानो ने अपनी प्रमाणीक लेखनी का चमत्कार दिखलाया । धर्मशास्त्र, तत्व ज्ञान, आचार शास्त्र, पुराण चारित्र, पूजा प्रतिष्ठा पाठ, स्तुति स्तोत्र आदि विविध धार्मिक साहित्य के अतिरिक्त काव्य, नाटक, चम्पू, कथा साहित्य, जीवन चरित्र, ग्रात्म चरित्र, इतिहास, राजनीति, नीत्योपदेश, समाज शास्त्र, दर्शन, अध्यात्म, न्याय, तर्क, छन्द, व्याकरण, अलकार, काव्य शास्त्र, कोष, भाषाविज्ञान, मन्त्र शास्त्र, ज्योतिष, सामुद्रिक, वैद्यक, पशु चिकित्सा, स्थापत्य मूर्तकला एवं वास्तु विज्ञान, गणित, सामान्य विज्ञान, रसायन, भौतिक, जन्तु विज्ञान, भूगोल, खगोल, रत्न परीक्षा, भ्रमरण वृत्तान्त, स्थान परिचय इत्यादि प्राय सब ही विषयो पर ग्रन्थ रचना की । इन बातो का विस्तृत परिचयात्मक विवेचन साहित्यिक इतिहास का विषय है । तथापि जैन माहित्य की विपुलता, विविधता और महत्व का बहुत कुछ अनुमान केन्द्रिय, प्रान्तीय तथा रियासती सरकारो द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित ग्रन्थो की खोज सम्बधी विभिन्न विवरण पत्रिका, म्यूजियम रिपोर्टों, पुरातन पुस्तक भडारो तथा सार्वजनिक एव व्यक्तिगत मग्रहालयो के सूची पत्रो, विभिन्न स्थानीय दिगम्बर श्वेताम्बर जैन ग्रथ भण्डारो की उपलब्ध सूचियो तथा जैन पत्र पत्रिकाओ मे प्रकाशित तन्मम्बधी फुटकर लेखादिको से हो जाता है । इस प्रकार ऐसे बीमियो सहस्त्र जैन ग्रन्थो का पता चलता है जो उपलब्ध है। जिसपर अनेक प्राचीन जैन ग्रन्थ भडार, विशेषकर दिगम्बर सम्प्रदाय के, अभी तक बन्द ही पडे हुए है । उनमे कितने, कैसे और क्या-क्या साहित्य रत्न छिपे पडे है यह कहा भी नही जा सकता । जो भडार खुल गये है उनमें से भी कितनों की ही कोई व्यवस्थित सूची निर्मित एव प्रकाशित नही हो पाई है । वैसे तो प्राय प्रत्येक नगर, कस्बे और ग्राम मे जहा जैनियो की थोडी बहुत भी आबादी है तथा देश भर मे यत्र तत्र फैले हुए बहुसख्यक जैन तीर्थो मे से प्रत्येक पर एक वा अधिक जिन मन्दिर प्राय अवश्य ही विद्यमान है और प्राय प्रत्येक जिनालय अथवा उपाश्रय आदि मे छोटा ast एक शास्त्र भडार भी अवश्य ही होता है जिसमे कि ताडपत्रीय, भोजपत्रीय अथवा कागज आदि अल्पाधिक प्राचीन हस्तलिखित ग्रथो का ही सग्रह प्राय. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) रहता है । कितने ही जैन कुटुम्ब भी ऐसे है जिनके पूर्वजो मे साहित्यिक अभिरुचि रखने वाले विद्वान होते रहे है और उक्त विद्वानो द्वारा सग्रहीत लिखित अथवा रचित कितने ही ग्रथ बपौती के रूप मे चले आये उनके वशजो के पास आज भी सुरक्षित है, और जिनका सदुपयोग वे लोग चाहे भले ही न कर सके, किन्तु किसी अन्य को देना क्या कभी भी दिखाने मे भी सकोच करते है । इस प्रकार के असख्य फुटकर जैन शास्त्र भडारो का कोई व्यवस्थित या अव्यवस्थित भी अन्वेषण अभी तक हुआ ही नही और उनमे एक अकस्मात् दर्शक को बहुधा कितनी ही महत्वपूर्ण एव अलम्य साहित्यिक सामग्री का दर्शन हो जाता है । अभी हाल मे ही काशी नागरी प्रचारणी सभा के अन्वे षक श्री दौलतराम जुआल के प्रसग मे लखनऊ के केवल एक ही दिगम्बर जैन मन्दिर के शास्त्र भडार के कुछ मात्र हिन्दी हस्तलिखित ग्रंथो का निरीक्षण करने का सुयोग मिला था । परिणाम स्वरूप कई एक अधुना अज्ञात हिन्दी के प्राचीन जैन साहित्यकारो और उनकी कृतियो का पता चला तथा कई एक अन्य ज्ञात प्राचीन साहित्यिको के ऐतिह्य पर महत्त्वपूर्ण नवीन प्रकाश पडा । ग्रन्थ पूची - जैन ग्रंथो की वृटिप्पणिका' नामक एक प्राचीन ग्रंथसूची पहिले से ही विद्यमान थी और आधुनिक युग मे भी कई स्वतन्त्र ग्रथसूचिये प्रकाशित हो चुकी है। जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स ने 'जैन ग्रंथ नामावली' नामक एक सूची प्रकाशित की थी और पाटन, जैमत्मेर, सूरत, ग्रहमदाबाद, fast आदि स्थानो के श्वेताम्बर ग्रथ भडारो की व्यवस्थित सूचिये प्रकाशित हो चुकी है। दिगम्बर सूचियो मे सर्व प्रथम ग्रंथ सूची जयपुर निवासी बाबा दुलीचन्द श्रावक के अपने मन्दिर मे स्थित शास्त्र भडार की थी। जिसे उन्होने 'जैन शास्त्र माला' के नाम से सन् १८६५ ई० मे प्रकाशित किया था । सन् १६०१ मे लाहौर निवासी बा० ज्ञान चन्द्र जैनी ने 'दिगम्बर जैन भाषा ग्रथ नामावली' नाम से एक अन्य सूची प्रकाशित की। सन् १९०५ मे फ्रान्सीसी विद्वान डाक्टर ए० गिरनोट ने अपनी 'जैना बिबलियोग्रेफिका' (फ्रान्सीसी भाषा मे लिखित ) मे ज्ञात बहुमख्यक जैन ग्रंथो की सूची दी । ऐलक Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पन्नालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन, बम्बई, की सन् १९२३ से १६३२ तक प्रकाशित ६ वार्षिक रिपोर्टो मे उक्त भडार मे सगृहीत हस्तलिखित ग्रथो की परिचयात्मक सूचिये प्रकाशित हुई । इमी भवन की झालरापाटन स्थित शाखा की ग्रथ सूची भी 'ग्रथ नामावली' के नाम से प्रकाशित हो चुकी है। वीर सेवा मन्दिर, सरसावा से प्रकाशित मासिक अनेकान्त की विभिन्न किरणो मे दिल्ली के कई बडे बडे अथ भडारो की सूचिये तथा सोनीपत, इन्दौर, नागौर आदि के भी कुछ भ डारो की सूचिये मे प्रकाशित हो चुकी है। उपरोक्त वीर सेवा मन्दिर मे कर्ट एक दिगम्बर ग्रथ भडारो के लगभग ६००० अप्रकाशित तथा अन्य सूचीयो मे न दिये हुए हस्तलिखित ग्रयो की प्रमाणिक परिचयात्मक सूची के प्रकाशन की योजना चल रही है। अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी तीर्थक्षेत्र कमेटो, जयपुर ने आमेर (जयपूर) के प्रसिद्ध प्राचीन भडार की तथा स्वय महावीर जी क्षेत्र (चाँदन गॉव, जयपुर) के भडार की सयुक्त ग्रथ सूची पुस्तकाकार प्रकाशित की है। इतना ही नहीं किन्तु महावीर जी तीर्थ क्षेत्र कमेटी की ओर से श्री प० कस्तूर चद काशलीवाल एम० ए० ने जयपुर के शास्त्रभडारो से दो ग्रन्थ सूचिये तैयार की और एक जैन . ग्रन्थ प्रशास्ति मग्रह तैयार किया जो उम क्षेत्र कमेटी के द्वारा प्रकाशित हो चुके है। आगे और भी ग्रथ भडारो की सूचियो के निर्माण का कार्य चालू हो रहा है। इसके सिवा धर्मपुरा, दिल्ली, नये मन्दिर के सचालको की ओर से प परमानन्द शास्त्री उक्त मन्दिर के शास्त्र भ डार की सूची बना रहे है जो प्राय तप्यारी के लगभग है, उसका प्रकाशन भी जल्दी ही होगा । दक्षिण कर्णाटकस्थ मूडबद्री आदि के वृहत् जैन मडारो मे सग्रहीत कन्नडी ग्रथो की श्री प० के० भुजबलि शास्त्री द्वारा सुसम्पादित एक वृहत्सूची भारतीय ज्ञान पीठ, काशी से प्रकाशित हुई है। यत्र तत्र अन्य भडारो की सूचिये प्रकाशित करने की ओर भी लोगो का ध्यान आकर्षित हो रहा है। किन्तु इस दिशा में अब तक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एव प्रमाणीक प्रयत्न विल्सन कालिज, बम्बई के विद्वान प्रोफेसर डा० हरि दामोदर वेलकर द्वारा सम्पादित “जिनरत्न कोष" है। इस ग्रथ का प्रका Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शन सन् १९४४ ई० मे भडारकर मोरियंटल रिसर्च इस्टीट्य ट, पूना द्वारा 'गवर्नमेट अोरियटल सीरीज, क्लास 'सी' न० ४ के रूप में हुआ है । इस प्रथ मे जो कि लीपजिग (जर्मनी) से प्रकाशित टी० अाफेक्ट के सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'कैटेलोगस कैटेलोगोरम' की शैली पर निर्मित हुआ है, विद्वान सम्पादक ने १२१ विभिन्न रिपोर्टों, अथ सूचियो, सूचीपत्रो आदि के आधार पर लगभग दस हजार जैन ग्रथो का तथा उनकी विभिन्न ज्ञात प्रतियो का सक्षिप्त परिचय अकारादि क्रम से दिया है। इस कोष मे दिगम्बर, श्वेताम्बर व उभय सम्प्रदायो के ग्रथो को समान रूप से समाविष्ट किया गया है । किन्तु जैसा कि विद्वान सम्पादक ने ग्रथ के प्राक्कथन मे स्वय स्वीकार किया है, वे दिगम्बर साधन सामग्री का अत्यल्प उपयोग ही कर पाये । इसी कारण से उक्त कोष मे समाविष्ट दिगम्बर नाथ सख्या मे भी कम है, उनकी विवेचित प्रतिये भी न्यूनतर है और उनका परिचय अपेक्षाकृत अधिक न्यूनतर होने के साथ ही साथ कही कही त्रुटित एव दोषपूर्ण भी है। प्रशस्ति प्रादि-उपरोक्त ग्रन्थ सूचियो के अतिरिक्त, जैन ग्रन्थो के आदि अथवा अन्त मे पाई जानेवाली उनके रचियताओ, टीकाकारो, अतिलेखको, दातारो आदि की प्रशस्तियो के भी कई संग्रह प्रकाशित हो चुके है, यथा मुनि श्री जिनविजय द्वारा सम्पादित 'जैन पुस्तक प्रशस्ति सग्रह, जैन सिद्धान्त भवन आरा से प्रकाशित 'प्रशस्ति सग्रह, तथा वीर सेवा मन्दिर, दिल्ली द्वारा निर्मित दो जैन ग्रन्थ प्रशस्ति सग्रह जिनमे से एक मे सस्कृत प्राकृत ग्रन्थो की प्रशस्तिये सकलित हैं और दूसरे मे अपभ्र श ग्रन्थो की । श्री महावीर जी तीर्थ क्षेत्र कमेटी (जयपुर) भी आमेर भडार के ग्रन्थो मे प्राप्त प्रशस्तियो का एक सग्रह प्रकाशित करा रही है । किन्तु अभी तक हिन्दी जैन ग्रन्थो की प्रशस्तियो का सकलन करने की ओर किसी का ध्यान नहीं गया है । मेरे स्वय के अवलोकन मे अबतक लगभग ५०-६० ऐसी प्रशस्तिये आ चुकी है जिनके प्रकाशन से न केवल हिन्दी जैन साहित्य के इतिहास पर ही वरन मध्य कालीन भारत के राजनैतिक एव सास्कृतिक इतिहास पर भी अच्छा प्रकाश पड़ने की Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) पर्याप्त सभावना है । अपने ऐतिहासिक महत्त्व के अतिरिक्त ये ग्रन्थ प्रशस्तिये तत्तद ग्रन्थो, उनके कर्त्ताओ, उक्त ग्रन्थो की प्रतियो आदि से सम्बन्धित जानकारी के लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होती है । साहित्यिक इतिहास - जैन साहित्य की प्रतीत कालीन प्रगति और इतिहास पर अभी तक कोई भी एक पूर्ण एव प्रमाणिक ग्रन्थ निर्मित नही हुआ है । भारतीय साहित्य के सामान्य इतिहास मे हिन्दी मस्कृत प्रादि भाषाओ के माहित्य से सम्बधित अथवा दर्शन, कला, विज्ञान आदि विविध विषयक साहित्य के इतिहास ग्रन्थो मे किसी भी कारण से क्यो न हो, प्राय जैन साहित्य की उपेक्षा ही की जाती रही है। प्रथम तो इन पुस्तको मे जैन साहित्य का कोई उल्लेख ही नही रहता, और यदि किसी किसी मे रहता भी है तो अत्यत्प, सक्षिप्त, गौरण और बहुधा त्रुटिपूर्ण भी। उसे कोई महत्व भी नही दिया जाता और न साहित्यक विकास में उसके उपयुक्त स्थान पर कोई प्रकाश डाला जाता है । किन्तु विभिन्न भाषाओ मे रचित जैन साहित्य के इतिहास पर जो कुछ थोडा बहुत साहित्य अब तक प्रकाशित हो चुका है वही पढकर उसके वास्तविक महत्त्व तथा भारतीय साहित्य मे उसके सम्माननीय स्थान का बहुत कुछ अनुमान हो जाता है । जैन साहित्य के इतिहास विषय पर निम्नलिखित पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है - प० नाथूराम प्रेमीकृत 'दिगम्बर जैन ग्रन्थ कर्ता और उनके ग्रन्थ,' 'हिन्दी जैन साहित्य का सक्षिप्त इतिहास,' 'कर्णाटक जैन कवि,' 'जैन साहित्य और इतिहास' । श्रीयुत ग्रार-नरसिहाचार्य कृत 'कर्नाटक कवि चरिते' श्री मोहनलाल देसाई कृत 'गुर्जर कवि' - २ भाग, प्रो० ए० सी० चक्रवर्ती कृत 'जैन लिटरेचर इन तामिल' । श्री मूलचन्द वत्मल न जैन कवियो का इतिहास' वावू कामताप्रसाद कृत 'हिन्दी जैन साहित्य का सक्षिप्त इतिहास | राजस्थानी भाषा के जैन साहित्य पर श्री अगरचन्द नाहटा ने अच्छा कार्य किया है । हिन्दी के पुरातन जैन गद्य साहित्य पर हम स्वयं एक पुस्तक लिख रहे है । इन पुस्तको के अतिरिक्त सुयोग विद्वानो द्वारा सम्पादित प्राचीन ग्रन्थो के आधुनिक सस्करणो की विद्वत्ता पूर्ण I Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विस्तृत प्रस्तावनामो मे, गत वर्षों मे प्रकाशित विभिन्न जैन अभिनन्दन ग्रन्यों मे, जैन हितैषी, जैन साहित्य सशोधक, जैन विद्या आदि भूत कालीन सामायिक पत्रो की फाइलो मे तथा जैन सिद्धान्त भास्कर, अनेकान्त, जैन सत्यप्रकाश, वीरवाणी आदि वर्तमान पत्र पत्रिकामो मे फुटकर लेखो के रूप मे जैन साहित्य और उसके इतिहास से सम्बन्धित विपुल सामग्री बिखरी पड़ी है। अग्रेजी प्रभृति विदेशी भापायो में जैन सम्बधी साहित्य के स्वरूप एव प्रगति का ज्ञान डा० ए० गिरनोट (Dr A. Guirnot) कृत 'जैना बिबलियोग्रेफिका,' रा० बाबू पारमदाम द्वारा सम्पादित 'जैन बिबलियोग्रेफी,' न० १ तया बाबू छोटेलाल जी कृत 'जैन बिबलियोग्रेफी' से हो सकता है। किन्तु इन पुस्तको मे सन् १९२५ के उपरान्त का विवरण नही है । जैन कथा साहित्य पर डा० जे० हर्टल का कार्य श्लाघनीय है । __ साहित्य के इतिहास और प्राचीन ग्रन्थो तथा अन्य प्रतियो के परिचय से जहों वर्तमान युग की बहुज्ञता बढती है तया विद्वानो एव अन्वेषको को अपने कार्य में भारी सहायता मिलती है वहाँ उनके कारण वर्तमान प्रकाशन प्रगति को भी भारो प्रोत्साहन मिलता है। साहित्यक क्षेत्र को समुन्नत एव प्रगतिशील बनाने के लिए युगानुसारी मौलिक ग्रन्य रचना और उनका प्रकाशन तो आवश्यक है ही, प्राचीन अप्रकाशित ग्रन्थ रत्नो के आवश्यक अनुवादादि सहित सुसम्पादित सस्करणो का प्रकाशन भी अतीव आवश्यक एव वाञ्छनीय है। जो साहित्य शताब्दियो और सहस्त्राब्दियो से कराल काल को चुनौती देता हुअा अपने लोक हितकारी अथवा लोकरजक रूप और स्थायी महत्त्व के कारण अक्ष ण्ण रहता चला आया है, अपनी इस अत्यन्त मूल्यवान बपौती का सरक्षण, प्रचार, प्रसार एव सदुपयोग करना वर्तमान सन्तति का प्रधान कर्तव्य है। इस प्रकार न केवल तनद सस्कृति की धारा अनवरोध रूप से प्रवाहित होती चली जायगी वरन उसके पुनीत जल मे निमज्जन करते रहने से मानव समाज सदैव अपना कल्याण करता रहेगा, उसे नव स्फूति प्राप्त होती रहेगी और उसे अपना जीवन पथ-प्रशस्त रखने में सहायता मिलेगी। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०) मुद्रण कला का प्रभाव-अस्तु छापेखाने के प्रचार के पश्चात् भारतवर्ष मे जब से साहित्य का मुद्रण प्रकाशन प्रारम्भ हुआ है, विशेषकर जैन समाज मे तब ही से प्राचीन ग्रन्थो के प्रकाशन का ही बाहुल्य रहा है । उत्तरोत्तर उत्कृष्टत्तर यान्त्रिक अविष्कारो को प्रमूत करने वाले इस यन्त्र प्रधान युग मे साहित्य का मुद्रण एव प्रकाशन भी अधिकाधिक शीघ्रता एव विपुलता के साथ वृद्धि को प्राप्त होता रहा है। विविध प्रकार के बहुसख्यक शिक्षालयो की स्थापना के साथ साथ मुद्रित ग्रथो के अल्प मूल्य मे सहज सुलभ होने के कारण माक्षरता, शिक्षा, बहुविज्ञता एव पठनाभिरुचि अधिकाधिक व्यापक होती जा रही है। विभिन्न प्रकार के असख्य पुस्तकालयो तथा अनगिनत मामयिक पत्र पत्रिकामो के द्वारा उन्हे भारी प्रोत्साहन मिल रहा है। आज यह समस्या नहीं है कि 'पुस्तके तो है ही नही, पढे क्या और कैसे ? आज तो वास्तविक कठिनाई यह है कि पुस्तके तो प्रत्येक स्थान मे सहज सुलभ है, और बहुसख्या मे, उन सब ही को पढ लेना असभव सा है, और आवश्यक अयवा उपयोगी भी नहीं है । तब अपने लिए उनका किस प्रकार चुनाव करे, उनमे से कौन-कौन सी को पढे और किस-किम को न पढे ? मनुष्यो के बढते हुए ज्ञान, शिक्षा एव साहित्यिक सस्थाप्रो की मख्या वृद्धि शिक्षा प्रणाली के द्रुत विकास तथा मानव जीवन की अत्यन्त वेग के माथ वृद्धि, को प्राप्त होती हुई आवश्यकताओ और विषमताओ के कारण साहित्यगत विषय भी सख्यातीत होते जा रहे है । अपनी-अपनी रुचि, आवश्यकता एव साधनो के अनुसार पृथक-पृयक विषय मे विशेषज्ञता प्राप्त करना आवश्यक होता चला जा रहा है। पुस्तक सूचो की आवश्यकता-इन सब कारणो से आज मुद्रित प्रकाशित पुस्तको की परिचयात्मक सूचियो की आवश्यकता एव उपयोगिता बहुत अधिक हो गई है। प्रगतिशील पाश्चात्य भाषाप्रो के साहित्य के सबध मे ऐसी अनेक सूचिये विद्यमान है और निर्मित होती रहती हैं। दूसरे उनके प्रकाशको के सूची पत्र भी इतने सारपूर्ण और प्रमाणीक होते है-विषय विशेष सम्बन्धी Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) साहित्य के प्रकाशक भी बहधा प्रथक-प्रथक हैकि उक्त व्यवसायिक सूचीपत्रो से ही तत्सम्बन्धी आवश्यकता की अधिकाश पूर्ति हो जाती है। किन्तु भारतवर्ष के और विशेषकर हिन्दी के प्रकाशको की अवस्था इससे नितान्त भिन्न है। यहाँ विशेषज्ञता को कोई महत्त्व नही दिया जाता, प्रकाशक अनगिनत हैं किन्तु उनमे सुव्यवस्था और सगठन का सर्वथा अभाव है। उनके सूचीपत्र मात्र व्यवसायिक दृष्टि से प्रेरित मस्ती विज्ञापन बाजी के नमूने भर होते है अत. पर्याप्त दोष पूर्ण भी होते है। उनसे पुस्तक विशेष का वास्तविक, ठीक-ठीक तथा पूर्ण परिचय प्राप्त नही होता। ऐसे सब ही प्रकाशित सूचीपत्रो का प्राप्त करना भी दुष्कर है, हिन्दी की सभी प्रकाशित पुस्तको की यथार्थ जानकारी भी उनसे नही हो सकती । अतएव हिन्दी की पुस्तको की एक ऐसी सार्वजनिक सूची की आवश्यकता थी जिससे हिन्दी ग्रन्थ प्रकाशन के स्वरूप, प्रगति, इतिहास, त्रुटियो और आवश्यकतानो का ज्ञान हो सके । इस अभाव की पूर्ति अनेक अशो मे प्रयाग विश्व विद्यालय के प्रोफेसर डा० माता प्रसाद जी गुप्त द्वारा सम्पादित तथा हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयाग द्वारा हाल में ही प्रकाशित 'हिन्दी पुस्तक साहित्य' नामक ग्रन्य से हो जाती है । इस पुस्तक मे विद्वान सम्पादक ने एक विस्तृत महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना के अतिरिक्त लगभग ५,५०० मुद्रित प्रकाशित हिन्दी पुस्तको की मक्षिप्त परिचयात्मक अनुक्रमणिका दी है, जिसमे प्राचीन अर्वाचीन, मौलिक एव टीका अनुवादादि, धार्मिक, सम्प्रदायिक (अधिकाशतः वैदिक परम्परा के ही हिन्दू समाजगत विभिन्न सम्प्रदायो से सम्बन्धित), लौकिक विविध विषयक, छोटी-बडी, महत्त्वपूर्ण तथा अति सामान्य कोटि की साधारणप्राय सर्व ही हिन्दी सस्कृत पुस्तके मम्मिलित है। स्कूली पाठ्यक्रम की साधारण पुस्तके, पारमी थ्येट र कम्पनियो में खेले जाने वाले सस्ते नाटक, सिनेमा के गायन आदि की पुस्तके, पुराने ढग के साग, ख्याल, नौट की, आल्हा, आदि की पुस्तके तथा फुटकर वा अज्ञात ट्रैक्ट आदि छोड दिये गये है । साथ मे युगविभाजनगत विषयानुसार पुस्तकानुक्रमणिका तथा लेखकानुक्रमणिका से पुस्तक की उपयोगिता और अधिक बढ़ गई है। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२) किन्तु एक सहृदय साहित्यिक विज्ञान के द्वारा रचित साहित्यिक विज्ञान सबधी ऐसी निर्देशात्मक पुस्तक के अवलोकन से जिस बात पर साश्चर्य खेद हुआ वह यह है कि इस पुस्तक मे भी जैन साहित्य की उपेक्षा ही की गई है और उसके प्रति अन्याय भी हुआ है। पुस्तक में निर्देशित लगभग ४,५०० लेखको मे से केवल ५० लेखक जेन है जिनमे २० ऐसे हैं जिन्होने जैन सबधी कुछ नही लिखा, और यदि उनमे से किसी की कोई जैन रचना है भी तो उनका उल्लेख नहीं किया गया, शेष ३० लेखको मे दो हजार वर्ष प्राचीन आचार्य कुन्दकुन्द से लेकर अाधुनिक काल के अति गौण लेखक तक सम्मिलित है । कुल ७०-७५ जैन पुस्तको का उल्लेख है जिनमे सस्कृत, प्राकृत, अपभ्र श एव हिन्दी के मौलिक तथा टीका अनुवादादिक और कथा कहानी, पूजा पाठ, पद भजन, अध्यात्म, तत्वज्ञान, निमित्त शास्त्र आदि कितने ही विषयो के दिगम्बर, इवेताम्बर, स्थानक वासी सभी सम्प्रदायो के एक-एक दो-दो ग्रन्थ बानगी के लिए दे दिये गये है । इन गिने चुने लेखको और उनकी कृतियो के परिचय भी बहुधा दोष पूर्ण एव भ्रामक है, उदाहरणार्थ, कुन्दकुन्दाचार्य कृत 'समयसार' को नाटक लिखना, 'बारह मामा नेमिनाथ' पुस्तक को केवल बारह मासा लिखकर उसके लेखक के रूप मे नेमिनाथ को लिखना, 'जैन रामायण' के कर्ता का नाम रामचन्द्र के स्थान पर हेमचन्द्र लिग्वना, कवि वृन्दावन दास कृत 'अर्हत पाशा केवलि' नामक शकुन शास्त्र को प्राचीन युग का एक जीवन चरित्र (1) लिखना। 'जाति की फेहरिस्त' और 'अग्रवालो की उत्पत्ति' जैसी पुस्तको को 'धर्म-तत्कालीन' विषय के अन्तर्गत तथा 'जन स्तवनावली' और 'जैनग्रन्थ सग्रह' जैसे प्रकी कस्फुट पाठ सग्रहो को 'साहित्य का इतिहास-तत्कालीन' विषयके अन्तर्गत देना, इत्यादि । और यह तब जबकि सम्पादक महोदय को जैन माहित्य की पूर्वोल्लिखित इतिहास पुस्तके और ग्रन्थ सूचिये आदि तथा कम से कम प० नाथूराम प्रेमी के जैन ग्रन्थ कार्यालय के वृहन्मूचीपत्र के अतिरिक्त, जोकि मब सहज सुलभ थे, किसी भी अच्छी जैन साहित्यिक सस्था अथवा प्रकाशन मस्था या एक वा अधिक जैन साहित्यिको से ही पत्र व्यवहार द्वारा प्रकाशित जैन Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) साहित्य के सम्बन्ध मे बहुत कुछ जानकारी सरलता से प्राप्त हो सकती थी। स्वय लाला पन्नालाल जी अग्रवाल देहली निवासी ने जो कि ऐसे कार्यों मे सदैव अत्यधिक उत्साह रखते है और अपना पूर्ण सहयोग देने में तत्पर रहते हैं, डा० माता प्रसाद जी की इस पुस्तक के लिए लगभग चार सौ मुद्रित जैन पुस्तको की एक परिचयात्मक सूची तैयार करके उनके पास भेजी थी। किन्तु सभवतया कुछ विलम्ब से प्राप्त होने के कारण, या क्या, डाक्टर साहब ने पन्नालाल जी की सूची का भी उपयोग नहीं किया। डाक्टर गुप्त की इस जैन साहित्य सबधी उदासीनता का जो कि भारत के बहुभाग अजैन विद्वानो और साहित्यिको मे आज इस बीसवी शताब्दी के मध्य मे भी पाई जाती है बहुत कुछ अनुमान प्रस्तुत पुस्तक के अवलोकन से तथा गुप्त जी की पुस्तक के साथ उसका तुलनात्मक अध्ययन करने से हो जायगा । इसमे सदेह नहीं है कि किसी जैन पुस्तक का मात्र मुखपृष्ठ देखकर अथवा किसी सूचीपत्र मे उसका नाम मात्र पढकर जैन साहित्य से अनभिज्ञ एक अजैन विद्वान के लिए उसका यथोचित परिचय देना बहुधा दुष्कर है । स्वय काशी नागरी प्रचारिणी सभा की हस्तलिखित ग्रन्थो की खोज सम्बधी विवरण पत्रिका मे जैन साहित्य विषयक अनेक उल्लेख सदोष एव भ्रान्तिपूर्ण है, जिनका एक लेख के रूप में सशोधन करके मैने अभी हाल मे ही सभा के अन्वेषक श्री दौलतराम जुआल द्वारा प्रकाशनार्थ सभा को प्रेषित किया है । किन्तु ये कठिनाइयाँ जैन विद्वानो के सहज सुलभ सहयोग से सरलता से दूर की जा सकती है । गत वर्ष में सभा के अन्वेषक महोदय ने लखनऊ के जैन शास्त्र भडारो में मग्रहीत लगभग एक सौ हिन्दी ग्रन्थो के विवरण लिये, इस कार्य मे उन्हे मेरा पूर्ण सहयोग प्राप्त था, अपने लिये हुए विवरणो को वे मुझ से पूर्ण तथा सशोधित करवाकर ही भेजते थे, अतएव उक्त विवरणो मे कोई भारी या खटकने वाली भूले रह जाने की तनिक भी सभावना नहीं है । जैन प्रकाशनो की दशा-हिन्दी प्रकाशन कार्य की जिम कुव्यवस्था का उल्लेख ऊपर किया गया है, कितु पुस्तक प्रकाशन की दशा उससे भी बुरी है। Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) सामान्य भारतीय तथा हिन्दी पुस्तक प्रकाशन के प्राय सर्व दोष तो इसमे बढे चढे रूप मे पाये ही जाते, उनके अतिरिक्त कई एक अन्य त्रुटियाँ भी हैं। जैन पुस्तक प्रकाशन अभी तक एक लाभदायक व्यवसाय नहीं बन पाया है। उसके यथोचित सुविकसित एव सुव्यवस्थित होने मे अनेक बाधक कारण रहे है। जैन सस्कृति जैसी मर्वा गीण है, उसके दर्शन, साहित्य, कला और विज्ञान जैसे सुविकसित, उत्कृष्ट और व्यापक है, उनके विशेषाध्ययन, शोध खोज एव अनुसधान के लिए एक केन्द्रीय जैन विश्व विद्यालय का होना अत्यन्त आवश्यक था। ऐसे एक विश्व विद्यालय की स्थापना के लिए कई बार कुछ आन्दोलन भी चले, लगभग २५-३० वर्ष पूर्व वरणात्रय-पूज्य प० गणेश प्रसाद जी वर्णी, स्व० बाबा भागीरथ जी वर्णी तथा स्व० प० दीपचद्र जी वर्णी ने जैन विश्वविद्यालय की स्थापना का बीडा उठाया था, किन्तु समाज से उपयुक्त सहायता सहयोग न मिलने के कारण असफल रहे । भारतवर्ष के विद्यमान विश्व-विद्यालयो मे भी जैनाध्ययन की कोई साधन सुविधाए नही है । बनारस के जैन कलचरल रिसर्च इन्स्टीटयूट द्वारा श्वेताम्बर बन्धु गत दो तीन वर्षो से इनमे से कुछ विश्व विद्यालयो मे जैन रिसर्च फेलोशिप स्थापित करने की ओर प्रयत्न शील हैं, किन्तु इस कार्य मे उन्हे दिगम्बर समाज का प्राय कोई सहयोग प्राप्त नही है । ज्ञानोदय मासिक मे एकाध बार इस योजना का समर्थन तो किया गया, किन्तु सेठ शान्ति प्रमाद जी द्वारा माहित्यिक कार्यों के लिए स्थापित ट्रस्ट के प्रबधको ने भी कोई सक्रिय उपक्रम इस दशा में अभी तक नही किया, याप यह उनके लिए महज था । कोई ऐसा उत्कृष्ट जैन कालिज भी विद्यमान नही है जिसमे जैनालॉजी का एक पृथक विभाग हो और जैनाध्ययन की समुचित साधन सुविधाए हो। जैन कालिजो और स्कूलो की सख्या भी कुछ कम नही है, किन्तु वे नाम मात्र के लिए ही जैन हैं, अर्थात् वे केवल इसी कारगण जैन नामाकित है क्योकि वे जैनो द्वारा उन्ही के धन मे स्थापित और उन्ही के उद्योग से सचालित है। किन्तु उनके पाठ्यक्रम में जैन साहित्य और सस्कृति का किसी प्रकार का कोई स्थान नही है । इसके अध्ययन अध्यापन के लिए उनमे कोई साधम सुविधाए नही है । उनके पुस्तकालयो मे बिना मूल्य, भेट, Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) या दानादि द्वारा जैन पुस्तके और पत्र पत्रिकाए भले ही आ जाय किन्तु उनके ऊपर कुछ व्यय करने की अयवा उनका संग्रह करने की कोई प्रवृत्ति नही है और न कोई प्रावश्यकता ही समझी जाती है। उनमे अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों की जैन साहित्यादि के अध्ययन मे अभिरुचि और आकर्षण तो तब हो जबकि उनके अध्यापको मे से भी कुछ की हो । यही दशा जैन छात्रावासो-जैन वोडिग हाउसो और होस्टलो की है। यह ठीक है कि वर्तमान युग धर्म स्वातन्त्रय और असाम्प्रदायिकता का है अतएव सार्वजनिक लौकिक शिक्षा मे किसी धर्म अथवा सम्प्रदाय विशेष की धार्मिक शिक्षा का सम्मिलित किया जाना उचित नही समझा जाता, वरन् न्याय विधान द्वारा उत्तरोत्तर वजित किया जा रहा है। किन्तु किसी सस्कृति और तत्सम्बधित लोकोपयोगी साहित्य एव विचार धारा का अध्ययन साम्प्रदायिक अथवा धार्मिक कदापि नही कहला सकता। जब वेदो, उपनिषदो, हिन्दू धर्म शास्त्री और पुराणो का, वैदिक परम्परा के न्याय, मीमासा, साख्य वैशेषिक प्रादि षट दर्शनो का, निर्गुण सगुण सम्प्रदायो और मध्यकाल के विभिन्न सन्तमतो का तथा धर्म सुधार आन्दोलनो का, बौद्ध दर्शन और सस्कृति का, इस्लाम के इतिहास और परम्परा का, क्रिश्चियन थियोलाजी का अध्ययन अध्यापन जो कि भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयो मे स्वीकृत है, साम्प्रदायिक धार्मिक नही समझा जाता तो फिर जैनोलाजी का, जैन सस्कृति-दर्शन, साहित्य और इतिहास का अध्ययन अध्यापन साम्प्रदायिक अथवा धार्मिक क्यो समझा जाय और भारत के सास्कृतिक अध्ययन मे उसी की उपेक्षा क्यो की जाय । अवश्य ही उसे अनिवार्य विषय न बनाकर ऐच्छिक या वैकल्पिक विषय बनाया जा सकता है। उपरोक्त जैन कालिजो, स्कूलो, छात्रालयो आदि के लिए जिन स्थानो मे ये सस्थाए स्थित होती है, उनकी स्थानीय जैन समाज से तो भरसक द्रव्य एकत्रित किया ही जाता है, देश के अन्य विभिन्न प्रान्तो और स्थानो की जैन समाज से भी पर्याप्त द्रव्य सग्रह किया जाता है । इस द्रव्य प्राप्ति के लिए समाज से जो लिखित अथवा मौखिक अपीले की जाती है उनमे सर्वाधिक बल इसी बात Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) पर दिया जाता है कि विकसित जैन सस्था जैनत्व की प्रभावना के लिए ही विद्यमान है, जैन धर्म, सस्कृति और साहित्य की अथक सेवा करना ही उनका व्रत है अत जैनो का कर्तव्य है कि उसके लिए यथा शक्य द्रव्य दान देकर विद्या दान का पुण्य लूटें । किन्तु यह सब वाग्जाल और धोका है, इन सस्थाओ मे से प्राय किसी ने भी अब तक कम से कम अपनी ओर से जैन साहित्य और संस्कृति की कुछ भी सेवा नही की है । उनसे जैन साहित्य के लौकिक अश के भी पठन पाठन और प्रकाशन को कोई प्रोत्साहन नही मिला है । जो जैन संस्कृत विद्यालय है उनसे भी जैन साहित्य के सवर्धन मे विशेष सहायता नही मिल रही है, उनके कुछ फुटकर स्नातक व्यक्तिगत रूप से जैन साहित्य की अवश्य ही प्रशसनीय सेवा कर रहे है, पर वह अति सीमित और raiगी ही है । जैन समाज मे कई एक परीक्षा बोर्ड है, किन्तु उनके पठनक्रम बहुत सीमित और रूढ है, उनके वैकल्पिक विषय अत्यल्प संख्यक है, इतिहास पुरातत्त्व और संस्कृति जैसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषय भी उनमे सम्मिलित नही है, तुलनात्मक अध्ययन की कोई व्यवस्था नही है । इसके प्रतिरिक्त उनके अधिकारीगण जो जैसी पुस्तके उपलब्ध है उन्ही को अपने पठनक्रम मे रखकर सतोष कर लेते है । पठनक्रम के उपयुक्त नवीन पुस्तको के निर्माण कराने में वे प्रवृत्त ही नही होते । जैन साहित्य का. बाह्य जैनेतर समाज में सम्यक् प्रचार करने की जैनो की दिली प्रवृत्ति ही प्रतीत नही होती अतएव उसके लिए उपयुक्त साधन भी नही जुटाये जाते । कितना ही सुन्दर, लोकोपयागी या लोकरजक तथा प्रमाणीक प्रकाशन हो, सार्वजनिक पत्र पत्रिकाओं मे उसके विज्ञापन, समालोचनए आदि निकलवाने की ओर कोई ध्यान नही दिया जाता । श्रजैन उसे एक साम्प्रदायिक रचना मान कर उपेक्षणीय समझते है और जैन उसे दूसरो को दिखाने की आवश्यकता नही समझते । देश मे यत्र तत्र अनेक सार्वजनिक जैन पुस्तकालय एवं वाचनालय भी खुलते जा रहे हैं, किन्तु उनमे भी जैन कालिजो और स्कूलो आदि की भांति Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन पुस्तकों और पत्र पत्रिकामो को क्रय करके संग्रह करने की मावश्कता नहीं। समझी जाती, बल्कि सस्ते, जासूसी, ऐयारी, घटना प्रधान अथवा रोमांचक उपन्यास कहानियो के ही संग्रह को विशेष महत्त्व दिया जाता है। ...? जैन साहित्य के स्वरूप का सम्यक् प्रचार न होने से नवयुवक विद्यार्थी . वर्ग तथा पठनाभिरुचि रखने वाले वयस्क व्यक्ति भी पहले से ही यह मान बैठे हैं कि पठन क्रमान्तर्गत विषयो की दृष्टि से, लौकिक ज्ञानवर्द्धन की दृष्टि से, जीवन सम्बधी दैनिक आवश्यकताओ की दृष्टि से अथवा मनोरंजन की दृष्टि से जैन साहित्य एक निरर्थक-बेकार की वस्तु है, उसका पदि कोई मूल्य है तो केवल धार्मिक है सो भी श्रद्धालुओं के लिये ही । और एक अौसतं व्यक्ति वास्तव मे इस दृष्टि को कोई विशेष महत्त्व नहीं देता, जो कुछ महत्त्व देता है वह रिवाजन या लिहाजन अथवा नाम और पुण्य दोनों एक साथ कमाने की ही नियत से देता है। किन्तु वास्तविकता तो यह है कि जैन साहित्य में किसी भी अन्य साम्प्रदायिक साहित्य की अपेक्षा-और पुरातन भारतीय साहित्य का अधिकाश किसी न किसी सम्प्रदाय से ही सम्बन्धित है-उपरोक्त लोकतत्वो का बाहुल्य ही पाया जाता है । उसकी सहायता से पठनक्रमान्तर्गत अधिकाश विषयो को भी सद्धित किया जा सकता है। यहा तक कि उसके गूढ सैद्धान्तिक एव दार्शनिक मन्तव्यो की भी कैसी समयानुसारी, लौकिक एव व्यावहार्य व्याख्या की जा सकती है यह बात भारतीय ज्ञानपीठ, काशी से हाल में ही प्रकाशित तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर महेन्द्रकुमार जी द्वारा लिखित तत्त्वार्थवृत्ति की प्रस्तावना मे 'सम्यग्दर्शन' के विवेचन से सहज अनुमानित की जा सकती है। किन्तु जैन साहित्य के लोकरूप का अभी प्रचार ही नही हुमा, यद्यपि वर्तमान जैन पत्र-पत्रिकामो तथा नब प्रकाशित जैन साहित्य मे पर्याप्त मात्रा मे उपलब्ध हैं, पर उसे खरीद कर पढ़नेवालो का अभाव है । जैन समाज में अनेको श्रीमान ऐसे हैं जिनके यहाँ बहुभाग जैन पत्र-पत्रिकाएं पहुंचती रहती है प्रकाशित जैन पुस्तकें भी पर्याप्त मात्रा में पा जाती हैं, उन Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सबका मूल्य प्रायः धर्मादे की रकम मे से दे दिया जाता है। किंतु इन मुस्तकों और पत्र पत्रिकाओं में से अल्पाश का भी कोई उपयोग वे श्रीमान अथवा उनके परिवार का कोई व्यक्ति शायद ही करता हो। ये चीजे प्रायः कालतूमद और रद्दी की टोकरी के उपयुक्त समझ ली जाती हैं-उन्हें बिना देखे और पढे ही, हजार हजार, और दो दो हजार की जैन जनसख्या बाले स्थानो में भी दो चार से अधिक ऐसे व्यक्ति न मिलेंगे जो मूल्य देकर जैन पत्र पत्रिकाएं और जैन साहित्य मगाते हों। कितनी भी उच्च कोटि की पुस्तक हो अधिक से अधिक एक हजार छपती हैं और वही सस्करण वर्षों के लिये पर्याप्त होता है, दूसरे सस्करण की नौबत ही नहीं पाती । अत्यन्त उच्चकोटि की पत्रिकाए निकल रही है किंतु पाच छ सौ से अधिक किसी की भी ग्राहक सख्या शायद नही है । साप्ताहिक पत्रो मे से दो एक की एक हजार से कुछ ऊपर भले ही हो । इसमे दोष प्रकाशकों और पत्र सम्पादको आदि का भी है। वे स्वय अपने साहित्य और पत्रों के व्यापक प्रचार के लिये प्राय कुछ भी सुव्यवस्थित उद्योग नही करते । इन्ही सब कारणो से जैन पुस्तक प्रकाशन, जैन पुस्तक विक्रय तथा जैन सामयिक पत्रो का व्यवसाय बहुत ही कम सफल और लाभदायक हो पाता है । अतएव व्यावसायिक जैन प्रकाशक, पुस्तक विक्रेता और पत्रकार अत्यल्प सख्यक है। जैन लेखकों की दशा :-जैन लेखको की दशा और भी बुरी है । जैन समाज मे विद्वानो, और अच्छे उच्चकोटि के लेखको की भी कोई कमी नही है, किंतु उपरोक्त परिस्थितियो मे कोई भी जैन विद्वान या लेखक निराकुलता पूर्वक साहित्य साधना नही कर सकता और न उसके द्वारा अपना और अपने परिवार का निर्वाह ही कर सकता है। अधिकतर लेखक तो अपनी कृतियो के लिए किसी प्रकार के पारिश्रमिक को प्राप्त करने का विचार ही नही करते, और यदि कोई कोई वैसा विचार भी रखते हैं और उसकी पावश्यकता अनुभव करते हैं तो वे उन्हें प्रकट करने का अथवा पारिश्रमिक की माग Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) करने का साहस ही नहीं रखते, वैसा करने में बहुषा लज्जा और संकोच अनुभव करते हैं, परिणाम स्वरूप भले ही वह अपनी साहित्य साधना को त्याग 1 दें, गौरण अथवा शिथिल कर दें । बहुभाग जैन लेखक अपनी साहित्यिक अभिरुचि, साहित्य अथवा समाज सेवा की लगन या धार्मिक श्रद्धा के वंश होकर अथवा केवल स्वान्त सुखाय ही लिखते । उनकी साहित्य साधना मे कोई आर्थिक प्रयोजन प्राय. रहता ही नहीं, विशेषकर इसी कारण से क्योंकि वह दुष्कर है, लोकमत उसके अनुकूल नही है और क्योकि वैसा करने में अपनी मान हानि के सिवाय और कोई लाभ नही दीखता । इन जैन 'लेखकों का कोई सगठन नही है, कोई आवाज नही है । वे जो कुछ लिखते हैं उसके लिये बदले मे कुछ इच्छा या आकाक्षा न रखते हुए भी उसका प्रकाशन कराने में भी बडी कठिनाई का सामना करना पडता है। एक व्यक्ति अपने जीवकोपार्जन के प्रयत्न को बाधा पहुचा कर अथवा उसके समय मे से ही जो कुछ अवकाश मिले उसमे तथा अपने स्वास्थ्य की परवाह न करके और आराम को तिलांजली देकर स्वयं ही सर्व साधन सामग्री जुटाये और परिश्रम तथा आवश्यक द्रव्यादि व्यय करके कोई पुस्तक लेखादि तैयार करे और फिर सामर्थ्य हो तो स्वय ही उसे प्रकाशित भी कराये तथा हो सके तो अमूल्य ही वितरण भी करदे, बर्न अपनी पांडुलिपि को देख देख कर खुश हुआ करे । श्रथवा वह किसी व्यवसायिक प्रकाशक या साहित्यिक सस्था, किसी धार्मिक या सामाजिक सभा सोसाइटी, अथवा किसी घनी मित्र अथवा रिश्तेदार की खुशामद करे । सम्भव है कि इस प्रकार उसकी रचना प्रकाशित हो जाय और यह भी सम्भव है कि सर्व प्रयत्नी के बाबजूद भी वह प्रकाशित न हो । प्रकाशित होने पर उसे पुरस्कार या वारिश्रमिक मिलने की बात तो दूर है, यदि प्रोत्साहन और प्रशसा के दो शब्द तथा सूखा धन्यवाद मिल जाय तो बहुत है । जैन लेखक के लेख का मूल्य, चाहे वह लेख किसी कोटि का क्यो न हो, अधिक पत्रकार किसी भी # अधिक अपने पत्र के उस यु‌ग न हम्रा है, एक प्रति समझते हैं - Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २० ) का एहसान ही करते हैं। चाहे कितना ही महत्त्व पूर्ण लेख हो उसकी पतिरिक्त प्रतियाँ लेखक को प्रदान करने की तो प्रथा ही नही है, लेख की पहुच या स्वीकृति की सूचना देने अथवा अस्वीकृत होने पर उसे लौटा देने की तो मावश्यकता ही नही समझी जाती । आर्थिक प्रतिदान की प्राशा न होने से लेखक व्यय साध्य सामग्री के सकलन एव उपयोग द्वारा अपनी रचनामो को यथोचित प्रमाणीक, उपयोगी एव आकर्षक भी नही बना पाता। जैन समाज मे साहित्य की शोध, खोज एव निर्माण करने कराने वाली कई एक अच्छी सस्थाएं भी विद्यमान हैं जो प्रायः सार्वजनिक अथवा सामाजिक द्रव्य की सहायता से संचालित हो रही हैं और जिनके सचालन मे कोई प्रार्थिक अथवा व्यवसायिक प्रयोजन नही है । किन्तु क्योकि वे स्वय इस दृष्टि से शून्य सी हैं अतः जिन विद्वानों से वे साहित्य सजन कराती है उन्हे भी स्वत. इस दृष्टि से शून्य ही मान लेती हैं । ऐसी अवस्था मे सुलेखको का पर्याप्त सख्या मे सद्भाव होना और उच्च कोटि के साहित्य की सृष्टि करना दुष्कर व दुस्साध्य है, यह सहज ही अनुमान किया जा सकता है । तथापि जब प्रकाशित हो चुके तथा हो रहे जैन साहित्य पर दृष्टि जाती है तो वह किसी भी अन्य भारतीय सम्प्रदाय अथवा समाज के साहित्य की अपेक्षा मात्रा मे भी कम नही है और किसी अंश मे भी निम्नतर कोटि का नहीं है तथा लोकतत्त्व की प्रचुरता भी उसमे अपेक्षाकृत पर्याप्त मात्रा में है। इसका कारण यह है कि जैन समाज मे साक्षरो और शिक्षितो की संख्या एक पारसी समाज को छोड कर सर्वाधिक है, और उसकी सामान्य दशा भी इतनी समृद्ध अवश्य है कि नितान्त भूखे और दरिद्री इसमे बहुत थोड़े है। धार्मिक साहित्य सुजन अधिकतर धार्मिक भावना के वश ही किया और कराया जाता है । व्यवसायिक प्रकाशको और पुस्तक विक्रेताओ के अतिरिक्त अनेक अव्यवसायिक साहित्यिक सस्थाए, ग्रन्थ मालाए, ट्रस्ट आदि तथा स्थानीय पचायतें, बार्मिक सामाजिक - - - - श्री रुष जो शानदान वा शास्त्रदाने - रूप से भी पुस्तके प्रका Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ( २१ ) शित करते कराते रहते हैं । कुछ उच्च कोटि को संस्थानों में तो सवैतनिक fare भी साहित्यिक शोध खोज एव निर्माण कार्य करने लगे हैं । कभी-कभी पुरस्कार अथवा पारिश्रमिक देकर ठेके पर भी ये कार्य कराये जाने लगे हैंयद्यपि ऐसे दोनो प्रकार के उदाहरण अभी अत्यल्प संख्यक ही हैं। कितने ही लेखक श्रेष्ठ विद्वान होने के साथ-साथ सुसमृद्ध भी है और वे निस्वार्थ भाव से उच्च कोटि के साहित्य सृजन मे पर्याप्त योगदान देते रहे है। ऐसे भी कितने ही उदाहरण हैं जबकि उक्त विद्वानों ने स्वयं लिखा, अच्छा लिखा और बहुत लिखा और फिर अपनी सर्व या अधिकांश कृतियों को स्वद्रव्य से स्वयं ही प्रकाशित करवाया अथवा अपने प्रभाव से एक वा अधिक धनी व्यक्तियों द्वारा प्रकाशित करवाया । त्यागी साधु महात्माओं के स्वप्रयत्न अथवा प्रभाव और रणा से भी बहुत सा साहित्य निर्मित और प्रकाशित होता रहता है । वास्तव में जैन समाज प्रधानतया दिगम्बर और श्वेताम्बर नामक दो सम्प्रदाथो में विभक्त है । लेखकों और प्रकाशको प्रादि की जिस दशा का वर्णन ऊपर किया गया है वह यद्यपि सामान्यत समस्त जैनसमाज पर लागू होती है तथापि ये दोष दिगम्बर समाज मे विशेष रूप से बढे चढे मिलते है । श्वेताम्बर जैनसमाज मे ग्रन्थ प्रकाशन व्यवस्था अपेक्षाकृत अधिक सुव्यवस्थित एव सुसगठित है । उनके विद्वान और लेखको की दशा भी पारिश्रमिक, पुरस्कारादिक की दृष्टि से बहुत अच्छी है । स्व साहित्य का बाह्य समाज मे प्रचार करने की श्रेयस्कर प्रवृत्ति भी उनमे रही है । उनका साधु समाज साहित्यिक कार्य मे यथाशक्य योगदान देता है किन्तु उनके साथ जो कमी है वह यह है कि इन बातों की भोर से श्वेताम्बर गृहस्थ, दिगम्बर गृहस्थ की अपेक्षा कही अधिक उदासीन एव अयोग्य हैं । उनमे सुविज्ञ विद्वान् एव सुलेखक सख्या मे अत्यल्प है, अतएव साहित्यिक सस्थाओ, निर्मित साहित्य की उत्कृष्टता एव विपुलता तथा सामयिक पत्र पत्रिकाओं की दृष्टि से दिगम्बर समाज श्वेताम्बर समाज की अपेक्षा कुछ भागे ही है । अस्तु, यदि जैन समाज को समय की गति के साथ-साथ सजीव रूप में Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) उन्नति पथ पर अग्नसर होना है, सभ्य ससार की दृष्टि में उसे अपने आप को ऊंचा उठाना है और स्वय उस ऊंचाई के उपयुक्त बनना है तो उसे अपने साहित्य को प्रगतिशील एव समुन्नत बनाना ही होगा, अपने प्राचीन साहित्य रत्नो को ढग से ससार के सामने प्रस्तुत करके उनका तथा उनकी जननी जैन संस्कृति का महत्त्व प्रदर्शित करना और मूल्य अकवाना होगा, लोक हितार्थ एव ज्ञान वर्द्धन के लिए उसका उपयुक्त सदुपयोग कराना होगा, उसका अधिकाधिक प्रचार एव प्रसार करना होगा, समाज के स्त्री पुरुष आंबालवृद्ध में सर्व व्यापी पठनाभिरुचि-पुस्तक आदि क्रय करके पढने और अध्ययन करने की प्रवृत्ति जागृत करनी होगी, जो व्यक्ति तनिक भी प्रतिभा सम्पन्न एव साहित्यिक अभिरुचि वाला हो उसे सर्व प्रकार प्रोत्साहन, जिसमे समुचित पुरस्कार पारिश्रमिक अत्यावश्यक है, प्रदान करके उस व्यक्ति मे जो सर्वोत्तम तथ्य है उसे साहित्य के रूप मे ससार को प्रतिदान कराने की सुचारु योजना करनी होगी और साहित्यिक अनुसधान, निर्माण एव प्रकाशन कती सस्थाओ, परीक्षा बोर्डी, विद्या केन्द्रों, सामयिक पत्र पत्रिकामो तथा व्यक्तिगत विद्वानो और लेखकों का केन्द्रीकरण नही तो कम से कम एक सूत्रीकरण करके उन्हे सुव्यवस्थित रूप से सुसंगठित करना होगा, साहित्यगत अथवा सस्कृतिजन्य विविध विषयो का सुचारु विभाजन करके विषय विशेषो मे विशेषज्ञता प्राप्ति के प्रयत्नो को प्रोत्साहन देना भी वाञ्छनीय होगा। यह सब किये बिना इस द्रुत वेग से प्रगतिशील सघर्ष प्रधान युग मे जबकि न किसी व्यक्ति को अनावश्यक अवकाश है, न व्यर्थ के शौक पूरा करने की रुचि और साधन है और न धार्मिक श्रद्धा जीवन का कोई वास्तविक महत्वपूर्ण अग रहती जाती है, प्रत्युत परिगुणित होती हुई मानवी इच्छाए , वासनाए और आवश्यकताए तथा जीविकोपार्जन की जटिल समस्या एव स्वार्थ परता प्रत्येक व्यक्ति का गला बेतरह दबाये हुए है, किसी समाज और उस समाज की संस्कृति के लिए, चाहे वह कितनी भी महत्व पूर्ण क्यो न हो, उन्नति पथ पर अग्रसर होते रहना तो दूर की बात है, जीवित रहना भी अत्यन्त कठिन है। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) ऐसी परिस्थितियो मे प्रकाशित साहित्य का एक प्रकार का लेखा-जोखा और विवरण इसलिये परम आवश्यक हो जाता है कि इसके द्वारा जहा एक मोर लोक की तत्सम्बधी अनभिज्ञता दूर होकर उसे समाज विशेष प्रथवा वर्ग विशेष द्वारा किये गये योगदान का परिचय प्राप्त हो जाता है, राष्ट्र अथवा विश्व के भी साहित्य मे उसका उचित स्थान एवं प्रगति निश्चित करने में सुभीता हो जाता है, तथा उसके समुचित सदुपयोग द्वारा मानव की ज्ञानबुद्धि होती है उसकी ज्ञान साधना को नवीन साधन सहायता श्रादि मिलती है, वहा दूसरी ओर तत्तद समाज को भी यह ज्ञात हो जाता है कि उसके साहित्य की क्या स्थिति है, उसकी प्रगति की क्या अवस्था है, तथा उनमे कहाँ क्या त्रुटिय और दोष हैं, उसकी क्या आवश्यकताये हैं, जिनसे कि उक्त दोषों का निवारण और आवश्यकताओ की पूर्ती का प्रयत्न किया जा सके । विद्वानो श्रन्वेषकों, पाठको, शिक्षको और सग्रह कर्ताओ, लेखको और प्रकाशको सभी को इस प्रकार के विवरण से अपने अपने कार्य मे पर्याप्त सुविधा हो जाती है। दूसरे, जैन साहित्य प्रकाशन की जिस दुरवस्था का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है, उसकी अवस्थिति मे सभी प्रकाशित जैन पुस्तको का परिचय किसी भी व्यक्ति को सरलता से प्राप्त होना प्रत्यन्त कठिन है । अत प्रकाशित जैन पुस्तकों के एक यथासंभव पूर्ण तथा सक्षिप्त परिचयात्मक विवरण की आवश्यता एवं उपयोगिता स्पष्ट ही है । श्वेताम्बर जैन साहित्य के सम्बध मे ऐसी दो-एक सूचिये पहिले ही प्रकाशित हो चुकी है, यथा अध्यात्म ज्ञान भडार प्रसारक मडल, पादरा (गुजरात) द्वारा प्रकाशित 'मुद्रित जैन श्वेताम्बर ग्रन्थ नामावली', तथा श्री प्रात्मानन्द जैन सभा, भावनगर द्वारा प्रकाशित 'श्री जैन श्वेताम्बर ग्रन्थ गाइड' जिनमे कि उक्त समाज की मुद्रित प्रकाशित पुस्तकों का विषयानुसार परिचय दिया गया है। इन दोनो सूचियो मे प्रथम सूची अधिक महत्वपूर्ण है । इसके अतिरिक्त, प्रसिद्ध श्वेताम्बर पुस्तक विक्रेता - सरस्वती पुस्तक भंडार, हाथीखाना, रतन पोल, अहमदाबाद के सूची पत्र में प्रायः सब ही प्रकाशित श्वेताम्बर जैन पुस्तकें दी हुई हैं। इन सूचियो की अवस्थिति मे तथा Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) शोधन एव समय के अभाव के कारण प्रस्तुत पुस्तक मे श्वेताम्बर साहित्य को सम्मिलित नहीं किया गया और प्रधानतया दिगम्बर समाज की ही मुद्रित प्रकाशित पुस्तको का विवरण दिया गया है । मुद्रण कला का इतिहास--प्राचीन साहित्य की खोज करने वाले प्रसिद्ध विद्वान काका कालेलकर जी के शब्दो मे "यह बात बिल्कुल सही है कि जैसे लेखन कला के प्रचार से ज्ञान प्राप्ति का मार्ग सुलभ हुमा है वैसे ही छापने की कला के प्रचार से यह मार्ग सहस्त्र गुना अधिक सुलभ और विस्तृत हो गया है।” X जहा तक लेखन कला के प्रारभ का प्रश्न है वह सर्व प्रथम भारतवर्ष मे ही हुआ प्रतीत होता है। जैन अनुश्र ति के अनुसार कर्मयुग के आदि मे प्रादि पुरुष महा मानव ऋषभदेव ने अपनी प्रिय पुत्री ब्राह्मी के उपलक्ष से सर्व प्रथम मानवी लिपि का आविष्कार किया था। सिन्धु पुरातत्त्व मे उपलब्ध मुद्रालेख भी पाच छ हजार वर्ष प्राचीन है और उनसे अधिक प्राचीन लेख मसार के किसी अन्य भाग मे अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं । लेखनकला के सर्व प्राचीन उदाहरण पाषाण आदि पर ही अकित मिलते है। तत्पश्चात् ताम्रपत्र आदि धात्वी साधनो का भी उपयोग होने लगा। फिर ताडपत्र, भुर्जपत्र प्रादि वानस्पतिक पत्रो पर लिखाई आरभ हुई। अन्ततः सन ईस्वी प्रथम सहस्त्राब्द के मध्य के लगभग कागज का प्रयोग प्रारभ हुआ। छापे खाने का सर्व प्रथम आविष्कार चीन देश मे हुआ, और सर्व प्रथम ज्ञात मुद्रित चीनी पुस्तक की मुद्रण तिथि ११ मई सन् ८६८ ई० है। इस पुस्तक की छपाई ब्लाक प्रिन्टिग मे हुई थी, किन्तु अलग अलग बने टाइपो से छापने की कला का आविष्कार चीन देश मे ही पो. शेग नामक व्यक्ति के द्वारा सन् १०४१-४६ के मध्य हुआ । यूरोप मे मुद्रण का प्रारभ जर्मनी देश के निवासी जॉन गटेनबर्ग नामक व्यक्ति ने १५ वी शाताब्दी ई. के मध्य मे किया था। x प्रमी अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० १६७, Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ) भारतवर्ष मे छापेखाने का प्रथम प्रवेश पुर्तगाली उपनिवेश गोभा के सेंट पॉल कालिज मे, जेसुइट पादरियों की अध्यक्षता मे जुझान बुस्टामान्टे नामक मुद्रक द्वारा सन् १५५६ ई० मे हुआ । और भारत मे मुद्रित सर्व प्रथम पुस्तक तीनी भाषा की 'कनक्लूसोस फिलोसोफिकास' नामक दार्शनिक पुस्तक थी जो उसी वर्ष उक्त छापेखाने में छपी थी । यह पुस्तक तथा इसके बाद छपने वाली दूसरी पुस्तक भी अब उपलब्ध नही हैं । भारतवर्ष मे मुद्रित सर्व प्रथम उपलब्ध पुस्तक उसी मुद्रणालय मे सन् १५६० मे छपी 'कोम्पेंदिपु स्पिरितु आलद व्हिद क्रिस्ती' है जो न्यूयार्क (अमेरिका) के राष्ट्रीय सार्वजनिक पुस्तकालय में विद्यमान है । इसके कुछ काल पश्चात् गोत्रा प्रदेश के अन्तर्गत ही रायतूर नामक स्थान के सेंट इग्नेशस कालिज मे एक अन्य मुद्रणालय चालू हुआ जिसमें भारतीय भाषा मे भी पुस्तके छपने लगी । इस छापेखाने मे मुद्रित भारतीय भाषा की सर्व प्रथम ज्ञात पुस्तक फादर थॉमस स्टीफेन्स कृत 'क्राइस्ट पुराण' थी । यह पुस्तक मराठी भाषा मे प्रोवी नामक छन्द विशेष मे लिखी गई थी किन्तु रोमन लिपि मे थी, और यह सन् १६१६ ई० मे मुद्रित हुई थी । चालीस वर्ष के बीच मे इसके क्रमश तीन सस्कररण प्रकाशित हुए थे, किन्तु उनकी एक भी प्रति आज उपलब्ध नही है, यद्यपि उसकी रोमन, कन्नडी, देवनागरी लिपियो में निबद्ध अनेक हस्तलिखित प्रतिया विद्यमान है उसी छापेखाने से सन् १६२२ मे मुद्रित 'ख्रिस्ती धर्म सिद्धान्त' नामक मराठी भाषा और रोमन लिपि की पुस्तक आज भी उपलब्ध है । इसके उपरान्त डेनिश मिशनरियो और फिर अ ग्रेज पादारियो ने इस दिशा मे प्रयत्नशील होकर छापेग्वाने के प्रचार में योग दिया । देवनागरी अक्षरों में ब्लाक प्रिंटिंग से छपा सर्व प्रथम लेख सन् १६७८. ई० का है । सन् १७९६ ई० मे लिथोग्रफी का श्राविष्कार हुआ । उनमे टाइप बनाने की कठिनाई न होने के कारण शीघ्र ही उसका अत्यधिक प्रचार हो गया और १६ वी शताब्दी में तो देशी भाषाश्रो के अनेक प्राचीन ग्रथ लिथो से छुपे । १८ वी शताब्दी के अन्त के लगभग ही बम्बई और बंगाल मे सर्व Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ( २६ ) प्रथम एक-एक मुद्रणालय स्थापित हुआ। भारतीय मुद्रणकला के इतिहास में सीरामपुर (बगाल) के मुद्रणालय, मुद्रणकला विशारद सर चालर्स विल्किन्स, । उनके सहयोगी शिष्य पचानन और ग्रहस्थ मिशनरी डा. विलियम कैरी के नाम विशेष उल्लेखनीय है । उक्त सीरामपुर छापेखाने से १६ वी शताब्दी के पूर्वार्ध मे विभिन्न प्रान्तीय भाषाओं मे बाइबिल के अनुवाद धडाधड प्रकाशित हुए। धीरे-धीरे भारतीय पुस्तके भी देशी भाषाओं मे छपने लगी । नागरी लिपि की सर्व प्रथम मुद्रित पुस्तकें कुरियर प्रेस, बम्बई द्वारा प्रकाशित 'विदुर नीति (१८२३ ई०) और 'सिंहासन बत्तीसी' (१८२४ ई०) हैं, किन्तु इन दोनो की भाषा मराठी है। हिन्दी भाषा और नागरी लिपि की सर्व प्रथम पुस्तक इग्लैंड मे छपी थी और १६ वी शताब्दी के मध्य से वे भारतवर्ष मे भी छपने लगी। जन प्रकाशन का इतिहास-जैन साहित्य मे हिन्दी भाषा और नागरी लिपि की सर्व प्रथम पुस्तक प्रसिद्ध दिगम्बर विद्वान प० बनारसीदास (१७ वीं शताब्दी) कृत 'साधु बन्दना' थी जो सन् १८५० मे आगरा नगर मे छपी थी। अतएव जैन पुस्तक साहित्य का अथवा उसके मुद्रण व प्रकाशन का प्रारम्भ सन् १८५० ई० से ही मानना उचित है । वैसे तो, जहाँ तक पाश्चात्य जगत का प्रश्न है, यूरोपीय विद्वानो और प्राच्यविदो ने तो १६ शताब्दी के प्रारभ से जैन धर्म और सस्कृति मे दिलचस्पी लेनी प्रारभ करदी थी। सन १७६६ ई० मे लेफ्टिनेन्ट विल्फ्रेड का 'त्रिलोक दर्पण' नामक जैन अथ की एक प्रति हाथ लग गई। उनके स्वय के कथनानुसार ब्राह्मण पडितो ने साम्प्रदायिक विद्वोष के कारण उस पर कुछ भी प्रकाश डालने से साफ इन्कार कर दिया। x अतएव विल्फ्रेड साहब स्वय ही उस प्रन्थ पर से जैनो के सम्बन्ध में जो कुछ जान सके वह उन्होने 'एशियाटिक रिसर्चेज' भाग तीन पृष्ठ १९२ पर प्रकाशित कर दिया । विदेशी भ्रमणार्थियों x विलफ्रेड पान दी एन्टीपेथी आफ दी ब्रह्मिन्स टू दी जेन्स-राशियाटिक रिसचेंज भा० ३ पृ०५१. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के द्वारा किये उल्लेखों को छोड़कर पाश्चात्य विद्वानो द्वारा लिखित सर्व प्रथम जैन सम्बन्धी रचना यही है । सन् १८०६ में कर्नल मेकेजी का निबन्ध ऐन एकाउन्ट माफ दी जेन्स' और एच० टी० कोलबुक का निबन्ध 'माबजरवेशन्स पान दी जेन्स' कलकत्ते के एशियाटिक रिसर्चेज (जिल्द ६, पृ० २४३-२८६) में प्रकाशित हुए । सन् १८२५ मे पादरी जे० ए० डुबाइ के संस्मरण पेरिस (फान्स) से प्रकाशित हुए जिनमे जैन धर्म और जैन जाति के विषय मे बहुत कुछ लिखा है उसी वर्ष ए० स्टरलिंग ने 'उडीसा की जैन गुफाओं' पर अपना लेख प्रकाशित किया । सन् १८२७ मे फेन्कलिन, हैमिल्टन, डेलमेन आदि विद्वानो ने जैन विषयक लेख लिखे । तदुपरान्त उक्त शताब्दी के मध्य पर्यन्त एच० एच० विल्सन, जेम्स टाड, जे० स्टीवेन्सन, जे० प्रिन्सेप, जे० फर्गुसन आदि विद्वानो ने अपने लेखों द्वारा जैन सम्बधी लोक ज्ञान की अभिवृद्धि की। किन्तु जैनधर्म सस्कृति साहित्य पुरातत्त्व और इतिहास पर व्यवस्थित शोध खोज और साहित्य सृजन सन् १८५० के पश्चात् ही प्रारभ हुए और इस दिशा मे पिशेल, होनले, फलांग, पुल्ले, हूलर, जैकोबी, बेबर, लेसन, फलीट, राइस द्वय, टामस, लूडर्स, वर्गस, कीलहान, गिरनाट, स्मिथ, हुल्टज्य, क्लैट, प्रोल्डन वर्ग, किटेल, कनिंगहम हर्टले, मोनियर, विलियम्स, विन्टर निट्ज, पीटरसन, ल्यूमेन आदि विभिन्न जातीय प्रसिद्ध यूरोपिय प्राच्यविदो तथा भगवान लाल इन्द्र जी भार. जी० भडारकर, भाऊदजी, के० बी० पाठक, ध्रुव, तैलग, राजेन्द्र लाल मित्र, सतीश चन्द्र विद्याभूषण, टी० के० लड्डु, के० पी० जायसवाल मादि प्रख्यात भारतीय विद्वानों ने प्रशसनीय कार्य किया। किन्तु इस शताब्दी के प्रारंभ से ही इस कार्य मे कुछ शिथिलता पाने लगी। प्रथम विश्व युद्ध के समय से तो उपरोक्त प्रकार के स्वतत्र प्रकाड यूरोपीय विद्वानों का इस क्षेत्र मे प्रायः अभाव ही हो गया । केवल पुरातत्त्वादि विभागों से सम्बषित कतिपय राजकाय अधिकारी ही प्रसगवश कुछ कार्य करते रहे। किन्तु साथ ही साथ यह सतोष है कि अनेक जैनाजैन भारतीय विद्वान इन कार्यों के सम्पादन में लगे Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८) यद्यपि प्रथम जैन पुस्तक दिगम्बर सम्प्रदाय द्वारा ही सन् १८५० मे मुद्रित कराई गई थी, किन्तु प्रारभ में रूढिग्रस्थ मन्धश्रद्धालु जैन समाज ने छापे का अत्यन्त विरोध किया । एक जैन समाज ने ही क्या, प्रारभ मे हिन्दू समाज ने भी उनका तीव्र विरोध किया। सन् १८६३ मे प्रकाशित श्री गोविन्द नारायण माडगावकर कृत 'मुम्बई वर्णन' नामक पुस्तक के पृ० २४८ पर लिखा है कि"हमारे कुछ भोले व नैष्ठिक ब्राह्मण छपे कागज का स्पर्श करते डरते थे और भाज भी डरते हैं । बम्बई में और बम्बई के बाहर भी ऐसे बहुत से लोग है जो छपी हुई पुस्तक को पढना तो दूर रहा, छपे कागज को स्पर्श तक नही करते हैं।" यही दशा, बल्कि इससे भी कुछ बुरी दशा जैन समाज की थी । जैनी लोग अपने मन्दिरों के शास्त्र भडारों मे सग्रहीत हस्तलिखित ग्रन्थों को देव प्रतिमा तुल्य पवित्र और पूज्यनीय मानते थे और उनका विधिवत् दर्शन पूजन करना ही अलम् समझते थे। यदि किसी साधु या विद्वान् पडित आदि का समागम हुआ तो पुनः स्नानादि द्वारा शरीर शुद्धि करके मन्दिर मे रखे शुद्ध वस्त्रो को पहन कर दरी आदि के फर्श पर भी चटाई बिछाकर और शास्त्र जी को चौकी पर विराजमान करके बडी विनय पूर्वक उनका वाचन कर श्रद्धालु जनता को सुनाया जाता जाता था । शास्त्र सभा का डिसप्लिन बडा भक्ति और विनय पूर्ण होता था, और प्राय अब तक यही प्रथा है। जिन गृहस्थो को शास्त्र स्वाध्याय का नियम होता वे भी शरीर शुद्ध कर पूजादि के उपयुक्त शुद्ध वस्त्र घोती दुपट्टा आदि पहन मन्दिर के स्वाध्याय भवन मे ही बैठकर विनय पूर्वक उक्त ग्रन्थो का स्वाध्याय कर सकते थे । सामान्य दैनिक वस्त्र चाहे वे कितने भी शुद्ध क्यो न हो उन्हे पहने हुए शास्त्र जी को स्पर्श भी नही किया जा सकता था। शूद्रो का तो मन्दिर में या शास्त्र भडार में प्रवेश भी नही हो सकता था और स्त्रियाँ भी शास्त्रों को नहीं छू सकती थी। अन्य धर्मावलम्बी सवर्ण व्यक्तियों को भी ये शास्त्र इसलिए नही दिखाये जाते थे कि वे लोग मिथ्याश्रद्धानी होने कारण हमारी देव गुरु के समकक्ष पूज्य जिनवाणी की Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) विनय, निन्दादि करेंगे। तब फिर उनके छपाने में दो जिसमें कि किसी भी जाति का कोई भी व्यक्ति कैसी भी अपवित्र अवस्था मे, चमड़े के जूते प्रादि पहने हुए ही उन्हें छूएगा, कहीं भी पटक या डाल देगा, छापे की स्याही में चर्बी आदि महा पवित्र पदार्थों के होने की संभावना और छापे के विकास के साथ साथ अविष्कृत मशीन से बने महा अशुद्ध कागज पर उनका छपना, छपने के पश्चात् भी उनकी पूर्ववत विनय बनाये रखना असंभव होना आदि सर्व प्रकार उन परम पूज्य शास्त्रो की भविनय और विडम्बना ही होगी जो कि एक महापाप होगा । यह सब उस समय की रूढिभक्त और प्राधुनिक प्रकाश की दृष्टि से अविकसित श्रद्धालू समाज जिसके लिए उक्त शास्त्रो का महत्व केवल धार्मिक ही था, कैसे सहन कर सकती थी । उसकी दृष्टि में तो यत्न पूर्वक वेष्ठनो मे लिपटे हुए और देव मन्दिरो के सरस्वती भडारो मे विराजमान वे सब ग्रन्थ बिला लिहान भाषा, भाव, विषय, कर्ता, प्राचीनता, प्रमाणीकता श्रादि के समान रूप से पूजनीय एव माननीय थे । उनका अन्य कोई महत्त्व या मूल्य उसकी दृष्टि मे था ही नही । छापे के इस प्रबल विरोध का बहुत कुछ आभास दिगम्बर जैन महासभा के मुख पत्र हिन्दी जैन गजट वर्ष २ अक १४ (८ मार्च सन् १८९७ ई० ) के पृष्ट १३ पर प्रकाशित निम्नलिखित समाचार से हो जाता है- "जैन शास्त्रों का छपना - ता० २४ जनवरी सन् १८६७ को जैनोन्नति कारक सभा प्रयाग का १७ वा समागम हुआ । यह समागम इस विषय पर विचार करने के लिये किया था कि 'जैन शास्त्र छपने चाहियें या नहीं ।' सभा के नियतानुसार स्थानिक जैनियो को इस विषय की सूचना दी गई थी। लाला बच्चूलाल ने जो इस विषय के व्याख्यान दाता नियत किये गये थे बड़े जोर शोर से एक घंटे तक जैन शास्त्रो के छपने के निषेध मे बहुत कुछ कहा । उनके पश्चात् बहुत से भाइयो ने उनकी बात को पुष्ट किया किन्तु उनके विपक्ष में किसी ने कुछ भी नही कहा । और उपस्थित महाक्षयो में से सबने एक मत होकर इस बात को स्वीकार किया कि हम छपे हुए ग्रंथ न लेंगे न पढेंगे न पढ़ावेंगे और इसके प्रचार को यथा शक्ति रोकेंगे । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) * जो कि आजकल इस विषय का बहुत कोलाहल है इस वास्ते इस सभा ने प्रयागस्थ जैनियो की अनुमति सर्व माधारण पर प्रकाशित करने के अभिप्राय से इस लेख को मुद्रित कराना आवश्यक समझा ।-सभा की आज्ञानुसार सुमतिचन्द्र मन्त्री जैनोन्नति कारक सभा, प्रयाग । लाला बच्चू लाल जी तथा इनके सहयोगियों के छापा विरोधी कितने ही लेख भी जैन गजट आदि पत्रो मे प्रकाशित हुए थे और अन्य कितने ही स्थानो की जैन पचायतो ने भी उपरोक्त जैसे प्रस्ताव पास किये ये। ता० १७ जनवरी सन् १८६८ के जैन गजट मे प्रकाशित अपने एक लेख मे इन्ही बच्चू लाल ने स्पष्ट लिखा था कि "जैन शास्त्रो का छपाना महान अविनय है अत' भयङ्कर पाप बघ का कारण है, और जो जैन शास्त्र अजैनो के हाथ मे पहुचे भी हैं वे श्वेताम्बर आम्नाय के ही पहुचे । दिगम्बरो को ऐसी मूर्खता नहीं करनी चाहिए, उन्हे अपने शास्त्र कदापि नही छपाने चाहिये और न दूसरों के हाथ मे देने की भूल करनी चाहिये।" इसमे सन्देह नही कि उनके धर्म भीरु और अदूरदर्शी सामियो ने इन सदुपदेशो पर आचरण करने का अथक प्रयत्न किया। अभी १०-१२ वर्ष पूर्व ही जब धवलादि दिगम्बर आगम ग्रन्थो का मुद्रण प्रकाशन प्रारम्भ हो रहा था तो कई एक अनेक पदवियो एव उपाधियों से अलकृत दिग्गज जैन पण्डितो ने आगम अथो के छपाये जाने और गृहस्यो द्वारा उनका पठन पाठन किये जाने का भारी विरोध किया था। आज सन् १९५० मे भी यत्र तत्र ऐसे धर्म भीर श्रीमान मिल ही जाते है । जो छपे शास्त्रो का पढना तो दूर रहा उन्हे छूने मे भी पाप समझते हैं और परम पूज्य जिन वाणी की इस दुर्दशा पर आसू बहाया करते हैं। किन्तु, समाज मे अब ऐसे विवेकशील व्यक्ति भी उत्पन्न होने लगे जिन्होंने नवीन प्रणाली के अनुसार शिक्षा प्राप्त की थी और जिन्हे पाश्चात्य विचार धारापो के सम्पर्क में आने का सुयोग मिला था। शनै शनैः उनकी सख्या बढ़ने लगी। ये नव युवक समय के साथ-साथ चलना चाहते थे, प्रगतिशील Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) 1 युग की प्रगति से पिछड़ जाने के लिए तैयार नही थे, वे नवीन सभ्यता के free प्रकाश मे आने वाले आविष्कारो को अपनाना अन्य समाजों के उन्नति| शील वर्गों की भाति ही अपनी समाज के लिए भी परम आवश्यक समझते थे । उनका विश्वास था कि अब अन्धकार को भेद कर बाहर प्रकाश में आने का युग है, अतएव उन्होंने इरादा कर लिया कि अपने अमूल्य साहित्यिक रत्नों को मुद्रण कला की सहायता से बहुलता के साथ प्रकाश मे लाकर स्वयं उनसे अधिकाधिक लाभ उठावें ही, साथ ही दूसरे जिज्ञासुओं को भी अपने धर्म, साहित्य और संस्कृति के अध्ययन करने का तथा महत्व समझने का सुयोग प्रदान करें। फलस्वरूप १६वी शताब्दी के मध्य के लगभग छापे के पक्ष मे ग्रान्दोलन आरम्भ हुआ । प्रथम पच्चीस वर्षों में वह कुछ प्रगति न कर पाया किन्तु सन् १८५७ के पश्चात् इस आन्दोलन ने उग्ररूप धारण किया। उधर इस आन्दोलन के बढते हुए बल के साथ-साथ स्थिति पालको का विरोध भी अषिकाधिक जोर पकडने लगा । वर्तमान शताब्दी के प्रारम्भ तक यह द्वन्द बडे सघर्ष के साथ चला । आन्दोलन कर्त्ताओं को धमकिये दी गई, पीटा गया, जाति से बहिष्कृत किया गया, उनका मन्दिर में आना बन्द किया गया, स्थान स्थान मे इस प्रश्न को लेकर दल बन्दिये हो गई । हमारे नगर मेरठ का ही एक दिलचस्प उदाहरण है। एक महाशय एम० ए० एल० एल० बी० वकील ये और वे उस युग के एम० ए० थे जब प्रान्त भर मे दर्जन दो दर्जन से अधिक एम० ए० नही थे । किन्तु वे इतने कट्टर स्थिति पालक थे और धर्म ग्रन्थो की छपाई के तथा छपी पुस्तकों को मन्दिर मे लाने के इतने भारी विरोधी थे कि एक बार जब कुछ नवयुवक आन्दोलन कर्त्ताओ ने देव पूजन को उपयुक्त शुद्ध वस्त्रादि पहन और सामग्री लेकर एक रूपी पुस्तक की सहायता से पूजन करने का इरादा किया तो जिस वेदी में देव प्रतिमाएँ विराजमान थी, वे महाशय उक्त वेदी के सामने दोनों हाथों के दुपट्ट का पर्दा तानकर और बेदी को ढक कर खड़े हो गये और यह कहा कि किसी प्रकार भी छपी पुस्तक से पूजन Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) नहीं करने देंगे । जवतक वे पूजोधत नवयुवक वेदी गृह मे रहे ये महाशय अपने स्थान से तनिक भी टस से मस न हुए। इसी प्रकार की छापा विरोधी । विविध घटनाएं स्थान स्थान मे हुई । तथापि अन्तत. २०वी शताब्दी के प्रथम दसक मे भान्दोलन सफल हो गया और विरोध शिथिल प्राय हो गया । इसमें भी सन्देह नही कि उक्त प्रान्दोलन मे श्वेताम्बर सम्प्रदाय ने कुछ शीघ्र ही सफलता प्राप्त करली थी। श्वेताम्बर समाज में धार्मिक विषयो में उनके बहु संख्यक साधु वर्ग का ही प्रभुत्व रहता आया है, उनके निर्णयो और आदेशो को गृहस्थ जन 'बाबा वाक्य प्रमाणम् मानते हैं और इस प्रसग में उनकी यह प्रवृत्ति सुफलदायी ही हुई । इन साघुरो मे से कुछ दूरदर्शी महात्माओ को यह सुबुद्धि शीघ्र ही उत्पन्न हो गई कि जब छापा देश मे आ ही चुका है और देर सवेर इसे अपनाना ही होगा तो क्यो न धर्म ग्रन्थो की छपाई पर से शीघ्र ही प्रतिबन्ध हटा दिया जाय । फल यह हुआ कि दिगम्बर साहित्य की अपेक्षा श्वेताम्बर साहित्य बहुत पहिले छपने लगा और सन् १८७० से १८९० के बीच सैकडो श्वेताम्बर ग्रन्थ प्रकाश में आ गये । सौभाग्य से यह समय ऐसा था जब दर्जनो उच्च कोटि के पाश्चात्य विद्वान् और प्राच्यविद भारतीय धर्मों, दर्शनो, सस्कृति, पुरातन साहित्य एव कला, पुरातत्त्व, जातियों के इतिहास प्रादि विविध विषयो के अध्ययन मे गहरी दिलचस्पी ले रहे थे। छापे के समर्थक उक्त श्वेताम्बर साधुओं और गृहस्थो ने इन विद्वानो के लिए अपना साहित्य सुलभ कर दिया और उनके द्वारा उसके उपयोग मे किसी प्रकार की रुकावट डालने के स्थान मे उल्टा उन्हे भरसक प्रोत्साहन, सहयोग और सुविधा प्रदान की। परिणामस्वरूप, जबकि १६ वी शताब्दी के मध्य तक बाह्य जगत के विषयो मे साधारण जीर्ण रुचि रखने वाले विद्वानो को जैन विषयक जो कुछ टूटी फूटी अल्प जानकारी जैनेतर भारतीय साहित्य से जैन समाज के किसी अग विशेष बाह्य सम्पर्क के कारण, अथवा शीघ्र ही ध्यान को आकर्षित कर लेने वाले किसी जैन पुरातत्त्व से हुई थी तथा उसी से सतोष कर इन विद्वानो Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * इस धर्म र समय के विषय में अपनी अपनी भारत बनाली मोर प्रकट करती थीं, बससी शताब्दी के अंतिम पतुष्पाद मेंशा दिशा में कार्य करने वाले प्रतिमाशाली विशेषज्ञों को स्वा बैन साहित्य और जैलो काही सहयोग प्राप्त झे मैया । उन्हें यह भी बताया गया कि वास्तविक मालिक, सर्वप्राचीन और अधिकांश जैन साहित्य यही (श्वेताम्बर प्राममादि) हैं। ऐसा बताये जाने पर उसे वैसा ही न मानने का उनके लिए कोई कास्म भी न था। अतएव उक्त विशेषलो मोर उनके अनुकर्ता भारतीय विद्वानो का जैनाध्ययन तथा उनके सत्सबंधी अधिकाश निर्णय उसी साहित्य के आधार पर भाषारित हुप, और इस कारण वे कुछ सदोष रहे तया अशतः ही सत्य हो सके । किन्तु इसके लिए न वे जैनेतर विद्वान ही दोषी हैं और न दूर दी श्वेताम्बर साघु और उनके महस्थ अनुयायी ही। यदि कोई दोषी है तो वे दिगम्बर जैन पडित और श्रीमान है जो अपनी समाज मे बहु सख्यक शिक्षितों और अनेक श्रेष्ठ विद्वानो के होते हुए भी परस्पर को सनातनी और आन्दोलन के पक्ष विपक्ष मे पड़कर इतनी दूर तक देख ही नही सके और सभवतया बाज भी इस दिशा मे उपयुक्त दृष्टि प्राप्त करने मे सफल नही हो सके। अस्तु, जैन पुस्तक साहित्य के इतिहास का प्रारभ सन् १८५० अथवा विक्रम सवत् ११०० के लगभग से होता है। आधुनिक शैली में व्यवस्थित जैनाध्ययन का प्रारंभ और हिन्दी जैन साहित्य के प्राधुनिक युग का प्रारंभ भी इसी समय से होता है। स्वय अखिल भारतीय दृष्टि से भी राष्ट्रीयता का उदय, सांस्कृति अध्ययन का प्रारंभ और हिन्दी साहित्य का प्राधुनिक युग भी सन् १८५७ के स्वातन्त्र्य समर के उपरान्त ही सन् १८६० से अथवा वि० सं० १९२० के लगभग से ही माना जाता है । युग विभाजन-की दृष्टि से, विशेषकर दिगम्बर जैन साहित्य के मुद्रण प्रकाशन के इतिहास को तीन युगो मे विभाजित किया जा सकता है-(१)आन्दोलन युग सन् १८५०-१६०० ई०, (२) प्रगति युग सन् १६००-१६२५, और (३) वर्तमान युग-१९२५ के उपरात । Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) (१) आन्दोलन युग (१८५०-१६०० ) - जैन साहित्य प्रकाशन के इस प्रथम युग में धार्मिक साहित्य के मुद्रण प्रकाशन का आन्दोलन प्रारंभ हुआ । प्रथम पचीस वर्षो (१८५०-७५ ) मे इस मान्दोलन ने प्राय: कोई प्रगति नहीं की और इस बीच मे दो चार पुस्तके छपी हो तो छपी हो, किन्तु उनके विषयमें कुछ ज्ञात नही । सन् १८७५ और १६०० के बीच आन्दोलन ने वास्तविक जोर पकड़ा और प्रवल विरोध के होते हुए भी पुस्तकें छपने लगी । यह समय भी अान्दोलन के अत्यन्त अनुकूल पडा। देश की तत्कालीन जैन समाज की बाह्य परिस्थितिये भी. चाहे परोक्ष रूप से ही सही, उसकी प्रगति और सफलता में अत्यधिक सहायक सिद्ध हुई । सन् १८५७ के स्वातंत्र्य समर के उपरान्त दस पाँच वर्ष तो उक्त सफल महान राजनैतिक क्रान्ति से उत्पन्न व्यापक प्रातंक के शान्त होने में लगे, किन्तु धीरे धीरे महारानी विक्टोरिया की, कम से कम बाह्यत उदार नीति के कारण तथा युद्ध, विद्रोह, दगे आदि के अभाव में १६ वी शताब्दी का शेष उत्तरार्ध भारतीय प्रजा के लिए विदेशी शासन के अ ंतर्गत सर्वाधिक शान्ति पूर्ण रहा । समय की आवश्यकता और राज्य के प्रोत्साहन से शिक्षा का भी प्रचार बढा, विश्व विद्यालय स्थापित होने लगे, स्थान स्थान मे स्कूल कालिज खुलने लगे । अगरेजी मे ही नही भारतीय भाषाओ मे भी समाचार पत्र प्रकाशित होने लगे । यूरोप आदि समुद्र पार विदेशो मे भी कितने ही उत्साही एव निर्भीक भारतीय गमनागमन करने लगे । रेल पथ की स्थपना और डाक तार आदि की द्रुत व्यवस्था, जन साधारण को कूप मडूकता से बाहर निकालने लगी । अगरेजी शासन मे भारत वर्ष की सनातन एकता प्रत्यक्ष होने लगा, सम्पूर्ण देश और समाज की राष्ट्रीय तथा सामाजिक उन्नति के इच्छुक और उनके लिये प्रयत्न शील नेता भी उत्पन्न होने लगे । सनु १८८६ मे राष्ट्रीय महासभा काग्रेस की स्थापना हुई जिससे एक प्रकार के राष्ट्रीय राजनैतिक आन्दोलन का भी श्रीगणेश हो गया । पाश्चात्य विचार धाराओ की निरन्तर लगने वाली टक्करो और बढ़ती हुई बहुज्ञता के फलस्वरूप भारतीयो के सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टिकोणो मे भी विवेक, उदारता Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोर विशालता लाने की पावश्यकता प्रतीत होने लगी। धार्मिक, अन्धविश्वास अशिक्षा अथवा कुशिक्षा जन्य नाना प्रकार के वहम, जातिपांति, शुप्रास्त, कि पालकता, स्त्री जाति के प्रति अन्याय, बाल विवाह, वृद्ध विवाह, बहु विवाह, अनमेल विवाह, विषवा विवाह, दहेज मादि विनाशकारी कुरीतियाँ एवं कुप्रथाए देश और समाज के भक्तों को बुरी तरह व्याकुल करने लगी। फलस्वरूप राजा राममोहनराय तथा महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर आदि सुधारकों ने बंग प्रदेश में उत्कट सुधारवादी ब्राह्म समाज की स्थापना की, किन्तु यह संस्था बगाली समाज में ही सीमित रही। बाह्म समाज से कहीं अधिक व्यापक स्वामी दयानन्द सरस्वती का आर्य समाज आन्दोलन रहा। आर्य समाज ने जहाँ भोले हिन्दू समाज के ईसाई मिशनरियों और मुसलमान गुडो के प्रयत्नो के कारण दिन प्रति दिन क्षीणतर होते जाने मे सफल रोक लगाई, जहा उसने सनातन हिन्दू धर्म में आ घुसे अनेक वहमों, अन्धविश्वासो, पोपडम आदि के प्रति उसे सजग किया, और उसकी अनेक कुरीतियां छुड़ाईं, वहाँ मिथ्या धार्मिक दम्भावेश मे और जान बूझ कर अनभिज्ञ रहते हुए वैदिक एव हिन्दू धर्म के चिर कालीन सगी सम्बधी जैनादि धर्मों का कुत्सित परिहास और खडन भी किया तथा उनके विषय मे मिथ्या एव भ्रान्ति पूर्ण धारणाएं फैलाई। तथापि आर्य समाज और उसके नेतानो की इस प्रवृति का परिणाम जैन समाज के हक मे अच्छा ही हुआ । वह भी सचेत हो गया और उसके सुधारवादी नेताओ को अपने पक्ष में एक और प्रबल युक्ति मिल गई । अब जैन धर्म और समाज की रक्षार्थ प्रार्य समाज के प्राक्षपो का सयुक्तिक परिहार करना आवश्यक था, उन्हें समुचित प्रत्युत्तर देने थे, और अपने साहित्य को प्रकाश मे लाकर उनके तथा उनके द्वारा फैलाये गये भ्रमों एव मिथ्या कथनो का निराकरण करना था। प्रतएव आर्य समाज द्वारा किये गये आक्षेपों को लेकर जैनों द्वारा भी उस युग की शैली मे अनेक खंडन मंडनात्मक पुस्तकें लिखी गई और प्रकाशित की गई। प्रारम में फर्रुखनगर निवासी ज्योतिषी वैद्य पं. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 44 ) S जीवालील जैनी में इस भार्य जैन द्वन्द का नेतृत्व किया, उन्होंने स्वयं समाज के मन्तव्यों के विरोध में कई पुस्तकें लिखी, प्रार्य संभाजी विद्वानों अनेक शास्त्रार्थ किये, जैन ज्योतिष का भी प्रचार किया तथा जैन पञ्चनि का प्रकाशन प्रारंभ किया, और सेतु १८८४ मे 'जैन प्रकाश' नामक एक सम चार पत्र निकाला जोकि जैन समाज का सर्व प्रथम सामयिक पत्र था । देवबंद निवासी स्व० बा० सूरजभान जी वकील ने, जोकि जैन छापा आन्दोलन के प्रारण थे, इस परिस्थिति से पूरा पूरा लाभ उठाया । सामाजिक अत्याचार, बहिष्कार, र, अपमान, लाञ्छना आदि अनेक विघ्न-बाधाश्रो और अड़चनों की अवहेलना करते हुए वे सफलता प्राप्त करते ही चले गये । प्रार्य समाज के प्रति खडन मंडन मे भी उन्होने पर्याप्त भाग लिया । शनं शनै उनके सहयोगियों की संख्या पर्याप्त हो गई, जिनमे कि प० चन्द्रसेन जैन वैद्य इटाया, प० जुगलकिशोर मुख्तार सरसावा, १० मंगलसेन जैन वेद विशारद, मा० बिहारीलाल चैतन्य बुलन्दशहरी, ला० शिब्वा मल, अम्बाला छावनी, ला०ज्योति प्रशाद प्रेमी, देवबन्द विशेष उल्लेखनीय है । इस खडन मंडन के लिए अपने आर्ष ग्रन्थो में निबद्ध जैन सिद्धात के वास्तविक रहस्य को जानने और समझने की भी आवश्वकता थी और इस त्रुटि की पूर्ती स्व० गुरुवर्य १० गोपाल दास जी बरैया ने की, जोकि अपने समय के सर्व श्रेष्ठ जैन सिद्धात पारगामी एव दार्शनिक तो थे ही साथ ही साथ उदार विचारक एव सुधारवादी विद्वान भी थे । उन्होंने स्वयं भी आर्य समाजी विद्वानो के साथ कई शास्त्रार्थों में भाग लिया । उनके सहयोग से आर्य समाज विरोधी और छापा प्रचार सम्बधी दोनो ही आन्दोलनों at भारी बल मिला । धीरे धीरे जैन आर्य द्वन्द शिथिल होने लगा, अब थोडे से ही विद्वान उनके लिए पर्याप्त थे, जिनके प्रयत्नो के फलस्वरूप और विशेष कर लाभ शिब्बामल के उत्साह पूर्ण सहयोग से आगे चलकर अम्बाला दिगम्बर जैन शास्त्रार्थ सघ की स्थापना हुई। कई दशक पर्यन्त इस संघ के विशेषज्ञ विद्वानो ओर वादियो ने आर्य समाज से खूब लोहा लिया । कुछ समय के उपरात इसकी भी आवश्यकता नही रह गई । फलस्वरूप उक्त सघ ने प्रबं Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम है । ( ) उद्देश्य स्थान कार्य क्षेत्र सभी में परिवर्तन क मदर के बाद नवीन शासन व्यवस्था की स्थापना के साथ ही साथ ब्राह्मरण जैन विद्वेष एक अन्य दिशा मे भी चरितार्थ हुआ । विदेशी शासकों की अन्भिज्ञता का अनुचित लाभ उठाकर सनातनी हिन्दुओं ने स्थान स्थान में जैन रथोत्सव और मन्दिर निर्माण का भी विरोध किया और जैनी दण्डिनम् जैसी अत्यन्त प्राक्षेपपूर्ण पुस्तकें प्रकाशित की। उभय पक्ष मे मुकदमे बाजियों भी हुई, और तत्सम्बधी खडन मडनात्मक साहित्य भी प्रकाशित हुआ । किन्तु तत्कालीन सरकार ने सर्व धर्म स्वातन्त्र्य तथा किसी के धार्मिक मामलो मे हस्तक्षेप न करने की अपनी नीति स्पष्ट घोषित करदी थी जिसके फलस्वरूप जैनी इस आक्रमण से भी अपने धार्मिक सत्त्वो की रक्षा करने मे सफल हुए । बा9 सूरज भान जी वकील को जैन समाज का दादा भाई नौरोजी ठीक हो कहा जाता है । उनकी समाज सेवा का काल इस युग मे सर्वाधिक की होने के साथ ही सर्वतोमुखी भी रहा है । उन्होने अपने उत्साही सहयोगिनों के साथ समाज मे शिक्षा प्रचार करने का, विशेषकर स्त्रियो और बालिका की शिक्षा का, जिसका कि विरोध स्थिति पालक दल छापे की भाषि ही दृढ़ता के साथ कर रहा था, बीड़ा उठाया । स्थान-स्थान में जाकर प्रार करना, व्याख्यान देना, शास्त्र का प्रक्त और स्वाध्याय प्रेम बढ़ाना, बाल एवं कन्या पाठशालायें खुलवाना, छोटे २ सरल ट्रैक्टों तथा व्याख्यान मालाओं द्वारा सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयत्न करना आदि अनेक समयम प्रोग्राम इन्होने अपना बाट सूजभाव की वे स्वयं अपने सम्पादकत्व में 'जैन ज्ञान प्रकाश' (हिन्दी) 'जैच हित जपदेशक' (उ) जैसे समार पत्र निकाले । सन १६७६ से १ वृत्तीलान, मुब्बी मुकन्दलाल पं प्यारे बाल आदि के सहयोग से सभा की स्थापना हुई र 'जट' (दिल्ली) ला J ३६६४ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किया । कालान्तर मे सभा की नीति से मतभेद होने के कारण कुछ अधिक सुधारवादी सज्जनों ने जैन यंग मेन्स एसोसियेशन (भारत जैन महा मडल) की स्थापना की, जिसने जैन गजट नाम से ही प्रग्रेजी भाषा मे अपना एक मासिक पत्र निकालना प्रारभ किया। हिन्दी जैन गजट अभी तक महा सभा की ओर से ही निकल रहा है। सन् १८६७ के अत मे महा सभा ने अपने एक अधिवेशनमे बालिका शिक्षाके पक्षमे भी प्रस्ताव पास कर दिया था। महासभा के प्रचारक ग्राम २ मे पहुचे। उदाहरणार्थ लेखक के मातामह स्व० ला. शिताबराय जी ने, जो जिला मेरठ की तहसील बागपत, परगना बडौत के सुदूरस्थ ग्राम ख्वाजा नगला के निवासी थे और महासभा के एक उत्साही सदस्य मौर कार्यकर्ता थे, आस पास के कितने ही प्रामो के जैनियो मे शिक्षा प्रचार का स्तुत्य प्रयत्ल किया था और कई एक जाट, बढई प्रादि अजैनो को जैनी बनाया, जो कि आजन्म इस धर्म के भक्त रहे। इसी युग मे शोलापुर के प्रसिद्ध समाज सेवी सेठ रावजी हीराचन्द नेमचन्द दोशी ने समय की आवश्यकता का अनुभव करते हुए, सितम्बर सन् १८८४ ई० मे 'जैन बोधक' नामक मराठी-हिन्दी-गुजराती पत्र की स्थापना की थी। सन् १८९३ मे दि० जैन महासभा के मथुरा में होने वाले चतुर्थ वार्षिक अधिवेशन मे जब छापे के प्रश्न को लेकर घोर वादविवाद हुआ तो उक्त राव जी ने छापे का जोरदार समर्थन किया था और उसी समय से उन्होने अपने जैन बोधक मे शास्त्रीय प्रमाणो और युक्तियो के द्वारा छापा पान्दोलन को अत्यधिक प्रोत्साहन देना प्रारम्भ कर दिया। महासभा के इसी अधिवेशन मे प्रबल विरोध के रहते हुए भी छापे के पक्ष मे प्रस्ताव पास हो गया तथा महासभा के मुख पत्र जैन गजट के निकाले जाने की योजना हुई। इसी समय प्राचीन पार्ष सैद्धान्तिक ग्रन्थो के अध्ययन की प्रवृत्ति भी चल पड़ी जिसमे पं० गोपालदास जी बरैया विशेष सहायक हुए। अभी तक दिगम्बर आम्नाय मे पागम के रूप में अन्यराज गोमट्टसार की ही प्रसिद्धि मोर प्रचलन था, किन्तु अब यह बात सुस्पष्ट रूप से प्रकाश मे माई कि गोमट्ट Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) सारादि के भी प्राधार भूत प्रति प्राचीन एवं विशालकाय ग्रन्थ धवलादि हैं जिनकी एक मात्र ताडपत्रीय प्रति मैसूर राज्य के अन्तर्गत मूडबद्री के प्राचीन शास्त्र भण्डार मे सुरक्षित है । अतएव उक्त राव जी ने उन महान श्रागम ग्रन्थों के उद्धार का प्रयत्न चालू कर दिया। इस कार्य में उन्हे उन्ही जैसे धर्म प्राण समाज सेवी धनिक धारा निवासी स्व० बा० देवकुमार जी तथा बम्बई के दानवीर सेठ माणिकचन्द्र जी जोहरी जे० पी० आदि सज्जनो का बहुमूल्य सहयोग प्राप्त हुआ । इन महानुभावों के २५-३० वर्ष पर्यन्त सतत् उद्योग करते रहने के फलस्वरूप धवलादि ग्रन्थो की प्रतिलिपिया मूडबद्री के भण्डार की सीमा के बाहर निकल आई । बा० देवकुमार जी ने धारा मे जैन सिद्धान्त भवन (दी सेन्ट्रल जैना मोरियटल लाईब्रेरी) नामक महत्त्वपूर्ण जैन पुस्तकालय एव सग्रहालय की स्थापना करके साहित्यिक शोध खोज एव ग्रन्थ प्रकाशन के. कार्य को और भी प्रगति दी । दान वीर सेठ माणिकचन्द के उद्योग से अखिलभारतीय जैनो के विवरण से युक्त एक जैन डायरेक्टरी प्रकाशित हुई । माणिकचन्द्र दि० जैन ग्रन्थ माला तथा माणिकचन्द्र दि० जैन परीक्षा बोर्ड बम्बई की स्थापना का श्रेय भी इन्हें ही है, और दि० जैन महासभा की बम्बई प्रान्तीय शाखा के प्रमुख कार्यकर्त्ता भी यही थे । साहित्य प्रचार और छापे के भारी समर्थक बाल ब्रह्मचारी प० पन्नालाल जी बाकलीवाल ने काशी मे दिगम्बर जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था की स्थापना की और उसके अपने ही प्रेस मे जयपुर आदि मे हाथ से बने शुद्ध स्वदेशी कागज पर शास्त्राकार खुले पन्नो मे अपने यहाँ ही तैयार की गई स्याही से सवर्ण कर्मचारियो की सहायता द्वारा धार्मिक ग्रन्थो का मुद्रण प्रकाशन प्रारम्भ किया । इस योजना द्वारा उन्होने स्थिति पालक दल के विरोध की तीव्रता को अत्यन्त शिथिल कर दिया। काशी में थोड़े ही काल रहने के उपरान्त यह सस्था कलकत्ते को स्थानान्तरित करदी गई। संस्था it वहां चालू करके बाकलीवाल जी बम्बई चले गये जहाँ उन्होंने देशहितैशी पुस्तकालय' नामक एक सार्वजनिक हिन्दी प्रकाशन संस्था 1 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४० ) विदेश हितंची' लाखक एक भी नवना किया थोड़े समय के उपन्त उन्होंने नों को ब नाकर कार्यालय भोर जैन हिलेची (मासिक) के रूप में परिवर्तित कर दिया । झगे चलकर उपरोक्त सस्था की ही एक लाखा 'हिन्दी बना रत्नाकर कार्यालय बस्बई के नाम से प्रसिद्ध हुई । बाकलीवाल जी ने ही सर्व प्रथम बंगाली समाज मे जैन धर्म का प्रचार करने का विचार किया और उसके हेतु बसला भाषा मे 'जैन धर्मोर किंचित परिचय' तथा 'जैन सिद्धान्त दिग्दर्शन' ताम्रक मुस्तकें सन् १९१० मे निर्माण की । बगला पत्र 'जिनवासी' के जन्मदाता भी नहीं थे। इस प्रकार इस युग के अन्त तक छापा आन्दोलन प्रायः सफल हो गया था। विरोध उसके पश्चात् भी दसियो वर्ष चलता रहा किन्तु वह पर्याप्त शिथिल हो गया था। इस युग प्रकाशनो मे तिनोक्त तीन प्रकार को 'पुस्तकों का ही बाहुल्य था - (१) धार्मिक खण्डल मण्डनात्मक, विशेषकर आर्य समाज के प्रक्षेपों को लक्ष्य मे रखकर, (२) मोटी मोटी सामाजिक कुरीतियो के निवारणार्थ लिखे गये छोटे छोटे ट्रॅक्ट प्रादि, (३) पूजा पाठ, भजन विनती, व्रत कथाए, कतिपय पुराण चारित्र श्रादि ग्रन्थ । इस युग मे पुस्तक प्रकाशन का कार्य विभिन्न व्यक्तियो द्वारा स्वतन्त्र रूप से प्राय. निस्वार्थ एव धर्मार्थ भाव से ही अधिक चला। लाहौर के हकीम ज्ञानचन्द्र जैनी तथा देवबन्द - सहारनपुर के ला० जैनीलाल ने विशेषकर तीसरे प्रकार की छोटी छोटी पस्तकें बहु सख्या मे प्रकाशित की। खण्डन-मडनात्मक साहित्य विशेषकर फर्रुखनगर, इटावे, अलीगढ़ और सहारनपुर से प्रकाशित हुमा । इन सबके अतिरिक्त इसी युग मे हिन्दी भाषा और साहित्य के आधुनिक युग का प्रारम्भ हुआ । लोक भाषा चोर बोक साहित्य के रूम से उसकी स्वतन अत्ता को प्रतिष्ठित करने के प्रयत्न चालू हुए। शाधुनिक खड़ी बोली की तीन . पद्य शैलियों का सूत्रपात हुला । हिन्दी के पुस्तक प्रकाशन और सामग्रिक Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) प्रत्र प्रचालन का प्रारम्भ हमा; मग इस मामा-हिन्दी भानोमान का प्रवर्तन एवं प्रधान नेतुन लिया राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द सीमाई०६०ने । सबा विद्याप्रसाद जीबन सकल से और सजनेम शिक्षा विभाग के एक स्त्र प्रदाधिकारी थे। ये हिन्दी के भारी समर्थक, प्रचारक और पक्षपाती थे। उर्दू और ममेषी के पक्षमातियो के तीव्र विरोध को चुनौती देकर उन्होंने हिन्दी की मकान मस्स से स्था की और शिक्षा विभाग में उसकी ससा को अक्षुण्ण बना दिया। उन्होने हिन्दी मे शिक्षा सम्बन्धी एक लोकोपयोगी किलनी ही पुस्तके स्वय लिखी तथा दूसरो से लिखाई । उनकी प्रसिद्ध पुस्तक 'इतिहास तिमिर नाशक' की कोई दिन बड़ी ख्याति रही । एक प्रकार से प्राधुनिक खड़ी कोली के साप जन्मदाता ही समझे जाते हैं । स्वय भारतेन्दु बा० हरिश्चन्द्र इन्हे अपना गुरु मानते थे, और उन्होने अपना 'मुद्राराक्षस नाटक इन्हे ही समर्पित किया था। इलाहबाद निवासी, खण्डेलवाल जैन बा० रतनचन्द्र बकील भी हिन्दी के इस युग के अच्छे लेखक थे। उनका 'नूतन चरित्र' इडियन प्रेस, प्रयाग ने प्रकाशित किया था। न्याय सभा नाटक,भ्रमजाल नाटक, चातुर्थार्णव,वीरनारायण, इन्दिरा, हिन्दी उर्दू नाटक प्रादि उनकी कई अन्य रचनायें भी, जिनमे से कुछ मौलिक कुछ अंग्रेजी आदि से अनूदित तथा कुछ प्राधार लेकर लिखी गई थी, मुद्रित प्रकाशित हुई। पारा के जमीदार अग्रवाल जैती बार जैनेन्द्र किशोर, पारा की नागरी प्रजारिणी सभा तथा प्रारणेत समाल्मेन्नक सभा के उत्साही कार्यकर्ता थे। मे हिन्दी के सबेखक मोर सुकवि थे। उनके द्वारा रचित खगोल विज्ञान, कमलाबारी, मनोरमा रूपन्यास प्रादि कई पुस्तके तथा जैन कालो के आधार के लिखे हुए सोसांसती प्रति कई नाटक प्रहसनादि को थे। इन्होले हिन्दी बैल अवह कर भी कई वर्ष सम्मान किया और पाने की बारी हितैषिणी पत्रिका को इतका जीवन चरित्र की प्रायशिल इमा। भी जाना जानामि जैन और जयपुर के निकासी के । ये साल Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) एशियाटिक सोसाइटी तथा थियोसोफिकल सोसाइटी के भी सदस्य थे। कई देशीय भाषामो पर इनका अधिकार था किन्तु हिन्दी के ये बड़े प्रेमी थे और नागरी के प्रचार मे सदैव प्रयत्नशील रहते थे। आपने हिन्दी के कई समाचारपत्र निकाले जिनमें सर्वप्रसिद्ध 'समालोचक' था जिसे आपने बड़े परिश्रम पोर अर्थ व्यय से चार वर्ष तक निकाला। इस पत्र मे बडे मार्के के लेख निकलते थे । इसके कारण हिन्दी ससार मे आपकी बडी ख्याति हुई । नागरी प्रचारिणी सभा के बडे सहायक थे और जयपुर मे एक 'नागरी भवन' नामक श्रेष्ठ पुस्तकालय स्थापित किया। कमल मोहिनी भंवरसिंह नाटक, व्याख्यान प्रबोधक और ज्ञान वर्णमाला, ये तीन पुस्तक उन्होंने स्वय लिखी थी तथा 'सस्कृत कवि पचक' प्रादि हिन्दी के कई अच्छे प्रथ इन्होने अपने ही खर्चे से प्रकाशन कराये थे। ___इस प्रकार, जैन साहित्य प्रकाशन के इस प्रथम युग में भी जैन समाज ने सर्वतोमुखी योग दान किया । २. प्रगति युग ( सन् १६००---१९२५ ई० ):'पच्चीस वर्ष का यह काल जैन प्रकाशन का प्रगति युग कहा जा सकता है। इस युग मे अन्य मतो के खडन मडन का कार्य, जैसा कि ऊपर सकेत किया जा चुका है, सीमित, संकुचित एव शिथिल होता चला गया। तथापि, उसी के कारण जो कितने ही जैन अनेक सनातनी हिन्दुप्रो की भाँति, स्वधर्म की वास्तविकता से अनभिज्ञ होने के कारण धर्म त्याग करते चले जा रहे थे उस मे भारी रोक थाम हो गई । प्रत्युत्त कुवर दिग्विजयसिंह, बाबा भागीरथ जी वर्णी, पं० गणेश प्रसाद जी, मु० कृष्ण लाल वर्मा, महषि शिवव्रत लाल वर्मन, प्रो० धर्मचन्द्र, स्वामी कर्मानन्द जी आदि अनेक कट्टर जैन विरोधी जैनेतर विद्वान भी जैन धर्म के परम भक्त और उत्कट प्रचारक हो गये । अब समाजगत मोटी मोटी कुरीतियों की प्रोर सकेत मात्र करमा पर्याप्त नही रह गया। सामाजिक संगठन को दृढ़ करने और विवाह संस्था सम्बन्धी विभिन्न धार्मिक सामाजिक प्रश्नों की विशद मीमासा करने की मावश्यकता Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुई। बाल विवाह वृद्ध विवाह बह विवाह प्रादि का विरोध अन्तर्जातीय विवाह और विधवा विवाह का समर्थन, विवाह प्रादि में फिजूल खर्ची पर प्रतिबन्ध, वेश्या नृत्य, भडवे, नक्कालो आदि का नाच गाना और कन्या विक्रय की बन्दी, दहेज मे कमी, जनविधि से सस्कारो का किया जाना, मादि सुधारों का प्रचार किया जाने लगा। स्त्री शिक्षा, दस्सा पूजाधिकार तथा शुद्धि प्रान्दोलन उठाये गये देवबन्द के एक जैनी वकील जो मुसलमान हो गये थे उन्हें बा० सूरजभान जी और उनके साथियों ने तीव्र विरोध की उपेक्षा करके फिर से जैनी बनाया और समाज मे शामिल किया। दस्सो के पूजाधिकार को लेकर मेरठ मे एक युगान्तरकारी मुकद्दमे बाजी भी हुई जिसमे प० गोपाल दास जी बरैया ने भी दस्सा पूजाधिकार का ही समर्थन किया। श्राविकाश्रम, विधवाश्रम, अनाथालय, गुरुकुल, छात्रालय आदि खोले गये। और अखिल भारतीय जैन समाज के विभिन्न उपसम्प्रदायो के बीच सद्भाव एव सामजस्य स्थापित करने के प्रयत्न चालू हुए। किन्तु साथ ही तीर्थों को लेकर उभय सम्प्रदायों के मध्य मुकद्दमेबाजी भी खूब चल निकली। इन कार्यों मे भी प्राय बा० सूरज भान जी ही अग्रणी थे, उनके कई एक साथियो ने अपनी शुद्ध साहित्यिक अभिरुचि के कारण प्रचार कार्य मे धीरे धीरे उनका साथ छोड दिया, किन्तु उनके स्थान मे उन्हे कितने ही अन्य उत्साही साथी प्राप्त होते गये, और उपरोक्त विषयो एव समस्याओ पर भी पर्याप्त साहित्य प्रकाशित हुआ। समाज सुधार के अतिरिक्त इस युग की दूसरी प्रवृति धर्म प्रचार थी। मार्य समाज के बढ़ते हुए प्रचार से प्रभावित होकर जन नेताओं ने भी वाह्य जनता मे स्वधर्म प्रचार करना प्रारम्भ किया । इस कार्य का श्रीगणेश वस्तुत. पंजाबी स्थानकवासी (बाद को श्वेताम्बर मन्दिर मार्गी) साधु स्वामी आत्माराम जी ने किया था। उन्होने अन्य जैन नेताओ के साथ साथ आर्य समाज के विरोध का दृढता से मुकाबला किया, जैनियों का स्थितिकरण किया और कई एक अग्रेजो को भी जैन बनाया। उन्होंने स्वयं कई पुस्तकें लिखी तथा उनकी 'स्मृति मे स्थापित आत्माराम जैन ट्रेक्ट सोसाइटी अम्बाला से अनेक उपयोगी Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इंग प्रवराय प्रकाशित हुए। जिस प्रकार स्वामी समायण शाम के प्रतिभा शाली शिष्य स्वामी विवेकानन्द अमेरिका प्रादि देखने में दिन धर्म का प्रचार करने के लिये गये थे, उसी प्रकार मोर लपप गी समय स्वामी असारमा के सुयोग्य शिष्य स्व० वीरवन्द राघव जी प्रात्री भी वगुरु की प्रेरणा से यूसेस अमेरिकन मदि मे जैन धर्म के प्रचारार्थ पये मोर उन्होने शिकाओं के सर्व धर्म सम्मेलन में भी महत्व पूर्ण भाग लिया । उबके पश्चात स्व. बैरिस्टर, बममन्दर लाल जैनी, चीफ जज इन्दौर ने तो यूरोप मे जैन धर्म प्रचार को अपने जीवन का व्रत ही बना लिया था। उन्होने कई बार विदेश यात्रा की और इग्लैंड मे तो वे पर्याप्त समय तक रहे भी। कितने ही अंगरेजो को उन्होने जैनी बनाया जिनसे श्री हर्बर्ट वारेन, जे० गौईन उनकी पत्नी आदि उल्लेखनीय है। इन जे० एल० जैनी ने ही लन्दन से 'कृषभ जैन फी लैन्डिा लायब्रेरी' नामक पुस्तकालय तथा जैन केन्द्र की स्थापना की, जैन धर्म पर अग्रेजी मे स्वय कई स्वतन्त्र पुस्तके लिखी तथा तत्त्वार्थ मुगादि प्राचीन ग्रन्थों के अनुवादादि तैयार करके प्रकाशित कराये, वर्षो पर्यन्त मंगरेजी जैन राजट का योग्यता के साथ सुसम्पादन किया, और मृत्यु के समय अपनी समस्त सम्पत्ति का इन्ही उद्देश्यो मे उपयोग किये जाने के लिये एक ट्रस्ट कर गये। उन्ही की भाँति स्व० बैरिस्ठर चम्पतराय जी ने भी विदेशो मे जैन धर्म प्रचार को ही अपना लक्ष्य बनाया, इसी उद्देश्य से अनेक बार यूरोप और अमेरिका की यात्रा की और कितने ही यूरपियन स्त्री पुरुषो को जैन धर्म मे दीक्षित किया । जैन धर्म पर अगरेजी मे जो स्वतन्त्र पुस्तके लिखी गई उनमे बैरिस्टर साहब की कृतिये ही सर्वाधिक है। इन्होने अपने पिता की स्मृति मे देहली मे 'सोहन लाल बाँकेराय जैन एकेडेमी' की स्थापना की और अपनी समस्त सम्पत्ति को विदेशो मे जैन धर्म का प्रचार करने के लिये दान कर दिया । बाड़ीलाल मोतीलाल शाह, ऋषभदास वकील, पारसदास खजानची, राक ब० लठ्ठ, पूर्णचन्द्र नाहर, मुन्शी लाल एम० ए०, डा. बनारसी दास, बा अजित प्रसाद अ शीतल प्रसाद प्रादि सज्जनों ने भी अंगरेजी पत्र पत्रिकामों में प्रकाशित Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निबन्यो तथा स्वतन्य पुस्तकों के रूप में बंगरेषी जैन साहित्य का निर्माण , बे० एल० बैनी, पं० मईनलाल सेठी, महात्मा भगवान हीन, मा० चेतनकास, बा० अजित प्रसाद आदि महानुभावों की जो भारत जैन महामंडल को लेकर एक सुहढ़ टीम बन गई थी उसके वास्तविक पारण थे। पारा निवासी कुमार देवेन्द्र प्रसाद, ये महा उद्यमी, निस्वार्थ एवं सच्चे 'स्वयं सेवक' थे और हिन्दी के भी सुलेखक थे। स्याद्वाद विद्यालय काशी के सन् १९१४ के वार्षिकोत्सव जैसे कई महत्त्व पूर्ण प्रायोजन इन्होंने किये जिनमें उच्च कोटि के संसार प्रसिद्ध देशी विदेशी जैन विद्वानों यथा डा० हर्मन जेकोबी डॉ वान ग्लेजने, प्रो० जे हर्टल, डॉ. एनी बेसेंन्ट, म० म० डॉक्टर सतीशचन्द्र विद्याभूषण, डा० टी० के लड्डू, म० म०प्रो. राममिश्र, महर्षि शिववत लील मन इत्यादि को निमन्त्रित करके जैन धर्म पर उनके महत्त्व पूर्ण ऐतिहासिक भाषण कराये और जैन साहित्य एवं कला की प्रदर्शनिये की। इन आयोजनों के परिणाम स्वरुप जैनधर्म के विषय में कम से कम जनतर विद्वत्समाज की अभिज्ञता तो बहुत बढ़ गई, उनके अनेक भ्रम दूर हो गये और यह धर्म तथा इसकी सस्कृति सम्मान पूर्ण अध्ययन की वस्तु समझे जाने लगे। कुमार देवेन्द्र प्रसाद जी के ही प्रयत्नो से 'सेन्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाउस, की स्थापना हुई और उससे 'सेक्रेड बुक्स आफ दी जेन्स' सीरीज का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ जिसमे कि पंचास्तिकाय, समय सार, तत्त्वार्थ सूत्र, द्रव्य संग्रह, गोमहसार, परमात्म प्रकाश, नियमसार प्रादि कितने ही प्राचीन दिगम्बर जैन पार्ष ग्रन्थों के अंगरेजी अनुवादादि सहित उच्चकोटि के जैनाजन विद्वानों द्वारा सुसम्पादित संस्करण प्रकाश में पाये। मडल का मुख पत्र अंगरेजी जैन गजट भी बडे उपयोगी एवं आकर्षक रूप में निकलता रहा। मद्रासी, दक्षिणी, बंगाली, पजाबी-विभिन्न प्रान्तीय अनेक जैनाजैन विद्वानों ने इन कार्यों में महत्त्व पूर्ण योग दान दिया। इसी युग में जैन धर्म के सच्चे मिशनरी और त्यागी सेवक स्वर्गीय ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद जी थे । वे धर्म प्रचार और समाजोन्नति के लिये तडपत हुए हृदय को लिये हुए देश के कोने कोने में-बर्मा, स्याम और लङ्का तक गये और स्थान स्थान मे सार्वजनिक सभाएं कराकर जैन धर्म की ओर सर्बसाधा Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४६ ) रण को प्राकृष्ट किया। जैन मित्र मादि कई पत्रों का योग्यता पूर्वक सम्पादन किया' तथा अनेक व्यक्तियों को प्रोत्साहन दे देकर अच्छा खासा लेखक बना दिया। स्वय अकेले उन्होंने सर्व प्रकार की, मौलिक, टीका अनुवादादि, सकलन सग्रह, फुट कर लेख निबन्ध, धार्मिक, ऐतिहासिक, शिक्षा एवं समाज सुधार विषयक छोटी बड़ी रचनाएँ संख्या एव मात्रा में निर्माण की और छपा कर प्रकाशित करदी उतनी शायद छापे के प्रारम्भ से आज पर्यन्त कोई दूसरा व्यक्ति नही कर पाया। ब्रह्मचारी जी के जीवन का प्रत्येक क्षण जैन धर्म और साहित्य के प्रकाशन प्रचार मे ही व्यीतत हुआ। रेल मे यात्रा करते हुए तथा रोग की दशा मे भी वे लिखते रहते थे। विधवा विवाह के प्रचार के लिये उन्होने 'सनातन जैन समाज' तथा 'सनातन जैन' पत्र की स्थापना की। मध्य काल के एक जैन संत तारण स्वामी द्वारा प्रस्थापित तारण समाज और उसके पुरातन साहित्य को प्रकाश में लाने का श्रेय भी ब्रह्मचारी जी को ही है। साथ ही वे उत्कट देश भक्त भी थे और काग्रेस के प्राय. सब ही अधिवेशनो मे सम्मिलित हुए। जैन समाज मे वे निरन्तर देशभक्ति की भावना को फू कते रहते थे। तत्कालीन नेताओ ने शिक्षा प्रचार की ओर भी विशेष ध्यान दिया । बाल और कन्या पाठशालाएं तो स्थान स्थान मे खुलनी प्रारभ हो गई थी अब बड़ेबड़े जैन सस्कृत विद्यालय भी खुलने लगे। बनारस, इन्दौर, सहारनपुर, कारजा, सागर, मुरैना, मथुरा आदि स्थानो मे ये विद्यालय स्थापित किये गये। पं० गोपाल दास जी बरैया की कृपा से जैन सिद्धात एव दर्शन के परिज्ञाता सस्कृतज्ञ युवक विद्वानों का एक अच्छा दल तैयार हो गया था। अतएव उन विद्यालयो के लिये योग्य अध्यापको की कमी न रही। समाज के श्रीमानो और सेठों ने द्रव्य से सहायता की। इन विद्यानवो मे जैन दर्शन, न्याय, सिद्धात, साहित्य आदि के अतिरिक्त कलकत्ता विश्वविद्यालय तथा क्वीन्स संस्कृत कालिज बनारस की परिक्षाओं के लिए भी विद्यार्थी तैयार किये जाने लगे। दि. जैन महासभा ने जैनशास्त्री आदि परिक्षामो के निमित्त अपना एक परीक्षा Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) बोर्ड स्थापित किया और उत्कट शिक्षा प्रेमी सेठ मासिक चद्र बम्बई वालों ने भी एक 'मारिपक चंद्र' दि. जैन परीक्षा बोर्ड स्थापित किया। उक्त विद्यालयों में अध्ययन करके सैकड़ों विद्यार्थी प्रतिवर्ष इन परीक्षा बोडों की परिक्षायें पास करने लगे। परीक्षा बोडों द्वारा निर्धारित पाठय क्रमो के लिए उपयुक्त पाठ्य पुस्तको की आवश्यकता हुई जिसकी पूर्ति के प्रयत्न से भी जैन पुस्तक प्रकाशन को अच्छी प्रगति मिली। जैन बाल पाठशालामो मे धार्मिक शिक्षा देने की मोर विशेष ध्यान रक्खा गया और उसके लिये बाल बोध जैन धर्म जैसी अनेक छोटी २ बालकोपयोगी पुस्तको का निर्माण हुमा । किन्तु नित्य प्रति वृद्धि को प्राप्त होता हुआ प्राधुनिक अंग्रेजी प्रणाली से शिक्षित समुदाय इन बाल पाठशालामो और सस्कृत विद्यालयो से ही सन्तुष्ट न रह सका, उसकी दृष्टि मे जैन बोर्डिंग हाउस, स्कूलो और कालिजो का उपयुक्त केन्द्रो में स्थापित किया जाना समय की परम आवश्यकता थी। सेठ माणिक चन्द्र ने तो स्थान स्थान में जाकर जैन छात्रालय स्थापित कराने का बीड़ा ही उठा लिया था । अनेक स्थानो मे जैन हाई स्कूल खुले और दो-एक जैन कालिज भी स्थापित हुए। कुछ एक महाप्राण जैन नेतानो की यह भी उत्कट अभिलाषा थी कि एक जैन विश्व विद्यालय स्थापित हो जाय। इसके लिए प० गणेश प्रसाद जी, पं० दीप चन्द्र जी और बाबा भागीरथ जी-ये वर्णीमय प्रयत्न शील भी हुए, किन्तु समाज के श्रीमानो की मोर से कोई सहयोग न मिलने के कारण असफल रहे और माजतक भी जैन विश्व विद्यालय की स्थापना न हो पाई । इसी समय कुछ नेताओं का यह विचार हुआ कि पाश्चात्य शिक्षा प्रणाणी किन्ही अंशों मे उपयोगी होते हुए भी सांस्कृतिक नैतिक एव राष्ट्रीय दृष्टि से प्रति दोष पूर्ण एव हानिकर है, अतएव ऐसे गुरुकुल स्थापित किये जाय जिनमे भारतीय एवं पश्चिमी शिक्षा प्रणालियो का समन्वय करते हुए नवीन सन्तति को धार्मिक, चारित्रवान, देश भक्त एवं सुशिक्षित बनाया जा सके । फल स्वरूप सन् १९११ में बा० सूरजभान जी के। प्रबन्ध और देश भक्त महात्मा भगवान दीन जी के प्रषिष्ठा तृत्य में हस्तिनागपुर Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( है ) (मेरठ) की प्राचीन पवित्र भूमि पर श्री ऋषम मापाश्रम नामक अपम जैन दुरुकुल की स्थापना हुई। बारम में इस संस्था की देश भर मामी, विद्वानों एव समाज सेवियो की सहायता और स्मैहें प्राप्त हुप्रो, किन्तु प्रबन्धकी मैं । शीघ्र ही मतभेद हो जाने के कारण वह अपने मूल स्थान, मौलिक रूप एवं उच्च प्रादों पर तीन चार वर्ष से अधिक स्थिर न रह सका, वैसे दि० बैंग संघ के प्रबन्ध मे मथुरा में वह अमी तक विश्वमानं है। उपरोक्त जैन छात्रोंवासों, स्कूलों, कालिंजो के विद्यार्थियो को धार्मिक शिक्षा देने के लिए भी साहित्य प्रकाशित हमा। तत्त्वार्थसूत्र, रत्न करेंड श्रावकी धार, पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, द्रव्य संग्रह, छहढाला आदि प्राचीन मौलिक ग्रन्थो के शब्दार्थ भावार्थ टिप्परिण आदि सहित विद्यार्थियोपयोगी संक्षिप्त सस्करण निकले। जैन स्त्री समाज मे शिक्षा प्रचार का व्यवस्थित कार्य महिलारल स्व. मगनबेन, पडिता ललिता बाई व पडिता चन्दा बाई जी प्रादि विदुषियो ने अपने हाथ मे लिया । बम्बई और पारा मे आदर्श जैन बाला विश्राम स्थापित हुए, जैन महिला परिषद बनी और महिलामो द्वारा ही सुसम्पादित, सञ्चालित 'जैन महिलादर्श' नामक मासिक पत्रिका चालू हुई। __ इस युग मे व्यवसायिक दोनो ही प्रकार के कई एक प्रकाशको का अविर्भाव हुश्रा । हिंदी के कई मासिक, पाक्षिक, साप्ताहिक तथा मराठी, गुजराती, कन्नडी, अग्रेजी और उर्दू के भी कई प्रच्छे जैन सामयिक पत्र निकलने लगे। मारिणकचन्द्र दि० जैन ग्रन्थ माला, मुनि अनन्तकीर्ति दि० जैन अन्य माला, रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला सनातन जैन अथ माला प्रादि कई एक उच्च कोटि की अव्यवसायिक ग्रथ मालाएँ चालू हुई । इनके द्वारा प्राचीन जैन प्रथ सूल रूप में ही सुसम्पादित होकर अथवा टीका अनुवादादि सहित प्रकाशित होने लगे और प्राय. सर्व ही महत्त्वपूर्ण एव उपलब्ध अथ जैसे तैसे प्रकाश में आ गये। प० जुगलकिशोर मुख्तार, ५० नाथूराम प्रेमी आदि कई योग्य विद्वान इस नव प्रकाशित प्राचीन साहित्य के साहित्यक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से तुलनात्मक अध्ययन मे जुट मये । फलस्वरूप अनेक प्रयो की समीक्षा परीक्षाएं प्रकाशित Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुई । इस प्रकार के विश्लेषण से नाम साम्ब के कारण विभिन्न प्राचार्यों की रचनाओं को उसी नाम के किसी एक ही प्रसिद्ध प्राचार्य की कृति समझ लेना जैसी सर्व प्रचलित भ्रान्तियों का निराकरण हुमा । अंधकार प्राचार्यों के समय, इतिवृत्त एवं कार्य कलापों पर प्रकाश पड़ा, विशेष सैज्ञान्तिक विषयों पर विभिन्न प्राचार्यों की विभिन्न मान्यतायें रही हैं, ऐसी बातें भी प्रकाश में माई। विशेष रूप से जनहितैषी' मासिक ने इन प्रवृत्तियों में पर्याप्त एवं सफल दान दिया। और इस प्रकार सुव्यवस्थित जैनाध्ययम का बीजारोपण हुमा तथा जन धार्मिक एवं साहित्यक इतिहास की सामग्री, फुटकर एवं प्रसम्बर रूप में ही सही, शनैः शन. एकत्रित होने लगी। सस्थानों का भी प्रसार हुप्रा । दि० जैन महासभा की बम्बई आदि प्रान्तों में शाखाएं खुलीं । भारतवर्षीय दि० जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी तथा प्रान्तीय और स्थानीय तीर्थ क्षेत्र कमेटियों की स्थापना हुई। भारत जैन महामण्डल, जन पोलिटिकल कान्म स, दि० जैन शास्त्रार्थ संघ अम्बाला, जीव दया प्रचारिणी समा प्रागरा, जैन मित्र मंडल देहली, भारत वर्षीय दि. जैन अनाथ रक्षक सोसाइटी देहली, और अन्त मे महासभा की नीति से मतभेद होने के कारण उसके कतिपय सदस्यो द्वारा सन् १९२३ मे अखिल भारत वर्षीय दि० जैन परिषद, इत्यादि सस्थानो की स्थापना हुई । इन सभी सस्थाओ ने अपनेर कार्य क्रम के अनुकूल साहित्य के निर्माण और प्रकाशन मे पर्याप्त सहयोग दिया। जहाँ तक हिन्दी की सामान्य उन्नति का प्रश्न है जैनों ने उस में भी स्तुत्य योग दान किया। हिन्दी के तत्कालीन सार्वजनिक पत्रो में मि० जैन वैद्य का सुप्रसिद्ध 'समालोचक', देहली के सेठ माठूलाल का साप्ताहिक 'हिन्दी समाचार', देहरादून के लागुलशनराय का 'भारत हितैषी' इन्दौर के बा० सुख सम्पत्तिराय भडारी के 'मल्हारि मार्तण्ड विजय' आदि और बम्बई से प. पन्नालाल बाकलीवाल का हिन्दी हितैषी' श्रेष्ठ कोटि के पत्र थे। बम्बई हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय और हिन्दी गौरव ग्रन्थ माला के स्वामी व संचालक जैनी थे । मालरा पाटण की राजपूताना हिन्दी साहित्य समिति का लगभग बारह हजार रुपये Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) का स्थायी फंड श्री वाडीलाल मोतीलाल शाह के उद्योग से केवल जनों द्वारा प्रदत्त था और इससे हिन्दी के उत्तमोत्तम ग्रन्थ केवल लागत मूल्य से बेचे जाने की योजना थी। इन्दौर की मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति को भी जैनों से कई हजार रुपया प्राप्त हुआ था। खण्डवे की हिन्दी ग्रन्थ प्रसारक मण्डली के उत्साही संचालक एक बा. माणिकचन्द्र जैनी वकील थे और पारा की नागरी प्रचारिणी सभा के प्राण बा. जैनेन्द्र किशोर थे, इत्यादिः। हिन्दी जैन साहित्य के प्रकाशन मे वम्बई के जैन प्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय तथा रामचन्द्र जैन शास्त्रमाला ने प्रमुख भाग लिया। धार्मिक से अतिरिक्त विषयो पर लिखने वाले लगभग दो दर्जन जैन सुलेखक विद्यमान थे और उनकी सख्या मे निरन्तर वृद्धि हो रही थी। ___ इस प्रकार इस युग मे निम्नोक्त विविध प्रकार का साहित्य प्रकाश मे पाया (१) प्राचीन सस्कृत प्राकृत ग्रन्थों के सम्पादित सस्करण:मूल मात्र अथवा टीका अनुवादादि सहित । उल्लेखनीय सम्पादक अनुवादक टीकाकार आदि-बा० सूरजभान, प० पन्नालाल बाकलीवाल, ५० पन्नालाल सोनी, उदयलाल काशलीवाल, ५० वशीघर शास्त्री, प० खूबचन्द शास्त्री, पं० लालाराम शास्त्री, प० मनोहर लाल, प० गजाधर लाल, जे एल. जैनी, बा० ऋषभदास वकील, ला मुन्शी लाल, मुनि माणिक जी, प्रो ए सी चक्रवर्ती, अ. शीतल प्रसाद, शरच्चन्द्र घोषाल, प० नाथूराम प्रेमी इत्यादि । पुरातन हिंदी जैन साहित्य को प्रकाश मे लाने का अधिकतर श्रेय बाकली वाल जी और प्रेमी जी को है। प्रेमी जी ने तो हिन्दी साहित्य सम्मेलन के जबलपुर में होने वाले सप्तम अधिवेशन मे 'हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास' शीर्षक एक विस्तृत निबन्ध भी पढ़ा था जो जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई से सन् १९१७ में पुस्तकाकार प्रकाशित हुआ। - (२) प्राचीन ग्रन्थों की समीक्षा परीक्षाः-साहित्यक, सैद्धान्तिक एवं ऐतिहासिक विश्लेषण सम्बन्धी साहित्य । उल्लेखनीय लेखक-40 जुगलकिशोर मुख्तार, बा० सूरजभान वकील, प० नाथूराम प्रमी।" Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५१ ) (३) जैन इतिहास सम्बन्धो स्वतन्त्र पुस्तके तथा ऐतिहासिक सामग्री के संकलन गन्थ यथा विज्ञप्ति संग्रह, प्रशस्ति-संग्रह, शिलालेख संग्रह प्रादि-उल्लेखनीय लेखक- -डा. ए. गिरनाट, रा. ब. पारसदास, पूर्णचन्द्र नाहर, मुनि जिन विजय जी, उमराव सिंह टक, पद्मराज रानीवाले, प. नाथूराम प्रेमी, ब्र. शीतलप्रसाद, डा. बनारसीदास, बिहारीलाल चैतन्य, प्रभुदयाल तहसीलदार, बा. सूरजमल, प्रो. श्रायगर, प्रो सेशागिरि राव, राब नरसिंहमाचर आदि । (४) जैन धर्म और उसके हिंसा आदि सिद्धान्तों तथा उपदेश को प्राघुनिक भाषा और शैली में स्वतन्त्र रूप से प्रस्तुत करने वाली पुस्तके: - उल्लेखनीय लेखक - प. गोपालदास बरैया ( मुरैना विद्यालय तथा जैन मित्र पत्र के सस्थापक और प्रथम सम्पादक) बा ऋषभदास वकील (मेरठ), जे एल. जैनी, श्री लठ्ठे, पूर्णचन्द नाहर, ब्र. शीतल प्रसाद, चम्पतराय बैरिस्टर, बा सूरजभान वकील, प पन्नालाल बाकलीवाल, ला मुन्शीलाल, बा माणिक चन्द, प. दरयाब सिंह सोधिया, मुनि शान्ति विजय, प जुगलकिशोर मुख्तार आादि । (५) समाज सुधार एव शिक्षा प्रचार सम्बन्धी पुस्तके - उल्लेखनीय लेखक बा सूरजभान, प जुगल किशोर, ज्योतिप्रसाद प्रेमी, गोयलीय, प. पन्नालाल बाकलीवाल, आदि । दयाचन्द S (६) पाठ्य पुस्तके -- उल्लेखनीय लेखक - प. पन्नालाल बाकलीवाल, बा. दयाचन्द गोयलीय, ब्र. शीतल प्रसाद, प गोपालदास बरैया, लाला मुन्शीबाल श्रादि । (७) उपन्यास नाटक कहानी आदि -- उल्लेखनीय लेखक - प. गोपाल दास बरैया ( सुशीला उपन्यास), बा सूरजभान, प अर्जुनलाल सेठी, ना. मुन्शीलाल, बा. माणिक चन्द, बा कन्हैयालाल, ला. न्यामतसिंह हिसार ( इनके नाटकों और भजनों की बड़ी घूम रही ), बा. कृष्णलाल वर्मा, पं. नाथूराम प्रेमी आदि । Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) (८) हिन्दी के सार्वजनिक पत्रों में फुटकर लेख तथा स्वतंत्र प्रमूदित सामयिक लेख निबन्ध चरित्र प्रादि-उल्लेखनीय लेखक-मिः । जैन वैद्य, ला० मुन्शीलाल, बा० दयाचन्द्र गोयलीय, वाडीलाल मोतीलाल शाह, बा सुपार्श्वदास गुप्त (इनका पार्लमेंट नामक ग्रन्थ ४०० पृष्ठ का पा), मा. मोतीलाल, डा. वेणीप्रसाद, बा. मणिकचन्द्र, सूबचन्द सौधिया, डा. निहालकरण सेठी, बालचन्द्राचार्य, सुखसम्पत्ति राय भंडारी, पं. नाथूराम प्रेमी, आदि। (8) इस युग की स्फुट तथा फुटकर रचनाओं में जुगलकिशोर मुख्तार, नाथूराम प्रेमी, ज्योति प्रसाद प्रेमी प्रादि की हिन्दी कविताए, मुं० द्वारका प्रसाद के तीर्थ यात्रा विवरण, ब. शीतल प्रसाद व बैरिस्टर चम्पतराय के अन्य धर्मों के साथ जैन धर्म के तुलनात्मक अध्ययन, इत्यादि । (१०) दरख्शा, माईल, पैकी, ऋषभदास, सूरजभान, ज्योतिप्रसाद मामचन्दराय, सुमेरचन्द्र, प्रोसवाल, शिवव्रतलाल, नत्थूराम,चन्दूलाल प्रस्तर, आदि की उर्दू जैन रचनाएं उल्लेखनीय हैं । अंग्रेजी आदि विदेशी भाषामा में जैन साहित्य अथवा जैन सम्बन्धी साहित्योल्लेखो का विवरण रा. ब. पारसदास व बा० छोटेलाल की बिबलियोनफियों और जैन गजट (अंग्रेजी) की फाईलों से प्राप्त हो सकता हैं। इस युग के जैन साहित्य प्रकाशन मे विशेष योग देनेवाली सस्थाएं, प्रकाशक तथा व्यक्ति निम्नलिखित है-बम्बई की माणिकचन्द्र दि० जे. ग्रन्थमाला, मुनि अनन्तकीर्ति दि० जैन ग्रन्थमाला, जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय, जैन मित्र कार्यालय, कलकत्ते की सनातन जैन ग्रन्थमाला, जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी सस्था, ' जिनवाणी प्रचारक कार्यालय, और सेन्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाउस आरा (अब लखनऊ), जैन तत्व प्रकाशिनी सभा इटावा, जनेन्द्र प्रेस कोल्हापुर, दि० जैन पुस्तकालय सूरत, जैन मित्र मंडल देहली, हीरालाल पन्नालाल जैन बुक सेलर्स देहली, दि० जैन शास्त्रार्थ सघ अम्बाला, प्रात्मानन्द जैन ट्रक्ट सोसाइटी अम्बाला, , Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) बैनीलाल जैनी देवबन्द, ज्ञानचन्द्र जैनी लाहौर, न्यामत सिंह जैनी हिसार, ना. जौहरीमम सर्राफ देहली (विशेष रूप से उत्कट समाज सुधार विषय के साहित्य के लिये), सेठ हीराचन्द व सखाराम नेमचन्द दोशी शोलापुर, सेक गाधी नाथारम प्राकलूज, गोपाल अम्बादास चवरे कारंजा-इन तीनों भीमानो ने प्राचीन ग्रन्थो के प्रकाशन मे भारी हिस्सा लिया । इनके अतिरिक्त जयपुर निवासी बा० दुलीचन्द श्रावक, मु. ममनसिह, मु. सुमेरचन्द, बैरि० चम्पवराय, कुमार देवेन्द्रप्रसाद, ला० देवीसहाय (फीरोजपुर) उम्मेदसिंह मुसद्दीलाल (अमृतसर) बुद्धिलाल श्रावक, मु. नाथूराम लमेचू आदि उल्लेखनीय है । मद्रास में सी० मल्लिनाथ, प्रो. चक्रवर्ती प्रादि सज्जनो ने जैन साहित्य प्रकाशन का कार्य किया । ३. वर्तमान युग :-सन् १९२५ के उपरान्त जैन साहित्य प्रकाशन के वर्तमान युग का प्रारम्भ होता है । अब विभिन्न मतो के द्वारा धार्मिक दृष्टि से किये जानेवाले विषपूर्ण खडन मडनो का समय नहीं रह गया था। मार्य जैन द्वन्द प्राय समाप्त हो गया था। किसी भी धर्म के मन्तव्यो एव मान्यतामों का मखौल उड़ाने, उसे तुच्छ, नीचा, नास्तिक या मिथ्या सिद्ध करने के प्रयत्न निन्दनीय समझे जाने लगे और सर्वधर्म समभाव स्थापित करने की चेष्टाएं की जाने लगी । किंतु साथ ही एक नवीन प्रवृत्ति भी दृष्टिगोचर होने लगी । अनेक बनेतर विद्वान अपनी साहित्यिक, दार्शनिक एव ऐतिहासिक रचनामों में जैन धर्म दर्शन, सस्कृति, मादि की प्राचीनता, इतिहास और मूल्यवान देनों की प्रज्ञान अथवा प्रमाद के वक्ष होकर उपेक्षा तथा उनके सम्बन्ध मे भ्रमपूर्स एव मिथ्या कवन भी करने लगे । फलस्वरूप उन विद्यामो के साथ तो अन्याय होता ही है साथ ही जैन धर्मावलम्बियों के स्वाभिमान को भी ठेस पहुंचती है और उन्हें क्षोभ होता है। स्वातश्य प्राप्ति और सर्वतंत्र जनतन्त्र की स्थापना के उपरान्त बहुसंख्यक हिन्दू धर्मानुयायियो के द्वारा जिनका कि राजनैतिक प्रादि क्षेत्रो में बाहुल्य है , यह प्रवृत्ति और अधिक चरितार्ष Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५४ ) होने लगी। राष्ट्रीयता के नाम पर जैन धर्म और संस्कृति को स्वतन्त्र सत्ता का निषेध किया जाने लगा है और हिन्दू धर्म तथा संस्कृति द्वारा केवल अल्प सख्यक होने के कारण ही जैन धर्म और सस्कृति को हड़प लिये जाने की नवीन चेप्टाए प्रारम्भ हो रही हैं । किंतु जिन अर्थों में एक सामान्य हिन्दू विशुद्ध भारतीय है उन्ही अर्थों में एक जैनी भी वैसा ही विशुद्ध भारतीय है। हिन्दू धर्म के नाम से अभिप्रेत वैदिक परम्परा के जिन अनेक सम्प्रदायो और मत मतान्तरो का समुदाय जितना प्राचीन और भारत का अपना है उमसे शायद कही अधिक प्राचीन और भारत की अपनी ही श्रमण परम्परा का प्रतिनिधि जैन धर्म और उसकी सस्कृति है । ये धार्मिक अथवा सास्कृतिक भेद किसी व्यक्ति की राष्ट्रीयता, नागरिकता अथवा भारतीयता मे बाधक नही हो सकते । फिर ऐसे विवादास्पद शब्द (अर्थात् हिन्दू) का इतना मोह क्यो जबकि वह एक परम्परा विशेष के अनुयायियो के लिये ही प्रयुक्त होते चले आने के कारण समग्र राष्ट्र का सूचक होने के लिए उपयुक्त नही है और जिसके उक्त रूप मे प्रयोग करने से सदैव भारी भ्रान्ति उत्पन्न होते रहने की सभावना है । जब जैन धर्म और सस्कृति की पृथक एवं स्वतत्र सत्ता है, उसकी परम्परा अत्यन्त प्राचीन है, उसका अपना अति स्वर्णिम इतिहास है और वह शुद्ध स्वदेशीय हैं तब उनके अपने आपको हिन्दू न कहने से या हिन्दूधर्म और सस्कृति का अग न मानने से तो कोई वे विदेशी, प्रभारतीय, राष्ट्र के प्रतिविद्रोही या उसके लिए अजनबी हो नही जाते। वे भारत के हैं और भारत उनका है यह तथ्य निर्विवाद है । जहाँ तक जैनाध्ययन के जिसमे कि, जैन सस्कृति की सभी विविध शाखाप्रो के अध्ययन का समावेश है, महत्त्व और प्रगति का बहुत कुछ अनुमान इमी पुस्तक के अन्त में प्रकाशित म्वतत्र लेख से हो सकता है । जैन ही नही अनेक उद्भट अजैन विद्वान भी अब सहृदय एव शुद्ध वैज्ञानिक दृष्टि से जैनाध्ययन में दिलचस्पी ले रहे हैं और भारत के सांस्कृतिक विकास का पुननिर्माण कर रहे हैं। किन्तु आवश्यकता इस बात की है कि विभिन्न विश्वविद्यालयो मे जैनाध्ययन को एक विशेष Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) raarata faषय बनाकर उसके सम्बध मे सुव्यवस्थित शोध खोज अनुसंधानादि चालू किये कराये जाये । अजैन लेखकी की उपरोक्त प्रकार की भ्रान्त धारणाओं और मिथ्या वा अन्यथा कथनों के परिहार एवं निराकरण के उद्देश्य से भी बहुत कुछ साहित्य प्रकाशित होने लगा है, किन्तु इस आवश्यकता की पूर्ति जैसे सुचारु सुव्यवस्थित ढंग पर होनी चाहिये थी वैसी श्रभी नही हो पारही है । जैन धर्म के विभिन्न सम्प्रदायो के बीच समन्वय तया ऐक्य के जो प्रयत्न पिछले युग में प्रारभ हुए थे वे इस युग मे शिथिल प्राय होते गये । और जिस प्रकार भारतीय राजनैतिक क्ष ेत्र मे हिन्दू मुस्लिम ऐक्य के प्रयत्नी का परिणाम प्रतिकटु एव विनाशकारी सिद्ध हुआ उसी प्रकार दिगम्बर श्वेताम्बर सम्प्रदायों मे सद्भाव एव एक सूत्रीकरण के प्रयत्न भी उभय सम्प्रदायो के बीच की खाई को और अधिक विस्तृत एव गहरी करते दीख पड़ रहे है । विभिन्न तीर्थों के प्रश्न को लेकर होने वाली चिरकालीन मुकदमेबाजी के प्रतिरिक्त नवीन साहित्यिक शोध खोज का लाभ उठा कर दोनो ओर के कितने ही विद्वान प्रत्यक्ष प्रथवा परोक्ष रूप से उभय सम्प्रदायो के साहित्यिक सैद्धान्तिक ऐतिहासिक आदि मतभेदो को और अधिक सूक्ष्मता के साथ पुष्ट करने लगे हैं । जो इने गिने नेता इतने पर भी समन्वय के प्रयत्न में लगे हुए है वे भी कुछ ऐसा भ्रमपूर्ण ढग प्रत्यार किये हुए हैं कि जिससे वे सद्भाव उत्पन्न करने के बजोग शंका और द्व ेष की पुष्टि करने मे ही सफल हो रहे हैं । तथापि ऐसे उदाराशय विद्वानो का भी अब प्रभाव नही है जो कि अपनी दृष्टि की विशालता के कारण अनेकान्त मूलक सहिष्णुता के साथ सभी मतभेदो को गौण करतें हैं तथा एक उपरिम समस्तर से ही विचार करते हैं। इस दिशा में ऐसे ही महानुभावों से कुछ आता है । सामाजिक संगठन की दृष्टि से भी जैन समाज कुछ आगे नहीं बढ़ा । पिछले युग के नेता सख्या में तो थोडे थे किन्तु प्रायः सर्व ही सामाजिक क्षेत्रों पैर उनका अधिकार था, उनमें परस्पर सहयोगं और एक सूत्रता थी, वे अपना Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५६ ) बहुमूल्य समय देकर अनेक कष्ट लाञ्छना अपमानादि सहन कर अपनी जेब से ही आवश्यक द्रव्य भी व्यय करके पूरी लगन और तत्परता के साथ समाजोन्नति के विविध कार्यक्रमो मे जुटे रहते थे । सस्थाए भी थोड़ी बी पर बे ऐसे कर्मठ, निस्वार्थ एव कर्त्तव्य शील नेताओ की म्रध्यक्षता मे बहुत कुछ ठोस कार्य कर रही थी । किन्तु अब आये दिन नई-नई सस्थाओ का जन्म होने लगा, उन्हे व्यक्तिगत स्वार्थी की पूर्ति का साधन बनाया जाने लगा, छोटी-छोटी व्यापारिक कम्पनियो जैसी उनकी स्थिति हो गई। उनके नेताओ और कार्यकर्ताओ म या तो पद और मान के लोलुपी प्रदीमुल फुर्सत बड़े-बड़े श्रीमान होने लगे या फिर वैतनिक अथवा नाम मात्र के लिए अवैतनिक ऐसे व्यक्ति होने लगे जो प्रायः करके न स्वल्प सतोषी ही होते हैं और न जीवन निर्वाह सम्बधी द्रव्योपार्जन की चिन्ता से मुक्त ही । लोभ एवं अधिकार मोह के कारण बरसाती मेढकों की भाँति नित्य प्रति बढती जाने वाली इन सस्थाओ मे परस्पर सहयोग, सद्भाव और एक सूत्रीकरण नही हो पाता । फलस्वरूप समाज की शक्ति मौर द्रव्य का तो पर्याप्त व्यय होता है किन्तु किसी दशा मे भी वाञ्छनीय इष्ट सिद्धि नही हो पा रही है। इन संस्थानो के अधिवेशन अवश्य ही वडी धूम धाम और शान के साथ होते हैं, उनके प्रचारक भी स्थान-स्थान मे घूमते हैं, कई एक संस्था के अपने मुखपत्र भी हैं, पुस्तकादि के रूप मे भी साहित्य प्रकाशित होता है, किन्तु उपरोक्त दोषो के कारण तथा निस्वार्थ कर्त्त व्यशीलता के अभाव मे न इन संख्याओ का और न इनसे संबधित व्यक्तियों का समाज पर कोई प्रभाव पडता है । वार्षिक कार्य विवरण प्राकर्षक रिपोर्टों के रूप मे प्रकाशित होते है किन्तु ठोसकार्य कुछ भी होता नही दीखता । समस्याए बढ़ती चली जाती हैं पर किसी समाज की समस्या का भी सन्तोषजनक समाधान नहीं होता । समाज सुधार शिक्षा, राजनैतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक किसी भी क्षेत्र में जो जो आवश्यकताए ं हैं वे इन्ही की पूर्ती के लिए स्थापित इतनी सारी संस्थानों सैकड़ो नेता, सैकड़ो ही विद्वानो और सौ के ही लगभग सामयिक पत्रोंके होते हुए भी प्राय कुछ भी पूरी नही हो पा रही हैं। गत बीस वर्षों मे कई एक उच्च Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोटि की साहित्यिक शोष खोज निर्माण प्रकाशन मादि सम्बंधी संस्थानो का जन्म हो चुका है। किन्तु उनमे भी प्रबन्ध मोर व्यवस्था की दृष्टि से अन्य सामान्य जैन सस्थानो के ही अनेक दोष हैं। पृथक-पृथक उन सबकी शक्ति सीमित और अल्प है और व्यक्तिगत स्वार्थों अथवा ईर्ष्या द्वेषादि के कारण उनमे परस्पर सहयोग और एकसूत्रता नही हो पाती। फलस्वरूप साहित्य निर्माण और प्रकाशन प्रपति मे भी जितना योगदान वे कर सकती थी उसका मल्पांश मात्र ही हो रहा है। फिर भी इस युग मे साहित्यिक, ऐतिहासिक, सास्कृतिक एव दार्शनिक खोज शोष का कार्य तथा ग्रन्थो का सम्पादन प्रकाशन बहुत कुछ व्यवस्थित एव प्रमाणीक ढग पर होने लगा है । विभिन्न उपलब्ध हस्तलिखित प्रतियो का मिलान करके, विविक्षित विषय सम्बन्धी पूर्वापर साहित्य के साथ तुलना पूर्वक सावधानी के साथ पाठ सशोधन, अनुवाद, व्याख्या, पावश्यक टिप्पणादि और विद्वत्तापूर्ण विस्तृत विवेचनात्मक प्रस्तावनाओ सहित महत्त्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थों के सुसम्पादित सस्करण प्रकाशित होने लगे है । दिगम्बरो के प्राचीनतम् मागम साहित्य धवलादि टीकाओ सहित षटखडागम, कषाय पाहुड, महाबन्ध प्रादि ग्रन्थराजो के भी उपरोक्त प्रकार सुसम्पादित सस्करण प्रकाश में आ रहे हैं । प्राचीन जैन अपभ्रश साहित्य का भी उद्धार हो रहा है । कितने ही अपभ्रश ग्रन्थ प्रकाश मे मा गये हैं, जिससे कि हिन्दी भाषा के विकास और इतिहास सम्बन्धी विचारों मे भारी क्रान्ति उत्पन्न हो गई है । हिन्दी के पुरातन जैन कवियो पौर लेखकों का साहित्य भी प्रकाश मे मा रहा है । जैन धर्म, जैन दर्शन, जैन सघ, जैन साहित्य, राजनीति में जैन नेतृत्व प्रादि विषयो पर विविष भाषाओं मे स्वतन्त्र ऐतिहासिक ग्रन्थ, शिला लेख संग्रह, प्रशस्ति संग्रह विज्ञप्ति पत्रसग्रह, अन्धसूचिये, अन्य कोष, उबरण कोष आदि तथा त्ति विज्ञान, स्थापत्य, चित्रकला पावि विविध कलाओं मोर गणित ज्योतिष चिकित्सा विज्ञान प्रादि विविध विज्ञानों तथा सामान्यतया जैन सांस्कृतिक देनी Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) के सम्बन्ध मे भी उत्तम कोटि की पुस्तकें प्रकाशित होने लगी हैं । पिछले युगों मे ये कार्य प्राय करके अग्रेज, जर्मन, फासीसी आदि विदेशी तथा कतिपय जैनेतर भारतीय विद्वानो द्वारा ही सम्पादित हो रहा था, किंतु अब इस क्षेत्र में शायद ही कोई विदेशी विद्वान कार्य कर रहा हो, और इस दिशा मे प्रयत्नशील उच्चकोटि के भारतीय विद्वानो मे स्वयं जैन विद्वानों की संख्या भी कम नही है तथा उसमे दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती जाती है । कई एक यूनीवर्सिटियो मे भी, विशेषकर श्वेताम्बर समाज के उद्योग से कुछ विद्वान जैन रिसर्च का कार्य कर रहे हैं । मौलिक कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, प्रहसन, निबन्ध, साहित्यिक आलोचन आदि शुद्ध साहित्यिक विषयो के भी अनेक श्र ेष्ठ लेखक और कलाकार जैनो मे विद्यमान हैं । किन्तु जैसा कि हिन्दी साहित्य सम्मेलन के कराँची श्रधिवेशन मे साहित्य परिषद के अध्यक्ष आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने अपने अभिभाषण में कहा था कि 'अजैन विद्वानो को यह शिकायत अभी तक है कि जैनियो का साहित्य महत्त्वपूर्ण एव विपुल मात्रा मे होते हुए भी अभी तक उसके ऐसे अनुवादित सम्पादित संस्करण प्रकाश मे नही या पाये जो जैनेतर विद्वत्समाज द्वारा ग्राह्य हो ।' पर वास्तव मे बात बिलकुल ऐसी ही नही है । अनेक जैन ग्रन्थो के वैसे सस्करण प्रकट भी हो चुके है। हॉ जैनो ने उन्हें भजैन जनता और विद्वानो तक पहुचाने का उपयुक्त प्रयत्न नही किया और अजैन विद्वानो ने उन्हे स्वय प्राप्त करके अध्ययन करने मे उदासीनता भी दिखलाई है । कई वर्षों से निरन्तर प्रयत्न करते रहने पर भी हिन्दी साहित्य सम्मेलन जैसी सार्व सस्था ने हिन्दी जैन साहित्य को अपने पाठ्यक्रम आदि में सम्मिलित करने मे उपेक्षा ही बरती है । अधिकाश विश्वविद्यालय प्रेरणा करने पर भी जैन रिसर्च को अपने यहाँ स्थान देने मे स्वत तैयार नही होते । राजकीय अथवा अखिल भारतीय साहित्यिक, ऐतिहासिक आदि परिषदो और सस्थानी मे भी उसकी उपेक्षा हो की जाती है। ऐसी परिस्थिति में जैनों का ही प्रथम कर्त्तव्य है कि वे इन दिशाओ मे दृढ़ निश्चय के साथ अग्रसर हों, Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) उक्त विश्वविद्यालय आदि की तथा जैनंतर विद्वानों को जैनाध्ययन की ओर आकृष्ट करें और अपने साहित्य रत्नों को बाह्य समाज के लिये सुलभ कर दें, उनका यथोचित उपयोग किये जाने में प्रोत्साहन एवं सुविधाएं प्रदान करें तथा सभी महत्वपूर्ण पुरातन प्रन्थों के ऐसे संस्करण भी प्रकाशित कर दें जो सर्वग्राह्य हों । इस युग के प्रारम्भ के पूर्व से ही देश सार्वजनिक राष्ट्रीयता के प्रभाव से श्रोत प्रोत रहा है । सतत् आन्दोलनों और भीषण संघर्षो के पश्चात तथा अनेक त्याग और कष्ट सहन करके अब एक प्रकार से पराधीनता के पांश से मुक्त होकर स्वतंत्र वायुमंडल मे सास ले सका है । इस राष्ट्रीय आन्दोलन मे भी जैन समाज ने अपनी सख्या के अनुपात से कहीं अधिक सहर्ष योगदान दिया, और धन एव जन के यथेष्ठ बलिदान द्वारा स्वातंत्र आन्दोलन को सफल बनाने मे पूर्ण सहयोग और सहायता दी। राष्ट्रीयता के रग में डूबा हुआ साहित्य भी निर्माण किया । और आज भी प्रायः समग्र जैन समाज तन मन धन से राष्ट्रीय महासभा तथा राष्ट्र के सर्वमान्य कर्णधारो के साथ है । राष्ट्र की समस्त राजनैतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक प्रगतियो मे वह अभिन्न रूप से उनके साथ है, अपनी स्वतंत्र धार्मिक एवं सास्कृतिक सत्ता रखते हुये भी अखिल भारतीय राष्ट्र का अभिन्न एव अविभाज्य अग है । सामयिक पत्र पत्रिकाएं भारतवर्ष मे छापेखाने के प्रारम्भ और इतिहास पर पीछे प्रकाश डाला जा चुका है। छापेखाने की स्थापना होने पर समाचार पत्रो का प्रकाशन स्वाभाविक था । अस्तु श्री वृजेन्द्रनाथ वन्द्योपाध्याय लिखित 'देशीय सामयिक पत्रेर इतिहास, 'खड १' के अनुसार भारत का सर्व प्रथम समाचारपत्र २६ जनवरी सन् १७५० ई० को 'बंगाल गजट' के नाम से अगरेजी भाषा मे प्रकाशित हुआ । यह पत्र साप्ताहिक था, हिकि साहब इसके Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) संस्थापक थे और यह दो वर्ष तक चला । इसके पश्चात इन्डिया गजट, कलकत्ता गजट, मादि अग्रेजी पत्र निकले । सन् १७९६ मे भारत के गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली ने अखबारो पर कड़ा प्रतिबन्ध लगा दिया जो सन १८१८ मे लाई हेस्टिग्ज द्वारा हटाया गया, और उसके स्थान में कुछ नियम बना दिये गये । अत इस बीच मे पुराने पत्रो का प्रकाशन मोर नवीन पत्रो की स्थापना प्राय बन्द ही रही । सन् १८१८ के उपरान्त फिर से नवीन पत्र निकलने लगे । बगला भाषा का सर्व प्रथम पत्र 'दिग्दर्शन' श्रीरामपुर मिशन द्वारा अप्रेल सन् १८१८ मे निकाला गया। मई सन् १८१८ मे बगला का 'समाचार दर्पण' और तत्पश्चात् 'बगला गजट' निकले । उदू का सर्व प्रथम पत्र 'जाम इ जहान नूमा' २८ मार्च सन् १८२२ को और फारसी का 'मीरातुल अखवार १२ अप्रेल सन् १८२२ को निकले । ७अक्तूबर सन् १८२२ को समाचार पत्रो पर फिर से कडे प्रतिबन्ध लगा दिये गये अप्रेल सन् १८२३ मे प्रथम भारतीय प्रेस कानून बना जिसके अनुसार पत्रो के प्रकाशन के लिये सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य थी । ४ दिसम्बर सनु १८२७ से यह कानून अशत रद्द हो गया और सन् १८३५ मे बिलकुल हटा दिया गया, किन्तु सन् १८५७ से वह फिर से लागू कर दिया गया। उन्ही बनर्जी महोदय के एक दूसरे लेख 'हिन्दी का सर्व प्रथम समाचारपत्र' (विशाल भारत, फर्वरी सन् १९३१) से विदित होता है कि हिन्दी का सर्व प्रथम पत्र, जैसा कि प्राय समझा जाता था, सन् १८४५ मे स्थापित 'बनारस अखवार' नही था, वरन् ३० मई सन् १८२६ को कानपुर निवासी प० जुगलकिशोर शुक्ल द्वारा कलकत्ते से निकाला जाने वाला साप्ताहिक 'उदन्त मार्तण्ड' था, जिमका वार्षिक मूल्य दो रुपये था, और जो प्रत्येक मगलवार को ३७, प्रामडा तल्ला गली कोलू टोला, कलकत्ता से प्रकाशित होता था। इसके पश्चात् ६ मई सन् १८२६ को राजा राममोहन राय द्वारा दूसरा हिन्दी पत्र 'बगदूत' प्रकाशित हुआ और मन्त में सन् १८४५ मे बनारस से 'बनारस अखबार' निकला । मराठी के 'कल्प. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६१ ) तर प्राणि भानंदवृत्त' सन् १८६७ में और 'केसरी' सन १८६० में निकले । जैन सामयिक पत्रों मे सर्व प्रथम सम्भवतया गुजराती मासिक 'जन दिवाकर' था जो 'जैन श्वेताम्बर ग्रम्य गाइड' तथा 'जैन साहित्यनीसंक्षिप्त इतिहास' के अनुसार अहमदाबाद से श्री छगनलाल उमेदचन्द द्वारा वि० ० स० १९३२ (सन् १८७५ ई० ) मे प्रकाशित किया गया था और लगभग दश वर्षं चला सन् १८७६ में केशवलाल शिवराम द्वारा गुजराती 'जैन सुधारस' निकला जो एक वर्ष चलकर ही बन्द हो गया । दिगम्बर समाज का सर्व प्रथम सामयिक पत्र सन् १८८४ के प्रारम्भ में प० जीयालाल जैन ज्योतिषी द्वारा फर्रुखनगर ( उ० प्र० ) से प्रकाशित साप्ताहिक 'जैन' था । इसका वार्षिक मूल्य ढाई रुपये था, और यह हिन्दी भाषा का भी सर्व प्रथम जैन पत्र था, दश बारह वर्ष पर्यन्त चला भी । इन्ही पं० जीयालाल ने उसके कुछ ही समय पश्चात् उर्दू मे 'जीयालान प्रकाश' भी निकालना आरम्भ किया जो कि उर्दू का सर्वप्रथम जैनपत्र था । सितम्बर सन् १८८४ मे शोलापुर से स्वर्गीय सेठ रावजी हीराचन्द नेमचन्द दोशी ने मराठी - गुजराती हिन्दी का मासिक 'जैन बोधक' निकालना शुरू किया । यह पत्र मराठी का तो सर्व प्रथम जैन पत्र जीवित रहने के कारण वर्तमान जैन पत्रो मे भी सर्व प्राचीन है और इने गिने सर्वाधिकजीवी भारतीय पत्रो मे से एक है । इसके पश्चात् सन् १८८४ में ही जैनधर्म प्रवर्तक सभा अहमदाबाद से डाह्या भाई घोलशा जी के निरीक्षण मैं गुजराती 'स्याद्वाद सुधा' अप्रेल सन् १८८५ मे जैन हितेच्छुसभा भावनगर द्वारा 'जन हितेच्छु' और इसी वर्ष अहमदाबाद से गुजराती में श्वेताम्बर 'जैन धर्म प्रकाश' निकले, जिसमे से अन्तिम पत्र अभी तक चालू रहने के कारण वर्तमान श्वेताम्बर पत्रो मे सर्व प्राचीन है । था ही, अब तक इसके पश्चात् तो जैन सामयिक पत्र हिन्दी, गुजराती, मराठी, डू, अग्रेजी, कन्नडी श्रादि भाषाम्रो मे दनादन निकलने लगे । केवल दिनम्बर Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) समाज के द्वारा ही निम्नोक्त अनेक पत्र कुछ ही वर्षों के भीतर प्रवास मे पाये-सन् १८९२ मे मराठी मासिक 'जन विद्यादानोपदेश -प्रकाश सन् १८६३ मे बगलौर से सेठ पद्मराज द्वारा हिन्दी काव्याम्बुषि', सन् १८६३-६४ मे बम्बई से पं० पन्नालाल बाकलीवाल द्वारा 'जैन हितैषी' मासिक जिसका सम्पादन प्रकाशन सन् १९०४ से प० नाथूराम प्रेमी ने किया, प. जुगल किशोर मुख्तार भी कुछ समय तक इसके सपादक रहे । यह पत्र अपने समय का सर्वश्रेष्ठ हिन्दी जैन मासिक रहा है । सन् १८६४ मे ही दि० जैन महासभा का हिन्दी साप्ताहिक 'जैनगजट' चालू हुमा और बाबू सूरजभान बकील ने उर्दू का जनहितउपदेशक' नामक पत्र भी निकाला । सन् १८६५ मे हिन्दी मासिक 'जैन प्रभाकर' निकला, १८६६ मे हिन्दी साप्ताहिक 'जैनमार्तण्ड' और १८६७ मे बाबू सूरजभान द्वारा ज्ञान प्रकाशक' नामक मासिक पत्रिका, बाबू ज्ञानचन्द जैनी लाहौर द्वारा 'जैन पत्रिका' तथा पडित पन्नालाल बाकलीवाल द्वारा वर्षा से 'जैन भास्कर' निकले । सन् १८६८ मे बम्बई प्रान्तिक दि० जैन सभा की ओर से पडित गोपालदास जी बरैया ने हिन्दी साप्ताहिक 'जैन मित्र' की अपने ही सम्पादन मे स्थापना की। ब्र० शीतल प्रसाद जी ने बहुत काल तक इसका सम्पादन किया। यह पत्र अभी तक चालू है और सूरत से प्रकाशित होता है । सन् १८६६ मे हिन्दी मासिक 'जैनी' और १६०० मे हिन्दी त्रैमासिक 'जैनेतिहास सार' निकले । सन् १९०२ मे मराठी कन्नडी मिश्रित "प्रगति आणि जिनविजय' निकला और सन् १९०४ मे अग्रेजी 'जैन गजट' का प्रारम्भ हुआ । यह पत्र वर्तमान मे मजिताश्रम लखनऊ से बाबू अजितप्रसाद जी के सम्पादन काल मे निकलता है । इसके कुछ ही समय पश्चात कन्नडी का 'विवेकाभ्युदय' निकला और सन् १९०७ मे सूरत से हिन्दी गुजराती मिश्रित मासिक 'दिगम्बर जैन' । सन् १९२१ से ब्र० पंडिता चन्दा बाई पारा द्वारा सम्पादित हिन्दी मासिक 'जैन महिलादर्श' निकल रहा है, और सन् १९२३ मे पडित बाकलीवाल द्वारा एक बगला पत्र Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'जिनवाणी- निकला जो कुछ समय तक चलकर बन्द हो गया । मुनि जिन विजय जी द्वारा सम्पादित हिन्दी गुजराती अग्रेजी का श्वेताम्बर 'जैन साहित्य संशोधक' त्रैमासिक भी अत्यधिक महत्वपूर्ण पत्र था जो कुछ वर्ष चलकर बन्द हो गया । पडित दरबारीलाल सत्यभक्त के सम्पादन में बम्बई का 'जन जगत' भी कई वर्ष बहुत अच्छा निकला था । उपरोक्त पत्रो के अतिरिक्त और भी अनेक पत्र पत्रिकाए, विशेष रूप से सन् १९२० के पश्चात चालू हुई, जिनमे से अधिकतर अल्पाधिक काल तक चलकर बन्द हो गई । इस प्रकार छापे के प्रारम्भ से अब तक लगभग ढाई सौ जैन सामायिक पत्र पत्रिकाएं निकल चुकी हैं जिनमें से लगभग डेढ़सौ तो अस्तगत हो चुकी और एक सौ के लगभग अभी भी चालू है। प्रारम्भ से अब तक लगभग एक दर्जन सार्वजनिक पत्र पत्रिकामो का सञ्चालन अथवा सम्पादन भी जैनो द्वारा हुआ है। विवरण सूची का संक्षिप्त सार प्रस्तुत पुस्तक जैन मुद्रित प्रकाशित पुस्तको, सामायिक पत्रो, साहित्यिक सस्थाओं, प्रकाशकों और लेखकों आदि की उस सक्षिप्त परिचयात्मक विवरण सूची की पूर्व पीठिका है जो कि हमने जुलाई सन् १९४७ मे तैयार की थी और जिसे इस पुस्तक के दूसरे भाग के रूप में प्रकाशित करने की योजना है। उक्त विवरण सूची मे सकलित तथ्यो से जो निष्कर्ष प्राप्त होते है वे निम्न प्रकार है उक्त विवरण सूची मे २६८० पुस्तकों का उल्लेख है जिन्हें भाषा की अपेक्षा ६ विभागों में विभाजित किया गया है। (१) प्रथम विभाग हिन्दी का है जिसमे संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भी सम्मिलित है । इसमे कुल २०५२ पुस्तके जिनमें से--सस्कृत की १८०, प्राकृत की ४४, अपभ्रश १८, हिन्दी प्राचीन (सन् १८५० अथवा सं० १९२० के पूर्व निर्मित)--२७५, -प्राचीन ग्रन्थों के अर्वाचीन टीका अनुवादादि-३७७. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) माधुनिक हिन्दी मौलिक-१११३, और जैन धर्म के सम्बंध में प्रकाशित महत्त्व पूर्ण हिन्दी भाषा व्याख्यानादि-४५. (२) मराठी की ४८ जिनमें से मौलिक १३ और अनुवाद ३५ हैं। (३) गुजराती की ७० जिनमें मौलिक ४७ और अनुवाद २३ हैं। (४) बगला की ५२ जिनमें मौलिक ४२ और अनुवाद १० हैं। (५) उर्दू की १६८ जिनमे मौलिक १५१ और अनुवाद १७ हैं । (६) अ गरेजी आदि यूरोपिय भाषाओं में २६० जिनमें से मौलिक २३० और अनुवादादि ६० हैं । इनमे पत्र पत्रिकामो मे प्रकाशित लेख निबन्ध आदि सम्मिलित नहीं है। पुस्तक निर्माता-उपरोक्त साहित्य के निर्माताप्रो की दृष्टि से जिनका पूर्णयोग १३०३ है-सस्कृत ग्रन्थों के मूल लेखक १०७, टीकाकार ३८, योग १४५, प्राकृत ग्रन्थो के मूल लेखक १८, टीकाकार २, योग २० अपभ्रंश ग्रन्थो के लेखक ७ हिन्दी प्राचीन पद्य लेखक ४०, गद्य लेखक १३, योग ५३. (बाद की शोष खोज से हमे हिन्दी पुरातन गद्य के ५० से अधिक लेखको और उनकी सवासो के लगभग गद्य कृतियों का पता चला है). आधुनिक हिन्दी के मौलिक लेखक (गद्य पद्य दोनों के)---२६५, टीकाकार ४८, अनुवादक ६१, सम्पादक आदि ११८, सग्रह या सकलन कर्ता २४, और १९५ ग्रंथ ऐसे हैं जिनके लेखक आदि अज्ञात हैं । मराठी के मौलिक लेखक ७, और अनुवादक १४, अज्ञात ६. गुजराती के मौलिक लेखक २३, और अनुवादक १५, अज्ञात ७. बंगला के मौलिक लेखक १५, अनुवादक ५, और अज्ञात १. उर्दू के मौलिक लेखक ५३ और अनुवादक १२ अगरेजी आदि के मौलिक लेखक १०३, अनुवादक ३५, और अज्ञात ६. प्रकाशक-इन पुस्तकों के निर्माण कराने और प्रकाशित करने में जिन जिन सस्थामो तथा व्यक्तियो ने भाग लिया है उनकी संख्या निम्न प्रकार है । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) (१) साहित्यिक शोष, खोज, निर्माण, प्रकाशन, प्रचार प्रादि उद्देश्यों को लेकर सामाजिक द्रव्य से अथवा व्यक्तिगत ट्रस्ट आदि के द्वारा स्थापित एवं सञ्चालित जैन साहित्यिक सस्थाएं और ग्रन्थ-माला समितिये-३६. (२) अन्य विविध धार्मिक सामाजिक जैन सस्थाए-~६१. (३) जैन व्यवसायी प्रकाशन और पुस्तक विक्रेता--३१. (४) जैन स्त्री पुरुष, व्तक्तिगत रूप से-२६० (५) अजैन सज्जन, सस्थाएं और प्रकाशक-२६. पूर्णयोग ४४७. विषय विभाजन--की दृष्टि से उक्त पुस्तको की संख्या निम्न प्रकार है (१) धर्म २७५, (२) सिद्धात एव तत्त्व ज्ञान १२२. (३) अध्यात्मिक ग्रन्थ १५९, (४) दर्शन एव न्याय शास्त्र ६४ (५) प्राचार शास्त्र १५२, (६) पुराण चारित्र ११६, (७) प्राचीन कथा साहित्य ७८, स्तोत्र स्तुति पद-भजनादि सग्रह-२११, (९) पूजा प्रतिष्ठापाठ और तीर्थमहात्म्यादि १३६, (१०) मन्त्र तन्त्रादि ७. (११) नीति सुभाषितादि १६, (१२) तुलनात्मक अध्ययन, समीक्षा परीक्षा, खडन मडनादि १६५, (१३) साहित्य व्याकरण छन्द अलकार कोषादि ५७, (१४) विज्ञान गणित ज्योतिष निमित्त शास्त्र, वैद्यक, रत्न परीक्षा, वास्तुसार आदि १८, (१५) इतिहास पुरातत्त्व राजनीति, जीवन चरित्र आदि १६५, (१६) भूगोल खगोल, यात्रा विवरण, स्थान परिचयादि ५५, (१७) काव्य नाटक उपन्यास कहानी आदि २२८, . (१८) समाज सुधार व शिक्षा (१९) स्त्री व बालकोपयोगी ७५, (२०) महत्त्वपूर्ण भाषण व्याख्यानादि ५०, (२१) शेष विविध १०१. इस विषय विभाजन में अंगरेजी पुस्तके सम्मिलित नही की गई हैं। . सामयिक पत्र पत्रिकाएं-अब तक लगभग अढ़ाई सौ जैन सामन Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिक पत्र पत्रिकाएं विभिन्न भाषामो तथा साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, बिमासिक, पाठमासिक मादि विविध स्पो मे निकल चुकी है। इसमें से जिनके विषय मे कुछ ज्ञात हो चुका है ऐसी १६६ पत्र पत्रिकाए (९० दिगम्बर और ६६ श्वेताम्बर आदि) तो अल्पाधिक समय तक चल कर बन्द हो चुकी हैं। __ वर्तमान मे ज्ञात चालू जैन पत्रो की सस्या ८४ है जिनमे से लगभग ५० दिगम्बर, २६ श्वेताम्बर प्रौर ८ स्थानक बासी है। इनमे से हिन्दी के ५० मराठी ३, सुजराती १६, कन्नडी २, उर्दू १, अगरेजी २, हिन्दी गुजराती मिश्रित ७, हिन्दी मराठी १, हिन्दी उर्दू १, हिन्दी अंगरेजी १ हैं। इन पत्रो मे पाठमासिक २, त्रैमासिक ५, मासिक ४५, पाक्षिक १६ और साप्ताहिक १६ है । दैनिक कोई नही है। सम्पादन प्रकाशन की उत्तमता तथा साहित्यिक एव ऐतिहासिक दृष्टि से निम्नलिखित वर्तमान जैन पत्र पत्रिकाएँ पर्याप्त महत्त्व पूर्ण है-अनेकान्त (देहली), जैन सिद्धान्तभास्कर (बारा), दी जैना एटीक्वेरी (मास), ज्ञानोदय (बनारस), श्री जैन सत्य प्रकाश (अहमदाबाद), जैन भारती (कलकत्ता), जैन गजट म गरेजी (लखनऊ), प्रात्मधर्म (सोनागढ), जैन महिलादर्श (सूरत ) मैन मित्र (सूरत), दिगम्बर जैन (सूरत), जैन सन्देश (आगरा), वीर वाणा (जयपुर), जैन जगत (वर्धा), सगम (वर्धा), वीर (देहली), श्रमण (बनारस), जैन बोधक (शोलापुर), प्रगति प्रति जिन विजय (बेल गांव), तारण सदेश (दमोह), जैन प्रचारक (देहली) जैन प्रकाश (बम्बई), प्रबुद्ध जैन (बम्बई), जिनवाणी (भोपालगढ), तरुण जैन (कलकत्ता), वीर लोकाशाह (जोधपुर) श्वेताम्बर जैन (आगरा), जैन (भाव नगर) इत्यादि । जैन सामयिक पत्रो के सम्बन्ध मे जैन मित्र (कातिक सुदी ६, वी० स० २४६४, पृ० ११-१२) में दिगम्बर जैन समाज के भूत और वर्तमान कालीन पत्र' शीर्षक से श्री शान्ति कुमार जैन ठवली, मापपुर मे ४८ भूतकालीन और २६ चालू पत्रो की सूची प्रकाशित की थी। उसके पश्चात श्रीयुत मगर चन्द्र माहटा ने प्रोस वाल नवयुवक वर्ष ८ संख्या १, मई सन् १९३७ के मन मे Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ ४२ पर 'जन समाज के वर्तमान सामयिक पत्र लेख में उस समय पान ५६ पत्रो की सक्षिप्त परिचयात्मक सूची दी थी तथा जैन सिद्धान्त भास्कर भाग ५ किरण १, पृ० ३६ पर प्रकाशित अपने लेख 'भूतकालीन जैन सामयिक पत्र' में समाचार पत्रो के इतिहास पर सक्षित प्रकाश डालते हुए १०५ भूतकालीन तथा ६६ चालू पत्रों की नाम सूची दी थी। और जैन मिव वर्ष ५१, अङ्क ७ (ता. २२ दिसम्बर सन १६४६) में जैन समाज के समाचार पत्र शीर्षक के अन्तर्गत ५७ चालू पत्रो को जिनमे ३३ दिगम्बर और २४ श्वेतामार है तथा ६२ भूतकालीन पत्रों की जिनमे ६८ दिगम्बर और २४ श्वेताम्बर है एक सूची री है। उपरोक्त विभिन्न सूचियों मे से किसी मे भी वे लगभग एक दर्जन सार्वजनिक पत्र सम्मिलित नही हैं जिनका सम्पादन, प्रकाशन अथवा संचालन जैनों द्वारा किया गया है और जिनमें से कई पत्र पर्याप्त लोक प्रिय भी रहे हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सामयिक पत्रों और पत्र कला की दृष्टि से भी अल्प संख्यक जैन समाज ने पर्याप्त उन्नति की है और वह किसी से पीछे नहीं है। यदि इसमें कोई दोष है तो यही कि जिन पत्रो की सख्या आवश्यकता से अधिक है, उनका पठन प्राय जैन समाज के भीतर ही सीमित होने से एक भी पत्र की ग्राहक संख्या उसे स्वनिर्भर करने के लिये पर्याप्त नहीं है। फल स्वरूप लेखकों और पत्रकारों की भी अत्यधिक दुर्दशा है । जहाँ तक पुस्तक साहित्य का सम्बन्ध है, उपरोक्त विवरण सूची मे जो २६८० पुस्तकें उल्लिखित हुई हैं उनके अतिरिक्त भी कम से कम दो ढ़ाई सौ ऐसी पुस्तके अवश्य निकल पायेगी जिनका कि साधनाभाव अथवा ज्ञात न हो सकने के कारण कोई उल्लेख नही किया जा सका। गत तीन वर्षों में भी (अर्थात् उक्त सूची के निर्माण करने के बाद से) लगभग एक सौ पुस्तके और प्रकाशित हो चुकी है जिनमे से अधिकाश हिन्दी की है और जिनमे से एक दर्जन से अधिक पर्याप्त उच्च कोटि के विशालकाय ग्रन्थ हैं। साथ ही उपरोक्त लगभंग ३००० पुस्तकें प्राय करके केवल दिगम्बर समाज द्वारा प्रकाशित पुस्तकें Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ही है और उनमे भी कन्नडी, तामिल, तेलगू, मलयासम प्रादि भाषाओं में प्रका. शित जैन पुस्तको का समावेश नहीं है। दो ढाई हजार के लगभग पुस्तकें श्वेताम्बर तथा स्थानकबासी प्रादि अन्य जैन सम्प्रदायों द्वारा भी प्रकाशित हो चुकी है। अस्तु डा० माता प्रसाद गुप्त की पूर्वोल्लिखित 'हिन्दी पुस्तक साहित्य' में दी हुई लगभग ५५०० पुस्तको और लगभग ४५०० लेखको के प्राय. बराबर ही समन मुद्रित प्रकाशित जैन पुस्तक साहित्य और उसके निर्माता आदि हैं। यदि केवल हिन्दी जैन पुस्तको को ही लिया जाय तो वे भी समग्र हिन्दी पुस्तकों के दो तिहाई से अधिक अवश्य हैं, और भाषा, शैली, विषय महत्त्व और लोकोपयोगिता की दृष्टि से भी सामान्यत उनकी अपेक्षा निम्नकोटि की नही है। माराश यह है कि स्वतन्त्र भारतीय राष्ट्र, भारत के सास्कृतिक विकास और साहित्यिक प्रगति के लिये यह परम आवश्यक है कि देश के साहित्यिक और विद्वान जैन साहित्य को भी ममग्न भारतीय साहित्य का अभिन्न अविभाज्य अङ्ग मानकर निष्पक्ष एव महृदय दृष्टि से ज्ञान की विविध शाखामो मे उसका अध्ययन मनन और उपयोग करे । उनकी दृष्टि मे वह उपनिषद जैन आगम और बौद्ध त्रिपिटक, पाणिनी और पूज्यपाद, पातज्जलि अश्वघोष व्यास और कुन्द कुन्द व समन्तभद्र, चरक सुश्रुत उग्रादित्य मोर नागार्जुन, शकर धर्मकीति और अकलक, कालिदास और जिनसेन, योगीन्दु सरहपा कबीर और दादू, तुलसीदास और बनारसीदास इत्यादि महापुरुषों और उनके विचारो एव रचनामों का समान महत्त्व होना चाहिये । बिना किसी भेद भाव के इन सभी महान पूर्व पुरुषो का सम्मान एवं अध्ययन ज्ञान के सर्वतोमुखी विकास, राष्ट्र की एक सूत्रता तथा देश और समाज के कल्याण का प्रमोघ साधन है, इसमें कुछ भी सन्देह नही। जैनाध्ययन का महत्त्व प्रौर प्रगति श्रमण सस्कृति की प्रधान धारा जैन सस्कृति सदर प्रतीत से चली आई Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) प्रायः सर्व प्राचीन विशुद्ध भारतीय संस्कृति है । प्रत भारतीय संस्कृति का समुfat मूल्यांकन करने के लिए और आधुनिक भारत के ही नहीं वरन विश्व के भी सांस्कृतिक विकास में उससे पूरा पूरा लाभ उठाने के लिए यह प्रत्यन्तं आवश्यक है कि जैन श्रमण संस्कृति के विविध अ गो का विशद एव गभीर अध्ययन किया जाय । वैसे तो १५ वी शताब्दी ई० की अतिम पाद में सर विलियम जोन्स से प्रारंभ करके अनेक पाश्चात्य विद्वानो द्वारा भारतीय साहि त्य, कला, पुरातत्त्व तथा अन्य साँस्कृतिक विषयों का अध्ययन प्रारंभ हो गया था । १६ वी शताब्दी के उत्तराधं मे अनेक उद्घट भारतीय विद्वान भी उक्त कार्य में सक्रिय सहयोग देने लगे थे, और सौ वर्ष के उपरात तो इस क्षेत्र में भारतीय विद्वानों का ही प्राय एकाधिकार हो गया है । इन पाश्चात्य एवं पूर्वीय विद्वानों ने अपने उपरोक्त अध्ययन के दौरान मे प्रसंगवश जब तब जैनधर्म, संस्कृति, इतिहास, साहित्य, कला, पुरातत्त्व, प्रच्यतत्त्व आदि का भी अल्पाधिक अध्ययन एव खोज शोध की और अपने महत्त्वपूर्ण गवेषणात्मक विवेचनो के द्वारा जैनाध्ययन को प्रगति प्रदान की । तथापि भारतीय अथवा विदेशी प्राच्यविदो का ध्यान अनेक कारणो से अभी तक भी उसकी भोर इतना आकृष्ट नही हो पाया जितना कि होना चाहिये था । सास्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से जन धर्म, सिद्धान्त, तत्त्वज्ञान, दर्शन और सामाजिक आचार विचार एव पर्व आदि के अतिरिक्त वर्तमान भारत को प्रदत्त जैन संस्कृति की स्थूल पुरातन भेटे निम्नप्रकार है --- विविध भाषामय तथा विविध विषयक विपुल जैन साहित्य, जैन ग्रन्थो की प्राचीन हस्तलिखित प्रतियाँ, जैन चित्र कला, जैन मूर्त्तकला, जनस्थापत्य और शिलाखडो, प्रतिमा, ताम्रपत्रो आदि पर अकित जैन पुराभिलेख, इत्यादि । जैन ग्रहस्थ के देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, सयम, तप एव दान रूप दैनिक छह श्रावश्यक कार्यों मे दान देना उनका एक महत्त्वपूर्ण एव श्रावश्यक कर्त्तव्य है । शास्त्र, अभय, आहार एवं औषधिरूप चतुविष दान प्रणाली में शास्त्रदान का स्थान बहुत ऊंचा है । अत. शास्त्र दान सबधी इस धार्मिक In Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७० ) विज्ञान, जैन साधु वर्ग की सदैव से चली बाई ज्ञान पिपासा seत जीवता पौर साहित्यिक अभिरुचि तथा घनी श्रावक की उदारता पूर्ण सहायता सद्योग एव श्रुतभक्ति के कारण आज भी भारतवर्ष के विभिन्न मानों में ऐसे अनेक जैन ग्रन्थ भडार विद्यमान हैं जो अपने प्राचीन प्रमाणीक महत्त्वपूर्ण अंश समझे जाने योग्य हैं । प्राकृत - प्राचीन भारतीय सस्कृति की अनेक विधि धाराओ का महत्व भली भांति समझने के लिए संस्कृत और प्राकृत, दोनो ही साहित्य का साथ साथ अध्ययन करने की आवश्यकता है । पभिलेखीय प्राचार स्पष्टतया सूचित करते है कि सर्व साधारण मे भावव्यजना के लिये प्राकृत भाषायें प्रत्यधिक लोकप्रिय थी । उत्तर तथा दक्षिण दोनो ही प्रदेशों मे प्राचीनतम काल से राजकीय प्रदेश तथा व्यक्तिगत लेखादि प्राकृत मे ही लिखे मिलते | संस्कृत नाटको मे स्त्री आदि पात्रों के द्वारा प्राकृत का बहुत प्रयोग इस बात को प्रभागित करता है कि एक समय था जबकि प्राकृत भाषाएँ ही लोक प्रिय तथा साधारण बोल चाल की भाषाएँ थी । वस्तुत कई एक महिला कवित्रियो ने प्राकृत में ही काव्य रचना की है। * इसमे भी सन्देह नहीं है कि जैन धार्मिक एव लौकिक गद्य पद्यात्मक प्राकृत साहित्य का सिलसिला अति प्राचीन काल से मध्य युग पर्यन्त अविच्छिन्न रूप से चला आया है, और यदि इस प्राकृत जैन साहित्य को सम्पूर्ण प्राकृत साहित्य में से निकाल दिया जाय तो अवशेष नगण्य रह जाय । 1 किन्तु यद्यपि प्राय समस्त श्वेताम्बर जैन अर्धमागधी प्रागमग्रन्थ अ शत. arrar पूर्णत एकाधिक सस्करणों में प्रकाशित हो चुके हैं, तथापि, मूल पाठों के समालोचनात्मक दृष्टि से सुसम्पादित संस्करण बहुत ही थोडे हैं । निर्यु - क्तियों एव चूरिगयो सहित इस समस्त अर्धमागधी साहित्य के ऐसे एक रस *प्रो० जे० बी० चौधरी, कृव 'संस्कृत कवित्रियों' भ्रा० २८. कपूर जी नाटक का प्रथम अभिनय भी विदुषीरत्न अवन्ति सुन्दरी की प्रेरणा पर ही हुआ था । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शनों की पाया है। पाटन के हम चमाचार्य ज्ञान संदिर' में हक लिखित प्रतियों में स्थानीय संग्रहों को सुरक्षित एवं व्यवस्थित करने का को स्कुत्य कार्य किया वह अन्य स्थानों के लिये भी अनुकरणीय है और वह उपरोसा प्रयर के संस्करण प्रकाशन के लिये आवश्यक अन्वेषल कार्य के लिये उपयोगी सिव होगा। समग्न मागम ग्रन्थों के ऐसे प्रमाणिक सम्पादन मै वर्षमागणी कोष,' 'पाइयसह महाष्णव' मादि वर्तमान कोष ग्रंथों की कभी पूत्ति हो जायनी । ऐसे जैन पारिभाषिक शब्दों या पदों का जिन के कि अर्थों का तारतम्म जैन साहित्य के विभिन्न स्तरों में अध्ययन किया जा सके, कोई भी प्रमाणीक संकलन अभी तक नहीं बन पाया है । सुप्राली और जैकोबी ने ऐसे एक प्राकृत कोष के निर्माण करने के प्रश्न पर गम्भीरता पूर्वक विचार किया था, किन्तु उसका कोई विशेष परिणाम नहीं निकला। इधर वीर सेवा मदिर देहली में भी एक ऐसे ही पारिभाषिक जैन शब्द कोष 'जैन लक्षणा वलि' का निर्माण कई वर्षों से हो रहा है। हरिभद्र सूरि की 'समराइच्च कहा प्राकृत अथवा जन महाराष्ट्री कथा साहित्य का सुन्वर व श्रेष्ठ प्रतिनिधित्व करती है, किन्तु उसकी पूर्ववती 'कुवलय माला कहा' तथा उत्तरवर्ती 'वलासवई कहा' अभी तक संभवतया अप्रकाशित प्राकृत साहित्य का वह थिमिक स्तर जो दिगम्बर जैनो द्वारा मान्य एवं अत्यन्त पवित्र समझा जाता है, शिवार्य की भगवती आराधना, कुन्द कुन्द के पाहुई अन्य; बट्टे कर ' कृत मूलाचार प्रादि विक्रम की प्रथम शताब्दी के ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। ऐसा विश्वास था और जो सत्य ही सिद्ध हुआ, 'कि इनसे भी अधिक प्राचीनतर पाठ षट्खडागमादि दिगम्बर जैन सिद्धान्त ग्रन्थो की धवल जयघवल प्रादि विशाल टीकाओं में जडे पड़े हैं। इन महान ग्रंथो के (१) ऐसा विश्वासले के भी कारण है कि यह कुन्द कुन्द का ही श्रप लाम था, देखिये औका खेटीबोरी भा० कि० (२) जै० ए०, भा०६ पृ० ७५-८१, डा. हीरालाल का लेख। - Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 ( २ ) सुसम्पादित अनुवादित संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। ऐसे गूढ जैन पारिभाषिक तत्त्वज्ञान विषयक महान ग्रंथो के, जो कि यत्र तत्र संस्कृत गद्यांशों से अलंकृत नैयायिक शैली की प्रौढ प्राकृत मे है, प्रकाश मे आने से भारतीय साहित्य की एक महत्त्व पूर्ण नवीन शाखा अध्ययनार्थ प्रस्तुत हो गई है। उपरोक्त सस्करणों की विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावनाओ मे अनेक ऐतिहासिक तथ्यों पर भी नवीन प्रकाश पड़ा है तथा और नवीन ऐतिहासिक शोध खोज को प्रोत्साहन मिला है। उपरोक्त सभी ग्रन्थो मे बहुत मी सामग्री ऐसी है जो दिगम्बर श्वेताम्बर सम्प्रदाय भेद स भी प्राचीनतर है। यदि उसकी तुलना नियुक्तियो आदि के साथ की जाय तो अनेक दिलचस्प तथ्यो के प्रकाश मे आने की संभावना है । दिगम्बरो एव श्वेताम्बरो का प्राकृत एवं संस्कृत भाषाओ में निबद्ध विशाल - काय टीका साहित्य अभी तक मूल पाठो के अर्थी को समझने के लिये ही अध्ययन किया जाता रहा है । जो टीका ग्रन्थ प्रकाशित भी हो चुके है उनमे से इने गिनो का ही आलोचनात्मक अध्ययन हुआ है । नियुक्तियो, चूरिगये तथा अन्य संस्कृत प्राकृत टीकाएँ भी ज्ञातव्य सूचनाओ के ऐसे गहन भंडार है जिनमे पूर्व पक्ष के प्रतिपादन के अतिरिक्त अनेक जैन अजैन ग्रंथो के उद्धरण, अनुश्रुतिये नीति वचन, उपदेशात्मक आख्यान उपाख्यान, तथा अनेक तत्कालीन सांस्कृतिक सूचनाएँ भी उपलब्ध होती है । किन्तु इन सब विषयो की व्यवस्थित छाट, गवेषणा' सकलन तथा यथोचित मूल्याकन अभी तक प्राय नही हो पाया । इनमे से अनेक ग्रन्थो की तिथिये ज्ञात है, प्रत उनमे वरिणत विषय कालानुक्रम की से भी महत्त्वपूर्ण है । अस्तु प्रो० विधु शेखर भट्टाचार्य ने दिखलाया कि गुणरत्न धर्म कीर्ति के प्रमाण वार्तिक से भली भांति परिचित था और उसने उक्त ग्रन्थ से अनेक उद्धरण भी दिये है । २ श्री पी० के० गोडे ने अपने आकपंक निबन्ध " शकराचार्य के पूर्ववर्ती जैन आधारो मे भगवत गीता" मे ऐसे उद्ध (१) अनेकान्त तथा जैना ऐंटेक्वेरी में प्रकाशित धवला का समय तथा स्वामी वीर सेन संबन्धी हमारे विभिन्न लेख । (२) इ० हि० क्या, १६, पृ० १४२. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७३ ) रगों की पाठगत विशेषताओं पर प्रकाश डाला है । १ डा० उपाध्याय ने सिद्ध किया कि गोमट्टसार की संस्कृत 'जीवतत्त्व प्रदीपिका' टीका के कर्तव्य का श्रेय जो केशववर्णी को दिया जाता रहा है वह भ्रम पूर्ण है, और उसके वास्तविक कर्त्ता १६ वी शताब्दी के प्रारम्भ में दक्षिण कनारा के राजा सालुव मल्लिराय के समकालीन कोई नेमिचन्द्र थे । २ इन उद्धरणो की जाँच बहुधा उक्त टीका श्रो की समयावधि निर्धारित करने मे भी सहायक होती है जैसा कि डा० उपाध्याय ने मुलाचार की वसुनन्दिवृत्ति पर से 3 तथा श्री गोडे ने मलयगिरि की तिथि के सम्बन्ध मे दिखाने का प्रयत्नकिया है। गतदर्शक में प्रकाशित कई महत्त्वपूर्ण ग्रन्थो की प्रस्तावनाओ मे प० महेन्द्र कुमार, प० कैलाश चन्द्र, प० जुगलकिशोर मुख्तार, प० दरबारी लाल कोठिया आदि ने तथा अपने फुटकर लेखो के रूप मे कई अन्य विद्वानो ने भी इस प्रकार की सामग्री का विश्लेषण एव उपयोग किया है । अपभ्रंश -- भाषा और साहित्य का अध्ययन प्राच्य विद्या का एक नवीन क्षेत्र है । जैकोबी, दलाल, गुणे, शहीदुल्ला, गाधी, वैद्य, उपाध्ये, हीरालाल एल्सफोर्ड आदि विद्वानो ने अनेक मूल्यवान अपभ्रंश ग्रथो का सम्पादन किया है तथा इस भाषा के स्वरूप के सम्बन्ध मे महत्त्व पूर्ण विवेचन किये है। डा० पी० एल० वैद्य ने पुष्पदत्त के महापुराण का विद्वतापूर्ण सम्पादन किया । महापति राहुल सांकृत्यायन ने महाकवि स्वयंभू की रामायण पर अभूत पूर्व प्रकाश डाला । प्रेमी जी ने भी इन प्रारम्भिक जैन अपभ्रंश कवियो के सम्बन्ध मे ज्ञातव्य सूचनाएं दी । डा० उपाध्ये ने जोइन्दु के परमात्म प्रकाश का और प्रो० हीरालाल ने भी कई अपभ्रंश ग्रथो का सम्पादन किया है । प० परमा-" (१) एनल्स भा० ओ० २ि० इ०, २०, पृ० १८८ फुटनोट (२) इपि० कर्ण, ७, १, नो० (३) बूल्नर कमेमोरेशन वाल्यूम, लाहौर १६४० पृ० २५७ फु० (४) जै० ए०, भा० ५, पृ० १३३ फु० नो Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) मंद शास्त्री ने कतिपय मध्य कालीन जैन अपना कवियों की परिभवं अपभ्रश भाषा और साहित्य के सम्बन्ध में जो कुछ अधुना ज्ञात है वह उसकी तुलना में नगण्य सा है जो कि अभी भी राजपुताना, गुजरात प्रादि के अंच भडारों मे दबा पड़ा है। राजस्थान, मध्यभारत, गुजरात, महाराष्ट्र, संभव. तया उतर प्रदेश मे भी, सर्वत्र, ६ठी शताब्दी पर्यन्त लगभग एक सहस्त्र वर्ष तक अपभ्र श भाषा का अभ्यास और प्रचलन बहुलता के साथ रहा प्रतीत होता है, सो भी विशेष कर जैनो द्वारा । अपभ्रंश कविता अपनी भाषा सम्बन्धी विशेषतामो के अतिरिक्त, छन्द शास्त्र, पालंकारिक प्रयोग, नीति तथा तत्कालीन जगत के निकटतम अनुवीक्षण से पोत प्रोत है । उद्योतन सूरि के शब्दो मे उसका शब्द प्रवाह पार्वतीय स्रोत की नाई द्र तवेग से प्रवाहित होता है। उसके युद्ध वर्णन अत्यन्त रोमाञ्चक और प्रेम भक्ति करुणा आदि कोमल भावो के चित्रण पाश्चर्यजनक रूप से सजीव होते है । यद्यपि अपभ्र श साहित्य का सम्बध प्राय करके उच्चवर्गों से है तथापि वह सार्वजनिक जीवन के विविध प्रगों को भली भाति प्रतिबिम्बित करता है। साहित्य के इस क्षेत्र में न केवल एक शुष्क भाषाविज्ञ को ही प्रचुर उपयोगी सामग्री उपलब्ध होती है वरन एक भावुक कलाकार अथवा कान्य रसिक को भी प्रति रुचिकर काव्यानन्द का प्रास्वादन प्राप्त होता है । भारतीय साहित्य मे कही अन्यत्र शब्द और भाव का, बाप सगीत और अन्तरग गेयतत्त्व का ऐसा सुन्दर सामजस्य उपलब्ध नहीं होता। साथ ही, लेखीय प्रमाण के रूप मे अपभ्र श तथा प्राचीन गुजराती कवियों की कृतियों का महत्त्व उनके पश्चाद्वर्ती महाराष्ट्र के ज्ञानेश्वर, तुकाराम आदि लेखको की रचनामो से कही अधिक है। (१) हमारे द्वारा सम्पादित जो इन्दु के मांगसार आत्मदर्शन की भूमिका तथा अनेकान्त १६४५; में प्रकाशित हमारा लेख 'नागभाषा और नाग सभ्यता' भी पठनीय है। Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अपभ्रस साहित्य का गंभीर अध्ययन एक अन्य हष्टि से भी प्रावश्यक है। महराजगती व राजस्थानी भाषामो के विकास के इतिहास के लिए निश्वस्त मत्युपयोगी है। यही नहीं, बल्कि विद्वानों ने तो यह बात भी प्रायः निर्विवाद स्वीकार करनी है कि कतिपय गौण स्थानीय भेदों को लिए हुए अपना भाषा ही जोकि प्रायः सम्पूर्ण उत्तरी एव मध्य भारत मे बालता के साथ प्रचलित . थी, माधुनिक भारतीय मार्य लोक भाषामों का मूलाधार, उद्रम स्रोत एवं प्रत रूप है । अतएव इसमें सन्देह नही कि उसका अध्ययन उक्त प्रान्तीय भाषामो के शब्द कोष तथा व्याकरण सम्बंधी नियमों को समृद्ध करने में प्रत्युपयोगी सिद्ध होगा और मन्तर प्रान्तीय व्यवहार सबद्धन के हित हमारी राष्ट्रीय भाषा के शब्द मडार के समुचित निर्माण की वर्तमान समस्या को बुलझाने में भी सहायक होगा। जैनो के मूल पार्ष अन्थो तथा उनकी टीकामो में प्रयुक्त प्रयोगों के सम्बन्ध से यदि प्राकृत भाषाओं का बिपि विज्ञान, वर्स विज्ञान एव व्याकरण विषयक व्यवस्थित अध्ययन चालू किया जाय तो वह निश्चय ही मध्य कालीन भारतीय भार्य साहित्यिक ज्ञान के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। वास्तव मे, स्क्य आचार्य हेमचद्र ने अपभ्र श भाषा की व्यवहार्य रूपरेखा प्रदान करदी थी और अब जैकोबी, हीरालाल, वैद्य, उपाध्याय, एल्सफोर्ड प्रभृति विद्वानों ने उसके प्रादर्श सम्पादित सस्करण भी प्रस्तुत कर दिये है। सामान्यत. काम चलान से लिए 'पाइयसद्दमहाण्णव' उसका एक अच्छा कोष भी है। अपनश साहित्म की यह भी विशेषता है कि उसमें भाषा के लिए उपयुक्त छन्दो का ही प्रयोग हुआ है । प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषा के छन्दोंनुशासन के सम्बंध में प्रो० एच० डी० वेलकर द्वारा प्रस्तुत मूल्यवान सामग्री और विवेचन उक्त साहित्य के विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। पूर्वी अपभ्रंश के सम्बन्ध में श्री हरप्रसाद शास्त्री, सहीदुल्ला, वायची, चौधरी मादि विद्वानो ने अच्छे ज्ञातव्य प्रदान किये हैं। प्रस्तु प्राकृत भाषामो की अषम मध्ययुगीन भारतीय आर्य भाषामो की, जिनमे कि भगवान महावीर ने अपने Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७६ ) जीव दया मूलक सिद्धान्तो का उपदेश दिया, जिनमे सम्राट प्रियदर्शिन ने अपने स्मरणीय अभिलेख खुदवाये, जिनमे सैकड़ों कवियों ने जिनमें से कि हालकी सतसई और स्वयंभू के निर्देशो द्वारा हमें केवल कुछ एक के ही नाम प्राप्त हुए है - लोक जीवन के विविध अगोके सम्बध में प्रल्हाद पूर्णगान किया, जिनमे कालिदासके स्त्री पात्रोने अपने पत्र लिखे, वाक्पति, प्रवरसेन, उद्योतन, हरिभद्र, राजशेखर, स्वयम्, पुष्पदत. गुणचन्द्र, रामपाणिवाद तथा अन्य विभूतियोने अपनी मनोहारी गद्य-पद्य रचनाएं की, जोइन्दु तथा कान्ह जैसे सन्तो ने अपने रहस्यवादी विचारो की अभिव्यजना की, जिनमें कि राजपूत चरणों के वीरतापूर्ण गीत आर्यावर्त के चारो कोनो में गूज उठे और जिनकी कि गोद मे वे आधुनिक भारतीय लोक भाषाए जन्मी और पनपी कि जिन्हे समृद्ध करने के लिए हम आज प्रयत्नशील है तथा जिनपर हमे इतना गर्व है-- भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता को समझाने के लिए उनकी उपेक्षा नही की जा सकती । ये प्राकृत और पश भाषा महस्त्रो वर्ष पर्यन्त सार्वदेशिक और और सार्वजनीन रही, पाय सर्व ही प्रान्तीय भाषाओ को, यहा तक कि द्रविड वर्ग की कन्नडी आदि भाषाओ को भी इन्होंने पर्याप्त रूप में प्रभावित किया । और सर्वाधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि विभिन्न देशीय प्राकृत और अपभ्रंश भाषा मे आधुनिक प्रान्तीय भाषाओ की भाति कोई भेद पक अन्तर ही न था । उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम सवत्र उनका प्राय एकसा प्रयोग होता था, साहित्य मे भी और बोलचाल मे भी । उनके पैशाची, शौरसेनी, गौडी, महाराष्ट्री आदि भेद वास्तव मे क्षेत्रपरक नही थे। जैसा कि डा० उपाध्याय ने स्पष्ट कहा है, यह कथन करना कि महाराष्ट्री प्राकृत के ग्रन्थ महाराष्ट्र मे ही लिखे गये अथवा जैन महाराष्ट्री का प्रयोग महाराष्ट्र के जैनो ने किया और शौरसेनी का शूरसेन देश के जैनो ने, नितान्त भ्रमपूर्ण है । यही बात तथा कथित विभिन्न अपभ्रशो के विषय मे है । इन भाषाओ का प्रदेश विशेष के साथ कोई सम्बध ही न था । वे तो चिरकाल पर्यन्त भारत वर्ष के सर्व साधारण की भाषाए रही थी, अन्तर्प्रान्तीय थी और सच्चे अर्थों मे अपने-अपने समय मे इस देश की राष्ट्रीयलोक भाषाए थी । ल Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्य भाषायें-मध्ययुगीय भारतीय प्रार्य भाषाओं के क्षेत्र के प्रति 'रिक्त, जैन लेखको ने भारतीय ज्ञान की विविध शाखामों में न केवल संस्कृत प्राकृत मादि मे ही वरन् कई द्रविड भाषानों में भी पर्याप्त योमदान किया है। अनेक प्राच्यविदो द्वारा अपने-अपने क्षेत्रों मे यथा शब्द शास्त्र, छन्द शास्त्र, काव्य शास्त्र, व्याकरण, राजनीति, न्याय, चिकित्साशास्त्र, गणित, ज्योतिष प्रादि मे तद्विषयक जैन ग्रन्थों का अध्ययन भी किया जाने लगा है, किन्तु ये अध्ययन प्राय. करके संस्कृत साहित्य तक ही सीमित है। इस सम्बध में विचार करने के लिए जैन साहित्य को ही अध्ययन की इकाई मानकर चलना अधिक सुविधा जनक होगा, यद्यपि जैन ग्रन्थों से यह स्पष्ट है कि जैन विद्वानो की विविध विषयक साहित्यिक साधना भारतीय साहित्य की अन्य धाराओं से सर्वथा पृथक कभी नही रही । पूज्यपाद पातञ्जलि के महाभाष्य मे पूर्णतया निष्णात थे, अकलक ने अपने पूर्ववर्ती बौद्ध नैयायिकों की कृतियो का गभीर अध्ययन किया और उनका सयुक्तिक खडन एव आलोचना की । हरिभद्र ने तो दिङनाग के न्याय प्रवेश पर टीका भी लिखी। रविकीति एव जिन सेन जैसे कवि पुगव कालिदास और भारवि की कृतियो से भली प्रकार परिचित थे और उनमे आदर भाव रखते थे। सिद्धचन्द्र और चारित्रवर्धन जैसे ग्रन्थकारो ने बाण तथा माघ के ग्रन्थो की टीकाएं लिखीं। डा. हर्टल के कथनानुसार पचतत्र जैसे सर्व प्रसिद्ध ग्रन्थ के जितने सस्करण यूरोप आदि विभिन्न भारतेतर देशों में पह चे वे सब ही जैन विद्वानो द्वारा किये गये मूल ग्रन्थ के सद्धित, परिवद्धित अथवा परिवर्तित रूप थे, तथा जैन 'शुक सप्तति' ही एक मात्र ऐसी भारतीय रचना है जो अपने मूल रूप मे ही सम्पूर्ण जैसी की तैसी भारत के बाहर सुदूर देशों मे पहुची और प्रचार को प्राप्त हुई। अतएवर्ष भारतव के सम्पूर्ण साहित्यिक जाल के रूप एव विकास को पूर्णतया समझने के लिए जैन साहित्य का अध्ययन परमावश्यक है। जैन विद्वानो ने अपनी साहित्य साधना प्राय, साथ ही साथ प्राकृत, सस्कृत, अपभ्र श, तामिल तथा कन्नडी भाषामो मे की। कितने ही जैन ग्रन्थ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) कार तो अपने पापको 'उभय भाषा कधि चक्रवर्ती प्रादि विशेषणो से सूचित करने में गोरख मानते थे । उक्त विभिन्न भाषामो मे उपलब्ध न रचनाएँ इतनी परस्पर सम्बद्ध हैं कि एक ही नाम तथा एक ही प्रतिपाद्य विभव के अन्य विभिन्न कालो मे विभिम भाषामों में उपलब्ध होते हैं। उदाहरणार्थ जयराम ने प्राकृत में धर्म परीक्षा नामक ग्रन्थ की रचना की। उसी के आधार पर सन् १८८ ई. में हरिषेण ने चित्तौड़ मे अपभ्रश से धर्म परीक्षा लिखी। सन् १०१४ मे उज्जैन निवासी अमितगति ने सस्कृत मे उसी अन्य की रचना की और १२ वीं शताब्दी मध्य के लगभग कर्णाटक निवासी वृत्तिविलास ने कन्नडी भाषा में की। इस प्रकार विभिन्न ग्रथो में अन्तर्भूत अन्तर्भाष यिक एव अन्तन्तिीय प्रभावों को लक्ष्य करने से भारतीय साहित्य का जो डाचा हमारे समक्ष है उसमे अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यो की अवश्य ही वृद्धि होगी। ऐसा तुलनात्मक अध्ययन पूर्वापर तथा रचना तिथि आदि बातो के निर्णय मे भी महत्त्व पूर्ण सिद्ध होगा। सस्कृत एव प्राकृत के अतिरिक्त अन्य भाषामो मे रचे गये जैन साहित्य का बहुत कुछ आभास भार० नरसिहाचार्य कृत 'कर्णाटक कवि परिते' या उसके प्रेमी जी कृत अनुवाद 'कर्णाटक के कवि, श्रीयुत देसाई कृत 'गुर्जर कवियो-२ भाग; प्रोफेसर चक्रवर्ती का तामिल जैन साहित्य, प्रेमी जा व बा० कामता प्रसाद के हिन्दी जैन साहित्य के इतिहास, हमारा 'हिन्दी का पुरातन गद्य साहित्य' और राजस्थानी जैन साहित्य के सम्बन्ध मे श्री अगरचन्द नाहटा के लेखो से हो सकता है। बहु विषयक बहुभाषयिक होने के साथ ही जैन साहित्य बहुविषयिक भी है और नैयायिक अग तो अत्यन्त समृद्ध एवं महत्त्वपूर्ण है। किन्तु भारतीय साहित्य की न्याय विषयक शाखा ने प्राच्य विक्षों का ध्यान अपनी ओर अभी कम ही आकर्षित कर पाया है । जैन नैयायिक साहित्य सो प्राय. स्पर्श ही नही किया गया, यद्यपि लगातार अनेक शताब्दियो से प्रकांड जैन नैयायिक जैन धर्म के सिद्धान्तों का अन्य भारतीय विचारधाराओं Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के अत्यन्त विशद तुलनात्मक विवेचन करते चले पाये हैं बास्त्र से प्र० के० बी० पाठक और य. सतीशचन्द्र वि० भू० उक्त प्रयों के कालक्रम के विषय में बहुत कुछ लिखा था, किन्तु उसके पश्चात् अब इनर इतनी अधिक नबीन सामग्री प्रकाश मे मा रही है कि विद्वानरे को अपनी पूर्व निश्चित धारणामों में परिवर्तन करना पड़ रहा है। प्रो० एच० भार सापडिया ने गायकवाड़ ओरियंटन सीखेज (भाग १, बड़ोस १६४०) के मन्तर्गत स्वोपज्ञ वृत्ति एब मुनिचन्द्र कृत टीका सहित 'भनेकांत जय पताका' का सम्पादन किया । प० महेन्द्र कुमार ने अपने द्वारा सुसम्पादित 'मकलक' अन्यत्रय' x की भूमिका मे अकलक के समय, सखी तथा अन्य ममेक तथ्यो पर विद्वतापूर्ण प्रकाश डाला है। उन्ही के द्वास सम्पादित न्याय कुमुदचन्द्र दो भागों की स्वय उनके तथा प० कलाश चन्द्र द्वारा लिखित भूमिकामो में नवीन दृष्टि कोण एवं प्रचुर सामग्री होने के साथ ही साथ अकलक के समय सम्बधी भान्ति का भी प्राय. निरसन हो गया है । ५० महेन्द्रकुमार द्वार सम्पादित प्रमेय कमल मार्तण्ड तथा न्याय विनिश्चय विवरण के संस्करण भी महत्वपूर्ण हैं । सकल भारतीय न्याय शास्त्र मे निष्णात प्रज्ञाचक्षु प० सुखलाल संघबी अपनी गहरी पहुंच, ताजा दृष्टि कोण तथा खोज पूर्ण विश्लेषण के लिए प्रसिद्ध है । उन्हे तथा उनके साथियों को 'जैन तर्क भाषा' एव 'प्रमाण मीमासा' के उत्तम सस्करण सम्पादित करने का श्रेय है। उन्होंने सिद्धसेन दिवाकर के 'सन्मतितक' का भी गुजराती अनुवाद और विद्वत्तापूर्ण सपादन किया है, जिसका कि अगरेजी अनुवाद प्रो० अथवले तथा गोपानी ने किया है। पं० दरबारीमाल कोठिया ने धर्म भूषण की न्यायदीपिका तथा विद्यानन्द की आप्त-परीक्षा के उत्तम सम्पादन किये हैं। पं० जुमलकिशोर मुख्तार, समन्तभद्र के युक्तयान, शासन का अनुवाद और सम्पादन कर रहे हैं, सन्मतितर्क और सिद्धसेन दिवाकर सम्बंधी उनका लेख भी बहुत महत्त्वपूर्ण है । स्याहार मंजरी भीर मास्मिक्यनंदि कृत परीक्षा मुख सूत्र के सम्पादित संस्करण भी प्रकाशित हो चुके है। - सिंधी जैन अन्यमानान०१२, अहमदाबाद, १६३६. Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८०) कलकत्ता विश्वविद्यालय के डा० सातकोडी मुखर्जी ने जैन दर्शन पर एक स्वतंत्र ग्रन्थ-दी फिलासफी माफ नान एबसोल्यूटिज्म, लिखा है। समन्तभद्र, पूज्यपाद . अकलक, विद्यानंद आदि प्राचार्यों के समय एवं इतिहास के सम्बध में हमारे भी कई लेख प्रकाशित हो चुके हैं। इस समग्र नव प्रकाशित साहित्य से जो सामग्री प्रकाश में पा रही है वह मध्यकालीन भारतीय न्याय दर्शन के सम्बध में पूर्वनिर्धारित धारणामो मे भारी क्रान्ति करने वाली हैं। पूर्वपक्ष के प्रतिपादन में ये जैन ग्रन्थ उल्लेखनीय निष्पक्षता प्रदर्शित करते हैं और विन्टरनिट्स के कथनानुसार, उनके दार्शनिक विवेचन अन्य भारतीय दर्शनो का अध्ययन करने में अत्यन्त मूल्यवान सिद्ध होते है। तत्त्वज्ञान, न्याय, धर्म शास्त्र आदि के अतिरिक्त जैनों का काव्य, नाटक, चम्पू, कथा माहित्य, अलकार, छद, गब्द शास्त्र, गणित, ज्योतिष, चिकित्सा शास्त्र, राजनीति, इतिहास आदि विभिन्न भाषामय विविध विषयक साहित्य भी पर्याप्त विशाल काय एवं महत्त्वपूर्ण है । तत्तद विषयों से सम्बधित अखिल भारतीय साहित्य के विकास एवं इतिहास का ज्ञान बिना उन विषयो के जैन" साहित्य के समुचित अध्ययन एव उपयोग के अधूरा ही रहेगा। किन्तु खेद है कि इस विशाल जैन साहित्य के न्यूनॉश का भी अभी प्रकाशन अथवा सदुपयोग नही हो पाया है। हस्त लिखित प्रतिया-भारतवर्ष के अनगिनत जैन शास्त्र भडारो मे सगृहीत पुरातन ग्रन्थो की हस्तलिलित प्रतियॉ देश की अमूल्य निधि हैं। ये ऐसी वस्तु है जिनकी कि एक बार पूर्णतया नष्ट हो जाने पर पूत्ति कर लेना असभव है । परवर्ती साहित्यगत उद्धरणो, उल्लेखो अथवा निर्दशो पर से ऐसे अनेक ग्रन्थो का पता चलता है जिनकी एक भी प्रति कही भी उपलब्ध नही है । साहित्यिक इतिहासकारो के लिए हस्तलिखित प्रतियाँ अनुमानातीत महत्त्व रखती हैं । उत्सर तथा कक्षिण दोनो ही प्रदेशो के जैन ग्रन्थकारों ने अपनी रचनायो को केवल धार्मिक विषयो तक ही सीमित नही रक्खा, वरतू. अपनी कृतियो से भारतीय ज्ञान की सभी विविध भाषामो को सुसमृद्ध किया। Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतएव जैन मन्थ भंडार ऐसे सुसम्पन्न रत्लागार हैं जिनका धैर्यपूर्ण अनुशीलन प्राच्य विद्याविदों के लिए प्रावश्यक एव वाञ्छनीय है । एक समय था जब । साम्प्रदायिक सकीर्णता इन कोषागारों को विद्वत्समाज के लिए भी उन्मुक्त करने में बाधक होती थी, किन्तु अब परिस्थिति बदल रही है ।इलर, कीलहान कथवटे, भडारकर, पीटर्सन, वेबर, ल्यूमन, मित्रा, कीथ, दलाल, गांधी, वेलंकर, हीरालाल,कापडिया तथा अन्य विद्वानो के सतत् प्रयत्नों के फलस्वरूप ऐसी अनेक परिचयात्मक ग्रन्थ सूचियों का निर्माण हो चुका है जो पुरातन जैन साहित्य की भी विविध शाखाओ का विवरण प्रदान करती है और अनुसधान कार्य के लिये अत्युपयोगी हैं। वृह टप्पनिका, जैन ग्रन्थ नामावली, जैन शास्त्र नाममाला प्रादि ग्रन्थ कोषो द्वारा उनके निर्माताओं ने उनमे, ज्ञात अथवा उपलब्ध, जैन ग्रथों का विवरण एक ही स्थान में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है जिससे सामान्य प्राथमिक पर्यवेक्षण सुगम हो जाता है। किंतु प्रो० हरिदामोदर वेलङ्कर द्वारा सपादित तथा भडारकर प्राच्य विद्यामंदिर, पूना, द्वारा प्रकाशित 'जिनरलकोष' नामक, जैन हस्त लिखित ग्रंथ सूची, इस दिशा में एक अत्यधिक सफल एवं महत्त्वपूर्ण प्रयत्न है । प्रो० वेलकर ने यह कार्य, जिसे हाथ में लेने से एक सर्व साधन सम्पन्न सस्था भी शायद हिचकिचाती, एकाकी ही प्रतीव सुन्दरता के साथ सम्पादन किया है। इसके प्रकाशन से जैन साहित्य विषयक अध्ययन को एक नवीन दृष्टि प्राप्त होने की पूर्ण प्राशा है । वीर सेवा मंदिर, देहली मे भी कई दिगम्बर जैन ग्रथ भडारो के अप्रकाशित तथा दूसरी सूचियो में सम्मिलित न किये गये, ऐसे लगभग ६००० प्रथों की एक विवरण सूची प्राय' तैयार हो चुकी है, जो कि 'जिनरत्नकोप' गत त्रुटियो की पूर्ति करने के साथ ही साथ अन्य प्रकार भी उपयोगी सिद्ध होगी। दक्षिण देश के मूडबद्री आदि स्थानों के भारो के कन्नड़ लिपि मे निबद्ध ताडपत्रीय प्रथो की एक विवरण सूची ५० के० भुजबलि शास्त्री द्वारा सम्पादित होकर भारतीय ज्ञान पीठ काशी से प्रकाशित हुई है। आमेर भडार की सूची भी जयपुर से प्रकाशित हो गई है। माफ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८२ ) रूट के प्रसिद्ध 'कैटेलोगस केटेलोगोरम' के सशोधन, सवर्द्धन का कार्य मद्रास विश्वविद्यालय ने अपने हाथ में लिया था और यह योजना थी, कि उक्त सूची में ऐसे सर्व जैन ग्रंथो को भी सम्मिलित कर लिया जायगा जोकि प्राचीन भारत के सास्कृतिक विकास सबधी ज्ञान के लिए उपयोगी है, और यह कि उसमें श्रालाच - नात्मक एव तुलनात्मक विवेचन के उद्धररण भी रहेगे । योजना निस्सन्देह बडी सुन्दर है ! इसकी सहायता से विशाल भारतीय साहित्य के अन्तर्गत जैन साहित्य का अब तक की अपेक्षा कही अधिक पूर्णता एवं यथार्थता के साथ अध्यूयन किया जा सकेगा । यद्यपि इस प्रकार यह क्षेत्र सीमाबद्ध किया जा रहा है, तथापि अभी तक ईडर नागौर, जयपुर, दिल्ली, बीकानेर आदि अनेक स्थानो के महत्त्वपूर्ण शास्त्र भडारो का व्यवस्थित रूप से निरीक्षण ही नही हो पाया है । दक्षिण मे मूड बद्री, हुम्मच, वारंगल, कारकल आदि स्थानो के भडारो के भी, जहाँ कि ढेरो ताडपत्रीय प्रतियां सुरक्षित हैं, प्रमाणीक विवरण तैयार नही हुए है । अपनी प्राचीनता एव प्रमाणिकता के कारण ये सग्रह अध्ययन को विविध शाखा के लिए बहुमूल्य सामग्री प्रस्तुत करेंगे, ऐसी पूर्ण सम्भावना है आमेर, पाटन, पूना, कारजा आदि के भडारो मे सुरक्षित प्राचीन देवनागरी लिपि बद्ध कुछ ग्रन्थ प्रतियाँ १२ वी शताब्दी ( ई० ) तक की है । निश्चित तिथि तथा लेखन स्थान से युक्त ऐसी प्रतियो की एक क्रमबद्ध श्रखला छाँट लेने से नागरी अक्षरो मे, समय के साथ साथ होने वाले क्रमिक विकास का एक कोष्ठक तैयार किया जा सकता है और उसके द्वारा स्व० प० गौरीशकर हीराचन्दा प्रभा तथा बहूलर साहब ने शिलालेखीय प्राधारो पर जो तालिकाये निर्माण की हैं, उनकी पूर्ति हो सकती है । कुछ विद्वानो का ध्यान ऐसी प्रतियो की ओर आकर्षित हो भी चुका है। मुनि पुण्य विजय जी द्वारा लिखित 'जैन चित्र कल्पद्रुम' ( अहमदाबाद १९३५ ) की भूमिका, अक्षर विज्ञान एवं लेखन कला पर एक ठोस देन है, और कम से कम जहाँ तक गुजरात के भडारो मे संग्रहीत प्रतियो का सम्बन्ध है, उक्त विषयो पर अच्छा प्रकाश डालती है । Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) प्रो० एच० आर० कापडिया ने भी अपने निबन्धों में उक्त विषय के कुछ अंगों का विवेचन किया है । चित्र कला-इन हस्तलिखित प्रतियों पर से लघु चित्रकला (मिनियेचर पेन्टिग) सम्बन्धी सामग्री का पाशिक उपयोग मि० ब्राउन, नवाब तथा अन्य विद्वानो ने किया है। अभी हाल में हमने नागौर के वर्तमान भट्टारक जी के पास, यशोधर चरित्र की १७ वी शताब्दी की एक अति सुन्दर चित्र प्रति देखी थी, जो कि शिकागो विश्व प्रदर्शिनी में भी प्रशसा प्राप्त कर चुकी है। जैन गुहाचित्रो के सबन्ध मे पुदुकोटा राज्य के श्री एल गणेश शर्मा ने, अपनी पस्तक 'सित्तनवासल जैन गुहा चित्रावली एव चित्रकला' मे उक्त विषय पर अच्छा प्रकाश डाला है । डा० हीरानद शास्त्री ने भी जैन चित्रकला पर लिखा है । सिंगनपुर (रायगढ) आदि की प्रारऐतिहासिक चित्र कला मे भी जैन प्रभाव लक्षित होता है ।x अनेक प्राचीन अर्वाचीन जैन मन्दिरो मे बहुलता से पाये जाने वाले भित्ति चित्र तथा जैन पौराणिक रूपक एव सकेत चित्र भी पर्याप्त सख्या मे उपलब्ध हैं । किन्तु इस समस्त सामग्री के न्यूनाश का भी उपयोग नही हो पाया है। प्रशस्त्यादि--अधिकतर हस्तलिखित प्रतियो मे उनकी लेखन तिथि दी हुई होती है और उनमे ऐसी काल निर्णायक सामग्री पर्याप्त मात्रा मे होती है जो कि जैन संघ के मध्यकालीन इतिहास के लिये तो अत्यन्त उपयोगी है ही, साथ ही भारत के राजनैतिक इतिहास सबन्धी अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाओं के तिथि निर्णय मे तथा ज्ञान तिथियो की पुष्टि करने मे बहुधा उपयोगी सिद्ध हुई है और हो सकती है। जैन ग्रन्थ प्रतियो मे पाई जाने वाली ये प्रशस्तिये, पुष्पिकाएँ आदि बहुधा तीन प्रकार की होती हैं--(१) ग्रन्थकार द्वारा निबद्ध-जिनमे वह अपने सम्बन्ध *See Outlines of, Paleography and the Jaina Mss. J. U. B, VI2. VIl 2, X See Prehistoric Jaina Paintings-). A., X 2, XI, Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४ ) की नेक सूचना, अपनी गुरु परम्परा, कब, किसके लिये, किसके राज्य या श्राश्रय मे अथवा प्रेरणा पर ग्रन्थ की रचना हुई, इत्यादि बातों की सूचना देता है । (२) प्रति लेखक अथवा लिपि कर्त्ता की प्रशस्ति, लिपिकार का परिचय, लेखन तिथि तथा जिसके लिये वह प्रति लिखी गई अथवा जिसके द्वारा लिखवाई गई, आदि सूचनाएँ दी होती हैं । (३) दानी की प्रशस्ति मे उक्तदानी का तथा उसके परिवार, वश यादि का परिचय तथा किस साधु या मंदिर को वह प्रति दान की गई, आदि बातो का उल्लेख रहता है। ना इस प्रकार की सूच कर्णाटक एव तामिल देश की प्रतियो की अपेक्षा गुजरात, मध्य भारत प्रादि की प्रतियो मे अधिक बहुलता के साथ पाई जाती है । श्रहमदाबाद से एक विशाल, लेखक प्रशस्ति संग्रह प्रकाशित हो चुका है, स्व० पूर्णचन्द नाहर 1 भी, एक प्रशस्ति संग्रह प्रकाशित किया था जैन सिद्धान्त भवन आारा से, ५४ दिगम्बर जैन ग्रन्थो की प्रशस्तियों का संग्रह प्रकाशित हुआ है । वीर सेवा मंदिर, देहली से सस्कृत तथा अपभ्रंश प्रशस्तियो के दो पृथक पृथक सग्रह प्रकाशित होने की योजना है, आमेर भडार का प्रशस्ति संग्रह भी प्रकाशित होने वाला है । ऐ० पन्नालाल दि० जैन सरस्वती भवन बम्बई व झालरापटन की वार्षिक रिपोर्टों में भी कुछ प्रशस्तिये प्रकाशित हुई हैं । यदि प्रयत्न किया जाय तो ऐसे कितने ही अन्य सग्रह सुगमता से प्रकाशित किये जा सकते है । प्रो० एस० श्री कठ शास्त्री द्वारा संकलित 'कर्णाटक इतिहास के साधन - भा० १' (मैसूर १९४०) से स्पष्ट है कि ऐतिहासिक रचनाओ को अशत अथवा पूर्णत सकलित करने के लिए, तथा उनका परस्पर संबध बैठाने के लिए जैन ग्रन्थ प्रशस्तिया एक प्रत्यन्त मूल्यवान साधन है । हमने स्वय कई प्राचीन एव मध्यकालीन लेखको के इतिवृत्त का निर्माण करने मे विभिन्न प्रशस्तियों का उपयोग किया है । डा० वासुदेव शरण अग्रवाल ने भी जैन ग्रन्थ प्रशस्तियो एव पुष्पिका के महत्त्व पर प्रकाश डाला है । यदि इन प्रशस्त्यादि का सुचारू सकलन कर लिया जाय तो उन अनगिनत प्रतिमाभिलेखो के साथ, जो जैन मूर्तियो पर खुदे मिलते है और जिनमे कुछ प्रकाशित भी हो चुके हैं, तथा अन्य जैन Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८५) पुराभिलेखों के साथ उनका तुलनात्मक अध्ययन करने से, न केवल नवीन तथ्य प्रकाश मे आयेगे वरन सुपरिचित घटनाग्रो तथा अन्य ऐतिहासिक तथ्यों का परस्पर सम्बध भी स्थापित किया जा सकेगा और कालानुक्रमिक अध्ययन में महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष प्राप्त होगे । इस प्रकार के पृथक २ विभिन्न सूचनांशो का परस्पर सबध बैठाने से ही, ग्रन्थराज श्रीधवल की एक मात्र उपलब्ध मूलप्रति के लेखन काल का निर्णय किया जा सका और मल्लिभूपाल को चीन्हा जा सका । आज यह विषय एक भाग्यानुसारी क्रीडा हो रही है, किन्तु इसमे से यह सयोगतत्व, गिरनाट की 'रिपर्टरी डी एपिग्रैफी जैना' नामक ग्रन्थ के आदर्श पर, इन सर्व साधनो से सबधित नामादि अनुक्रमणिकाये निर्माण करके निकाल दिया जा सकता है । प्रशस्तियो और अभिलेखो से जो समय सबधी सामग्री प्राप्त होती है वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। कभी-कभी तो ये तिथिये इतनी सुनिश्चित पाई जाती है, कि व्हिटने का बहुधा उद्ध त कथन, कि “भारतीय साहित्य के इतिहास की तिथियाँ ऐसे पूर्वापर असम्बद्ध तथा पृथक २ स्थापित सकेत चिन्ह है जो पुन विचारनीय एवं चिन्ननीय हैं"--सन् १८७६ मे भले ही सत्य रहा हो, किन्तु अप वह अनेक अपवादो के माथ ही ग्रहण किया जा सकता है। पुराभिलेख-राइस, नरमिहाचार्य, गिरनाट, आय गर, शेशागिरि राव, सालतोर तथा अन्य विद्वानो ने उन जैन पुराभिलेखो का उपयोग सफलतापूर्वक किया है जो जैन धर्म के इतिहास के विविध अगो पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं और बहुवा तत्कालीन नरेशो, राजपुरुषो तथा अन्य राजनैतिक बातो का भी उल्लेख करते है । जैन मूर्नियो तथा मदिरादिको पर अंकित अभिलेख जिनमे से कितने ही बुद्धिसागर, जिन विजय जी, नाहर, कामता प्रसाद, कान्तिसागर, गोविन्द प्रसाद आदि विद्वानो द्वारा प्रकाश मे लाये जा चुके है, साहित्यिक एव ऐतिहासिक कालानुक्रम का निर्णय करने में बहुत उपयोगी है, क्योकि उनमे प्रमुख प्राचार्यों का जोकि बहुधा ग्रन्थकार भी होते थे, प्राय उल्लेख रहता है। 'एपिग्राफिका कर्नाटिका' मे सकलित जैन अभिलेख, कर्णाटक प्रात के इतिहास मे Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ०६ ) जैन धर्म का जो भाग रहा है, उसके व्यवस्थित ज्ञान के लिए अतीव उपयोगी सिद्ध हुए है। यह बात श्री बी० ए० सालतोर कृत मैडिवल जैनिज्म (बम्बई १६३८) तथा प्रो. एस. आर. शर्मा कृत 'जैनिज्म एड कर्णाटक कल्चर' (धारवाड १६४०) से भली प्रकार प्रमाणित हो जाती हैं। निजाम राज्य के पुरातत्त्व विभाग द्वारा प्रकाशित, कोप्पल से प्राप्त कन्नडी शिलालेखो पर लिखे गये निबध मे राज्य के अन्य स्थानों से भी प्राप्त, जैन अभिलेखो के महत्त्वपूर्ण उदाहरण दिये गये है । यह विभाग प्रसिद्ध पुराविद, गुलाम यजदानी की अध्यक्षता मे कार्य कर रहा था और आशा थी कि उसके द्वारा अन्य अनेक जैन शिलालेख शीघ्र ही प्रकाश मे पायेगे । देवगढ आदि स्थानो मे प्राप्त, तथा 'एपिग्रेफिका इ डिका' मे प्रकाशित शिलालेखो को देखने से पता चलता है कि अनेक जैन शिलालेख सरकार के पुरातत्त्व एव प्राच्यतत्त्व विभागो के भडार गृहो मे केवल इसीलिये व्यर्थ पडे हुए है कि राजनैतिक इतिहास की दृष्टि से वे प्रत्यक्ष उपयोगी नही जान पडते । इन समस्त अभिलेखो को तुरन्त प्रकाशित कर देना इन विभागो के लिए अवश्य ही कठिन कार्य था, विशेषत जबकि बृटिश सरकार का व्यवहार ऐसे सास्कृतिक विभागो की ओर विमाता सरीखा रहा है। अब स्वतत्र भारत मे, अपनी राष्ट्रीय सरकार से इस दिशा मे बहुत कुछ आशा है । यदि सरकार इस कार्य को स्वय हाथ मे न भी लेना चाहे तो भी प्राच्याध्ययन के हित मे यह अच्छा होगा कि वे लेख उन विद्वानो के सिपुर्द कर दिये जॉय, जो जैन पुराभिलेग्यो में दिलचस्पी रखते है तथा जो भडारकर प्राच्यविद्या. मदिर पूना, भारतीय विद्याभवन, बम्बई प्रभृति सस्थानो मे कार्य कर रहे है । इनमे से अनेक अभिलेख देश के राजनैतिक इतिहास की दृष्टि से भले ही महत्वपूर्ण न हो, किन्तु जैन साहित्यगत लेखको तथा स्थानो को चीन्हने और विभिन्न प्रदेशो से सबंधित जन सघ का इतिहास निर्माण करने मे, अवश्य ही उपयोगी कुजिये प्रदान कर सकते है । जिस प्रकार भडारकर ने कीलहान द्वारा सकलित शिलालेख सूची का सशोधन संवर्द्धन करके, उसे आधुनिक काल तक पूरण कर दिया, उसी प्रकार Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह नितान्त आवश्यक है कि कोई विद्वान, जो ऐसे केन्द्र मे कार्य कर रहा हो, जहाँ पुरातत्त्व व अभिलेखादि सम्बन्धी समग्र प्रकाशन एव अन्य सामग्री उपलब्ध अथवा सुलभ हो, गिरनाट के उपर्यु लिखित महत्वपूर्ण ग्रन्थ का सशोधन सवर्द्धन करके, उसे वर्तमान काल तक पूर्ण करने का प्रयत्न करे । बा० छोटेलाल ने अपनी 'जैन बिबलियोग्रेफी' मे सन् १९०६ से १९२५ तक के प्रकाशित अग्रेजी जैन साहित्य, उद्धरण एव अभिलेख सूचनामो को सकलित करने का प्रयत्न किया है । किन्तु शिलालेखो के सम्बन्ध मे यह प्रथ उतना सतोषजनक एव प्रमाणीक नही है। देश के विभिन्न भागो से प्राप्त अनेक जैन शिलालेख प्रकाश मे आ चुके हैं। किन्तु एक पूर्ण 'जैना एविग्रेफी' के प्रभाव मे उनमे निहित तथ्यो का यथोचित लाभ उठाया जाना कठिन है । समस्त प्रकाशित जैन शिलालेखो के एक आधुनिकतम विवरण से जैनाध्ययन को निश्चयत भारी प्रगति मिलेगी। मूर्तिकला-~जैन मूर्तिकला भारतीय मूर्तिकला का महत्वपूर्ण अग है। भारतवर्ष के अनगिनत मदिरो में विद्यमान असख्य जैन मूत्तियो तथा जन ग्रन्थो मे उपलब्ध तत्सबधी प्रचुर साहित्य के होते हुए भी, जैन मूर्तिकला एव विज्ञान का अध्ययन अभी तक अपनी शैशवावस्था में ही है । इस दिशा में जो महत्त्वपूर्ण कार्य हुआ है, उसमे जे० बरगेस तथा जे० एल० जैनी की, 'दिगम्बर जैन' 'आइकोनोफिये' बी० सी० भट्टाचार्य की 'दी जैना आइकोनोग्रफी' (लाहौर १९३६) इत्यादि है किन्तु इनमे संशोधन सवर्द्धन की पर्याप्त आवश्यक्ता है । इस विषय की और अधिक उल्लेखनीय कृतियाँ, डा. एच. डी. सॉकलिया कृत 'जैना प्राइकोनोग्रफी' (एन आई ए,२८) 'जैन यक्ष यक्षणिया', 'बडौदा राज्य की तथा कथित बौद्ध मूर्तियाँ' (बुलेटिन आफ दी डेकन कालिज, पार पाई I, २-४), 'नेमिनाथ के ससार त्याग कल्याणक का प्रस्तराँकन' (आई० एच० क्यू xVII, भा० २) 'एक जैन देवी की अद्भुत प्राकृति,' 'पीतल का जैन गणेश' (जे. ए.-IV पृ० ८४, v पृष्ठ ४६) इत्यादि हैं। डा० विनयदेव भट्टाचार्य (प्राच्य विद्याभवन, बडौदा) के निर्देशत्व मे, बडौदा के श्री यू पी शाह ने जैन Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८८) मूर्तिविज्ञान, पर कार्य किया है और तद्विषयक मूल आधारो से पर्याप्त सामग्री एकत्रित की है। उनके कुछ महत्त्वपूर्ण लेख प्रकाशित भी हो चुके हैं, यथा जैन । देवी अम्बिका, जैन सरस्वती आदि (जे. यू. बी , १६४०-४१) डा० अग्रवाल ने जैन शिलालेखो पर से जैन मूत्तिविज्ञान सम्बन्धी कतिपय शब्दो दी व्याख्या की है जे ए V पृ० ४३)। उन्होने तथा श्री कृष्णदत्त बाजपेयी, एम० एम० नागर आदि ने, विशेषरूप मे मथुग की प्राचीन जैन मूर्तकला पर कई उपयोगी लेख लिखे हैं । मथुरा की जैन मरस्वती पर हमारा भी एक लेख प्रकाशित हा है। डा0 मोतीचन्द्र के तद्विषयक लेख भी महत्वपूर्ण है। श्री के के गांगुली के लेख 'वगाल की जैन मूत्तिया' (जे सी --VI,२ पृ० १३७) से प्रकट है, कि देश के इस भाग की खोज और अधिक जाचपूर्वक किये जाने की आवश्यकता है । एक स्फुतिदायक लेख 'जैन धर्म और भट्टकल पुरातत्व' (बम्बई प्रान्तीय कन्नड अनुमधान की वार्षिक रिपोर्ट, १६३६-४०, धारवाड, १९४१, पृ० ८१) मे, उक्त अनुमबान निर्देशक श्री आर एस पचमुखी ने, जैन मूत्ति विज्ञान के कतिपय अगो पर सरसरी दृष्टि में विचार किया है। उनके कुछ सामान्य कथन अप्रमाणिक होते हुए भी, उसमे उन्होने दक्षिणात्य जैन धर्म का शृखलाबद्ध विवरण दिया है और भट्टकाल तथा उन अन्य स्थानो की जो किसी समय जैन सस्कृति के प्रसिद्ध केन्द्र थे, कतिपय नवीन मूर्तियो को प्रकाश मे लाये हैं। मुनि कान्ति सागर, अशोक कुमार भट्टाचार्य आदि कुछ अन्य विद्वानो ने भी इस विषय पर लेखादि लिखे है । जैन मूविज्ञान और जैन देववाद तथा जैनधर्म मे मूर्तिपूजा का विकास, एव इतिहाम~दन्हें पृथक २ विषय मानकर ऐतिहासिक पूर्वपीठिका के साथ उक्त अध्ययन का प्रारभ करना अधिक उपयुक्त होगा। ये दोनो विषय आगे चलकर एक भे ही गभित हो जाते हैं अत प्रारभ मे ही उनके बीच भ्रॉन्ति न होने देना ठीक होग। ये अध्ययन अभी अपनी प्रारभिक अवस्थामो मे है । हिन्दू, बौद्ध और जैन मूनिविज्ञान की परस्पर समानतामो पर लक्ष्य देना आवश्यक है, किन्तु बिना ठोस प्रमाण के सहसा ऐसे कथन कर देना कि अमुक बात, अमुक ने, अमुक से ग्रहण की है, उचित नहीं है । Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८९) स्थापत्य-जैन स्थापत्य का अध्ययन तो और भी कम हो गया है। विन्सेन्ट स्मिथ कृत 'मथुरा का जैन स्तूप तथा अन्य पुरातत्त्व' नामक ग्रन्थ बहुत महत्व पूर्ण है । आबू के जैन मन्दिरो पर पर्याप्त लिखा जा चुका है । फर्गुसन आदि ने भी प्रमगत जैन स्थापत्य पर किंचित प्रकाश डाला है किन्तु इस विषय का भी यथोचित अध्ययन अभी तक नही हो पाया है । स्तूप, निषद्या, मन्दिर, बसति, गुहा आदि विभिन्न रूपो तथा देश कालानुसार विविध शैलियो मे उपलब्ध जैन स्थापत्य की अपनी निजी सास्कृतिक विशेषताएं भी हैं। इस प्रकार जनाध्ययन की कतिपय स्थूल शाखाम्रो का यह सक्षिप्त निर्देश है। अनेक जैन व अजैन विद्वान इन विषयो मे अपनी-अपनी रुचि एव साधन सुविधामो के अनुसार कार्य कर रहे है । कई एक साहित्यक अनुसधान सस्थाए और उत्तम कोटि की पत्र-पत्रिकाए भी चालू है । प्राच्याध्ययन के अन्तर्गत जैनाध्ययन का प्रारम्भ और बहुत काल तक नेतृत्व भी पाश्चात्य विद्वानो ने किया था । अत तत्सम्बन्धी साहित्य भी अगरेजी आदि विदेशी भाषामो मे ही लिखा जाता रहा है। किन्तु अब समय आगया है कि जैनाध्य्यन सम्बन्धी सर्व प्रकार के निर्देशात्मक ग्रथ कोष, सूचिये, विवरण, विवेचन, लेख, निबन्धादि राष्ट्रीय व लोकभाषा हिन्दी मे ही लिखे जॉय । इससे जैनाध्ययन को विशेष प्राप्ति मिलेगी, जो कि भारतीय संस्कृति के समुचित ज्ञान, मूल्यांकन एव विकास के लिये परमावश्यक है। विज्ञप्ति जैन धर्म, संस्कृति, इतिहास पुरातत्व, प्रकाशित व अप्रकाशित साहित्य आदि से सम्बन्धित, सर्व प्रकार को जिज्ञासा के समाधान के लिये निम्नाकित सस्थानो, प्रकाशको तथा व्यक्तियो को पत्र लिखने से यथोचित उत्तर प्राप्त हो सकता है -- १. अधिष्ठाता, वीर सेवा मन्दिर, ७/२१ दरियागज, देहली। Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ) २. जैन सिद्धान्त भवन, पारा बिहार । ३. भारतीय ज्ञानपीठ काशी, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस । ४. जैन कल्चरल इन्स्टीट्य ट, ७/३ हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस । ५. दिगम्बर जैन सघ, चौरासी मथुरा। ६. दि० जैन परिषद कार्यालय, दरियागज, देहली। ७. जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, हीराबाग पो०, गिरगांव, बम्बई । ८ दिगम्बर जैन पुस्तकालय, चान्दवाडी, सूरत । ६. लाला पन्नालाल जैन अग्रवाल, ३८७२, चर्खेवालान, गली कन्हैयालाल अत्तार, देहली। १०. ज्योतिप्रसाद जैन, एम० ए०, एल० एल० बी०, ७४-७५, ठठेरवाडा, मेरठ शहर । अथवा-यूनियन मैडिकल स्टोर्स, कैसर बाग, लखनऊ । ११. जैन सूचना ब्युरो, ५८७, सदर बाजार, दिल्ली। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - हिन्दी विभाग हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश की पुस्तकें अकबर और जैन धर्म – ३० रामास्वामी प्रायंगर, अनु० कृष्णलाल वर्मा, प्र० श्रात्मानन्द जैन ट्रैक्ट सोसाइटी अम्बाला, भा० हि०, पृ० १४, व० १६८८ । अकल सीखने की पुस्तक ले० श्रावक दुलीचन्द, प्र० लेखक स्वयं जयपुर, पृ० ३१, भा० हि० ना० प्रथम | अकलंक ग्रंथ त्रयम् - ० श्रीमद्भहाकलकदेव' सपा० प० महेन्द्रकुमार न्या० प्रा० प्र० सिंधी जैन ग्रंथ माला अहमदाबाद - कलकत्ता, भा० स०, पृ० ३६४, व० १९३६ ई० प्रा० प्रथम, ( लघीस्त्रयम्, न्याय विनिश्चय, प्रमाण संग्रह ) । कलंक चरित्र और अकलंक स्तोत्र- - सपा० प० पन्नालाल बाकलीवाल, प्र० जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई, भा० स० हि०, पृ० १८ । कलंक देव की कथा -- ले० बख्तावर रतनलाल, भा० हि०, पृ० १६, व० १९१२ ई०, प्र० जैन ग्रथ प्रचारक कार्यालय देवबद, श्रा० प्रथम | अकलक नाटक - ले० सिद्धसेन जैन गोयलीय, प्र० जैन पाठशाला रिवाड़ी, भा० हि०, पृ० १०३, ० १६२८ ई० प्रा० प्रथम । अग्रवाल इतिहास - ले० प्रज्ञात, अनु० बी० एल जन, प्र० लेखक स्वय बाराबकी, भा० हि०, पृ० २४ | 'गपत्ति-ले० शुभचन्द्र, भा० प्रा० सं०, ( सिद्धान्त सारादि संग्रह में प्रकाशित ) 1 अच्छी आदतें डालने की शिक्षा-ले० दयाचंद्र जैन; भा० हि०, पृ० ३६, व० १६१५ । Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६२ ) श्रजिताश्रम पाठावली - सपा० सक०प० प्रजितप्रसाद एडवोकेट, प्र० ए० पी० जिंदल, प्रजिताश्रम, लखनऊ, भा० स० हि०, पृ०७२, ० १९३५ ई०, 4 प्रा० प्रथम | श्रजैन विद्वानों की जैन धर्म के विषय में सम्मतियाँ - (प्रथम भाग ) सक० मा० बिहारीलाल, प्र० ज्ञानवर्धक जैन पाठशाला अमरोहा, भा० हि०, पृ० १७, व० १६१५ ई० प्रा० प्रथम । जैन विद्वानों की जैन धर्म के विषय में सम्मतियाँ द्वितीय भाग-सक० मा० बिहारीलाल, प्र० ज्ञानवर्धक ज न पाठशाला अमरोहा, भा० हि०, पृ० ३१, ० १६१५ ई० प्रा० प्रथम । अठाई रासा - प्र० बा० सूरजभान वकील देवबंद, भा० हि०, व० 35851 अठारह नाते (पद्य) - ले० यति नयनसुखदास, प्र० ज्ञानचंद जैनी लाहौर, भा० हि०, पृ० ३२, ० १६१० ई०, आ० द्वितीय । अठारह नाते की कथा - ले० अज्ञात, प्र० जिन वारणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा०, हि०, पृ० ६ अढ़ाई द्वीप पूजन विधान - ले० १० कमलनयन, प्र० मूलचंद किशनदास कापडिया सूरत, भा० हि०, पृ० ३४६, व० १९४४ ई० प्रा० प्रथम । अतीत जिन चतुशितिका -- ले० जयतिलक सूरि, भा० प्रा० स० । अद्भुत रामचरित्र ( प्रथम तु ग बनवास ) - ले० यति नयनसुखदास, प्र० ला० होशियार सिंह सोनीपत, भा० हि०, पृ० २३, व० १९१५ ई०, मा० प्रथम । अद्भुत रामचरित्र ( दूसरा तुग-युद्ध-काड ) - दास, प्र० ला० होशियारसिंह सोनीपत, भा० हि०, पृ० ६८, व० निरजन१९१६ ई०, ० श्रा० प्रथम । अद्भुत रामचरित ( तीसरा तुंग- प्रयोध्या काँड ) -- ले० निरन्जनदास, " Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३ ) १ प्र० ला० होशियार सिंह सोनीपत, भा० हि०, पृ० २२, ० १९१५ ई. भा० हि०, श्रा० प्रथम 1 अद्भुत रामचरित ( चौथा तुरंग-वैराग्य कांड) ले ० निरंजनदास, По ला० होशियारसिंह सोनीपत, भा० हि०, पृ० १८, व० १६१६, भा० हि० । -भा० अध्यात्म संग्रह -- ( २८ रचनाओ का संग्रह ) - भ हि० स०, पृ० ३८८ अध्यात्म तरंगिणी - ले० सोमदेव, भा० स०, पृ० १० । अध्यात्म पंचासिका-ले० प्रज्ञात, भा० हि० । अध्यात्म कमल मार्तण्ड - ले० कवि राजमल्ल, संपा० प्रो० जगदीश चन्द्र, प्र० माणिकचन्द दि० जैन ग्रन्थमाला बम्बई, भा० स० । अध्यात्म कमल मार्तण्ड - ले० कवि राजमल्ल, अनु० सपा० दरबारी लाल कोठिया और प० परमानन्द शास्त्री; प्र० वीर सेवा मन्दिर सरसावा; भा० स० हि०, पृ० ११०, व० १६४४, प्रा० प्रथम 1 अध्यात्म विचार - ब्र० मोतीलाल, भा० हि०, पृ० ३४, व० १६३० । अध्यात्म ज्ञान - सपा० ब्र० शीतल प्रसाद जी, प्र० मूलचन्द किशनदास कापडिया सूरत, भा० हि०, पृ० १६, व० १९३१ ई० प्रा० प्रथम । श्रध्यात्माष्टवाम् - ले० वादिराज सूरि, भा० स० । अध्यात्मिक निवेदन - सपा० सम्मेलन सूरत, भा० हि०, पृ१६, व० अनगार धर्मामृत - ले० प० मनोहरलाल, प्र० माणिकचन्द दि० ६६२ व० १६१६ ई० प्रा० प्रथम | ब्र० शीतल प्रसाद जी, प्र० श्रात्मधर्मं १६२५ ई० प्रा० प्रथम । श्राशाधर जी, सपा० प० वशीधर व प० जैन ग्रंथमाला बम्बई, भा० स०, पृ० अनगार धर्मामृत - (टीका ) ले० प० आशाधर जी, अनु० टी०प० खूबचन्द शास्त्री, प्र० सेठ खुशालचन्द मानाचन्द गाँधी शोलापुर, भा० सं० हि०, पृ० ९३६, व० १९२७ ई० प्रा० प्रथम । 1 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) अनमोल बूटी-ले० मा० बिहारीलाल, भा० हि०, पृ० ५१, २०१६१४ । अनमोल रत्ल अर्थात् प्रात्म कल्याण का उपाय-ले० शालिग्राम लमेचु, प्र. कुन्थूलाल इलाहाबाद, भा० हि०, पृ० १७, १०, १९१३ ई०।। अन्य धर्मों से जैन धर्म में विशेषताएँ -ले० अजित कुमार शास्त्री, भा० हि०, पृ० ३१, २० १९२७ । अनन्तमती-ले० कृष्णलाल वर्मा, भा०हि०। अनाथरुदन-ले० प० न्यामतसिंह, प्र० स्वय हिसार, भा० हि०, पृ० ८, व० १९२४ ई०, प्रा० चतुर्थ । अनादि गणित - ले० नत्यनलाल जैन, प्र० स्वय देहली, भा० हि०, पृ० ३२, प्रा० प्रथम। अनावश्यक दि० जैन मूर्ति पूजा-ले० प्र० चम्पालाल जैन सोहागपुर, भा० हि०, पृ० ४६, व० १६४० । अनित्य भावना-(पद्मानुवाद)-ले० ५० जुगलकिशोर मुख्तार, प्र० - जैन ग्रन्थ र कर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० २०, २० १९२४, प्रा० प्रथम। अनित्य भावना-ले० पद्मनन्द्याचार्य, अनु० सपा०-प जुगलकिशोर मुख्तार, प्र० वीर सेवा मन्दिर सरसावा, भा० स० हि०, पृ० ४८, व० १६४६ ई०, प्रा० तृतीय, मूल्य । अनुभव प्रकाश-ले० दीपचन्द, प्र. लखमीचन्द वेणीचन्द कुई याड़ी, भा० हि०, पृ. ११८। अनुभव माला-ले० अ० नन्दलाल, भा० हि० (पद्य), पृ० १५, व० १६३२। अनुभवानन्द-स०अ० शीतल प्रसाद जी, प्र० जैन मित्र कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० १२८, २० १६१२, मा० प्रथम । Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अबलाओं के मासू-ले० अयोध्या प्रसाद जैन गोयलीय, प्र० जोहरीमल जैन सर्राफ देहली, भा० हि०, पृ० ७६, २०१६२६, मा० प्रथम । अभिषेक पाठ संग्रह-सपा० पन्नालाल सोनी, भा० स०, पृ० ३६१, व०१६३५ । अभिषेक पाठ समीक्षा-ले० ५० राजकुमार शास्त्री, प्र० सेठानी गुलाब बाई प्यार कुवर बाई जी इन्दौर, भा० हि०, पृ० १६, २० १९४१ । अमिषेक पूजा पाठ संग्रह-प्र० माणिकचन्द सरावगी कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १४८, व०१९४२ । अनेकार्थ रत्न मंजूषा-सपा० प्रो० हीरालाल, भा० स० पृ० १५६, व० १९३२ । अभिषेक पाठ-ले० पूज्यपादाचार्य, अनु० ५० जिनदास, भा० स० हि०, पृ० ४८। अमर जीवन और सुख का सदेश-ले० चम्पतराय जैन बैरिस्टर; अनु० बा० कामता प्रसाद जैन, भा० हि० पृष्ठ १५ । अमितगति श्रावकाचार-ले० प्राचार्य अमितगति, अनु० टी० पं० भागचन्द्रजी; प्र० मुनि श्री अनन्तकीति, दि० जैन ग्रन्थशाला बम्बई; भा० सं० हि०, पृ० ४४०; २० १९४२ मा० प्रथम । अमृताशीति-ले० योगीन्द्रदेव; भा० सं०, पृ०, (सिद्धान्त सारादि सग्रह मे पृ०। अर्थ का अनर्थ-(वृहद विमल पुराण की समालोचना)-प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता; भा० हि०; पृ० ८७; १० १९२४; प्रा० प्रथम । अर्थ प्रकाशिका-ले० ५० सदासुखदास जी; प्र० कलप्पा भरमप्पा निटवे कोल्हापुर; भा० हि० पृ० ७४३; व० १६०२; प्रा० प्रथम । अर्थ प्रकाशिका (तत्त्वार्थसूत्र टीका)-मूल ले० प्राचार्य उमास्वामि; अनु० टी०-५० सदासुखदास जी; प्र०-भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी संस्था कलकत्ता; भा०हि०, पृ० ५४३; व० १६१६; मा० प्रथम । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थ प्रकाशिका-ले० प्राचार्य उमास्वामी, टी० पं सदासुखदास जी; प्र० मूलचन्द किशनदास कापडया सूरत; भा० हि०; पृ० ४६८; व०१९४०। अर्घावली-प्र० सुमतिलाल, भा० हि०, पृ० १७ । अर्जुनलाल सेठी का जीवन चरित्र-प्र० चन्द्रसेन जैन बैद्य, भा० हि०; पृ० १५। अर्जुनमाली- ले० डी० टी० शाह, भा० हि०। अर्थसंदृष्टि अधिकार-ले० पं० टोडरमल जी, प्र. भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी सस्था कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ३०८, प्रा० प्रथम । अद्ध कथा-ले० प० बनारसीदाम जी, संपा० डा० माताप्रसाद गुप्त, प्र० हिन्दी परिषद प्रयाग, भा० हि:- पृ० ७३, व० १६४१, प्रा० प्रथम । अद्ध कथा-ले० प० बनारसीदास जी, सपा० डा० माताप्रसाद गुप्त; प्र० प्रयाग विश्वविद्यालय हिन्दी परिषद प्रयाग, भा० हि०, पृ० ५६, व० १६४३ । अद्ध कथानक-ले० ५० बनारसीदास जी, सं० १० नाथूराम जी प्रेमी, प्र० हिन्दी अन्य रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० १०२; व० १६४३, प्रा० प्रथम । _अहत्प्रवचनम्-ले० प्रभाचन्द्राचार्य, भा० स०, (सिद्धान्त सारादि सग्रह मे ) प्र०। अहंत पासा केवली-(अर्हन्त पासा केवलि)-ले० कविवर वृन्दावन जी; सपा०प० नाथूराम प्रेमी, प्र. जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि० पृ० २४, व० १६१०, प्रा० द्वितीय । अलकार चिन्तामणि -ले. अजितसेनाचार्य, प्र० सखाराम नेमचन्द दोशी शोलापुर, भा० स०, पृ० १६२, व० १८२६ शक । अवध परिवय-(अवध प्रान्त की जैन डाइरेक्टरी)-सपा०प० रामलाल पचरत्न, प्र० जिनेन्द्र चन्द्र मन्त्री अवध प्रान्तीय दि० जैन परिषद लखनऊ, भा० हि०, व० १६४५, मा० प्रथम । Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खुर्वा, भा. हि... सा ... .. कीर्ति यमाला बम्बई, भा० प्रा० कि.४१० ११२arat 'न्याय तीर्थ, प्र० भारतमाम जैन अनाररक्षक सोसाइटी पहली, पान , वि.पु. १४० १९४३, मान। अष्ट शती-ले भट्टाकलंकदेव, (माप्तमीमाता तथा प्रष्ट सहस्त्री . सब प्रकाशित)। अष्ट सहस्त्री-ले० विद्यानन्द स्वामी, संथा. य• कंसीधर, . .. माफीनाकारंवत्री माकसूब, भा० सं०, पू. २१५, क. १९१ माम! अष्ट मास्त्री वात्पर्य विवरणम्-ले. यद्योगिना मसी, प्र• की जैन ग्रंथ प्रकास सभा अहमदाबाद, भा० स०, पृ० ४२८, २०१६ अष्टांगहृदय-ले० श्रीमद्वाग्भट्ट, प्र. पन्नालाल जैन देश हितैषी प्रापिन बम्बई। अष्टान्दिन पूजन व माय-ले. हेमराव जी,संह सिमान, पन्नालाल, प्र० स्व अमरावती, भा. हि, पृ.१८, १९३१ : असहमत संगमले चम्पस्य बैरिस्टर, अतु. चा प्रसाद जैन, प्र. लेखक स्वयं हरदोई, भा० हि०, पृ० ५१२, २० १९२२, प्रा प्रभाव महारोगापाल जैन, गार कार्यालय टीकमगा हा पृ० ६६, १० १९४३, मात्र अथम । अहिछत्र पावनाष पूना से कल्याण कुमार शशि, म राम अहिंसा- ले वल Her, प्र म मन मन पृ. १, २०ीय। : Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ · , अहिंसा-ले.पं. कैलाश चन्द शास्त्री, प्र० चम्पावती जैन पुस्तक माला अम्बाला छावनी, भा० हि पृ० ४८, २० १९३०, प्रा० प्रथम ।। . अहिंसा अर्थात् प्रानन्द की कुंजी-ले० वा० सूरजभान वकील, प्र० प्रेम मंडल हरदा सी० पी०, भा० हि०, पृ० ११ । । अहिंसा और कायरता-ले. अयोध्या प्रसाद गोयलीय, हिन्दी विद्यामंदिर देहली, भा० हि० पृ० २६; २० १९३८, प्रा० तृतीय। हिंसा धर्म प्रकाश [पूर्वाध]-ले फुलजारी लाल जैन, प्र. स्वयं जैन स्कूल पानीपत, भा० हि०, प्र. ८३, व १६२४, प्रा० प्रथम । अहिंसा प्रदीप-० धीरेन्द्र कुमार शास्त्री, प्र. अहिंसा प्रचारक सघ काशी, भा०हि०; प्र. ३३, प्रा० प्रथम । अहिंसा सिद्धांत-ले० मुनि अमर चन्द, भा० हि०, प्र०४८, प. १९३२ । अहिंसा धर्म और धार्मिक निर्दयता-ले० प्र० अशात, भा• हि० । अहिंसा धर्म और प्रेम--प्र• जीव दया सभा आगरा, मा. हि०, ३० अपना-० अमात, भा० हिन्दी। अंजना पकजय (काव्य)-ले० भवर लाल सेठी, प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ३०, ब० १६१५; आ० प्रथम । । अंजना पवजय (नाटक)-ले० परमानन्द; भा० हि०, पृ० १२०, ५० . अंजना सुन्दरी नाटक-ले० कन्हैयालाल; प्र० सेमराज श्री कृष्णदास बम्बई, भा० हि०, पृ० ११२, व० १९०६; मा० प्रथम । अंजना सुन्दरी-ले० रामचरित उपाध्याय, भा० हि० । । । आगम प्रमाणता सम्बन्ध में शास्त्रार्थ-ले० कई विद्वान; प्र० हीराचन्द नेमचन्द दोशी शोलापुर; भा० हि० पृ० ३६; २० १९२४। .. आचारसार-ले० प्राचार्य वीरनंदि; सपा० ५० इन्द्रलाल शास्त्री प० Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनोहरलाल शास्त्री; प्र० माणिक चन्द दि० जैन ग्रन्थमाला बम्बई भा० संoj १९८० १६१८, प्रा० प्रथम । । प्राचारसार-ले० प्राचार्य वीरन दि; टी०५० लालाराम शास्त्री सेठ शाह जोतीचन्द भाई चद सर्राफ बारामती, भा० स० हि०, पृ० २६९ १६३६, प्रा० प्रथम । " आचाथै शान्तिसागर पूजन स्तवन-ले०प० लालाराम व पं० मक्खन- ' साल प्र० श्रीलाल जैन जव्हेरी कलकत्ता, भा० हि; पृ० २८ ब० १९३४ ।' ' आचार्य शान्तिसागर महाराज का चरित्र-प्र० राव जी सखाराम दोशी . शोलापुर, भा० हि०, पृ० ३६, व० १९२८, मा०प्रथम ।। आत्मकथा-ले० प० दरवारी लाल सत्य भक्त, प्र० सत्याश्रम वर्षा सी० । पी०, भा०हि०, पृ० २६१, २०१९४०, प्रा० प्रथम । । आत्म तेज-ले० भगवत जैन, प्र० स्वय; भा०हि० पृ० ३०५० १६३६ । ... मात्म दर्शन (सचित्र)-ले० मास्टर मेवाराम; प्र० पृथ्वीपाल जैन बड़ोदा, भा० हि०, पृ०४८, २० १९४४; मा० प्रथम । '' आत्म चिन्तन - ले० केशरी मल जैन, भा० म० हि०; पृ० १०॥ भात्म दर्शन-ले० योगीन्द्र देव; भा० स०। " आत्म धर्म-ले० ब्र० शीतल प्रसाद, प्र० मूलचन्द किशनदास कापड़िया . सूरत; भा० हि०, पृ०१५६, ५० १६१६, प्रा० प्रथम । आत्मध्यान का उपाय-सपा० ० शीतल प्रसाद जी, प्र० मवाई सेठ खुशाल चद चौरई छिन्दबहा, भा० हि०, पृ० ५६, ५० १६२८, प्रा० प्रयम । आत्म निवेदन-ले० के० भुजवनि शास्त्री, अनु० धरणीधर, भा० सं० हि०, पृ० ३२, व० १९४०। . प्रात्म प्रबोध-ले० कुमार कवि, अनु० पं० गजाधर लाल, संपा० पं० श्रीलाल; प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकता, भा० स० हि०, पु० १६४, प्रा० प्रथम । Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • भाता प्रमोद दिलाल, माहि० ३८५ आत्म प्रमोद (प्रथम द्वितीय भाग) ले बन्दनाल, सबिहारी साल कठनेरा, प्र० लेखक स्वयं कारचर, माहि ०७१, 40 १९२८, मा० अधम । प्रात्म मावना-ले०७० नन्दलाल, भा० हि० पृ० १६, २०१९३९ । मात्म वन्दन (पद्य)-ले० ० नन्दलाल, प्र. दुलीचन्द जैन कलकत्ता भा० हि०पू० २७, ब०१६३६, भा० प्रथम ।। आत्मवाद और एकान्त परिहार-ले० प्र० ० नन्दलाल, भा० हि०, १०२०। प्रात्म शुद्धि-ले० जुन्सीलाल एम० ए०, प्र० स्वय; मा० हि- पु०१६॥ क. १९१४, प्रा. द्वितीय। यात्मसार छत्तीसीले धानत सव कवि; भा: हि०। भात्म सिद्धि-ले० श्री भद्राज चन्द्र, संपा०५० उदय लाल काशलीवाल, प्र० मनसुख लाल रावजीभाई बम्बई, भा० हि०, पृ० २०७, व० १६१८. मा० प्रथम । आत्म सिद्धि-ले० प दरबारी लाल सा० १० प्र० आत्म जागृति कार्यालय व्यावर; भा० हि०, पृ० १७; व० १६३२ । श्रात्म सिद्धि और सम्यक्त्व-ले० प० दरबारी लाल सा० र०, प्र. प्रात्म जागृति कार्यालय ब्यावर, भा० हि०, पृ० १२, व० १६३२ ।। आत्मानन्द का सोपान-ले० ब्र० शीतल प्रसाद, प्र० मूलचन्द किशन दास कापडिया सूरत, भा० हि०, पृ० २०, व० १६२३; प्रा० प्रथम । आत्मानंद जैन शताब्दो स्मारक ग्रंथ-प्रात्मानद जैन सोसाइटी मा० हि० अ० पु०, पृ० ११, २० १६३६ । आत्मानुशासन-ले० गुणभद्राचार्य, टी० पं० टोडरमल जी, अनु० हकीम ज्ञान चन्द, प्र. ज्ञान चंद जैनी लाहोर, भा० सं० हि०, पृ० ३४४, ३० १८९७ . Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 观察彦 मी०ए० कीमी प्र पंच रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० स० हि० पृ० ३४२ ० १६२९, द्वितीय। बास्मिक मनोविज्ञानले० चम्पतराय बैरिस्टर; प्र० साहित्य मंडले देहली, मा० हि०, पृ० १०५, १० १०३२, पा० प्रथम । आत्मोन्नति - ले० ब्र० शीतल प्रसाद, प्र० जैन मित्र मंडल देहली, मा० हि०, पृ० २४, व० १९३६, ० प्रथम । आदर्श कहानियाँ - ले० पड़िता चन्दा बाई, प्र० सूलचंद किशनदास कापडिया सूरत; भा० हि० पृ० २०४, व० १९३४ प्र० प्रथम, Q आदर्श जैन चर्या ले० कामता प्रसाद चैः प्र० दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० ३२, १० १६४५, ग्रा० प्रथम, 1 आदर्श जैनी बनो - ले० ब्र० प्रेमसागर; प्र० बरातीलाल जैन लखवा भा० हि०, पृ० १६ व० १९२६ । आदर्श नाटक - प्रा० प्रथम, भार हि० प्र० जिनवाली प्रचारक साथ जब कवकताः ० १६३३; आदर्श निबंध - ले० पंडिता चन्दाबार्ड प्रक जैन बाबाविश्वास घाता चार हि०, पृ० १४६ पादर्श भावना - १० अ० सुन्दरसाल, मा० हि० पू० १६, १० १९३५ । आदर्श महिला पंडिता चन्दाबाई – ले० प० परमानन्द जैन शास्त्री) ० पपाला देवी पालाविश्राम मारा, मो० हिं०, पृ० २८३, ६० १९४३३ मा० प्रथम । आदिनाथ स्तुति (भाषा भक्तामर ) - अमनसिंह, प्र० मु० मनसिंह देहली, भा० श्री० प्रथम । आदिनाथ स्तोम से० मानतु माचायें, अनु० प० लक्ष्मण जी अमर प० हेमराज, सपा०, मुंशी हिं०, पृ० २८, ५० १८६३३ O Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२ : भट्ट, प्र० सेठ हजारीलाल हरसुख राय सुसारी इन्दौर, भा० सं०. हिण, . २५, व० १६३६, मा० प्रथम । आदिनाथ स्तोत्र व महावीराष्टक-ले०मानतु गाचार्य अनु० पं० भागचाई प्र० हीरालाल' पन्नालाल जैन दिल्ली, भा० स०, पृ० १६, प १९३९ । आदिनाथ स्तोत्र (विषापहार सहित )ले० मानतु गाचार्य, अनुक टी० ५० नाथूराम प्रेमी०, प्र० जैन अथ रलाकर कार्यालय बम्बई, भा० स० हि०, पृ० ६०, व १९२३, मा० षष्टम् । आदिपुराण-ले० जिनसेनाचार्य, टी० १० दौलतराम जी, प्र. भारतीय जैन सिद्धांत प्रकाशनी संस्था कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १६२, व. १९२०, प्रा० प्रथम । आदिपराण-ले० जिनसेनाचार्य टी० अनु० ५० लालाराम शास्त्री, प्र. जैन अथ प्रकाशन कार्यालय इन्दौर, भा० स० हि०, पृ० १७६८, व० १९१५, मा० प्रथम । आदिपुराण-ले० जिनसेनाचार्य, अनु० घुद्धिलाल श्रावक, प्र० दुलीचंद परवार देवरीसागर, भा० हि०, पृ० ४६० । आदिपुराण-ले० जिनसेनाचार्य, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता,भा० स०, पृ० २५८, प्रा. प्रथम । ___ आदिपुराण-(सचित्र)-ले० जिनसेनाचार्य, अनु० बुद्धिलाल श्रावक, प्र• जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० २०२, व० १९३५, श्रा० द्वितीय । 1. श्रादिपुराण (स क्षिप्त हिन्दी गद्यात्मक)ले० मा० बिहारीलाल; प्र.. शान्ति चन्द्र जैन, भा० हि०, पृ० १८८, व० १६२६, प्रा० प्रथम। . आदिपुराण समीक्षा (प्रथम भाग)-ले० बा० सूरजभान वकील; प्र० चन्द्र सेन जैन वैद्य इटावा; भा० हि०, पृ० ५४; १० १६१८; मा० प्रथम । . आदिपुराण समीक्षा (द्वितीय भाग)-ले० बा० सूरजभान वकील, प्र० चन्द्रसेन जैन वद्य इटावा भा० हि० पृ० ७०० ६१८, आ० प्रथम । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . प्रादिपुराण. समीक्षा की परीक्षा ले० पं० सालाराम शास्त्री प्रमाणिक, जन्द्र बैनाड़ा बम्बई, भा० हि०, पृ० ६६, व०.१९१८, प्रा० प्रथम । आध्यात्मिक चौबीस ठाणा-ले० तारण तरण स्वामी, टी० ० शीतल प्रसाद, प्र० सेठ मन्मूलाल जैन मागासोद, भा० हि० पू० १२४, 40 १९३९, प्रा० प्रथम। आध्यात्मिक निवेदन-ले० ० शीतल प्रसाद, प्र० मूलचन्द्र किशन दास कापड़िया सुरत, भा० हि०, पृ०, १६; २० १९१७, प्रा० प्रथम। .. आध्यात्मिक पत्रावली (प्रथम भाग)-ले० प्र० गणेश प्रसाद जी वी, प्र० जिज्ञासु मंडल कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १४०, २०१९४०, प्रा. प्रथम । आध्यात्मिक पत्रावली (द्वितीय भाग)-ले० गणेश प्रसाद जी वर्णी, संपा० बा० छोटेलाल ; प्र० सर सेठ हुकम चन्द इन्दौर, भा० हि०, पृ०७२, व० १९४१ मा० प्रथम ।' आध्यात्मिक पत्रावली (द्वतीय भाग)-ले० पंडित गणेश प्रसाद जी वर्णी प्र० जिज्ञासु मंडल कलकत्ता भा० हि०, पृ० १८३ व० १९४१, प्रा० प्रथम । आध्यात्मिक सोपान-संपा० ब० शीतल प्रसाद जी, प्र० दिगम्बर जैन पस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० ३२५, व० १९३१, प्रा० प्रथम । ' आधुनिक जैन कवि-सपा० रमारानी, प्र. भारतीय ज्ञानपीठ काशी ! भा०हि०, पृ० २१४, व १९४४ । आनुपूर्वी-प्र० उम्मेद सिह मुसद्दीलाल, भा० हि० पृ० २७, व. १९८८ आप्त परीक्षा-(मूल) ले० विद्यानन्द स्वामी, सपा०प लालाराम, प्र० जैन ग्रथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० स०, पृ० १४, व० १९०४ ; प्रा० प्रथम । प्राप्त परीक्षा(सटीक)-ले० विद्यानन्द स्वामी; टी० अनु० ५० उमराव सिंह प्र. स्यावाद विद्यालय काशी, भा० सं० हि०, पृ०७२ व०१६१५, मा प्रथम । Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४) प्राप्त परीक्षा (पत्र परीक्षा सहित)ले० विद्यानन स्वामी संपा०प० गजाधरलाल, प्रपनालाल जैन बनारस; भा०० पू०७४, २०११ मा० प्रथम। याप्तमीमांस-ले० समन्तभद्राचार्य, 'संपा० ५० बालाराम, प्र० ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई; भा० स० प्र० १४; व० १६०४, मा० प्रथम । आप्तमीमांसा वनिका-ले० समन्तभद्र आचार्य, टी० ५० अपचन्द्र जी, प्र० मुनि अनन्त कीति अन्यत्राला बम्बई, भा० सं० हि०, पृ० ११८, प्रा० प्रथम । प्राप्तमीमांसा प्रमाण परीक्षा--ले० समन्तभद्राचार्य, निशानन्द स्वामी संपा०प० गजावरलाल, प्र० पन्ना लाल जैन काशी, मा. 1, पृ८०, ० १६१४, प्रा० प्रथम। प्राप्त स्वरूप-ले० अज्ञात, टी० पं० उम्र सेम जैन एम० ए०,प्र. जैन मित्र मडल देहली, भा० हि०, पृ० २७२, व० १९४०, मा. प्रमय । आप्त स्वरूप-ले० अज्ञात, टी० प उग्रसेन जैन एम० ए०, प्र. महावीर प्रसाद एण्ड सन्स देहली, भा० हि०, पृ० १८७; व० १९४१ मा० प्रथम ।। आरती व तीर्थ भजनावली- सन० प. मगल सैन, प्र. दिग० जैन पुस्तकालय मुजफ्फरनगर, भा० हि०, पृ० ४२, व. १९४० मा० सुतीय । भारती संग्रह--मंग्र० पुरुषोत्तम दास जैन, प्र० स्वय सहारनपुर, भा० हि. पृ० १६, २० १६२६, प्रा० प्रथम । आराधनासार-ले. देवसेनाचार्य; स. टी. पडिताचार्य रत्मकीर्ति देव; सपा प० मनोहर लाल शास्त्री, प्र० मासिकचद दिम जैन ग्रन्थ माला बम्बई भा० सं०, प्रा० पृ० १३१, व० १६१६; प्रा० प्रथम । श्राराधना (टीका)-ले० देव सेनाचार्य; टी० , ; अनु० ५० गजाधर लाल शास्त्री, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी संस्था कलकत्ता, भा० हिं०, पृ० ८८८, आ० प्रथम; आराधनासार कथाकोष (प्रथम भाग)-ले. ब्र० नेमिदत्त, अनु. उदयलाल काशली वाल, प्र० जैन मित्र कार्यालय बम्बई, भा सं० हि । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारावनासार याकोष (दूसरा मामले मेनिक्स अनुदा साल कासलीवाल, जग मिककार्यालय बम्बईमा म हिन्दी० २० व० १९१५; आ. प्रथम । आराधना सार कथाकोष (तीसरा भाग)-ले०७० नेमिदत्त अनु० उवा लाल कागली वाल, प्र जैन मित्र कार्यालय बम्बई, भा० सं० हिन्दी पृष्ठ४६% व० १६१६, प्रा० प्रथम । - आराधनांसार कथाकोष (सचित्र-प्रथम भाग)-ले० परमानन्द विशारद, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०; पृ० १६.; व ११३७, प्रा. प्रवर्म । पाराधनासार कबाकोष (द्वितीय, सृतीय माग) ले परमानन्द विकार प्र. जिनवाणी कार्यालय कलहला, पु. १४६ मा प्रथम । माराधनासारख्या कोष (हिन्दी पध)-ले बलावर रतनलाल मोतीलाल जैन कुदेसर, मुजफ्फर नकर, मा. हि. पृ. ५४५; क. १९०६ प्रा प्रथम । धाराधनास्वरूप-सग्र० धर्मचन्द हरजीवनदास ; माहि; पृ०४, व० १६१६। मार्यभ्रमनिराकरण-ले. मगलनलाल जैन ; म तत्व प्रकारानी सभा इटावा , भा० हि०; पृ० ३८ ; व० १९१३; मा० प्रथम । अार्यघ्रमोच्छेदन अमरावसिंह जैन , प्र. पन्नीर जैन वैद्य इटावा ; भा० हि० ; पृ० १२ ; व० १६१३ ; आ० प्रथम । भार्यमत खीलाले १० जुगलकिशोर मुख्तार; १० चन्मान वैद्य इटावा ; भा० हि०; पृ० १८४ ; व० १६११ ; प्रा० प्रथम । मार्य समाज की टबल गप्पाटपावे० प.षित हुमार शास्त्री, प्र० भारतवर्षीय दिग० जैन संघ अम्बाला छावनी ; भा० हि; . २७० १९५९; व द्वितीय । बार्य समाज के एकरी परमों का स्तर- पबित कुमार Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्र० चम्पावती पुस्तकमाला अम्बाला छावनी; मा. हि०; .पु. ८६; 40. १९३१ ; प्रो० प्रथम (दो अन्य पुस्तकें इसी प्रकार की प्रकाशित हुई हैं)। आर्य समाज भ्रमोन्मूलन-लेखक पडित अजित कुमार, प्रकाशक चम्मावती जैन पुस्तकमाला अम्बाला छावनी, भाषा हिन्दी; पृष्ठ २१, व. १६३३ आ. प्रथम। आर्य संशयोन्मलन-लेखक पडित देवकीनन्दन, प्रकाशक जैन तत्त्व प्रका-- शनी सभा इटावा, भाषा हिन्दी, पृष्ठ १८ ब १९१३, प्रा० प्रथम । आर्यो का तत्त्वज्ञान-लेखक पडित जुगलकिशोर मुख्तार, प्रकाशक चन्द्रसेन जैन वैश्च इटावा, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ३१, व. १९१२, प्रा. चतुर्थ।। आर्या की प्रलय-लेखक पडित जुगलकिशोर मुख्तार, प्रकाशक जैन, तत्त्व प्रकाशनी सभा इटावा; भाषा हिन्दी पृष्ठ ४०; व. १६१३; मा० द्वितीय । , आलाप पद्धति-लेखक देवसेनाचार्य, अनु पडित दीपचन्द जी वर्णी; प्रकाशक सेठ सवाभाई लखमल शाह आरोग, भाषा प्रा० हिन्दी, पृष्ठ १३२, व० १६३३ प्रा० प्रथम । आलाप पद्धति-लेखक देवसेनाचार्य, अनु० पंडित हजारी लाल, संपा० पडित फूलचन्द सि० शास्त्री, प्रकाशन दिगम्बर जैन पचान नातेपुते, भाषा प्राकृत हिन्दी, पृष्ठ १३६, व. १९३४ । . आलोचना पाठ-प्रकाशन बा० सूरजभान वकील देवबंद, भाषा हिन्दी व० १८६८। आलोचना पाठ सटीक-अनु० भाईलाल कपूरचन्द भाषा हिन्दी, पृष्ठ २४, २०१९०६। श्राशावर पूजा पाठ-लेखक पंडित आशाधर, संपादक नेमिशा उपाध्याय, भाषा स०; पृष्ठ १५३२, व १६२० । आश्रम भजनावली (प्रथम भाग)--सग्र० प्रकाशक सुपरिंटडेट प्रचार भारतवर्षीय जैन अनाथाश्रम देहली, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ३२, प्रा. द्वितीय । Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रास्वमिंगी. लेखक श्रुत्तमुनि, भाषा संस्कृत, व १९२० (भाव संवाहादि में प्र०). • आहारदान विधि-लेखक पंडित वंशीधर, प्र० रावजी सखाराम कोशी शोलापुरः भाषा हिन्दी; पृष्ठ ५६, व १९२८ । इन्द्रिय पराजय शतक-लेखक अज्ञात; भाषा० सं , इष्ट छत्तीसी-लेखक कविवर बुधजान जी; प्र. जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भाषा हिन्दी पृष्ठ १४, वर्ष १६०० प्रा० तृतीय। इष्टोपदेश-लेखक पूज्यपादाचार्ग, भाषा० सं , पृष्ठ ७२, व १९२० । इष्टोपदेश टीका-लेखक प्राचार्ग पूज्यपाद देवनन्दी, टीका ब० शीतल प्रसाद जी; प्र० दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, भाषा स० हिन्दी, पृष्ठ २५६4 १९२३; प्रा० प्रथम । - ईश्वरास्तित्व-लेखक पंडित पुत्तूलाल, प्र० जैन तत्त्व प्रकाशनी सभा इटावा, भाषा हिन्दी; पृष्ठ १५, व १९१४, प्रा० प्रथम । ___उजले पोश बदमाश-लेखक अयोध्या प्रसाद गोयलीय, प्र० जैन सगठन, सभा देहली, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ३३, व १९२८, प्रा० प्रथम । - उज्ज्वल जीवन के सात सोपान-लेखक मरिणलाल नाथू भाई, अनु० मुनि तिलक विजय, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ३०, व १९२० । उतर पुराण-लेखक गुणभद्राचार्य, अनु० टीका पडित लालाराम शास्त्री प्र जैन ग्रन्थ प्रकाशन कार्यालय इन्दौर, भाषा संस्कृत हिन्दी, पृष्ठ ७६०, व १६१८; प्रा० प्रथमः । ___ उद्गार (पद्य)--लेखक दलीपसिंह कागजी, प्रकाशक मोतीलाल जैन देहली; भाषा हिन्दी; पृष्ठ १६ व १९४२; ग्रा० प्रथम । " उन्नति शिक्षक लेखक प्रकाशक छोटे लाल अजमेरा जयपुर, भाषा हिन्दी (१८ विविध विषयक निबंधों का संग्रह) । १, उपदेश और पुकार पच्चीसी-लेखक भैया देवीदास, प्र. जैन ग्रंथ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०६ ) चार पुस्तकालय देवबन्द भाषा हिन्दी १०० १९१० 1 उपदेश छाया आत्मसिद्धि — लेखक श्रीमद्रराज चन्द्र, अनु● पंडित जगदीश -शास्त्री एम ए प्र० पश्च श्रुत प्रभावक मंडल बम्बई भाषा हिन्दी; पृष्ठ ६४ व० १६३७, भा० प्रथम । उपदेश माला - लेखक त्यागी धानन्दी जान, प्र० शाह केशव लाल त्रिभुवन दास वडोदा, भाषा हिन्दी पृष्ठ १३ व० १६१४, आ० प्रथम । भाषा हिन्दी, पृष्ठ ५०, ५० जैन पुस्तक प्रकाशन उपदेश रत्नको कार्यालय ब्यावर । उपदेश रत्नमाला - लेखक पडिता चन्दा बाई, प्र० जन बालाविश्राम आरा, भाषा हिन्दी, पृष्ठ १३६, १० १६२५ प्रा० चतुर्थ । उपदेश रत्नमाला (पद्य) - लेखक अज्ञात, अनु० दौलत राम जैन, सपा● मूल चद वत्सल, प्र० साहित्य रत्नालय बिजनोर, भाषा हिन्दी पृष्ठ १५ व० १९२६, भा० प्रथम । पदेश रत्नावली - लेखक व प्र० पन्नालाल जैन मास्टर, नवकर; भाषा हिन्दी | उपदेश शुद्धसार - लेखक तारण तरण स्वामी; म० ब० जीतन प्रसाद प्र० सेठ मन्दलाल भागासोद; भाषा हिन्दी; पृष्ठ ३२६; व० ९६२६ ० अथमः | उपदेश सिद्धान्तरत्न माला-लेखक नेमिचंद पारी टीका पंडित पत्तो लाल बाकलीवाल, प्र० जैचन्द सीताराम सैतवाल वर्षा; भाषा हिन्दी पृष्ठ ६० व० १८८६, आ० प्रथम । 1 उपमिति भव प्रपंच कथा ( प्रथम आग ) -- लेखक सिद्धार्थ मनु० चित नाथू राम प्रेमी, प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई भाषा हिन्दी पृष्ठ २०४ व १९११ प्रा० प्रथम । उपमिति भव प्रपंच कथा (द्वितीय भाग) --लेख सिद्ध पंडित Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - नाराम प्लेमी प्र० बेन पन्थ रत्नाकरक कार्यालय बम्बई धा हिन्दी, पृष्ठ ६० ब० १६१२: मा० प्रथम । उपासना तत्त्व-लेखक पंडित जुगल किशोर मुख्तार, प्रवन मित्र मंडल देहली, भाषा हिन्दी; पृष्ठ ३२, ब० १९२१ प्रा० प्रथम । उमास्वामी थानकाचार परीक्षा लेखक पिडित जुगलकिशोर मुख्तार, ' काशक वीर सैवां मंदिर सरसीवा, भाषा हिन्दी, पृष्ठ २६, ५. १९४४, मा० प्रथम । ऋगवेद के बनाने वाले ऋषि-लेखक बाबू सूरजभान वकील, प्रकाशक ज्योति प्रसाद की देवबन्द भाषा हिन्दी पृष्ठ ११२, व० १६१४ मा प्रथम । "ऋषम दास जी जैन के पवित्र जीवन की कुछ मलक-लेखक ज्योति प्रसाद प्रेमी; भाषा हिन्दी; पृष्ठ १०, वर्ष १८३६ । ऋषभ देव को उत्पत्ति असंभव नहीं है-लेखक कामता प्रसाद जैन; प्र. चम्पावती जैन पुस्तक माला अम्बाला छावनी; भाषा हिन्दी पृष्ठ ७६;व. १६३०; प्रा० प्रथम । ऋषभ देव जी हत्या कांड का संक्षिप्त वृत्तान्त लेखक डा. गुलाबचंद पाटनी, प्रकाशक गुमानमल लुहाडचा अजमेर, भाषा हिन्दी पृष्ठं ३४; वर्ष १९२७ । ऋषभ देव में भयंकर हत्याकांड-लेखक जवाहरलाल जैन, प्र० स्वयं बम्बई, भाषा हिन्दी, पृष्ठ २० । ऋषभ पंचाशिका-लेखक धनपाल केवि, भाषा सं०, पृष्ठ ८, व० १८८६ (काव्य माला सप्तम गुच्छक मे प्र०)। ऋषभ पुराण (पद्य)-ले०७० मनसुख सागर; संपा० मा० बिहारी लाल चैतन्य: प्र० शान्ति चन्द जैन बुलन्दशहरी; भा०, हिं०, पृ० ५६; २० १९२६ प्रा० प्रथम । ऋषि मंडल मंत्र कल्प-ले० विद्याभूषण सूरि; टी० ५० मनोहर लाल, प्र० जैन अन्य उद्धारक कार्यालये बम्बई; भा० सं० हि० पू०६०, ब० ११६, मा० द्वितीय। Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११० ) ऋषि मंडल मंत्र कल्प-ले० विद्याभूषण सूरि; टी० पं० मनोहर लाल; प्र० नेमचंद देवचन्द शाह शोलापुर भा० सं० हि० पृ० ६४, 'ब० १९२६; प्रा० तृतीय । 74 ऋषि मन्डल यन्त्र पूजा - ले० गुणनन्दि मुनींद्र; टी० पं० मनोहरलाल _ " 秘 'प्र० जैन ग्रंथ उद्धारक कार्यालय बम्बई, भा० स० हि० पृ० ४२ ० १९१५, f श्रा० प्रथम । एक रात - ले० जैनेन्द्र कुमार; भा० हि०, पृ० २०६, १० १६३५ । एकीभाव स्तोत्र - ले० आचार्य वादिराज, स० टी० भट्टारक चंद्रकीति, अनु० सपा०प० परमानद शास्त्री, प्र० स्वयं सपा० भा० स० हि० पृ० ५२; व० १९४० प्रा० प्रथम | • 4 एकीभाव स्तोत्र - ले० आचार्य वादिराज ( काव्य माला सप्तम गुच्छक में प्र०) । एकीभाव स्तोत्र - ले० प्राचार्य वादिराज, (पंच स्तोत्र में प्र० ) । ऐतिहासिक जैन काव्य समह - सपा० अगरचन्द भवरलाल नाहटा, भा० हि०, पृ० ६१३; १० १६३७ ॥ ऐतिहासिक स्त्रियाँ - ले० सपा० प्रेमलता देवी; प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० ८७ १० १६३६, आ० प्रथम । ऐतिहासिक स्त्रियाँ -ले० कुमार देवेन्द्र प्रसाद जैन मारा, भा० हि० । एलक पन्नालाल दिग० जैन सरस्वती भवन -- वार्षिक रिपोर्ट, ग्रन्थसूची, प्रशस्ति सग्रह ( प्रथम वर्ष )) - प्र० ठाकुरसीदास जैन मंत्री बम्बई, भा० हि०; पृष्ठ १३६, १० १६२३ । वही ( द्वितीय वर्ष ) (तृतीय वर्ष ) (चतुर्थ वर्ष ) ( पचम वर्ष ) ( षड वार्षिक ) वही वही वही बही वही वही वही वही वही पृ० ६८, व० १६२४ । पृ० ११५, व० पृ० १२०, व० पृ० १७७, व० पृ० ४०३, व M १६२५ । १६२५ । १६३१ । १६३२ । Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओसवाल समाज की वर्तमान स्थितिले कालूराम, भाषा हिन्दी; 'पृष्ठ ४६, वर्ष १९२१ । 1 . औदार्य चिन्तामणि-लेखक श्रुतसागर; संपादक एस. पी. वी. रंगनाथ स्वामी, भाषा प्राकृत स स्कृत: पृष्ठ ४४ वर्ष १९१७ ।। • कथा कहानी और संस्मरण लेखक अयोध्या प्रसाद गोयलीय; भाषा हिन्दी, प्रष्ठ १२८; वर्ष.१९४१ .. कथा मंजरो (पहिला भाग)-लेखक पंडित देवीदयाल चतुर्वेदी, प्रकाशक सरल जैन ग्रंथमाला जबलपुर; भाषा हिन्दी; पृष्ठ ३५; वर्ष १९४० प्रा. प्रथम । , कथा मंजरी (दूमरा भाग)- लेखक भुवेन्द्र 'विश्व' प्रकाशक जैन प्रथमाला जबलपुर, भाषा हिन्दी; पृष्ठ ३८3; वर्ष १६४१: मा. प्रथम । कनक तारा-लेखक बाबू सूरजभान वकील, प्रकाशक स्वयं भाषा हिन्दी, पृष्ठ ३३, वर्ष १९२५; मा प्रथम । कन्या विक्रम नाटक-प्रकाशक जिनवारणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, ' भाषा हिन्दी । कमल श्री नाटक-लेखक पडित न्यामत सिंह, प्रकाशक न्यामत जैन 'पुस्तकालय हिसार; भाषा हिन्दी, प्रष्ठ ३८६; वर्ष १९२७, मा० प्रथम। . कमला की सास-लेखक चन्द्रप्रभा देवी, भाषा हिन्दी; पृष्ठ १३, वर्ष १६२७। करलक्खण-सम्पादक प्रो० प्रफुल्लकुमार मोदी एम. ए. प्राकृत संस्कृत भाषा, प्रकाशक भारतीय ज्ञान पीठ काशी, प्रष्ठ ५०, मूल्य १) ० १९४७ क्या आर्य समाजी वेदानुयायी हैं-ले० पं० राजेन्द्र कुमार, प्र. भारतवर्षीय दिग० जैन शास्त्रार्थ सघ अम्बाला छावनी, भा० हि० पृ. ४७; १० १९३५; आ. द्वितीय। क्या ईश्वर जगत कर्ता है-ले० बा० दयाचन्द्र, प्र. जैन ग्रंथ रत्नाकर . कार्यालय बम्बई; भा० हि०, पृ० १२ व १६१२; मा० प्रथम । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११२) भाग समाज जिन्दा है मामा प्रसार मोमतीय, म. हिन्दी विद्या मदिर न्यू देहली, भा० हि पृ० ३२; १० १९३८; प्रा० अभय ।। स्या घेद्र ईश्वर है . मगलसेन, स्वये अम्बाला छावनी; । मा० हि० पृ० २०.१९३१, मा प्रथम करपतु चरित-ले० पुनि कपकामर, समा० प्रो. हीसवाल, गोपाल मम्बादास चवरे कारजा; भा० अप०, पृ० २८४ ब १६३४ श्रा० प्रथम करकंड स्वाभी की कथा-ले० भज्ञात, प्रश, जैन ग्रंथ प्रचार पुस्तकालय देवबन्द भा० हिपृ० २०, २०१९०९; मा प्रथम । कटिक जैन कवि-ले०५० नाथूगम प्रेमी; प्र. जैन प्रथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई; मा हि, पृ० ३६, व• १६१४; प्रा प्रथम । कर्म ग्रंथ भाग चौवा-पड शीति-ले. देवेन्द्र सूरि; अनु० पं० सुखलाल संघवी; प्र० प्रात्मानन्द पुस्तक प्रचारक मडल मागस, भा० मा हि, पृ० २६२; व० १६२२, प्रा० प्रथम । कर्तव्य कीमुदी-प्र० जैन पुस्तक प्रकाशक कार्यालय व्यावर, भा० हि .. पृ० ५५०, व० १९२४ । कर्म प्रगति-ले शिवशर्म सूरि, भाषा, पृ० २८, २०१६२७, कर्मप्रकृति टीका-ले शिवशर्मसूरी, टी० मलयगिरि व यशोविजय, भा०प्र० सं० पृ. ३९२, ५० १६३४ । कर्मग्रथ शतक-ले० देवेन्द्र सूरि; अनु० संपादन ५० कैलाशचन्द्र शास्त्री मात्मानन्द पुस्तक प्रचारक मल पागरा, भा० प्रा० हि०, पृ० ३७०व. १६४२, प्रा. प्रथम । कर्मवहम विधान-ले० कवियन्द्र, प्र० जिनवाली प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० स० पृ० १२ । कमंदहन व्रत विधान आदि-ले० पं आशाधर, प्र० मूलचन्द किशनदास कापड़िया सूरत, भा० सं० पृ. ६८, २० १६३८ मा प्रथम । ___ कर्मफल कैसे देते हैं-ले. स्वामी कर्मानन्द, म. जैन प्राधि अपनाया Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहारनपुरः भ० ० ० कलिकुड पार्श्वनाथ पूजा देहनी; भा० [सं० हि० ० १ ( ११३ ) ० प्रथम | मन्त्र स्तोत्र ० १९४२, बां० प्रथम । すこ - प्र० मुन्सीलाल एंड संस कामजी कल्पित कथा समीक्षा ले उग्रादित्याचार्यः प्रतु० संचा वर्धमान पायें-' ना० शास्त्री; प्र० सेठ गोविन्द जी रामजी दोडी शोलापुर मा० सं० [हिन्दी; पु० ८१२, व० १९४० प्रथम । कल्यास कारक -ले० उग्रादित्याचार्य, प्रमुख संपte वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, प्र० सेठ गोविन्द जी राव जी दोशी शोलापुर, भा० सं० हि, पृ० ८१६ व० १६४०; मा. प्रथम । कल्याण भावना - ० ताराचंद पांडया) भा० हिं०, पृ० १४, २० १६३४ । कल्याण मंदिर स्तोत्र - ले० कुमुद चन्द्राचार्य; श्रनु पंडित बुदिलास श्रावक; प्र० जैन ग्रंभ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भाषा हिन्दी; पृष्ठ ४६, वर्ष १६१५, आ. प्र० । कल्याण मंदिर स्वोबले० कुमुदचम्प्राचार्य, (काव्य माला सक्षम गुच्छक में प्र०) ब० १८६६ । कल्याण मंदिर स्तोत्र - लेखक कुमुदचन्द्राचार्य; १० १९०६, पंच स्तोत्र $ मे प्र० । कल्याण माला - ले० पडित प्रशाधर, भाषा सं० व १९२१ (सिद्धांत सारादि संग्रह में प्र० ) । कल्याण लोभया (कल्याण लोचना) - लेखक अजीत ब्रह्म भाषा प्रा स०; पृष्ठ १०१ वर्ष १९२१, (सिद्धांत सारादि सग्रह मे प्र०) कल्याण लोभणा ( कल्याण लोचना) - लेखक प्रति ब्रह्म are लालाराना भा० प्रा० सं० हिन्दी; पृष्ठ २१, (बच भक्तपादि सग्रह मे प्र० ) 1 Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११४ ) कलियुग की कुल देवी-से० अशात; भाषा हिन्दी; पृष्ठ ३४; वर्ष १६११ । कलियुग लीला भजनावली -- लेखक पंडित न्यामत सिंह, प्र० स्वयं हिसार; मा० हिन्दी, पृ० २०, १० १६१५, प्रा० तृतीय । C कविवर भूधरदास और जैमशतक - ले० शिखर चन्द जैन प्रा० २० प्र. सार्वजनिक वाचनालय इन्दौर, भा० हि०; व० १६३८ । क्वारों की दुर्दशा - लेखक प्र० बाबू सूरजभान वकील; भा० हिन्दी प्रष्ठ ३६ ० १६२७ । Fart बेवायें -- लेखक अज्ञात, भा० हिन्दी । कसाय पाहुड़ (जय धवल प्रथम खण्ड ) - लेखक भगवत गुरणधराचार्य, टी० स्वामी वीरसेन; जिनसेन; अनु० स पादक पंडित फूलचन्द पडित कैलासयंत्र, पंडित महेन्द्र कुमार, प्र० भारतवर्षीय दिगम्बर जैन सघ मथुरा, भाषा प्राकृत सस्कृत हिन्दी, प्रष्ठ ५६८ व० १६४४, आ० प्रथम । कंस वही [प्राकृत काव्य ] - सम्पादन ए. एन. उपाध्याय; भा० प्रा० । कातन्त्र पच सधि ( भाषाटीका ) - लेखक पन्नालाल जैन; प्र० देश हितैषी आफिस बम्बई; भा० सं० ॥ कातन्त्र व्याकरण - लेखक सर्व धर्माचार्य, टी० भावसेन त्रैविद्य, संपा० जीवाराम शास्त्री, प्र० हीराचंद नेमचंद, भा० सं० प्र०२२२, ब० १५६५, मा० प्रथम । कातन्त्र रूपमाला व्याकरण - ले० सर्व धर्माचार्य, टी० भावसेन त्रैविद्य, प्र० पन्नालाल जैन, देशहितैषी आफिस बम्बई; भा० सं० । काया पलट [ रामकली ] - लेखक ज्योति प्रसाद 'प्रेमी'; प्र० प्रेम पुस्तree देवद, भा० हि० प्र० २२३६, व० १६२२, आ. प्रथम | कालु मक्तामर स्तोत्र - लेखक स्वामी कादमल, अनु० कस्तूरी रंग नाथपा भाषा सं ० हिन्दी; प्रष्ठ ५० वर्ष १६३० । Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काव्य माला [२४ संस्कृत स्तोत्र पागदि का संग्रह] सपादक पति 'काबीनाप शना; प्र० निर्णय सागर प्रेस बम्बई; भाषा संस्कृत; प्रष्ठ १९१ ब० १८१६ मा. द्वितीय, [इसके १३ या १४ गुच्छक प्रकाशित हुए हैं, जिनमें सासवा व तेरहवां महत्त्वपूर्ण है] . . . __ काव्यानुशासनम्-ले० प्राचार्य हेमचंद्र, संपा० पं० काशीनाथ शर्मा, प्र. नियंय सागर प्रेस बम्बई, मा० सं०, पृ० ३६१, २० १९०१; मा. प्रथम . काव्यानुशासनम्-ले० श्री मद्वाग्भह, सपा. पं. शिवदत्त व पं. काशी नाप शर्मा, प्र. निर्णयसागर प्रेस बम्बई, भा० सं०, पृ० ६८, २० १८६४ । । क्रिया कलाप-संपा० .. पन्नालाल सोनी, प्र० स्वयं, भा० हि०, पृष्ठ ३४०, ३० १९३६, मा० प्रथम । - क्रिया कोष-ले० ५० दौलतराम जी, प्र. जैन साहित्य प्रचारफ कार्यासब बम्बई, भा० हिन्दी; पृ० १७८, २० १६१८, प्रा० प्रथम । क्रिया कोष-ले० ५० किशन सिंह जी, प्र. हीराचंद नेम चंद, शोलपुर, मा० हि०, पृ० १३६, व० १८९२ । क्रिया मजरी-संग्र० पडित लालाराम, प्र. जैन अथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ४२, ब० १९१२, मा० प्रथम । किया रत्न समुच्चय-ले० गुणरत्न सूरि, भा० सं०, पृ० ३३५, ५० १६०७ कीर्ति कौमुदी-ले० कवि सोमेश्वर, भा० संस्कृत पृ० ७२, ब० १८६७, (प्राचीन लेखमाला द्वितीय भाय में प्र०)। कुन्दकुन्दाचार्य के तीन रत्न-लेखक श्री गोपालदास जीवा भाई पटेल, अनुवादक शोभाचंद्र भारिल्ल-भाषा हिन्दी प्रष्ठ १४२ प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ, काशी १९४० मूल्य २)। कुण्डलपुर महावीर पूजन-ले प्रजात, भा० हिन्दी। कुण्डलपर महावीर परिचय-ले० प्रज्ञात, भा० हिन्दी। कुस्ती नाटक-ले. पं० न्यायत सिंह, प्र. स्वयं हिसार, भा० हिन्दी, पु. Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६) २० ब, १६१३, मा० तृतीय, कुन्यसागर गुण गायन-सम. ब्र, विद्याधर वर्णी, प्र० प्राचार्य कुषसागर ग्रन्थमाला शोलापुर भा० हिन्दी पृ. ७६, ब० १९४२ मा० प्रथम । कुन्दकुन्द भजनावली--ले० ७० नन्दलाल. प्र. दिग. जैन प्रथमाला मिन, भा० हि०, प्र. ६४, ब० १६४२, प्रा. प्रथम । कुन्दकुन्दाचार्य चरित्र-लेखक तात्या नेमिनाथ पागल, अनु० मूलचन्द किशन दास कापडिया, प्र. दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हिन्धी, पृष्ठ ५३, ५० १६१३ । कुन्दकुन्द वचनामृत--लेखक ब्र० नन्दलाल, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ११, व० १६४५। कुनयगज केसरी--सपा० प्रकाशक दिगबर जैन आम्नाय सरभिरणी सभा खुर्जा, भाषा हिन्दी पृष्ट ४३, व० १६११ । कुम्भापुत्त चरियम्--सपा० ए टी. उपाध्ये, भाषा प्राकृत, पृष्ठ १२६ । कुवलय माला कथा--लेखक रत्नप्रभ सूरि भाषा संस्कृत, पृष्ठ २५६, व० १९१५। ___ कुँवर दिग्विजय सिंह-प्रकाशक जैन तत्त्व प्रकाशनी सभा इटावा, भाषा हिन्दी, पृष्ठ १८, वर्ष १९१० । कुसंग विप वृक्ष--लेखक पन्नालाल जैन, प्रकाशक देश हितैषी आफिस बम्बई, भाषा हिन्दी। केशरिया जी का हत्याकांड-ले० वाडीलाल मोतीलाल शाह, प्र० मूलचद किशन दास कापडिया सूरत, भा० हि०, पृ० १३६, २० १९२७ । कृपण पच्चीसी --ले० कवि विनोदीलाल प्र० जैन ग्रथ प्रचारक पुस्तकालय देवबन्द; भा० हि०, पृष्ठ ८, व० १६१० । कन्नड़ प्रान्तीय ताड़पत्रीय ग्रन्थ सूची-सम्पादक प० के भुजबली शास्त्री भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, मूल्य १३)। Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११७ ) • संगिरि उदय गिरि पूजन मुनीम मुन्नालाल सुन्दर लाल, प्र० चतुराबाई कटक, भा० हि०, पृ० ३२।। संडेलवाल जैन इतिहास ले. राजमल बड़जात्या, प्र. स्वय, भा० हिक पृ० ४०, २० १९१०, मा० प्रथम । खयाल जैन धर्म प्रकाश-ले० मास्टर घासीराम, प्र० स्वय लखनऊ भा० हि०, पृ० २४, ब० १८८८। खुर्जा शास्त्रार्थ का पूर्व रंग-प्र० जन सभा खुर्जा, भा० हि० पृ० ५० ब० १६०६, प्रा० प्रथम । गउबायो-ले० ऋषभ चरण जैन, प्र० स्वय देहली, भा० हि°, पृष्ठ १२६, २० १६२४, प्रा० प्रथम । गजपुर क्षेत्र पूजा-ले० पं० मक्खन लाल प्रचारक, प्र. त्रिलोक चन्द जैन देहली, भा० हि०, पृ० ८, व० १९३७ । गद्य चिन्तामणि-ले० वादीभसिंह सूरि, संपा० कुघुस्वामी शास्त्री एस० सुब्रह्मान्य शास्त्री प्र० जी० ए० नेटममन कंपनी मद्रास, भा० सं०, पृ. १६६, व० १६०२, प्रा० प्रथम । ग्रंथनयी (तल्वानुवासन, वैराग्य मणिमाला, इष्टोपदेश)-ले० भावार्य रामसेन, श्रीचन्द्र, व पूज्यपाद, अनु० पं० लाशाराम शास्त्री, प्र० भारतीय जन सिद्धात प्रकाशमी सस्था कलकला, भा० स हि०, पृ० १६४, व० १६२१ मा० प्रथम । ग्रंथ नामाबली-प्र. कीपचन्द अग्रवाल मन्त्री ऐ० पन्ना लाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन झालरा पाटन, भाषा हिन्दी, पृष्ठ १६०, व० १६३३ । ग्रंथ परीक्षा (प्रथम भाग)-लेखक पंडित जुगल किशोर मुख्तार, प्र. जन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ११६, व० १९१७, मा. प्रथम। प्रथ परीक्षा (दूसरा भाग)-लेखक पंडित जुगल किशोर मुस्तार, Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११८ ) प्रकाशक जैन ग्रथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ११६, व० १६१७, प्रा० प्रथम मथ परीक्षा ( तृतीय भाग) - ले० प० जुगल किशोर मुख्तार, प्रकाशक जैन ग्रथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० २६८, व० १९२८, ० प्रथम । प्रन्थ परीक्षा ( चतुर्थ भाग ) -- ले० पडित जुगल किशोर मुख्तार प्रकाशक जौहरीमल जैन सर्राफ देहली, भा० हिन्दी, पृष्ठ १५६, व० १९३४, प्रा० प्रथम, गागर में सागर - ले० दरबारीलाल सत्यभक्त, भा० हि०, पृ० ७२ । प्रथों की अक्षरानुसार सूची -- सपा० सुपार्श्वदास गुप्त, प्र० जैन सिद्धात, भवन प्रारा, भा० हि०, पृ० १२५, ० १६१६ । गरीब -- लेखक भगवत जैन, प्र० भगवत भवन ऐतमाद पुर, भा० हिन्दी ६८ । गायन गोष्ठी - ले० चन्द्र सेन जैन वैद्य, प्र० स्वय, भा० हि०, पृ ५६, व० १६३६ गिरनार महात्म्य -- ले० कवि हजारीमल, सपा० वंशीधर जैन, प्र० जैन अथ कार्यालय ललितपुर, भा० हि०, पृ० १०७, १० १६१६, प्रा० प्रथम । गिरनारादि जैन मूड बद्री यात्रा विवरण (सचित्र) - ले० द्वारका प्रसाद, प्र० स्वय फुलेरी, राजपूताना भा० हि०, पृ० २६४, १० १६२३, प्रा० प्रथम । गुरु स्तुति - ले० वृन्दावन जी, भा० हि०, पृ० ७, २० १११० ३ गुर्वष्टक - ले० वृन्दावन जी, भा० हि०, पृ० ४ ० १९१० । गृह देवी - ले० ० बा० सूरज भान वकील, प्र० महावीर ग्रन्थ कार्याचम घागरा, भा० हि० पृ० ६८, प्र० द्वितीय । गृहस्थ धर्म - ले० बा० सूरजभान वकील, प्र० मा० चिम्मन लाल देहली, भा० हि०, पृष्ठ २२, ५० १६२६, प्रा० प्रथम । Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११६ ) ० प्र० शीतल प्रसाद जी, प्र० मूलचंद किशन दास कापड़िया सूरत; भा० हि०, पृ० ३०६, १० १०४३, मा० तृतीय । गृहस्थ धर्म सं० - गृहस्थ शिक्षाले० ज्योति प्रसाद प्रेमी, प्र० प्रेम भवन देवबंद, भा० हि० ० ३३, व० १९३५, पा० प्रथम | गृहस्थ शिक्षा सार - लेखक व प्रकाशक बा० छोटे लाल प्रजमेरा जमपुर, भा० हि० । गृहिणी कर्त्तव्य -- लेखक पंडिता लज्जावती जैन, प्रकाशक दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, भाषा हिन्दी, पृष्ठ २०४, वर्ष १६४१, ० प्रथम । गोमट्ट सार (कर्म काड) - लेखक प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, टी. पंडित मनोहरलाल शास्त्री, प्रकाशक परमश्रुत प्रभावक मंडल बम्बई, भाषा प्रा०' स० [हिन्दी, पृष्ठ २८८, वर्ष १६१२, प्रा० प्रथम । गोमट्ट सार (कर्म काढ) - लेखक आचार्य नेमि चद्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, सं० टीका नेमि चद्र मुनि, हिन्दी टीका पडित टोडरमल जी, प्रकाशक भारतीय मैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकत्ता भाषा प्राकृत सं० हिन्दी, पृष्ठ २१००, मा० प्रथम । गोमट्टसार ( जीव काड ) - लेखक प्राचार्य नेमिचद्र सिद्धान्त चक्रवर्ती सं० टीका अभय चंद्र, हिन्दी टीका पडित टोडरमल्ल जी, प्रकाशक, भारतीय जैन सिद्धांत प्रकाशनी संस्था कलकत्ता भाषा प्राकृत स० हिन्दी, पृष्ठ १३२६, भा० प्रथम । गोमहसार ( जीव काढ ) - लेखक प्राचार्य नेमिचद्र सिद्धात चक्रवर्ती, टीका पडित खूबचंद्र शास्त्री, प्रकाशक परम श्रुत प्रभावक मंडल बम्बई भाषा प्राकृत हिन्दी, पुष्ठ २०३, ० १६१६, प्रा० प्रथम । गोमट्टसार ( जीव काढ) - लेखक प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धात क्रवर्ती, टीका पं मनोहर लाल, प्रकाशक व ष्ठि नाथारंग जी गाधी प्राकलूज, भाषा प्राकृत हिन्दी, पृष्ठ १५१, वर्ष १९११ मा० प्रथम । ( Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोमहसार पूजा-लेखक पंडित टोडरमल्ल जी, प्रकाशक भारतीय जैन सिद्धात प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १३ । गोमासार पीठिका-हो. टी. ५० टोडरमल जी, प्र. भारतीय जैन सिद्धात प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० हि०, पृ०७१।। गोमहेश्वर पूजन भजन व भारती-ले० ला पूरनमल, प्र० स्वयं शमशाबाद आगरा, भा० हि०, पृ० १८, व० १६३६, आ० प्रथम । गौतम चरित्र-ले० भट्टारक धर्म चन्द, अनु० प लालाराम, प्र० मूलचद किशन दास कापडिया सूरत, भा० हि०, पृ० २०४, २०१६२७, प्रा० प्रथम । गौतम चरित्र-ले भट्टारक धर्म चन्द, अनु० नन्दन लाल जैन, प्रकाशक जिनवाणी प्रचारक कार्यलय कलकत्ता, भाषा हिन्दी, पृ० १०४, २० १६३६ आ० प्रथम। गोतम पृच्छा-ले० नन्द लाल, सपा० छोटे लाल, भा. हि । गौरव गाथा-ले० अयोध्या प्रसाद गोयलीय, प्र. जैन संगठन सभा देहली भा० हि०, पृ०२०, ब० १६४०, आ० प्रथम । घरवाली-ले भगवत जैन, प्र० भगवत भवन ऐत्मादपुर, भाषा हि. व० १६४२ । चूंघट-ले भगवत जैम, प्र० भगवत भवन ऐन्मादपुर, भा० हि०, पृ० ३१; व०१९३८ । चतुः विंशति संधानम्-२० कवि जगन्नाथ; अनु० टी० ५० लाला राम, प्र. रावजी सखाराम दोशी, शोलापुर, भा० सं० हि०, पृ० १५२, व० १६२६, प्रा. प्रथम । चतु विशति संधानम्-ले. कवि जगन्नाथ, अनु० टी० पं० लालाराम प्र० गाँधी नाथारग जी शोलापुर, भा० स० हि०, पृ० १५२, ३० १९२८ मा प्रथम । चतुर्दशा महाल्य-ले० कुन्दकुन्दाचार्य, प्र० नेमिनद जैमबाल अजमेर भा० स, पृ० ७२ व० १६३७, प्रा० प्रथम । Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२१ ) चतुर्विंशति का स्तुति-- ० मुनि सुषमें सागर, अनु प्र० प्राचार्य शान्ति सागर ग्रंथ माला सागवाडा, भा० सं० वे० १९३६ । लाजाराम शास्त्री हि०, पृ० १३६, चतुविशति जिन पूजा - ले० कवि रामचन्द्र, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त saranी सस्था कलकत्ता, भा० हि०, पृ० २१९, ०१९२४, श्रा० प्रथम । चतुर्विंशति जिन पूजा (सचित्र) - ले० कविवर वृन्दावन जी, प्र० चन्दा बाई दिग० जैन ग्रन्थमाला देहली; भा० हि०; पृ० १३६; १० १६३८ । चतुर्विंशति जिन पूजा (सचित्र) ले बस्तावर रतन लाल प्र० चंद्रा बाई दिग० जैन प्रथमाला देहली, भा० हि०, पृ० १४८ । चतुर्विंशति जिन पूजा विधान-ले० रामचन्द्र, प्र० भारतीय जैन सि० प्रकाशनी सस्था कलकता, भा० हि० पृ० २१२ ० १६२३, प्रा० प्रथम | चतुर्विंशति जिन स्तुति--ले० शोभन मुनि, भा० म०, ( काव्य माला सप्तम गुच्छक मे प्र० ) । चन्द्र प्रभु चरितम् - ले० वीरनन्द्याचार्य; सपा० प० काशीनाथ शर्मा; प्र० निर्णय सागर प्रेस बम्बई; भा० स० पृ० १५० १० १८६२ श्र० प्रथम । चन्द्र प्रभु चरित्र - ले० वीरनन्द्याचार्य, अनु० प० रूप नरायण पाडेय, प्र० हिन्दी जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई; भा० हि०, पृ० १८८ व० १९१६, आ. प्रथम | चन्द्र प्रभु पूजा - ले० अज्ञात भा० हि० । चन्द्र सागर का बहिष्कार क्यों प्र० दिगव जैन मुनि धर्म रक्षक कमेटी इन्दौर; भा० हि०, पृ० ४१. व० १६४० । चर्चा चन्द्रोदय (प्रथम भाग ) -- ले० १० जीयालान, प्र० स्वयं फरुखनगर भा० हि०, 1 चर्चा चन्द्रोदय (द्वितीय भाग) - ले० प० जीयालाल, प्र० स्वयं फख नगर भा० [हिं० ५० १०६, ब० १६२, मा. प्रथम Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२२.) चर्चा चन्द्रोदय (तृतीय भाग)-ले० पं० जीयानाल; प्र• स्वयं परस नगर भा० हि०, ० ६४, व० १८९४ । चर्चा मंजरी-ले० वैद्य शीतल प्रसाद, प्र० स्वय वेहली, भा० हि पुरु १६, २०१८६६, मा० प्रथम । पर्चा शतक-ले० कवि थानतराय जी, प्र. नाना राम चन्द्र नाग पटस, भा. हि०, पु० ७२, व० १६००, मा० प्रथम । चर्चा शतक-ले० कवि धानतराय जी, टी० सपा०प० नायराम प्रेमी, प्र. जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० १५२, व. १९१३, प्रा० प्रथम । , चर्चा समाधान-ले०प० भूधर दास, प्र. जैन ग्रंथ प्रभाकर कार्यालय कलकत्ता, भा० हि० पृ० १६०, ३० १९२०, प्रा० प्रथम । चर्चा समाधान--ले०प० भूधर दास, प्र. जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १०४, व० १९२५, मा० प्रथम,--पृ० १२३, व. १६२६, मा० द्वितीय। चर्चा सागर-ले० पाडे चम्पा लाल, प्र० हसराज महादुराम सुहाडया नादगांव, भा० हि०, पृ० ५३८, २० १६३०, प्रा० प्रथम । चर्चा सागर उपनाम गंदा सागा--ले० अज्ञात, भा० हि । चर्चा सागर के विषय पर संक्षिप्त वक्तव्य-ले०५० झम्मन लाल तर्कतीर्थ, भा० हि पृ० १३४, व० १६३३ । चर्चा सागर के शास्त्रीय प्रम णों पर विचार-ले०५० गजाधर लान शास्त्री, प्रकाशक दिग० जन युवक ममिति कलकत्ता, भा० हि०प० २८४, व. १६३२, मा० प्रथम । चर्चा सागर प्रथ पर शास्त्रीय प्रमाण-ले० प मक्खन लाल न्या०ल. प्र. दिग• जैन हितकारणी सभा बम्बई, भा० हि०, पृ० १७२, ब• १९३१, मा. प्रथम । चर्चा सागर मथ पर शास्त्रीय प्रमाण का मुंह तोड़ ज्वर-ले. रसन Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२३ ) बाल भाकरी; प्र० दिन जैन युवक समिति कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ४६० व० १६३२ । चर्चा सागर समीक्षा - ले० प० परमेष्ठिदास प्र० बोहरीमल जैन सफ देहली; भा० हि०, पृ० २६४; व० १६३२; मा० प्रथम | चाँदनी ( काव्य ) - ले० भगवत स्वरूप, प्र० स्वयं ऐतमादपुर; भा० हिं०, पृ० ६५, व० १६४३ । चारदान कथा (छन्द बद्ध)) - प्र० जैन ग्रन्थ प्रचारक पुस्तकालय देवबंद भा० हि० पृ० २६; ६० १६०६, भा० प्रथम | चारित्र प्राभृत - ले० कुन्दकुन्द प्राचार्य, ( षट् प्राभृतादि सग्रह मे प्र०) | चारित्र पाहुड - ले० कुन्दकुन्द आचार्य; (भष्ठ पाहुड व षट् पाहुड मे प्र० ) । चारित्र सार-ले० चामु डराय, सपा० पं० इन्द्र लाल व उदय लान कालीवाल, प्र० माणिक चन्द दिग० जैन ग्रंथ माला बम्बई, भा० स०, पृ० १०३, ० १६१५, प्रा० प्रथम चारित्र सारले० चामु डराय, अनु० टी० लालाराम शास्त्री; सपा० गजाघर लाल व श्री लाल प्र० भारतीय जैन सिद्धात प्रकाशनी सस्था कलकत्ता भा० हि०, पृ० २१८; प्रा० प्रथम । चारुदत्त चरित्र (पद्य) १० कवि भारामल्ल, प्र० जैन भारती भवन बनारस, मा० हि०, पृ० १११, ० १६१२, प्रा० प्रथम । चारित्र भक्ति - ( दशभक्त्यादि सग्रह में प्र० ) । चारुदत्त चरित्र - ले०प० परमेष्ठिदास, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत भा० हि०, पृ० १४८, १० १६३५, प्रा० प्रथम । चारुदत्त चरित्र - ले० वैद्य पारसदास, प्र० जिन वाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, ४० ११२, १० १९३५, मा० प्रथम । चारुदच-ले० प्रज्ञात, भा० सं० । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२४ ) . विकागो प्रश्नोत्तर-ले० स्वामी प्रात्माराम, भा० हि०, पृ० ११०, व. १९०४। चित्रसेन पन्नावती परित्र-ले० पूर्णमल, संपा० ५० के० भुजबलि शास्त्री, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० ८२, ३० १९ मा० प्रथम । चित्रबन्ध स्तोत्र-ले० गुणभद्राचार्य, भा० सं०, (सिद्धान्त सारादि संग्रह मे प्र०)। चिदानन्द शिव सुन्दरी नाटक-ले० प० न्यामतसिह, प्र० स्थय हिसार, भा० हि०, पृ० ११, व० १६०६, प्रा० प्रथम । चेतन कर्म चरित्र (पद्य)--ले० कवि भगवती दास, १० मुन्शी नाथूराम लमेचू, भा० हि० पृ० ३६, प्रा० प्रथम ।। चेलना चरित्र (पद्य)-ले०५० राजकुमार, प्र० दिग० जैन सघ अम्बाला छावनी, भा० हि०, पृ० ३८, व० १६३८, मा० प्रथम । चैत्य भक्ति-ले० पूज्यपादाचार्य, भा० म०हिक, ( दश भक्तयादि संग्रह मे प्र०)। चौबीस ठाणा चर्चा-ले० अक्षात, भा० प्रा० हि० । चौबीस तीर्थकरों की ज्ञातव्य बातों का नक्शा-ले अज्ञात; भा० हि० । चौबीस दडक-(प्रकरण भाषा में प्र०)। चौबीसी अखाड़ा-ले० यति नयनानद, प्र० जैन ग्रन्थ प्रचारक पुस्तकालय देवबन्द, भा० हि०, पृ० १५, व० १६०८ । चौबीस पाठ--ले० कविवर वृन्दावन, प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि । चौपीसो पूजा (संग्रह) व संस्कृत चौबोसी पाठ-ले० कवि रामचन्द्र, वृन्दावन, बख्ताबरसिंह, प्रज्ञानचन्द जैनी लाहोर, भा० हि० स०, पृ० ५८४, व० १६१० । Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२५ ) चौबीसी पुराण - ले० प० पन्नालाल साहित्याचार्य, प्र० जिन कारणों shares कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० २६३, व० १६३६, प्रा० प्रथम । चौंसठ ऋद्धि पूजा - ले० अज्ञात, भा० हिं० । चौबीस स्थान चर्चा - ले० प्र० रामचन्द्र जैन, भा० हि०, पृ० १५०१ . व० १६०५ । छन्द शतक - सेठी हैदराबाद, भा० ० वृन्दावन दास, संपा० जमनालाल जैन; प्र० संस्करण हि०, ५०६०, ब० १९४७, भा० प्रथम । छहढाला - ले० कविवर दौलतराम जी, टी० मुन्शी प्रमनसिंह; प्र० स्वयं देहली; भा० हि०, पृ० ५३, व० १८६६, ० प्रथम । छहढाला - ले० कविवर दौलतराम जी; टी० बा० सूरजभान वकील; स्वयं देवबन्द, भा० हि०, पृ० ४५, प्रा० प्रथम । छहढाला - ले० कविवर दौलतराम जी, टी० ब्र० शीतल, प्रसाद प्र माणिकचंद हीराचन्द बम्बई, भा० हि०, पृ० ५८ ० १६१२, आ० तृतीय | छहढाला - ले० कविवर दौलतराम जी, सपा० प० बुद्धिलाल श्रावक, प्र मूलचन्द किसनदास कापडिया सूरत, भा० हि०, पृ० ६६, व० १६२७, आ० प्रथम । छहढाला -- ले० कविवर दौलतराम जी, संपा० प्र० श्रीलाल जैन देहली, भा० हिं० पृ० ७६, व० १६२६, आ० प्रथम । छहढाला - ले० कविवर दौलतराम जी, टी० प० मुन्नालाल राधेलीय; प्र० स्वयं सागर, भा० हि०, पृ० २००, ० १९२६, प्रा० प्रथम । छहढाला - ले० कविवर दौलतराम जी; सपा० प० भुवनेन्द्र 'विश्व', प्र० जिन वारणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ८४ व० १६३८, प्रा० द्वितीय | छहढाला - ले० कविवर बोलतराम जी, टी० प० मोहनलाल काव्यतीर्थ; प्र० हरप्रशाद जैन वैद्य, भा० हि० पू० १२८, ०१४४, प्र० पंचम । छहढाला - ले० कविवर द्यानतराय जी, प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भाषा हिन्दी, पृष्ठ १२, व १९०६ प्रा० प्रथम । Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२६) छहढाला (बावनाक्षरी)-ले० द्यानत राय जी, टी० मुंशी नाथूराम लमे, प्र० स्वयं टी० कटनी, भाषा हिन्दी पृष्ठ १४ व० १८६८; मा० प्रथम । छहढाला-ले० कविवर बुवजन जी; टी० मुन्शी नाथूराम लमेचू, प्र० स्वयं टी० कटनी मुडावरा, भाषा हिन्दी, पृष्ट १६; २० १८६८; प्रा० प्रथम । छात्रों के लिए उपदेश-ले० मुन्शीलाल एम. ए., प्र० स्वय भा० हि । छेदपिंड-ले० इन्द्रनन्दि, संपा० पन्नालाल सोनी, भा० स० (प्रायश्चित संग्रह में प्र०)। छेदशास्त्र - ले० इन्द्रनन्दि, सपा० पन्नालाल सोनी; भा० स०, (प्रायश्चित संग्रह मे प्र०)। ____ जगत्सुन्दरी प्रयोगमालाले० मुनि यशपति; भा० प्र०, पृ० १३५; व०१६३६ । जकड़ी सग्रह--(१५ जकडिया) प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई; भा० हि० । - जगदीश विलास-ले० कवि जगदीश राय, प्र० हीरालाल पन्नालाल देहली, भाषा हिन्दी पृष्ठ ५२, ५० १९२५, प्रा० द्वितीय । जगत्कतृत्व मीमांसा-ले० बालचन्द्र यति, भा० स० हिन्दी पृष्ठ १०१; व०१९०८। जगदुत्पत्ति विचार-ले० बा० सूरजभान वकील, प्र. जैन तत्त्व प्रकाशनी सभा इटावा, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ५०, व० १६१३ प्रा० प्रथम । जननी और शिशुले० बा० सूरजभान वकील; प्र० हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ११७, व० १९२३ प्रा० प्रयम । जम्बू गुण रत्नमाला-ले० जेठमल; भा० हि० पृष्ठ ८४, व० १६१६ । जम्बू द्वीप का नक्शा--प्र० बा० सूरजभान वकील देवबद; व० १८६८ । जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति (२ भाग)-सटीक-भा० प्रा० स० पृ० ५४५, व० १६१६ । Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्ब स्वामी चरित्रले.पं० राजमल्ल, संपा०पं. जगदीशचन्द्र एम. एप्र० मारिएकचन्द दिग० जैन ग्रन्थमाला बम्बई; भाषा सं० पृष्ठ २६००; व जम्बू द्वीप षटमास-ले० उमास्वामि, भा० सं० पू० २७; स. १९०२ १६३६; मा० प्रथम । जम्बू स्वामी चरित्र-ले. प्रज्ञात; अनु०प० दीपचन्द वर्णी, प्र० मूलचन्द किशनदास कापडिया सूरत; भा० हि, पृ० ५८, व० १६२७, प्रा० तृतीय। जम्बू स्वामी चरित्र-ले० पाडे रायमल्ल; अनु० ब्र० शीतल प्रसाद; प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि० पृ. २१६, २० १९३९ प्रा० प्रथम । जम्यू स्वामी चरित्र-ले० जिनदास; अनु० मुन्शी नाथूराम लमेच; प्र० स्वयं अनु० कटनी मुन्डाबरा; भा० हि०, पृ० ६२, व० १६०२, प्रा० प्रथम, । जम्बू स्वामी चरित्र-ले० ५० दीपचन्द्र वर्णी; प्र० ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम मथुरा, भा० हि०, पृ० ३६, व० १६३६ ।। जय धवला टीका-प्र० प्रज्ञात, भा० प्रा० स०, व० १९३४ । - जय विजय-ले० अशात; सपा० राजमल लोढा, प्र० जैन धर्म प्रचारक मंडल अजमेर; भा० हि०, पृ० १६; व० १९३४, प्रा० प्रथम।। जसहर चरिउ-ले० महाकवि पुष्पदन्त, सपा० पी० एल० वैद्य; प्र० जैन पब्लिकेशन सोसाइटी कारजा, भा० अप०, पु० २१७; व० १९३१ प्रा० प्रथम । जाति वर्ण और विवाह-ले० मोतीचन्द गौतमचन्द कोठारी, प्र० रावजी फूलचन्द कोठारी फलटण; भा० हि०; १० ८६, व. १६३५ प्रा० प्रथल ।। . जातीय संगठन-ले० कुवरलाल न्या० तो. प्र. ताराचन्द परिया घागरा, भा० हि०, पृ० ३२, प्रा० प्रथम । जिनचतुर्विशतिका-ले० भूपाल कवि; भा, सं; पु, ५; व; १८९६, काव्यमाला सप्तम् गुच्छक मे प्र०; (तथा पंच स्तोत्र में प्र०)। जिनचतुर्विंशति काव्य-ले०५० जियालाल, भा०, हि, प्र. २६, ३० १९१४॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन चतुर्विशक्षिका स्तुति-ले० पं. भूषरदास, भा, हिः १०, १६, 10 १८६६ जिन गुणगायन मंजरी (प्रथम भाग)-पं. सद्वापरत्नाकर कार्यालय सागर भा० हि० पृ० ६४; व० १६१७; प्रा० प्रथम । बिनगुण सुखावती-ले० कवि भूघरवाल, सपा० मुन्शी प्रमनसिंह; प्र. स्वयं समा बेहली, भा० हि० पृ० १२, प्रा० प्रथम । जिनदत्त ने धन्यकुमार सिहा प्र० सन्तोषकुमार बन उत्तरपाका भा० हि०, १० २८, व १९२४, प्रा० प्रथम । बिनदत्त चरित्रम-ले० मुगभद्राचाय; संपा० . मनोहरलाल, प्र. माणिकचन्द दिग० जैन ग्रथमाला बबई, भा० स० पृ०१००, व० १६१७ प्रा० प्रथम। जिनदत्त चरित्र-ले० गुणभद्राचार्य, अनु० श्रीलाल जैन का० तो०, प्र. जन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकत्ता; भा० हि०, पृ० १३६; प्रा० प्रथम । जिनदत्तचरित्र (भाषा पद्य)-ले० बख्तावर रतनलाल; सपा० . प्र. मुशी अमनसिह सोनीपत; भा० हि०; पृ० १६२, व० १६०२, मा० प्रथम । जिन देव स्तुति (भाषा एकीभाव )-ले० कवि भूधरदास, प्र० सुशी अमन सिंह देहली; भा० हि० पृ० १६; व० १८६६, पा, प्रथम । जिम रस्नकोष ( भाग १ )-सपा० एन० डी० बेलकर, प्र० भारकर मोरियष्टल रिसर्च इस्टीट्य ट पूना, भा० अ० स०, पृ० ४७६, व० १६४४, मा० प्रथम । जिन पूजाविकार मीमांसा-० ५० जुगलकिशोर मुख्यार, प्र० सेठ नाथारग जी गाँधी बबई, भा० हि पृ० ५६, व० १६१३, मा० प्रथम । जिन वाली माता की पुकार-ले० परमेष्ठिदास लमेचू, प्र. उदयराज बद्रीदास कलकत्ता, भा० हि०; पृ० २०, व० १६१३, प्रा० प्रथम ।। Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२६ ) जिनवाणी संग्रह-सग्र० सपा०प० सतीशचद्र, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता । भा० हि० स०, पृ० ४६४, प्रा० छठी। जिनशतक (स्तुति विद्या)-ले० समतभद्राचार्य, स० टी० सिहभह, हि. अनु० ५० लालाराम, प्र० स्याद्वाद रत्नाकर कार्यालय काशी, भा० स० हिक, पृ० १२८, व० १६१२, प्रा० प्रथम । जिनशतकारले जम्बू गुरु, भा० स०, पृ० २२, ( काव्यमाला सप्तम गुच्छक मे प्र०)। जिनशासन का रहस्य ---ले० प० माणिक चन्द न्या० प्रा०, प्र० जनमित्र मडल देहली, भा० हि०, पृ० ६७ व० १९३८, प्रा० प्रथम । जिनमहस्रनाम-ले० जिनसेनाचार्य व० प० आशाधर, प्र० जैनग्रथरत्नाकर कार्यालय बबई, भा० स० । जिन सहस्त्र नामस्तोत्र-ले० जिनसेनाचार्य, अनु. ५० गौरीलाल सि० शा०, भा० सं० दि०, पृ० ६१, व० १६३ ' , प्रा० प्रथम । जिनेन्द्र गुणगायन-सपा० मूलचन्द्र, गप्त, प्र० जैन ग्रथ प्रभाकर कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० २८, व० १६१८। जिनेन्द्र गुणानुवाद पच्चीसी-ले० कवि चुन्नीलाल, भा०; हि.० प्र० जैन न थ रत्नाकर कार्यालय बबई । जिनेन्द्र दर्शनपाठ -सग्र० पं० मुन्नालाल, प्र० स्वय सिवनी, भा० सं० हि०, पृ० ३२, व० १६१२; प्रा० प्रथम । जिनेन्द्र पच कल्याणक-ले०५० रूपचन्द्र; प्र. भारतीय जैन सिद्धान्तप्रकाशनी सस्था कलकत्ता; भा० हि०, पृ० १६, व० १६२५, प्रा० प्रथम । जिनेन्द्र पच कल्याणक पाठ-ले० प० रूपचन्द्र, अनु० सपा० कुन्दनलाल जैन, प्र० दिगम्बरजैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० ४८, व० १९२७, प्रा. द्वितीय । जिनेन्द्र भजन भंडार-ले० पन्नालाल जैन, प्र० स्वय सिवनी, भा० Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३०) हिपृ० ६०० १९२२, मा. प्रथम । जिनेन्द्र भजन माला-ले० प० न्यामतसिंह प्र. स्वयं हिसार, मा० हि०, पृ० ३४व० १९२४; मा० बिनीय । जिनेन्द्र मत दर्पण (प्रथम भाग)-ले० बा० बनारसीदास, संपा० अ० शीतलप्रसाद, प्र. जैन मित्र मडल देहली, भा० हि० पृ. ३२, व० १९२६, मा० पचम । जिनेश्वर पद सग्रह-ले० जिनेश्वरदास, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता; भा०हि०, पृ० ६४ । जीव और कम विचार-ले० क्ष ल्लक ज्ञान सागर, प्र० दिगम्बर जैन महासभा; भा०, हि०, पृ० २६७, व० १६२१, प्रा० प्रथम । जीव कर्म सवाद-ले० प्रात्माराम, प्र० मेलाराम, भा० हि०; पृ० ६७, व०१६४३ __ जीवन चरित्र दा० वी० सेठ हुकमचन्द-प्र० मैनेजर जैन मित्र, भा० हि०, पृ० ७, व० १६१४ । जीवन निर्वाह-ले० बा० सूरजभान वकील, प्र० हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बबई, भा० हि, पृ० २.३, व० १६२०, प्रा० प्रथम । जीवधर चम्पू-ले० महाकवि हरिश्चन्द्र, संपा० टी० एस० कप्पु स्वामी शास्त्री, प्र० सपादक स्वय तजोर, भा० स०; पृ० १५२, ब० १६०५, प्रा० प्रथम। जीवंधर चरित्र-ले० गुणभद्राचार्य, सपा० टी० एस० कप्यूस्वामी, प्र० सपा० स्वय तजोर, भा० स०, पृ० ६१, व० १६०७ । जीवधर चरित्र-ले० अज्ञात सपा० विद्या कुमार सेठी व राजमल लोढा, प्र० जैन धर्म प्रचारक मडल अजमेर, भा० स०, पृ० १६ । जीवधर चरित्र (पद्य)-ले० पं० नथमल बिलाला, प्र० जैन मदिर रोहलक, भा० हि० प० ३१०व०१९४२ मा० प्रथम । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 ( १३१ ) जीवधर नाटक - ले० पं० कुञ्ज बिहारी लाल; प्र० स्वयं, हजारी बाग; भाष हि०, पृ० १२१, ब० १९१७, ब्रा० प्रथम । जीव रक्षा दर्पण - सग्र० पारसदास खजाची, प्र० स्वयं देहली; मा० हि०, ० ७६, ० १९१६, ० प्रथम जीव स्थानम् (प्रथम पुष्प ) - ले० श्राचार्य पुष्पदंत भूतबलि टो० वीर सेन स्वामी, सपा० प० बशीधर, प्र० गावी हरीभाई देवकरण शोलापुर भा० प्रा० स० पृ० ३८०, व० १६३६, मा० प्रथम । जीव स्थानम् ( द्वितीय पुष्प) - ले० प्राचार्य पुष्यदत भूतबलि, टी० वीर सेन स्वामी, सपा० प० बशीधर, प्र० गाधी हरीभाई देवकरण शोलापुर, भा० प्रा० स० पृ० ३४४, व० १९४०, प्रा० प्रथम । जीव स्थानम् (तृतीय पुष्प ) - ले० प्राचार्य पुष्पदत भूतबलि, टी० वीरसेन स्वामी, सपा० प० बशीधर, प्र० गाधी हरीभाई देवकरण शोलापुर, भा० प्रा० स० पृ० ३७६, ब० १६४१; आ० प्रथम । जीवाजीव बिचार (प्रथम भाग ) - ले० मास्टर पचूलाल काला; प्र० शिक्षा प्रचारक कार्यालय बेहली, भा० हि० । जीवाजीव विचार (द्वितीय भाग) - ले० मास्टर पचूलाल काला, प्र० शिक्षा प्रचारक कार्यालय देहली; भा० हि० पृ० ३२ व० १६३२ प्रा० प्रथम । जेल में मेरा जैनाभ्यास -- ले० सेठ प्रचल सिह, प्रकाशक स्वय नागरा; भाषा हिन्दी, पृष्ठ ४४० वर्ष १३३४, प्रा० प्रथम । जैजों शास्त्रार्थ- - प्रकाशक अज्ञात भाषा हिन्दी, वर्ष १९१७ । जैन आरती संग्रह -संग्रहकर्त्ता श्रीलाल जैन, प्रकाशक नन्नूमल जैन देहली; भाषा हिन्दी, पृष्ठ १६, व० १६४४, आ० प्रथम । जेन इतिहास -- लेखक अज्ञात भाषा हिन्दी | जैन इतिहास की पूर्व पीठिका और हमारा अभ्युत्थान - लेखक पो० हीरालाल जैन, प्र० हिन्दी ग्रथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हिन्दी, पृष्ठ १८३, व० १६३६; प्रा० प्रथम । Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३२) जैन इतिहास सोसाइटी-ले० बा० बनारसीदास, अनु० बाबू देवीसहाय, प्र० सेठ नाथारग जी गाधी प्राकलूज, भा० हि०, पृ. ७६, व० १६०४, मा० प्रथम । जैन और बौद्ध का भेद-ले. डा० हर्मन जैकोबी, अनु० संपा० राजा शिव प्रसाद सितारेहिन्द, भा० हि०, पृ० १०, २०१८६७, प्रा० द्वितीय । । जैन ऋषि (पद्य)-ले० श्री प्रेमी; प्र० प्रेमभवन पुस्तकालय सहारनपुर, भा० हि०, पृ० २०, प्रा० प्रथम । जैन कथा कोष-प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि। जैन कथा द्वाविंशति-ले० प्रभाचन्द्राचार्य, भाषा सस्कृत, पृष्ठ ३६, ३० १८६६ । जैन कथा संग्रह व स्त्री रक्षा--प्र० बा० ज्ञान चन्द जैनी लाहोर, भाषा हि०, पृ० २२०, २०२६०६, प्रा० प्रथम । जैन कर्म सिद्धान्त-ले. पंडित अजित कुमार शास्त्री, प्रकाशक दिग. जैन मभा अमरोहा, भाषा हिन्दी; पृ० ६०, व० १६३१; आ० प्रथम । जैन कर्म सिद्धान्त-ले० चम्पतराय बैरिस्टर, अनु० कामता प्रसाद जैन, प्र० ले० स्वय, भा० हि०, पृ० २३ । जेन कवियों का इतिहास ले० मूलचन्द वत्सल, प्र. जैन साहित्य सम्मेलन दमोह, भाषा हिन्दी पृष्ठ १८७, व० १६३६, प्रा० प्रथम । जैन क्रिया कोष-ले० ५० दौलतराम जी, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० २२४, प्रा० प्रथम ।। जैन क्रिया कोष-ले०५० दौलतराम जी, सपा० बाबू लाल जैन, प्र० जिनवारणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १८८, व० १९२८; आ० प्रथम । जैन कीर्तन-ले० चन्द्रसेन वैद्य, प्र० स्वयं, भा० हि० पृ० ८, व० १६३५ । जैन कुतूहल-(पद्य)-ले० भारतेन्दु हरिश्चंद, भा० हि०; पृ. ५ । Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३३ ) बैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह-संपा०प० जुगलकिशोर मुख्तार २०५० परमा बंद शास्त्री; प्र. वीर सेवा मंदिर सरसावा; भा० स० प्रा० अप० हि । जैन ग्रन्थ सग्रह-संग्र० नन्द किशोर सिंघई, भा० स० हि०, पृ० ३०८, व० १९२६ । जैन गाथाजली-ले० महर्षि शिवव्रत लाल वर्मन, प्र० संत कार्यालय प्रयाग; भा० हि०, पृ० ७४। जैन गायन सुधा-सग्र० सूरज भान जैन, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता; भा० हि०, पृ० ८०, व० १९३७, प्रा० प्रथम । जैन जगती-ले०कुवर दौलतसिह लोढ़ा 'अरविन्द'; प्र० शान्तिगृह षामनिया (मेवाड); भा० हि० पृ० २५२; व० १९४२। जैन ज्योतिष-सपादक शकर पढरीनाथ रणदेव, भा० सं० हि, पृ. १५१, २० १६३१ । जैन जागरफी (प्रथम भाग) -ले ५० गोपालदास बरैया, प्र. जैनसिद्धात प्रचारिणी सभा मुरैना, भाषा हिन्दी, पृ० ३२, मा० प्रथम । जैन जाति का ह्रास और उन्नति के उपाय-ले० कामता प्रसाद जन, प्र. संयुक्त प्रान्तीय दिग० जैन सभा, भाषा हि०, पृ० ५६, व० १६२४, मा० प्रथम। जेन जाति रक्षा-ले० मुरारीलाल जैन, प्र० दिग० जैन प्रान्तिक सभा जालन्धर, भा० हि०, पृ० १६, व० १९२६, मा० प्रथम । जैन जाति सुदशा प्रवर्तक-ले० सूरजभान वकील, प्र० दौलतराम बैन देहली, भाषा हिन्दी, पृ० ४०, प्रा० प्रथम । जेन जातियों में पारस्परिक विवाह-ले०५० नाथूराम प्रेमी, प्र. जैन तत्त्व प्रकाशनी सभा इटावा, भा० हि०, पृ० १६ ।। जैन जीवन संगीत-प्र० जैन साहित्य मन्दिर, सागर भा० हि०, पृ० ३२। जैन झडा गायन संग्रह-प्र० मूलचन्द किशनदास कापडिया सूरत, भा० हि०, पृ ३६, व० १६४१ । जैन तीर्थमाला-ले० प्रभुदयाल ज्ञानचन्द्र, भा० हि० पृ. ३२१, व. १९०१। Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३४ ) जैन तीर्थ और उनकी यात्रा - ले० कामता प्रसाद जैन, प्र० भारतवर्षीय दिग० जैन परिषद, भा० हि०, पृ० १४२, व० १९४३, आ० प्रथम । 1 जैन तीर्थ यात्रा - ले० अज्ञात भा० हि० प्रा० द्वितीय । " जैन तीर्थ यात्रा दर्पण - ले० डा० मित्रसेन जैन, प्र० कुलभूषण कुमार खतौली, भा० हि०, पृ० ८२, व० १६३६, श्रा० प्रथम । जैन तीर्थ यात्रा दर्पण - ले० शह्या भाई शिवलाल, प्र० स्वम - कैरो, भाव हि०, पृ० ६४, ० प्रथम । जैन तीर्थ यात्रा विवरण - ले० डाह्या भाई शिवलाल, प्र०, स्वयं भा० हि० । जैन तीर्थ यात्रा दर्शक - ले० ब्र० गेबीलाल, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भाषा हि०, पृ० २१६, व० १६३०, ० प्रथम | जैन तीर्थ यात्रा दर्शक --- ले० ब्र, गेबीलाल सशो० गुलजारीलाल चौधरी प्र० दि० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० २१४, व० १६३१, प्रा० द्वितीय । जैन तीर्थ यात्रा दीपक - ले० प० फतहचन्द, प्र० स्वयं दिल्ली, भा० हि०, पृ २००, व० १६१४, प्रा० प्रथम । जैन दर्शन और जैन धर्म - ले० हर्बर्टवारेन, अनु०मि० हि० पृ० १६ व० १६२० । जैन द्वितीय पुस्तक - ले० मु० नाथूराम लेमचू, प्र० स्वय कटनी, भा० हि० पृ० १६० प्रा० प्रथम । जैनधर्म --- ले० हर्बर्ट वारेन प्र० जैन तत्त्व प्रकाशनी सभा इटावा, भा० हि०, पृ० ० प्रथम ( अ ग्रेजी निबंध का अनुवाद ) लालन, भा० जैन धर्म और अहिंसा - ले० ए० पी० शुक्ल, प्र० साहित्य प्रकाशन मण्डल हावडा, भा० हि०, पृ० १७, १० १६४४ । Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३५ ) जैन धर्म और अहिंसा-ले० मासिकचन्द , प्र० जैन युक्क संघ हाथरस, भा० हि०, पृ०१६ । जैनधर्म ले० नाथूराम डोंगरीय, प्र. जैन शिक्षा मन्दिर बिजनोर, भा० हि०, पृ० ११५, व० १६४१, मा० प्रथम ।। जैन धर्म अव्यवहार्य नहीं है-ले० प० दीपचन्द वर्णी, प्र० जैन मित्र मल देहली; भा० हि०, पृ० ४४, ० १९३९, मा० प्रथम । जैन धर्म और डा० गौड़ का हिन्दू कोड-ले० चम्पतराय बैरिस्टर, भा० हि०, पृ० १२ व. १९२१ । जैन धर्म और मूर्ति पूजा-ले० विरधीलाल सेठी, प्र० ज्ञानचन्द जैन कोटा, भा० हि०, पृ० ६२, व० १६२६, प्रा० प्रथम । जैन धर्म और विधवा विवाह (प्रथम भाग)-ले० सव्यसाची, प्र० जैन बालविधवा महायक सभा, देहली, भा० हि०, पृ० ६०, व० १९२६, मा० प्रथम । जैन धर्म और विधवा विवाह (द्वितीय भाग)-ले० सव्यसाँची, प्र. जैन बाल विधवा सहायक सभा देहली भा० हि०, पृ० २३४, व० १६३१, प्रा० प्रथम । जैन धर्म का परिचय-ले० सेठ हीराचन्द नेमचंद, प्र. दिग० जैन मालवा प्रान्तिक सभा बडनगर, भा० हि०, पृ० ६४, व० १६१५, प्रा० प्रथम। जैन धर्म का परिचय-ले० सेठ हीराचन्द नेमचन्द, प्र० सेठ नाथारंग गाधी, आकलूज, भा० हि०, पृ० ५६, व० १६०३, आ० प्रथम । जैन धर्म का मर्म-ले० कुवरसैन शर्मा, प्र० नन्नूमल जैन देहली, भा० हि०, पृ० १४, व १६१६, प्रा० प्रथम ।। जैन धर्म का महत्त्व-ले० बा० ऋषभदास वकील, अनु० दयाचद गोयलीय, प्र० जैन मित्र मंडल देहली, भा० हि०, पृ० १६; २० १९२३, प्रा० द्वितीय। जैन धर्म का महत्व-संपा० बा० सूरजमल, प्र. जैनमित्र कार्यालय बम्बई, भा० हि पृ० १९६; २० १६११ प्रा० प्रथम । Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३६ ) जैन धर्म का स्वरूप-ले० स्वामी प्रात्माराम; भा० हि०, पृ० ४६, ३० १९०५। जैन धर्म का हृदय-ले० जुगमन्दर लाल जैनी बैरिस्टर, अनु० मुन्शीलाल एम. ए , प्र० प्रात्मानन्द जैन ट्रैक्ट सोसाइटी अम्बाला, भा० हि०, पृ० १६, व० १६१६ । जन धर्म की उदारता-ले० प० परमेष्ठिदास, प्र० जौहरीमल जैन सर्राफ देहली, भा० हि०, पु० १०६, व० १६३६, प्रा० द्वितीय । जैन धर्म का उदारता-ले० ५० परमेष्ठिदास, प्र. जौहरीमल जैन देहली, भा० हि०, पृ० ६०, व० १६३४, प्रा० प्रथम । जैन धर्म की प्राचीनता-सपा० दीनदयाल जैन, प्र. जैसवाल जैन कार्यालय आगरा, भा० हि० पृ० ४६, व० १६२६, आ० प्रथम । जैन धर्म की प्राचीनता-प्र० जन सुधारक सघ देहली, भा० हि० पृ०१६ व १६४२, प्रा० प्रथम । जैनधर्म की विशेषताए-ले० ० शीतल प्रसाद, प्र. जैन मित्र मडन देहली, भा० हि०, पृ० २०, व० १६३८, प्रा० प्रथम । जैन धर्म के विषय में अजैन विद्वानों की सम्मितिर्या-सग्र० मा० बिहारीलाल, प्र. जैन धर्म मरक्षिणी सभा अमरोहा, भा० हि० पृ० १८, व० १९१५, प्रा० प्रथम। जैन धर्म क्या है-ले०७० शीतल प्रसाद, प्र. जैन मित्र मडल देहली, भा० हि० पृ० १८ । जैन धर्म क्या है-ले० चम्पतराय वैरिस्टर, मनु० कामता प्रशाद, प्र. दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० २४, व० १९२०, पा० प्रथम । जैन धर्म पर अन्य धमों का प्रभाव-ले० नाथूराम प्रमी, प्र० आत्मनागृति कार्यालय जैन गुरुकुल व्यावर, भा० हि०, पृ. २६, व० १६३२ । जैन धर्म पर एक महाशय की कृपा-ले०प० हसराज शर्मा भा० हि०, पृ० ४१, व० १६१६ । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३७ ) जैन धर्म पर लोकमान्य तिलक का व्याख्यान - प्र० जैन तत्त्व प्रकाशनी सभा इटावा, भा० हि०, पृ० ६ । जैन धर्म पर सेठी जी के विचार और उनकी समालोचना - ले० प० मक्खनलाल न्या० ल०, प्र० स्याद्वाद प्रचारणी सभा कलकत्ता, भाव हि०, पृ० १११, ० प्रथम । K जैन धर्म प्रकाश - ले० ब्र० शीतल प्रसाद, प्र० परिषद पब्लिशिंग हाउस बिजनौर, भा० हि० पृ० २५०, व० १९२६ श्र० द्वितीय । जैन धर्म प्रकाश ( निबन्ध संग्रह ) - - प्र० धर्मचन्द्र धम्मावत बनारस, भा० हि०, ०, पृ० ५८, व० १६४५ । जैन धर्म प्रवेशिका -- ले० बा० सूरजभान वकील, प्र० जैन मित्रमडल देहली, भा० हि०, पृ० ८७ व १६६६, ० प्रथम । जैन धर्म प्रवेशिका (प्रथम भाग ) - ले० मोहनलाल जैन का० ती ०, То हरप्रसाद जैन वैद्य लुहरी जि० झासी, भा० हि० पृ० ३६, व १६४४, प्र० तृतीय । जैन धर्म प्रवेशिका (द्वितीय भाग) - ले० मोहनलाल लैन का० ती० प्र० हरप्रसाद जैन वैद्य लुहरी जि० झाँसी, भा० हि० पृ० ४६ व १३४४, आ० द्वितीय । " जैन धर्म प्रवेशिका (तृतीय भाग) - ले० मोहनलाल जैन का० नी० प्र० हरप्रशाद जैन वैद्य लुहरी जि० भामी, भा० हि०, पृ०७२, व० १६४४, प्र० द्वितीय । जैन धर्म प्रवेशिका (चतुर्थ भाग ) - ले० मोहनलाल जैन का० ती ०, हरप्रसाद जैन वैद्य लुहरी जि० झाँसी, भा० हि०, पृ० ११६ । प्र. जैन धर्म प्रवेशिका (प्रथम पुस्तक) - ले० पं० लालन, अनु० दरयावसिंह सोषिया, प्र० धर्मचन्द पालीतारणा, भा० हि०, पृ०७१, व० १६१३, प्रा० प्रथम । Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३८ ) जैन धर्म बालोष (प्रथम भाग) से० प० लालन, अनु० दरयावसिंह सोषिया, प्र० धर्मचन्द मुनीम, पालीताण, भा० हि० पृ० ५६, १० १३१३, प्रा० प्रथम । जैन धर्म बाल बोध (द्वितीय भाग) से० प० लालन, अनु० दरयाव सिंह सोधिया, प्र० धर्मचन्द मुनीम, पालीताण, भा० हि०, पृ० ६४, व० १६१२: प्रा० प्रथम । जैनधर्म परिचय -- ले० प० अजितकुमार, प्र० चम्पावती जैन पुस्तकमाला अम्बाला; भाषा हिन्दी; पृष्ठ ४६, व० १९३०, प्रा० प्रथम | जैनधर्म भजनमाला - सग्र० ऐ० धर्मसागर, प्र० पन्नालाल मोदी झाबुआ, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ६३, व १६४१, ० प्रथम । जैन धर्म मीमांसा - प्रथम भाग - ले० प० दरबारीलाल सत्यभक्त; प्र० सत्य समाज ग्रन्थमाला बम्बई, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ३२८, व० १६३६, प्र ० प्रथम । जैन धर्ममामांसा (द्वितीय भाग) - ले० प० दरबारीलाल सत्यभक्त, प्र० सत्यसमाज ग्रन्थमाला बम्बई, भा० हि०; पृ० ४१२, १० १९४० ० ● प्रथम । जैन धर्म मीमांसा - (तृतीय भाग) -- ले० प० दरबारीलाल सत्यभक्त, प्र० संत्य समाज ग्रन्थमाला बम्बई, मा० हि०; पृ० ३६७; व० १९४२, ० प्रथम । जैन धर्म में अहिंसा - ले० ब्र० शीतल प्रसाद, प्र० मूलचन्द किशनदास कापडिया सूरत भा० ०ि, पृ० १४३, १० १६३६ प्रा० प्रथम । जैन धर्म में देव और पुरुषार्थ - ले० ब्र० शीतल प्रसाद, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत; भा० हि०, पृ० १६७, व० १९४१, ० प्रथम | जैन धर्म श्रेष्ठ क्यों है- ले० मिलापचन्द कटारिया, प्र० अनेकान्त प्रभाकर मडल देहली, भा० हि०, पृ० ३१, व० १९३१ । जैन धर्म सिद्धान्त - ले० शिवव्रत लाल वर्मन, प्र० वीर कार्यालय बिजनौर, भा० हि०, पृ० ८८ १० १६२८ प्रा० प्रथम । · Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धर्म ही भूमंडल का सार्वजनिक सिद्धान्त हो सकता है-ले० माईदयाल जैन; प्र. जैन मित्र मंडल देहली, भा० हि०, पृ० १४, व० १९२७ प्रा० प्रथम । जैन धर्मादर्श-ले० रावजी नेमचन्द शाह; प्र० स्वय, पृष्ठ २३२, व. १९१०। जैन धर्मामृत-(प्रथम भाग)-सपा० सिद्धसेन गोयलीय:प्र० स्वयं किरठल (मेरठ); भा० हि०; पृ०७४, २० १९३४, मा० प्रथम । जैन धर्मामृत सार-ले० नेमिचन्द्र सीताराम (मराठी), अनु० ५० पन्नालाल बाकलीवाल, प्र० जैन सभा वर्धा, भा० हि०, पृ०, १३१, १० १८६१, मा० प्रयम। जैन धर्मोन्नति कारक-प्र० धन्ना लाल प्रासकरम दुर्गापुर, भा० हि०; पृ० ३४ व १८११। जैन नारी गीतावली-प्र० जैनी लाल, भा० हि०; पृ० ३० । जैन नारी मंगलाचार-सपा०प्र० पी० सी जैन आगरा , भा० हि०, पृ० १६ । जैन नित्य पाठ संग्रह (१६ पाठो का सग्रह)--प्र० निर्णय सागर प्रेस बबई , भा० स०, पृ० १८८ , व० १६१२ , प्रा० चतुर्थ , जैन नित्य पाठ संग्रह - सन० व प्र० अज्ञात , भा० हि०, पृ० १८० , जैन नियम पोथी-सग्र० ब० शीतल प्रसाद , प्र. जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बबई, भा० हि०, पृ० ३२, ५० १६३०, आ० चतुर्थ । जैन पथ प्रदर्शक गीतांजली-ले० पन्नालाल जैन, प्र० स्वय सिबमी, भा० हि०; पृ० ५२, व० १६२१, प्रा० प्रथम । जैनपद संग्रह-ले० सन्तलाल, प्र. ज्ञानचन्द जैन लाहौर, भा० हि. पृ. ३२, २०१६.. । जैनपद संग्रह-प्रथम भाग-ले. कविवर दौलतराम जी, प्र. जैन प्रन्थ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४० ) रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ११६, ब० १६०६, भा० तृतीय, । जैनपद संग्रह द्वितीय भाग-ले. कवि भागचन्द्र जी, प्र० जनग्रंथ रत्नाकर कार्यालय वम्बई, भा० हि०, पृ० ६४, व० १६०, प्रा० प्रथम । जैनपद संग्रह-तृतीय भाग-ले. कवि भूधरदास जी, प्र. जैन ग्रंथरत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ०६८, व० १६०६, प्रा० प्रथम । जैनपद संग्रह-चतुर्थ भाग-ले० कवि धानतरायजी, प्र. जैन ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० १५५, व० १६०६, प्रा० प्रथम ।। जैनपद संग्रह-पचम भाग-ले० कवि बुधजन जी, प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० १००, व० १६१०, प्रा० प्रथम जैन पद सागर-सपा० ५० पन्नालाल बाकलीवाल, प्र. भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १६२, व० १६३० । जैनपाठमाला-प्रथमभाग-ले० गुणधरलाल जैन, प्र. झुन्नुलाल श्यौसिंह राय शहादरा, भा० हि०, पृ० १७, व. १६२७, प्रा० प्रथम । जैन पाठमाला--दूसराभाग-ले० गुणधरलाल जैन, प्र० एस० एस. जैन लोअर मिडिल स्कूल देहली, भा० हि०, पृ० २८, २० १९२७, मा० प्रथम । जैन पाठमाला-तीसराभाग-ले० गुणधरलाल जैन, प्र० एस० एस० जैन० लोयर मिडिल स्कूल देहली, भा० हि । जैन पाठमाला-चौथा भाग-ले० गुणधरलाल जैन, मपा० ५० चालाराम, प्र० लेखक स्वय देहली, भा० हि०, पृ० ७७, . १६२८, मा० प्रथम । जैन प्रतिमा यंत्र लेख सग्रह-संपा० बा० छोटे लाल जैन, प्र० पुरातस्वान्वेषिणी जैन परिषद कलकत्ता, भा० स० हि०, पृ० ४०, व० १९२३ । जैन प्रथम पुस्तक-ले० नाथूराम लेमचू; भा०ह०, पृ०७३, व० १९२५ ॥ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४१ ) जैन प्रश्नोत्तर कुसुमावलो-प्र० जैन पुस्तक प्रकाशक कार्यालय ब्यावर, भा० हि० पृ० १२० जैन पुष्पमाला-प्रथम गुच्छक-ले० पन्ना लाल जैन, प्र० स्वय विसाना, भा० हि०, पृ० १७; व० १६१४, प्रा० प्रथम । जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह (प्रथम भाग)-सपा० मुनि जिनविजय, बम्बई; भा० स० प्रा० हि०, पृ० २००, व० १६४३ । जैन फिलासफी-ले. वीर चन्द राघव चन्द गाधी,प्र० चन्द्र सेन जन वैच इटावा, भा० हि०, पृ० २१, व० १६१४, प्रा० प्रथम । जैनबद्री मूलबद्री क्षेत्र -ले० सुखदेव जी, भा० हि०, पृ० ३२, व. १८८५ । जैन बाल गुटका (प्रथम भाग)-संग्र० बा० ज्ञान चद जैनी, प्र० स्वयं लाहौर, भा० हि०, पृ० १८६, व० १६०६, प्रा० चतुर्थ । जैन बाल गुटका (दूसरा भाग)-सग्र० बा० ज्ञान चन्द जैनी, प्र० स्वयं लाहोर, भा० हि०, पृ० ३०६, २० १६०६ ।। जैन बाल बोधक (प्रथम भाग)-ले०प० पन्नालाल वाकलीबाल, प्र. नेमिचद बाकलीबाल, कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ८०; व० १९२२, प्रा. आठवी । जैन बाल बोधक (द्वितीय भाग)-ले० पं० पन्नालाल बाकलीबाल, प्र० स्वदेशी कार्यालय बम्बई; भा० हि० पृ० १२८, २० १९०६ प्रा० प्रथम । जैन बोल वोधक (द्वितीय भाग)~-लेखक प० पन्ना लाल बाकलीबाल, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १२२, वर्ष १६१७ । जैन बालबोधक-(तृतीय भाग) लेखक पडित पन्नालाल बाकलीवान प्रकाशक भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी सस्था कलकत्ता: भा० हि०, पृ. २५१, २०१६२२ प्रा० प्रथम । जैन बोद्ध तत्त्वज्ञान-लेखक सपा० ब्र० शीतल प्रसाद; प्रकाशक स्वयं सूरत, भा० हि०, पृ० २२२, व० १६३४, प्रा० प्रथम । Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन पौद्ध तत्व शान (दूसरा भाग)-लेखक सपा० ० शीतल प्रसाद, प्र० दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०; पृ० २६४; व० १६३७, आ० प्रथम, जैन भजन तरंगनी-ले० प० न्यामत सिंह, प्र० स्वय हिसार; भाव हि०, पृ० ३४, व० १६२६; प्रा० प्रथम । जैन भजन पच्चीसी-ले. श्रीनिवास जैन, प्र० दिग० जन पुस्तकालय मुजफ्फर नगर, भा० हि पृ० २४, व० १६३८, आ० प्रथमः। जैन भजन मुक्तावली-ले० ५० म्यामतसिह, प्र. स्वय हिसार, भा० हि० पृ० २८, २० १६१४, मा० प्रथम । जैन भजन रत्नावली-ले० प० न्यामत सिह, प्र० स्वय हिसार, भा० हि०, पृ० ५७, व० १६१८ पा० प्रथम । जैन भजन शतक-ले० प० न्यामत सिह, प्र० स्वयं हिसार, पृ० ७१, व० १६२७, आ० मातवी। जैन भजन संग्रह-ले० यति नयनसुखदास, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय मुजफ्फर नगर, भा० हि०, पृ० ८०, व० १६३५, प्रा० द्वितीय। जैन भजन सग्रह-ले० यति नयनसुखदास, प्र० बा० सूरजभान वकील देवबद, भा० हि०, पृ० ७२, ब० १६०६ । जैन भजन संग्रह-सग्र० ज्ञानचन्द जन, प्र० धनपाल जैन देहली, भा० हि०, पृ० ३२, ब० १६४२, आ० प्रथम । __ जैन भजन संग्रह-प्रथम भाग--सग्र० ५० मगतराय, प्र. जैनीलाल देवबन्द, भा० हि०, पृ० ३४, व० १८६६ । , जैन भजनावली--ले० गुणमाला देवी, प्र० मुमुक्षु महिलाधम महावीरजी, भा० हि०, पृ० ३२, प्रा० प्रथम । जैन भारती-ले० गुणभद्र जैन कविरत्न, प्र० जिनवारणी प्रचारक, कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० २०७, २० १६३५, ० प्रथम । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४३ ) मैन मत के उत्पत्ति काल का निर्णय-० वाबूराम शर्मा, मा० हि०, पृ०६। जैनमत नास्तिक मत नहीं है ले• हर्बर्ट वारेन, अनु मुखीलाल एम. ए. , प्र. भारतवर्षीय दिग० जैन शास्त्रार्थ सघ अम्बाला, भा. हि०, पृ० २३, व० १९३३, मा० द्वितीय । जैन मत प्रबोधनी-ले० अज्ञात, भा० हि०, पृ० ६८, व० १८७४ । जैनमत भ्रमांधकार मातण्ड-ले० प० शिवचन्द्र, प्र० स्वयं, भा० हि०, पृ० ५२, व० १८८७, प्रा० प्रथम । जनमत समीक्षा-ले० प्रभुदत्तशर्मा भा० हि०, पृ० १२५ । जैन मित्र मंडल का इतिहास और कार्य विवरण-प्र० मन्त्री जैन मित्र मडल देहली, भा० हि०, पृ० १० व० १९२७, प्रा० प्रथम । जैन मुनि--ले० आत्माराम, भाषा हिन्दी, पृ० २४, व० १९३५ । जैन मेला अल्लम-ले० पडित न्यामत सिंह, भाषा हिन्दी, पृ० ११ । जैन यात्रा दर्पण--ले० दुलीचन्द, प्र० स्वय, भाषा हि० पृ० २२, न. १८८७, प्रा० प्रथम। जैन रामायण (पद्य)-ले० चुन्नी लाल, प्र० उग्रसेन जैन महलका (मेरठ) भाषा हिन्दी, पृ० ४०, व० १९२८, प्रा० प्रथम । जैन रामायण नाटक-लेखक मूल चन्द, जैन, प्र० स्वय महलका (मेरठ), भा० हि०, पृ० २६४, आ० प्रथम । जैन लावनी बहार-सपा० प्रकाशक फूलचन्द जैनी, आगरा, भा० हिन्दी पृ० १६ । जैन ला-ले० चम्पतराय, बैरिस्टर, प्र. दिग० जैन परिषद बिजनौर, भा. हि०, पृ० १७२, व० १६२८, प्रा० प्रथम । जैन लेख संग्रह (२ खड)-पूरण चद नाहर, भा० हि० स० । जैनबद्री मूलबद्री यात्रा-प्र० बा० सूरजभान वकील, देवबंद, भा० हि०, व० १८६८। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४४ ) जैन वनिता विलास - ले० प० गोरेलाल पंचरत्न, प्र० सिंघई खेमचन्द १६२४, आ० प्रथम । जवेरी, भा० हि०, पृ० ३६, व० नैनव्रत कथा कोष -- प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ३२, प्रा० प्रथम । जैनव्रत कथा रत्न - - सग्र० मु० नाथूराम लेमचू, प्र० स्वय कटनी, भा० हि० पृ० ४१, व० १८६८ श्रा० प्रथम | जैन व्रत कथा संग्रह - ले० प० दीपचन्द्र वर्णी, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि० पृ० ११५, व० १६३८, प्रा० प्रथम | जैनव्रत कथा संग्रह - ४०, व० १६२२, प्रा० प्रथम । --प्र० हीरालाल पन्नालाल देहली, भा० हि०, पृ० जैनव्रत कथा संग्रह - - प्र० व० १९०७, प्रा० प्रथम । वीरसिह जैनी इटावा, भा० हिन्दी, पृ० ३२ जैन व्रत कथा संग्रह - लेखक मा० दीपचन्द परवार, प्र० मूलचन्द किशनदाम कापडिया सूरत, भा० हि०, पृ० १८८, ० १६१६, ० प्रथम | जैन व्रत कथा संग्रह - ले० मु० नाथूराम लेमचू, प्र० खेमराज श्रीकृष्ण दास बम्बई, भा० हि०, पृ० ४५; व० १६०० । जैन विवाह पद्धति - प्र० बा० सूरजभान वकील, भा० स०, पृ० १०, जैन विवाह पद्धति - सग्र० प० गौरीलाल जैन, प्र० मित्थ्यात्व तिमिर नाशनी दिग० जैन सभा देहली, भाषा सस्कृत हि०, पृ० ६४, व० १६१६, श्र० द्वितीय, जैन विवाह पद्धति --- सग्र० पं० फत्तेलाल, प्र० लल्लूभाई लक्ष्मी चन्द बम्बई, भा० सं० हि०, पृ० ४०, व० १६०१, जैन विवाह विधि - सपा० प० चैनसुखदास न्या० ती० प्र० सद्बोधप्रकाश कार्यालय जयपुर, भा० स० हि० पृ० ६०, व० १६३२, आ० द्वितीय, Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४५) जैन विवाह विधि-सपा० मु० सुमेरचन्द जैन, प्र० स्वयं देहली ; भा. हि०; पृ० ३४; व० १९४२, प्रा० प्रथम । जैन वो गनायें-ले० बा० कामता प्रसाद जैन : प्र. वीर कार्यालय बिजनौर , भा० हि०; पृ० ८०; व. १९३० : प्रा० प्रथम । जैन वीरों का इतिहास ले. बा. कामता प्रसाद प्र. जैन मित्र मंडल देहली; भा० हि०, पृ० ८६;व०१९३१ । जैन वीरों का इतिहास और हमारा पतन-ले० अयोध्या प्रसाद गोयलीय प्र. जैन मित्र मडन देली, भा० हि०, पृ० १५०, व. १६३०, प्रा० प्रथम, जैन वैराग्य शतक-ले बिहारी लाल चैतन्य, भा० हि०, पृ० ३२ व० १६२८ । जैन शतक-ले० कविवर भूधरदास, सपा० नाथूराम प्रेमी, प्र. जैन, प्रथ रत्ना र कार्यालय -म्बई, भा० हि०, पृ. ३४, व० १६०७, प्रा० प्रथम । जैन शाखोच्चारा--प्र० जैन नथ प्रचारक कार्यालय देवबद, भा० हि०, पृ० । जैन शाखोच्चारण-० बा. ज्ञानचदै जनी लाहौर, मा. हि०, पृ० १०, व० १८६८ । जैन शास्त्र नाम नाना-ने. दुली बन्द श्रावक, प्र० स्वय जयपुर, भा० f०, पृ० ६१, व० १८६५ । जैन शामन-ले० प० सुमेरचद दिवाकर, प्र. भारतीय ज्ञानपीठ बनारस, भा० हि०, व. १६४७ ।। जैन शिलालेख सग्रह (प्रथमोभाग.)-सपा० प्रो० हीरालाल जैन, प्र. मासिकचन्द दिग० जन प्रथमाला बम्बई, भा० स० हि०, पृ० ५६०, व० १६७, प्रा० प्रथम । नेन सगीन माला-प्रथम भाग-ले० बा० सुमेरचन्द जैन, प्र० स्वयं शिमला, भा० हि०, पृ० १८, २० १९०३, प्रा० प्रथम । Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . जैन स्तव रस्लमाला-ले०५० गिरधर शर्मा, प्र. सेठ लालचन्द सेठी झालरापाटन, भा० हि०, पृ० २६, २० १६२२, प्रा. प्रथम । हैन स्त्री शिक्षा-(प्रथम भाग)-ले. पं० पन्नालाल बाकलीवान, पा० हि। बन स्त्री शिक्षा-(द्वितीय भाग)-ले० प पन्नालाल बाकलीवाल, प्र० श्रीलाल जैन कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ६२ । । जेन स्तोत्र संग्रह (५ स्तोत्र)-प्र० निर्णय सागर प्रेस बम्बई, भा० स० पु. ४०, ३० १८६०, द्वि० मा०, व० ११००। • जेन स्प्रदाय शिक्षा-ले० श्रीपाल चन्द्र, मा० हि०, (विविध विषय का वृहत् ग्रंथ)। - जैन समाज का द्वास क्या -ले० अयोध्याप्रसाद गोयलीय, प्र० जैन संगठन सभा देहली, भा० हि०, पृ० ४०, ३० १६३६, प्रा० प्रथम । जैन समाज की यतेनान दशा पर विचार-ले० से० ज्वालाप्रसाद, प्र० ज्योतिप्रसाद जैन देवबद, भा० हि०, पृ० २२, २०१६३३ । जैन समाज दर्पण (पद्य)--- लेखक प० कमलकुमार जैन वि० २०, प्र० सूरजमल मोतीलाल छाबडा खंडवा, भा० हि०, पृ० १३२, ५० १६३७, पा० प्रथम। जैन समाज दिग्दर्शन-ले० ५० न्यामतसिंह, प्र० स्वय हिसार मा० हि, पृ० २८, २० १९२८; आ. प्रथम । जैन संस्कार पद्धति-ले० गेंदालाल जैन, भा० हि०, पृ. १०२, 4. १९१०। जैन साहित्य और इतिहास-ले० ६० नाथूराम प्रेमी, प्र. हि० ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई; भा० हि०, पृ० ६१५, २० १६४२; प्रा० प्रथम । जैन सिद्धान्त दर्पण-ले० पं० गोपालदास बरैया; प्र० मुनि अनंतकीर्ति दि० जैन प्रथमाला बम्बई, भा० हि पृ० २४०, व. १९२८, प्रा० प्रथम । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४० ) जैन सिद्धान्त प्रवेशिका - लै० पं० गोपालदास बरैया, प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, मा० हि०, पृ० २०६, ६० १६१६ श्री० पचम | S जैन सिद्धान्त प्रवेशिका -- ले० पं० गोपालदास बरैया, संपा० मनोहर बाल शास्त्री, प्र० गावी रामचन्द्र नाथारग बम्बई, भा० हि०, पृ० २०४ ५० १६१६, आ० तृतीय | = जैन सिद्धान्त प्रवेशिका - ले० पं० गोपालदास बरैया, प्र० गाँधी रामचन्द्र नाथारग बम्बई, भा० ति०, पृ० १६६, व० १९०६, प्रा० प्रथम । जेन सिद्धान्त संग्रह - ० मूलचन्द, प्र० सद्वोध रत्नाकर कार्यालय. सागर, भा० स० हि० ; पृ० ४६० च० १६२५, ० तृतीय | जैन सुधा बिंदु - ले० पं० जीयालाल चौधरी, प्र० चित्त विनोद पुस्तकालय फर्रुखनगर, मा० हि०; १० ३०, ब० १८९४, आ. प्रथम । जैनागार प्रक्रिया - संग्र० बा० दुलीचन्द्र, प्र० स्वय, मा० हि०, पृ० ४३५० प्रा० ● प्रथम । T जैनाचार्यो का शासन भेद- -ले० पं० जुगल किशोर मुख्तार, प्र० जैन अन्य रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हिन्दी, पृष्ठ ८०, व० १६२८ आठ प्रथम । जैनाव - संग्र० चन्द्रसैन जैन वैद्य, प्र० स्वयं इटावा, भा० हि०, पृ० ४७३ ० १६२४, प्रा. पंचम । जैनास्तिकत्व मीमांसा - ले० प० हसराज शर्मा, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ४८ वर्ष १६१२ । जैनियों का अत्याचार - ले० प० लुगलकिशोर मुख्तार, प्र० कुलवन्तराय ओवरसियर हरदा, भा० हि०, पृ० १६, ० प्रथम । जैनियों का तत्र ज्ञान और चारित्र - प्र० जैन तत्त्व प्रकाशनी सभ इटावा, भाषा हिन्दी, पृष्ठ १२ श्र० प्रथम । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४८ ) जैनियों में शान्ति और उसे शान्त करने के उपाय - प्र० धन्नालाल कालीवाल बम्बई, भाषा हिन्दी, पृष्ठ २४, वर्ष १६११ । मनो कोन हो सकता है - ले० प० जुगलकिशोर मुख्तार, प्र० जैन मित्र मंडल देहली, भा० हि०, पृ० १६ व० १९३१ - व० १६९४, प्र० कुरीति निवारणी सभा धामपुर । जैनेन्द्र के विचार - ले० प्रभाकर माचवे, भा० हि०, पृ० ३६३, व १९३७ । A जैनेन्द्र प्रक्रिया - ले० प्राचार्य गुरणनन्दि, सपा० पं० श्रीलाल जैन, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था काशी, भाषा स०, पृष्ठ ३००, वर्ष १९२४, ० प्रथम | जैनेन्द्र पचाध्यायीसूत्रपाठ - ले०पूज्यपाद स्वामी, स० वशीधर शास्त्री, प्र० गाधी नाथारग प्राकलूज, भा० स०, पृ० ५६, १० १६१२, प्रा० प्रथम | जैनेन्द्र व्याकरण - ले० पूज्यपाद स्वामी, टी. देव नन्दि ( महाकृति ), भा० ०, पृ० ३७० ॥ जोग शिक्षा - ले० प० भूधरदास, प्र० बा० सूरजभान वकील देवबन्द, भाषा हिन्दी व १८६८ । ज्योति प्रसाद - ले० माई दयाल जैन, प्र० जौहरीमल जैन सर्राफ देहली, भाषा हिन्दी, पृष्ठ १६८, १० १६३८, प्रा० प्रथम । 1 ज्योति प्रसाद भजनमाला - ले० कवि ज्योति प्रसाद, प्र० ज्ञानानन्द जैन बडौत (मेरठ) भा० हि०, पृ० ४८, ० १६१६, प्रा० चतुर्थ । ज्योतिषसार ( प्राकृत) — टी०सपा० प० भगवतदास जैन, भा०प्रा. हि०, ५० ८३, व० १६२३, ग्रा० प्रथम । भांजी की नारदीय लीला का अन्त - ले० प० रामप्रस द शास्त्री, प्र० दिग० जैन हितकारी सभा बम्बई, भा० हि० पृ० ३६ व० १६३२ । ; ० सतीशचन्द्र की स्पीच - प्र० जैन तत्त्व प्रकाशनी सभा इटावा, भा हि० ० १० ० १६१४, प्र० प्रथम । Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४६ ) ढाढसी गाथा-ले० प्रज्ञात, मा० प्रा० पृ० ६ । ढुंढक मत मीमांसा - ० मूलचन्द्र ब्रह्मचारी, प्र० न्यामतसिंह टोकरी (मेरठ), भा० हि०, पृ० २६, भा० प्रथम । णमोकार मंत्र का अर्थ-ले० ज्ञानचन्द्र जैनी, प्र० स्वयं (लाहौर) मा हि०, पृ. ४८, ० १९०६ । गोय कुमार चरिड - देखिये - नागकुमार चरित्र (कवि पुष्पदन्त कृत ) | खाणसार (ज्ञान सार) ले० पद्मसिंह मुनि, टी० पं० तिलोकचन्द्र, भा. ० हिंदी, पृष्ठ ४६, व० १९४३ । तत्त्वानुशासन - ले० नागसेनाचार्य, भाषा संस्कृत, पृष्ठ २३, (तत्त्वानुशासनादि संग्रह में प्र० ) । तत्त्व भावना (वृहत्सामायिक पाठ) - ले० श्रमितगति प्राचार्य, टो० ० शीतल प्रसाद, प्र० दिग जैन पुस्तकालय सूरत; भा० सं० हि०, पृ० ३४४; १० १६३० प्र० प्रथम । तत्त्वमाला - ले० ब्र० शीतल प्रसाद, प्र० भारत जैन महा मंडल, भा० हि०, पृ० १०४, व० १९११; आ० द्वितीय | तत्त्वसार-लें० देवसेन, भा० प्रा० (तत्त्वानुशासनादि संग्रह में प्र० । तत्त्वसार टीका - ले० देवसेनाचार्य; [टो० ब्र० शीतलप्रसाद, प्र० दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, भा० प्रा० सं० हिं०, पृ० १६२, १० १९३८ प्रा० प्रथम । तत्वज्ञान तरंगिणी - ले० ज्ञान भूषण भट्टारक; अनु० पं० गजाघरलाल ० भारतीय जैन सिद्धात प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० हि. स. पृ० २१३ व०९९१६, आ० प्रथम । तत्त्वानुशासनादि संग्रह (१४ मून सं० प्रा० ग्रन्थों का संग्रह) - ले. विविध आचार्य; संपा० पं० मनोहरलाल शास्त्री, प्र० माणिकचन्द दिगम्ब", बैन ग्रंथ माला बम्बई, भा० सं० प्र०, पृ० १७६, व० १९१८, प्रा० प्रथम । な तत्रादापिका (प्रथम खण्ड ) - ले० उमास्वामी प्राचार्य; टी० पं० Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बटेश्वरदयाल वकवेरिया प्र० उदयराज जैन ग्रन्थमाला अटेर (ग्वालियर) भाषा संस्कृत हिन्दी,पृ० २५६, व, १९३७ मा० प्रथम। तत्त्वार्थ राजकौस्तुभ (प्रथम खण्ड-२ अध्याय) ले. भट्टाकलंक देव, टी. पंडित पन्नालाल दूनी वाले, सपा० पडित सतीश चन्द्र पंडित कस्तूर चन्द, प्र. दुलीचन्द पन्नालाल परवार देवरी, भा० स० हि०, पृ० १४१, व० १९२४, प्रा. प्रथम । . तत्त्वार्थ राज वार्तिक-ले० भट्टाकलंक देव, अनु० सपा० पंडित गजाघर लाल प० मक्खन लाल, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था काशी, भा० स० हि० पृ० ४१५ व०१९१५ । तत्त्वार्थ राज वार्तिकालंकार (पूवार्ध)--ले० भट्टाकलंक देव, अनुवादक टी० पडित गजाधर लाल पण्डित मक्खनलाल, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी संस्था कलकत्ता, भा० स० हि० पृ० १२५१, आ. प्रथम । तत्त्वार्थ राज वार्तिकालकार (उत्तरार्द्ध)-ले० भट्टाकलक देव; अनु. टौ• पण्डित गजाधरलाल पण्डित मक्खन लाल, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी संस्था कलकत्ता; भाषा स० हिन्दी, पृष्ठ १२२७, प्रा. प्रथम । तत्त्वार्थ श्लोक वाति कम्-ले० विद्यानन्दि स्वामी, सपा० पण्डित मनोहरलाल शास्त्री, प्र० रामचन्द्र नाथारंग जी वम्बई; भाषा सं०, पृ० ५१२, . १९१८। तत्त्वार्थसार (सटीक)-ले० अमृत चन्द्राचार्य, टी० पण्डित वशीघर, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० स० हि०, पृ० ४२८, क. १९१६, प्रा० प्रथम । तत्त्वार्थ वृत्ति-भगवदुमास्वामि विरचित, टीका श्री श्रुतसागर सूरि, हिन्दीसार प्रो० महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य, प्रकाशक भारतीय ज्ञान पीठ, काशी पूल्य १६)। सत्त्वार्थ सूत्र-ले० उमास्वामी, अनु० भगवान सागर ब्रह्मचारी, प्र. स्वयं अनु०, मा० सं० हि०, पृ० १४८, व०१६३३, मा० प्रथम । Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५१ ) तत्त्वार्थ सूत्र-ले० उमास्वामी, अनु० सपा० ५० सुखलाव संभवी, मात्र पं० हि०, पृ०५८८, २०१६३६ तत्वार्थ सूत्र-ले० उमास्वामी, टी० शान्तिराज शास्त्री, भा० सं०, १०४, २०१६ तत्वाथ' सत्र-ले० प्रभाचन्द्राचार्य, अनु० संपा. पं० जुगल किशोर मुख्तार, प्र० वीर सेवा मंदिर सरसावा, भा० स० हि०, पृ० ५२, ३० १९४४, मा० प्रथम । तत्त्वार्थ सूत्र का अर्थाशय-ले० मुशी नाथूराम लगेचू, प्र. स्वयं कटनी, भा० हि०, पृ०५१, व० १६०२, प्रा० प्रथम । तत्त्वार्थ सूत्र टीका-ले० प. सदासुख जी, प्र० नाना रामचन्द्र नाग अल्टण, भा० स० हि, पु०६६, २०१८६६, मा० प्रथम । तरनतारन प्रार्थनाएँ-सपा० प्र० अमृतलाल चचल, भा० हि । ताण तरण श्रावकाचार-ले० तारण तरण स्वामी, टी० ब० शीतल प्रसाद, प्र० मथुरा प्रसाद बजाज सागर, भा० हि०, पृ० ४३६, व० १६३२, पा० प्रथम। तारण पंथ समर्थन-ले० प्र० पम्पालाल जैन, भा० हि,पृ० १४, व. १६४०। वारण शन कोष(२ खंड)-ले० जयसेन क्षुल्लक, प्र० कुन्दनलाल हजारी लाल बासौदा, भा० हि०, पृ० १५५, ५० १६३६ । तारण त्रिवेणी-ने तारण स्वामी, अनु० अमृत भालचंचल, भा० सं० हि०, पृ० ११८, व० १९४० । तरण समाज के किये गये प्रश्नों के उत्तर-ले० जीवधर कुमार दरबारी लाल, प्र० तारण समात्र, भा० हिर, पृ०३४, २०१९४० । तामिल वेद-ले० तिरुवल्लवर, अनु० संपा० व प्र० जीतमल भूणिया अजमेर, भा० हि० तिलक मन्जरी- ले. धनपाल, संपा० भवदत्त शास्त्री तथा काशीनाप Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५२ ) पांडूरंग, प्र० निर्णय सागर प्रेस बम्बई, भा० स०, पृ० ३५०, व० १९०३ । तिलोय परणात (त्रिलोक प्रज्ञाप्त प्रथम खड)- ले० यतिवृषभाचार्य, संपा० डा० ए० एन० उपाध्याय तथा-प्रो० हीरालाल जैन, अनु०प० बाल चन्द्र शास्त्री, प्र. जैन सस्कृत सरक्षक सघ शोलापुर, भा०' हि, पृ० ५२८, व०१९४३, प्रा० प्रथम । . तीर्थङ्कर भक्ति-ले० पूज्यपादाचार्य, भा० स०, ( दशभक्तयादि संग्रह में प्र०। • तोर्थ माला अमोलकरत्न-ले. शीतल प्रसाद, भा० प्र० हि०, पृ० ३८, व० १८६३ । । तीर्थ यात्रा दर्शक-ले० ० गेबीलाल, प्र० दिग. जैन समाज कलकत्ता, भा० हि०, पृ० २७६ ५० १९२८, आ. प्रथम । तीथ यात्रा दर्शक-प्र० चन्द्रराज शेट्टि व वर्धमान हेग्गडे पुत्तरु (कन्नड)। तीस चौबीमी पूजा-ले० कविवर वृन्दावन जी, सपा. मन्नालाल काव्यतीर्थ, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ३७१, ३० १९१७, प्रा० प्रशम। . तीस चौवासी विधान और समाधिमरण-ले० ५० हजारीलाल वैद्य, भा० हि०, पृ० १४, व० १९३५ । तीन पुष्प-ले० कैलाश चन्द्र शास्त्री, प्र. शारदा सहेली सघ देहली, भा. हि०, पृ० ३२०; २० १९४४। तेरह द्वीर पूजन विधान-ले० कवि श्रीलाल जी, प्र. दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० ३२८, व० १९४३, प्रा० द्वितीय । त्याग मीमाँसा-ले० पं0 दीपचन्द वर्णी, प्र. कोठारी मणिलाल चुन्नीलाल; भा० हि०, पृ० २८, व० १९२८, प्र० जौहरीमल जैन सर्राफ 'देही, पृ०३३ व० १६३१, मा० द्वितीय । ध्येट्रीकल जैन भजन मंजरी-ले. पं० न्यामतसिंह, प्र० स्वय हिसार, मा० हि०, पृ० २२, व० १९१२, प्रा. तीसरी । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५३) दमति सुख साग्न (प्रथम भाग)-ले. पन्नालाल बाव लीवाल, प्र. जैन हितैषी पुस्तकालय बम्बई, भा० हि०, २०१६०१। दम्पति सुख माधन (द्वितीय भाग)-ले० पन्नालाल बाकलीवाल, प्र. जैन हितैषी पुस्तकालय बम्बई, भा० हि०, व० १६०१।। दयानन्द चरित्र दर्पण-० जीयालाल जैनी, प्र. चित्र विनोद पुस्तकालय फर्रूखनगर, भा० हि०, पृ० २६१ व० १८६४, प्रा० प्रथम । दयानन्द छल कपट दर्पण-ले०प० जीया नाल ज्योतिषी, प्र० स्वयं, भाषा हिन्दी, पृष्ठ २६१, वर्ष १८६०, प्रा० प्रथम । दयानन्द छन करट दर्पण-लेखक पंडित जीयालाल ज्योतिषी, प्रकाशक कामताप्रमाद दीक्षित अमरौधा (कानपुर), भाषा हिन्दी, पृष्ठ ३२४, व० १६३०, आ. द्वितीय । दया स्वीकार माँ म तिरस्कार-ले. बुधमल पाटनी, प्र. भारत धर्म पहामंडल लखनऊ, भा० हि०, पृष्ठ १०२, व० १६१४, अ० प्रथम । द्यानत पद संग्रह-ले० कवि द्यानतराय, प्र. जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ४८। दरश व्रत नाटक-प्र. जिनवाणी प्रचारक कार्लानय कलकत्ता, भा० हि । ' दर्शन और आरती-प्र० मा० शिवरामसिंह जैन रोहतक, भा० हि, पु० २६; व० १६३५, आ. द्वितीय । दर्शन कया-ले० कवि भारामल्ल, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ४६ । दर्शन कथा-ले० कवि भारामल्ल, प्र. जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ६७, व० १९१६, प्रा० चतुर्थ । - दर्शन कथा-ले० कवि भारामल्ल प्र. वा. ज्ञानचन्द जैनी लाहोर, भा० हि०, पृ० ७४, २०१९१२ । ' दर्शन कथा (साचित्र)-ले० कवि भारामल्ल, प्र० जिनवाणी प्रचारक Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५४ ) कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १७, २० १९३६, प्रा० प्रथम । दर्शन कथा (बड़ी-पद्य)ले. कवि भारामल्ल, प्र. पूरनमल जैन शमसाबाद, (आगरा); भा० हि०, पृ० ६४, व० १९४२, प्रा० द्वितीय । दर्शन प्राभृत-ले० कुन्दकुन्द, टी. श्रुतसागर, भा० प्रा० सं०, (षटप्राभूतादि सग्रह मे प्र०)। दर्शन पाठले. दौलतराम व पुवजन जी, प्र० जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई, भा० हि: पृ० १६, व० १६३० । दर्शन पाहुड-ले० कुन्दकुन्द, भा० प्र०, (प्रष्ट पाहुइ व षट पाहुर संग्रह में प्र०)। ' दर्शन सार-ले. देवसेनाचार्य; टी० सपा० पं० नाथुराम प्रेमी, प्र० बैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई। दर्शन प्रतीक्षा-ले० प्रेमी सहारनपुरी, प्र० प्रेमभवन पुस्तकालय, सहारनपुर; भा० हि०, पृ०२४; प्रा० प्रथम । दर्श महिमा-ले० प्रेमी सहारनपुरो, प्र. प्रेम भवन पुस्तकालय सहारनपुर; भा० हि०, पृ० २४ प्रा० प्रथम । द्रव्य दर्पण-ले०प० अजितकुमार शास्त्री, प्र० चतन्य प्रिंटिंग प्रेस बिजनौर, भा० हि० पृ० ३६; २०१६३०, प्रा० प्रथम । द्रव्य स ग्रह-ले० नेमिचन्द f. च०, टी० बा० सूरजभान वकील, प्र० टी० स्वय देवबद, भा० प्रा० हि०, पृ० ८१, व० १६०६ । द्रव्य संग्रह-ले० नेमिचन्द्राचार्य, अनु० पं. सतीश चन्द्र, प्र० जिनवाणी प्रवारक कार्यालय कलकता; भा० प्रा० हि०, पृ० ३६, व० १९२६ मा० प्रथप। द्र मग्रह-ले० नेमिचन्द्राचार्य, टी० बा० सूरजभान वकील, प्र० जैन साहित्य प्रसारक कार्यालल ब्रम्बई; भा० प्रा० हि०, पृ० १२४, २०१९२६ पा० प्रथम । द्रव्य स ग्रह-ले० मिचन्द्राचार्य, पद्यानुवाद-शानवराय; टी० संपा० Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .(१४४) 0 पन्नालान वाकलीवातः प्र जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० प्रा० हि पृ० ५८, व० १९१४. प्रा. चतुर्थ । । द्रव्य समह-ले नेमिचन्द्राचार्य, टी. संपा०प० भुवनेन्द्र विश्व, प्र. जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० प्रा० हिम्, पृ०० २०१६३८, प्रा. द्वितीय। द्रव्य संग्रह (हिन्दी दोहा बढ़)-ले० मा० मुख्नारसिंहा अनु० मैना सुन्दरी; प्र० दि० जैन पुस्तकालय मुजफ्फरनगर, भार हि०, पृ०, ६, द्रव्यानुयोग तकण- ले० भोज कवि, मनु, ठाकुरप्रसाद शर्मा, भा० सं० दिन पृ० २६०, व० १९०५ ' दश पारतो भाषा-प्र० बा. सूरजमान वकील देवबंद; भाषा हिन्दी, व. १८६८। । दश भक्ति-संग्रह मुनि श्रुतसागर; प्र. जैन मित्र मण्डल देहली; भाषा हिन्दी; पृ० ४३, व० १६३२ । । दश भक्त्यादि संग्रह-ले० प्राचार्य पूज्यपाद; टी. पण्डित लालाराम, प्र. रावजी सखाराम दोशी शोल,पुर, भा० ० हि०; पु० २००; व० १९३३, हा प्रथम दशलक्षण धर्म-ले० पण्डित सदासुख जी; भाषा हिन्दी । दशलक्षण धर्म-ले० पण्डित दीपचन्द वर्णी, प्र० दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि पृ० १३५, व० १९४२; मा० चतुर्थ। दश लक्षणधर्म पूजा-ले० पण्डित जिनेश्वरदास, प्र० मौजीलाल जैन देहली, भा० हि० पृ० ४२; व० १९३५ । दश लक्षण धम संग्रह-ले. पण्डित रइघु कवि; प्र० जैन धर्म प्रचारक हुस्तकालय वर्धा; भाषा प्रा०, पृष्ठ ६४, प्रा० प्रथम । __ दश लक्षण धर्म संग्रह (धर्म कसुमोद्यान)-ले० पण्डित पन्नालाल जैन 'सा. मा०, प्र. जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलता, भा० हि०, पृ०४१।। Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५६ ) दस्सा पूजाविकार विचार - ले० स्फुलिङ्गः प्र० जमनाबाई जबलपुर पा० हि०, पृ० ३६, व० १६३६, श्रा० द्वितीय । दस्माओं का पूजाधिकार - ० पण्डित परमेष्ठिदास, प्र० जौहरीमन चैन सर्राफ देवली, भा० हिन्दी; पृ० ३४; व० १९३५; प्रा० प्रथम । दग्नूर अमल अग्रवाल सभा महारनपुर -- भाषा हिन्दी | दस्तूर अमल जैन बिरादरी मेरठहिन्दी, व १९२७ । --प्र० जैन बिरादरी मेरठ शहर, भाषा द्वादश, नु ेक्षा -- ले० सोमदेव सूरि; टी० पं० लालाराम, प्र० भारतीय चैन सिद्धांत प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० स० हि०, पृ० ५७ प्रा. प्रथम । द्वादशानुपेक्षा - ले० शुभचन्द्राचार्य, टी० प० जयचन्द छावडा, प्र० चैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० सं० हि० पृ० ८०, व० १६०५; प्रा० प्रथम । द्वादश सुवेक्षा - प्र० जयचन्द्र श्रावणे वर्षा, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ४३, ६० १८६८, आ० प्रथम । द्वादशानुप्रेक्षा - प्र० जैन ग्रंथ भडार सागर, भा० हि०, पृ० ७६, २० १६२८, प्र० प्रथम | द्वादशानुप्रेक्षा व बारह भावना - ले० दयाचन्द गोयलीय; प्र० सद्घोष रत्नाकर कार्यालय सागर, भा० हिन्दी, पृष्ठ ७४, व० १९१४, आ० प्रथम | द्वात्रिंशतिका - २ अमित गति सूरि, भाषा संस्कृत, पृष्ठ १०६, (तत्त्वाशासनादि मग्रह मे प्र० ) द्विसंधानम् - ले० कवि धनंजय, सं० टी० बदरीनाथ, सम्पादक पंडित काशीनाथ शर्मा व पण्डित शिवदत, प्रकाशक निर्णय सागर प्रेस बम्बई, भा० सं०, पृ० २२६, १०१८९५, प्रा० प्रथम । दान कथा - ले० बख्तावर मल रतनलाल, प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई भा० हि० । 4 दान कथा :- प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा०वि०, पृ० ४२ । Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) " दान का फल अथवा सती चन्दन बाला नाटक-ले० शेरसिंह नाज, प्र० प्यारे लाल देवी सहाय देहली, भा० हि०, पृ० २०७, २० १९२७, प्रा. प्रथम । । दान रिचार-ले० क्षुल्लक ज्ञान सागर, प्र. रतनलाल जैन मादिपुरिया देहली, भा० हि°, पृ० २०२, व० १६३२, प्रा० प्रथम । दान विचार समीक्षा-ले० पण्डिन परमेष्ठिदास, प्र० जौहरमल जैन सर्राफ देहली, भा० हि०, पृष्ठ ८०, व० १६३३, प्रा० प्रथम । दानवीर सेठ माणिकचन्द्र-ले०० शीतल प्रसाद, प्रकाशक दिगम्बर चैन पुस्तकालय सूरत, भा० हिन्दी, पृ० ६२०, व० १९१९ प्रा० प्रथम। दानवीर सेठ हक्मचम्द का जीवन चरित्र-लेखक अज्ञात, भा० हि । दान शामन-लेखक महर्षि वासु पूज्य, टी० अनुवादक पद्धं मान पाच नाथ शास्त्री, प्रकाशक गोविन्द राव जी शोल पुर. भा० सं० हि०, पृ० ३४०, व० १९४१, प्रा० प्रथम । दिसम्बर मुनि-लखक कामता प्रशाद जैन, प्र.न मित्र महल देहली, भा० हि०; पृ० ३२ व० १९३१ प्रा० प्रथम । दिया तल अंधेरा-प्र. जैन अथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई; भा० हि दीपमालिका विधान-सपादक मदनला जैन, प्रकाशक दोशी जयचन्द हेमचन्द ईडर, • T० हि० पृ० ३६; व० १६१३. प्रा० प्रथम । । दीपमालिका विधान-संग्रह सपादक ब. शीतल प्रसाद, प्रकाशक मूलचंद किशनदास कापडिया सूरत, भा० हि०, पृ. १८, व० १६१७: प्रा० द्वितीय। दिगम्बर जैन मूर्ति पूजा पर शंकाए--लेखक प्र• गुलाबचन्द जैन पुरुष, भा० हि०, पृ. १८, व० १९३९ । - दिगम्बर मुद्रा की सर्वमान्यता-लेखक के भुजबलि शास्त्री, प्रकाशक जैन सिद्धान्त भवन पारा, भा० हि पृष्ठ ३२ । दिगम्बर मुहा मंडन-लेखक पण्डित शिवचन्द्र, प्र० स्वय देहली, भा० हि पु०१५, २०१८९१ प्रा. प्रथम । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५ ) दाम्पत्य सुखोपाय (भाग १ . २)-लेखक पन्डित पन्नालाल जैन, प्र. देश हितैषी आफिस बम्बई। , दास पुष्पांजलि-लेखक अयोध्या प्रसाद गोयलीय, प्र० हीरालाल पन्नामाल देहली, भा० हि०, पृ० ६४, व० १९२७, प्रा. द्वितीय। दीपावलो महोत्सव-लेखक पण्डित कमल कुमार शास्त्री, प्रकाशक राजकुमार प्रभाचन्द ललितपुर, भा, हि०, पृ०, ५८, व० १६३६ प्रा० प्रथम । दीरावली महोत्सव-प्र० प्रज्ञा पुस्तकमाला बरायठा (सागर) भा० ह., पृ० १०४। दुखित पुकार--लेखक प्र० फूलचन्द जैन मागरा, भाषा हिन्दी। दुगर्ति दुःखदीपिका (पद्य)-लेखक यति नयनसुखदास, संपादक ३० प्रेमसागर, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भाषा हिदी, पृष्ठ ५६ व० १६४० प्रा० प्रथय । देवगढ़ काव्य-लेखक कल्याण कुमार शशि, प्रकाशक नापूराम सिंघई खलितपुर, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ३०, ३० १९३९आ. प्रथम । देवगढ़ के जैन मदिर- ले. विशंभरदास गार्गीय, भाषा हिन्दी, पृष्ठ २८, २० १९२१ । देवचन्द्र चौबीसी-लेखक देवचन्द्र, भाषा हिंदी, पृ० ६४, (पदसग्रह)। देव दशन--सपादक दरयाहि सोधिया व शाह सन्तोषचद मारिणकपद, प्रकाशक बुद्ध लाल श्रावक देवरी,भाषा सस्कृत हिन्दी, पृष्ठ १६, २० १६१६ ग्रा. प्रथम । देव परोक्षा-लेखक चादनराम जैनी, भा०हि.पृ० ४३, व १९१४ । • देव रचना-लखक लाला हरजसराय, प्रकाशक प्यारेलाल, मा. हि.। देव शास्त्र गुरू पूजा-सपादक अनुवादक बाबू सूरजभान वकील, प्र. स्वयं देवबद, भाषा प्रा० सस्कृत हिन्दी, पृष्ठ २५, व० १६०६, प्रा० प्रथम । देवेन्द्र चरित्र-लेखक प्र. बाबू अजित प्रसाद लखनऊ, भाषा हिन्दी, पृ. १०२, च. १६३२ । देवेन्द्र मिलाप-लेखक छेदालाल, मा. हि., पृ. ३६ व १९२८ । । Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५६) दिगम्बर जैन ग्रंयका और उनके ग्रंथ-लेखक पण्डित माथूराम प्रेमी, प्रकाशक जैन ग्रथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई. भा० हि पृ० १६० ब० १६११ मा.प्रथम। दिगम्बर जैन भाषा ग्रन्थ नामावली- सग्रह बाबू ज्ञानचंद जैनी, प्रकाशक दिगम्बर जैन धर्म पुस्तकालय लाहौर भाषा हिन्दी, पृष्ठ २८, व० १६०१ । दिगम्बर जैन मुनि पूजा व भजनावली-सपादक पण्डित जिनेश्वरदास प्रकाशक चिरजीलाल जैन अलवर, भा० हि०; पृष्ट १६; २० १९३२, मा. प्रथम। दिगम्बर जैनों में जागृति के प्रश्न व शास्त्रार्य को श्रील लेखक उजागर मल जैन, प्रकाशक जैन शिक्षा प्रबारक समिति जयपुर, भाषा हिन्दी, पृष्ठ १४। दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि-लेखक बाबू कामताप्रसाद जैन, प्र. चम्पावती जैन पुस्तकमाला अम्बाला छावनी, भा०हिक पृ० ३२०० १९३२, , গা সখ। दिगम्बर जैन सिद्धांत दर्पण (अंश १, २)-लेखक पण्डित मक्खनलाल शास्त्री, प्रकाशक जुहारूमल मूल वन्द, भा० हि, पृ० १४६, व० १९४४, (प्रो. हीरालाल के मन्तव्यों के उत्तर में)। दिगम्बर जैन सिद्धांत दर्पण (प्रश ३) --सपादक प्र० पण्डित रामप्रसाद शास्त्री बम्बई, वर्ष १९४६ ॥ दिगम्बर जैन सिद्धांत दर्पण (प्रश ४)- " " ॥ शास्त्री बम्बई, व० १९४७ ॥ दिगम्बर जैन मर्ति पूजा पर ५१ प्रश्न-लेखक प्र. चम्पालाल जैन सोहागपुर, भा० हि०, पृ० १६, व० १९३६ । . देहली दिग्दर्शन--ले. बा० अजितप्रसाद एडवोकेट; प्र० स्वय पजिताश्रम लखनऊ भा० हि०, पृ० २०५० १६२३ । देहली शास्त्रार्थ-प्र. जैन मित्र मंडल देहली, भा. हि०, पृ०६८, Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६० ) ब० १६१७, प्रा० प्रथम । देहला की जैन संस्थाएँ - ले० ला० पन्नालाल जैन अग्रवाल, भा० हि०, १० १९४६ । दो हजार वर्ष पुरानी कहानियां -ले० डा० जगदीशचंद्र, प्र० भारतीय ज्ञानपीठ बनारस, भा० हि०, व० १९४७ । द्रोण नैना और मुक्तागिरि सिद्ध क्षेत्र यात्रा विवरण - ले० द्वारका प्रसाद, प्र० महावीर दिग० जैन मन्दिर हाथरस, भा० हि०, पृ० ४०, ६० १६ ७, आ० प्रथम । दोलत जनपदसंग्रह - ले० कवि दौलतराम जी ; प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालयक लकत्ता, भा० हि०, पृ० ८० । दौलन विलास (दौलत कवितावली ) ले० कवि दौलतराम जी, सपा० पं० पन्नालाल बाकलीवाल, प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०; पृ० ८०, ०६०४, आ० प्रथम | धनञ्जय नाम माला - ले० कविवर धनञ्जय, सपा० मोहनलाल जैन का० ती० प्र० हरप्रसाद जैन वंद्य लुहरी (झाँसी) भा० स० पृ० १६ व० १९४०, प्रा० द्वितीय । धन्य कुमार चरित्र (पद्य) - ले० १० खुशालचन्द, प्र० जिनवाणी प्रचाएक कार्यालय कलकत्ता भा० हि०, पृ० १०२, व० १९३८, प्रा० प्रथम । धन्य कुमार चरित्र - ले० प खुगालचन्द, प्र० श्री वीर जैन साहित्य कार्यालय हिपार, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ६३, व १६१६, प्रा० प्रथम । धन्य कुमार चरित्र - ले० प्रज्ञात, अनु० १० उदयलाल काशलीवाल; प्र० जैनभारती भवन काशी, भाषा हिन्दी पृष्ठ १०३, वर्ष १६११ ; आ० प्रथम । धम्मरसायणम् - लेखक पद्मनन्दि भाषा अप० स०, पृष्ठ ३४, ( सिद्धान्त सारादि संग्रह मे प्र० ) | धर्म और शील - लेखक मुन्शीलाल एम. ए. प्रकाशक स्वय नाहीय भाषा हिन्दी; पृष्ठ ११२ वर्ष १९१२, भा० प्रथम । 4 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६१ ) धर्म का प्रादि प्रवर्तक-लेखक स्वामी कर्मानन्द, प्रकाशक' जैन सध अम्बाला; भाषा हिन्दी, पृष्ठ २६२, वर्ष १९४६ । धर्मचर्चा संग्रह-सब० शाह धर्मचन्द हरजीवन दास, प्र० मूलचन्द किशन दास कापडिया सूरत, भा० हि०, पृ० १६, २० १९१८, प्रा० प्रथम । धर्म चला-ले० बा० सूरजभान वकील, प्र. कुलवन्तराय जैन, भा. हि । धर्म परीक्षा-ले० प्रमित गति प्राचार्य, अनु० पन्नालाल 'बाकलीवाल, प्र. भारतीय जैन सिद्धांत प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० हि० स०, पृ० २३०, व. १६०८, प्रा० प्रथम; पृ० २५२, ब० १९२२, मा० द्वितीय । धर्म परीक्षा-ले० अमितगति प्राचार्य, अनु० पन्नालालबाकलीवान. प्र. जैन अन्य रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा०, हि० सं० पृ० २२०, ब. १९०८, प्रा. प्रथम । धर्म प्रचार-ले० बा० कुलवन्तराय, प्र० स्वयं, भा० हि., पृ० १४, २०१९२७ । धर्म प्रबोधिनी-प्र० ला० शकरलाल जैनी रहाना (सहारनपुर), भा. हि०, पृ० १८, २० १८१८, आ. प्रथम०, पृ० २०, प्रा. द्वितीय, पृ० १२, व०१८७२। धर्म प्रभावना-ले० कुलवन्तराय जैन, प्र०-स्वय होशगाबाद, भा०हि०, पृ० १३, व० १६२७, प्रा० प्रथम . धर्म प्रश्नोत्तर-ले० सकलकीत्ति प्राचार्य, अनु० लालाराम, प्र० स्यावाद रत्नाकरकार्यालय काशी, भा० स० हि०, पृ० २६५, व. १९९२, मा. प्रथम । धर्म प्रश्नोत्तर-ले. सकलकीत्ति आचार्य, अनु० लालाराम, प्र. खुमानलाल जैन केवलारी, भा० सं०, हि० पृ० ३००, व० १९३८, मा० दूसरी। धर्मपाल नाटक-ले०प० भर्जुनलाल सेठी, भा० हि । धर्मपाल नाटक के पद्य-ले० अर्जुनलाल सेठी, भा० हि०, पृ. १४ । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६२ ) धर्ममीमांसा (प्रथम भाग)-०५० दरबारी लाल सत्य भक्त, प्र० सत्यसमाज प्रथ माला कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ८७, १० १९३५ । धर्मरत्नोद्योत (पद्य)-ले. वा० षयमोहनदास, संपा० १० प्र०प० पन्नाबाल बाकलीवाल बम्बई, भा० हि०, पृ० १८२, व० १९१२, मा. प्रथम । धर्मरहस्य-ले. चम्पतराय जैन बैरिस्टर, प्र० स्वयं बम्बई, भा. हि०, पृ० ११२, ५० १६४०, प्रा० प्रथम । धर्मविलास-से. धानतराय जी, प्र० जनगन्य रत्नाकरकार्यालय बम्बई, मा० हि०, पृ. २६३, व० १६१४, प्रा० प्रथम । धर्मवीर सुदर्शन (काव्य)- लेखक अमरचन्द मुनि, भा० हि, पृ० ११०, व. १९३८ धर्म शर्माभ्यदय-ले. महाकवि हरिश्चन्द्र, सपा.पं. काशीनाथशर्मा, प्र. निर्णय सागर प्रेस बम्बई, भा० स०, पृ० १६१, १० १८६६ । धर्मशिक्षावली (प्रथम भाग)-ले०प० उग्रसेन एम० ए०, प्र० भारत वर्षीय दिग० जैन पब्लिशिंग हाउस देहली, मा० हि०, पृ० ३६, ५० १६४३, मा० छठी । धर्म शिक्षावली (दूसरा भाग)-ले ५० उग्रसेन एम० ए०, प्र० भारत वर्षीय दिग० जैन पब्लिशिंग हाउस देहली, भा० हि०, १० ७२, व० १६४३, मा० छठी। धर्म शिक्षावली (तीमरा भाग)-ले० प० उग्रसेन एम० ए०, प्र. भारत वर्षीय दिग० जैन पब्लिशिंग हाउस देली. भा० हि०, पृ० ६५, ५० १६४४; पा० छठी। ___धर्मशिक्षावली (चतुर्थ भाग)-ले८५० उग्रसेन एम० ए०, प्र० पोरकार्यालय मल्हीपुर, मा० हि०, पृ० १७२, व. १६३४, प्रा० प्रथम । धर्म संग्रह भावकाचार- ले०प० मेधावी, अनु० ५० उदयलाल काशलीवान, प्र. बा० सूरजभान वकील देवबन्द, भा० स.हि., पृ. ३३५, व० १९१०, मा. प्रथम । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६३ ) धर्म सिद्धांत रत्न माला ( प्रथम रत्न) से० बा० सूरजभान वकील, प्र० बा० कुलवन्तराय जैनी हरदा, भा० हि०, पृ० ३३, व० १९२६, प्रा० प्रथम । धर्म सिद्धांत रत्न माला ( दूसरा रत्न ) - ले० बा० सूरजभान वकील, प्र० बा० कुलवन्तराय जैनी हरदा, भा०, हि०, पृ० २३, ६० १६२६; श्रा० प्रथम । धर्म सिद्धांत रत्न माला ( तीसरा रत्न ) - लेखक बा० सूरजभान वकील, प्र० बा० कुलवन्तराय जैनी हरदा, भा०, पृ० २०; १० १९२६; आ० प्रथम । धर्म सिद्धान्त रत्न माला ( चौथा रत्न ) - लेखक बा० सूरजभान वकील, प्र० बा० कुलवन्तराय जैनी हरदा, भा० हि०, व० १९२६; प्रा० प्रथम । धर्म सिद्धान्त रत्न माला ( पाचवा रत्न ) - 'धमंचला' लेखक बा० सूरजभान वकील, प्र० बा० कुलवन्तराय जैनी हरदा, भा०, हि०, पृ० ८, व० १६२७ । धर्मामृत रसायन - लेखक कुँवर दिग्विजयसिंह, प्र० जैनतत्वप्रकाशनी सभा इटावा, भा० हि०, पृ० ३२, ० १६१२, प्रा० द्वितीय । धर्मों में भिन्नता - लेखक प० दरबारीलाल सा० र० प्र० प्रात्म जागृति कार्यालय व्यावर, भा० हि०, पृ० १८, व० १६३२ । धूर्ताख्यान - लेखक हरिभद्र सूरि, अनु० सपा० १० नाथूराम प्रेमी, प्र० जनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ४८, ० १६१२, आ० प्रथम । नकलो और असली धर्मात्मा - लेखक बा० सूरजभान वकील, प० चन्द्रसेन जैन वैद्य इटावा, भा० हि०, पृ० १६६, ६० १६१६; आ० प्रथम । नक्शा गुण स्थान - सपा० प० दीपचन्द्र वर्णी, प्र० कुमार देवेन्द्र प्रसाद वन प्रारा, भा० हि०, पृ० १, ६० १६१६, प्रा० प्रथम नन्दीश्वर भक्ति - लेखक पूज्यपादाचार्य, टी० लालाराम, भा० स० हि०, ( दशभक्त्यादि संग्रह मे प्र० ) । नन्दीश्वर भक्ति - लेखक प्रतधराचार्य, भा० स०, पृ० ४२, १० १६६४ । Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६४) नन्दीश्वर व्रत उद्यापन-प्र. दिग० जन पुस्तकालय सूरत, भा० हि, ४० ३३, ५० १६३१, प्रा० प्रथम । नयचक्रादि संग्रह (दो ग्रन्थ)-लेखक माइल्ल धवल व देवसेनाचार्य, सपा० ५० वशीधर शास्त्री, प्र. माणिकचन्द्र दिग० जैन ग्रन्थमाला बम्बई मा० स०, पृ० १६४, व० १९२०, प्रा० प्रथम । नयविवरणम्-लेखक विद्यानन्द स्वामी, भा० स०, पृ० १०, २० १९०५। न्याय कुमुदचन्द्र ( प्रथम खड)-लेखक प्रभाचन्दाचार्य; संपा० पं. महेन्द्रकुमार न्या० प्रा०, प्र० माणिकचन्द्र दिग. जैन ग्रन्थमाला बम्बई, भा. सं०, पृ० ४०२, २०१६३८, प्रा० प्रथम ।। न्याय कुमुदचन्द्र ( द्वितीय खड)-लेखक, प्रभाचन्द्राचार्य, संपा०, पं. महेन्द्रकुमार न्या० प्रा०, प्र० मरिणकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रंथमाला बम्बई, मा. सं०, पृ० १०४१, व० १६४१, आ० प्रथम । न्याय विनिश्चय विवरणम् (प्रथम भाग)-श्री भट्टाकलक देव विरिक्त, टीका वादिराजसरि, सम्पादक प्रो० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ काशी, व० १६४६, मूल्य १५, पृ० ६११ । न्याय दीपिका-ले० धर्मभूषण भट्टारक, अनु० टी० ५० खूबचन्द्र, सपा० प० वशीधर, प्र. जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० स० हि०,पृ० १३४, व० १६१३ प्रा० प्रथम । न्याय दीपिका-ले० धर्मभूषण भट्टारक, प्र. कलप्पाभरमप्पानिटवे कोल्हापुर, भा० स०, पृ०८२, व० १८६६, प्रा० प्रथम । न्याय दीपिका-ले० धर्मभूषण भट्टारक, अनु० संपादक प० दरबारीलाब कोठिया, न्याय.चार्या प्र० वीर सेवा मदिर सरसावा, भा० स० हि०, पृ० ३५०, व० १६४५, प्रा० प्रयम । न्याय दीपिका-ले० धर्मभूषण भट्टारक, प्र. जैनेन्द्रमुद्रणालय बम्बई, भा० स०, पृ० ७६, व० १८६६ । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६५ ) न्याय प्रदीप - से० पं० दरबारी लाल स०भ०, प्र० साहित्यरत्न कार्यालय बम्बई भा० हि०, पृ० १३६ व० १९२६; प्रा० प्रथम । न्याय बोधक -- ले० प० अजितकुमार शास्त्री, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशन संस्था कलकत्ता, भा० हि०; पृ० १६; ग्रा० प्रथम । न्याय विनिश्चय - ले० प्रकलक देव, भा० सं०; ( अकलङ्क ग्रन्थत्रयम्मैं प्र० ) । नरपशु शास्त्रार्थ - ले० पं० सिद्धसेन सा० २०, प्र० सेठ कोटडिया सोमबन्द उम्रचन्द लाकरोडा ( गुजरात ), भा० हि० पृ० २६, व० १६३०, प्रा० प्रथम । नरमेध यज्ञ मीमाँसा (समालोचना) - ले० पं० हंसराज शर्मा जैन, भा० हि० पृ० २०, व० १६१२ । नरेश धर्म दर्पण - ले० प्राचार्य कुथसागर, प्र० कुथसागर ग्रन्थमाला बोलापुर, भा०हि०, पृ० २८, १० १९४० प्रा० द्वितीय । नवगृह विधान - ले० मनसुख सागर, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ३८, १० १९३५, ० प्रथम । नव रत्न -- ले० बा० कामता प्रशाद, प्र० मूलचन्द किशनदास कापडिया सूरत, भा०हि०, पृ० ६४, व० १६३०, प्रा० प्रथम । नवीन जिनवासी संग्रह - संपा० प० मंगलसैन, प्र० श्री वीरपुस्तकालय सुबफ्फरनगर, भा० हि० सं० पृ० ५१६, व० १६४२, आ० द्वितीय । नवोन तीर्थ यात्रा लें. सूरजभान जैन, प्र० जिनवारणी प्रचारक कार्याव कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ११२, वर्ष १९३६, ० प्रथम । नागकुमार चरित्र - ले० महाकवि पुष्पदन्त, सपा० प्रो० हीरालाल जैन, म० बलात्कारगण जैन पब्लिकेशन सोसाइटी कारंजा, भा० अप०, पृ० २०६, ० १९३३, मा० प्रथम । नाग कुमार चरित्र - ले० मल्लिषेम सूरि, अनु० उदयलाल काशलीवाल, To जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई; भा० स० हि० पृ० १६१, ५० १९१३, ० प्रथम । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६६ ) नाटक समयसार-ले० कविवर बनारसीदास, टी. बुद्धिलाल श्रावक,प्र. जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, मा० हि०, पृ० १६४, २० १९२६, मा. प्रथम। नाटक समयसार कलशा-ले० अमृतचन्द सूरि, भा० सं०, पृ० ३५, ५० १९०५। नाम माला-ले० धनञ्जय, अनु० ५० घनश्याम दास, प्र० बधीपर ललितपुर, भा० स० हि०, पृ० १००; २०१६१६, प्रा० प्रथम । नाम माला-ले० धनञ्जयः भनु० ५० घनश्यामदास, प्र. पं. गौरीलाल जैन देहली, मा० स०, पृ० ३२, व० १९१६ प्रा० प्रथम । नारी धर्म प्रकाश--ले० पन्नालाल जैन, प्र० देश हितैषी आफिस बबई, भा० हि०। नारो शिक्षादर्श-ले. पं० उग्रसेन एम० ए०, प्र. जैन मित्र मडन देहनी, मा० हि०, पृ० १८०, व० १६३४, प्रा. प्रथम । निजात्म शुद्धि भावना-ले० प्राचार्य कुन्थसागर, प्र. शिष्यमडन बोरसद, भा० हि०, पृ० ३४, व० १६४०, मा० प्रथम । निजात्म शुद्धि भावना और मोक्ष मार्गप्रदीप-ले० प्रा० कुथ सागर, प्र. साध्वी नानी ह्वेन सितवाडा, भा० हि०, पृ० १२४, व० १९३८ । निजात्माष्टकम्-ले० योगीन्द्र देव, भा० स०, (सिद्धान्त सारादि सग्रह मे प्र०)। नित्य नियम देव पूजा व शीतलारिष्ट निवारक पूजा-ले०प० प्रमचन्द, प्र० स्वय फीरोजाबाद, भा० हि०, पृ० ३४, व० १९३५; मा० प्रथम । नित्य नियम पूजा और भाषा पूजा संग्रह-प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० स० हि० पृ० ८६, व० १६३२, प्रा० नवम । नित्य नियम पूजा प्राकृत-टी० अनु० सदासुखजी व बा० सूरजभान वकील, प्र० सूरजभान वकील देवबद, भाषा प्रा० हिन्दी, पृष्ठ ३८, व० १८९० प्रा. प्रथम । Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६७ ) नित्य नियम पूजा सार्थ -संपा० ना० लक्खीराम जैन, प्र० स्वयं, टीकरी, भाषा सं० हिन्दी; पु० ६४, २० १९४१; मा० प्रथम । नित्य नियम पूजा साथ-टी० अनु० ५० अजित कुमार शास्त्री, प्र. भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भाषा स० हि०, पृ० १२८, व० २६२३, प्रा० प्रथम । नित्य नियम व हस्तिनापुर क्षेत्र पूजा भाषा - सप्र० मगलसैन जैन, प्र० दिम० जन पुस्तकालय मुजफ्फर नगर, भा० हि०, पृ० १६, व०१६३६, मा. प्रथम। नित्य नियम संग्रह-प्र. केशरीमन मोतीलाल जावरा; भा० सस्कृत हि०, पृ०२६५ व० १९४०, मा. द्वितीय । नित्य नेम पूजा भाषा-प्र० मुन्शी नापूराम नमेचू कटनी, भा० हि०,' २३, २० १९०६ । नित्य प्रार्थना-० ज्योति प्रसाद जैन; प्र० स्वय; भा० हि०, पृ. १६ व. १६३२ । नित्य पाठ पूजा गुटका-प्र० धर्मचन्द सराबगी कलकत्ता, भा० हि.सं. पृ. ४६४, २०१९४१, प्रा० द्वितीय । नित्य पाठावलि-ले० अमितगति, अनु० तिलक विजय, भा० स० हि०, पृ० ३०, व० १९२५। नित्य पूजा विधान संस्कृत-प्र. जैन सिद्धान्त प्रचारक मण्डली देववर, मा० म०, पृ. ४६, व० १६०६, आ० प्रथम । नित्य पूजा सम्कृत तथा भाषा--संपा० बद्रीप्रसाद जैन, प्र० स्वयं काशी, मा० स० हि०, पृ० ३४, १० १९०६, मा० प्रथम । निबन्ध दपेण-ले० ब० चन्दाबाई, प्र. देवेन्द्र किशोर जैन आरा, भार. हि०, पृ० १८०, व १८४२, प्रा० प्रथम । निबन्ध माला ( जैन धर्म परिचय )-ने. सुमेवचन्द जैन प्रभाकर, प्र. सरकार प्रादर्स दिल्ली, भा० हि०, पृ० १४४, व. १९४६ । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६८ ) निबन्ध रत्नमाला-ले. बा० चन्दा बाई प्र० कुमार देवेन्द्रप्रसाद मारा; मा. हि०, पृ० १२०, व० १९२०, मा० प्रथम । निमित्त शास्त्रम-ले० महर्षि ऋषिपुत्र, अनु० पं. लालाराम; संपा. वर्षमान पार्श्वनाथ शास्त्री प्र० सपा० स्वय शोलापुर, भा० सं० हि०, पृ० ४४, २०१९४१ । नियम सारखे. कुन्दकुन्दाचार्य, स० टी० पद्मप्रभ मलाधारीदेव; हि० पनु०० शीतल प्रसाद, प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० प्रा० स. हि०, पृ० २२३, व० १६१६, प्रा० प्रथम । निर्ग्रन्थ मुनि शान्तिसागर जी का जीवन चरित्र-ले. ब. भगवानसापर, प्र० ब्र० प्रात्मानन्द गिरीडीह (हजारी बाग), भा० हि०, पृ० ६३, व. १६२७, प्रा० प्रथम । निर्वाण कांड-प्र० ज्ञान चन्द जैन लाहौर, भा० प्रा०, पृ. ८ । निर्वाण कांड (प्राकृत व भाषा)-प्र० बा० सूरजभान वकील, देवबद, भा. प्रा. हि. व० १८१८। निर्वाण भक्ति--ले० पूज्यपादाचार्य, टी० नालाराम, भा० स० हि०; (दश भक्तयादि सग्रह मे प्र०)। निर्माल्य द्रव्य चर्चा--सपा० हीगचन्द नेमचन्द दोशी, प्र० स्वय शोलापुर मा० हि०; पृ० ६८, ५० १९२२ । निशि भोजन कथा-ले. पंडित भारामल्ल जैन और कवि भूधरदास, प्र. जनप्रन्थरत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० २८, व० १६११, प्रा. प्रथम । निशि भोजन कथा (पद्य)-ले०प० भारामल्ल, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भाषा हि०, पृ० २४, प्रा० प्रथम । निशि मोजन भुजन कथा-प्र० बा० सूरजभान वकील देववन्द, भा. हि०, २०१८९८ । नीति वाक्य माला-अनु. ५० मन्दमलाल, प्र० मूलचन्द विशनदार कापडिया सूरत, भा० हि०, पृ. २०५, १० १९२४, आ. प्रथम । Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६९) नीति वाक्यामृत-ले० सोमदेवसूरि, प्र. गोपाल नारायस कम्पनी बम्बई, भा० स०, पृ० १३०, ३० १८६१, प्रा० प्रथम । नीति वाक्यामृतम-ले० सोमदेव सूरि, सपा०पं० पन्नालाल सोनी, प्र. माणिकचन्द दिग० जैन प्रथमाला बम्बई, भाषा म०, पृ० ४६४, ३० १९२२, मा० प्रथम । नोति वाक्यामृतम् (परिशिष्ट)--ले० सोमदेव सूरि, प्र० माणिकचन्द्र जैन प्रथमाला बम्बई, भा० स०, पृ० ८०, व० ११२८, प्रा० प्रथम । नीति सार-ले० इन्द्रनन्दि, भा० सं०, (तत्वानुशासनादि संघह में प्र०)। नीतिसार समुच्चय-ले० इन्द्रनन्दि, संपा० प० गौरीलाल, प्र० सेठ बालचन्द देहसी, भा० स०, पृ० ७६ । नूतन चरित्र-ले० बा० रतनचन्द जैन, प्र० हिन्दी प्रथरत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि । नूतन बोधमाला-ले. संपा० ५० केन्द्रकुमार जैन, प्र० बापूधास नारायस साधारण गाँव, भाषा हिन्दी, पृ० ५०, ५० १६३२ । नेमनाथ का बारह मासा-ले० कवि विनोदी लाल, प्र. बा. सूरजमान वकील, भाषा हिन्दी, वर्ष १८९८ । नेमनाथ पदरौत गिरनार-प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भाषा हिन्दी। नेम चरित्र-ले० विक्रम कविः अनु० उदयलाल काशलीवाल, प्र० जैन प्रथरत्नाकर कार्यालय बम्बई; भा० स० हि०, पृ० ५६, २० १६१४, प्रा० प्रथम । नेमि दूत काव्य-ले० विक्रम कवि; भा० स०। नेमिनाथ स्तोत्र-भा० सं०, (सिद्धान्त सारादि सग्रह में प्र०)। नेमि निर्वाण (काव्य)-ले० महाकवि वाग्भट्ट, सपा० ५० विषदत्त व काशीनाथ पांडरग, प्र. निर्णय सागर प्रेस बम्बई, भा० स०, पृ. ८५, प. १८६६ । नेमि पुराण-ले. ० नेमिदत्त; अनु० उदयलाल कायसीवान; प्र• जैन Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७०) साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई; भा० स० हि०, पृ० ३७६, प्रा. प्रथम । नेमिश्वर विवाह (दो)-प्र० मुन्शी नाथूराम लमेचू, भाषा हिन्दी, १० २३, व० १९०१, मा० प्रथम । नौकारमन्त्र (बेलबूटेदार)-प्र० बा० सूरजभान वकील देवबद, भा० प्रा०, व० १८६८। परमचरियम-२० विमल सूरि, सपा० वी. एम शाह अहमदाबाद, भा० प्रा० पृ० १४८, (प्रथम ४ अध्याय)। पखवाड़ा-ले १० बानतराय, टी०प० मगलसेन, प्र. दिग० जैन पुस्तकालय मुजफ्फर नगर, भाषा हिन्दी, पृ० २०, व० १९३४ प्रा० प्रथम । पतन से उत्थान-ले०प० दीपचन्द्र वर्णी, प्र० सेठ मोहरीलान चादमल महमदाबाद, भाषा हिन्दी, पृ० १२६, व० १६३६, प्रा० प्रथम । पतित पावन महावीर-ले० प्र० कौशल प्रसाद, भा० हि०, ३० १९४६ । पतितोद्धारक जैन धर्म-ले० बा० कामता प्रशाद, प्र. दिग० जैन पुस्तकालय, सूरत भाषा हि० पृ० २०४, व० १६३६, प्रा० प्रथम । पत्र परीक्षा-ले० विद्यानन्द स्वामी; सपा०प० गजाधर लान, भा० स०, पृ० १३, २० १६१३ । पद्म चरित (प्रथम खड)-ले० रविषेणाचार्य, सपा०प० दरबारीलाल, प्र० माणिक चन्द दिग० जैन ग्रन्थ माला बम्बई, भा० स० हि०, पृ. ५११, क. १९२८, प्रा० प्रथम । पद्म चरित् (द्वितीय खड)-ले० रविषेणाचार्य, सपा० ५० दरबारीनाल, प्र. माणिक चन्द दिग० जैन पन्थमाला बम्बई; भा० स० हि०, पृ० ४३३, ३० १९२८ प्रा० प्रथम। पद्म चरित् (तृतीय खड)-ले० विषेणाचार्य, सपा०प० दरबारी नाल, प्र. माणिकचन्द दिग० जैन ग्रन्थमाला बम्बई, भा० स० हि०; पृ० ४४६; . १९२८, आ. प्रथम । पद्म चन्द्र कोष-ले०प० गणेशदत्त, प्र. मेहरचन्द लक्ष्मणदास नाहौर, बा० स०, पृ० ४५२, ५० १८६८, प्रा० प्रथम । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७१ ) पचनन्दि पंच विंशतिका-ने० प्राचार्य पपनन्दि, अनु० पं० गजाधरलाल, प्र० जन भारती भवन बनारस, भा० स० हि०, पृ० ५१३, ब० १९१४, मा० प्रथम । पद्म नन्दि श्रावकाचार-ले० पमनन्दि प्राचार्य, भा० स० हि, पृ० ३% ब० १६३२। पद्म पुराण-ले० रविषेणाचार्य, टी० अनु० प० दौलतराम, प्र. भारतीय बैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ८६०, ३० १९२६ मा० प्रथम । पद्म पुराण-ले. रविषेणाचार्य, टी० अनु० पडित दौलतराम, प्र. जिन वाणी प्रचारक काालय कलकत्ता, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ६६L, व0 १९२., प्रा० तीसरी, पृष्ठ ८६५, व० १९२५, प्रा० द्वितीय। पद्म पुराण-ले० रविषेरणाचार्य, टी० अनु० पडित दौलतराम, प्र० दिग. जैन ग्रन्थ प्रचारक कार्यालय देवबद, भाषा हिन्दी, पृष्ठ १०७६ । पद्म पुराण-ले० रविषेणाचार्य, टी० अनु० पडिन बौलतराम, प्र० बाबू मानचन्द जैनी लाहौर, भाषा हिन्दी; पृष्ठ ११८७ । पद्म पुराण समोक्षा-ले० बाबू सूरजभान वकील, प्र० चन्द्रसेन जैनी वैध इटावा, भाषा हि०, पृष्ठ १३२, व० १६१६, प्रा० प्रथम । पद्म पुष्पांजलि--प्र० पद्मपुरी तीर्थ कमिटी, भा० हि० व. १९४७ । पद्मावती पूजन-प्र० नन्नूमल जैन देहली, भा० हि०, पृ० १६ । पद्मावती क्षेत्रपाल पूजा-प्र० वर्षमान जैन पुस्तकालय देहनी, भा० हि०, पृ० १८। पद्य संग्रह-लेखक यति नैनसुखदास, भा० हि: पृ० ६८ । पंच कल्याणक पाठ-लेखक प० बक्तावर लाल, सपा०प० वद्रीप्रसाद, प्र. जैन पुस्तकालय बनारस, भा० हि०, पृ० ४५, २०१९०६ । पंच कल्याणक पाठ-लेखक प० कमलनयन, प्र. जैन भारती भवन फतहगढ़, भा० हि०, पृ. ४५, ५० १६२६, प्रा० दूसरी । १५ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७२ ) पंचकल्याणक समुच्चय-संग्र० क्ष सक धर्म सागर, प्र० केशरियाप्रशाद चैन शहाबाद, मा० हि०: पृ० १६; व० १६३२ । पंच कल्याण मंगल भाषा - लेखक पाडे रूपचन्द्र, प्र० बा० सूरजमान कील देवबन्द भा० हि०, १० १८६८ । पंच गुरु भक्ति - लेखक पूज्यपाद, भा० सं०, ( दशभक्त्यादि संग्रह में प्र० ) । पंच जैन स्तोत्र संग्रह- - भा० सं० पृ० ४० । - पंच तन्त्र (भाषा टीका ) - प्र० पन्नालाल जैन देश हितैषी श्राफिस बम्बई, भा० सं० हि० । पंच परमेष्टि के गुण - प्र० मगन बाई बम्बई, भा० [हिं०, पृ० २१, ब० १६०६, प्रा० प्रथम । पंच परमेष्टि पूजा - लेखक यशोनन्दि आचार्य, प्र० देवप्पा दुधा मामुट्टे कोल्हापुर, भा० स०, पृ० ६५, व० १६१४ । पंच परमेष्टि पूजन विधान भाषा - लेखक पं० टेकचन्द, सपा० चन्द्रशेखर शास्त्री, प्र० जैन भारती भवन काशी, भा० हि०; पृ० ३४, १० १९२४, प्रा० प्रथम । पंच परमेष्टि बन्दना - लेखक प० मगतराय, प्र० जैनधर्म प्रचारक पुस्तकालय देवबन्द, भा० हि० पृ० ७ ० १९०९, आ० प्रथम । प'चबाल ब्रह्मचारी तीर्थङ्करों की पूजा - लेखक भोलानाथ दरखयाँ, मा० हि०, पृ० १४, व० १६२६, प्रकाशक हीरालाल पन्नालाल जैन देहली । पांच मेरु और नन्दीश्वर पूजन विधान - लेखक प० टेकचन्द, सपा • चन्द्रशेखर शास्त्री, प्र० जैन भारती भवन बनारस, भा० हि०, पृ० ६२, १० १६२४, ० प्रथम । पंचरत्न -- लेखक बा• कामताप्रसाद, ४० मूलचंद किशनदास कापडिया सूरत. भा० हि०, पृ० ६१, ६० १६३३, आ० प्रथम । प' चव्रत - लेखक भोलानाथ दरखश, प्र० जैन मित्र मडन देहली; भा० हि०, पृ० २२, ब० १६३०, श्रा० प्रथम । Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७३ ) प' चस्तोत्रम् प्र० जैन सिद्धात प्रचार मडली देवबन्द, भा० स०, १० ३८, ६० १६०६, प्रा० प्रथम । पंचस्तीत्र संग्रह - अनु० प० पन्नालाल सा० प्रा० प्र० मूलचंद किसनदास कापडिया सूरत, भा० स० हि०, पृ० १४२, व० १९४०, प्रा० प्रथम । प' चसंग्रह - लेखक श्रमितगति श्राचार्य, संपा० पं० दरबारीलाल न्या० बी० प्र० माणिकचंद दिग० जैन० ग्रथमाला बम्बई, भा० सं०, पृ० २४८, व० १६२७, मा० प्रथम । पंचसंग्रह - लेखक अमितगति श्राचार्य; टी० स० प० बंशीवर शास्त्री, प्र० बालचंद कस्तूरचंद गाधी धाराशिव, भा० स० हि०, पृ० ६५६, व० १६३१० प्रा० प्रथम । पंचसुत्त 1- सपा० डा० ए० एन० उपाध्ये, भा० प्रा० । पचाध्यायी लेखक पंडित राजमल्ल, प्रा० गांधी नाथारग प्राकलूज. भा० स०, पृ० २००, वि० १६०६ । पाण्यायी ( सटीक ) - लेखक पाडेरायमल्ल, टी. प. देवकीनन्दन, प्र० महावीर ब्रह्मचर्याश्रम कारजा, भा० स० हिन्दी, पृ० ४७६, ६० १६३२, ० प्रथम । पंचाध्यायी - लेखक पाडेराय मल्ल, टी० पं० मक्खनलाल, प्र० जैन - प्रकाश कार्यालय इंदौर, भा० स० हि०, पृ० ३२६, व० १९१८, प्रा० प्रथम । पंचायती अत्याचार का नमुना-लेखक प्र० अज्ञात, भा० हिन्दी, पृ० १८ । पंचास्तिकाय - लेखक कु दकुन्दाचार्य, स. टी अमृतचन्द्र, और जयसेन, हिन्दी टी० पाडे हेमराज, हि० अनु० पन्नालाल, संपा० पं० मनोहरलाल बाकलीवाल प्र० परमश्रुत प्रभावक मंडल बम्बई, भा० प्रा० स० हिन्दी, पृ० २५५, व० ६१४, प्रा० द्वितीय । पंचास्तिकाय समयसार - लेखक कुन्दकुन्दाचार्य, स० टी० अमृतचन्द्र, हिन्दी, अनु० पन्नालाल बाकलीवाल, प्र० परमश्रुत प्रभावक मंडल बम्बई, भा० प्रा० सं० [हिन्दी, पृ० १७०, १० १९०४ आ० प्रथम । Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७४ ) पंचास्तिकाय टीका (प्रथम भाग)-लेखक कुन्दकुन्दाचार्य, अनु० टी० ब० शीतलप्रसाद, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० प्रा०हिन्दी, पृ० ४२४, व० १९२७, प्रा० प्रथम । पचास्तिकाय टीका ( दूसरा भाग )-लेखक कुन्दकुन्दाचार्य, अनु.. शीतलप्रसाद, प्र. दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० प्रा० हिन्दी, पृ० २४५, व० १६.८, मा० प्रथम । पचास्तिकाय (हिन्दी पद्य)-लेखक पाडे हीरानन्द, प्र. जैन साहित्यप्रसारक कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० २००, व० १६१५, प्रा० प्रथम । पचेन्द्री संवाद-लेखक कविवर भगवतीदास, प्र० जनपथ रत्नाकरकार्यालय बम्बई, भा० हिन्दी, पृ० १६, व० १९१२, प्रा० प्रथम । पट्ठावली समुच्चय-सपा० दर्शन विजय जी, भा० हिन्दी, पृ० २५६, व० १६३२। परमात्म प्रकाश-लेखक योगीन्द्र देव, स० टी० ब्रह्मदेव, हि० टी० पं० दौलतराम, संपादक प० मनोहरलाल, प्र० परमश्रु त प्रभावक मडल बम्बई, भा० अप० स० हि०, पृ० ३५५, व० १६१५, प्रा० द्वितीय । परमात्म प्रकाश-लेखक योगीन्द्रदेव, हि० अनु० बा. सूरजभान वकील, प्र०अनु० स्वप देवबन्द, भा० अप० हि०, पृ० ५८, २०१९०६, प्रा० प्रथम । परमात्म प्रकाश योगसारश्च-लेखक योगीन्द्रदेव, स० टी० ब्रह्मदेव, हि. टी० ५० दौलतराम, सपा० डा० ए एन उपाध्ये, प्र. परमश्र त प्रभावक मंडल बम्बई, भा० अप० सं० हिन्दी, पृ० ३६४, व० १६३७, प्रा० द्वितीय । परमाध्यात्म तरंगिणी-लेखक अमृतचन्द्राचाय, स० टी० भट्टारक शुभचद्र, हि० टी० ५० जयचन्द्र, प्र० भारतीय जैन सिद्धात प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० म० हिन्दी, पृ० २३६, मा० प्रथम । परमार्थ जकड़ो-प्र. बा. सूरजमान वकील देवबन्द, भा० हिन्दी, व १८१८ परमार्थ अकड़ी संग्रह-प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकरकार्यालय बम्बई, भा० हि, पृ० २६, ५० १६११, प्रा. प्रथम । Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परमार्थिक पदार्थ विहान-लेखक पं० दरयावसिंह सोषिया, प्र० परवार बन्धु कार्यालय जबलपुर, भा०हि०, पृ० ३३, मा० प्रथम । । परमेश्वर की सचा-लेखक अज्ञात, भा० हि । परमेष्ठी पद्यावली-लेखक प० परमेष्ठीदास, प्र. जौहरीमब जन सर्राफ देहली, भा० हि०, पृ० ५२, ५० १६३४, प्रा० प्रथम ।। पयूषण पर्व-लेखक ज्योतिप्रसाद जैन, प्र. जैन सभा मेरठ, भा० हि., पृ० १६, व० १९४०, प्रा० प्रथम । पyष पव-लेखक सूरजमल जन, प्र. स्वय संपा० जनप्रभात इन्दौर, भा० हि०, ०४८ । परिशिष्ट पर्व (प्रथम भाग) - लेखक हेमचन्द्राचावं, सपा० मुनि तिलक विजय, भा० हि०, पृ० १८६, व० १६१५ । परिशिष्ट पर्व (द्वितीय भाग)-लेखक हेमचन्द्राचार्य, स० मुनितिलक विजय, भा० हि०, पृ० १६६, व १६१६ । । परीक्षा मुखम्-लेखक माणिक्यनन्दि, प्र० गाधी नाथारग जी पाकलूज, भा० स०, पृ० १२८ व० १६०४ । परीक्षामुख-लेखक माणिक्यनन्दि, अनु० ५० गजाधरलाल, प्र० भारतीय जन सिद्धात प्रकाशनी संस्था कलकत्ता, भा० स० हि०, पृ. ८०; व. १९१६, पा० प्रथम । परीक्षामुम्ब-लेखक मारिणकयनन्दि, अनु० पं० घनश्यामदास, प्र० स्वयं, भा० स० हि, पृ० ६४, १० १६०५, मा० प्रथम। . परोक्षा मुखम प्रेमय रत्नमाला सहित-लेखक माणिक्यचन्द्राचार्य, अनन्तवीर्याचार्य, सपा० प० फूलचन्द्र शास्त्री, प्र० बालचन्द्र शास्त्री, भा० स०, १० २१०, १०, १९२८ । परीक्षामख लघवृत्ति-लेखक अनन्तवीयं. भा. स., पृ० ८७. ध. १६.६। प्रतिक्रमण-- मा० सं० हि०, (दशभक्त्यादि संग्रह में प्र०)। Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७६ ) प्रतिमाचालीसो-प्र० बा० सूरजभान वकील देवबन्द, भा. हिव० १८१८। प्रतिमालेख संग्रह-सण० कामता प्रसाद जैन, प्रभजन सिद्धात भवन मारा, भा० स० हि०, पृ० ३६, ५० १६३६, प्रा० प्रथम । प्रतिष्ठातिलक-लेखक नेमचन्द्राचार्य, भा० स०, पृ० ८११; व० १९१४ ॥ प्रतिष्ठा पाठ-लेखक जयसेनाचार्य; प्र० सेठ नेमचन्द हीराचन्ददोशी बोलापुर; भा० स०, पृ० ३०८, २० १९२५, प्रा० प्रथम । प्रतिष्ठासार समह-स० ० शीतलप्रसाद, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सुरत भा० स० हि०, पृ० २२३, व०१६२८, प्रा० प्रथम । प्रतिष्ठासारोद्धार-लेखक प० प्राशाघर, अनु०प० मनोहरलाल शास्त्री; प्र. जैनग्रन्थउद्धारककार्यालय बम्बई; भा० स० हि०, पृ. १४४, व. १९१८, प्रा० प्रथम । पद्य म्न चरित्र-लेखक दयाचन्द्र गोयलीय, प्र. सब्दोध रत्नाकर कार्यालय सागर, भा० हिन्दी, पृ० १०; २० १९१४; प्रा० प्रथम । प्रद्य म्न चरित्र - लेखक सोमकीर्ति आचार्य; टी. मनु० नाथूराम प्रेमी, प्र० जैन ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० स० हि०, पृ० १६७, ब. १९२२, प्रा० द्वितीय, पृ० ३४४, व० १६३६, प्रा० तृतीय । प्रद्य म्न चरित्र-लेखक सोमकीर्ति प्राचार्य, प्र० जिमवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० स० हिन्दी, पृ० २६४ । प्रद्य म्न चरित्र-लेखक सोमकीत्ति आचार्य, अनु० बुधमल पाटणी व नाथूराम प्रेमी, प्र० जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० स० हिन्दी, पृ० १६७, व० १६०८, प्रा० प्रथम । प्रधम्न चरितम् काव्य-लेखक महासेनाचार्य, सपादक प० मनोहरलान शास्त्री, प० रामप्रसाद शास्त्री, प्र० मरिणकचन्द दिगम्बर जैन प्रथ माला बबई, भा० स०, पृ० २३६, व० १९१७, प्रा० प्रथम । प्रबन्धावली-लेखक पूरणाचन्द्र नाहर, भा० हि०, पृ० २०३, २० १९३७ । Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०७ ) प्रबोध पच्चीसी लेखक प्रबोधकुमार जैन, प्र० बा० देवेन्द्र किशोर द्वारा, सा० हि० पु० ३६, व० १६३७, प्रा० प्रथम प्रबोधसार —- लेखक भट्टारक यशः कीर्ति, अनु० पं० लालाराम, प्र० रावजी सखाराम दोशी सोलापुर, भा० स० हि० पृ० २२८ व० १९२८, प्रा० प्रथम । प्रभंजन चरित्र - मे० भज्ञात, अनु० प० घनश्याम दास, प्र० जैन ग्रन् कार्यालय ललितपुर, भा० हि० पृ० ४२; १० १६१६, प्रा० प्रथम प्रभावशाली जीवन- प्रनु० माई दयाल जैन, मा० हि० पु० १२० ० १९३१ । प्रभु पूजा या बच्चों का खेल - ले० ताराचन्द शास्त्री, मा० हि२, पृ० २७ । प्रभु विलास - ले० प्रज्ञात, प्र० जैनग्रथ प्रचारकपुस्तकालय देवद मा० हि०, पृ० ३०, व० १६११; श्र० द्वितीय | प्रमाण नयतत्त्ववालो कालकार - ले० वादिदेव सूरि, टी० रत्नप्रभाचार्य, भा० सं०, पृ० २०२, ० १६१० । प्रमाण निर्णय - ले० वादिराज सूरि, सपा० प० इन्द्रलालशास्त्री न ५० खूबचन्द शास्त्री; प्र० माणिक चन्द दिग० जैन वथमाला बम्बई, भा० सं०, पृ० ८०, व० १३१७, भा० प्रथम । प्रमाण परीक्षा - ले० बिद्यानन्द स्वामी, भा० स०, पृ० ३०, ब० १६१४। प्रमाण संग्रह - ले० प्रकलकदेव, भा० सं. ( अकलक ग्रन्थत्रयम् मे प्र० ) । प्रमेय कमल मार्त्तण्ड -- ले० प्रभाचन्द्राचार्य, सपा० प० वंशीवर शास्त्री, प्र० निर्णय सागर प्रेस बम्बई भा० स० पृ० २११, १० १६१८, आ० प्रथम । प्रमेय कमल मार्त्तण्ड ( प्रथम भाग ) - ले० प्रभाचन्द्राचाय प्र० प्रज्ञात, भा० स० । प्रमेय कमन मार्त्तण्ड (द्वितीय भाग) - ले० प्रभाचन्द्राचार्य, प्र० अज्ञात, मा० स० । प्रमेय रत्नमाला - बे० अनन्त वीर्याचार्य, प्र० जैन साहित्य प्रसारक Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७८ ) कार्यालय बम्बई, भा० सं०, पृ०८८, व० १९२७, प्रा. प्रथम । प्रमेय रत्नमाला-ले० अनन्तवीर्याचार्य, प्र. जैनसाहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई, भा० स०, पृ० १२८ । प्रमेय रत्नमाला-ले० अनन्त वीर्याचार्य, टी० ५० जयचन्द्र छावडा, प्र. मुनि अनन्त कीति ग्रन्थमाला बम्बई, भा० स० हि०, पृ० २२३, प्रा. प्रथम । प्रवचन सार-ले० कुन्दकुन्दाचार्य, स० टी० अमृतचन्द्राचार्य, जयसेनाचार्य, हि० टी० पाडे हेमराज, संपा० डा० ए. एन. उपाध्ये, प्र० परमश्रुत प्रभावक मडल बम्बई, भा० प्रा० स० हि०, पृ. ५८५, व० १६३५, प्रा० द्वितीय । प्रवचनमार परमागम-ले० कविवर वृन्दावन जी, सपा०प० नाथूराम प्रेमी, "० जन हितैषी कार्यालय, भा० हि०, पृ० २३२, व० १६०८, प्रा० प्रथम। प्रवननसार टीका-(प्रथम खण्ड)-ले. कुन्दकुन्दाचार्य, टी० अनु० अ. शीतल प्रसाद; प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत; भ० प्रा० हि. पृ० ३७३; व० १६२४, प्रा० प्रथम । प्रवचनसार टीका (द्वितीय खण्ड)-ले० कुन्दकुन्दाचार्य, टी० अनु०७० शीतल प्रसाद, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत; भा० प्रा० हि, पृष्ठ ३६६, व० १६२५, प्रा० प्रथम । प्रवचनसार टीका (तृतीय खण्ड)-ले. कुन्दकुन्दाचार्य, टी. अनु. ब्र. शीतल प्रमाद, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भाषा प्रा० हिन्दी, पृष्ठ ३६३, व०१६२६; प्रा० प्रथम । प्रश्न मालिका-ले०प० शिवचन्द्र, प्र० स्वय, भा० हि०, पृ० १२, व. १८८६ । प्रश्नोत्तर दापिका-ले. पं० शिवचन्द्र, प्र० स्वय, भा० हि०, पृ० २४, प० १८६१। प्रश्नात्तर माणिक्य माला-ले० पूज्यपाद; भा० स०, पृ० १-७, २० १६०८ । Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७६) - प्रश्नोत्तर रत्नमालिका-ले० अमोघ वर्ष, अनु० जिनवरदास, प्र० जैनपन्थ रत्नाकर कार्यालय बबई; भा० सं० हि०, पृ० २४, २० १९०८, मा० प्रथम । प्रश्नोत्तर श्रावकाचार-ले. सकल की ति भट्टारक, टी० अनु० ५० लालाराम, प्र. दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, भा० स० हि०, पृ. ३०६,व० १६२७ प्रा० प्रथम । प्रश्नोत्तर सर्वार्थ मिद्धि-सपा० बा० नेमीदास एडवोकेट, प्र० ला० जैनीलाल सहारनपूर, भा० हि०; पृ० ३१४, प्रा० प्रथम। । । प्रशस्ति सग्रह-सपा० के० भुजबील शास्त्री, प्र. जैन सिद्धान्त भवन पारा, भा० म० हि पृ० २२०; व. १९४१, मा० प्रथम । . प्रस्तुत प्रश्न-ले० जनेन्द्र कुमार; भा० हि०, पृ० २५८, व० १६३६ । . प्राकृत दशलानणिक धम- ले०५० रइधु; प्र० जन अन्य रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० प्रा० हि०, पृ० २७; व० १६०७, मा० प्रथम । प्राकृत भाव संग्रह-ले० देवमेनाचार्य, भा० प्रा०, (भाव सग्रहादि मे प्र) प्राकृत व्याकरमा-लेखक त्रिविक्रम, भा०, प्रा०, ०१३६ व०१८६६ । प्राकृत षोडश कारगा जयमाला--प्र० जैन साहित्य मदिर सागर, भा० प्रा० हि० , पृष्ठ ११६, व० १९२६, मा० प्रथम । । प्राकृत सुभाषित सग्रह-अनु० मपा० प्रो० शाह सूरत, भाषा प्रा० । प्राचीन कलिंग या खारवेल-ले० गगाधर सामन्त, भा० हि, पृ० १७८; व० १६२६ । . प्राचीन जिनवाणी सग्रह-प्र० वर्धमान पुस्तकालय देहली, भाषा स. हि । प्राचीन जैन इतिहास (प्रथम भाग)-ले० सूरजमल जैन, प्र. दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० १०, पृ० १५०व० १६१६: प्रा० प्रथम । प्रागनरेन इतिहास (द्वितीय भाग)-ले० सूरजमल जैन, प्र. दिगर जैन पुस्तकालय सूरत, भा• हि०, पृ० १७२, व० १९२१, प्रा. प्रथम । Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८९) प्राचीन जैन इतिहास (वीय भाग)-० सूरजमल बैनः प्र हिगम्बर बेन पुस्तकालय पुरत, भा० वि०, पृ० १२६, व. १६३६ मा. प्रथम ।। प्राचीन बैन पद शतक-ले विभिन्न प्र• दुलीचन्द्र परवार कनका मा० हि०, पृ०४८। प्राचीन जैन लेख संग्रह-ले० बा० कामता प्रसाद, मा० हि०, पृ०१०३, ब० १६१६। प्राचीन दिगम्बर अर्वाचीन श्वेताम्बर-ले. तात्या वेमिनाथ पांगस, . ३६, व० १९११ प्रायश्चित चूलिका-लेखक पुल्वास, टी. नन्दिगुरु, मा० स०, (प्रायश्चित संबह मे प्र०)। प्राणप्रिय काव्य-लेखक मुनि रलसिंह, मनु० संपा०प० नापूराम प्रेमी, प्र. बैनग्रन्य रत्नाकर कार्यालय बम्बई, मा० म. हिन्दी, पृ. २१, २० १९११, भा० प्रथम। प्रातः स्मरण मंगल पाठ (पद्य)-प्र० ना• सूरजभान वकील देवबन्द्र, मा० हि०, व० १८९८ प्रायश्चित प्रथ-लेखक अकलकदेव, भा० स०, (प्रायश्चित संग्रह में प्र०), प्रायश्चित संग्रह (प्रथ)-लेखक विभिन्न प्राचार्य, संपा० पं० पन्नाबाल सोनी, प्र० माणिकचन्द्र दिगम्बर जैनमन्थमाना बम्बई, मा० सं० प्रा०, पृ० २००, ५० १६२१, प्रा० प्रथम । प्रायश्चित समुच्चय (चूलिका सहित)-लेखक प० गुरुदास, मनु० पं. पन्नालाल सोनी, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० स०, पृ० २१६, २० १६२६, आ० प्रथम । प्रार्थनास्तोत्र-लेखक कवि भूधरदास व ५० भईनलाल सेठी, प्र. बौहरीमल जैन सर्राफ देहली, भा० हि०, पृ० १६, व० १९३२ । प्रेमकली-सपा० कुमार देवेन्द्र प्रसाद बन, भा० हि, पृ० १६० । Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रेमोपहार (रि)-सक कन्हैयालाल मैं; माहि०.०३६ २० प्रेमोपहार के खिो खिलाये फूल- मार देवप्रसार को परीक्षापत्र-लेखक धर्मदास मुल्यक, प्र० स्वयं पारा, भा• हि०, १७,५०१ पवन दूत काव्य-लेखक वादिचन्द्र परि, मनु. २० उदयला, काशनीपाल, प्र० जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई, ०७० हि०, १० १२. का १९१५, मा० प्रथम । पशुबलि निषेध-लेखक धीरेन्द्र कुमार शास्त्री. मा० हि,. १० १८, पाइअलच्छी नाम माला-लेखक धनपाल; मा. प्रा०, १० १६४ क १९१६॥ प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ-सं० ग. वासुदेववरह मावाल धादि; प्र. प्रेमी भभिनन्दन समिति, भा० हि०, पृ. ७५१, २० १९४६ । पाइय सहमहाएगवो-सपा. पं. हरगोविंददास री. शाह. बलकत्ता मा० प्रा०, ५० १९२८, (४ भाग)। पाठ्य पूजा संग्रह (प्रथम भाग)-प्र० विशम्बरदास न दोहतक मा हिं० सं०, पृ० ४८ व० १९४०, मा० प्रथम । पाठ्यय पूजा संग्रह (मरा भाग)-० विम्बरदास जैन रोहतक, मा. हि० सं०, पृ. ७८ व० १९४०; मा. प्रथम । पांडव पुराण-लेखक शुभचन्द्र भेट्टारक, अनु० ५० घनश्यामदास, प्र. चैव साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई; भा० स० हिन्दी; पु. ४००, व १९१६ पा० प्रथम । पांडव पुराण (सचित्र)-लेखक शुभचन्द्र भट्टारक, संपा० नन्दनलाल जैन, प्रा० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता; भा• हि०. ० ३५८ . १६३६ मा०प्रम। Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८२ ) पांडव पुराण अथवा जैन महाभारत - लेखक शुभचन्द्र भट्टारक, सपा पं० श्रीनिवास जैन, प्र० जैनग्रंथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई; भा० स० हिल पृ० ४२२, व० १६३६, मा० प्रथम 1 पांडव पुराण भाषा ( छन्द बद्ध ) -- लेखक प० बुलाकीदास; भा० हिन १० ४०४, व० १६०८ । पात्र केशर स्तोत्र - लेखक प्राचार्य पात्र केशरी; अनु० प० लालाराम प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी संस्था कलकत्ता, भा० स० हि०, पृ० ५५० धा० प्रथम । पात्र केसरि स्तोत्र सटोक — लेखक विद्यान द स्वामी, भा० सं०, ( तत्त्वाबुशासनादि सग्रह मे प्र० ) । पार्श्वनाथ चरितम् ( काव्य ) - ले० वादिराज सूरि, भा० स०, पृ० ११८, ब० १६१५ । पार्श्वनाथ चरित्र - लेखक वादिराज सूरी, स० पं० मनोहरलाल, प्र० माणिकचन्द्र दिम० जैन ग्रंथ माला बम्बई, भा० स० पृ० २१६, १० १६१६, प्रा० प्रथम । पार्श्वनाथ चरित्र - लेखक वादिराज सूरी, अनु० प० श्रीलाल का. ती., प्र० जयचन्द्र जैन कलकत्ता, भा० स ० हि०, पृ० ४२५, व० १६२२, प्र० प्रथम पाश्वं पुरण (पद्य) - लेखक कविवर भूधरदास जी, प्र० जैनग्र'थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ८५, व० ४० १७६, व० १९१५, प्रा० द्वितीय । १६०७, आ० प्रथम, - पार्श्व पुराण - लेखक कविवर भूषरदास जी; प्र० जिनवासी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा• हि०, पृ० ११ । पार्श्व पुराण -लेखक कविवर भूधरदास जो, प्र० ला० जैनी लाल देवबद, हि० पृ० १२० । भा० पार्श्व पुराण -- लेखक कविवर सुघरदास जी, सपा मुन्शी भमनसिह, प्र. स्वयं सौंपा० देहली, मा० हि०, पृ० २६४, २०१८६८, प्रा० प्रथम । Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८३) पाश्वनाथ स्तुति ( भाषा कल्याण मन्दिर )-लेखक भाचार्य कुमुदचन, ह, पद्य. अनु०प० बनारसीदास जी, प्र. मुन्शी प्रमनसिंह देहली, भाव 'हि., पृ० १५, २०१८६६, प्रा० प्रथम । पार्श्वनाथ स्तोत्र (लक्ष्मी स्तोत्र)-ले० पद्मनन्दि मुनि, भा० सं०, १० ६, (सिद्धान्त मारादि सग्रह मे प्र०)। चयज्ञ-लेखक पं० अर्जुनलाल सेठी, स पा० प्रकाशचन्द्र सेठी; प्र० अन्य भ डार खम्बई, भा० हि०, पृ० ५५, व० १६२३, मा० प्रथम । पाश्र्वाभ्युदयम ( काव्य)-लेखक जिनसेनाचार्य, स टी योगिरा; प्र. सेठ नाथारग जी गांधी पाकलूज, भा० स २, पृ० २७१; व. १९०६, प्रा. ' प्रथम । पावन प्रवाह-लेखक प० चनमुखदास; अनु०प० मिलाप चन्द्र; प्र. ५० श्रीप्रकाश जयपुर, भा० स० हि०, पृ० ६६, व० १६४२, प्रा० प्रथम । पाहड दोहा-लेखक मूनि रामसिहा स पा० प्रो० हीरालाल जैनः प्र० गोपाल अम्बादास चवेर कारजा, भा० अप० हि०; पृ० १३६, २० १९३३%; मा० प्रथम। पिता के उपदेश-ले. दयाचन्द्र गोयलीय; भा० हि०; पृ० २२; व. १९३१ । पिंडशुद्धि अधिकार व मुनि आहार विधि-प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १७, व० १६२६; मा० दूसरी। पी. एल. जागरफी (प्रथम भाग)- सग्रह. सपा०५० प्यारेलाल जैन, प्र. स्वय अलीगढ, भा० हि०, पृ० ६६, व० १९२०, आ. प्रथम । पी. एल. जागरफी (द्वितीय भाग)-स० सग्र० ५० प्यारेलाल जैन, भा० हि०, पृ० ५६, व० १६२१, प्रा० प्रथम । पी. एल. जागरफो ( तृतीय भाग )-स पा०प० प्यारेलाल जैन, प्र. स्वयं अलीगढ़, भा० हि०, पृ० २३६, मा० प्रथम । पुण्यप्र भाव-लेखक अज्ञात, भा० हि० । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८४ ) पुण्याश्रव कथा कोष – लेखक रामचन्द्र मुमुक्षु, अनु० संपा० प० नाथूसम प्र ेमी, प्र० जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई, भा० सं० हि० पृ० ३२६ व १६१६, प्रा० द्वितीय । पुण्या श्रव कथा कोष -ले० रामचन्द्र मुमुक्ष, धनु० सपा० प० नाथूराम प्रेमी, प्र० श्रीमती प्रसन्न बाई बम्बई, मा० स० हि०, पृ० २३९, १० १६०७ । पुण्याश्रव कथा कोष (सचित्र) - ले० परमानद विशारद, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हिन्दी, पृष्ठ ३६६, वर्ष १६३७, प्रा० प्रथम । पुनर्विवाह जैन शास्त्रोक्त नहीं है - ले० त्रिलोकचन्द दौलतराम, भा० हि०, पृ० है । पुरातन जैन वाक्य सूची - -मक० सपा० प० जुगलकिशोर मुख्तार, प्र० वीर सेवा मंदिर सरसावा, भा० प्रा० हि० । पुराण और जैन धर्म - लेट हमराज शर्मा, मा० हि०, पृ० १०६, वर्ष १९२६ । पुराण परीक्षा - ले० लालता प्रसाद जैन, प्र० स्वय कायम गण, भा० हि०, पृ० ५२, ० १६०७, प्रा० प्रथम | पुरुदेव चम्पु - ले० महाकवि श्रद्दास, सं० टी० व सपा० जिनदास शास्त्री, प्र० माणिक चन्द्र दिग० जनग्रन्थ माला बम्बई, भाषा स०, पृष्ट२१२, ब० १६२८, प्रा० प्रथम । पुरुषार्थ मिद्धयुराय -- ले० अमृतचन्द्राचार्य, टी० पं० नाथूराम प्रेमी, प्र परम श्रुत प्रभावक मंडल बम्बई, भा० स० हि०, पृष्ठ ११५, व० १८०४. श्र० प्रथम । टी० वा० सूरजभान वकील, १६०६, प्रा० प्रथम । पुरुषार्थ सिद्धयुपाय - ले० अमृतचन्द्राचार्य, टी० प० मत्रखनपाल, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० स० हि०, पृ० ४७९; ब० १६२६, आ० प्रथम । पुरुषार्थं सिद्धयुपाय - ले० अमृतचन्द्राचार्य, प्र० स्वयं देवबंद, भा० स० हि०, पृष्ठ ४२, व० Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८५) पुरुषार्थ सिद्धयुय-ले० अमृतचन्द्राचार्य, टी०५० उग्रसेन एम. ए.; प्र. जैन एसोसियेशन रोहतक, भा० सं० हि०, पृ. १६६; 4. १६३३, मा प्रथम । पुरुषार्थ सिद्धयुपाय-ले० अमृतचन्द्राचार्य, भा० सं०, पृ०१६ (मूल)। पुरुषार्थ सिद्धयुपाय-ले. अमृतचन्द्राचार्य, टी०५० टोडरमल्ल जी व पं. सत्यंघर जी, प्र. जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० सं० 'ह०, पु. १२४, २०१६३०, मा. प्रथम । पुष्पमाला-ले० श्री मद्राजचन्द्र, अनु० जपदीशचन्द्र, भा• हि०, पृ. १२०, व० १६३७ । पुष्पोषवन-अनु० पडित मेहरचन्द जैन, भा० हि०, पृ. ३३१, १० १८८८, प्रा० प्रथम। पूजाचर्या-ले० पण्डित मक्खन लाल प्रचारक, प्र० स्वय देहली, भा. हिन्दी, पृष्ठ ३२, व० १६३१, प्रा० प्रथम । पूज्यपाद श्रावकाचार-ले० पूज्यपादाचार्य, सम्पादक ५० पन्नालाल बाकलीवाल, प्र. जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय कलकत्ता, भा० स०,पृ० ३६, ३. १९३१, प्रा० प्रथम । पूर्ण दर्शन-ले० प्रेमी सहारनपुरी; प्र०प्रेम भवन सहारनपुर, भा० हि १.३२ प्रा० प्रथम । पोरों की कहानियाँ-प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा. फीरोजाबाद शास्त्रार्थ-मा० हि०, पृ० ३४, व. १८८८ प्रा० प्रथम । बड़ी बहू बड़े भाग-प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भाषा हिन्दी। बदन्त का बारह मासा-ले० ५० भूधरदास, प्र. वा. सूरजमाव अकील देवबंद, भाषा हिन्दी, २० १८९६। बड़े बाबा या भगवान महावीर-प्र. जन सेवा दल दमोह, भाषा हिन्दी, ६२६४ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५६ ) बनारसी नाम माला - ले० पण्डित बनारसीदास जी, सपा० पं० लुगलकिशोर मुख्तार, प्र० वीर सेवा मन्दिर सरसावा, भा० हिन्दी पृ० १०८ २० १९४१; आ० प्रथम । बनारसी विलास - ले० कविवर बनारसीदास, सपाट प० नाथूराम प्रेमी, प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ३६८, व० १९०६, प्रा० प्रथम | बम्ब प्रान्त के प्राचीन जैन म्मारक -मग्र० पा० ब्र० शीतल प्रसाद, प्र० सेठ माणिकचन्द पानाचन्द जौहरी बम्बई, भा० हि०, पृ० २३२, व० १६२५, आ० प्रथम । बम्बई मे शुद्ध दिगम्बराम्नाय मन्दिर निर्माण पत्रिका -- प्र० जैन पचान बम्बर; भा० हि०, पृ० १६, ० १८८८ । बवाना काण्ड - प्र० बा० छोटेलाल जैन कलकत्ता, भा० हि०, पृ० २६, ब० १६२६, प्रा० प्रथम । व्याहली नेमनाथ का (पद्य) - प्र० बा० सूरजभान वकील देवबन्द, भा० हि व० १८६८ । व्याहता बहु - ले० बा० सूरजभान वकील, प्र० साहु जुगमन्दरदास नजीबाबाद, भा० हि०, पृ० ४५, व० १६१५ । बलदेव भजनमाला - सपा० मूलचन्द गुप्त, भा० हि०, पृ० ११२ । बलिदान या अनोखा बदला - ले० फकीरचन्द वियोगी, प्र० हरिवश एण्ड को देहली, भा० हि०, पृ० ६४, व० १६४० । ० ब्रह्म विलास - ले० भैया भगवतीदास, सा० १० नाथूराम प्रेमी, प्र० जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, मा० हि०, पृ० ३०५, ० १६२६, द्वितीय; - प्रथम ग्रा० १६०४ । ० बहिरग शुद्धि अथवा मोक्ष पात्रता - ले० प० मक्खनलाल प्र० श्री निवास शास्त्री कलकत्ता, भा० हि०; पृ० ३५, व० १६३८ । बगाल बिहार उड़ीसा के प्राचीन जैन स्मारक - सपा० ० शीतलप्रसाद Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८७ ) म० वैजनाथ सरावागी कनकत्ता, भा० हि०, पृ० १४७, ५० १९२३, प्रा० प्रथम । ब्रह्म गुनाल चरित्र -- भाषा हिन्दी । ब्राह्मर्गा की उत्पति -- लेखक बा० सूरजभान वकील, प्र० स्वयं, भा० हि०, पृष्ठ ३४, १० १६१८ । वाइस परिषह - ले० प० भूघरदाम, प्र० ज्ञानचन्द जैनी लाहौर, भा० हि० ० १६, ६० १६१२ । बाइस परिषद -- प्र० बाट सूरजभान वकील देवबन्द, भा० हि०, पृ० १६, ब० १८६८, आ० प्रथम | बाइस परिषद् - प्र० बा० ज्ञानचंद जैनी लाहौर, भा० हि०, पृ० ६४ व० १६०५, प्रा० प्रथम | बारमा - ले० कुन्दकुन्दाचार्य, टी० अनु०५० मनोहर लाल ब पति नाथूराम प्रेमी, प्र० हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० प्रा० हि०, पृ० ४०, व० १६१० आ० प्रथम । बारह भावना - ले० बा० रामप्रसाद 'मधुर', प्र० जैन युवक मंडल एटा भाषा हिन्दी; पृ० २७ व० १९३६ । बारह भावना भाषा - प्र० बा० सूरजभान वकील देवबद; भाषा हिन्दी, व० १८६८ । बारह खड़ी सूरत - प्र० जैन ग्रंथ प्रचारक पुस्तकालय देवबंद, भाग हि०, पृ० २०, व० १६१२, प्रा० द्वितीय । बारह मासा - ले० गुलशन राय; प्र० स्वयं देहली, भा० हि०; पृ० ७, व० १९३१; प्रा० प्रथम । बारह मामा नेमिराजुल - ले० कवि नयनसुखदास, संपा० पुष्प जैन भिक्खु, प्र० नानकचन्द बनारसी दास देहली, भा० हि० पृ० ५६, व० १६३७, प्रा० प्रथम । बारह मासा मुनिराज - ले० जीयालाल, प्र० जैन पुस्तकालय इटावा, मा० हि० पृ० ७ १० १६०८ श्र० द्वितीय । Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८८) बारह मासा राजलले नयनसुखदास, प्र० जैन ग्रंथे प्रचारक पुस्तका देवबन्द, मा० हि०; पु० ६; १० १६२४, प्रा० पंचम ॥ बारह मासा संग्रह - प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि० पृ० १७ । बारह मासा संग्रह - प्र० वा० सूरजभान वकील देवबन्द, भाषा हि०० १५६८ । बारह मासा संग्रह - ले० पण्डित नयनानन्द, प्र० नरायणदास जंगलीमच देहली, भा० हि०, पृष्ठ ४०, व० १६०० । बालक भजन संग्रह (प्रथम भाग ) - ले० मास्टर भूरेलाल; प्र० हीराला पन्नालाल देहला, भा० हि०, पृ० १६, ० १६२५, श्रा० प्रथम । बालक भजन संग्रह (द्वितीय भाग ) - ले० मास्टर भूरेलाल; प्र० हीरालाल पन्नालाल देहली, भा० हि० पृ० २० व० १६२५, प्रा० प्रथम 1 बालक भजन संग्रह (तृतीय भाग) - ले० मास्टर भूरेलाल; प्र० हीरालाल बन्नालाल देहली, भा० हि०, पृ० १६, १० १९२५, आ० प्रथम । बालक भजन संग्रह (चतुर्थ भाग ) - ले० मास्टर भूरेलाल; प्र० हीरालाम पन्नालाल देहली, भा० ति०, पृ० १६; १० १९२५, ० प्रथम । बालक भजन संग्रह ( पचम भाग) – ले० मास्टर भूरेलाल; प्र० प्र० पाव सागर, कुन्थलगिरि, भा० हि०, पृ० २४, व० १९२४ ० प्रथम । बाल गणित -- ले० दयाचन्द जैन; प्र० भारतवर्षीय प्रनाथ रक्षक जैन सोसाइटी हिमार, भा० हि०, पृ० ६४, व० १६११; प्रा० प्रथम । बाल चरितावली - ले० श्रज्ञात; भा० हि० । बाल पुष्पांजलि. - सपा० मा० शिवरामसिंह, प्र० स्वयं रोहतक; भा० ह. पृ० १८, व० १६३४, प्रा० प्रथम । G बालबोध जैन धर्म (प्रथम भाग ) - ले० दयाचन्द गोयलीय; प्र० रूपचन्द गोलीय गढीबुल्लाखा० भा०हिंदी, पृष्ठ ८, व० १६१६, प्रा० नवम । " बाल बोध जैन धर्म (दूसरा भाग) - ले० दयाचन्द गोयलीय, प्र० बालकृष्ण रामचन्द्र घाणेकर, भा० हि०, पृ० १६, ० १११२, मां० तृतीय । Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) बालबोध जैन धर्म (तीसरा भाग ) - लेखक दयाचन्द्र गोयलीय व लाला खम शास्त्री, प्र० भारतवर्षीय शिक्षा प्रचारक समिति जयपुर, भा० हि०, पृ० ३०, १०. १९१२, मा० प्रथम ! बालबोध जैन धर्म (चतुर्थ भाग ) - ले० दयाचन्द्र गोयलीय, प्र० जैन अन्य रत्नाकर कार्यालय बम्बई, मा० हि०, पृ०७२, १० १११५, ० दूसरी ३ बालमित्र (भाग १ व २) -लेखक पन्नालाल जैन, प्र० देश हितेषी माफिस बम्बई भा० [हिं० । बालविवाह - ले० ला० हजारीलाल, प्र० जैन तत्त्व प्रकाशनी सभ इटावा: भा० हि०, पृ० २६, १० १६१४, मा० प्रथम । बालशिक्षा -ले० बुधमल सुरत, भा० हि० पृ० ३२, १० १६१५, प्रा० प्रथम । बालिका विनय-संपा० पं० चन्दाबाई, भा० हि० पृ० ६४, व० १६२११ पाटनी, प्र० मूलचन्द किशनदास कापड़िया बाहुबलि स्वामी व पंच बालयति तीर्थ कर पूजा - लेखक पं० दीप वन्द, • म रघुनाथदास प्रेमचन्द जैन तिखावर भा• हि०, पृ० ८ व १६३६६ प्रा० यस्र । बिगड़े का सुवार नाटक - प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्त बा० हि० । बीस प्रश्नों का स्वर-लेखक कुंवर दिग्विजयसिंह प्र• जैनतस्वप्रकाशनी सभा इटावा, भा० हि०, पृ० २२; ब० १६१२ । बीस विहरमान जिन पूजा - लेखक पं० जोहरीलाल, भाव हि० पू० ९६. व० १६२७ । बुढ्ढे का ब्याह -- लेखक बा० ज्योतिप्रसाद, प्र० द्विग० जैन पुस्तकालय बुजफ्फरनगर: भा० द०, २५, ० १६३८; प्रा० प्रथम । बुधजन सतसई - लेखक कविवर बुचजन जी, ५० जैनगन्य रत्नाकड कार्यालय बम्बई, मा० हि०, पृ० १५, व० १९१० प्रा० प्रथम 1 बृहद् विमलनाथ पुराण - लेखक म० श्रीकृष्णदास, मनु पं० मचाषद् : Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९० साल, प्र.जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, प्र. ३६६, ५० १९१४; आ. प्रथम । बोधामृतमार-लेखक मुनि कु थसागर जी; प्र० सेठ शकरलाल गांधी बम्बई, भा. हि०, प० २४०, ३० १९३७, आ. प्रथम । बून्दीराज मे कन्याओं की रक्षा का कानून-लेखक बा० सूरजभान वकील, प्र० स्वय, भा० हि०, पृ० : ४, व० १९२६ । बावामृन्त-लेखक कुन्दकुन्दा वार्य, टी श्रुतसागर, भा० प्रा० स०, (षटप्राभृतादि पग्रह मे प्र०)। याच पाहुइ-० कुन्दकुन्दाचार्य, सपा० बा० सूरजभान वकील, ( षट पाहुड म प्र०)। भक्तामर और भोजभूप-लेखक पीताम्बर दास गुप्त, भा० हि०, पृ. १८८। भक्तामर कथा-लेखक ब्र० रायमल्ल, हि० अनु० उदयलाल, काशलीवान प्र. जन ग्रथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० स० हि०, पृ० १४७ ।। भक्तामर कथा-लेखक ब्र० रायमल्ल, हि० अनु० उदय नाल काशीवाल, प्र० जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई, भा• हि०, पृ० १३६, ५० १६३०, मा० चतुर्थ । · भक्तामर कथा (यच मत्र सहित)-ले०प० विनोदीलाल, सपा० बुद्धिलाल श्रावक, प्र. दुलीचन्द परवार कलकत्ता; भा० हि० स०, पृ० १७१, व. १६३५, मा० प्रथम । भकामर काव्य-ले० मानतु गाचार्य, अनु० नाथूराम डोगरीय, प्र. अनु. स्वय बिजनोर, भा० स० हि०, पृ. ४८ ब० १६३६आ. प्रथम । भक्तामर यंत्रमंत्र पूजन-प्र. चन्दाबाई दिग० जनप्रथमाला देहली, भा० हि०, पृ० २१, व० १६३८ । भक्तामर स्तोत्र-ले. मानतुंगाचार्य, अनु. टी० ज्ञानचन्द्र जैन, प्र० ज्ञानचन्द्र जैनी लाहौर, भा० स० हि०, पृ० ५०, व०, १९१२ । Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६१ ) भक्तामर स्तोत्र -- लेखक मानतुरंगाचार्य, हि० पचानुवाद कवि हेमराज, टी. सुमेरचन्द चन्द जन उन्नीषु प्र० मित्र सेन मामचन्द जैन देवबन्द, भा० स० हि०, पृ० ४१ । भक्तामर स्तोत्र ( सटीक ) - ले० मानतु गाचार्य; प्र० मुशीनाथूराम लमेचू मुडावरा; भ० स० हि०, पृ० ३२; १० १९०६ प्रा० प्रथम | भक्तावर स्तोत्र (सार्थ) - ले० पाडे हेमराज, टी. प० महेरचन्द, भा० हि० पृ० २५ । भक्तामर स्तोत्रम् - ले० मानतुङ्गः स टी सिद्धिचन्द्र हि० हेमचन्द्र; मा. स. हि ; पृ० १३६६ व १८६४ । 1 वाह या प्रदर्शन - लेखक मुन्नालाल समगोरिया; प्र० जैन • उपयोगी वस्तु भंडार देहली, भा० हि०, पृ० ४८; १० १९४४ | भगवती आराधना -- लेखक शिवार्य टी अपराजित सूरि; श्राशावर; अमितगति, हिन्दी अनुवादक जिनदास पार्श्वनाथ; भाषा प्रा. सस्कृत हिन्दी, पृष्ठ १८७८ वर्ष ε३५ । भगवती आराधना -- लेखक शिार्य, टी. पडित सदासुख जी, प्र० मुनि अनन्तकोति दिगम्बर जैन ग्रथ माला बम्बई, भाषा प्रा० हिन्दी, वर्ष १९३२ । भगवती रावना सार - लखक शिवार्य टी० पं० सदासुख जी, प्र० माणिकचन्द मोती वन्द; भाषा प्रा० हिन्दी, पृष्ठ ६३८, वर्ष १६०६, आ० प्रथम । भगवान कुन्दकुन्दाचार्य - लेखक बाबू भोलानाथ मुख्तार, प्र० दिगम्बर जन पुस्तकालय सूरत, भाषा हिन्दी, पृ० ८२ वर्ष १९४२ मा० प्रथम । # भावान धर्मादर्श - लेखक भगवानदास जैन, भाषा हिन्दी स० १० २८; ५र्ष १८६० । भवान्नाम सागर - लेखक भगवानदास जैन: भाषा हिन्दी, पृष्ठ १७५; वर्ष १६८६ । Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९२ ) भगवान नेमनाथ - लेखक राजमल सोडा; प्र० जैन साहित्य कार्यालय मन्दसौर, भाषा हिन्दी, पृ० १६, वर्ष १६३५, मा० प्रथम । भगवान महावीर -- लेखक मूलचन्द वत्सल, प्र० चैतन्य प्रिंटिंग प्रेस बिजनौर, भाषा हिन्दी; पृ० १६, वर्ष १६३१, आ० प्रथम । भगवान महावीर - लेखक बाबू कामताप्रशाद जैन, प्र० मूलचन्द किशनदास कापड़या सूरत, भा• हिन्दी, पृ० २८० वर्ष १६२४, प्रा० प्रथम । भगवान महावीर और उनका उपदेश - ले० कामता प्रसाद जैन, प्रश् वीर कार्यालय बिजनौर, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ४६, वर्ष १६२५, ० प्रथम । भगवान महावीर और उनका दिव्य उपदेश—संपा० सप्र० ताराचन्द परिया, प्र० जैन भ्रातृ संघ आगरा, भाषा हिन्दी, पृष्ठ २४ । भगवान महावीर और उनका समय ले० प० जुगलकिशोर मुरार; प्र० हीरालाल पन्नालाल देहली, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ६२, व० १९३४, प्रा० प्रथम । भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध-से० बा० कामताप्रसाद, प्र० दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत; भाषा हिन्दी; पृष्ठ २७१ व १६२७, प्रा० प्रथम । भगवान महावोर और स्याद्वाद - ले० बाबू जयभगवान वकील, प्र० दिगम्बर जैन शास्त्र भडार पानीपत; भाषा हिन्दी, पृष्ठ ८, वर्ष १६३८, ० प्रथम । भगवान महावीर का अचेलक धम-ले० पडित कैलाशचन्द्र, प्र० दिन० जैन सघ मथुरा, भाषा हिन्दी, पुष्ठ ३५, वर्ष १६४५; प्रा० प्रथम । भगवान महावीर का जहूर ले० पंडित न्यामतसिंह, प्र० स्वयं हिसार; भाषा हिन्दी, पृष्ठ ३१, ६० १९२० प्रा० प्रथम । ---- भगवान महावीर का समय- - लेखक कामताप्रसाद जैन, भाषा हिंदी, पृष्ठ ३१; व १६३२: मा० प्रथम । भगवान महार की अहिंसा और भारत के देशी राज्यां पर उसका Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९३) प्रभाव-लेखक कामताप्रसाद जैन, प्र. जैन मित्र मंडल देहली, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ५६ वर्ष १९३३, मा० प्रथम । भगवान महावीर की शिक्षाएं-लेखक ब्र० शीतल प्रसाद, प्र. दिगम्बर जैन भ्रातृ संघ भागरा, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ११, वर्ष १९२५, मा. प्रपम । भगवान महावीर का आदर्श जोवन-लेखक चौथमल जी, भाषा हिंदी, पृष्ठ ६५७, वर्ष १९३१।। भगवान पार्श्वनाथ-लेखक बा० कामताप्रसाद, प्र. दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० ४१४, २० १९२६, मा० प्रथम । भगवान पार्श्वनाथ (सचित्र)-लेखक हरिसत्य भट्टाचार्य; अनु० मास्टर छोटेलाल, प्र. जैन साहित्य मन्दिर सागर, भा० हि; पृ० ४३, २० १९२६, प्रा० प्रथम। भजन मंडली-लेखक चन्द्रसेन जैन वैद्य, प्र. जैन तत्त्व प्रकाशनी सभा इटावा, भा० हि०, पृ० २८, व० १६१२, प्रा० प्रथम । भजन व भारती संग्रह-प्र० सुमतिलाल, भा० हि०, पृ० १६ । भजन संग्रह-संग्रह० नाथूराम लेमचू, प्र० स्वम कटनी, भा० हि०, पृ. २६, प्रा. प्रथम । भट्टारक चर्चा-लेखक हीराचन्द नेमचददोशी, भा० हि०, पृ० ३६, ३० १६१७ भट्टारक मीमांसा-लेखक पं० दीपचन्द वर्णी; प्र० वीर कालूराम राजेन्द्रकुमार रतलाम, भा० हि०, पृ० १६ , व० १६२८ । भद्रबाहु चरित्र-लेखक रत्ननन्दि, अनु० उदयलाल काशलीवाल, प्र. जैन भारती भवन बनारस, भा० हि०, पृ०६६, व० १६११, मा० प्रथम । भदैया पूजा संग्रह-प्र. भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी संस्था कलकत्ता भा० हि०, सं० पृ० २६८, २० १६३५, प्रा० तृतीय।। भरत बाहुबलि संवाद-संपा०प्र० त्रिलोकचन्द्र पाटनी केकड़ी, भा. हि पु. ८०, व. १६२० । Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६४ ) भरतेशवैभव (प्रथम भाग ) - लेखक महाकवि रन्न; तु० वर्धमान पाइवंनाथ शास्त्री, प्र० रावजी मखारामदोशी शोलापुर, भा० हि०, पृ० २०८, व० १६३६, ना० प्रथम । भरतेशवैभव ( द्वितीय भाग ) - लेखक महाकवि रन्न; अनु० वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, प्र० गोविन्दजी रावजी दोशी शोलापुर, भा० ०ि, पृ० ३५८; व० १९४१, प्रा० प्रथम । भरतेशवैभव (तृतीय भाग) - ले० महाकवि रन्न, अनु० वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, प्र० स्वय अनु० शोलापुर, भा० हि०, पृ० १२२, व० १६४३, ग्रा० प्रथम । भ्रमनिवारण - लेखक न्यामतसिंह जैन, प्र० स्वयं टीकरी (मेरठ), भा० हि०, पृ० ५६, व० १६३६, आ० प्रथम । भविसदत्त चरित्र -- लेखक पं० बनवारीलाल, प्र० वीर जैन साहित्य कार्यालय हिसार, भा० हि० (पद्य), पृ० १९३, ० १६१६, प्रा० प्रथम भविसयत्त कहा - लेखक धनपाल, सपा० सी डी दलाल, भा० अप० प० पृ० ३८१, व० १६२३ । भाग्य और पुरुषार्थ - लेखक बा० सूरजभान वकील, प्र० कुलवन्तराय जैन, भा० हि०, पृ० ३८ । भाद्रपद पूजा सग्रह -- संग्रह० प० कस्तूरचन्द, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १४० । भारत का आदि सम्राट - लेखक स्वामी कर्मानन्द प्र० दिगम्बर जैन सघ मथुरा, भा० हि०, पृ० ३०, व० १६३८ । भारत के सपूत- - लेखक मुन्नालाल समगौरिया, प्र० दुलीचन्द परवार कलकत्ता, भा० [हिं०, पृ० ४३, व० १६४१, प्रा० प्रथम । भारत गौरव (सम्राट चन्द्रगुप्त ) - लेखक जिनेश्वर प्रसाद मायल, भा० हि० । भारत वर्षीय दिगम्बर जैन डायरेक्टरी- - प्र० सेठ ठाकुरदास भगवानदास Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९५) जौहरी बम्बई, भा० हि०, पृ० १४२३, २० १९१४, मा० प्रथम । भावना-लेखक शोभाचन्द्र भारिल्ल, भा० हि०, पृ० ३६, ३० १९३६ । ' भावना बोध-लेखक श्री मद्राजचन्द्र, अनु० जगदीशचन्द्र, भा० हि०, पृ० १२०, ३० १९३७ । भावना लहरी-लेखक विविध, भा० हि०, पृ० ४८, प्र० दिगम्बर जैन शास्त्र भडार पानीपत, व०, १६३६ । भावना विवेक-लेखक ५० चैनसुखदास, अनु० ५० भंवरलाल, प्र० सब्दोष ग्रंथ माला जयपुर, भा० स० हि; पृ० २८०; व. १९४१, प्रा० प्रथम । भावना संग्रह-प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पु० २८, प्रा० प्रथम। भावत्रिभङ्गो-लेखक श्रुत मुनि, भा० स०, (भाव संग्रहादि में प्र०)। भाव पाहुड-लेखक कुन्दकुन्द, भा० प्रा०, (प्रष्ट पाहुड व षट् पाहुड में प्र०) अपरनाम भाव प्रामृत । भाव संग्रहादि (४ प्रथ)-लेखक विभिन्न, सपा० ५० पन्नालाल सोनी, प्र० माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन प्रथ माला बम्बई, भा० स० प्रा०, पृ. ३२८, २०१६२१, प्रा० प्रथम । भाषा एकोभाव-प्र० बा० सूरजभान वकील देवबद, २० १८९८, भा० हि। भाषा कल्याण मन्दिर-प्र० बा० सूरजभान वकील देवबद, व० १८९८, भा० हि । भाषा जैन नित्य पाठ संग्रह-प्र० भारतीय जैन सिद्धात प्रकाशनी संस्था कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १४४ । भाषा नित्य पूजा (सार्थ)--अनु० भुवनेन्द्र विश्व, प्र० सरल जैन नथ - माला जबलपुर; भा० हि, पृ०५६, २० १९३६, प्रा० प्रथम । Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९६) भाषा पंच स्तोत्र-प्र० बा० सूरजभान वकील देवबद, भा० हि०, व. १८९८ भाषा पूजन संप्रह-सन० प्र० मुन्शी नाथूराम लेमनू, भा० हि०, पृ. १०१, व० १६०३, प्रा. द्वितीय । भाषा पूजा संग्रह-प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ६६; व. १९८८, प्रा० छठी। भाषा भक्तामर-लेखक पाडे हेमराज, प्र० बा० सूरजभान वकील देवबंद, भा० हि०, व० १८६८ । भाषा भक्तामर व महावीराष्टक-लेखक पाडे हेमराज व १० गजाघरलाल, प्र० हीरालाल पन्नालाल देहली, भा० हि०, पृ० १६:३० १९३९ । भाषा भूपाल चौबीसी-प्र० बा० सूरजभान वकील देवबद, भा० हि., व० १८६८। भाषा वाक्यावली-लेखक धर्मदास क्ष ल्लक, प्र० श्रीमती कुन्दनकुमारी पारा, भा० हि०, पृ० १० ब० १८८६ । भाषा सूक्ति मुक्तावली-(सिदूर प्रकरण सहित)-ले० प० बनारसीदास, टी० पा० मुदी अमनसिह, प्र० स्वय सपा० देहली, भा० हि०, पृ० ४०, व० १८६३। भूगोल मीमांसा-ले० प० गोपालदास बरैया, प्र. जैन तत्त्व प्रकाशनी सभा इटावा, भा० हि०, पृ० १७, २० १६१२, आ० प्रथम ।। भघर जैन शतक-लेखक कविवर भूधरदास जी, प्र० मुशी अमनसिह सोनीपत, भा० हि०, पृ० ११२, व० १८६०, आ० प्रथम । भूधर जैन शतक-लेखक कविवर भूधरदास जी, टी० सपा० बा० ज्ञानचद्र, प्र० स्वय दिगम्बर जैन धर्म पुस्तकालय लाहौर, भा० हि०, पृ० ५५, ५० १९०६, प्रा० प्रथम । मधर जैन शतक-लेखक कविवर भूधरदास जी, टी० मुशी अमनसिह, प्र० श्रीमती सोनादेवी देहली, भा० हि०, पृ० ८०; व० १९४१, आ. प्रथम । Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३७ ) भूभ्रमण भ्रान्ति-संपा० प्र० पं० प्यारेलाल, भा० हि०, ५० ६६० ब० १६२० । भूभ्रमण सिद्धान्त और जैन धर्म - लेखक डा० निहालकरण सेठी, भा० हि०, पृ० १५ । भैरव पद्मावती कल्प --- लेखक मल्लिषेण सूरि, भा० स०, पृ० १६६, व● १६३७/ मदनपराजय- मूलय थ संस्कृत, कवि नागदेव, हिन्दी अनुवादक प्रो० राज कुमार जैन, प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, मूल्य ८), पृ० २४२, प्रकाशन १६४८ । मक्खनलाल भजन माला - लेखक प० मक्खनलाल प्रचारक, प्र० स्वयं देहली, भा० हि०, पृ० ३२, व० १६३० प्रा० प्रथम । मकरध्वज पराजय नाटक - लेखक कवि जिनदास, अनु०प० गजाधरलाल, प्र० भारतीय जैन सिद्धात प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० स० हि०, १० १०५ ० प्रथम । मक्शी पार्श्वनाथ -- लेखक अज्ञात, भा० हि० । मंगलादेवी-लेखक बा० सूरजभान वकील, प्र० जौहरीमल सर्राफ देहला, भा० हि०, पृ० ५२, व० १६२५, प्रा० प्रथम । मणिभद्र -- ले० सुशील; अनु० उदयलाल काशलीवाल, प्र० हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० १३२, व० १६१६ । मद्रास मैसूर प्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक संग्र० सपा० प्र० शीतलप्रसाद, प्र० मूलचन्द किशनदास कापडया सूरत, भा० हि०, पृ० ३३४, व० १६२८, ० प्रथम । मध्यप्रान्त मध्यभारत व राजपूताने के प्राचीन जैन स्मारक संग्र० संपा० ब्र० शीतलप्रसाद, प्र० मूलचन्द किशनदास कापड्या, सूरत, भा० हि०, पृ० २०४, व० १९२६, ० प्रथम । मनमोहन पंचशती - लेखक कविवर छत्रपति, मपा० सोनपाल जैन, प्र० स्वयं संपा० बडवानी, भा० सं० हि०, पृ० २३६, व० १६१७, प्रा० प्रथम । Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६८ ) मनमोहनी नाटक - ले० प्र० बा० सूरजभान वकील देवबन्द, भा० हि० । मनोरमा - अनु० मूलचन्द्र, भा० हि०, पृ० १०४ व० ११११ । मनोरमा उपन्यास - ले० जैबेन्द्र किशोर, प्र० जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि० । मनोरमा चरित्र - लेखक पन्नालाल जैन, प्र० रायल स्टेशनरी मार्ट देहली, भा० हि०, पृ० १२६, व० १६२६, प्रा० प्रथम । मनोरमा सुन्दरी - लेखक श्रीयुत प्रेमी, प्र० प्रेमभवन पुस्तकालय सहारनपुर, भा० हि०, पृ० २४, प्रा० प्रथम । ममल पाहुड (प्रथम भाग ) - लेखक तारण तरण स्वामी, अनु० ० शीतल प्रसाद, प्र० मथुराप्रसाद बजाज सागर, भा० हि०, पृ० ४२०, व० १९३७, प्रा० प्रथम | ममल पाहुड (द्वितीय भाग) - लेखक तारणतरण स्वामी, अनु० ० शीतलप्रसाद, प्र० मथुराप्रसाद बजाज सागर, भा० हि०, पृ० ४५०; व० १६३८, ० प्रथम | ममल पाहुड ( तृतीय भाग ) - लेखक तारणतरण स्वामी शीतलप्रसाद, प्र० मथुराप्रसाद बजाज सागर, भा० हि०, पृ० १६३६, आ० प्रथम | अनु० ब्र ३१८, व० मरणभोज - लेखक प० परमेष्ठीदास, प्र० सिंघई मूलचन्द मुनीम व शाह साकेरचन्द मगनलाल सरैया सूरत, भा० हि०, पृ० १०४, व० १९३७, प्रा० प्रथम । मल्लिनाथ पुराण - लेखक सकल कीर्ति आचार्य, अनु० प० गजाधरलाल, to जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० स० हिन्दी, पृ० १८४, १० १९२३, प्रा० प्रथम । मल्लिनाथ पुराण -- लेखक सकलकीति आचार्य, अनु० टी० प० गजाधर लाल, प्र० भारतीय जैन सिद्धात प्रकाशनी संस्था कलकत्ता, भा० हिन्दी, पृ० १४५ । Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) महर्षि स्तोत्र-भा० स०, (सिद्धान्त सारादि संग्रह मे प्र०)। महात्मा रामचन्द्र-लेखक प० मूलचन्द्र वत्सल, प्र० मूलचन्द किशनदास कापड़या, सूरत, भा. हि०, पृ० २६, व० १६२७, प्रा० प्रथम । महापुराण (प्रथम खड)-लेखक महाकवि पुष्पदन्त, संपा० डा० पी० एल. वैद्य, प्र० मारिपकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थ माला बम्बई, भा० अप०, पृ० ६७२, व० १६३७, प्रा०प्रथम।। ___महापुराण (द्वितीय खड)-लेखक महाकवि पुष्पदन्त, सपा० डा. 'मी. एल. वैद्य, प्र० मरिणकचन्द्र दिगम्बर जैन प्रथमाला बम्बई, भा० अप०, पृ० ५६७, २० १६४०, प्रा० प्रथम। महापुराण (तृतीय खड)-लेखक महाकवि पुष्पदन्त, सपा० डा० पी० एल० वैद्य, प्र. माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन अथ माला बम्बई, भा० अप०, पृ० ३१३, 4. १९४१, प्रा० प्रथम । __ महाबन्ध (महाधवल)-ले० भूतबलि प्राचार्य, टी. वीरसेन स्वामी, सपा० अनु० प० सुमेरचन्द्र दिवाकर, प्र० भारतीयज्ञान पीठ बनारस, भा० प्रा० स० हि०, व० १६४७ । महाराज श्रेणिक-लेखक शुभचन्द्र भट्टारक, सपा० एम० एल जैन, प्र. सस्ता जैन साहित्य मन्दिर कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ३४६, व० १६३८, प्रा० प्रथम । महारानी चेलनी-लेखक बा० कामताप्रशाद, प्र. दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० १७०, व० १६३३, पा० द्वितीय । महावीर-ले० बा० कामताप्रशाद, भा० हि०, पृ. ६३ । महावीर चरित्र-लेखक अशग कवि, अनु० पं. खूबचन्द शास्त्री, प्र० मूलचन्द किशनदास कापडया मूरत, भा० स० हिन्दी, पृ० २७७, २० १६१८, श्रा० प्रथम। महावीर चाँदन मोव नाटक-लेखक राजकंवार जन, प्र० स्वय हिसार, भा० हि०, पृ० २८, २० १६३७, पाप्रथम । Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०० ) महावीर जिन पूजा संग्रह - प्र० महावीरप्रशाद जैन अनाथाश्रम देहली, मा० हिन्दी सं०, पृ० ६०, व० १६२६, प्रा० प्रथम । महावोर जीवन विस्तार - अनु० ताराचन्द दोशी; प्र० श्री ज्ञानप्रसारक महल सिरोही, भा० हिन्दी; पृ० ६०, व० १६१८; प्रा० प्रथम । महावीर पुराण (सचित्र) -२ ) - सपा० नन्दनलाल जैन, प्र० जिनवाणी प्रचारक भा०] हिन्दी, पृ० १६५, १० १६३६, आ० प्रथम । महावीर पुराण- लेखक सकलकीर्तिदेव; अनु० प० मनोहरलाल, प्र० जैन ग्रंथ उद्धारक कार्यालय बम्बर्ट भा० स० हिन्दी, पृ० १५५, व० १६१६, कार्यालय कलकत्ता, प्रा० प्रथम | रतनलाल जैन महावीर पुष्पाञ्जली - संग्रह उमरावसिंह जैन, प्र० मादीपुरिया देहली, भा० हि० पृ० ४८, ० १९४१, ० प्रथम । महावीर स्वामी का जीवन - लेखक प० न्यामतसिंह जैन, भा० [हिन्दी, पृ० ४३ । महावीर स्वामी चरित्र लेखक प० दीपचन्द्र वर्णी, प्र० सेठ सवाभाई सरबमलदास प्रारोन, भा० हिन्दी, पृ० ६८, १० १६३७, ० प्रथम 1 महावीराष्टक - लेखक भागचन्द्र, भा० स० । महिपाल चरित्र - खक कुन्दनलाल जैन, प्र० स्वयं हामी हिसार, भा० हि०, पृ० ७०, १० १६३३, आ० प्रथम । महिलाओं का चक्रवर्तित्त्व - सपा० सक० कुमार देवेन्द्रप्रशाद, प्र० स्वय प्रेम मन्दिर आरा, भा० हिन्दी व० १०२० आ० प्रथम । महिला रत्नमगन बाई - लेखक ब्र० शीतलप्रसाद, प्र० दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हिन्दी, पृ० २००, ब० १६३३, प्रा० प्रथम | महीचन्द जैन भजनावली - सग्रह सेठ छोटेलाल, प्र० स्वयं श्रीकर; भा० हिन्दी, पृ० ४०, व० १६२६, ० प्रथम | महेन्द्र कुमार नाटक - ले० अर्जुनलाल सेठी, भा० हिंदी, पृ० ७७ १ मंगतराय भजन माला - लेखक कवि मगतराय, भा० हि० । Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०१ ) मंगलमय महावोर-लेखक साधु टी० एल० वास्वानी, अनु० हेमचन्द्र मोदी, मा० हिन्दी, पृ० १०, व० १९४०। मानव धर्म-लेखक ब्र० शीतलप्रसाद, प्र. हिन्दी, मथरत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हिन्दी, पृ० १६, व० १६३०, प्रा० प्रथम । मानव धर्म और मांसाहार-लेखक धन्यकुमार, प्र० सन्मति पुस्तकालय कलकत्ता, भा० हिन्दी, पृ० १६, २० १९३८ । मानिक विलास-लेखक कवि माणिकचन्द, भा० हि०, १२५ पद । मांसभक्षण पर विचार-लेखक अम्बालाल दाधीच, प्र० भारत जैन महामडल लखनऊ, भा० हि०, पृ० ३२, व० १९१५, आ० द्वितीय । मार्गानुसारी के ३५ गुण-लेखक मा० रवबचन्द्र, प्र० जैन पुस्तक प्रकाशक कार्यालय व्यावर, भा० हिन्दी, पृ० १५, २० १६३० । मिथ्यात निषेध-ले० ७० शीतल प्रमाद, प्र० जनमित्रमडल देहली; भा० हि०, पृ० २४, व० ११३३, आ० प्रथम । मिथ्यात्व नाशक नाटक-ले० ५० पन्नालाल जन, प्र. जैन हितैषी पुस्तकालय बम्बई, भा० हि०।। मीन संवाद-ले० प० जुगलकिशोर मुख्तार, भा० हि०, पृ० १६, व० १९२६ । मुक्ति-ले० ५० प्रभाचन्द्र, प्र० जैन मित्रमडल देहली, भाषा हिन्दी, पृ. १२, वर्ष १९३६, प्रा० द्वितीय । मुक्ति दूत-ले० वीरेन्द्र कुमार जैन एम० ए०, प्र० भारतीय ज्ञानपीठ बनारस, भाषा हिन्दी, व० १६४७ । मुक्ति और उसका साधन-ले. ब्र० शीतल प्रसाद; प्र. जैनमित्रमडल देहली, भाषा हि०, प० २८, व० ११२६, प्रा० प्रथम । मुकदमा जैन मत समीक्षा-ले० प्र० अज्ञात, भा० हि० । मुनि धर्म प्रदीप-ले० प्राचार्य कुथ सागर, प्र. आचार्य कुथमागर अन्यमाला गोलापुर, भा० हि०, पृ० १६८, व० १९४१ । Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०२) मुनि यमन सेन चरित्र-ले० बा० शानचन्द जैनी, प्र. दिन० जैन धर्म पुस्तकालय लाहौर, भा० हि०, पृ० १३०, व० १६०२ । मुनिराज का बारहमासा-प्र० बा० सूरजभान वकील, देवबंद, भा० हि० व० १८९८ । मुनिसुव्रत काव्य -ले० कवि अहंदास, अनु० टी०५० के० भुजबलि शास्त्री व प० हरनाथ द्विवेदी, प्र. जैन सिद्धान्त भवन आरा; भा० स० हि. पृ० २२१, व० १९२६, प्रा० प्रथम । मुनिवंश दीपिका-ले० नयन सुखदाम, प्र० जैन अथरत्नाकर कार्यालय बम्बई; भा० हि० । मुनि संघ भजनावली-ले० प्र० शिवराम जैन रोहतक; भा० हि०, पृ. ८, व० १६३०। मुहूर्त दर्पण-सम० अनु० ५० नेमिचन्द्र, संपा० के० भुजलि शास्त्री) प्र० स्वय पारा; भा० सं० हि०, पृ० ८०, व० १९४८, प्रा० प्रथम । मूर्ति खंडन निर्णय-प्र० ला० कन्हैयालाल देहली; भा० हि०, २० १८६७। मूर्ति पूजा मंडन-ले०प० मिहरचन्द दास जैन, प्र. जैन प्रचारिणी सभा सुनपत, भा० हि०, पृ० १३, व० १८८८, आ० प्रथम । मूर्ति पूजा मंडन नूतन मत खंडन-लेखक प० शिवचन्द्र, भा० हि०, पृ० २१, २०१८८७ । मूचि मंडन-लेखक मुसद्दीलाल जैनी, प्र. दिग० जैन सभा निरपुडा; भा० हि०, पृ० १४; व० १६१३, प्रा० प्रथम । मूर्ति मंडन प्रकाश-ले० प० न्यामत सिह, प्र० स्वय हिसार, भा० हि०, पृ० ३६, व० १९२३, आ० प्रथम । मुहणौत नैणसी की ख्यात-ले० मुहणौत नैणसी, भाषा हिन्दी राजस्थानी; प्र० अज्ञात । मूल प्रति क्रमण--लेखक अज्ञात; भा० प्रा० । Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २०३ ) मूलाचार-लेखक बट्टकेर स्वामी; संपा. पं. मनोहरलाल; प्र० मुनि अनंत कीति ग्रन्थमाला बम्बई, भा० प्रा० सं०, पृ० ४३२, २० १९१६, प्रा. प्रथम । मूलाचार (पूर्वार्ष)-ले० वट्टकेर स्वामी; स० टी० वसुनन्द्याचार्य, संपा. पन्नालाल सोनी, गजाधरलाल व श्री लाल, प्र० मारिएकचन्द दिग० जैन ग्रन्थमाला बम्बई, भा० प्रा० स०, पृ० ५२०, ३० १९२०, प्रा० प्रथम । मुलाचार (उत्तरार्ध)--लेक बकेर स्वामी, सं० टी० वसुनन्द्याचार्य, सपा. पन्नालाल सोनी, गजाधरलाल व श्रीलाल, प्र० मारिसकचन्द्र दिग० जैन ग्रंथमाला बम्बई, भा० प्रा० स०, पृ० ३४०, व० १९२३, आ० प्रथम । मूलाचार-लेखक कुन्दकुन्दाचार्य, अनु० जिनदास पार्श्वनाथ फडकुले शास्त्री, प्र० सेठ सखाराम देवचन्द शाह शोलापुर, भा० प्रा० हि०, पृ० ७००; २० १९४७ । मूलाराधना-ले० शिवार्य, टी० अपराजित मूरि (विजयोदया टोका), पं. आशाघर (मूलाराधना), प्राचार्य अमितगति (स० श्लोक); हि० टी० अनु० जिनदास पार्श्वनाथ फडकुले, प्र. रावजी सखाराम दोशी शोलापुर, भा० प्रा० सं० हि०, पृ० १६७८; व० १९३५, प्रा० प्रथम । मेरी द्रव्य पूजा--ले० पं० जुगलकिशोर मुख्तार, भा०, हि०, पृ० ८, व. १६२८ । मेरी भावना--लेखक प० जुगलकिशोर मुख्तार, प्र० हीरालाल पन्नालाल देहली; भा० हि०, व० १६३१, -(इस पुरतक के बीसियो विभिन्न सस्करण, विविध संस्थानो और व्यक्तियो की ओर से प्रकाशित हो चुके है)। मेरा विकास कथा-ले० स्वामी सत्यभक्त, प्र० सत्यसदेश प्रथमाला सत्याश्रम वर्धा, भा० हि०, पृ० १२०, ५० १६४३, ० प्रथम । मैं कौन हूँ-ले० ज्योतिप्रसाद जैन. प्र० जनमित्रमण्डल देहली, भा० हि०, पृ० १६, २०१६३६, प्रा० प्रथम । मैथिली कल्याण नाटकम्-ले. कवि हस्तिमल्ल, सपा प० मनोहरलाल Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०४ ) शास्त्री, प्र० माणिक चन्द्र दिग० जैन ग्रन्थ माला बम्बई, भा० सं०, पृ० १०४, ब० १६१६, प्रा० प्रथम। मोक्ष पाहुड (मोक्ष प्रामृत)-ले० कुन्दकुन्द, भा० प्रा स० हिः, ( अष्ट 'पाहुड व षट पाहुड मे प्र०)। . मोटर यात्रा दर्पण-ले० पं० शिवजी राम जैन, प्र० सेठ रतनलाल सूरज मल पांच्या राची, भा० हि०, पृ० १६४, व० १९३८, आ० प्रथम । मोहिनी-ले० भैयालाल जैन, प्र० महावीर ग्रन्थ कार्यालय आगरा, मा० हि०, पृ. ८३, व० १९२४ । ___मोक्ष को कु-जी-प्र० प्रात्म जागृति कार्यालय बगडी (मारवाड), भा० हि०, पृ० ६४, व० १६२८, प्रा० प्रथम । मोक्ष पंचाशिका-भा० स०, (तत्त्वानुशासनादि सग्रह मे प्र०)। मोक्ष मार्ग की सच्ची कहानियां-प्र० बुद्धिलाल श्रावक, भा० हि०, १० ८२, व० १९१२, आ० प्रथम, पृ० ८१, व० १६१७, प्रा० द्वितीय । मोक्ष मागे प्रकाशक-ले० ५० टोडरमल जी: प्र. जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ४६६, व० १९११, प्रा० प्रथम । मोक्ष मागे प्रकाशक-ले० ५० टोडरमल जी, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ४६८, व० १९३६, आ. प्रथम । मोक्ष मार्ग प्रकाशक-ले०प० टोडरमल जी, प्र० ज्ञानचन्द जैन लाहोर, भा० हि०, पृ० ५१२, व० १८९७, प्रा० प्रथम । ___ मोक्ष मार्ग प्रकाशक-ले० ५० टोडरमल जी, प्र० पन्नालाल चौधरी काशी, भा० हि०, पृ० ५२४, व० १९२५, आ० प्रथम । मोक्ष मार्ग प्रकाशक-लेखक प० टोडरमलजी, प्र० मुनि अनन्तकीर्ति अथ माना बम्बई, भा० हि०, पृ० ५११, व० १९३७ । मोक्ष मार्ग प्रकाशक (द्वितीय भाग)-ले० ० शीतल प्रसाद, प्र० दिग. बैच पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० ३४४, व. १९३३, प्रा० प्रथम । Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०५ ) मोद मार्ग प्रदीप-ले० कुन्थ सागर ( आचार्य ); भाषा स० हिन्दी, पृष्ठ ६२ वर्ष १९३७ । मोक्ष शास्त्र-ले० उमास्वामी, अनु० संपा० बनबारीलाल स्याद्वादी, प्र. सस्तासाहित्य भडार देहली, भा० स० हि०, पृ० १११, व० १८४०, प्रा० प्रथम । मोक्ष शास्त्र-ले० उमास्वामी, हि० टी०पं० लालाराम, प्र. सेठ गणेशी लाल उदयपुर, भा० स० हि०; पृ० २२८, व० १६४१, आ० प्रथम । मोक्ष शास्त्र-ले० उमास्वामी; अनु० पन्नालाल सा० भा० प्र० मूलचन्द किशनदास कापडिया सूरत, भा० स० हि०, पृ० २७२; व० १९४५, मा० तृतीय (सचित्र)। मोक्ष शात्र-ले० उमास्वामी, हि० पद्य अनु० ५० छोटेलाल, प्र० जैन भारतीय भवन बनारस, भा० स० हि०, पृ० ६५, व० १६१२, प्रा० प्रथम । मोक्ष शास्त्र-ले० उमास्वामी, प्र. हीरालाल पन्नालाल देहली, भा० स०, पृ० २०, व० १९३३, आ० प्रथम । मोक्ष शास्त्र (बाल बोधिनी टीका)-ले० उमास्वामी, टी० पन्नालाल बाकलीवाल, प्र. जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० स० हि०, पृष्ठ १६२। मौन व्रत कथा-ले० गुणचन्द्र भट्टारक; अनु० ५० नन्दनलाल, प्र० जिन चारणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता; भाषा हि०, पृ० २४, प्रा० प्रथम । मौन ब्रत कथा-ले० गुणचन्द्र भट्टारक, अनु० प० नन्दनलाल, प्र. छोटे लाल परमानन्द देवरी; भा० स० हि०, पृष्ठ ५०, प्रा० प्रथम । ___ मौर्य साम्राज्य के जैन वीर-ले० अयोध्या प्रसाद गोयलीय, प्र० जनमित्र मडल' देहली भाषा हिन्दी, पृ० १७३, व० १६३२, प्रा० प्रथम । मृत्यु महोत्सव-हि० टी० पं० सदासुखजी, प्र० जैन ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय बम्बई, भाषा स० हिन्दी, पृ० २३, व० १९०८ प्रा० प्रथम । यज्ञोपवीत संस्कार-सपा० क्षुल्लक ज्ञान सागर, प्र. गाधी मगनलाल Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०६) शकरलाल रतलाम; भा० हिन्दी, १० १४४, आ. द्वितीय । यज्ञोपवीत संस्कार-संपा० ज्ञानचन्द्र वर्णी, प्र० गाधी मगनलाल शंकर । लाल रतलाम; भा०हि० सं०, पृष्ठ ३५; व० १९३०, आ० प्रथम । यमन सेन चरित्र-ले० ज्ञानचन्द्र जैनी, प्र० स्वय लाहौर, भा० हि०, पृ० १३०, व० १६०२, आ० प्रथम । ___ यशस्तिलक चम्पु-ले० सोमदेव, सपा० जे० एन० क्षीरसागर; भाषा सं०, व० १६४६, बम्बई ( प्रथम उच्छवास)। यशस्तिलकम् (२ खड)--ले० सोमदेव सूरि; स० टी० श्रुतसागर, सपा० काशीनाथ शर्मा, प्र० निर्णय मागर प्रेस बम्बई, भा० सं०, पृष्ठ ४१६, २० १९०३, आ० प्रथम । __यशाधर-संपा० विद्याकुमार व राजमल लोढा, प्र० जैन धर्म प्रचारक मण्डल अजमेर; भा० हि०, पृ० १७, व० १६३३, आ० प्रथम । यशोधर चरित्र-ले० वादिराज मूरि, अनु० उदयलाल काशलीवाल, प्र० हिन्दी जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ५२, व० १६१४, प्रा० प्रथम । यशोधर चरित्र (जमहर चरिउ)-ले० महाकवि पुष्पदन्त; सपा० डा० पी० एल० वैद्य, प्र० कारजा जैन पब्लिकेशन सोसाइटी कारजा, भा० अप० हि०, पृ० १८८, व० १६३१, प्रा० प्रथम ।। यशाधर चरित्र-ले० महाकवि पुष्पदन्त, प्र० गिरनारीलाल जैन सहारनपुर, भा० अप० स० हि०, पृ. ३०४ । यशोधर चरित्र-ले० वादिराज सूरि, सपा० टीत ए०, गोपीनाथ राव एम० ए०, प्र० सपा० स्वय तजोर, भा० म०, पृ० ५६, व० १६१२ । युक्त्यानुशासनम् -लेखक समन्तभद्राचार्य, स० टी० विद्यानन्द स्वामी, सपा० पडित इन्द्रलाल व श्री लाल, प्र० माणिकचन्द्र दिग० जैन ग्रन्थमाला बम्बई, भा० सं०, पृ० १६६, २० १९२०, प्रा० प्रथम । यूरोप में सात मास-ले०प्र० धर्मचन्द सरावगी कलकत्ता; भा० हि०।। Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०७) योग प्रदीप-ले० हर्ष कीत्ति मुनि, भा० सं०, पृ. ३४, २० १८६७ । योग सार-लेखक अमितगति प्राचार्य, अनु० १० गजाधर लाल, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भाषा स० हि०, पृ. २००, २०१६१८, प्रा० प्रथम । योग सार-लेखक योगीन्द्र देव, टी. प्रो. जगदीश चन्द्र, संपा० डा. ए. एन० उपाध्ये, प्र० रामचन्द्र जैन शास्त्र माला बम्बई, भाषा अप० हिन्दी; पृ. ३०, ३० १९३७: प्रा० प्रथम । योग सार-लेखक योगीन्द्र देव, टी० ब्र० शीतल प्रसाद, प्र० मूलचन्द किशनदास कापडिया सूरत, भा० अप० हि०, पृ० ३६४, व० १९४१, प्रा० प्रथम । योग सार-लेखक योगीन्द्र देव, टी० ५० नम्दराम गोयल, प्र. दिग० जैन भ्रातृ सघ प्रागरा, भा० हि०, पृ० १४८, व० १६३८, प्रा० प्रथम । योगि भक्ति-लेखक पूज्यपाद, टी• लालाराम, भा० संस्कृत हि०, ( दशभक्त्यादि सग्रह मे प्र०)। रक्षाबंधन कथा (पद्य)-लेखक मुशी नाथूराम लेमचू, प्र० स्वय मुडावरा, भा० हि०, पृ० १६, व० १६०२, पा० प्रथम । रक्षाबन्धन कथा (पद्य)-लेखक मुंशी नाथूराम लेमचू, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १६ । रक्षाबन्धन कथा (पद्य)-लेखक मुशी नाथूराम लेमचू, अनु दामोदर दास, प्र० मूलचन्द किसनदास कापडया सूरत, भा० हि०, पृ० ४६, व० १६४२, आ० चतुर्थ । रक्षाबन्धन कथा-लेखक ब्र० प्रेमसागर पंच रत्न, प्र. जैन सुधारक सभा देहली, भा० हि०, पृ० १६, १० १९४० । रत्नकांड श्रावकाचार-लेखक समन्तभद्राचार्य, स० टी. प्रभाचन्द्राचार्य, प्र० माणिकचन्द्र ग्रंथ माला बम्बई, भा० स०, पृ. ३६८, व० १९२५, आ० प्रथम । Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०८ ) रत्नकड श्रावकाचार - लेखक समन्नभद्राचार्य, टी० प्रभाचन्द्राचार्य, सपा० व प्रस्तावना लेखक पडित जुगलकिशोर मुख्तार, प्र० मारिणकचन्द्र दि० जैन ग्रंथमाला बम्बई, भा० स० हिन्दी, पृ० ४५०, व० १६२५, आ० प्रथम । रत्नकरड श्रावकाचार - लेखक सन्तभद्राचार्य, हि० टी० पंडित सदासुख जी, प्र० बाबू सूरजभान वकील देवबन्द, भा० हिन्दी, पृ० ३७६, व० १८१७, श्रा० प्रथम । रत्नकरंढयावकाचार --- लेखक समन्तभद्राचार्य, सपा० ब० भगवानदास, प्र० जैन दिगम्बर ग्रथ माला अहमदाबाद, भा० स० पृ० १५६, व १६३२, प्रा० प्रथम । रत्नकरं श्रावकाचार - नेखक समन्तभद्राचार्य सपा० पंडित गौरीलाल: प्र० स्वयं कलकत्ता, भा० स०, पृ० २७४, ० १६३८, प्रा० प्रथम । रत्न करंड श्रावकाचार - लेखक समन्तभद्राचार्य, अनु० पडित पन्नालाल सा० प्रा० प्र० सरल जैन प्रथमाला जबलपुर, भा० स० हिन्दी पृ० १२०, व० १६३६, प्रा० रथम | रत्नाकर डाव का चार - लेखक ममन्तभद्राचार्य, हिन्दी पद्य० अनु० मुख्तार सिंह जैन, टी० मनासुन्दरी जैन प० दि० जैनपुस्तकालय मुजफ्फरनगर, भा० हिन्दी, पृ० ७५, ० १६४१, ० प्रथम । रत्नकरं डश्रावकाचार - लेखक समन्तभद्राचार्य, अनु० टी० उग्रसेन एम० ए०, प्र० जैन मित्रमंडल देहली, भा० स० हिन्दी, पृ० २७२, ० १९४०, आ० प्रथम । रत्नकरं श्रावकाचार लेखक समन्तभद्रावार्य, अनु० मोहनलाल का ती० प्र० हरप्रसाद जैन लहरी, भा० स० हिन्दी, पृ० ११२ व १९४३, प्रा० द्वितीय | रत्नकरंड श्रावकाचार - लेखक समन्तभद्राचार्य, हिन्दी पद्य अनु० गिरधर शर्मा, प्र० जैन मित्र मंडल देहली, भा० हिन्दी, पृ० ६२, व० ११२५ । रत्नकरं श्रावकाचार - लेखक समन्तभद्राचार्य, टी० पं० सदासुख जी Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०६ ) काशलीवाल, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० स० हिन्दी, पृ० ४६२, प्रा० सातवी। रत्नकरंडश्रावकाचार-लेखक समन्तभद्राचार्य, टी० पंडित सवासुख जी काशलीवाल, प्र. जैनप्रथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० सं० हिन्दी, पृ० २८१, व० १६०८, प्रा० प्रथम । रत्नकरंडश्रावकाचार-लेखक समन्तभद्राचार्य, टी० पडित सदासुख जी काशलीवाल, प्र. हिन्दी जैन साहित्य प्रमारक कार्यालय बम्बई, भा० हिन्दी, पृ० २७६, व० १९१७, आ० तृतीय । रत्नकरंडश्रावकाचार-लेखक समन्तभदाचार्य, टी० ५० सदासुखनी काशलीवाल, प्र० ब्र० नन्दलाल भिण्ड, भा० सं० हि०, व० १९३९, प्रा० प्रथम । रत्न करंड श्रावकाचार-लेखक समतभद्राचार्य, टी० ५० पन्नालाल बाकलीवाल, प्र० जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० स० हिन्दी, पृ० ६६, व०१६३६। रत्न करंड श्रावकाचार की प्रस्तावना-लेखक प० जुगलकिशोर मुख्तार, भा० हिन्दी, पृ० ८४, व० १९२४ । रत्न परीक्षक-लेखक घामीगम जैन, भा० हि०, पृ० ४४ । रत्न माला--लेखक शिवकोटि भट्टारक, टी० अनु० पं० गौरीलाल, प्र० अनु० स्वय, भा० सं० हि०, पृ० ८४, व० १६३३, प्रा० प्रथम । रल माला-लेखक शिवकोटि भट्टारक, अनु० जिनदास पार्श्वनाथ शास्त्री मा० स० हि । रत्नत्रय कुब्ज -लेखक बैरिस्टर चम्पतराय, अनु० कामता प्रमाद जैन, प्र. जैन मित्र मंडल देहली, भा० हि०, पृ० ५६, व. १९३०, प्रा० प्रथम । रत्नत्रय धर्म-लेखक पन्नालाल सा०, आ. प्र. जैन भ्रातृ सघ सागर, भा० हिन्दी, पृ० ३८; व० १९४४ । रत्न कवि प्रशस्ति-मा० कन्नड । Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१० ) रमणी रत्नमाला - लेखक प्रज्ञात, मा० हि० । रयणसार ( सटीक ) -- लेखक कुन्दकुन्दाचार्य, अनु० क्षुल्लक ज्ञान सागर, भा० प्रा० हि० पृ० १३० ॥ रयणसार - लेखक कुन्दकुन्दाचार्य, सपा० प० पन्नालाल सोनी, भा० प्रा० सं० पृ० ३२ वर्ष १६२० । रविव्रत उद्यापन ले० भानुकीर्ति व भाऊ कवि, प्र० मूलचन्द किशनदास कापड़या सुरत, भा० स० पृ० १६, ० १६४३, भा० द्वितीय । रविव्रत कथा -- लेखक कवि भाऊ, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १६ । रविव्रत कथा - ले० कवि भाऊ, प्र० जैन ग्रन्थकार्यालय देवरी, भा० हि० पृष्ठ १५ । - रविव्रत कथा (बडी) - लेखक ज्ञानचन्द जैनी, प्र० देहली; भार हि०, पृ० ४५; १० १६४१, प्रा० प्रथम, कुछ माताओ ने प्रकाशित कराया) । रस भरी लेखक प्र० भगवत स्वरूप जैन, भा० हि०, पृ०६६, व० १९४० । रहस्यपूर्ण चिट्ठी - ले० प० टोडरमल्ल जी, सग मास्टर छोटेलाल, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि० पृ० १६, ० १९३६ ० द्वितीय । राजपुताने के जैन वीर - लेखक अयोध्याप्रसाद गोयलीय, प्र० हि० विद्यामंदिर देहली, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ३५२, वर्ष १६३३, प्रा० प्रथम । राजुन पच्चीसी -- लेखक कवि विनोदी लाल, प्र० बद्रीप्रसाद जैन काशी; भाषा हिन्दी, पृष्ठ १३, वर्ष १६०६, प्रा० प्रथम वर्धमान जैन पुस्तकालय ( इरो ही देहली की राजुल भजन एकादशी - लेखक पंडित न्यामतसिंह, प्र० स्वयं हिनार; भाषा हिन्दी, पृष्ठ ८, प्रा० तीसरी । रात्रि भोजन कथा (सचित्र) - प्र० जिनवारणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ५६, व १६३६ । Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२११) · रामदुलारी-लेखक प्र० बा० सूरजभान वकील देवबंद; मा० हि०। . रामबनबास (काव्य)-लेखक प० गुणमद्र जी, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ६५, व० १६३६, मा० प्रथम । • रिष्ट समुच्चय-लेखक दुर्गदेव, संपा० ए. एस. गौपानी, प्र. सिंधी जैन अध माला बंबई, भा० प्रा० स०अ०, पृ० १५६, २०१९४५, प्रा० प्रथम । रेशम के वस्त्र -लेखक ज्योतिप्रशाद जैन, प्र. जैन मित्र मंडल देहली, मा० हि०, पृ० ८। • लखनऊ परिचय-लेखक ज्योतिप्रशाद जैन, प्र. अवध प्रान्तीय दिग. जैन परिषद लखनऊ, भा० हि०, पृ० १६, २० १९४४ । - लघुन यचक्र-लेखक देवसेन, (नय चकादि संग्रह में प्र०)। “ लघुबोधामृतसार-लेखक कुंथसागर प्राचार्य, अनु० वर्षमान पाश्वनाथ शास्त्री, प्र० सेठ मगनलाल खमीचद जावरा, भा० सं० हि०, पृ० १३, २० ११३८ । लघुशान्ति सुधा सिंधु-लेखक कुंथसागर प्राचार्य, प्र० विजयलाल जैन हूँगरपुर, भा० स० हि०, पृ० ४४, व० १६४८ । लघुपर्वसिद्धिः-लेखक अनन्तकीर्ति, मा० स०, पृ० २३, व० १६१५ । लघुमामायिक या पाप प्रायश्चित-ले० चम्पालाल जैन, प्र० सेठ गुलाब चंद्र, भा० हि, पृ० २० । लड़कों के विक्रय का डामा-लेखक कवि ज्योतिप्रशाद, प्र० रा मा. नेमदास देहली भा० हि०, पृ० १७, २० १९३६, आ० प्रथम । लघयित्रयम्- (अकलंक अथ त्रयम् तथा लघयिस्त्रादि सग्रह मे प्र०)। लघायच्यादि संग्रह-लेखक भट्टाकलक व प्रनन कीर्ति, सपा०प० कलप्पा भरमप्पा निटवे, प्र० मारिएकचन्द्र दिग० जैननथमाला बम्बई, भा० सं०, पृ० २२४, व० १९१६, प्रा० प्रथम । लब्धिसार (क्षपणासार सहित)-लेखक नेमिचन्द्र सि० च०, स. टी० केशववर्णी (जीव तत्त्व प्रदीपिका), हि०, टी० पं० टोडरमल्ल (सम्यग्ज्ञान Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१२ ) चन्द्रिका तथा अर्थ सदृष्टि अधिकार ), सपा० गजाघरलाल व श्रीलाल, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, मा० प्रा० सं० हि०, पृ० ७४, १० १६१६, प्रा० प्रथम । लब्धिमार ( क्षपणासार सहित ) - लेखक टोडरमल्ल, हि० टी० प० मनोहरलाल, प्र० रामचन्द्रजैनशास्त्र मालाबम्बई, भा० प्रा० स० हि०, ५० १७५, व १८१६, ग्रा० प्रथम । लाटी महिना - लेखक पाँडे भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी व० १९३८, प्रा० प्रथम । राजमल्ल, हि० अनु० पं० लालाराम, प्र० सस्था कलकत्ता, भा० स० हि०, पृ० ३७६, लाटी सहिता- लेखक पाँडे राजमल्ल, संपा० प० दरबारीलाल न्या० aro, प्र० माणिकचंद दिग० जैन प्रथमाला बम्बई, भा० स० पू० १५६, व० १६३७, ग्रा० प्रथम । लाला जम्बू प्रसाद - लेखक ऋषभदास जैन, प्र० स्वयं, भा० हि०, पृ० ११५ । लावनी कता खडन का फोटू-लेखक ज्योतिप्रशाद, प्र० स्वय भा० हि० पृ० ८०० १६०५ लिग पाहुड़ (लिङ्ग प्राभृत) - लेखक कुन्दकुन्द, (अष्टपाहुड व षटप्राभृत तादि संग्रह मे प्र० ) 1 लेखक प० पन्नालाल बाकली वाल, भा० हि०, लिंगबोध व्याकरण् पृ० २१ । दाणिकप्रिया ( कविता सग्रह ) - लेखक अज्ञात, भा० हि० । वनवासिनी - लेखक उदयलाल काशलीवाल, प्र० हि० जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ४३, १० १६१४, प्रा० प्रथम । व और जाति भेद लेखक बा० सूरजभान वकील प्र० चद्रसेन वैद्य इटावा, भा० हि०, पृ० २७, व० १६६६, आ० प्रथम । वर्तमान चतुविशति जिन पंच कल्याणक पाठ - लेखक कवि वृन्दावन, Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१३ ) संपा० प्र० बी० एस० जैन बुलन्दशहरी, भा० हि०, पृ० ८०, भा० प्रथम । वर्तमान चौबीस जिन पंच कल्याणक पाठ-लेखक कवि वृन्दावन, प्र० जन धर्म प्रचारणी मभा देवबन्द, भा० हि०, पृ० ६२, ब० १८६६४ प्रा० प्रथम । वर्तमान चौबीस तीर्थ कर पच कल्याणक पूजा -ले० कवि वृन्दावन, प्र० विद्यादानोपदेश प्रकाशनी जैन सभा वर्धा, मा० हि०, पृ० ६२ । वर्तमान जिन चतुर्विंशति पूजा विधान - ले० बालाप्रशाद कानूनगो, ० स्वयं रामपुर स्टेट, मा० हि०, पृ० १३६, व० १६३६, प्रा० प्रथम । बद्ध मान पराण (पद्य) - लेखक कवि नवलशाह, संपा० पन्नालाल सा० मा० प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत; मा० हि०, पृ० ४२६, व० १६४२: मा० प्रथम | वरांगचरित्र - ले० जटासिनन्दि, सपा० डा. ए० एन. उपाध्ये, प्र० माणिकचन्द दिग० जैन ग्रथ माला बम्बई, भा० अप०, पृ० ३६५, व० १६३८: प्रा० प्रथम । airचरित्र (भाषा पद्य) -ले० कवि० कमलनयन, सपा० बा० कामता प्रशाद, प्र० जैन साहित्य समिति जसवन्त नगर, मा० हि० पृ० १३६, व० १६३६, प्रा० प्रथम । बसुनन्दि श्रावकाचार - ले० वसुनन्दि श्राचार्य, टी० अनु० बा० सूरजभान वकील, प्र० प्र० स्वयं देवबंद, भा० स० हि०, १० ६५, व० १९१६ आ० प्रथम । पन्नालाल जैन देशहितैषी वाग्भटालङ्कार ( सटीक ) - ले० वाग्भट्ट, प्र० ग्राफिस बम्बई, भा० सं० । वास्तुसार प्रकरण - ले० ठक्कर फेर, टी० प० भगवानदास भा० सं० दि० पृ० २१६ | विक्रान्त कौरव नाटकम्-ले० हस्तिमल्न; सं० प० मनोहरलाल, प्रकाशया Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१४ ) मारिक चन्द दिन० जैन ग्रन्थमाला बम्बई, भा० सं०, पृ० १७६, ब० १९१६० प्रा० प्रथम । विचार पुष्पोद्यान-संग्र० दौलतराम मित्र, प्र० साहित्य रत्नालय बिजनौर मा० हि०, पृ० २४८, ० १६२६, ० प्रथम । विजातीय विवाह श्रागम और युक्ति दोनों से विरुद्ध है - ले० श्रीलाल पाटनी, प्र० संयुक्त प्रान्तीय सडेलवाल सभा, भाव हि० पृ० ११२ ० प्रथम । विजातीय विवाह मीमांसा - ले० प० परमेष्ठी दास, प्र० दुलीचन्द परवार कलकत्ता, भा० ६ि०, पृ० १७२, व० १६३५ प्रा० प्रथम । विजातीय विवाह मीमांसा - ले० दरबारी लाल न्यातीर्थ, प्र० जौह्रीमन सरफि देहली भा० हि०, पृ० १७, ० १९२५ । विज्ञाप्ति त्रिवेणी - संपा० मुनि जिन विजय; भा० स० हिट, पृ० १६६, ब० १६१५ । विद्यमान विशति तीर्थङ्कर पूजा - ले० कवि थार्नासह, संपा० इन्द्र लान शास्त्री, प्र० नेमिचद बाकलीबाल कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १८८, १० १६२३ प्रा० प्रथम । विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा-ले० प्र० शीतल प्रसाद, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० ६ि०, ४०२६६, व० १६३५, ० प्रथम । विद्य तचोर - ले० पीतराम जैन, प्र० फूल चंद सोगानी कोटा, भा० हि०, पृ० ५५, ब० १६३६, प्रा० प्रथम । विद्वदुजन बोधक (प्रथम भाग ) -- ले० प० पन्नालाल सिंघी दूनी वाले, प्र० जैन ग्रथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ५३६, १० १६२५ प्रा० प्रथम । विद्वद्ररत्न माला ( प्रथम भाग ) -- ले० प नाथूराम प्रेमी, प्र० जैन मित्र कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० १७४, १० १६१२, प्रा० प्रथम । विदेशों में जैन धर्म -- ले० बा० देवी सहाय, भा० हि०, पृ० २६० १६०७ । Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदेह क्षेत्रीय विशति तीर्थकर संस्कृत पूजा-ले० ५० रामप्रसाद भा० स०, पृ० १२, १० १९२५ । विधवाओं और उनके संरक्षकों से अपील-ले०७० शीतल प्रसाद,प्र. जन बाल विधवा सहायक सभा देहली, भा० हि०, ५० १६, २० १६२८, मा०प्रथम । विधवामों की दुर्दशा का दिग्दर्शन-ले. मोती लाल पहाडया भा. हिन्दी। विधवा विवाह-ले. मोतीमाल पहाड्या, मा० हि०, पृ. १६, ३० १९२६ । विधवा विवाह की प्रसिद्धता-ले० ५० श्री लाल; भा० हि०, पृ. ४५ व. १६०७॥ विधवा विवाह खडन-ले० १० झम्मनलाल तर्क तीर्थ, मा० हि. १० ६२। विधवा कर्तव्य-ले० बा० सूरजभान वकील, प्र. हिन्दी प्रब रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० १५२, व० १६१८, प्रा० प्रथम । विधवा चरित्र-ले० बा० भोलानाथ जैन, भा० हि० पृ. ४ । विधवा विवाह प्रकाश-ले. रघुवीर शरण जैन, प्र० जैन बाल विषया सहायक सभा देहली, भा० हि०, पृ० १६, २० १६३२, प्रा० प्रथम । विधवा विवाह समाधान-ले० सव्यसाची, प्र. जैन बाल विधवा सहायक समा देहली, भा० हि०, पृ० १८, व. १६२१ प्रा० प्रथम ।। विधवा संबोधन-ले०प० जुगल किशोर मुख्तार, भा० हि०, पृ० १६ ३० १९२२, (कविता)। विनती संग्रह-प्र० बैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई, मा० हिन्दी पृ० ५६; २०१६२६, प्रा० प्रथम । विमल नाथ पुराण-ले० सकल कीत्ति भट्टारक, अनु०प० गजाधर लाव ७० जिन वाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्सा, भा० सं० हि०, पृ० १०४ ५० १९२३, मा० प्रथम । Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाम करने ( २१६ त्रिमल नाथ पुराण - ले० प्र० कृष्णदास, अनु० गजावर लाल, प्र० जिन पाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० स० हि०, पृ० २०८ व० ४६३६, प्रा० द्वितीय । बिमल पुराण- ले० ब्र० कृष्णदास. श्रनु० श्रीलाल काव्य तीर्थ, प्र० भारतीय म सिद्धात प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० म० हि०, पृ० १४३, प्रा० प्रथम । विमल पुराण ( भाषा) - जे० ब्र० कृष्णदास, अनु० श्री लाल का० ती ०; प्र ० जैनग्रथ रत्नाकर कार्यालय कलकत्ता, भा० हि० पृ० १२६, ० द्वितीय विमल पुष्पाजंली (कविता) - ले० मैनाबाई, प्र० शम्भूलाल दयाचन्द्र भा० हि, पृ० १६ । विमल श्रद्धांजली - ले० मैनाबाई, प्र० दयाचन्द दुखिया मलाहाबाद, भा० हि ० पृ० १६, व० २६४७, विरोध परिहार - ले० प० राजेन्द्र कुमार, प्र० भारतवर्षीय दिग० जैन सघ श्रम्वाला; भा० हि-, पृ० ४४८, व० १६३८ ० प्रथम । विवाह और हमारी समाज---ले० परिता ललिता कुमारी, प्र० सुशीला देवी पाटली जयपुर, भा० हि०, पृ० ४१, ० १९४० प्रा० प्रथम । विवाह का उद्देशय - ले० प० जुगल किशोर मुख्तार, भा० हि०, पृ० ३६, व० १९१६ । विवाह के समय पुत्री को शिक्षा और आशीर्वाद - ले० ज्योति प्रसाद बन, भा० हि०, पृ० १५, व० १६३० । विवाह क्षेत्र प्रकाश-- ले० प० जुगल किशोर मुख्तार, प्र० जौहरी मल बेन सर्राफ देहली, भा० हि०, पृ० १७५; व० १६२५ भा० प्रथम । विवाह समुद्दे य- - ले० ० प० जुगल किशोर मुख्तार, प्र० साह मुकन्दी लान मजीबाबाद; भा० हि०, पृ० ४० व० १६२२, म० प्रथम | विवाह समुद्देश- ले० प० जुगल किशोर मुख्तार, प्र० वीर सेवा मदिर - सरसावा, मा० हि० । विश्वप्रेम और सेवाधर्म- ले० मोध्यया प्रसाद गोयलीय, प्र० मामनवद प्रेमी दहनी, भा० हि०, पृ० ३२; व० १९२८, प्रा० प्रथम । Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विश्व लोचन कोष-मे० श्रीधर सेनाचार्य, अनु० नन्दन लाल शर्मा, प्र. गावी नापारंगजी बम्बई, भा० सं० हि०, पृ० ४२१, व० १९१२, मा० प्रथम । विशाल जैन संघ-ले० बा० कामता प्रसाद, प्र० परिषद पब्लिशिंग हाउस बिजनौर, भा० हिपृ७५, व ० १९२६, मा. प्रथम । विष्णुकुमार-ले० ५० जुगमन्दिरदास, प्र० स्वयं हिम्मतनगर (मागरा), भा० हि०, पृ० ४७, २० १९२८, प्रा० प्रथम। विषापहार भाषा-ले० अचलकीर्ति, प्र. जैनधर्मप्रचारकपुस्तकालय देवबद; भा० हि०; पृ० ४, ५० १६०६, मा० प्रथम ।। विषारहार स्तोत्र-ले० धनञ्जय कवि; भा० स०, (पच स्तोत्र का काव्यमाला सप्तम् गुच्छक मे प्र०) वीतराग स्तोत्र-ले० हेमचन्द्र, भा० स०, पृ० ७७, व० १९१४ ।। योर अकलंक नाटक-ले०प० सिद्धसैन व गुगभद्र, प्र. दिगम्बर जैन पुस्तकालय मुजफ्फर नगर, भा० हि०, पृ०७५, २० १६३७, प्रा० द्वितीय । वीर आह्वान-ले० धन्यकुमार जैन, प्र० दिग० जैन छात्र हितकारिया सभा सागर, भा० हि०, २० १९४० । वीर गुटका--मग्र० सपा० मानन्ददास जैन, प्र० धर्मपत्नी नन्हेमन देहली, भा० हि०, पृ० ३५०, व० १९४१, पा० प्रथम । वीरचन्दराघव जी गाँधी का जीवन चरित्र-भा० हि०, पृ० ३१ ब० १६१८ । वीर चरित्र (पद्य) ले० राजधरलाल जैन; सपा० प्र० सिंघई मिट्ठनबाल केवलारी, भा० हि०, व० १९२६, मा० प्रथम ।। वीर जीवन-ले० लज्जावती विशारद, प्र. मूलचन्द किशनदास कापड़िया सूरत, भा० हि०, पृ० ११७, व० १६४१, मा० प्रथम । वीर निर्वाण पूजा-ले० दुलीचद जैन, प्र० बैन पाठशाला सतना, भा० हि०, पृ० १०, २० १९२७, मा० प्रथम । वीर पाठावली-ले० बा० कामताप्रशाद, प्र० मूलचद किसनदास कापडिया सूरत, भा० हि०, १० ११४, ५० १६४२, प्रा० द्वितीय । Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१८ ) बीर प्रभु के नाम खुली चिट्ठी-ले० लोकमणि जैन, प्र. तारण समाज, भा० हि०, पृ० २८, व०१६४० । वीर पुष्पोजली-ले प० जुगलकिशोर मुख्तार, प्र० प्रेममदिरमारा, , भा० हि० (पद्य), पृ० ५६, व० १९२१, प्रा० प्रथम । वीरमाला-सग्र०प० मानददास जैन, प्र० मुल्तानसिंह देहली, भा० हि०, पृ० ४८, व० १९४० । वीर वन्दना-सम० सपा० लक्ष्मीचन्द जैन एम० ए०, प्र. जैन मित्र मडल देहली, भा० हि०, पृ० ४४, व० १९३३, प्रा० प्रथम । वीर स्तुति-ले० अज्ञात, भा० हि । वीर सन्देश-ले० दयाराम जैन, प्र० वर्द्धमान साहित्य मन्दिर लखनऊ, भा० हि०, पृ० १६ । वृद्धविवाह-प्र. जैन तत्त्व प्रकाशिनी सभा इटावा, भा० हि०, पृ० २६, व० १६१४। वृन्दावन विलास-ले. कविवर वृन्दावन, सपा० नाथूराम प्रेमी, प्र० जनहितैषीकार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० १५०, व० १६० -- मा० प्रथम। वृहत् कथा कोष-० हरिषेणाचार्य, सपा० सा. ए एन. उपाध्ये, प्र० भारतीयविद्याभवन बबई, भा० स०, पृ. ४०२, व० १६४३, मा० प्रथम। वृहज्जिनवाणी संग्रह-पा०प० पन्नालाल बाकलीवाल, प्र. जैन पथकार्यालयकलकत्ता, मा० हि० स०, पृ० ७६४, व. १६४१, प्रा. पाठवी। वृहज्जेन नित्य पाठ संग्रह-सपा० पं० पन्नालाल बाकलीवाल, प्र. मारतीयजैनसिद्धांतप्रकाशिनी सस्था कलकत्ता, भा० हि० स०, २० १९२६ । वहज्जैन शब्दाव (प्रथम खड)-ले. सपा. मास्टर बिहारीलाल Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (स ) चैतन्य, प्र. मेनेजर स्वल्पाचं भान रलमाला बाराबकी, भा० हि०, पृ० २८६, व. १९२५, मा० प्रथम । वहाजैन शब्दार्णव (द्वितीय बड)-स. मा. बिहारीलाल, सपा. ब० शीतलप्रसाद, प्र. दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि• पृ० ३९१, व० १९३४, प्रा० प्रथम । वहज्जैनेन्द्र यज्ञ-ले. मुनीन्द्रसागर, प्र. जिनमति बाई परनवाड़ा, मा० स० हि०, पृ०६८, मा० प्रथम । वहत् द्रव्य समहले० नेमिचंद्राचार्य, सं० टी० ब्रह्मदेव, हि° अनु० जवाहरलाल, सपा० मनोहरलाल, प्र० परमधुत प्रभाक्क मडल बम्बई, भा० प्रा० स० हि०, पृ० २१८, २० १९१६. प्रा० द्वितीय । वहन्नय चक्रम-ले० माइल्लघवल. भा० प्रा० स०, पृ० ११२ (नय चकादि सग्रह मे प्र०) वृहत् निर्वाण विधान और त्रैलोक्य जिनालय विधान-ले० कवि बमसराय, सपा, बुद्धिलाल श्रावक, प्र० मूलचद किसनदास कापडिया सूरत, भा० हि०, पृ० ६२, ५० १९२२, प्रा० प्रथम । वृहविमलनाथ पुराण--ले० ब० कृष्णदास, प्र. जिन वाणी प्रचारक कार्यालय कनकत्ता, भा० हि० पृ० ३६६, व० १६३४, ० प्रथम । वृहत्सम्मेदशिखर महास्य-ले० ब० मनसुखसागर, सपा०प० मूसचद, प्र० रघुनाथप्रशाद ऐत्मादपुर, (आगरा), भा० हि०, पृ० १८२, व० १९०६, मा० प्रथम। वृहत्सर्व सिद्धि-ले० अनन्तकीति प्राचार्य, भा० स०, पृ० ७५, ३० १९१५। वृहत्स्वंयभू स्तोत्र (मूल) ले० समन्तभद्राचार्य, भा० स०, पृ० १४, व. १९०५। बृहत्स्वयंभूस्तोत्र-ले० समन्तभद्राचार्य; मनु०१० मुन्मालास, प्र. प्यारे बाल पचरत्नखुरई; भा० सं० हिन्दी, पृ० ७६, ५० १६१६, पा. प्रथम । Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२० ) बृहत्स्वयंभू स्तोत्र - से० समन्तभद्राचार्य, टी० ० शीतल प्रसाद; प्र० दिन ० पुस्तकालय सूरत; भा० स० हि० पृष्ठ ३१६, व० १६३२, प्रा० प्रथम । बृहत्स्वयंभू स्तोत्र - ले० समन्तभद्राचार्य, अनु० दीपचंद पाडया, प्र० अर्हत्प्रवचन साहित्य मंदिर केकडी (अजमेर) भा० स० हि०, पृ० ४०, ब० १६४० आ० प्रथम । बृहत्सामायिकपाठ - सपा० अनु० प्र० मूलचन्द किशनदास कापडिया सूरत, मा० स० प्रा० हि०, पृ० १६६, व० १६३६ । वेद क्या भग्वद्वाणी हैं- ले० सोऽह शर्मा, प्र० जैन शास्त्रार्थ घ अम्बाला; मा० हि० पृ० १८, १० १६३३, आ० दूसरी । वेद पुराणादि ग्रंथों में जैन धर्म का अस्तित्त्व - ले० प० मक्खनलाल प्रचारक, प्र० स्वयं देहली, भा० हि०, पृ० ६०; १० १९३० प्रा० प्रथम । वेद मीमांसा - ले० प० पुत्तलाल, प्र० ब० शीतल प्रसाद सूरत, भा० हि० पृ० ६६; व० १६१७, श्रा० प्रथम । वेद समालोचना-ले० प० राजेन्द्र कुमार, प्र० चम्पावती जैन पुस्तक बाबा अम्वाल, मा० हि०, पृ० ११६, २०१९२०; आ० प्रथम | वैदों मे विकार-ले० स्वा० कर्मानंद, प्र० शास्त्रार्थं सघ अम्बाला, भा० हि० पृ० २३, ० १६३६, आ० प्रथम | वैदिक ऋषिवाद-ले० स्वा० कमनद, प्र० शास्त्रार्थं सघ अम्बाला, भा० , पृ० ६६, व० १६३६, ० प्रथम । हि०, वैद्यसार - ले० पूज्यपाद स्वामी, अनु० सपा० सत्यधर का० ती०; प्र० जैब सिद्धान्तभवन धारा, भा० स० हि० पू० ११० १० १६४२ प्रा० प्रथम । वैराग्य भावना - ले० भूवरदास को, भा० हि०, पृ० ८ ० १९०३ ॥ वैराग्य शतक - ले० गुणविजय आचार्य, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भाषा हि०, पृ० १५, व० १६३८, प्रा० प्रथम । बेश्यानृत्यस्तोत्र - वे० प० जुगल किशोर मुस्तार, मा० हि० स०, पृ० १६, व० ११३८ । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२१ ) वैराग्य मणिमाला - से० श्री चन्द्राचार्य, भा० स०; (ग्रन्यत्रयी तथा तत्त्वानु शासनादि संग्रह में प्र० ) शकुन सिद्धान्त दर्पण - सपा० सुमेरचद उन्नीषु प्र० मूलचन्द किशनदास कापडिया सूरत, भाषा हिन्दी; पु० ५६, व० ११३८, प्रा० प्रथम । शब्दानुशासनम्-ले० शाकटायनाचार्य, स० टी० प्रभय चन्द्र सूरि ( प्रक्रिया संग्रह), सपा० पं० ज्येष्ट राम मुकुन्द जी शर्मा, प्र० पन्नालाल जैन बम्बई, भा० स० हि०, पृ० ४८८ ० १६०७ । शब्दानुशासनम् - ले० शाकटायनाचार्य; सं० टी० यक्षवर्ग (चितामणि वृत्ति), सपा० पडित मुन्नालाल, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्न प्रकाशनी संस्था काशी, भा० सं० हि०, पृ० ८०, व० १६२६ । शब्दात्र चन्द्रिका - ले० सोमदेव सूरि, सपा० श्रीलाल जैन, प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी मस्था काशी भा० संस्कृत, पृ० २६९, व० १६१५, ० प्रथम । श्वेताम्बर मत समीक्षा - ले० प० प्रजित कुमार शास्त्री, प्र० प० वशीषद शोलापुर, भा० हि०, पृ० २७६, व० १६३०, आ० प्रथम । श्रद्धा ज्ञान और चारित्र - ले० चम्पतराय बैरिस्टर, अनु० कामता प्रसाद, ० साहित्य मडल देहली, मा० हि०, पृ० /१५ व० १६३२, श्रा० प्रथम । अंगार वैराग्य तरगिणी - ले० सोमप्रभाचार्य, प्र० जगजीवन सुन्दर श्रावक भा० स० पृ० १६, व० १८८५ प्रा० प्रथम । श्रमण नारद - ले० प० नाथूराम प्रेमी, प्र० जैन ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ३० व० १६१८ । श्रमण भगवान महावीर - लेखक मुनि कल्याण विजय, भा० हि०, पृ० ४३२, व० १६४१ । श्रावक धर्म प्रकाश -- लेखक सूर्य सागर प्राचार्य प्र० श्रीमंत सेट ऋषभ कुमार खुरई, भा० हि० पू० ११० १० १६३१, आ० द्वितीय । Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२२ ) श्रावक धर्म दर्पण - ० जैन पुस्तक प्रकाशक कार्यालय ब्यावर, मा० हि०, पृ० ४५० वर्ष १६२४ । श्रावक धर्म संग्रह - लेखक पडित दरयावसिंह, प्र० स्वय इन्दौर, भा० हि० पृ० ३०४, ६० १६१५, प्रा० प्रथम श्रावक नियमावली - लेखक नेमिसागर ऐलक, प्र० श्रविका संघ देहली, भा० ति०, पृ० १६, ० प्रथम । श्रावक प्रतिक्रमण -- अनु० नन्दनलाल वैद्य, प्र० मूल चन्द किशन दास कापडिया सूरत, भाषा हि०, पृ० ६४ व० १६२४, प्रा० प्रथम । श्रावक प्रति क्रमणसार - ले० कुन्थमागर प्राचार्य, प्र० श्राचार्य कु थसागर प्रथमाला शोलापुर, भा० स० हि० पृ० १०६; १० १६४२, श्रा० प्रथम । श्रावक aftता बोधिनी-लेखक जयदयाल मल्ल, प्र० स्वयं गन्नौर ( देहली), मा० हि० पृ० १४८, ० १६०८ ० दूमरी । श्रावकत्रर्तिता घोविनी -- लेखक जय दयाल मल्ल, प्र० जीवाकौर बाई महिला ग्रन्थ भडार बम्बई, भा० ति०, पृ० १०६, ६० १६३१, प्रा० छटी, श्रावक वनिता बोधिनी-लेखक प्र० भारतीय दिग० जैन महिला परिषद बम्बई, भा०] हि०, पृ० १२० १० १६२० प्रा० चतुर्थ । श्रावकाचार - लेखक अमित गति प्राचार्य, हि० टी० पडित भागचन्द, प्र० मुनि अनन्त कीर्ति दिग० जैन ग्रन्थमाला बम्बई भाषा स० हिन्दी पृ० ४४२, वर्ष १६२२, प्रा० प्रथम । श्रावकाचार ( प्रथम भाग ) - लेखक गुणभूषण भट्टारक, अनु० पडित नन्दनलाल वैद्य, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भाषा स० हिन्दी, पृष्ठ १५५ वर्ष १६२५, प्रा० प्रथम । आवका चार ( द्वितीय भाग ) - लेखक गुणभूषण भट्टारक, श्रनु० पडित नन्दन लाल वैद्य, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भाषा हिन्दी; पृष्ठ १३४, य० १६२५, प्रा० प्रथम । श्रावका चार को सच्ची कहानियां - अनु० सपा० भुवनेन्द्र विश्व, प्रकाशक , Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२३ ) fer वारणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भाषा हिन्दी, पृ० ६६; १० १९३६, प्रा. प्रथम । श्राविका धर्म दर्पण - लेखक बाबू सूरज भान वकील, प्र० कुलवंतराय जैन भाषा हिन्दी, पृष्ठ ५७, व० ४६३६६ प्रा० प्रथम । श्राविका धर्म दर्पण - प्र० जैन पुस्तक प्रकाशक कार्यानल ब्यावर, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ६४, व० १६२४ । श्री देवाधिदेव रचना -- लेखक कवि हरजसराय, अनु० सपा० श्रीलान जैन, प्र० गुरुदत्तमल पन्नालाल कसूर, भा० स० हिन्दी पृ० ८० १० १९१५, श्रा० प्रथम | * श्रीपाल - लेखक कन्हैलालाल जैन, भा० हि०, पृ० १३८, १० १६३० । श्रीपाल चरित्र (पद्य) - लेखक कवि परमल्ल, अनु० मास्टर दीपचंद, प्र० मूलचद किशनदास कापड़िया सूरत, भा० हि०; पृष्ठ १७४; व० १९१७, श्रा० द्वितीय | श्रीपाल चरित्र समालोचना - लेखक वाडीलाल मोतीलाल शाह, प्रकाशन चन्द्रसेन वैद्य इटावा, भा० हि०, पृ० २२, ० १६१८, प्रा० प्रथम | श्रीपाल नाटक - प्र० दिग० जैन उपदेशक सोसाइटी देहली, भा० हि०, १० १५२, व० १६२३, प्रा० प्रथम | श्री धवल - देखो 'षटखडागम्' । श्री पाल पुराण (सचित्र) - ले० कवि परिमल्ल, सपा० परमानद मिघई, प्र० जिन वारणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १७४, व० १९३५ i भा० प्रथम श्रीपुर पार्श्वनाथस्तोत्र - लेखक विद्यानन्द स्वामी, भ० स०, पृ० ३१, ब० १९२० । श्रीमयानन्द परिचय - लेखक स्वा० कमनिंद, प्र० दिग० जैन शास्त्रार्थ सघ अम्बाला, भा० हि०, पृ० ६८, व० १६३६ आ० प्रथम । श्रुत भक्ति - लेखक पूज्यपाद: मा० सं० हि०, ( दशभक्त्यादि संग्रह में प्र० ) Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२४ ) ) - भा० स०, पृ० ३८ १० १६०५ । श्रत पंचमी क्रिया ( श्रु तावतारादि) - श्रुत स्कंध - ले ब्रह्म हेम चन्द्र, भा० प्रा० (तत्त्वानु शायनादि सग्रह, में प्र० ) श्रतम्य व विधान - ले० प० पन्नालाल दूनी वाले, प्र० मूलचंद किशनदास कापडिया सूरत, भा० हि०, पृ० ३२ व० १६२७ प्रा० प्रथम । श्रतावतार कथा और श्र तस्कंध विधानादि-स -संग्रह लालाराम जैन, प्र० जैन हितैषी कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ४८, ० १६०८, प्रा० प्रथम । श्रेणिक चरित्र - लेखक शुभचद्र भट्टारक, अनु० पडित गजाधर नाल, प्र० दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० ३१६, ० १६२८, प्रा० C प्रथम । श्रेणिक चरित्रसार - लेखक ब्रह्मनेभिदत्त, अनु० उदय लाल काशलीवान, प्र० हिन्दी जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ४२, ० प्रथम 1 1 श्रतावतार - नेक इन्द्रनन्दि, मा० म०, ( तत्त्वानु शासनादि सग्रह में प्र० ) श्रुतावतार - लेखक बिबुध श्रीधर भाषा स० (मिद्धान्त मारादि मग्रह प्र०) । शाखोच्चार भाषा - प्र० बा० सूरजभान वकील देवबद, भा० ६०; व० १८६८ । शान्ति कथा --ले० द्वारकाप्रशाद जैन, प्र० सागरमल चम्पालाल बगलौड़ भाव हि०, पृ० ६४, व० १९४१, ० द्वितीय । शान्तिनाथ चरितम् - ले० भावचन्द्र, भा० स० पृ० १६६, व० १६३६ अहमदाबाद | शान्तिनाथ पुराण - ने० सकलकीर्ति भट्टारक, अनु० प० लालाराम, प्र० सिंघई दुलीचन्द पन्नालाल देवरी, भा० हि० ५० ४०७, व० १६२३, आ० प्रथम | शान्तिनाथ ० सकल कीर्ति भट्टारक; अनु० प० लालाराम, पुराण ले० Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२५ ) प्र• जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता; मा० हि०, पृ० ३६२: ० १९३९, मा० तृतीय । " शान्ति भक्ति - ले० पूज्यपाद, भा० सं० हि०, ( दशभ कत्यादि सग्रह मैं प्र०) शान्ति महिमा - ले० मोतीलाल, मा० हि०, पृ० ६२, ० १६१८ | शान्ति सागर चरित्र - ले० १० वशीवर, प्र० एवजी सखाराम दोशी शोलापुर, भा०हि०, पृ० १६०, ० १६३२ | शान्ति सागराचार्य महाराज का जीवन र देहली, भ० हि०, पृ० ४८, ० १६३२, ० प्रथम । शान्ति साधना (पद्य संग्रह ) - प्र० चन्द्रकुमार शास्त्री मुजफ्फरनगर, भा० ६०, पृ० २४, १० १९३५, ग्रा० प्रथम । शान्तिसुख वाटिका ( भाग १ ) - ले० प० भूधरदास, प्र० नत्थनलाल जैन देहली, भा० ०ि, पृ. १६, ० प्रथन । शनि, सुख चाटिका ( भाग २ ) - ले० प० भूवरदास, प्रनस्ल ल जैन देहली, भा० हि०, पृ० १६ । शान्तिमुपाविन्धु-ले० कु ागर आचार्य, टी० प० लालाराम, प्र० चैनसुखदास गभीरमन पाइया कलकत्ता, भ० स० हि०, पृ० ४२२, ० १६४१ । शान्ति सवन (परमानन्द स्तोत्र आदि पाचपाठ सप्रह) - प्रतु 10 ज्ञानानन्द, प्र० हिंग प्रचरिणी सभा काशी, महि०, पृ० ११०, ब० १६२, प्रा० प्रथम । चरित्र - - सा० प्र० गुलशन " शान्तिमार्ग - ले० व्यानन्द्र जैन, भा० हि०, पृ० ४० १० १६१८ । शान्ति वैभव - ले० दयाचन्द्र जैन, भा० हि०, पृ० ६०, १० १६१६ । शारदाष्टक - ले० प० वनारसीदास, भा० ६ि०, ६० १६.७ ॥ शास्त्र मार समुच्चय-- ले० माघनन्दि योगी द्र, चै० शीतल प्रसाद वैद्य, ५० टीकाकार स्वयं दवी, भा० स० हि० पृ० ६०, प० १६२४, ΣΤΟ प्रथम । Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शास्त्रसार समुच्चय (मूल)-वे. मावनन्दि पोपीन्द्र, (सिखाया में प्र.) शास्त्रार्थ अजमेर---प्र० जैर तत्त्व प्रकाशिनी समा इटावा, m fre T००, २०१९१३. प्रा० प्रथम । शास्त्रार्य अजमेर का पूर्वरंग-प्र० चन्द्रसेन च इटावा, . पृ. १२१, २० १९१२ मा० प्रथम । शात्रायं नमीवावाद-प्र. जैन कापसमाज सवंतनगर, मा० ० पृ०४६.० १९१७, प्रा०प्रम। शास्त्रार्थ पानापत (प्रथम भाग)-प्र. दिग० जैन सघ अम्बाला, मा. हि०, पृ. १५२, ३० १९३४, प्रा० प्रथम । शास्त्रार्थपानीपत (द्वितीय भाग)-प्रदिप नैन सघ सम्बाला, भा.ite, पृ० १४६, १० १९३४ मा० मान । शास्त्राय फोराजावाद- मा. हि.प. ११.५० १९१४, मा. पतुः । शिक्षा चन्द्रिका-ले० पं० शिवचन्द्र, प्र.स्वयं देहली, भा. हि . १६, २०१७४, पा० प्रथम । शिक्षा जकड़ी-ले० कवि भूवरदाम, प्र० सुशी अमनसिह देहसी, था. हि० ० ६, प्रा० प्रथम । शिक्षा पत्री (पथ)-ले० प० मेहरचन्द, प्र. स्वय देहली, पा. , १. १२. ५० १८६४,-(शेस सादी के पन्पदनामे का हि• अनु०) शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदाहरण-ले० प बुगलकिशोर मुस्वारप्र. नौहरीमल बन सर्राफ देहली, भा. हि., पृ०२२, प्रा० प्रथम । शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदाहर। की समालोचना--ले० मक्खनवाब प्रचारक, प्र. जैन पंचायत देली, भा० हि०, पृ. ४६. व० १९२० मा. शिखर महालय-ले. मुन्नालाल, प्र. जैन धर्म प्रचारक पुस्वाय देवकी मा० हि., पृ. ११५० १६११, प्रा. द्वितीय । Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 " २२७ । शिखर महात्म्य मा० हि०, पृ० १४ । शिवराम पुष्पाँ जली (भौंक १) -ले० मास्टर चिप्र० रोहतक, भा० हि०, पृ० ३२ ० १६३८, प्रा० तृतीय । शिवराम पुपजली (प्रक २) - ले० मास्टर शिवरामसि प्र० स्वयं रोहतक, भा० [हिं० पृ० ३२, ० १६३८, प्रा० तृतीय । क शिवराम पुष्प वली ( प्र रोहतक, भी० हि०, पृ० ३२, १० ३)--ले० मास्टर शिवरामसिंह प्र० स्वय १६३४: मा० द्वितीय । शिवराम पुष्पांजजी (मंक ४ ) - ले० मास्टर शिवरामसिंह, प्र० स्वयं रोहतक, भा० हि, पृ० ३२, व० १६३३, भा० प्रथम । शिवराम पुष्पजली (भ्रंक ५) ले० मास्टर शिवरामसिंह, प्र० स्वय रोहतक, भा० पु० ३२ हि० प्रा० प्रथम । शिवराम पुष्पांजली ( श्रंक ६) - ले० मास्टर शिवरामसिंह, ४० स्वच रोहतक, भा० हि०, पृष्ठ ३२, व १९३६, प्रा० प्रथम । शिवराम पुष्पजली (अंक ७) -ले० मास्टर शिवरामसिंह प्र० स्वयं रोहतक, मा० हिंदी पृष्ठ ३२, १० १९३७, मा० प्रथम • शिवराम पुष्पांजली ( प्र क ८) ले० मास्टर शिवरामसिंह, प्र० स्थ रोहतक, भार हिंदी, पृष्ठ २०, ब० १६४४, भा० प्रथम । शिशुबोध जैन धर्म (प्रथम भाग ) -- प्र० दुलीचंद फनालाल पवार कलकत्ता, भा०] हिन्दी, पृष्ठ ८ शिष र महात्म - प्र० बा० सूरजभान वकील; भा• हिन्दी, ५० {nks शीतलनाथ स्तोत्र (पद्य) - ने० बीपालाल ज्योतिषरत्न, प्र० मूलचंद्र किशनदास कापड़िया सूरत, भा० हिन्दी, पृष्ठ २०: ३० १६२७, भा० प्रथम । शीतल सुमन - ले० प्रज्ञात, भा० हिन्दी । शील और भावनाले० मुंशीलाल एम. ए., प्र० स्वयं गा० हिन्दी; कुछ २४, न० १९०६, प्रा० प्रथम । Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २२८ ) शील कथा-ले. कवि भारामल्ल, प्र. जैन ग्रथरत्नाकर कार्यालय बम्बइ, भा० हिन्दी, पृष्ठ ७२, २० १६१५ । शोल कथा-ले. कवि भारामल्ल, प्र० दुलीचद परवार कलकता, भा. हिन्दी, पृष्ठ ६३, प्रा० प्रथम । शील कथा (मचित्र)--ले० कवि मारामल्ल, प्र. जिनवाणी प्रचारक कार्या-नय कलकत्ता, मा० हिन्दी, पृष्ठ ६४, प्रा० प्रथम । शील कथा-ले० कवि मारामल्ल, माः हिगी, पृष्ठ २४ । शील कथा--ले० कवि भारामल्न, प्र. नाथूराम लमेचू मुंडावरा, मा. हिन्दी, ० ६१, व० १८९६, प्रा० प्रथम । शीज फथा- ले. कवि भारामल्ल, प्र० ज्ञानचद जैनी ल होर, मा० हिन्दी, पृष्ठ ६४, व० १९०८ । शाल पाहुइ (शील प्राभूत) --ले. कुन्दकुन्द, (प्रष्ट पाहुड व पट प्राम तादि सग्रह मे ३०) शीन महात्म्यादि संग्रह (पद्य)-ले० कवि वृदावन, प्र. जानकी बाई पारा, हिन्दी, पृष्ठ ६, 4 १६००, प्रा० प्रथम । शोल मारमा प्रेमी हारापुरी, प्र. प्रेम. बन पुरतवालय पहारनपुर, भा० हिन्दी पृष्ठ २४, प्रा० प्रथम । शुद्ध द्रव्यां का आकृतियाँ-०५० माणिकचा कौन्देय, प्र. चतरसेन सहारनपुर, भा० हिन्दी, पृष्ठ ३०, ५० ५१४० । * शुद्ध- ले. बाबू सूरजभान वकीन, प्र० जैन संगठा सभा देहली, मात्र हिन्दी पृष्ठ १६, ६० १६२५ । शद्धि आन्दोलन परशाम्त्रो य व गर-ले० प. मक्तनलाल, प्र. रावजी भखाराज दंशी शोलापुर, भा० हिन्दी, ३२, 40 १६२६ । शूर मुक्ति-ले प्रजात, भा० हि पृष्ठ ३१, ६० १६२० । पटखंदागमः ( प्रखर, म.ग )-लं. पुदत भूत पलि प्राचार्य टो० वी मेन स्वामी (श्रीवान); हि० पनु - प्रो० हीरालाल पं. Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२९) लचंद पं० हीरालाल; प्र. श्रीमंत सेठ लक्ष्मीचंद शितावराय जैन साहित्यो.' तारक फड कार्यालय प्रमगंवती, भाषा प्रा० सं० हिन्दी, ५० ४३८, वर्षः १९३६ प्रा० प्रथम । षटखंडागमः (खड १, भाग २)ले. पुष्पदंत भूतल प्राचार्य, टी. पीरसेन स्वामी, हिन्दी अनु० सपा० प्रो० हीगलाल प० फूलचन्द पं. हीरालाजा प० श्रीमत सेठ लम्मीचः शिताबराय जैन साहित्योद्धारक फंड अमरावती, मा० प्रा० स० हिन्दी, पृ० ४४५, १० १६४०, प्रा० प्रथम । पटखंडागमः (खड २; भाग )-ले. पुष्पदत भूतबलि प्राचार्य, टी. वीरसेन स्वामी (श्रीधवल), हि. अनु० सपा प्रो. हीरालाल पं० फूलचंर पं. होरालाल प्र० श्रीमत सेठ लक्ष्मीचा शिजावराय जन माहित्योद्धारक फंड कार्यालय अमरावती, भा० प्रा० स० हिन्दी, पृ० ४८; व० १९४१, प्रा० प्रथम । षटम्टागमः (खड १, भाग ४)-ले० पुष्पदत भूगबलि प्राचार्य, टी०' वीरमेन सामी (श्रीघाव ), हि० अनु० संपा० प्रो० हीगलार व प.हीरालाल शास्त्री, प्र. श्रीमत सेठ लक्ष्मीचद सिताबय जैन सात्यिोद्धारक कार्यालय अमरावती, भा० प्रा० स० हिन्दी, पृ० ४८८, व १६४२, पा० प्रथम । पटखंटागम. (ख: १, भाग ५)-ले० पुष्परत भूत पलि पाचाय, टी० बीरसेन स्वामी (श्रीघवल), हि० मनु- सपा० प्रो. हीरालाल पं० फूलचन्द पं० हीरालाल, प्र० श्रीमत मठ लक्ष्मीचन्द शिताबराय जैन साहित्योद्धारक फंड कार्यालय अमरावती; भा० प्रा० सन्दिी , पृ०६५०, १० १६४२, प्रा० प्रथम। षटखंडागसः (खंड १, भाग ६)-ले० पुष्परत. भूतबनि प्राचार्य, टी. बीरसेन स्व मी (श्रीधवल), हि० अनु० संपा० प्रो० हीगल ल ५० बालचन्द्र, मा श्रीमत सेठ लक्ष्मीचन्द शिताबराय जैन साहित्योद्धारक फंड कार्यालय अमर वती, भा० प्रा० स० हिन्दी, पृ०५९६, २० १९४३, प्रा० प्रथम । षट खडागमः(खड २)-ले० पुष्पदंत भूतबनि प्राचार्य टी. वीरसेन Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३०) मायो (बी धावल), संपा० प्रो० हीरालाल पं. कुलपद पं होरालाल; . बीमंत सेठ लक्ष्मीचन्द शिताबराल जैन साहित्योद्धारक फर कार्यावय . बमरवती, भा० प्रा० सं० हिन्दी; पृ. ५६५, ३० १९४५, मा० प्रथम ।। पटद्रव्य दिग्दर्शन-ले. दयाचन्द्र गोयसीय, प्र० जैन धर्म प्रचारिणी पा काशी, भा०हि०, पृ० १६. व. १९१३ । पटपाहुड (सं० छाया व हि० अनु० सहित)-ले० कुन्दकुन्दाचार्य, प्र. पा० सूरजभान वकील देवबंद, भा० प्रा० स० हिल, पृ० १४०, . १९१. पा० प्रथम । पटप्रामृतादि संग्रह-ले. कुन्दान्दाचार्य, सं० टी० श्रुतसागर सूरि, संपा० ५० पन्नालाल सोनी, प्र. माणिकचन्द्र दिग० जैन ग्रंथमाला बळ भा.प्रा० सं०, पृ० ४६२, २० १९२०, प्रा. प्रथम। षोडश संस्कार--संपा० पं० लालाराम, प्र. जिनवाणी प्रचारक कार्यालय, भाषा हि०, पृ० १४७, १० १६२४, प्रा० प्रथम । पेडस संहार. जिनवाणी प्रचारक कार्यालय पलकत्ता, भाषा f०, पृ०७२। सच्चा जिनवाणी संग्रह-संपा० पडित कस्तूर चद, प्र. जिनवाणी पचारक कार्यालय कलकत्ता, ना हिन्दी सस्कृत, १०७६१; मा० पन्द्रहवी । सच्चा सुख-लेखक चम्पराय बरिस्टर, प्र. दिग० जैन परिषद कार्यालय बिजनौर; भा० हि०, पृ० २३, २०१८२५ । सच्ची प्रभावना-लेखक कुवर दिग्विजय सिंह, भा० हि०, १०४४, क. १६१०। सच्चे सुख का उराय-लेखक व शीतल प्रसाद, प्र० दिग० जैन मालवा धान्तिक सभा बड़नगर, भा० हि०, पृष्ठ २६, २० १६१६, मा. प्रथम । सज्जन चितवनलम-लेखक मल्लिषेपाचार्य, मनु० पडित मेहरचद, प्र. मुन्शी भमसिंह सोनीपत, भा० स० हिन्दी, पृष्ठ ६८, वर्ष १८१२. मा. पर। Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) सजन चिचवल्लम-लक मस्तिषणाचार्य प्रकाशन कराकर सावनिय बम्बई,भाषा हिन्दी, पृष्ठ २८.१११२, मा० प्रथम सम्जन चिट वल्लम-लेख मरिसणाचार्य, प्रावक माराम समेत जावरा, भाषा हिन्दी; पृष्ठ ३०, ब. १८६० प्रथम । सती भजना सुन्दरी नाटक-लेखक योनि प्रधाद, गंध. मंगल सेक, स्वाशक पारसन जन मुजफ्फरनगर, मा. हिन्दी, पृष्ठ १५८, २०१९३८ बा.वितीय। सती चन्दन माला नाटक-लेखक रसिंह नाप, प्रकाशक प्यारे पास पी सहाय देहली, भाषा हिन्दी, पृष्ठ २०७, २० १९२०, मा० प्रथम । सती पुष्पलता (सचित्र)-मेखक मुन्नालाल समगोरिया, प्र. दुलीचा रवार कचकत्ता, भाषा हिन्दी, पृष्ठ १.२,२०१९४१, मा० द्वितीय। सती मनोरमा-लेखक डा. मित्र सेन, प्र. दिग० जैन पुस्तकाबद्र एषपार नगर, भा० हि०, पृ००१, ३० १९३७, मा. प्रयम। सती सीता-लेखक पूनम चन्द्र सेठी, संपा. विद्या कुमार व राजमल लोड काशन जैन धर्म प्रचारक मंडन अजमेर, भाषा हिन्दी, पृ० १४, २० १९३५ पा.पषमा सणास्वरूप-लेखक पंडित भागचन्द्र, प्रकाशक नल्यूमन सेठा गया, मा. हिन्दी, पृ०६२, व. १९३६, मा०प्रथम। सत्य घोष नाटक-लेखक बाबू ज्योतिप्रसाद, प्रकाशक दिग. चन पुस्त कालय मुजफ्फर नगर, भा० हिन्दी, पृ० ८६, 4० १६३८, पा० प्रथम । सत्यमार्ग-लेखक बाबु कामता प्रसाद, प्रकाशक वीर कार्यालय विनोद पा०हि०, पृ.४४०,व०१९२, मा० प्रथम । सत्य संति-लेखक पडित दरवारी नान गत्य भक्त, भा.हिन्दी, १२८, २०१६३० । सत्यामृत (रष्टि कार)-नेखक दरवारी माल सत्य भक, प्रकाशक सल्लाप र्चा , भा० हि०, १. २१०, 4. १९४०, मा० प्रथम । Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३२ ) . सत्यामृत (प्राचार काह)- लेखक दरबारी सत्यभक्त, प्रकाशक सत्याधम मी, भा. हिन्दी, पृष्ठ २३०, प्रा. प्रथम । सयामृत (व्यव र कार)-मेखक दरवारीलाल सत्यभक्त, प्रकाशन सत्याश्रम वर्धा, भा० हिन्दी, पृष्ठ ३५१, १० १६४५, ग्रा० प्रथम । ___ सत्यार्थ द५-लेखक पडित भजित कुमार; प्रका. अकलंक प्रेय मुल्तान, भा० हिन्दी, पृष्ठ ३५०, २०१६३७, प्रा०द्वितीय। सत्यार्थ दर्प-लेखक पंडित अजित कुमार, प्रकाशक चम्पवाती पुरका माला अम्बाला, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ३३५, व० १६३१, मा० द्वितीय। . सत्याथ दपं.-~-लेखक पडित अजित कुमार, प्रकाशक लाल देवीसहाय फीरोजपुर, भाषा हिन्दी, पृष्ठ १५३, भा० प्रथम । - सत्यार्थ निर्णय-- लेखक पंडित अजित कुमार, प्रकाशक दिग० बैन संघ मथुरा, भा० हि, पृ. ६५६, व. १९४३, मा० प्रथम । सत्यार्थ प्रकाश और जैन धर्म-- लेखक स्वामी कर्मानन्द, भा० हिन्दी। . सत्यार्थ यज्ञ -लेखा कविमनरगलाल, प्रकाशक अनिताश्रम लखनऊ, घा० हि०, पृ० १४४, २० १६१३, मा प्रथम पृ० १५.० १९२५, मा० द्वितीय। सत्साधु स्मरण मंगल पाठ-सद० सपा. पडित जुगल किशोर मुस्तार प्रकाशक पार सेवा मदि• सरसावा, भाषा स० प्रा०दिन्दी, पृष्ठ ७७, व. १६४४, प्रा. प्रथम । स्तुति प्रार्थना-लेसफ सपा० नाथूराम प्रेमी, भाषा हिन्दी, पृ० १५, २० १९२६ । स्तुति प्रार्थना सग्रह-लेखक पंडित जुगल किशोर मुख्तार, बा. नीतीप्रसाद, मुशी राम प्रसाद, प्रकाशक नही मल सरीफ़ देहली, भाषा हिन्दी, स्तोत्र शतक-संपा० प्र० चन्द्रसेन नैन वैद्य इटावा, भा० सं० हि०, पु. ५८, २०१६.४। Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३३) स्त्रीगान जैन भजन पच्चीसी-लेखक परित न्यामतसिंह, प्र० स्वयं हिसार, भा० हि०, पृ० १६;व० १६१३, प्रा० तीसरी। स्त्री मुक्ति-भा० हि०, पृ. १२५० १६१६ स्त्री शिक्षा-लेखक पन्नालाल बाकलीवाल, प्र. मंगा विगु श्री कृष्णदास बम्बई, भा०हि पृ. ४५, च० १९०१। सत्यासत्य निर्णय- लेखक प्रकाशक लाल मुसद्दी माल निरपुड़ा (मेरठ), पाहि। सत्य का बोल बाला-प्र० दुली चन्द परवार, भा० हिन्दी, पृ० ६४, व० १९३५ सदाचार शिष्टाचार और स्वास्थ्य-लेखक बा० माई झ्याल जैन, भा० हि पृ०७२, व० १६३५ । सदाचार रत्न कोष (रल करड श्रावकाचार, लेखक समन्तभद्राचार्य, अनु० मूलचन्द वत्सल, प्र. साहित्य ग्लालय बिजनौर, भा० हि०, पृ. ३२, क. १९२६, मा० प्रयम। सदाचारी बालक-प्र. जैनाथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, मा० हि। सद्गुण पुष्पांद्यान श्रावकाचार-लेखक प० पुलनारी लाल, प्र. स्वयं पानीपत, भा० हि०, पृ० १८४, व० १९२४, प्रा० प्रथम ।। सद्विचार मुक्तावली (व.विना सग्रह)-संपा० चेतनदास जैन; भा० हिन्दी, वृ०६४। सद्विचार रत्नावली-लेखक पं० मुन्नालाल समगोरिया, प्र. दुलीचन्द परवार कलकत्ता, भा० हिन्दी, पृष्ठ ३०, ५० १६४२, मा० प्रथम । सन्मार्ग प्रदर्शक-लेखक प० उमराम सिंह, भा० हिन्दी, पृ० २२ - सन्यासी-लेखक भगवत जैन, प्रकाशक स्वय, भा० हिन्दी, पृष्ट ६६, ३० १६४२, नाटक। सनातन जैन यमाला-प्रथम गुच्छक (१४ अर्थों का संग्रह)-संपा०प० पन्नालाल ब बशीवर, प्र. निर्णय सागर प्रेस बम्बई, भा० प्रा० स०, १०३.६ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१४ ५० १६०१ । सनातन जैनवमं - लेखक चम्पतराम बैस्टिर, प्र० स्वयं हरदोई: मा० हि०% • ६२: ० १६२४; प्रा० प्रथम । सनातन जैनधर्म - लेखक पं० श्रीमान, प्र० जैनधर्म प्रचारिणी चा काशी मा० हित्र: पृ० १५, ० १६१३ । सनातन जैनमत -- ले० ब० शीतलप्रसाद, प्र० प्रेमचन्द चैन देहवी, डा० हि०, १०७४, १० १९२७, प्रा० प्रथम । सनातन जैन भजनावलो- ले० मंगतराय जैन 'साधु मा० हि० । सप्त ऋषि पूजा-ले० पं० स्वरूप चन्द, प्र० केसरी चन्द्र रामकरण हैबाद, भा० हि०, पृ० ५४, व० १६१५, मा० प्रथम ।, सप्त भंगी तरंगियो - लेखक पं० विमलदासः संपा० पी. वी. नंताचार्यर; प्र० संपा० स्त्रय कांची; भा० सं० पृ० ५२ १० १६०१, ग्रा० प्रथम सप्त भंगी तरंगिणी -- ले० पं० विमलदास; मनु ठाकुरप्रशाद शर्मा, • परमनुत प्रभावक मंडल बम्बई; भा० सं० हि० ५० ६६० ० १६०५ पा० प्रथम । सप्त भंगी तर गिली -ले० पं० विमलदास; संपा० पं० मनोहरलाल ० परमश्रुत प्रभावकमडल बंबई भा० सं० हि० पृ० ९३ ० १६१६: प्रा० द्वितीयः । सप्तमुनि पूजन - लेखक प्यारेलाल पुग्नमल, संपा० बेदानाल, ४० सुरनमल शमशाबाद: भा० हि०, पृ० १६, १० १६३० प्रा० प्रथम सप्तव्यसन चरित्र - लेखक सोमकीति भट्टारक, अनु० उदयलाल काथली बाल, प्र० जैन अथरत्नाकर कार्यालय बम्बई भा० हि० स० ० २२४, ० १६१२, प्रा० प्रथम । सप्तव्यसन चरित्र (सचित्र) — लेखक सोमकीत्ति भट्टारकः मनु० संपा० परमानंद, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, ब० १९३७ पा० प्रथम । 7 Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२ ) सप्तव्यसन (पद्य)-लेखक पं. मूलचन्द्र, मा० हि, पृ० । पंफलता के तीन साधन-० कुंवर मोतीलाल, भा. हि... सभाष्य तत्वार्थाधिगम सत्र.-लेखक उमास्वामी, हि. अनु.टी. प्रवचन्द्र शास्त्री, प्र. परमश्रत प्रभावक मंडल बम्बई, मा०सं०हि०, ०१.०, व, १६३२, प्रा. प्रथम । समगौरया भजनावलो-लेखक मुन्नालाल समगौरया, प्र० पुलीचन्न रवार कलकत्ता, भा०हि०, पृ० ३०व०१९४१ प्रा. प्रथम । समदृष्टि के चिन्ह (प्रथम भाग)- लेखक दरबारीला । सत्यमक्त, प्र. पात्म जागृति कार्यालय ब्यावर भा० हि०, पृ० १२, व० १६३२॥ समदृष्टि के चिन्ह (द्वितीय भाग) लेखक दरबारीलाल सत्यभक्त का पात्मजागृति कार्यालय न्यावर, भा. हि०, पृ० १०,व० १९३२। समन्तभद्र का समय और डा०के०बी० पाठक-लेखक ५० शुगत किषोर मुख्तार, भा० हि । समय प्रामृत-लेखक कुन्दकुन्दाचार्य, हि० टी०पं. जयचन्द्र (पारव स्याति),प्र० जिनवर गगा साचवरे कारजा; मा. प्रा. हि .४१६.. १९०८ समय प्रामुन-लेखक कुन्दकुन्दा चार्य, टी०५० जयचन्द्र (मात्म ज्याति), प. कलापाभरमप्पा निटवे कोल्हापुर, भा० प्रा० हि०, पृ०४१६, ब० १६०० पा०प्रथम। समय प्रामृत-लेखक कुन्दकुन्दाचार्य; टी. पं० जयचन्द्र (मारम ख्याति), प० सेठ मदनचन्द नेमिचन्द पाच्या किशनगढ, भा० प्रा०हि०, पृ० ६३८ । समय प्रामृत-लेखक कुदकुन्दा चार्य, सपा०पं. गजापरलाल, प्र. २० पन्नालाल जैन काशी; भा० प्रा०, पृ० २१६, ६० १६१४, मा. प्रथम। समयसार-ले०कुन्दकुन्दाचार्य, स० टी० अमृतच द्राचार्य, जयसेनाचार्य, हि० टी० पं० मनोहरलाल, प्र. परमश्रत प्रभावक महल बम्बई: भा० ० .हि..पृ०५७६, २० १६१९, मा० प्रथम । Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३६ ) समयसार - लेखक कुन्दकुन्दाचार्य, हि मनु० प० गोपाल सहाय सेठ०, संपा० प० मनोहरलाल, प्र० जैन ग्रथ उद्धारक कार्यालय बम्बई, मा० प्रा० हि १० ६१, ब० १६१६, अ० प्रथम । समग्र---लेखक कुन्दकुन्दाचार्य, टी० पं० जयचन्द्र, मनु पं० मनोहर खाल, सपा० प्र० बा० नानकन्द एडवोकेट रोहतक, भा० प्रा० हि०, पृ० १५४, व० १६४२ ० प्रथम । समयमा र कला - देखक अमृतचन्द्राचार्य, हि० टी० पाडेरायमल्ल, अनु स ० ० दीन साद, प्र० दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, भा० सं०' हि०, १०३३६, १० १६३१, प्रा० प्रथम । समयसार नाटक लेखक प० बरदास, प्र० रामचन्द्र नाग, मा० हि, पृ० १५२, ६० १६१४, प्रा० प्रथम ! समर नाटक लेखक पं० बनारसीदास, प्र० जैन श्रौद्योगिक कार्यालय बम्बई, भा० ०ि, पृ० १३१, व० १९१५, अ० प्रथम । -- समारक -खक ५० बनारसीदास प्र० बाट सूरजमान वकील देववन्द, भा० द० पृ० १२० १ ० १८६८ आ० प्रथम । 3 समयसार नाटक - सेसक ५० बनारसीदाम, अनु० प० बुद्धिलाल श्रावक, १० नाथूम भी, प्र० जैन ग्रथनाकर कार्यालय बम्बई, भा० ६०, ० ५६४, प० १६ ० ० प्रथम (अमृन्द्र कार्य कृत सत्कृत कलशा युक्त । समपशर पण-सत मा० ि समवशरण पाठ (पद्य सचिन ) - लेखक लाला भगवानदास, प्र० राजमल जैन महमूदाबाद, भा० ६ि०, पृ० ११२, ५० १६३० आ० प्रथम । समवशरण पूजन पाठ - लेखक लालजीमल, प्रा० मुन्नालाय जैन अजमेर, पा० हि०, पृ० ८८ । समवशरण स्तोत्र - लेखक विष्णुसेन, भा० स०, ( सिद्धान्त सारादि पह में प्र० ) । 替 Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३७ ) समाज के अधःपतन के कारण और उन्नति के उपाय - लेखक प्र. फुलचन्द जैन पागरा, भा० हि०, पृ० ४४, व १६२० । समाज संगठन-लेखक पं. जुाल कशोर मुख्तार, प्र. जैन मित्र मडर देहली, भा० हि०, पृ० १६, २०१६३७, प्रा० प्रथम । समावि तन्त्र -- लेखक आचार्य दवनन्दि पूज्य गगद, स. टी. प्रभाचन, अनु०५० परमानन्द शास्त्री, संपा०प० जुगलकिशोर मुख्तार. प्र. वीर सेवा --- मन्दिर सरसावा, भा० सं० हि०, पृ० १०८, व० १६३६, प्रा० प्रथम । समाधि भक्ति भा० स० हि०, (दश भक्त्यादि सग्रह में प्र०)। समाविमरण और मृ यु महोत्सव-लेयक प० सुरचन्द, हि० टी. 4. सदासुखदास, प्र. गिम्बर जैन पुस्तकालय सूत, भा० स० हिल, मम वि मरण पाठले. ५० मूरचन्द्र; सपा० श्रीमती अध्यापिका, प्र. जैन कन्या शिक्षालय रली, भाषा हिन्दी, पृ० १३, व० १९०६, प्रा० प्रथम । पमाविमा भाषा--लेखक १० सूचन्द्र, समा० मुन्शी समनसिंह, प्र० स्वय समा० देहली, भाषा हिंदी, पृ० २०, ५० १६००, म प्रथम । - सम्माधि शतक-लेखक पूज्यपादाचार्य, अनु० सा.क मरिगलान एन. द्विवेदी, प्र० गिरधर न हीराभाई अहमदाबाद, भाषा म. अं०, पृष्ठ १३२, २०१८६५। समाविशतक-लेखक पूज्यपादाचार्य, मनु० मूलचन्द वत्सल, प्र. साहित्य रत्नालय बिजनौर, भा० हि०, पृष्ठ २८, २० १९२६, प्रा० प्रथम । ___ममावि शतक-लेखक पूज्यपादाचार्य, प्र० नाथूगम दुरुसेलर मुंडावरा, मा० हि० पृ० २८; १० १६०५, प्रा० प्रथम । समाधि शतकम-लेक पूज्यपााचार्य, टी० प्रमाचन्द्राचार्य अत् माणिक मनि, प्र० बा० कात्तिप्रशाद वकील, भा० हि, पृ० ४०.३०, १९१५, प्रा. प्रथम। मम्मेद शिखर तीर्थ चित्रावली सपा० प्र. नथमल पडालिया, १० ३३, २०१६२७ । Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) समाविशतक टीका - पूज्यपादाचार्य, टी० ० सीतलप्रसाद, प्र० १० कतचंद देहली, भाषा सं० हि०, पृ० १७५, व० १६२२, प्रा० प्रथम । समलोचना मूतियाप्रतिमा पुजा - भाषा द्वि०, पृ० १२ वर्ष - १६८८ सम्मेद शिवर का नक्शा - प्र० बाबू सूरजमान वकील देवबंद; वर्ष १८६० । 4 सम्मेद शिवर पूजा-ने० लक्ष्मीप्रसाद, प्र० प्रभुलाल रामपुर: भाषा हि०; १० १५, वर्ष १९२८, प्रा० प्रथम । सम्मेद शिवर महात्मले धर्मदास झुल्जक, प्र० स्वयं, भाषा हिन्दी, G १० १,६०१८८४ । सम्मेद शिवर महात्म्य ( पूजन विधान सहित ) - ले० प० जवाहरलाल, प्र० बद्रीप्रसाद जैन वनारस, भाषा हि०, पृ० ३३, वर्ष १६०८, भा० प्रथम । सम्मेद शिवर सबंधी चिट्ठी--प्र० बलचन्द्र मंत्री धर्म सरक्षिणी दिग● न महासभा मथुरा भाषा हि०, पृ० ७, वर्ष १८६६ सम्मेद शिवरात्रि यात्रा विवरण (सचित्र) - ले० द्वारका प्रशाद, प्र० दिग० जैन प्रभावनी सभा सांभरलेक, भाषा हि०, पृ० १११, वर्ष १६१५, पा० प्रथम । सम्मेदाचल गायन - प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता; चाषा हि० । सम्यक् दीपिका - ले० धर्मदास क्षुल्लक, प्र० स्वयं, भाषा दि०; १० १५, २०१८६१, पा० प्रथम । सम्यक ज्ञान दीपिका -ले० पमंदास क्षुल्लक, प्र० स्वयं भाषा हि०. ० ११६, वर्ष १८८९ । सम्यक ज्ञान दीपिका -ले० घमंदास क्षुल्लक; प्र० हीरालाल बापुजी दोरे अमरावती, भाषा हि० ० ६६ १० १९३४, प्रा० प्रथम । Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३६ ) सम्यक्त्व के आठ अंग - लेखक दरवारीलाल सत्यमक्तः १० बागृति कार्यालय ब्यावर, भा० हि०, पृ० ३६, १० १११२ । सम्यक्त्व कौमदी- अनु० टी० पं० तुलसीराम का० सो०, प्र० हिन्दी चैन साहित्य पुस्तक कार्यालय बम्बई मा० स० हि०, पृ० २५८ १० १६१५, ग्रा० प्रथम । सम्यक्त्व कोमदी - अनु० टी० पं० तुलसीराम का० सी० प्र० जैन ग्रन्थ नाकर कार्यालय बम्बाई, भा० सं० हि०, पृ० १४० १० १६२८, प्रा० प्रथम । सम्यक्त्वादर्श - लेखक क्षुल्लक सूरिसिंह, अनु० रवीन्द्रनाथ जैन, प्र० जिनेश्वरदास जैन रोहतक, भा० सं० ६ि०, पृ० ६६, ब० १९४२, प्रथम । सम्यग्दर्शन की नई खोज - ले० स्वामी कर्मानन्दः प्र० जैन प्रगति च बाला सहारनपुर: मा० हि०, पृ० ८०, १० ११४६ । स्याद्वाद परिचय -- लेखक प० अजितकुमार, प्र० अकल के प्रेस सुलताब डा० हि०. ० २८ व १६३९, पा० प्रथम | स्याद्वाद मंजरी - ले० मल्लिषेण सूरि, सपा● दामोदरनात गोस्वामी, ४० संस्कृत कडिपो वनारस, भा० सं०, पृ० २२०, ब० ११००, मा० , प्रथम । स्याद्वाद मंजरी -- लेखक हेमचन्द्राचार्य, टी० मल्लिषेण, हि० मनु● पं वाहरलाल व वंशीधर, प्र० परमत्र त प्रभाषक मंडल बम्बई, मा० ० हि०, ० २३८, १० १६१० प्रा० प्रथम । स्याद्वाद मंजरी - ले० हेमचन्द्राचार्य, टी० मल्लिषेण, मनु० संपा० प्रा० बगदीशचन्द्र शास्त्री, प्र० परमश्रुत, प्रभावक मंडल बम्बई भ० सं० हि०, पृ० ५२७, ब० १६३, भा० द्वितीय । सरल जैन धर्म (पहला भाग ) - सपा० सुवतेन्द्रविश्व, प्र० सरन जैन ग्रन्थ माला जबलपुर; भाव हि०, पृ० १६ । सरन जैन धर्म ( दूसरा भाग ) - संपा० सुवमेन्द्रविश्व, प्र० Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४० ) ० प्रथम । = 12 श्रमाला जयपुर, साह, पृ० २८, २०१६३६, सरल जैन - मं ( तीसरा भाग ) - संपा० मुनेन्द्र विश्व प्र० सरल चैन ग्रन्थ माला जबलपुर, भा० हि०, पृ० ४०, व० ११३८, भा० प्रथम । सरल जन धर्म ( चौथा भाग ) - सपा० सुवनेन्द्र विश्व, प्र० सरल ब ग्रन्थ मात्र नबलपुर, भा० हि०, पृ० ७६ व० १६३९ ० प्रथम । " सर्वधर्म समभाव - लेखक प० दरबारी न्या० वी० भा० हि०, १०२२ ब० १६४१ । मरल जैन विवाद विधि-लेखक मनोहरलाल जैन का० वी० प्र० सेठ गिरधारीलाल प्रजाद लुइरी, भा० हि० स० पृ० ७६, ६० ४६३६, १० द्वितीय | · सरल निय पाठ संग्रह संग्रह वस्तूरचन्द्र शास्त्री, प्र० दुलीचन्द पन्नाना कलकत्ता, भा० हि स १० १४३; व० १६२ श्रा० द्वितीय । मवज्ञस्तवन सटीक - लेखा जयानन्द सूरि, भा० संग्रह प्र० ) । स० ( दशभक्त्या दि T स- पाद्ध - लेखक पूज्यपाद देवनन्यि समा० बिन्दास शास्त्री, म रावजी सखाराम दोशी शालापुर; मा० स० पृ० ३२२; १० १:३६, मा. तृतीय । सर्वार्थसिद्धि - लेखक पूज्यपाद देवनन्दि, प्र० यमाषाभरमप्पा निटने कोल्हापुर, भा० स० पू० २७६ ० १८१७ ० द्वतीय - १० १७६, ब १.०३, ४० प्रथम । मसिद्धि वचनिका— नेखक पूज्यपाद देवनन्दि टी० प० जयचन्द्र वडा, प्र० कनापाभरमापा निटवे कोलह पुर, भा० हि० स० पृ० ८०४ ० १६८९ । सर्वार्थसिद्धि (तत्त्रवृति) - पूज्यपाद देवनन्दि, टी० ५० जयचन्द्र छाडा, प्र० जन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि० स० १० ८०४ प्रा० प्रथम । " Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४१ ) सर्वार्थ सिद्धि वृत्ति-लेखक पूज्यपाद देवनन्दि, अनु० टी० बा० जगरूपसहाय वकील, प्र० महेशचन्द्र एण्ड को जन ग्रन्थ डिपो एटा, मा० स० हिंग पृ० १५७४, २० १९२३-१६२६; प्रा० प्रथम । सरस्वती पूजा (भाषा)-भा० हि०; व०१६०७ । सरस्वती स्तवन-लेखक नाथूराम प्रेमी, भा० हिं०; व० १९०७ । सनूना पूजन (मादिनाथ स्तोत्र व वथा सहित)-ले०५० बाबू लाल, प्र० जैन मभा फीरोजपुर; भा० हिन्दी, पृ० १६, व० ० १९१० । सलूनोसत्ति कथा-प्रकाशक दिग० जैन एसीसियेशन मेरठ सदर, भा० हिन्दी; पृ० १०॥ सपालात तेरापंथियों के वोस पंथियों से-भा० fन्दी, पृ०६ । स्वतत्रता का सोपान-लेखक ब्र० शीतल प्रसाद, प्र. मूलच द किशनदास कापडया सूरत; भा० हिन्दी, पृष्ठ ४२५, व० १६४४, मा० प्रथम । स्वर्गीय हेमचद्र-लेखक सपा० यशपाल जैन प्र० हिन्दी प्रथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हिन्द्री, पृष्ठ १६०, व० १९४४, मा० प्रथम । स्वरूपचंद नाम माला व अनेकाथ नाममाला--लेखक स्वरूपचद जैन स्यागी, प्र. भानुकुमार सर्व सुम्व हितैषी आयुर्वेदीय फार्मेसी भिड, भा० हिंदी, पृष्ठ ६५, व० १६४२ ग्रा० प्रा० प्रथम । स्वरूप संबोधन-लेखक अकलन्क देव, भा० सं०, ५० १६१५ । स्वसमरानंद अथवा चेतन कर्मयुद्ध-सपा० प्र० शीतल प्रसाद, प्र० मूल चन्द किशनदास कापड़या सूरत, भा० हिंधी, पृष्ठ ८१, २० १९२३, प्रा० प्रथम । स्वात्मानुभव मनन-ले० धर्मदास क्षुल्लक, प्र० स्वर्ग, भा० हिंदी, पृ० १६ ब० १८६१। स्वानुभव दर्पण (सटीक) लेखक योगीन्द्र देव भनु• प्र• मुंशी नाथूराम लमेचू, भा० हिंदी, पृष्ठ ५३; प्रा० प्रथम, ब० १८६९ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { २४२ ) स्वयं भूस्तोत्र- लेखक समन्तभद्राचार्ग, अनु० सपा० पं० जुगल किशोर पुस्तार, प्र. वीर सेवा मन्दिर सरसावा, भा० स० हिंदी, पृष्ठ , व० , प्रा. प्रथम । ___ स्वामीकात्तिकेयानुक्षाले. स्वामी कात्तिकेय, स० टी० शुभचन्द्र भट्टारक, हि० टी० ५० जयचन्द्रजी; प्र. भारतीय जैन सिद्धात प्रकाशिनी संस्था कलकत्ता, भा० प्रा० म० हि०, पृ० २६०, त० १६२१, आ० प्रथम । स्वामी कातिीयानुप्रेक्षाले० स्वामी कात्तिकेय, स० टी० शुभचन्द्र भट्टारक, संपा० ५० पन्नालाल बाकलीवाल, प्र० गाधी नाथारंगजी आकलूज, भा० प्रा० सं० हि०, पृ० २८४, व० १६०४, प्रा० प्रथम । स्वामी समन्तभद्राचार्य-ले० प० गुगल किशोर मुख्तार, प्र. जैन प्रथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा. हि०, पृ. २६७, व० १९२५; पा० प्रथम । सहज सुख साधन-ले० ० शीतलप्रसाद, प्र० मूलच'द किशनदास कापडया सूरत, भा०:०, पृ०३६२, व० १६३६, प्रा० प्रथम । सहजानंद सापान- ले. ब्र० शीतलप्रसाद, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि० पृ० २७४, व० १६३७, प्रा० प्रथम । सहनशील चंदन-ले० प० राजमल लोढा, प्र, जन साहित्य कार्यालय मदसौर, भा० हि०, पृ० १६ । स कट हरण व दुःख हरण विनती- ले० कवि वृन्दावन, प्र० जन ग्रय प्रचारक पुस्तकालय दबद, भा० हि० पृ. ६, व० १६२६, प्रा० द्वितीय। संक्षिप्त जैन इतिहास (प्रथम भाग)--ले० बा० कामता प्रशाद, प्र. दिग. जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० १३२, व० १६३६, मा० दूसरी। सक्षिप्त जैन इतिहास (भाग २, खड १)-ले० बा० कामता प्रशाद, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूतत, भा० हि०, पृ० २६६, २० १९३२, भा० प्रथम । Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४३) संक्षिप्त जैन इतिहास (भाग २, संड २)-ले० बा० कामता प्रसाद, प्र० दिग. जैन पुस्तकालय सूरत; भा० हि०, पृ. १८१, ब० १९३४, मा० प्रथम । संक्षिप्त जैन इतिहास (भाग ३, खड १)-ले. बा० कामता प्रशाद, प्र. दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० १५४, २० १६३७, भा० प्रथम । संक्षिप्त जैन इतिहास (भाग ३, खड २)--ले० बा० कामता प्रशाद, प्र. दिग० जन पुस्तकालय सूरल, भा० हि०, पृ० १६४, व० १६१८, पा० प्रथम । सक्षिप्त जैन इतिहास (भाग ३, खंड ३)--ले० बा० कामता प्रशाद, प्र. दिग. जैन पुस्तकालय सूरत, भा०हि०, पृ०१६६, व० १९४१, मा० प्रथम । संक्षिप्त जैन इतिहास (भाग ४)-ले० बा० कामता प्रशाद, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि० । संक्षिप्त जैनरामायण (पद्य)-ले० कवि मनरगलाल, प्र० चद्रसेन वैद्य इटावा, भा० हि०, पृ० ६२, व० १९२४, प्रा० प्रथम -पृ.८८, व० २६२६, प्रा० दूसरी । __सक्षिप्त नित्य पूजा-संपा० बी० एल० चैतन्य बुलन्दशहरी, प्र. मातेश्वरी संपा० बिजनौर, भा० हि०, पृ० ३२; व० १९२६ । . सगठन का बिगुल-ले. अयोध्या प्रसाद गोयलीय, प्र. जैन सगठन सभा देहली, भा० हि०, पृ०२८, व० १६२५, आ० प्रथम । सयम प्रकाश (प्रथम किरण-पूर्वाद्ध)-ले० सूर्य सागर प्राचार्य, सपा० श्रीप्रकाश व भंवरलाल, प्र० प्राचार्य सूर्यसागर दिग० जैन ग्रन्थमाला समिति जयपुर: भा० हि० मं०, पृ० १६८, व. १६४४, प्रा० प्रथम । संयम प्रकाश (द्वितीय किरण-उत्तराद्ध)-ले० सूर्य सागर आचार्य, 'संपा० श्रीप्रकाश व भवरलाल, प्र. प्राचार्य सूर्य सागर दिग० जैन ग्रंथमाला Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४४) समिति जयपुर, भा० हि० सं०, पृ० ११४, १० ११४५, मा० प्रथम । संयुक्त प्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक-संग्र० ब. शीतलप्रसाद, प्र. हीरालाल जैन एम. ए प्रयाग, भा० हि०, पृ० १११, २० १९२३, मा० प्रथम । संशय तिमिर प्रदोप-ले० उदयलाल काशलीबाल, प्र० स्वय बड़नगर, मा० हि०, पृ० १७०, व० १६०६, श्रा० द्वितीय । संशय यदन विदारण-ले० शुभचन्द्र भट्टारक, मनु० ५० लालाराम, प्र० भारतीय जैन सिद्धात प्रकाशनी संस्था कलकत्ता, भा० स० हि०, पृ० १४४, २० १६२३, प्रा० प्रथम । __ संसार और मोद-ले० बा० ऋषभदास बी. ए., अनु० दयाचन्द्र गोयलीय, प्र जैन तत्त्व प्रकाशनी समा इटावा, भा० हि०, पृ० १६, व. १६१. , प्रा० प्रथम । __ससार दुःम्ब दर्पण --ले. ज्योति प्रसाद जैन, प्र. जैन मित्र मंडल देहली, भा० हि०, पृ० ३२, व० १६३८, आ० पाचवी । सँसार दु.खदपेण और नरक दुःख दर्शन -ले० ज्योतिप्रसाद व प. भूधरदास, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० १५॥ व० १६३५, आ० चौथी। संसार में सुख कहां हेले वाहीलाल मोतीलाल शाह, प्र. जैन तत्व प्रकायानी सभा उटावा, भा० हि०, पृ० १०८। सहन पच स्तोत्र-प्र० बा० सूरजभान वकील देवबद, २०१८४८, भा० स० । सस्कृन प्राकृत नित्य नियम पूजा-प्र० बा० सूरजभान वकील देवबंद, व० १८१८, भा० स० प्रा० । साकृत प्रवेशिका (प्रथम भाग)--ले० ५० श्रीलाल जैन, प्र. भारतीय जैन सिद्धांत प्रकाशिनी सस्था कलकत्ता, भा० सं०, पृ० २.८, २० १६१३, -पा० प्रथम । Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) संस्कृत प्रवेशिनी (द्वितीय भाग)-ले. पं०बीलाल जन, १० भारतीय बैन सिद्धांत प्रकाशिनी सस्या कलकत्ता, भा० सं०, पृ०१७६,१० १९११ मा० प्रथम । _____ संस्कृत भाव संग्रह-ले० ५० बामदेव, भा० सं०, (भाव संग्रहादि में प्र०)। ___ संस्कृत हिन्दी शब्द रत्नाकर ले. बिहारीलाल चतन्य; भा० सं० हि०, पृ० ११२। सागार धर्मामृत (भव्य कुमुद चन्द्रिका टीका सहित)-ले० पं. प्राशाधर, सपा०प० मनोहरलाल, प्र० माणिकचन्द्र दिग० जैन प्रन्थमाला बम्बई, भा० स०, पृ० २४६, व० १९१५, प्रा० प्रथम । सागार धर्मामृत (पूर्वाद्ध)-ले० पं० पाशाघर, अनु० ५० लालाराम, म. दिग. जैन पुस्कालय सूरत, भा० सं० हि०, पृ० ३१२, व० १६१५, मा० प्रथम । सागार धर्मामृत (उत्तरार्द्ध)-ले०५० पाशाघर, अनु० ५० लालाराम, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० सं० हि०, पृ० २२३, २० १९१६, प्रा० प्रथम । सागार धर्मामृत सटीक-ले० पं० प्राशाघर, टी० १० देवकीनन्दन शास्त्री, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सुरत, भा० सं० हि०, पृ. ३१६, २० १६४०, मा० प्रथम। सादगी और बनावट-ले. ज्योति प्रसाद जैन, प्र० प्यारेलाल चन्दूलाल जगाधरी, भा० हि०, पृ० १६, २०१६२३, प्रा० प्रथम ।। , साध्वो (पद्य)-ले० गुणभद्र कविरत्न, प्र. दुलोचद परवार कलकत्ता, पा० हि, पृ० ४०। सामाजिक चित्र-प्र० जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि । सामायिक-सपा० मुनि हत्ति , प्र० दिगम्बरी समस्त संघ भावनगर, भा० सं० प्रा०, पृ० ६६, व० १८६७ । Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४६ ) सामायिक पाठ-ले. अमित गति प्राचार्य, टी० पं०वयचन्द्र छावा, प्र. मुनिप्रनन्तकीर्ति ग्रन्थमाला समिति बम्बई, भा० हि०, पृ० ६५, १० १९२४, आ. प्रथम। सामायिक पाठ-ले० पमितगति प्राचार्य, अनु. ब्र० शीतल प्रसाद, प्र० मूलचन्द किशनदास कापडया सूरत, भा० स० हि०, पृ० २४, २० १९२६, मा० दूसरी। सामायिक पाठ और मेरी भावना-ले० अमितगति प्राचार्य व १० जुगल किशोर मुख्तार, अनु० कस्तूरचन्द छावड़ा, प्र० दुलीचन्द पन्नालान कलकत्ता, भा० सं० हि०, पृ० ३१, व० १६३६, प्रा० पंचम । सामायिक भाषा-ले०१० महाचन्द, प्र. बा० ज्ञानचन्द लाहौर, भा० हि पृ० १८, व० १८६७ । सामायिकानन्द पाठले. रूपचन्द जैन, प्र. भानचंद इटावा, भा० हि०, पृ० ८, २० १९३४, प्रा. प्रथम । सार्वधर्म-ले० पं० गोपालदास बरया, प्र० जैन तत्व प्रकाशिनी समा इटावा, भा० हि०, पृ० ५५, मा० प्रथम । सार समुच्चय (मूल)-ले० कुलभद्र, भा० स०, (सिद्धात सह प्र०)। सार समुच्चय टीका-ले. कुलभद्राचार्य; टी० ब० शीतल प्रसाद, प्र. दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० स हि०, पृ० २३२. व० १९३७, मा. प्रथम । सावय धम्म दोहा-ले. देवसेन प्राचार्य, अनु० सपा० प्रो. हीरालल जैन, प. कारजा जैन पब्लिकेशन सोसाइटी कारजा, मा अप० हि०, पृ० १२५, २० १६३२, मा० प्रथम । मिद्धि प्रिय स्तोत्र--ने. देवनन्दि, भा० सं०, (काव्यमाला सप्तमगुच्छक में प्र०) Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४७ ) सिद्धान्त सूत्र समन्वय--ले०५० मक्खन लाल न्या. ल, प्र. दिग. बैन पचायत बम्बई, भा० ०हि, पृ० १७०, २० १९४७ । सिद्ध चक्र जा बड़ी तथा अठाईराr-ले. पं० द्यानतराय व विनय कात्ति, प्र. मा० शिवराम सिंह रोहतक, भा० हि०, पृ० ४८, २० १९४०, पा०प्रथम । सिद्ध चक्र मंडल विधान-ले. शुभचन्द्र भट्टारक, प्र० सेठ राजकुमार सिंह म० ब० इन्दौर, भा० सं०, पृ० १०५, ५० १६४। सिद्ध चक्र विधान- ले. कविवर संतलाल, प्र. दिग० जैन पुस्तकालय सूरत; भा० हि०; पृ० ३६८, २०१९४३, प्रा० द्वितीय । सिद्ध भक्ति-ले० पूज्यपाद भा० सं०, (दशभक्त्यादि सग्रह में प्र.) सिद्ध क्षेत्र पूजा संग्रह-संग्र० मास्टर कुन्दन लाल, प्र. मूलचंद किशन रास कापडया सूरत, भा० हि०, पृ० ३२८, क. १९४४, प्रा० चतुर्थ पृ. १४४, २० १९२१, प्रा० द्वितीय । सिद्धान्त समीक्षा (भाग १, २, ३, लेखक प्रो० हीरालाल, पं० फूलचन्द्र, ५० जीवधर, प्र० हिन्दी ग्रथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई; भा० हि०, पृ. १० १९४५-४६ । सिद्धांत सारादि संग्रह (२५ विभिन्न सं० प्रा० ग्रन्थों का सग्रह)-संपा. पं० पन्ना लाल सोनी, प्र० माणिक चन्द दिग० जैन ग्रन्थ माला समिति बम्बई, भा० स० प्रा०, पृ० ३६५; १० १९२३, प्रा० प्रथम । सिद्धांतसार-ले० जिनचद, टी० ज्ञान भूषण, भा० सं०. (सिद्धांत सरादि सबह मे प्र०) सिद्धि सोपान-ले० पूज्यपादा चार्य, (सिद्ध भक्ति)-अनु० सपा.प. उपलकिशोर मुख्तार प्र० हिन्दी ग्रन्य रमाकर कार्यालय बम्बई, भा० सं० हिण १.४८, २० १९३३, मा० प्रथम (अन्य स्थानों से पौर भी संस्कारण प्रकाप्त हुए) Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४८ ) सीता का बारप मासा-प्र० बा० सूरजभान वकील, मा० हि०, व. १९९८ । सीता चत्रि-ले० दया चन्द्र गोयलीय, प्र. जैन साहित्य भडार लखनऊ, मा० हि०, पृ० ६२, व १९१७; मा० प्रथम । सुकमाल चरित्र-ले. सकल कीति प्राचार्य, हि० टी० प नाथूलाल, प्र. शान चन्द जैनी लाहोर, भा० स० हि०, पृ० १४२; व० १६११ । सक्रमाल चरित्र-ले० सकल कोत्ति प्राचार्य, हि० टी० प नाथूलाल, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलस्त्ता, भा० हिन्दी स०, पृ० १३८, प्रा० प्रथम । सुकमाल चरित्र-ले सकल कीत्ति भाचार्य, हिन्दी टी० प० नाथूराम, प्र. भाषा हिन्दी, पृ० १३२। सिर सिर बाल कहा-ले० रत्न शेखर मुरि, अनु० सपा० एन० जी० सुरु, भाषा प्रा०, २० १६३३-पूना । सुख और सफलता के मूल सिद्धान्त-लेखक दयाचन्द गोयलीय, भाषा हिन्दी, पृष्ठ २० वर्ष १९१७ । सुगम जैन विवाह विधि-लेखक सपा० किशन चन्द्र जैन, प्र० चन्दन लाल, भा० स० हिन्दी, पृ० ८०, व० १९३२ । सुकमाल चरित्रसार-लेखक ब्रह्मने-िदत्त, अनु० उदयलाल कासलीवाल, म० हिन्दी जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई, भाषा हिन्दी, पृष्ठ २२, व0 १९१५, प्रा० प्रथम । सुख सार भजनावली-लेखक ब्र० शीतल प्रसाद, प्रकाशक मूलचन्द किशनदास कापडया सूरत, भा० हि०, पाट १५२ वर्ष १६१६, आ० प्रथम । सुखानद मनोरमा नाटक सुगधदशमी कधा-लेखक ब्र० श्रुतसागर; प्रकाशक जिन वाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता भाषा हि०; पृ० १६ । सुगधदशमी कथा (पद्य)-लेखक ब० श्रतसागर, प्रकाशक वीर जैन पुस्तकालय मुजफ्फर नगर, मा० हि०, पृ० २०, २० १९४२, मा० प्रथम । Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४६ ) सुगध दशमी व्रत कथा-लेखक पं० खुशाल चन्द्र, प्रकाशक हीरामान पन्नालाल देहली, भा० हि०, पृ० १४, व० १९३४, मा० प्रथम । सुगुरु शतक भाषा-प्रकाशक बा० सूरज भान वकील देवबद, भा० हि ब० १८६८) सुदर्शन (अहिंसा मार्तण्ड) लेखक पीताम्बर दास जैन, भा० हिन्दी, 4० १९४०। सुदर्शन चरित्र--लेखक सकल कीति, अनु० उदयलाल काशलीवाल, प्र. बैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० १०६, प्रा० प्रथम । सुदर्शन चरित्र (सचित्र)-सपा प० परमानन्द, प्र. जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ. १४६ । सुदर्शन नाटक-- लेखक मूलचन्द वत्मल, प्र० साहित्य रत्नालय बिजनौर, भा० हि०, पृ० ११२, व० १६२७, प्रा० प्रथम । सहष्टि वरगिणी--लेखक प० टेकचन्द्र, प्रकाशक जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता; भा० हि०, पृ० ६५०, व० १६२६, प्रा० प्रथम । सुदृष्टि वरगिणी-लेखक प० टेक चन्द्र, प्र. पन्नालाल चौधरी काशी, भा० हि०, पृ० १८३, व० १६२८ । सुधम श्रावका गर -- लेखक सुधर्म सागर, टी०प० लाल म, सपा० पं. मक्खन लाल, प्रमेठ जीवाराज उगर चद गाधी सोनगढ़, भाषा स० हि, पृ० ५०२, व० १९४०। सुन्दर लाल-ले ज्योति प्रमाद जैन, भा० हि०,१० १६, क. १९२१ । सुवर्म श्रावकाचार सनीक्षा-लेखक १० परमेष्ठि दास, प्रकाशक मूलचंद किशनदाम कापडया सूरत, भाषा हिन्दी, पृ० ११८, व० १६४३, प्रा० प्रथम । सुधर्मोपदेशामृतमार-लेखक कुथ सागर आचार्य, अनुप लालाराम, प्र. प्राचार्य कु थमागर ग्रथ माला शोलापुर, भा० हि० स०, पृ० १७४, व. १९४०, आ० प्रशम । सुबोधरत्न शतकम् -लेखक माणिक्य मुनि, प्रकाशक शीतल प्रसाद वंच, Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५० ) देहली, भा० सं०, पृ० २७, ० १६१५ । सुबोध दर्पण (रत्नत्रय धर्म प्रकाश ) - लेखक प० दीपचन्द्र वर्णी, प्र० दिग० जैन पचान लाकरौड़ा, भाषा हि०, पृ० ७६, १० १६३६, ० प्रथम सुभाषितरत्न सदोह - ले० श्रमितगति आचार्य, सपा० प० काशीनाथ शास्त्री व भावदत्त शास्त्री, प्र० निर्णयसागर प्रंस बम्बई, भा० स० हि०, पृ० १०४, व० १६०३, ग्रा० प्रथम । सुभाषितरत्न संदोह - ले० श्रमितगति प्राचार्य, अनु० प० श्रीलाल का० ती० प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० सं० हि०, पू० २८२ व० १९६१७, प्रा० प्रथम पृष्ठ २४३, १० १६३६, प्रा० द्वितीय | सुभाषित शतकम् - - सव्य० अनु० प० माणिक चन्द्र, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सरत, भा० स० हि०, पृ० २८, व० १६४५, प्रा० प्रथम । सुमन संचय - ०० प्रेमसागर, प्र० बैनीप्रसाद गुलाब चंद रेपुरा, • हि०, १० ७२, १० १९४१, ० प्रथम । मा० सुलोचना चरित्र - ले० ब० शीतल प्रसाद, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत भा० हि०, पृ० ११५ ० १९२४; आ० प्रथम । सुवर्ण सूत्रम - ० कु थमागर, प्र० उत्तम चंद के लचद दोशी ईडर, भा० सं० पृ० २४, व० १९४१, प्रा० प्रथम । सुशीला उपन्यास - ले० पं० गोपालदास बैरया, प्र० जैन मित्र कार्यालय बम्बई, भा० ६ि०, पृ० ३१२, ० १६१४, प्रा० प्रथम । सुसराल जाते समन पुत्री को माता का उपदेश :- सपा० प० दीपचन्द ; प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० ४७, १० १९४३, प्रा० पष्टम । सुहाग रक्षक विधान - ले० मोतीलाल पहाख्या; भा० हि० पृ० ४१३ ब० १६२४ । सूत्र पाहुड़ (सूत्र प्राभूत) --- ले० कुन्द कुन्द; भा० प्रा० स०, (अष्टपाहुड प्राभूतादि संग्रह में प्र०) Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५१.) सूक मुक्तावल्ली-ले० सोमप्रभाचार्य, टी० हर्षकौतिसूर, संपा० ब्रजवल्लभ शास्त्री, प्र० स्वयं संपादक अहमदाबाद, भा० सं०, पृ० ७३, व० १८६७, मा. प्रथम। सूक्तमुक्तावली-लै० सोमप्रभाचार्य; हि० अनु० (पद्य) पं० बनारसीदास, संपा० मुन्शी प्रमनसिंह, प्र० स्वयं संपा० सोनोगत, भा० हि०, पृष्ठ ४०, व. १८६३। . सक्रमुक्तावली-ले. सोमप्रभाचार्य; अनु० ५० बनारसीदास व कुघरपाल, टी. ५० लालाराम, प्र. जैन अथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० सं० हि०, पु. १.०, व० १९१२, मा० द्वितीय। - सूक्ति संग्रह-ले० कवि राक्षस; भा० सं०, पृ.६, व. १९२० । सूर्य प्रकाश-ले० नेमिचन्द्र भट्टारक, टी. संपा. ब. ज्ञानचन्द्र; प्र० गांधी मिया चन्द देवचन्द पेडे शिरसकर नातेपुते, भा० सं० हि०, पृ० ४१२, मा० प्रथम। सूर्य प्रकाश परीक्षा-पं. जुगल किशोर मुख्तार, प्र० जौहरी मल सर्राफ देहली, भा० हि०, पृ० १६०, व० १९३४, प्रा. प्रथम । सूवा बत्तीसी-ले० भया भगवती दास; ० दिग. जैन धर्म पुस्तकालय बाहोर, भा० हि०, पृ०८ व १९१४ । सेठी सदर्शन को कथा-प्र० जैन ग्रन्थ प्रचारक पुस्तकालय देवबंद; भा० हि, पृ. ८. सेठी जी के मामले में लोकमत-प्र० भारत जैन महामंडल; भा० हित, १०००; व० १६१५॥ सोनापीर यात्रा विवरण (सचित्र)-ले० द्वारका प्रसाद, प्र. दिग. जैन धर्म प्रभावती सभा सांभालेक, भा० हि०, पृ० ३३, व० १६१ प्रा. प्रथम । सोमा सती नाटक-प्र.जिनवारणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा. ह, पृ० १६ । सोलह कारण धर्म-ले०६० दीपचन्द्र वर्णी, प्र० मूलचन्द किशन दास Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५२) कापड़िया सूरत, भा० हि. पृ० १३७, ३० १६४३, प्रा० द्वतीय । सोलह कारण व्रत कथा पूजा-ले. पं0 दीपचन्द्र वर्णी, प्र० हुकमी चन्द्र सोलिला; भा० हि०, पृ० २६, व० १६३८ । सौभाग्य भजन माला-ले. सौभाग्य मल दोशी; प्र० स्वयं अजमेर) मा० हि०; पृ० २१, व० १६२% प्रा० प्रथम । सौभाग्य रत्न माला-ले० प० चन्दाबाई, मा० हि०; पृ० ११८, १० १९१६ । सृष्टि कर्तुत्व मोमांमाले० १० गोपालदास बरया; प्र० जन तत्व प्रकाशिनी सभा इटावा, भा० हि, पृ० ३१ व० १९१२, प्रा० प्रथम ।। सुष्ट कर्तृव्य मीमांसा-ले० ५० गोपालदास बैरयाः प्र. जैन अन्य रत्लकर कार्यालय बम्बई, भाषा हि० पृ. ३१, व० १९२८, प्रा० प्रथम । सृष्टि वाद परीक्षा-प्र. जैन तत्व प्रकाशिनी सभा इटावा; भा० हि०, पृ०८। हनुमान चरित्र नाविल भूमिका-ले० प्रकाशक मास्टर बिहारी लाल बुलन्दशहर, भा० हि०, पृ. ३१, व० १८६६ प्रा० प्रथम । हनुमान चरित्रनाशिल भूमिका (भाग) लेखक प्र० मास्टर बिहारीलाल बुलन्दरशहर, भा० हि; पृ० ३१, व० १८६६ । हम दुग्वी क्यों हैं-ले० प जुगल किशोर मुख्तार, प्र. जैन मित्र महल देहली, भा० हि०, पृ० ३२, व. १६२८, प्रा० प्रथम । हमारा उत्थान और पतन-ले यक अयोध्या प्रसाद गोयलीय, प्र० हिन्दी विद्या मदिर देहली, भा० हि, पृ० १४४, व० १६३६ ॥ हमारी कायरता के कारण --- लेखक अयोध्या प्रसाद गोयलीय, प्र. जैन संगठन सभा देहली, भा० हि०, पृ० ३०, वर्ष १६३७, प्रा० प्रथम। हमारी शिक्षा पद्धति-लेखक पडित कैलाश चन्द्र, प्रकाशक जैन मित्र मंडल देहली, भा० हि०, पृ० ५३, २०१६३२, प्रा० प्रथम । हमारे दुखों का प्रधान कारण-लेखक पडित जुगल किशोर मुख्तार, Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५३ ) प्रकाशक जैन संगठन सभा देहली; भा०, हि०, पृ० ३२, ० १६२८, पा० प्रथम । हरिवंश पुराण -- जिनसेना चार्य, हि० टी० पं० दौलतराम जी, प्रकाशक जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० हि०, पृ० ५३५, व० १९३३ । हरिवंश पुराण - लेखक जिनसेनाचार्य; टी० १० दौलतराम जी, प्रकाशक ज्ञानचंद जैनी लाहोर, भा० स० हिन्दी, पृ० १०००, ब० १६१० । हरिवंश पुराण --- लेखक जिनसेनाचार्य, अनु० पडित गंजाघर लाल, प्र० भारतीय जैन सिद्धात प्रकाशिनी सस्था कलकत्ता, भा० हिंदी, पृ० ६२७, व० पा० प्रथम हरिवंश पुराणम् (प्रथम खड) --- लेखक जिनसेनाचार्य; सपा० पंडित दरबारी लाल न्या० तो०; प्रकाशक माणिक चन्द्र दिग० जैन ग्रथ माला समिति बम्बई; भा० सं०, पृ० ४४८, ० १६३० प्रा० प्रथम । हरिवंश पुराणम (द्वितीय खड) - लेखक जिनसेनाचर्य, संपा० पंडित दरबारी लाल न्या० ती० प्रकाशक माणिक चन्द दिग० जैन ग्रंथमाला समिति बम्बई भा० हि० पृ० ३७४; व० १९३० प्रा० प्रथम । हरिवंश पुराण समीक्षा - लेखक बा० सूरजभान वकील, प्रकाशक चन्द्र सेन जैन वैद्य इटावा; भा० हि०, पृ० ५८ वर्ष १६१० प्रा० प्रथम | हम और हमारा कर्तव्य - लेखक प्रकाशक उत्तम चन्द्र जैन मेरठ; भाषा हि० पृ० ८ ० १६२२ । हस्तिनागपुर कोर्तन - संग्र० प्र० सुमतप्रशाद जैन प्रचारक मुजफ्फर नगर, भा० हि०, पृ० ३२, ४०, १९४२ | हस्तिनागपुर महात्म - लेखक मंगलसेन जैन पुस्तकालय मुजफ्फर नगर, भा० हि० पृ० ५२, १० विसारद, प्र० दिग० चैन १६३८: मा० प्रथम । हित की बात - प्र० जैन तत्व प्रकाशनी सभा इटावा, भा० हि०, पृष्ठ ३२, हित शिक्षा - लेखक बाड़ीलाल मोतीलाल शाह, मनु० भैयालाल जैन, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ११६, १० १६१९ ॥ -- Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५४ ) हितैषी गायन - प्र० जैन ग्रंथ प्रभाकर कार्यालय सागर, भाषा हिंदी, पक १६२३, ० प्रथम | हितैषी गायन रत्नाकर - प्र० भारतहितैषी पुस्तकालय सीकर ; भाषा हिन्दी, पृ० ८ ० प्रथम । हितैषी भजन सगह - प्र० मनीराम नवमल जैन, भा० हि०, पृ० १४ । हिन्दी बहढाला लेखक कवि दौलतराम, टी० ब्र० शीतलप्रसाद प्र० जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई: भा० हि०, पृ० ६०, व० १९३७, प्रा० आठवी | हिन्दी जैन पद्यावली - प्र० जैन धर्म प्रसारक संस्था नागपुर; भा० हि०, पृ० १७, व० १६२६, प्रा० प्रथम । हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास - ले० पं० नाथूराम प्रेमी; प्र० जन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० हि०, पृ० ६६, व० १६१७, प्रा० प्रथम । हिंदी जैन साहित्य का इतिहास - लेखक बा० कामता प्रसाद जैन, प्र० भारतीय ज्ञान पीठ काशी, भा० हि०, व० १६४७ । हिंदी पद्यात्मक श्री ऋषभपुराण व संक्षिप्त गद्यात्मक आदि - संपा. मा० बिहारी लाल चैतन्य, प्र० शांति चन्द्र जैन बिजनौर, भा० हि०; पृ० १८८, व० १६२६, प्रा० प्रथम । हिंदा भक्तामर - लेखक अमृत लाल जैन चंचल, प्र० सिंघई प्रेमचन्द जबल पुरा० हि०, पृ० ४८, १० १६३७ श्र० द्वितीय । हिंदी भक्तामर और प्रारण प्रिय काव्य-सपा० प्र० पन्नालाल जैन, भा० हि०, पृ० ३८, १० १६१४ । हिंदी साहित्य अभिधान लेखक-लेखक शान्ति चन्द्र जैन, प्र० स्वल्पार्धं ज्ञान रत्न माला कार्यालय बाराबकी, भा० हि०, पृ० २०, १० १९२५ प्रा० प्रथम हिंदी साहित्य अभिधान लेखक (द्वितीय श्रवयव ) --- लेखक बिहारी लाल चैतन्त, प्र० स्वल्पार्थ ज्ञान रत्न माला कार्यालय धाराबकी, भा० हि०, पृ० ११२, Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५५ ) ब० १६२५, प्रा० प्रथम । हिंदी जैन विवाह पद्धित - संपादक कुलवंत राय जैन, भा० हि०, पृ० ३८: व० १६३६० हिन्दू कोड और जैन धर्म - प्र० वर्षमान ज्ञान प्रचारिणी समिति इन्दौर, भा० ति० पृ० १८, १० १६२१ प्रा० प्रथम । हीराबाई - लेखक बा० सूरजभान वकील, भा० हि०, पृ० २४ ॥ संग्र० तथा प्र० मुन्शी नाथूराम लमेच होली संग्रह और प्रभाती संग्रह भा० हि०, पृ० २४, व० १६०२; प्रा० प्रथम । हितोपदेश रत्नावली - प्र० जैन पुस्तक प्रकाशक कर्यालय ब्यावर; भा० हि०, पृ० ४०, व० ५६२४ । चत्र चूड़ामणि - लेखक वादीमसिंह प्राचार्य, सपा प्र० टी० एस० कुप्पुस्वामी शास्त्री, तजीर, भा० स०, पृ० १४३, १० १६०३ । क्षत्र चूड़ामगि- लेखक वादीभसिंह अचार्य, अनु० मुंशीलाल एम. ए., संपा० नाथूराम प्रेमी; प्र० जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० सं० हिंदी पृ० १४८, व० १९१० आ० प्रथम | क्षेत्र चूड़ामणि - लेखक वादीभसिंह श्राचार्य हि० टी० पं० निद्धामल, प्र० स्वयं टी०, भा०] हिंदी, पृ० २६२, व०, प्रा० प्रथम । क्षत्र चूड़ामणि (पूर्वार्ध) - लेखक वादीमसिंह श्राचार्य; हि० टी० मोहन लाल जैन का० ती०, प्र० सरल प्रज्ञा पुस्तक माला मडावरा ; भाषा हिन्दी, पृ० १६४, व० १६३२, प्रा० प्रथम । क्षत्र चूड़ामणि ( उत्तरार्ध) - लेखक वादीभमिह भाचार्य, टी० मोहन लाल जैन का० ती०, सरल प्रज्ञा पुस्तक माला मंडावरा; भा० [हिन्दी, पु० - ० १९४०, प्रा० प्रथम । क्षपणासार - देखो - लब्धिसार । त्रिभंगी सार-ले० तारण तरण स्वामी; टी० ० शीतल प्रसाद, प्र० सेठ लाल जैन प्रागासद, भाषा हिन्दी, पृष्ठ १३५, ० १६३९, आ० प्रथम । Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५६) त्रिलोक प्रज्ञप्ति-देखिये विलोय पण्णुति । त्रिलोक सार-ले. नेमीचन्द्र सि. च., स० टी० माधवचन्द्र विषदेव, संपा. ५० मनोहरलाल, प्र० माणिक चन्द्र दिग. जैन ग्रंथमामा समिति बम्बाई : भा० प्रा० स०, पृ० ४२५, व० १९२८, प्रा० प्रथम ।। त्रिलोक सार-ले० नेमीचन्द सि. च., हि० टी० ५० टोडरमल, संपाक पण्डित मनोहरलाल, प्र. जन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई; भा० प्रा०हि० पु० ३६५, २०१६१८, मा० प्रथम । त्रिशला नदन-ले० प्र० भगवद जैन, भा० हिन्दी, पृष्ठ १८ ।। त्रिषष्टि स्मृति शास्त्रम्-ले० पं० प्राशावर, संपा. मोतीलाल, प्र. मारिणकचर दिग० जैन अथ माला बम्बई, भा० सं०, पृष्ठ १७८, व० १९३७ । वेष्ठ श्लाका.पुरुषों के नाम-ले० बा० सूरजभान वकील देवबन्द, भा० हि०, ५० १८६८ । त्रैवणिकाचारले. सोमसेन भट्टारक, अनु० पण्डित पन्नालाल सोनी, प्र. जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बम्बई, भा० स० हिन्दी, पृ० ३९८, व. १९२५, प्रा० प्रथम । त्रैलोक्य तिलक व्रतोद्यापन-ले० पण्डित पन्नालाल जैन सा० मा०प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हिन्दी, पृ० ३८, २० १९४३, मा० प्रथम । त्रिवेणी--ले. व. प्र. कुमार देक्षेन्द्र प्रसाद जैन पारा, भा०हि । ज्ञान कोष----संग्र० बा. धनकुमार चंद जैन, प्र० रोशनलाल जैन पारा; भाषा हिन्दी, पृ० १८५, व० १९३७, प्रा० प्रथम । सान चन्द्रोदय नाटक-ले० पन्नालाल जैन, प्र० जन हितैषी पुस्तकालय बम्बई, भाषा हि०, वर्ष १९०१ । झान दर्पण (प)ले. शाह दीपचद, प्र० बैन मित्र कार्यालय बम्बई भा० हि०, पृ०६६, २० १९११, मा० प्रथम । झान प्रदोषिका तथा सामुद्रिक शास्त्र-अनु. संपा० पण्डित रामव्यास पाय ज्योतिषाचार्य, प्र. जैन सिद्धत भवन मारा। Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *सान ममुग्चय पर लेखक तारणतरस स्वामी टी शीललमा प्र० सेठ मन्नूलाल, प्रागासौंद, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ५०४, २० १९३५, मा प्रथम । बानम्म रदि मा जैन पुग--ग्वा धनीराम बैग्य, प्र सौभाराम परशुराम नरवर, भाषा हि: प० ७, प्रा. प्रथम । ज्ञान पर-लेखक पसिंह मुनि, टी. पण्डित त्रिलोकचन्द, प्र. दिग. बैन पुस्तकालय सरत, भाषा प्रा मं. हिन्दी: पृष्ठ ४६. व० • ६४४ मा० प्रथम, (संस्कृत छाया व भाषा छन्दानुवाद महित)। बान सूद-लेख: प्र. लालत प्रसाद जैन पुढे ने क यमगंज, भाषा हिन्दी, पष्ठ ६ , प्रा. प्रथम । जान योग्य (प्रथम भाग) - ले० टाव सूरजभान बचौल, प्र. नांदमल अजमेग १० ब, भाष' हि०, पृ० ८०, ब० १९२६. प्रा० नीन । ज्ञान माय (द्वनं य भग) - लेक बाबू गरनभान वकील, प्र. जैन मित्र मरल ली भाषा हि०प० ७६ वर्ष १९२६ : प्रा० पथ । मान सूरन टक लेखक ादिचन्द्र सूरे, नु, नाथूगम प्रेमी, प्र. जैन ग्रंथर-नाकर क र्यालय दम्बई, भाषा सं. f ०, पृ० १-४, व० १६०६, प्रा० प्रथम । ज्ञानानंद मना कर-प्र. पीडा मम्वनला । प्रचारक देहली, ·षा हि०, पृ० ३२, वर्ग 18:८, गा. सातव।।। ज्ञानानद रत्नाकर-ले० व प्र० मुन्शी न थूर म लमेचू, भाषा हिन्दी, पृ० १२, व० ११०२ ज्ञननद रत्नाकर द्वितीय भ ग,---ने बक ब प्र० मुन्नी नाथूप लमजू, प्रखे गज श्री कृष्णादाम वम्बई, भाषा ह०.६७ वर्ष १८६५। ज्ञ नानद श्रवकाचार-लेवा रायमल्ल, #० भोध र नाकर कार्यलय सागर, भा० हि, पृ. २६२, व०१६१६. प्रा. प्रथम । शानाणव-ले क शुभचन्द्रा बाय, नु: ५० पक्षा कान बाकलीवल, प्रक Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५८ ) परमश्रत प्रभावक मंडल बम्बई, भा० सं० हि०, पृ० ४४७, व० १६२७, मा० प्रथम । ज्ञानोक प्रमाण -- लेखक धर्मदास क्षुल्लक, प्र० स्वयं, भा० हि०, go १२, १० १८५२, ० प्रथम । ज्ञानोदय (प्रथम भाग ) - ले० पण्डित पन्नालाल, प्र० स्वयं सुजानवदः भा० हि०, पृ० २६, व १८६१, मा० द्वितीय । ज्ञानोदय (द्वितीय भाग) - लेखक प० पन्नालाल, प्र० स्वयं सुजानगढ़, मा० हि०, पृ० ३५, १८६१, प्रा० द्वितीय । जैन धर्म पर प्रकाशित महत्वपूर्ण भाषण [ हिंदी ] कुवर दिग्विजय सिंह ( इटावा १४-३-१११० ) । ero हरमन जेकोबी (सन् १९१३ ई० ) । etc] लक्ष्मीचन्द्र जैन ( भा० दि० जैन परिषद् के ८वे अधिवेशन मे ) । डा० वान ग्लेजनेय (सन् १९१३) । डा० सतीष चन्द्र विद्याभूषण (२७ दिसम्बर १९१३ ई० काशी स्था. विद्यालय मे ) । डा० टी० लड डा० बी० एल० अत्रेय पं० जुगलकिशोर मुख्तार ( हस्तिनापुर, १६-११-१६२६) । प० अम्बादास शास्त्री ( संस्कृत- सागर सतर्क सु० त० पाठशाला के वें अधिवेशन पर ) | प० गणेश प्रसाद वर्णी (पपौरा, सन १६२७ ई० ) । प० गोपाल दास बरैया ( मार्च सन् १६१२ ) प० माणिकचन्द्र कौन्देय ( इदौर. सन् १३२० ) । पडिता चन्दाबाई (कानपुर, २-४-१९२१) । प्रो० फणिभूषण अधिकारी (काशी, २६-४-१६२५) । बा० मतिप्रसाद ( दि० जैन प्रान्तिक सभा बम्बई के १२वे अधिवेशन मे ) Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५६ ) aro मोलक चन्द्र (भिंड, १८-६-१९३१) | बा० छत्रपाल (भिड, १७-६-१६३३) । बा० जयभगवान जैन ( एटा १८-४-१९३०) | To पद्मसिंह जैन (बुलन्दशहर, ३०-४-१६३२) । TO प्यारेलाल वकील ( वडीत ३-४-१९२७) । To बहादुरसिंह सिंघी ( मार्च सन् १६३२) । बा० भोलानाथ मुख्तार दरखशा ( इटावा = २-१६३१) । बा० भोलानाथ मुख्तार दरखशाँ (गोहाना, १५-१०-१९३४) । बा॰ लालचन्द्र एडवोकेट ( हस्तिनापुर १०-११-१६३७) । ( परिषद अधिवेशन सतना ) बा० 11 बैरिष्टर चम्पतराय जी ( लखनऊ, ६-२-१६२२ ) ! राजकुमार मोहन बल उपनाम बलदेव सिंह जी रा० सा० द्वारका प्रसाद (मुजफ्फर नगर १-४-१६११) । रा० सा० नेमदास (अम्बाला, २५५-१६३६) । लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (३० नवम्बर १९०४ बडौदा ) "" श्रीमती एनी बेसेन्ट (मद्रास, दिसम्बर १९०१ ) । श्रीमती लेखवतो जैन मुजफ्फर नगर, १०- - (१९३५) । बा० साहु जुगमन्दर दास (सहारनपुर, ३०-१२-१०३२) साहु शान्ति प्रसाद (लखनव परिषद अधिवेशन, अप्र ेल १६४४) साहु सलेक चन्द्र (कानपुर १-४ - १६२६ ) सेठ ज्वाला प्रसाद जी महेन्द्रगढ ( देहली, १७-४-१६३२) सेठ ज्वाला प्रसाद जी महेन्द्रगड (बडीत, २७-१२-१६३२) सेठ पद्यराज (खामगाँव, अप्र ेल सन् १६२२ ) सेठ माणिक चन्द्र हीराचन्द्र (श्रवरण बेलगोला २६-३१६३० ) सेठ लाल चन्द्र सेठी (कलकत्ता, २६-११-१९२०) सेठ हीराचन्द्र नेमचन्द्र ( इन्दौर, ४-४-१९१४) Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६० ) सेठ हुकम चन्द्र जी (१० फरवरी १९१० दि० जैन महासभा अधिवेशन सम्मेद शिवर) सेठ हुकम चन्द्र जी ( प लीतार, सन् १३) स्वामी राम मिश्र शास्त्री (काशी: सन् १९७५) ला० बनारसीदास एम. ए. (१९०४ ई०) ० रा० वासुदेव गोविन्द श्रापटे -- जैन सामायिक पत्र पत्रिकाएं वर्तमान में चालू जैन पत्र पत्रिका निम्न प्रकार हैं श्रान्तममि; हिन्दी, मपाः प० जुगलकिशोर जो मुख्तार प्र० T वी- मैत्रा मदिर; सरसावा; ज० सगरपुर (यू० पी० ); जन्म सन् १६०६० बा० मूल्य ४) । आत्म-मामिक हिंदी, सपा० र मजी मारणेक चन्द दंशी वकील, म श्रात्म धर्म र्यालय मोग आकडिया, क 'ठयावाड जन्म १६४५० वा० म० ३ ; गुज'' सण भी निकलता है । उच्च मासिक, हिंदी, एट समेचू मासभा की ओर से वटेश्वर दयाव बकवेयाँ, डमी ग्वालियर पुन जन्म १९४७ ई० । स्वदेवान न हि पाक्षक, सिप ० प० नाथूल व पं० भंवराल, प्र० श्रभाजन खडेनवाल नहा नभा के लिये, रंगमहल इन्दौर, जन्म १२० ई० वा०म० I , 7 विद्य ल', जिनवाणी- मासि हिंद सप फूल चंद जैन गारग प्र० जन रत्न भोपा गड, जय‍ "ज्य जन १०४२ ई०, वा मू ४ । जेन गजट साप्ता क, हिर्द; पा० प० वर्शीधर शास्त्र (सोलापुर) प्रः भारत जैन मह सभा के लिय १० बाबूनाल, नई सडक, दही; जय १०६५ ई० वा मूल्य " 1 す जैन गजट - मासिक, अगरेजी, सपा० बा० प्रति प्रसाद एम ए. एच 7 Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स.बी., प्रात इशिन जोन एसोसियेशन के लिये, मजिवाम सबमक, जन्म १९०४ ई०, वा० भू० ३)। जैन जगत - मासिक, हिन्दी, संपारासब कवड़े, जमनालाल विशारद पादि, प्र. भारत जैन महा मडल के लिये हीगसाव चत्र , म मात्र १९४७ ई० प्रतिक मू०1)। जैन प्रचारक-मामिक, हिंदी, प्र० भारत जैन अनाय रक्षक सोमाली न प्रनाथाश्रम, दहली, जन्म १९०६ ई० वा. मू० ३) जैन प्रभात---मासिक, हिंदी, सपा० व प्र० ईश्वर चंद्र जैन एम. ए., न० ४. इमली बाजार, इदौर, जन्म १६४५ ई०, वा मू० २)। जैन प्रभान-मासिक, हिंदी: संपा. पं० मुन्नालाल सा० प्रा०, प्र०बी बरोश दिग. जैन संस्कृत विद्यालय सागर, जन्म २५ मई १९४७ ई०, वा० पुल्य ३)। जैन बोधक-पाक्षिक, हिंदी, सा०५० मक्खन लाल व ६० वर्षमान पाश्र्वनाथ, प्र: स्व. रावजी सखगम दोशी स्मारक संघ, ·५ पूर्व मंगलवार सोलापुर; जन्म सितम्बर सबू १८८४ ई०, वा मू० ३॥), इसका मराठी संस्करण भी निकलता है। ___ जैन महिनादर्श-मासिक, हिंदी, संपा० म० २०७० पंडिना चन्दाई बज बाला देवी; प्र. भारत दग. जैन महिला परिषद के लिये मूल किशनदास कापड़िया सूरत; जन्म १९२२ ई वा० मूल्य ३३)। जैन मित्रा-माप्ताहिक, हिन्दी; सपा० व प्र० मूलचद किसनदास काप. डिया सूरत, जन्म १८६६ ई०, वा० मूल्य ५), यह श्री दिग० जैन प्रांतिक सभा बम्बई, का मुख पुत्र है। जेन संदेरा-साप्ताहिक, हिंदी, सपा व प्र. बलभद्र जैन, मोती कटस घागरा, जन्म १६३६ ई०, बा० ० ४), यह श्री भारत दिग्र० बैन संध बारा का मुख पत्र है। Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६२ ) तरुण जैन संघ बुलेटिन - मासिक, हिंदी, प्र० मंत्री तरूण जैन संघ कलकत्ता, जन्म १९४६, अमूल्य । तेरा पथी युवक संघ बुलेटिन - मासिक, हिंदी, प्र० मंत्री तेरापंथी युवक बंच लाडनू, प्रति मू० 1 ) । तारण बंधु - मासिक, हिंदी, सपा० बाबूलाल डेरिया, प्र० राम लाल पांडे इटारसी, जन्म ११३८ ई० वा० मू०२), अखिल भारत तारगपथी नवयुवक मंडल का मुख पत्र । दिगम्बर जैन - मसिक, हिदी गुजाराती मिश्रित, सपा व प्र० मूलचंद किसनदास सूरत, जन्म १६०७ ई०, वा० ० २ || ) | दी जैन एण्डीक्वेरीदी - षाण्मासिक, प्रगरेजी; संपा० डा. ए. न उपाध्ये प्रो० हीरालाल आदि, प्र० दी सैन्ट्रल जंना श्रोरिपटल लायब्रेरी मारा, जन्म १९३४ ई०, वा० मृ० ४ ) ; यह पत्र श्रीजैन सिद्धान्त भास्कर के साथ सयुक्त निकलता है । दीजैन होस्टल मेगजीन - मासिक, हिन्दी अगरेजी, प्र० जैन होस्टन अलाहाबाद । पति सूर्योदय- मासिक, हिन्दी, सपा० प० खूब चन्द, चौपाई बम्बई, प्र० चन्द हीराचंद शाह सोलापुर, जन्म जनवरी १९४७, वा० मू० २), प्रगति आणि जिन विजय - साप्ताहिक, मराठी व कन्नड, सगा० भूपाल पप्पा जी चौगुले, प्र० भूपाय देवेन्द्रपा चौगुले, ६१६ मठगली बेलगाव, जन्म १६०३; वा० ० २ | | ) महावीर सदेश - पाक्षिक, हिन्दी; संपा० केशरलाल जैन अजमेर, प्र० प्रबंध कारिणी कमेटी श्री दिग० जैन अतिशय क्षेत्र महावीर जी (जयपुर राज्य), जन्म मई १६४७ ई० । लोक जीवन - मासिक, हिन्दी, सपा० यशपाय जैन प्र० लोक जीवन कार्यालय ७/३६ दरियागज देहली, जन्म १९४५, वा० मू० ६) । वीर - साप्ताहिक हिन्दी, सपा० बा० कामता प्रसाद व प० परमेष्ठीदान अ० वीर कार्यालय, ऋषिभवन फैज बाजार देहली, जन्म १९२५ ई० वा० मू० Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ } ( २३३ ) ४), भारत दि० जैन परिषद का मुख पत्र है। बीर लोक शाह - मासिक, हिन्दी, सपा० विजय मोहन जैन, प्र० शिवनाथ गल माहटा जोधपुर, जन्म १९४४ ई० वा० सू० ३) । 1 वीर वाणी- पाक्षिक, हिन्दी, संपा० पं० चैनसुखदास न्या० वी० प्र० पं० भंवर लाल जैन, मनिहारों का रास्ता, जयपुर, जन्म प्रप्रेन १६४७ ई०१ १० बु० ३) । वैद्य -- मासिक; हिन्दी; संपा० विष्णुकान्त जैन वैद्य, प्र० हरिशंकर चैन बैच, मुरादाबाद, जन्म, १६२० ई० वा० सू० ३) । मानसी - मासिक, हिन्दी; प्र० वद्धमान सहित्य मंदिर लखनऊ, बन्न मई १९४७, वा० मू० १५) । श्री जैन सत्यप्रकाश - मासिक, गुजराती हिन्दी ; संपा० चीमनलाव पोकलदास शाह, प्र० श्री जैन धर्म सत्य प्रकाश समिति, घी कांटा रोड, अहमदाबाद, जन्म १६३६ ई० वा० मू० २ ) । 1 श्री जैन सिद्धान्त भास्कर - षाण्मासिक, हिन्दी, सम्पादक बा० कामता प्रसाद पं० के भुजबल शास्त्री आदि, प्र० जैन सिद्धान्त भवन भारा (बिहार), जन्म १९३३ ई०, वा. मृ० ४) (जैन एण्टी क्लोरी सहित ) । श्वेताम्बर जैन - मासिक, हिन्दी, प्र० जवाहरलाल लोढ़ा मोती कटरा भागरा; पुन प्रकाशित जून १९४७ । सनातन जैन - मासिक, हिन्दी; संपा० अक्षयकुमार जैन, प्र० मगतराय जन 'साधु' मुख्तार बुलन्दशहर, जन्म १९२७ ई०; वा० मू० २ ) । सगम - मासिक, हिन्दी, सपा० स्वामी कृष्णानन्द व सूरज चन्द्र, प्र० सत्याश्रम वर्धा, जन्म १६४२ ई० वा० सू० ३ ) । सिद्धि - मासिक, हिन्दी, सपा० व प्र० रा० ० सिद्ध सागर, ललितपुर, जन्म १९३२ ई० । हितेच्छु- साप्ताहिक, हिंदी, संपा० वा० कैलाशचंद्र जैन, प्र० हिते कार्यालय, बीरड़ी का रास्ता जयपुर सिटी, जन्म १६४४ ई०; व० मू० ५) । हिन्दी मार्तण्ड - मासिक, हिन्दी, संपा० मैनावती 'मैना', प्र० विमन Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६४ हिंसा कुञ्ज, तोपखाना अलाहबाद, जन्म अप्रेल १९४७ ई० वा० सू० ३) 4: ज्ञान मासिक, हिंदी, मग सागर चंद जैन, प्र० मामन सिंह वंद्य प्रेमी देहली, जन्म मई १६४७ ई० वा० सू० १) । उपर्युक्त ३६ पत्रो के अतिरिक्त निम्नलिखित ४३ पत्रो के अस्तित्व का और पता चलता है, किन्तु उनके विषय मे जानकारी नही है- आत्मानद प्रकाश ओसवाल सुधारक, प्रोसवाल नवयुवक, कच्छी दशा घोसबाल प्रकाश जैन, जैन जवाहिर, जैन ज्योति, जैन ध्वज, जैन धर्म प्रकाश जैन पथप्रदर्शक, जैन प्रवचन, जैन प्रकाश, जैन बन्धु ( हिंदी और गुजराती), जैन युग, जैन विकाश, जैन शिक्षण संदेश जैन ससार (उर्दू), जैन सिद्धात, जैन हेरल्ड, जैस ाल जैन, जीवन ज्योति, जीव- सुधा, भलक, तर रवा तारणपंथ दि० खडे नवल जैन हितेच्छु, धर्मरत्न, परिवर्तन, पचय पत्रिका बुद्धिसागर, प्रभात, महाराष्ट्रीय जैन ( मराठी ), रत्नाकर, विवेकाभ्युदय वीर शासन, वीर संदेश, शांत वैभव, शाँति सिन्धु, शिक्षण पात्रा, समय धर्म, सत्य प्रकाश, न स्वदेश, स्थानकवासी जैन | सिद्ध चक्र; इन उपर्युक्त ५२ पत्र पत्रिकाओ मे स सभव है कुछ एक बन्द भी हो गये हो और कई एक ऐसे है जा इसी वर्ष चालू हुए है या होने की सूचना है । जो जैन पत्र पत्रिकाये भूतकाल मे अल्पाधिक समय तक चालू रहकर अब बंद हो चुकी है उनकी सूची निम्न प्रकार है .. ग्रहिसा (बारस), आत्मानन्द, आत्मानन्द जैन पत्रिका; आदर्श, प्रदर्श जैन, श्रादर्श जैन चरित्र, आदर्श जैन चरित माला ( अम्बाला ), आनन्द, उत्कर्ष, यसवाल, ओसवाल अभ्युत्य, कच्छी जैन मित्र, काव्याम्बुधि कुमार, खडेल वाल जैन, गोग्रास, गोला पूर्व जैन, चन्द्र प्रकाश, चन्द्र सागर, छात्र (मेरठ), जागृति, जति प्रबोधक (झाँसी), जाति प्रबोधक ( अ गरा), जिन वारणी (बगला, कलकत्ता), जिनवाणी (हि), जिन विजय (कन्नड), जीमालाल प्रकाश, जैन: जैन आदर्श, जैन सघाससार, जैन एडव कट, जैन कुमार (मेरठ), बेन जगत, चैन जागृति, जैन जीवन, तत्त्व प्रकाशक, जन तत्त्व प्रवेशक, जैन दशक, जैन दिवाकर, जैन धम प्रकाश, जैन धर्म ज्ञान दीपक; जैन धर्मोदय, जैन नम्री हित चन्नड, Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६५ ) कारी, जैन पत का (कलकत्ता), जैन पताका (अहमदाबाद), जैन पत्रिका, जैन प्रकाश; जैन प्रकाशक, जैन प्रदीप (उर्दू-देव बन्द), जन प्रभात, जैन प्रभाकर (बनारस), जैन प्रभाकर (लाहौर), जैन प्रभादर्श, जैन प्रबोध, जैन प्रभाव, बैन बन्धु (हिंदी), जैन बधु (मगठी); जैन बधु (कन्नड), जैन भाग्योदय, जैन भास्कर, जैन मार्तण्ड (मराठ) जैन मातण्ड (हिंदी), जैन मुनि, जैन युवक, रत्नमाला, जैन रिव्यु जैन वर्तमान, जैन वारविलाम (मरठी), जन विजय, जैन विजय रतंग, जैन विद्या, जैन विद्या दानोपदेश प्रकाश (मराठी), जैन विवेक प्रकाश, (श्वेताम्बर- भ्युदय), जैन शासन, जैन श्वेताम्बर काम हे ल्ड, जैन समाचार (दो), जैन समाज, जैन समाज सुधारक (मद्रास , जैन समालोचक, जैन साहित्य संशोधक जैन सिद्धान, जन सुधारक, जन सुधा-स, जैन हितेन्चु (दो), जन हितंषी, जैन हित उपदेशक (उर्दू), जैन ज्ञान प्रमाण जैनी (देहली), नोदय, जैसवाल जैन, त रणाय, तरुण जै।, दशा श्रीमाली हितेन्ज, देश हितैषी, देशभक्त, धमादिवा कर, धर्मध्वज, धभ्युिदय नारी हितका-1, नुक्ता, पद्मावती पुरवाल, पद्मावती सदेश, प्यारी पत्रिका, परवार बन्धु, प वार हितेषी, प्रगति (मराठी), प्रजा बधु, प्रभात, प्रभावना, प्रवचन वचनामृत, पल्लीवाल जैन; पुण्य भूमि, पोल पत्रिका, बुद्धि प्रभा; भारत भानु (पूना), भारतभानु (मिर ही) भारत हितेषी, महिला भूषण, मधुकर, मारवाडी प्रोसब ल, मारवाडी जैन सुधारक, मुनि, रतलाम टाइम्स, रगीला, वन्दे, जिनवरम (मराठी), विजय धर्म प्रकाश, विनोद, विविध विचार माला, विश्व बन्धु, वीर वाणा, वीर संदेश, वीशा श्री माली हितेच्छ, श्रावक, श्राविका सुबोध, श्री वर्द्धमान, श्वेताम्बर जैन, श्वेताम्बर स्थानकवसी कान्फन्स प्रकाश, सत्यवादी, सत्य सदेश, सत्योदय सद्धम; सद्धर्म भा-कर, सनातन जैन, समालाचना, स्याद द केशरी, स्याद्वाद सुधा, स्याद्वादी सर्वार्थ सिद्धि (कनडी) सर्वोदय, स्त्री सुख दपण, सार्वधर्म, सेत वाल जन; सैतवाल जाति, हिन्द। जैन, ज्ञान प्रकाश, हिन्दी समाचार, हूमड़ बन्यु, सम्यक्त्वधक कच्छा जैन, कच्छी दशा भोसवाल दर्पण वरुण कच्छ, महावार (पू), महावीर (सिरोही), समालोचक । Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उर्दू पुस्तकें अप्रबाल बंसावली -- ले० सुमेर चन्द जंन प्रग्रवाल, प्र० हीरालाल पन्ना बाल जैन देहली, पृ० ४०, ब० १६२५ । अटकल पच्चू (ट्रैक्ट हिस्से ५ ) - ले० व प्र० बा० मामचन्द राय जैनी; देहरादून । अद्भुत राम चरित्र -- ले० पति नैनसुखदास, प्र० ला० होशियार सिंह सुनपत, पृ० ३६, व० १६१५, आ० अब्बल | अनमोल मोती - ले० शभूनाथ जैन कांधलवी, प्र० जोतीप्रसाद जैन देव बद, पृ० ५२, व० १६१२, प्र० अब्बल | अनमोल रत्नों की कुजो ( हिस्सा अब्बल) - ले० बिशभरदास झंझानवी संपा० अजुध्या प्रसाद जैनी, प्र० जौहरी मल देहली, पृ० ४०, ब० १९१७१ मा० अब्बल | अनमोल रत्नों की कुंजी ( हिस्सा दोयम ) -- ले० विशभरदास भंझानवी, बृ० ६४, व० १६१८ । अनापूर्वी - - प्र० संपादक "जैन" देहली, पृ० ३४ । अमोलक ऋषि महाराज की सवाने उमरी - ले. विशबरदास, प्र० बा० गुर परशाद जैन तोशाम (हिसार), पृ० १४४ १० १६२५, भा० अब्बल | अहिंसा- - प्र० जीवदया विभाग जैन महा मडल लखनऊ, व० १६१५ । अहिंसा धर्म याने गास्पल आफ वर्धमान -- ले० महर्षि शिववरत लान बर्मन; प्र० जैन मित्र मंडल देहली, पृ० १४४; १० १६३२ | अहिंसा धर्म पर बुजदिली का इल्जाम - ले० बा० शिब लाल मुख्तार, प्र• जैन मित्र मंडल देहली, पृ० १६, १० १६२८ । Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६७ ) अहिंसा परचार-अर्थात् गोश्तखोरों के ऐतराजात का दन्दा शिकत जवाब मे. बाबू परमानंद जैन म. मा० नन्दलाल, पृ० ७२, प्रा० मन्बम। अहिंसा याने तमाम जानवरों से बिरादराना मुहब्बत-प्र० जीव दया विभाग; जैन महा मंडल लखनऊ, व० १६१५ । आदाबे रियाजत याने बाइस परीसह-ले० बा० भोलानाथ दरखयों, ३० जैन मित्र मंडल देहली, पृ० २४, व० १९२९, मा. अब्बल । आदीश्वर भगवान श्री रिखवदेव जी महाराज का मुख्तसिर जीवन चरित्र --अनु० गोपी चन्द जैनी 'भानु', प्रमात्मानंद जैन ,क्ट सोसाइटी अम्बाला पृ० ६६, २० १६१६ । श्रावदार मोती-ले० शिव वरतलाल, प्र. नन्दकिशोर 'अवधूत' नाहौर, पृ० १८६, २० १९२५, प्रा० अब्बल । आईनए अफाल दयानन्द (अलमारुफ तर्जुमा दया नद छल कपट दर्पण)-ले० पं. जीया लाल चौधरी, प्र. जोतिषरत्न पवित्र औषधानय फर्रुख नगर; पृ०२०८, २० १६२५, प्रा० अब्बल। आईनए हमदरदी-ले० ला० पारसदास, प्र० खुद देहली, पृ० ३३४, १० १६१६, प्रा० अब्बल । आरजुए खैर बाद (मन्जूम)-(मेरी भावना का तर्जुमा)-ले० बा. भोलानाथ मुख्तार, प्र. जैन मित्र मडल देहली, पृ० १६; व० १९२५ । इत्तहादुल्मुखालफीन-ले. चम्पराय जैन बैरिस्टर, पृ० ३६४; व० १६२२ मा० अब्बल। इन्सानी गिजा-प्र. जीवदया विभाग जैन महा मडन लखनऊ, व. १६१५। ईश्वर विचार-ले. नत्थन लाल गुड़गांवे वाले; प्र० खुद देहली, पृ० ४८; क. १९२६ । एडरेस-बा• बाल चन्द्र जैन एडवोकेट; रोहतक; सन् १९३१ ई० । । क्या ईश्वर सालिक है-(बतर्ज लावनी)-ले• बा. जोती परशाद, Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६६ ) प्र० जैन मित्र मंडल देहली, पृ० ८ ० १६२५ । कर्म आब बन्धन --ले० बा० ०२, ० अब्बल | सुल्तान सिंह जैन वकीन, प्र० खुद्र मेरठ, कलामे पंका-ले०ला० भुन्नुलाल लाल साहब, प्र० जनमित्र मंडल देहली, ० ८, व० ४६२५ 1 क्वल ज्ञान-ले० हुकम चन्द जैनी, प्र० श्री प्रात्मानद जैन ट्रॅक्ट सोसाइटी अम्बाला, पृ० ३८ व १६१८ । खाने लताफ (अमितगति श्राचार्य के सामायिक पाठ का तर्जुमा) - ले० बा० भोलानाथ मुख्तार दरखशा, प्र० जै- मित्र मंडल देहली, पृ० २४, ० १६२८ ( मनजूम ) खुलामा मजाहब -- ले० बा० सुमेर चंद जैनी, पृ० २४, ब० १९२० । निरमते नल्क-ले० रा० ब० पारस दाम देहली । ० शीतलदास जैन बी० एम०, प्र० खुद पानीपत, पृ० ३७६, व० १९२४-१६२५ । ग्यारह पति हि सा अब्बल ग्यारह पति हिस्मा दो म ग्यारह पति हिम्सा सोयम ज्ञान गुलशन बहार उर्फ आत्महित र ने० फकीरचन्द जैन देहली, प्र० खुद पृ० ३०, व० १५२१ । ज्ञान सूज उदे (दो हिस्से ) - ले० बा० सूरजभान वकील: प्र० जैन मित्र मंडल दहली, पृ० ६४, ब० १०२५, आ० अब्बल | गाय को फरयाद - प्र० जीव दया विभाग जैन महामंडल लखनऊ; व० १९१५ । गुल तखयल या रूवाईयात दरवशाँ ( मान तुग कृत भक्तापक स्तोत्र का तरजुमा ) - ० बा० भोलानाथ दरखशॉ, प्र० जैन मित्र मंडल देहली, पृ० १६ ० १२५, आ० दोयम । गुलजारी रूहानी - - सपा० मा० विशम्भरदास, प्र० कपूरचन्द हिसार, ९० ६४, व० १६२६ । Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६६ ) गुनदला अकोदनले चन्दू गाल जैन 'महार', प्र• जैन मित्रमंस देहली, पृ० ६६, २० १९३३ । गुन तर जैन धर्म -ले० विशम्बग्दाम जैन, प्र. खुद, १० ७४ . १६.५। गुनदाता जैम भजन मला --सक० बा. कस्तू गेलाल जैनी; 3. जन भजन क्लब बुराना, १० ३४, व० १०१। गौंह देवड़ा-ले. महर्षि शववरतलाल, प्र. जन संगठन सा देहनी, पृ. १६, २० १९०६, प्रा० अब्बल । चिका गे प्रश्नोना-ले, विजयानन्द सूरः अनु० व प्र. नथुराम जीग (पंजाब'; १०:५५; व० १६१५ । जल्बा शपिन-ले० योगीन्द्र प्रानगर्ग, अनु० भोलानाथ गस्तार दरखा, प्र० जेन मित्र मडल दे ली, प. ६, २०१६२९; प्रा० अन्वत्र । जन्बा मजहब-ले, सुमेग्चन्द जैन एकाउन्टेन्ट; प्र. जन मित्रमंडल देहली, १०२; १० १९२४ प्रा० योयम । जिनेन्द्र मत दरबन -- ले० बा बनारमीदाय एम. ए प्र० न बंग मैन्स एगोसियेन इलाहाबाद, पृ० २४ । जेन इनिहाय -ले० पडित प्रभूदयाल जन तहर्म लदार देलवी, प्र० खुद अम्बाला, पृ. २६६ व० १६०२, प्रा० अञ्चल । जेन करम फिला रफी-ले. बा. 'रखबदास जन वकील मेरठीप्र. बन मित्रमडल देहल , पृ० ३२, क. ६२४ । जेने म को तरक्का गज-ले. बा० दयाचन्द बी. ए., प्र.मा. सन राम मग । - स 1 अम्बाला, पृ.१६, व. १९१५ । जैन गुलदस्ता रागाहमा अनल अल्मारूफ जुगल विलासके मु. जुगलकियार जन 'मह', प्र. खुद बड़ौत ( मरठ। पृ० ४८, मा. अव्वल। Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७० ) जैन तत्व दरपन - ले० स्वामा रतनचन्द्र जी, प्र० लाला नन्नूलाल रामलाल जनी पटियाला, पृ० ५०८, व० १६१७, प्र० अव्वल । जैन तत्व परकाश - ले० लाला नथूराम; प्र० जन कुमार सभा जीरा, पृ० ५७, व० १६१६, प्रा० अव्वल । 'न दूसरों की नजर में - सक० डी० सी० श्रोसवाल, प्र० पी० डी० न मंत्री श्री महावीर जैन लायबरेरी स्यालकोट, पृ० १२, ब० १६१६ । जैन धर्म - ले० महर्षि शिबबरतलाल, प्र० जैन मित्रमंडल देहली, पृ० १७६, व० १६२८, भा० अव्वल । जैन धर्म (सी० एस० मेघकुमार के अग्रेजी लेख का तरजुमा ) - अनु० विद्यारतन बी० ए० प्र० लाला गुरदासचन्द्र जैन, पृ० ३६, १० १६२५, मा० अव्वल । जैन धर्म अजलो - ले० [लाला दीवानचंद जैनी, प्र० जैन मित्रमंडल देहली, पृ० ५६, व० १६२८ । जैन धर्म की कदामत - लेखक दीबानचंद जैनी, प्र० श्री जन सम्मति मित्रमंडल रावलपिंडी, पृ० २८ व० १६२५, ० मव्वल । जैन धर्म की कदामत - लेखक नत्थूराम, प्र० आत्माबद जैन ट्रॅक्ट सोसाइटी अम्बाला, पृ० २८, ० १६१७ प्रा० अव्वल । -- जैन धर्म की अजमत - ले० बा० रिवत्रदास जैन मेरठी, प्र० जैन मित्र डल देहली, पृ० ३२, व० १९२६ । जैन धर्म दीगर मजहब से क्यों आला है-ले० प्रभुराम खत्री, प्र० जैन सन्मति मित्रमहल रावल पिंडी, पृ० ३०, ब० १६१४, प्रा० प्रब्वन । जैन धर्म वा किसकी परस्तिश करते हैं--ले० बा० रिखबदास जैन मेरठी, प्र० जैन मित्रमडल देहली, व० १९२६, प्रा० अब्वल । जैन धर्म वो परमातमा ले० बा० रिखबदास जैन मेरटी प्र० जैन मित्रमडल देहली, पृ० ४८, ० १९२३, प्रा० दोयम । जैन ममजहब के ६२ सूत्रों का खुलासा-नेखक ला० सुमेरचन्द जैन Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १) एकाउन्टटेन्ट पटियाला; प्र. बुद, पृ० ६२, ५०, १९२७. पा० मव्वल । जैन मत नास्तिक मत नहीं है और जैन फिलासफा के छः जौहर(मि० हर्बर्टवारन के अंग्रेजी लेख का तरडुमा)-अनु० चन्दूलाल जैन अस्तर प्र० प्रेम बर्षिनी जैन सभा नजफगढ, पृ. ३२, ३० १९२३, मा० प्रवल । मैन मत सार या हिन्दु मत इख्तसार-ले० ला० सुमेरचन्द जैन, प्र० खुद० पटियाला, पृ० ३२२, व १६१६, मा० अब्वल ।। जैन रतन माला के तीसरे और चौथे रतन-ले० ला० नेमचन्द जैन, प्र० खुद देहली, पृ० १६, २० १९२५ । जैन वृतान्त कल्पुद्रम-ले० शिवबरतलान बर्मन एम० ए०, प्र. दुद लाहौर, पृ०४८। जैन वैराग्य शतक-अनु० मा० बिहारी नाल बी० ए०, प्रद बुलन्दशहर, पृ० २४, २० १६०३ । जैन साधुओं की बरहनगी (बरिस्टर चम्पतराय की अंग्रजी किताब का तरजुमा)-अनु० बा. भोलानाथ मुख्तार; प्र० जन मित्रमंडल देहली, पृ० १८, व० १९३१, आ० अन्बल । जैनियों को नास्तिक कहना भूल है-ले० ह सराज शास्त्री, अनु. हुकमचन्द जैनी, प्र० मात्मानन्द जन ट्रक सोसाइटी अम्बाला शहर, पृ० ३५१ व० १९२४ । जैनी आस्तिक है-ले० नत्पराम, पृ० मात्मानन्द जन ट्रेक्ट सोसाइटी अम्बाला शहर, १०४०, व० १९१५ । जैनी नास्तिक नहीं-ले० डी० सी० प्रोसवाल, प्र० मन्त्री महावीर जन लायब्रेरी स्यालकोट, पृ० १६, २० १९१६ । जेनी नास्तिक नहीं हैं इसपर विचार-ले. नत्थूराम जनी, प्र. खुर बौरा, पृ० ३४। जैनला-ले. वैरिस्टर चम्पतराय, प्रकाशक होरालाल पन्ना मान जैन देहली, मूल्य १) हवती नया-ले० दीवान अज समन्दरी, प्र. जैन सोसाइटी लाहौर, Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७२ ) १० ३२, १० १६०३, ग्रा० अञ्चल । तडपदार मोत० शित्रबरतलाल बर्मन, प्र० जे० एम० सन्तसिंह ऍड सन्स लाहौर, प० १५६१ Paradi और 'खुराक २० १३१५१ - प्र० जीवदया सभा जैन महा मंडल लखनऊ, तरनीद गोश्न- -प्र० भारत जन महा मंडल, पृ० ४०, प्र'० अव्वल । दयानन्द कुर्क तिमिर नर न अलमारूफ गौहर बेचहा - ले० मुनि लब्धि विनयः प्र० लम्भूराम जंनी जौरा (फिरोजपुर), पृ० ११२, १० १६१०, मा० अव्वल । कार में तिरस्कार - ले० बुधमल पाटनी, प्र० भारत धर्म महामंडल लखनऊ, पृ० १०२, ० १६१४ । दिल्लीका यस्ता अमाक नमीहतों का गुस्ताले० ला० नत्थूराम जंनी, प्र० प्रात्मानन्द जीन ट्रॅक्ट सोसाइटी अम्बाला शहर, पृ० २०, ५० १६१६, प्रा० अव्वल । दखे हुए दिल की करियार ले वरखाह कौम, बा० जिनेश्वरदास 'मायल', प्र० श्री जैन उपकारक पुस्तकालय, पृ० ८, व० १६०६, प्र० अव्वल । नर्म देवगुरु का स्वरूाने० नत्थूराम जंनी प्र० श्रात्मानन्द जैन ट्रैक्ट सोसाइटी अम्बाला, पृ० ७०, ६० १६१८, आ० अव्वल 1 धर्म को जड़ सा हरा-ले० दीव नचन्द घोसवाल, प्र० प्रालानन्य गोपी अम्बाला, पृ० ३२. व० १६५७, प्रा० अञ्चल । धर्मवीर श्रगत नाटक - प्र० श्री दिगम्बर जैन उपदेशक मोसाइटी देहली, पृ० ७०, व० १२३, प्राकल | नीतीचाने और उनके बेजा तं ाल के बनता जले० सा० बिहारीलाल प्र० एस० सी० जैन श्रमरो. 1, पृ० ३२, १० १६ ६ नागौर - ० महर्षि शिववरतलाल बर्मन, प्र० जेा मित्रमंडल 1 Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केहली, पृ० ३२, २०, १५२६, मा० अब्वल । नेमनाथ जी का ब्याहला (बहर मसनवी )-लेव न राय जैनी, कैसरगज मेरठ, पृ०१६। नौर्तत यानि जैन फिलासफी-० नत्यूराम जैनी, में. मात्मानन्द जैन ट्रेक्ट सोसाइटी अम्बाला, पृ० १२, १० १९२१ । पहला महाबरत ( महिंसा )-ले० डी० सी० पोसवाल, प्र० मन्त्री श्री महावीर जैन लायब्रेरी स्यालकोट; पृ० १२, २०१९१६ फरवाद पेषगान-ले. बा. भोलानाथ दरखा बुलन्दशहरी । फरायज इन्सानी-ले० बा० शिवलाल जैनी मुख्तार, प्र०बन मित्रमग्न बेहली, पृ० १६, २० १९३०। फरायन इन्सानी या मनुष्य कर्तव्य-लेखक क०प्र० सुमेरचन्द बैंग एडवोकेट अम्बाला, पृ० १११, २०१९२५ मा० अव्वल । फैसलेजात व तवारीख मुसलिक श्री जैनादिगम्बर वा हस्तिनापुरेसं० प्र० बा० सुल्नानसिंह जैनी वकील मेरठ, पृ० १६, २०१९०६ ब्रह्मगुलाल चरित्र-देखिये राग कौतुहल नाटक । प्रवचर्य-ले. बा० रिखबदास जैनी वकील मेरठ, प्र. मित्रमंन्न देहली, पृ० १०, २० १९२४, भा० मध्वस ।। बारह मासा श्री नेमोश्वर भगवान व श्रीरामेती-प्र. श्री जन धर्म भास्कर सभा रावलपिंडी, प. २% 40 १६८८, प्रा० भन्दल। पाल बोष-ले० डी० सी० पोसवाल, प्र. मन्त्री श्री महावीर जैन मायब्रेरी स्यालकोट पृ० १२, व० १६१६ । बीर चारित्र (बत रामायन राधेश्याम)-लेक हेमराज, प्र. वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा होशियारपुरः पृ० १२५ व० १९२४, मा० अब्बल बीर नामा (मनजूम)-ले०५०प्र० बा० भोलाना मुख्तार दबिश दुसन्याहार, पृ० ५२ ० १९१२, मा. पवल। राग कौतूहत नाटक (हिस्सा व्यस)-मेला मंगतरांक मा० Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५४) बिहारीलाल बुलन्दशहरी; पृ० ३०, व० १६०१ । वैराग कौतूहल नाटक (हिस्सा दोयम)--ले० ला. रविचन्द्र, प्र. मा. बिहारी लाल, बुलन्दशहरी पृ० ४०, ५० १६०६ । भगवान महावीर और उनका वाज-ले० बा०शिवलाल मुख्तार, प्र. बन मित्र मंडल देहली, पृ० ३३, व० १९२७ । भगवान महावीर की तालीम और उसका असर-ले. चम्पतराय जैनी पैरिस्टर, प्र० जैन मित्र मडल देहली, पृ० १६, व० १९४१ ॥ भगवान महावीर के जश्ने वलादत की रूएदाद-प्र० जैन मित्र मंडल देहली, पृ० ४८, व० १९२८। भगवान महावीर के जीवन की झलक-ले० राय बहादुर जुगमन्दरलान जज, प्र. जैन मित्र मडल देहली, पृ० ३२, व० १९२५, प्रा० अव्वल । भगवान श्री अरिष्ट नेमिनाथ--ले० मानिक चन्द जैन; प्र० श्री जैन समिति मित्र मडल रावलपिंडी, पृ० ३४, ३० १९२८ । भजन पंकज पराग-ले. ला० मुन्शीराम; प्र० ला० रखाराम भावड़े, . पृ० ३२, मा० अव्वल । भविसदत्त तिलका सुन्दरी नाटक-ले. व प्र० बा• न्यामसिंह जैनी हिसार; पृ० ८८, २० १६१९, प्रा० अव्वल ।। भोज प्रबन्ध नाटक [हिस्सा अव्वल]-ले० प्र० मा. बिहारीलान बुलन्दशहरी, पृ० २२, २०१९०३, भा० अव्वल । मजमूए दिलपजीर-ले० बा० चन्दूलाल जैन मस्तर, प्र० जैन मित्र मंडल देहली, पृ० ८, २० १९२५ । मरने से डर क्या-ले. जोतीप्रशाद देवबद, प्र० सुद, पृ० १६, वर्ष १९२० । मुशायरा मय रिपोर्ट-प्र० जन मित्र मंडल देहली, पृ० ३२, २०१६३०॥ महारानी रिखब सेना-ले० ला० हुकमचन्द जैन, प्र.मात्मानन्द जैन ट्रेक्ट सोसाइटी अम्गला, पु०४८, १० १६१७, मा. पव्वल । Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) • मांस बहार हिस्सा मब्वल)-ले० डी० सी० पोसवाल, प्र• मन्त्री महावीर जैन सायनरी स्यालकोट, १० १२,२०१११६ । ___ मांस भक्षण निषेध हिस्सा दोयम]-ले० वा० नानकचन्द वैरागी, . मैन सभा मालेर कोटला, पृ० ४६, २० १९१३ । मिथ्यात नाशक नाटक [हिस्सा अव्वल]-ले० पं०रिसवदास, प्र० मा. बिहारीलाल बुलन्दशहरी, पृ० ५०, व० १८६६ । - मिथ्यात नाशक नाटक [हिस्सा दोयम]-ले०५० रिखवदास, प्र० मा." बिहारीलाल बुलन्दशहरी, पृ० १४, १० १६००। मिथ्यात नाशक नाटक [हिस्सा सोयम]-ले. पं० रिखवदास, प्र० मा. बिहारीलाल बुलन्दशहरी; पृ० ११६, व० १६०१ । मुक्ति-ले० प्रिंस हाफ मून, प्र० डा० परशादी लाल देहली, पृ० ३२॥ मुकदमा जैन मत समीक्षा-सं० प्र० बा० प्यारेलाल वकील देहली, . ६१, २० १९०५। मुरक्कम बरत-ले० बा० भोलानाय मुस्तार, प्र. जैन मित्र पंस बेहली, पृ० ४८, व० १९३४ । भूत्ति पूजा मंडन-ले०५० मेहरचन्द, प्र. जैन प्रचारिणी सभा सोनीपत १०८, २०१९०६ मा० देयम । मेरी भावना (नम)--ले० ला० मुन्मूलाल जौहरी, प्र० जैन मित्र मंडन देहली, पृ० ८, २० १९२५ प्रा. प्रबन। मेरी भावना-ले० पं० जुगलकिशोर, मुख्तार प्र० जैन मित्र मंडल देहली, पृ० ११, २० १९३६, मा. शशतुम [छठी] । मोक्ष का रास्ता-ले० मिट्ठनलाल जैन, प्र. दुद देहली, पृ० ४८, २० १९२६ । मोह जाल-के. जोतीप्रशाव जैनी, प्र. जैन मित्र मडन देहली; ५०) 4०.१९२४, मा० अब्बल। योगसार मारूफ व रम्जेम्ज हकीकत-ते. योगीन्द्राचार्य, अनु० मा Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * ( २७६ ) बिहारीलाल, प्र० एस० सी० जैन बुलन्दशहरी, ४० ३६, १० १३२३, पा० अव्वल । रहनुमा उर्फ जैन धर्म दरपन - ले० ना० दिखनदास बी० ए०, प्र० जैन मित्र मंडल देहली, पृ० १६, व० १९२५ । राम चरित्र से० ला० भोलानाथ बरखशां, प्र० मा० बिहारीवाल, अमरोहा, पृ० १०४, व० १६०५ । रिसाला सुखकारी- मोसमा युद्धमा शादी [ न० १]-ले० सा० प्रभूदयाल, ० खुद, पृ० १६ । रिसाला सुखकारी - मौसमा मुद्दमा शादी [न० २]-ले० ला० प्रभूवधाल प्र० खुद, पृ० २४ । रिसाला सुखकारी - मोसूमा मुद्दमा शादी (म० ३ ) -ले० ला प्रभुदयाल, प्र० खुद, पृ० २४ रिसाला सुखकारी - मोसमा मुद्दा शादी [ न० ४] - ले० ना० प्रभुदयाल, प्र० खुदः पृ० १६ । रूहानी तरक्की का राज - ले० जोतीप्रशाद जैनी, प्र० जैन मित्र मडम देहली, पृ० १६, ० १९३५ । रूहानी तरक्की का राज -ले० जोतीप्रशाद जैनी, प्र० जौहरी मल जैन सर्राफ देहली, पृ० १६, १० १६३६, प्रा० दूसरी । लावनी कर्ता खंडन का फोटू-ले० ना० बोतीप्रशाद, प्र० खुद पृ० ८ व० १६०४ । लुत्फे रूहानी उर्फ श्रात्मिक आनन्द - संपा० मा० विसम्भरदास, प्र० ला० गुरप्रशाद जैन तोशाम [ हिसार ], पृ० ५६, ब० ११२३ । व या जात क्या चीज है-लं० बा० रिखबदास वकील, प्र० जैन ट्रैक्ट प्रचारक मडल कीरतपुर, पृ० १६, १० १९१५० ग्रा० प्रथम । वीर अकलक देव वे० ला• शेरसिंह नाज, प्र० मा सहाय देहली, ५० ६४ । पारे लाड़ देवी Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७७ } मनु शास्त्रार्थ नजीबाबाद- --प्र० मोहकम लाल जैन देहली, पृ० ६४ | शाहरा निजात (यानि जैन धर्म के मुतालिक सवाल जवाब बाव जैन भक्तर, प्र० चैन मित्र मंडल देहली, पृ० ३२, १० अव्वल 1 १६२४, प्रा० शुमाली हिन्द की जैन डायरेक्टरी संसार ग्राफिस देहली, पृ० ३०४, व० १९४० । सच्चे मज़हब की इसाई बातें -०० जी० ट्राउट, अनु० पं० भगतराम शर्मा, पृ० २४. व० १६४१ । सच्चे मोतियों की लड़ी - ले० श्रीमती गर्वती देवी, संपा० ना० दीवानचन्द, प्र० जीवदया फंड रावलपिंडी, पृ० २४, ० १६२१, आ० दोयम । सनातन जैन दर्शन प्रकाश (अलमारूफ नीततत्व पदार्थ ) -- ले० स सोहन लाल वकील, पु० ५३४; १० १६०२ | सप्त व्यसन या हफ्तायून - ले० सुमेरचन्द जैन एकाउन्टेंट, प्र० मित्र मंडल देहली, पृ० १६, व० १४२५ । स्तुति व प्रार्थना - ले० व० प्र० मुन्शी रामप्रसाद 'राम'; पृ० ८, व्० १६२४ । स्त्री शिक्षा - ले० व प्र० दयाचन्द्र गोयलीय जयपुर: पृ० ५०, व० १६०६। संकट हरन या मुसद्दसे वीर - ले० दिगम्बर प्रशाद मुख्तार, प्र० जौहरी मल जैन सर्राफ देहली; पृ० १६, प्रा० दोयम | -- सरगुज्रशते कौम (मनम) – ले० बा० भोलानाथ मुस्तार; प्र० जैन संगठन सभा देहली, पृ० १६, व० १६२५ | स्वामी दयानन्द और वेद - ले० स्वामी कर्मानन्द प्र० दिगम्बर जैन शास्त्रार्थं संघ अम्बाला छावनी; पृ० ४८, ० १६३६ श्र० अव्वल । सहरें काजिव - ले० ला० भोलानाथ मुख्तार, प्र० जैन मित्र मंडल देहकी ५० ४०, व० १६२६ / सिल्के सद जवाहर [यानि जैन वैराग शतक मनजुम ] - ले० प्र० भोलानाथ मुस्तार, प्र० जैन मित्र मंडल देहली, पृ० ३२, १६२६ । संपा दीपचन्द जैन, जैन Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) सीता जी का बारह मासा-ले० यती नैन सुखदास, अनु० ब० प्र० मा. बिहारी लाल बुलन्द शहर, पृ० ३२, व० १८६० । सुख कहाँ-ले० ला जोतीप्रशाद जैनी, प्र० मुसद्दीलाल बाबूराम शामली, पृ०८, ३० १९२३ । सुख कहाँ-ले० ला० जोतीप्रशाद जैनी, प्र. जैन मित्र मण्डल देहली, १० कव० १९२४, प्रा० अब्बल। सुबह सादिक अलमारूफ अनवारे इक्कीकत-ले. फकीर माइल, प्र. बा० महाबीर प्रशाद डाक वाले देहली, पृ० ४०।। सूखा हुआ चमन कैसे हरा हो सकता है यानि हम और हमारा फर्जमे० नत्यूराम जैनी, प्र० प्रात्मानन्द जैन ट्रैक्ट सोसाइटी अम्बाला शहर, पृ. ४०, ५० १९२१ । हकीकते दुनिया (नपम)--लेखक बा. भोलानाथ दरखशा, प्र० जेन मित्र मण्डल देहली, पृ० १६, व० १९२७, मा० अब्बल । हकीकत माबूद (नाम)-ले० बा. भोलानाथ दरखा, प्र० जैन मित्र मंडल देहली, पृ० १६, २० १९२८ । हनुमान चरित्र (हिस्सा अव्वल)-ले० व प्र० मा० बिहारी लाल बुलन्दपाहरी, पृ० १४८। हनुमान चरित्र (हिस्सा दोयम)-ले. व प्र० मा० बिहारीलाल बुलन्दपाहरी, पृ० १०२। हनुमान चरित्र (हिस्सा सोयम)-ले० व प्र० मा० बिहारीलाल बुलन्दपहरी, पृ० ६२, व० १९०३; प्रा० अब्वल । हमदर्दे मुल्क-ले. दिगम्बर दास जैन, प्र० खुद, पृ० ८०, ३० १९२६ । हमारा रूहानी रहबर यानि जैन तीर्थकर श्री महावीर स्वामी का मुख्तसिर पोवन चरित्र--ले० दीवानचन्द पोसवाल, प्र० जैन ट्रक्ट सोसाइटी लाहोर, पृ० ३२, २० १९१७॥ हयाते बीर ( नाम )-ले० दबीरे कोम ला. भोलानाथ मुख्तार, Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९) १० जैन मित्र मंडल देहली, पृ० १६, २० १९२८ । हयाते रिषभ (नस्म)-ले० दबीरे कौम ला० भोलानाथ मुख्तार, प्र० बैन मित्र मंडल देहली, पृ०१६, ब० १९३१, मा० अव्वल । मराठी भाषा को पुस्तके अन्य धर्मापेक्षा जैन धर्मातील विशेषता-अनु० श्री मानन्द ऋषि जी, पृ० ३६, ३० १९२८ । अमित गति श्रावकाचार-अनु० कलप्पा भरमप्पा निटवे, पृ० ४१५, २० १९१४॥ आत्मोन्नतिचा सरल उपाय-ले० प्रानन्द ऋषि, पृ० ५१, २० १९२७ । उपसका चार-अनु० कलप्पा भरमप्पा निटवे; पृ०६४, १० १६०४ ॥ उपासकाध्ययन (रत्न करड श्रावका चार)-अनु० नाना रामचन्द्र नाग, पृ० २४, २०१६२२ । कुन्दा कुन्दाचार्यांचे चरित्र-ले० तात्या नेमिनाथ पागल, पृ० २७, २० क्रिया मजरी-अनु० कलाप्पा भरमप्पा निटवे, पृ० १२८, २० १६०८ । गोमट्टसार (कर्म कांड)-अनु० नेमचन्द्र बाल चन्द्र गाधी, पृ० ५२३, २० १६२८ । जैन दशेन व जैन धर्म-ले. हर्बर्ट वारेन, अनु० प्रानन्द ऋषि, पृ० ३२, व. १६३८ । जैन धर्मामृत सार (२ भाग)-ले० नेमिचन्द्र सीताराम, पृ० ७६, ३० १८२६ । जैन धर्माचे अहिंसा तत्त्व-अनु० मानन्द ऋषि, पृ० २२ ० १९२६ । जैन धर्मा विषयो अजैन विद्वानाचे अभिप्राय (भाग १)-अनु० पानन्द ऋषि, पृ० ६७; व० १९२८ । जैन धर्मा विषयी अजैन विद्वानाचे अभिप्राय (भाग २)-अनु० मानन्द ऋषि; पु० ३६;व० १९२८ । Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६० जैन धर्मादर्श-ले० रखनी नेमचन्द काहा सखापुरु, पु रावा १०१०। जैन धर्म शिचावली (३ भाय)-ले०, नाना राम चन्छ सम। मेवारणका चार-अनु० कलप्पा भरमाप्पा निटवे; पृ० ७५६; २०१९१० द्रव्य संग्रह-अनु० १० पन्नालाल बाकलीवाल, पृ० -५, ५० १६०० । दश भक्तिः --अनु० पं० जिनदास; पृ० ३७०, व. १९२१ ॥ द्विज वदन चपेटले. अज्ञात, पृ० २४ । धमंशर्माभ्युदय-मनु० रा. रा. कृष्णा जी नारायण; पु०७३। नन्दीश्वर भक्ति-अनु० पासू गोपाल फडकुले, पृ० ४२, व० १८१४ । पद्य नन्दि पंच विशातिका- मनु गाधी बहाल चन्द कस्तूर बन्द, पृ. २५१५० १८१८ । प्रतिष्ठा तिलक-अनु० प्रज्ञात, पृ० ८११, २० १९१४ प्रश्नोत्तर माणिक्यं माला--अनु० कलप्पा भरमप्पा मिटवे, पृ. ६४, १० १६०४। पात्र केसरी स्तोत्र-अनु० प जिनदास शास्त्री; पृ० ८८, २० १९२०॥ प्राचीन दिगम्बर अर्वाचीन श्वेताम्बर- ले० तात्या नेमिनाथ पांगल । भाषण-श्रीमती राजुबाई गुजेटीकर, अध्यक्षा जंन महिला परिषद अधिपंधन सागली, सन् १९२२ ई०। महापुराण-अनु० कलप्पा भरमप्पा निटवे, पृ० ३२७०, व० १९१८ । मराठी जैन पद्यावली-सम० नथमल चान्द मल जी, पृ० १५, २० १४२६। महावीर चरित्र-ले० प्रज्ञात, पृ० :३७, २०१६३१ । माझी भावन्य-अनु० रेखचन्द तुलजाराम पाहा, पृ० १६ ०६२। मूल प्रतिक्रमण-अनु० जिनदास शास्त्री, पृ०४८, २० १८९५ । योग प्रदीप-अनु० अज्ञात, पृ० ३४, क. १८६७ । रत्न करड श्रावकाचार-अनु० प्रज्ञात, पृ. ४६ ॥ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रक्षा बंधुन कथा-लेक सुपी बापुरामलमे, २४, १९१२ । रयपसार - अतु० कलप्पा भरममा निवे, पृ० ११ व ११०! लघु अभिषेक-अनु० पासू गोपाल फडकुले, १० ४३, ब १६०५॥ व्यतरांचा आराधने पासन नुकसान-लेक हीराचन्द नेम चन्द्र दोषी, पृ. २४, २०१९१७। वैराग्य शतक-अनु० भानन्द ऋषि जी, ०.३५, ब० १९२७॥ श्रावका चार-अनु० बम्बमोंडा सुज गोंडा पारीरक, पृ० ३२ . श्रीपुर पार्श्वनाथ स्तोत्र - अनु० जिनदास शास्त्री, पृ० व १६२ . सजन चित्त वल्लभ-अनु० स० स० बालचन्दः कस्तूर चंद्र, पृ० १०, ३० १८९७ समाधि शतक-अनु० रावजी नेमचद शाह, पृ० १२४, ३० १९११ । सागर धर्मामृत-अनु० कलप्पा भरमप्पा निटवे, पृ० ६२८, २० १९१५ । सागार धर्मामृत-अनु० अज्ञात, पृ० ३१३ । सामायिक साथे- अतुल पार. एन. शाह, पृ० ४६, व० १८६, । सुभाषितावलिः सार्थ-अनु० रा०रा० बालचन्द कस्तुर चन्द, पृ०१८ १०. १८६७ ॥ स्वयभू स्तोत्र-अनु० पं० जिनदास शास्त्री, पृ० ३१०, २० १९२१ । गुजराती भाषा को पुस्तक अध्यात्म महावीर-ले. गांधी गोकुलदास नानजी, मनु० हरिलाल जीकराज, पृ० ४८; व० १९३२।। अध्यात्मिक विकास क्रम-ले० पं० सुखलाल संघवी;g. ८०,० १९२४ । अनित्य पञ्चाशत-अनु० हरिलाख जीवराज मई, पृ. १६, २०१७ असत कारणी-लेकालसी स्वामी, Part Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) अलोचना पाठ सटीक-अनु० भाईलाल कपूरचद, पृ० २४, 4० १६०० मात्म ज्योति (भाग १)-ले० श्रीमद्राजचंद्र, पृ० ५२, व० १६३६ ।। पाल्म ज्योति (भाग २)-ले० श्रीमद्राजचन्द्र, पृ० २०८, व० १९३८ । आत्म प्रभा-ले० प्रज्ञात, पृ० ५२ व०१९३७ । प्रात्म सिद्धि-ले. श्रीमद्राज चंद्र, पृ० २१३, १० १६१८ । प्रात्म सिद्धि शास्त्र-ले० श्रीमद्राजचन्द्र, पृ० २५६, च० १९३७ । भानन्दधन देवचन्द्र चौबीसी-ले० प्रानन्दघन जी, पु०६४ । पापणे आपणी स्थितिमा शुं सतोष राखवो जोडए-संपा० मुलचंद किशनदास, पृ०४८, २० १९१४ । ईश्वर का खंडन-ले० अज्ञात, पृ० ४८, २० १९१० । उत्तर हिन्दुस्थान मां जैन धर्म-ले० चीमन लाल जयचन्द शाही अनु० फूलचन्द हीराचन्द, पृ० ३८७, ५० १९३७ । कुन्द कुन्दचार्य चरित्र-अनु० मूल चन्द किशन दास कापडया, पृ० ५३, २०१६१३ । खोराक अने तन्दरुस्ति-ले० छगन लाल परमा नन्द दास, पृ० ३२, २० १९१३ । प्रथ परीक्षण-ले०प० जुगल किशोर मुख्तार, मनु० दोशी जीवराज गौतम १० १२३, २० १६१५। जैन कौण थई सके-ले० ५० जुगल किशोर मुख्तार, अनु० मूल चन्द किसनदास, पृ० १८; १० १६३२।। जैन गुर्जर कवित्रो (प्रथम भाग)-ले० मोहन लाला दुलीचन्द देशाई, १० ६५६; व० १९२६ । जैन गुर्जर कवित्रो (द्वितीय भाग)-ले० मोहन लाल दुलीचन्द देशाई, पृ०' ७८८, व. १६३१ । जैन दर्शन-चे० मुनि न्यान विजय, पु. ११७, व० १६१८, चैन रष्टिए ब्रह्मचर्य विचार-ले० ५० सुखलाल व पं० वेचर दास, १० Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१३) ०१, २० १५३१ । जैन धर्मनी माहिती-ले. हीरा चन्द नेमचन्द, अनु. हर जीवन रामचन्द वाह, पृ. ८६, व० १९११ । __ जैन वस्तीनी वर्तमान दशा-ले० फूलचन्द्र हरिचन्द, पु. ६८, १० १९२८। जैन साहित्यनी संक्षिप्त इतिहास-ले० मोहन लाल दुलीचन्द देशाई, पृ०१०८०, व० १६३३ । जैन सिद्धान्त प्रवेशिका-ले० पं० गोपाल दास बैरया, मनु० हरि लान बीवन राज; पृ० २२४, २० १९३८ । जैन ज्ञान महोदधि-संपा० त्रिभुवन दास, पृ० ५२, ५० १९२०।। जीव विचार-लेखक दोशी नाथा लाल सौभाग्य चन्द्र, पृ० ४८, २० १९१४। तत्वार्थ सूत्र-टी० पं० सुखलाल, पृ० १४४, व० १९३० । ओपन क्रिया विवरण-ले० मूल चन्द्र किशन दास कापड़िया, पृ० २०, प० १९१६। देव कुल पाटक-ले० विजय धर्म सूरि, पृ० २४, २० १६१५ । धर्म प्रबोधिनी-अनु० भाई लाल कपूर चन्द, पृ०४६, व० १६०६ । पंच कल्याणक पाठ-मनु० मूलचन्द किशन दास, ३१, २० १९११ । पंचमी महाल्य-अनु लाल चद्र भगवान दास, पृ० ४३, व० १६२० । पंचेन्द्रिय संवाद-ले. जीवन लाल किशन दास, पू० ४८, व० १६११ । पर्युषण समापण-ले० कानजी स्वामी; पृ०४८, व० १९३२ । प्रकरण माला-(विविध संग्रह)-पृ० ४३२, ५० १६०८। प्रतिष्ठा कल्प-पृ० ४८॥ प्राकृत व्याकरण-ले०५० बेचरदास, पृ० ४५३, ३० १९२५। . प्राचीन दिगम्बर अर्वाचीन खेताम्बर-ले० तात्या नेमिनाथ पांगल, पृ. ३६, ३० १९११॥ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८४ ) पवित्रताने पथ - ले० मणिलाल नथुभाई दोशी, पृ० १२८, ०१०२०१ बाल बोध जैन धर्म (२ भाग) - मनु० मूल चन्य किवान दास, पृ० २३, ब० १६१५ । बुद्ध ने महावीर - अनु० नरसिंह भाई पटेल, पृ० ५८, ब० १६२५ । भगवान महावीर - ले० प्रज्ञात, पृ० १२, १० १६३४ । भट्टारक मीमाँसा - ले० मूलचन्द किशन दास कापड़िया, पृ० ४५, ० १६११ । भद्रबाहु संहिता -- अनु० भीमसिंह मारणेक, पृ० २२०, ब० ११०३ । C मनोरमा - अनु० मूल चन्द किशन दास, पृ० १०४, व० १९११ । मुनि दिग्दर्शन - ले० प्रज्ञात, पृ० १६, ब० १९१० । मोक्ष शास्त्र ( तत्त्वार्थ सूत्र ) - टी० सेठ राम जी माणेकचन्द दोशी, प्र० न स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ, पृ० ६००; व० १६४७ । राज्य प्रश्न - ले० अज्ञात, पृ० ३८४; व० १६१७ । रूप सुन्दरी- अनु० मूल चन्द किशन दास कापडिया, पृ० ६६, २० १९१४ । वनस्पति पुरातन महत्त्व - ले० छगनलाल परमानन्द; पृ० ३३ । वैराग्य रत्न माला - ले० अज्ञात, पृ० २४ । श्रावका चार (पद्य नन्दि कृत ) -- अनु० मगन बर्हेन, पृ० ४३, ब० १९०७ श्राविका सुबोध - अनु मूलचन्द किशन दास, पृ० १२०, ब० १९१४ । श्रीमद्राजाचंद्र (२ भाग ) - ले० सपा० मनसुख लाल किरत चन्द्र पृ० ०८; १० १९२५ । श्री महावीर जीवन - ले० सुशील, पृ० १२८, व० १९१४ । विस्तार शील रक्षा - अनु० कुँवर मोती लाल रांका, पृ० ४०, ब० १९१६ । शील सुन्दरी रास - ले० शादसा सेवकदास, संपा० मूलचन्द किसनदास पृ० ३६, ० १६११ । ? Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०५ ) शुं ईश्वर जगत्का धनु मूलचन्द किसम दास, पृ० १५, २० १९११ । सम्यग्ज्ञान दीपिका - मनु० शाह सोमचन्द प्रमथालाल कलोल, प्र० स्वाध्याय मंदिर सोनगढ, पृ० १७६, १० १६४७ 1 समय सार -- अनु० कानजी स्वामी, व० १९४६ । समय सार- अनु० हिम्मत लाल जेठा लाल शाह, पृ० ६४०, ब० १९४० । संवेद्र म कदली- ले० विमला चार्य, अनु० प्रज्ञात, पृ० २२, ब० १९१८ । समाधि भरण पत्र - ले० पं० गणेश प्रसाद वर्णी, अनु० गोगियानाच छोटे लाल, पृ० ३३ । साध्वी सुदर्शना नाटक - ले० मोहन लाल मथुरा दास शाह, १०६५, ब० १६३१ । सुबोध पद्य रत्नावली - ले० अनु० प्रज्ञात ४० ६४, व० १२१ । सूरीश्वर भने सम्राट - लेखक विद्याविजय, पृष्ठ ४९७, हेम च द्राचार्य -- २० धूमकेतु, पृ० २३४, व० १९४० । -- बंगला भाषा का जैन साहित्य ब० १६१६ । अनेकान्त वाद -- ले० प्रो० सात कोटी सुखर्जी; प्र० विश्वकोष । आचार्य जिन सेन -ले० सरतचन्द्र घोषाल एम० ए० बी० एल० प्र० जिन वाणी । जिनेन्द्र मत दर्पण -- अनु० उपेन्द्रनाथ दत्त । जीव ले० हरिसत्य भट्टाचार्य एम० ए० बी० एल० प्र० जिनवाणी । जैन इतिहास समिति - अनु० ललित मोहन सुखोपाध्याय । जैन कथा - ले० हरिसत्य भट्टाचार्य । जैन तत्त्वज्ञामो चारित्रप्र० उमावत, प्र० मंगीय सर्व धर्म काशी । Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तत्त्वसार संग्रह-अनु० सपा. ईश्वरचन्द्र शास्त्री। जैन मिरत्न-ले०० चिन्ता हरण चक्रवर्ती काव्य तीर्थ, प्र० भाव वर्ष। जैन दर्शनेात्मवृत्ति निचय-ले. हरिसत्य भट्टाचार्य, प्र० साहित्य संवाद । जैन दर्शनने कार्मवाद-ले० हरिसत्य भट्टाचार्य प्र० जिनवानी । जैन दर्शने धर्ममो अधर्म-ले० हरिसत्य भट्टाचार्य, प्र० साहित्य परिषद पत्रिका । जैन दृष्टिए ईश्वर-ले. हरिसत्य भट्टाचार्य, प्र. जिन वानी । हैन दिगेर तीर्थकर-ले. अमृतलाल शील, प्र. मानसी मो मर्म वानी। मैन दिगेर दैनिक षटकर्म-ले० प्रो. चिन्ता हरण चक्रवर्ती, प्र० साहित्य परिषद पत्रिका। जैन दिगेर षोडश संस्कार-ले० प्रो० चिन्ताहरण चक्रवर्ती, प्र. विश्ववानी। जैन धर्म---लै. रामदास सेन, प्र. ऐतिहासिक रहस्य पत्रिका । जैन धर्म-ले. उपेन्द्रनाथदत्त, प्र० बंगीय सर्व धर्म परिषद काशी। जैन धर्म-अनु० ०पेन्द्रनाथ दत्त (लो०मा० तिलक के लेख का अनुवाद), प्र०बगीय सर्व धर्म परिषद काशी। जैन धर्म-ले० प्रो० अमूल्यचरण, प्र. नव्यभारत । जैन धर्मेनारीर स्थान-ले० प्रो० सात कौड़ी मुखर्जी, प्र. रूपनन्दा। जैन धर्मर वैशिष्टय-ले० प्रो० चिन्ताहरण चक्रवर्ती, प्र० भा० दिग० जैन परिषद बिजनौर। नैन न्याय-ले० स्व० हरिहर शास्त्री, प्र. बंगीय साहित्य परिषद । जैन पद्म पुराण-ले. प्रो० चिन्ताहरण चक्रवर्ती; प्र. बंगबिहार धर्म परिषद । जनपुराणे वारार्तिकपाचरित्र-ले० स्व० हारिहर शास्त्री जैन पराणे श्रीकृष्ण-ले० प्रो. चिन्ताहरण चक्रवर्ती, प्र. जिनवानी। Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • (२७) . जैन पुरुष काहिनी-ले० स्व० नगेन्द्रनाथवसु, प्र० साहित्य परिषद पत्रिका। जैन मत-ले. रामदास सेन, प्र० ऐतिहासिक रहस्य पत्रिका । . जैन सम्प्रदाय-ले. संपादक उद्घोषन, प्र. उद्घोषन । जैन सामायिक पाठ स्तोत्र-मनु० उपेन्द्रनाथ दत्त, प्र० बंगीय सर्व धर्म परिषद काशी। जैन साहित्यो नाम संख्या-ले० विभूति भूषणदत्त, प्र० बंगीय साहित्य परिषद पत्रिका। जैन सिद्धान्त दिग्दर्शन-अनु० उपेन्द्रनाथदत्त, प्र. बंगीय सर्व धर्म परिषद काशी। द्वादशनु प्रेक्षा-ले० शरच्चन्द्र घोशाल, प्र० जिनवानी। दीपमालिका-ले० प्रो० चिन्ताहरण चक्रवर्ती, प्र० एजुकेशन गजट । दीपावली ओ भ्रातृ द्वितीया पर्व-ले० शिवचन्द्र शील; प्र० साहित्य परिषद पत्रिका । नीति वाक्यामृत-टी० ईश्वरचन्द्र शास्त्री। परेशनाथ-ले० प्रो० चिन्ताहरण चक्रवर्ती; पं० शिशुमाथी प्रमाणाथ-ले० हरिसत्य भट्टाचार्य , प्र० साहित्य परिषद पत्रिका । पार्श्वनाथ चरित्र-ले० प्रो० चिन्ताहरण चक्रवर्ती, प्र. तत्त्वबोधिनी। पुरुषार्थ सिद्धि उपाय-मनु० हरिसत्य भट्टाचार्य, प्र• बंग विहार अहिंसा धर्म परिषद। . बौद्ध ओजैन साहित्ये कृष्ण चरित्र-ले. रमेशचन्द्र मजुमदार, प्र. पंच पुष्प पत्रिका। भगवान पार्श्वनाथ-ले. हरिसत्य भट्टाचार्य, प्र. जिनवानी। भारतीय दर्शन समूहे जैन दर्शनेर स्थान-ले० हरिसत्य भट्टाचार्य, प्र.जिनवानी। महामेघवाहन खारवेल-लेहरिसत्य भट्टाचार्य प्र० जिनवानी। महावीर - ले० मतिनालराय, प्र० युगगुरु । Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रक्षाबंधन (उपाख्यान)-ले० प्रा० चिन्ताहरण चक्रवर्ती, प्र० एजुकेशन बबट। लिच्छवि जातिविजय धर्म सूरि--ले. अमूल्य चरण विद्याभूषण, प्र० 'बानी' । श्रावक दिगेर आचार-प्रनु. हरिचरण मित्र, प्र० बावकोद्धारिणी समा कलकत्ता। स्याद्वाद-ले० प्रो० हरिमोहन भट्टाचार्य, प्र० साहित्य परिषद पत्रिका । सार्व धर्म-अनु० उपेन्द्रनाथदत्त, प्र. बगीय सर्वधर्म परिषद काशी । हिन्दुओ जेन काल विभाग-ले. प्रो० चिन्ताहरण चक्रवर्ती, प्र. 'कायस्थ समाज' पत्रिका । Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jaina Literature in English Abhidhana Chintamani of Hem chandra-Ed Ram Das Sen Account of the Jains-C Mackenzie Account of the Jains in India --Sultan Singh Jaini Account of the Jain temples on MountAbu-A. Burnes. A Comparative Study of the Indian sceience of Thought from the Jaina Stand point-Harisatys Bhattacharya. A complete Digest of Cases with Jain Law-Cham pat Rai Bar-at-law, Address at the tenth anniversary of Syadvada Jain Mahavidyalaya-T K Laddu. Adhyatma Tatwa-aloka-Trad. & Ed. Nyaya Vigaya and Moti Chand Mehta A Descriptive Catalogue of Sanskrit Mos. in the Library of the Calcutta Sanskrit College-vol, X Jaina Manuscripts-Harishkesha Sastri and Nilaman Chakravarti. A Dictionary of Jaina Biography-Umrao Singa Tank. Against Animal Sacrifice-Krishnagiri B. Rao. A message of Peace to a World full of unrestSci Tulse Ramji. Akbar and Jainism-Ramannami Ayengar. A Jaina Account of de End of the Vagholms Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ) of Gujrat-G. Buhler A Lecture on Jainism-1-02. Benarsi Cas M. A. A Literary Bibliography of Jaina OmnasticonDr. John Klatt. An Alphabetical list of Jain Mas. Lo the Oriental Library of the A. S B. Animal Protection-Hari Ram Amitgati's Subhasita Samdoba-R. Sehmidt J. Hertel. An Insight into Jainism-Champat Rai Bar-at-law, An Insight into Jainism-Rikhar Das Jaini B A An Introduction to Jainism-A. B. Lathe. An Epitome of Jainism-Puran Chandra Nabar & K. C. Ghosha. Andhra Karnata Jainism-B Sheshagiri Rao Ancient India-(4 Vols.)--T L Shah. Anekartha-Sangraha of Hem Chandra-Ed Ty. Zachariae. A Pandit's Visit to Gaya (1820) - J. Burgess. Apbhramsa Literature-Prof. Hira Lal Jain A Peep Behind the Veil of Karma-CR Jain Ardha Magadhi Reader-Benarsi Das M A A Review of the Heart of Jainism- J. L. Jaini Par-at-law. Antagada dasao and Adottara Vavaiya Dasao-- Ed. L D Barnett. Appreciation and Reviews --Pub D. J. Parishad Publishing House, Delhi, A Short History of the Terapanthi Soct of the Swet ordor Jains-Cbhogmal Choprab. Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( REP ) A Scientific Interpretation of Christianity-C. R. Jain. Ashta Pabuda or Eight Presents-Trad. Jagat Prasad. : Atmanu-shasana-Trad. J. L. Jaini. Atma Dharma- C. R. Jain. Atma Ramayana-C. R. Jain. .. . Atma-sidhi-C. R. Jain. A Treatise on Jain law and Usages--Padma Raj Aupatika Sutra-Ed. E. Leumann. Bhadrabahu and Sravan-bel-gola-Lewis Rice. Bhadrabahu, Chandra Gupta and Sravan-bel gola-J F. Fleet. Bhavis-yatta-kaha-Ed. Trad C D. Dalal M A. Bright Ones in Jainism-J. L Jaini. † Bhagwan Mahabir=Kamta Prasad Jain. Catalago dei manaseritti Gianici di Firenze (Florentine Jain manuscripts)-F. L. Pulle. Catalogue of English books in the Jain Sidhant Bhavan Arab-Suparswa Das. Catalogue of Indian Collections in the Museum of Fine Arts Bostan, part ly-Jaina Paintings and Manuscripts'--Dr. A.K. Coomarswami. * Catalogue of Mss. in the Jain Bhandars, Jaselmere-CD. Dalal. Chandra-Prabhacharitra of Virgandin-Ed M. M. Pt. Durga Prasad. Contribution of Jainiem to Philosophy, History and Progress-V. R. Gandhi. Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Cosmology Old and New Prof. G. R. Jain M. Sc. Christianity Rediscovered-C. R. Jain. Das Mahanisitha sutta-Dr. Walthur Sehubring. Das Kalakacharya Kathanskar (German) --De. H. Jacobi. Der Jainismus (German)-Dr. H. y. Glaserieppi. Desi-nama-niala of Hemchandra-Ed. R. Pischel & 0. Buhler. Die indische secte der Jaina (German)-0: Buhler. Die sekte der Dachains (Jains)-(German)-0. Feistmantel. Diet and Hoalth-Chhagan Lal Parmanand Dås Nanavati, Digambara Jain iconography-James Burgess C. I. E. Digambara Jains-G. Bubler Discourse Divine-C. R. Jain. Divinity in Jainism --Harisatya Bhattacharya Djainisme-Sylavan Levy. Doctrines of Jainism-Rikhab Das. Dr. Hermann Jacobi on Jainism-H. Jacobi. Dravya Sangraha-Ed. & Trad. S C. Ghsal M. A. B.L. Emai de Bibliographie Saina (French)- A. Gueriaot. Essays and Papers of Dr. A. N. Upabhy. (9,De. A. N. Upadhye. Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 10 ) Extracta from the fournal of Carl Markunzion Pandit-J. Burgess. Faith, Knowledge and Conduct-. R. Joum. First Principles of the Jainm philosophy-H. La Jhaveri. Four and Twenty Elders-C. R. Jain. Fragments from an Indian Student'. Diary-1 L Jaini, Gems of Islam-C. R. Jain. Gadya-chintamani of Vadibbasimha-Ed. Treba 8. Kuppuswami Sastri. Geneological Tree illustrating the Chronology of Jain Religion Glimpses of a Hidden Seienco-C. R. Jain. Gommat Sar (Jiva kand)-Ed. & Trad. J. L. Jaini. Gommat Sar (Karma Kand Pt. 1-Ed & Trad J. L. Jaini. Gommat Sar (Karma Kand Pt. II)-Ed. & Trade Br. Sital Prasad and Ajit Prasada. Hathi-gumpha Inscription of Kharvela --Ed. K.P. Jayaswala. Heritage of the last Arbat-Dr. Charloti Krauze. Historical Facts about Jainism-Magan Lal sbab. Historical Jainism-Dr. Bool Chand. History and Literature of Jainism-U. Den Barodia. History and Religion of the Jains-V. R. Gandhu. History of Kanarene literauro--E. P. Rice. How to make your life sublime-B, D Jain. Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B. L. = ( ૨૪ ) Humanitarian Outlook-M. K. Devaraj, M. A., Immortality and Joy-C. R. Jain Inscriptions at Sravan Belgola-Lewis Rice. Inscriptions of Sravan-Bel-gola-R Narsimha chariar. Inscriptions of Udayagiri khandgiri-Pt Bhagwan Lal Indra ji. Inscriptions of Udayagiri kaand Jine-Dr. K. P. Interpretation of Jaina Ethics-Dr Charlottä Introduction to True Religion-W. G Trott. Indian Psychology of Perception-Dr J N Sinha, Mecrut College Jayaswal. 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R Jain Jain Penance-C, R Jain, Jaina Psychology-C R. Jain Jain Puja C R Jain. Jama References in the Budhist literature -K. P. **P Jain References in Dhamma-Pada. K P. Jain. Jain Sutras-Ed. & Trad. Dr. Hermann Jacobi. Jain Universe Jain Vairagya shataka-Bihari Lal Jain. Jainism-C. S. Meghakumar. Jainism-Champat Rai Barrister. Jainism as Faith and Religion -Sree Chand Rampuria. Jainism the Oldest Living Religion-Jyoti Prasad Jain, M. A., LL B. Jainism and Karnatak Culture-S. R. Sharma. Jainism-Herbert Warren, Jainisme-Dr. A Guerinot, Jainism, 28 Labdhees or Miraculous Powers-Gulal Chand. Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jainism and Dr. H. S. Gou's Hindu Code-J. L. Jaini, Bar-at-law. Jainism and Dr. H. S. Gour's Hindų Code -CR Jain, Bar-at-law. Jainism and World Problems- Dr. Beni Prasad. Jainism in Indian History-Dr. Bool Chand. Jainism in Kalingadesa-Dr, Bool Chand. Jainism of the Early Faith of Asoka-Dr. E. 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Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६८ ) Marriage in Jain LiteratureMediaeval Jainism- Dr B. A. Saletore. Mithyatwa Khandan-Prem Chand. Modern Jainism-Mrs. S Stevenson. Mount Abu and the Jain Temples of Dailwara-J. U. Yagnik. My Thoughts-Ratan Lal Jain. Mantrashastra and Jainism-Dr. A. S. Altekar. Mind and Its Mys.ry-Sri Kaluram ji. Naya Kumar Chariu-Ed. Prof. Hira Lal Jain Neelkesı-Ed & Trad. Prof A. Chakravarti M. A. Nijatma-sudhi Bhavana-Trad B. C. Manika Lal. Niyama-sara-Ed, & Trad. Uggar sain Jain M. A. LL B Note and Jaina Mythology-J. Burgess Notes on the Sthanakavasis-Seeker. Nyaya, the Science of Thought-C, R. Jain. Omniscience-C R Jain. " On the Authenticity of the Jaina Tradition-Gr Buhler. On the literature of the Swetambaras of GujeratJ. Hertle. Outlines of Jainism-J. L. Jaini Pacifism and Jainism-Pt Sukhlal Sanghavi, Paiyalacchi-nami-mila of Dhanpala-Ed. G Buhler Fampa Ramayana-Ed Lewis Rice. Panchastikaya-sara-Ed. & Trad. Prof A. Chara varti M. A. Paresnath Piggary Case Judgment of Bengal High Court, 1893. Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (PEE) Pariksha mukham-Ed. &. Trad Dr. S. C. Vidyabhushan (Bib Ind.) Parmatma-Prakasha of Jogindu-Trad. L. Rikhab Das B. A Pilgrimage to Parasnath by C. Mackenzies Pandit (1820)--), Burgess. Practical Dharma-C. R Jain. Pramana-naya-tatwaloka-alamkara Prehistoric Jaina Paintings-Jyoti Prasad Jain M. A.; LL. B Political Thought in Pre-Muslim India - Jyoti Prasad Jain. Presidential Address (1924) of Dr Ganga Nath Jha M. M Presidential Address-(1927) of Dr. B. L. Atreya Principles of Jainism-Br. Sıtal Prasad. Proceedings of the 2525th Mababır Jayanti celebrations by Jain Mitra Mandal, Delhi. Pure Thoughts or Samayıka Patha-Trad, B. Ajit Prasad M. A, LL. B. Purushartha-sıdbiupaya-Trad. Ajita Prasada M. A., LL. B Quelques Collections de livers Jainas- A Guerinot. Ratnakaranda-sravakachar-Trad. Champat Ral Jain. Reminisciences of Vijaya Dharma Suri-Vijaya Indra Suri. Repertoire at Ehigraphic Jaina-Guerinot Rishabhadeva, the Founder of Jainism-C. R Jain Religion-Its Universal Necessity-Sri Tulsiram 71 Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sabda-ngan-darker of kesiraj-Ed. F, Kittel Sacred Phifosophy-CR Jain. Samant Bhadra's Date and Dr. Pathak-Pt. Jugal Kishore Mukhtar. Samayasara-Trad. R. B. Jagmandar Lal Jain Bar. at-law. Samayıka or the Way to Equanimity-B. L. Garr. Sanmatı Tarka-Trad. A. B. Athavle and A. S. Gobanı M. A Sapta-bhangi-Nyaya-L. Kanno Mal M. A. Sapta-bhangi-tarangin of Vimal Das-Ed. P. B. Anantacharya. Sanyas Dharma-C. R. Jain. Satrunjaya Mahatmya-James Burgess. Samudni (of Saint Charitra Sena)---Trad. Kamta Prasad Jain. Sayings of Lord Mahavia-K. P. Jain. Sayings of Vijaya Dharma Suri-Charlotte Krause. Selections from Atma Dharma of Br. Sital Prasad C R Jain. Shraman Bhagwan MahavirSıx Dravyas of Jain Philosophy-F R. Lalan. Sketches of Distinguished Oswal Families-U. S. Tank Some Distinguished Jains-U. S. Tank. Some Historical Jain Kings and Heroes-Kamta Prasad Jain. Some Notes on Digambara Jain Iconography--J. L. Jain, Sravan-bel-gola - R Narsimhachar, M. A. Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sravan-bel-gola-C. S. Millinath. Sravan-bel-gola, its Importance-Seth Padma Raj. Studies in Jainism (Pt I)-Dr H Jacobi. Studies in South Indian Jainism--M. S. Ramaswami Ayengat and B. Sheshagir Rao. Syadvada-Manjari-Ed. and trad. Prof. Jagdisla. Chandra M A. South Indian Jainisma-M. S. Ramaswami Ayengar M. A. Sources of Karnatak History-Vol 1-S Srikanth Sastri. Sitaenvasal Jaina Care Paintings-L Ganesh Sharma. Sources of the History of Karnataka, Pt 1-Sri Kantha Sastry. Tatwarthadhigama Sutra Ed. & trad. J. L. Jaini. Tatwarthadhigama Sutra Ed. and trad. J. L. Jaini. The Address of Dr. Phani Bhushan Adhikari. The Address of Dr. T. K. Laddu (1914) The Address of Champat Rai Jain Bar-at-law. The Address of Dr. R. G, Bhandarkar. The Change of Heart-C. R. Jain. The Chicago-Prashottara-Vijayanand Suri. The Digambara Saints of India -S. C. Ghosal M. A. B. L Teertha Pavapuri-P. C. Nahar. The Confluence of Opposites C. R. Jain. The Gospel of Immortality-C. R. Jain. The Ganita sar-sangraha-Ed. M. Rangacharya M. A The Heart of Jaittista-Mrs. S. Stevenson. Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (40p) The House-holder's Dharma--C. R. Jain. The Indian Sect of the Jainas-G. Buhter, trad. J. Burgess. The Jain Law-C. R. Jain Bar-at-law. The Jain law of Inheritence and Adoption ). L. Jaini Bar-at law. The Jaina Pattavalis-Ed. R. Hocrnle. 1: The Jain Philosophy-V. R. Gandhi. The Jaina Philosophy of Non Absolutism-Dr. Satkor Mukerji The Jains of India - J. L. Jaini. The Jain Stupa and other Antiquities of MathuraDr V A Smith. The Jain Sutras (S. B E.)-Ed. F. Max Muller. The Jaina System of Education-Dr. D. C. Dass Gupta The Jain Theory of Karma--C. R. Jain The Karma Philosophy-B. F. Karbhari. The Mystery of Revelation- C. R. Jain,' The Nyayavatar-Ed. S C. Vidyabhushan The Nyaya Karnika-Trad. Mohan Lal Desai. The Nudity of Jain Saints-C. R. Jain. The Origin of the Swetambara Sect-Pub. D. ) Parishad, Delhi, The Place and Importance of Jainism-G. Pertold, Ph.D The Prabandha Chintamanı-Ed. and trad. C. H. Tawney The Practical Path--C, R. Jain. The Path-Srı Tulsiramji. The Priority of Jainism over Budhism-Rustamgi Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 807 )' Baror ji Parukh. The Real Nature of Parmatma-N. S. Agarkar. The Right Solution-C. R. Jain. The Self Realization–J. L. Jaini. The Six Dravyas of Jain Philosohpy-H. Warren. The Speech of H, H. the Maharaja of Mysore (1925) The Srawacs or Jains-F. Buchanon Hamilton The Srawacs or Jains-J Delmaine. The Study of Jainism-L. Kanno Mal M. A. I be Way to Nirwan-J L. Jaini The Yoga Philosophy-B F Karbhari. Tracts of Mathew Mckay- Pub Mahavira Publicar tions, Aliganj Etah. True Way to Liberation-Dr. Talbot. Uttaradhyayan Sutra -Ed. J. Charpentier. Uttaradhyayan Sutra and Sutra kritanga (Jain sutras Pt. II)-Ed. H Jacobi. Vijaya-dharma Suri-Dr. L P. Tessitori Vir Vibhuti-Trad. A B. Bhattacharya. What India Thinks of the Case of Pt. Arjun Lal Sethu. What is Jainism-Kanno Mal M. A. What is Jainasm-C. R. Jain. Where the Shole Pinches -C. R. Jain. Whom the Jains Worship-L Rikbab Das B, A. World Philosophy of the Jains--Dr. H. Von Glasenapp. World Problems and Jaina Ethics—Dr. Beni Prasad Booklets and tracts of-The Mahavir Publieation Aliganj, Etah. Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( Box) 2. The Jaina Cultural Insti tute, Banaras. 3. The Terapanthi Swetambar * Sthanakvasi Cong. Calcutta etc. etc. Journals and Magazines-Several papers in the past. The Jaina Antiquary (Six monthly)--Pub. by the Central Jaina Oriental library, Arrab (Bihar). The Jaina Gazette (monthly)-Ed. Ajit Prasad M. A. LL. B., pub. from Ajitashram, Lucknow. The Jaina Hostel Magazine (monthly)-Pub. by the Jain Hostel, Allahabhad. Besides the above publications, numerous articles, papers and notes on various aspects of Jainism and Jainology have been published in the different research journals, magazines, Proceedings of oriental and historical conferences, Gazetteers, Archaeological survey Reports etc. both in India and abroad by a number of renowned scholars, Indian as well as European. The references to these can be found in the-(1) Essai de Bibliographica Jaina, a very comprehensive work in French. Dr. An Guerinot Ph D It deals with references upto 1905 A. D. The work is, however, out of print at present, and an English edition of the same is earnestly needed. (2) Jain Bibliography no 1., by R. B Lala Paras Das of Delhi. It deals with some 1214 works having Jain references and published upto 1930 A. D. but mentioni only the page numbers of the references. (3) Jaina Bibliography by B. Chhote Lal Jain, Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०५ ) Calcutta. It deals with references found in literature published between 1905 and 1925 A. D. (4) Jinaratanakosa-Ed by Prof H- D. Valenkar, and published by the Bhandarkar O R, Institute, Poona. It is an alphabetical register of Jain works and authors. and gives an account of most of the available or known Jain Mss. Since 1925, much standard literature having useful Jaina references, has been published, but unfortunately no Jaina bibliography relating to it has yet been prepared which is an urgent necessity. Persons interested in the study or research of Jainism or any branch of Jainology, may refer for the respective information and literature to the following. Office, 1. All India Digambar Jain Parishad Dariba Kalan Delhi 2. Bhartiya Gyan Pitha Banaras 3. Jain Cultural Research Society, Banaras 4 The Central Jaina Oriental Library (Jain siddhanta Bhavan), Arrah (Bihar) 5 The Central Jaina Publishing House, Ajitashram, Lucknow. 6. The Jain Mitra Mandal, Dharampura, Delhi 7 7 Vir Sewa Mandir, 21 Daryaganj, Delhi, This last being a best reputed Jaina Research Institute, equipped with an adequate library and run by its founder Director Acharya Pt. Jugal Kishore Mukhtar. Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ठ १. सार्वजनिक जैन पुस्तकालय, शास्त्रभंडार वे ग्रन्थागार जिनमे जैन धर्म सम्बन्धी विविध विषयक साहित्य, मुद्रित तथा हस्त लिखित, पर्याप्त मात्रा मे सगृहीत है, और जिसका उपयोग सदस्यों एवं स्थानीय व्यक्तियो के अतिरिक्त इतर स्थानो में रहने वाले विद्वान् भी डाक खादि द्वारा कर सकते हैं - १. ऐलक पन्नालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन, बम्बई । J २. ऐलक पन्नालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन, झालरापाटन । ३. जैन सिद्धान्त भवन, धारा (विहार) । ४ श्री वृद्ध मान पब्लिक लायब्ररी, धर्मपुरा देनी । ५. श्री यशोविजय जैन पुस्तकालय, बेलन गज, आगरा । ६. समन्तभद्र - भारती भवन, वीरसेवामन्दिर, सरसावा ( हाल देहली ) । उपर्युक्त प्रख्यात पुस्तकालयो ( जिनमे से प्रथम तीन की मुद्रित ग्रन्थ सूचियें - स्टेलाग भी प्रकाशित हो चुके हैं ) के अतिरिक्त प्राय प्रत्येक नगर कस्बे में जहाँ जहाँ जैनियो की बस्ती है, एक न एक छोटा बडा जैन पुस्तकालय और पाटन भवन भी मोजूद हैं । यद्यपि प्रत्येक जैन मन्दिर मे एक शास्त्र भार अवश्य ही होता है । जिसमे विकशित हस्तलिखित ग्रन्थ ही रहते हैं, किन्तु जैन हस्तलिखित ग्रन्थो के प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण भडार निम्नलिखित स्थानो में हैं -- जयपुर, देहली, ईडर, नागपुर मूडबिद्री श्रवण बेल्गोल, कारजा, पाटन, जैसलमेर, सूरत, कोल्हापुर अजमेर इत्यादि । जैन ग्रन्थो की ज्ञात हस्तलिखित प्रतियो का परिचय नीचे लिखे ग्रन्थों से प्राप्त किया जा सकता है - (१) जिन रत्न कोष-प्रो० हरिदामोदर वेलसुर Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०७ ) एम० ए० द्वारा प्रणीत तथा भंडार कर प्राच्य मंदिर पूना द्वारा प्रकाशित ( गवर्नमेंट ओरियंटल सीरीज, क्लास सी० न०४) ( २ ) जैन ग्रन्थ सूची- वीर सेवा मन्दिर, सरसावा द्वारा प्रकाशित । ( ३ ) ऐलक पन्नालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन, बम्बई की रिपोर्ट (४) कर्णाटक कविचरिते - प्रार० नरसिंहाचार्य कृत, तथा कर्णाटक जैन कवि के नाम से पं० नाथूराम जी प्रेमी द्वारा अनुवादित । (५) जैन गुर्जर कविप्रो ( २ भाग - श्री एम० डी० देसाई, बम्बई द्वारा प्रणीत) जैन साहित्य के इतिहास के लिए (१) हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास पं० नाथूराम प्रेमी कृत तथा जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई से प्रकाशित । (२) हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास - बा० कामता प्रसाद जैन द्वारा लिखित और भारतीय ज्ञान पीठ, काशी द्वारा प्रकाशित । (३) कर्णाटक जैन कवि । (४) तामिल भाषा का जैन साहित्य ( अग्रेजी) प्रो० ए० चक्रवर्ती कृत । (५) जैन साहित्यनो इतिहास (गुजराती) - श्री मोहनलाल देसाई कृत । २. जैन साहित्यिक संस्थाएं वे संस्थाए ं जिनमें या जिनके द्वारा ग्रन्थ निर्माण, टीका, अनुवाद, सम्पादन, " प्रकाशन आदि कार्य होते हैं । इनमे से कई एक मे जैन साहित्य एवं इतिहास सम्बन्धी खोज शोध अनुसन्धानादि कार्य भी होते हैं । निम्नलिखित ऐसी सर्व ही सम्या प्राय सार्वजनिक, निस्स्वार्थ एवं सेवाभावी हैं, उनके संचालन व्यावसायिक दृष्टि नही है (१) अम्बादास चवरे दिगम्बर जैनग्रन्थमाला, कारजा । (२) आगमोदय समिति सीरीज, सूरत । (३) श्रात्मानन्द जैन ट्रॅक्ट सोसाइटी, अम्बाला शहर । Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 ( ३०८ ) (४) प्राचार्य श्री कु थ सागर प्रन्थमाला, सोलापुर । (५) श्राचार्य सूर्यसागर ग्रन्थ माला, जयपुर । (६) ऋषभ जैन प्रकाशन संस्था, फल्टन । (७) कंकुबाई पाठ्य पुस्तक माला । (८) कारजा जैन पब्लिकेशन सोसाइटी, कारंजा । (१) चम्पावती जैन ग्रन्थ माला, अम्बाला छावनी । (१०) जीवराज दोशी ग्रन्थ माला, सोलापुर । (११) जैन ग्रात्मानन्द सभा मीरीज, भावनगर । (१२) जैन कल्चरल सोसाइटी, बनारस । (१३) जैन धर्म प्रसारक सभा सीरीज, भावनगर । (१४) जैन मित्र महल, धर्मपुरा देहली । (१५) जैन रिसर्च इस्टीट्यूट, यवत माल । (१६) जैन माहित्य सेवा मंडल, सोलापुर । (१७) जैन माहित्योद्धारक फड, अमरावती । (१८) जैन स्वाध्याय मन्दिर, सोनगढ़ ( काठियावाड़) । (१६) जैन सिद्धान्त भवन, आरा । (२०) दिगम्बर जैन परिषद पब्लिकेशन हाउस, दरीबाकला, देहली । (२१) देवचन्द लाल भाई पुस्तकोद्धार फड सीरीज, बम्बई व सूरत । (२२) परमश्रुत प्रभावक मंडल ( श्रीरायचन्द्र जैन शास्त्र माला), बम्बई । (२३) भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी संस्था, कलकत्ता (हाल महावीरजी) (२४) भारतवर्षीय दिगम्बर जैन सघ, मथुरा । (२५) भारतीय ज्ञान पीठ, दुर्गाकु ड, बनारस । (२६) माणिकचन्द्र दिगम्बर जैनग्रथमालासमिति, हीराबाग बम्बई ४ (२७) मुनि श्री अनन्तकीर्ति ग्रन्थमाला, बम्बई । ( २८ ) यशोविजय जैन ग्रन्थ माला, बनारस व भावनगर । (२६) वीरग्रथमाला, सागली । (३०) वीरसेवामन्दिर, ग्रंथमाला और सन्नति-विद्या-प्रकाशमाला, सद Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०६) सावा बि० सहारनपुर (हाल २१ दरियागंध देहली)। . (३३) श्री वर्णी जैन अन्यमाला, बनारस । (३२) सन्मति ज्ञान प्रचारक जैन समिति, बनारस । (३३) सरल जैन पाठमाला, जबलपुर। (३४) सिंधी जैन ग्रन्थ माला, अहमदाबाद व कलकता । (३५) सेठ फूलचन्द जवरचन्द गोषा चेरिटी फड, इन्दौर । (३६) सेन्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाउस, अजिताश्रम, लखनऊ ३. जैन पुस्तक विक्रेता जो व्यावमायिक दृष्टि से अपने स्वय के प्रकाशनो तथा अन्य प्रकाशको और सस्थाओं के जैन प्रकाशनो को भी विकियार्थ अपने यहाँ रखते हैं (१) जिनवाणी प्रचारक कार्यालय, कलकत्ता। (२) जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, हीराबाग, गिरगॉव, बम्बई । (:) जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय, बम्बई । (४) दिगम्बर जैन पुस्तकालय, चन्दावाडी, सूरत । (५) दिगम्बर जैन पुस्तकालय, मुजफ्फर नगर । (६) वर्धमान साहित्य मन्दिर, लखनऊ । (७) वीर साहित्य मन्दिर लि०, देहली। (८) सरस्वती पुस्तक भडार, हाथी खाना, रतनपोल, अहमदाबाद । (८) ला० पन्नालाल जन अग्रवाल, न० ३८७२, चर्सवानान, मनी कन्हैयालाल अत्तार, देहलो। ४. वर्तमान के प्रन्थप्रणेतादि साहित्यसेवा विशिष्ट जनविद्वान १० जुगलकिशोरजी मुख्तार सरसावा, ५० नाथूरामजी प्रेमी बम्बई, पं. सुखलालजी बनारम, मुनिजिनविजयजी बम्बई; ५० बेचरदासजी अहमदाबाद डा० ए० एन० उपाध्ये कोल्हापुर, रा०व०, ए० सी० चक्रवर्ती मद्रास, डा. बनारसीदास लाहौर डा० हीरालाल जैन मुजफ्फरपुर, ५० गणेशप्रसाद की वर्णी; महात्मा भगवान दीन जी; बा० कामता प्रसाद जी अलीगज (एटा); Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१० ) पं० वंशीधर जी न्यायलंकार इन्दौर; पं० माणिक चन्द्र जी न्यायाचार्य फीरोजा. बाद; प० मक्खनलाल जी न्यायलकार मुरेना; ५० चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ जयपुर, पं० कैलाशचन्द्र जी शास्त्री बनारस; पं० महेन्द्रकमार जी न्यायाचार्य बनारस, १० फूलचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री बनारस; प० लालाराम जी शास्त्री पं० खूबचन्द्र जी बम्बई; श्री सी० जे० शाह बम्बई; श्री टी० एल० शाह जी पहमदाबाद, श्री एम० एल० देशाई अहमदावाद; नि कल्याण विजयजी, मुनि पुण्यविजय जी, श्रीकानजीस्वामी, मुनि चौथमल जी; मुनि प्रात्माराम जी; मूलचन्द किशनदास काप डया सूरत, ५० वर्षमान पार्श्वनाथ शास्त्री सोलापुर, प. परमेष्ठीदास जी ललितपुर, ५० दरबारीलाल जी न्यायाचार्य ५० पन्नालाल जी साहित्याचार्य सागर; पं० नाथूलाल जी साहित्यसूरि इन्दौर, ५० राजेन्द्रकुमार फीरोजावाद, प० अजितकुमार शास्त्री देहली, डा० कुमारी सुभद्रादेवी, पहिता चन्दाबाई पारा; प्रो० पामीराम जैन ग्वालियर; प्रो० जगदीश चन्द्र जैन बम्बई; ला. भयोध्याप्रसाद जी गोयलीय डालमियानगर, रामजी मानिक चन्द दोशी सोनगढ; श्री अगरचन्द जी नाहटा बीकानेर, प० के० भुजबलि शास्त्री मूडबिद्री पं० उग्गरसेन एम० ए० रोहतक; बा० छोटेलाल जी कलकत्ता; डा० बूलचन्द्र जैन बनारसः ५० नेमिचन्द्र ज्यातिषाचार्य आग; प० परमानन्द शास्त्री देहली भी हीरासाव चवरे वर्धा, श्री जमनालाल विश रद. श्री दौलतराम मित्र इन्दौर; बा० जयभगवान जी वकील पानीपत, प० सुमेरचन्द दिवाकर सिवनी श्री यशपाल जैन देहली; प० दलसुख मालवरिया बनारस, प्रो० गो० खुशालचन्द जैन बनारस, मुनि चतुर विजय जी; श्रीमती जी० के० जैन सा० भू०, क्षुल्लक सिद्धसागर जी, मुनि कान्तिसागर जी पं० भवर लाल न्यायतीर्थ जयपुर; ५० हीरालाल शास्त्री, १८ परमानन्द सा० प्रा०; पं० लालबहादुर, शास्त्री प० बलभद्र जैन, प० पन्नालाल सोमी. प० सत्यंधर पायुर्वेदाचार्य एम० एम० महाजन वकील अकोला, बा० नानक चन्द एडवोकेट रोहतक, डा. ज्योतिप्रसाद जैन एम० ए० एल० बी. लखनऊ, प० जिनदास पार्श्वनाथ फडकुले, शोलापुर पं० मिलापचन्द कटारिया केकडी। Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३११) ५. वर्तमानके जैन साहित्यसेवी प्रसिद्ध अजैन विद्वान प्रो० हरिसत्य भट्टाचार्य; श्रीशरतचन्द्र घोषाला डा० कालीपद मित्र, डा. सातकोड़ी मुखरजी प्रो० चिन्ताहरण चक्रवर्ती, डा० भास्कर आनन्द सालेतोर प्रो० एच० डी० वेलन्कर, डा. वासुदेवशरण ती अग्रवाल, डा. मोतीचन्द्र जी; डा० एच० डी० साकलिया; डा० कालीदास नाग, डा० डी० सी० दास गुप्ता, डा० जे० एन० सिन्हा, प्रो. रामा स्वामी प्रायगर; प्रो० बी० शेशा. गिरिराव: श्री पी० ० गोडे; एम. गोविन्द पं०; डा० शामा शास्त्री, श्री किशनदत्त वाजपेयी डा० वेनीमाधवदास, ड! ० वी० राघवन; श्रीयुत टी० रामचन्द्रन डा० एच० सो० सेठ प्रो. गिवेन्द्र नाथ घोषाल, प्रो० सुरमा मित्र; बा० अ० नारायण मोटेश्वर खरे, के माधवकृष्ण शर्मा, प्रो० विधुशेखर भट्टाचार्य; बी० जी० भट्टाचार्य, अमूल्य चरण सेन विद्याभूषण विभूति भूषणदत्त, प्रबोधचन्द्र बागचो; अशोककुमार भट्टाचार्य, एम० एन० देशपाडे; श्री कमलाकान्त उपाध्याय; श्री हरनाथ द्विवेदी, श्रीयुत त्रिवेणीप्रसाद, श्री क ठ जी शास्त्री, डा. एस० एन० दास गुप्ता, प्रो० नलिनी विलोचन शर्मा, प० जग नाय तिबारी, प्रो० एन० वी० शर्मा, डा० सुकुमार रजनदास, श्रीयुत प्रमोदलाल पाल, डा. एस० मी चटर्जी, ३त्याद । नोट - उपयुक्त जैन तथा प्रजन जैन साहित्य- वी विद्वानोकी सूचीसे यह अभिप्राय नही है कि मात्र नाङ्कित विद्वज्जन ही जैन साहित्य सेवा कर रहे हैं ओ जैन धम मे अभिरुचि रखते है । उल्लिवित सज्जनो के अतिरिक्त भी अनेक जैन अजन विद्वान यह कार्य कर रहे हैं। यहा तो केवल उन्ही विद्वानो का नामोल्लेख कर दिया गया हैं जो इस समय तक पर्याप्त प्रसिद्ध हैं और दृष्टि में सवाधिक आये हैं अथवा पा रहे हैं। ऐसे और भी लेखक जा प्रमाद या अज्ञानवश छूट गए हो उनके लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं। Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवश्यक निवेदन समस्त जैन लेखकों, प्रकाशको एवं साहित्यिक सस्थाओ से निवेदन है कि वे अपने द्वारा लिखित, अनूदित, संपादित, सकलित, सुद्रित, प्रकाशित अन्यो-पुस्तको के सम्बंध में पूरा विवरण नीचे लिखे पते पर भेजने की · कृपा करे । विवरण मे निम्नलिखित तथ्य होने चाहिये - १ पुस्तक का नाम २ मूल लेखक, अनुवादक, टीकाकार, सपादक, सकलनकर्ता आदि के नामपूरे पते सहित, ३ प्रकाशक का पूरा नाम एव पता, ४. मुद्रक का नाम एव पता ५ भाषा, ६ विषय, ७ पृष्ठसंख्या ८ श्रावृत्ति एव मुद्रित सख्या, ६. मूल्य १० विशेष विवरण, यदि कुछ हो । इस पुस्तक के द्वितीय सस्करण को सर्वाङ्गपूर्ण बनाने के लिये यह जानकारी अपेक्षित है। जो महानुभाव अपनी पुस्तको की एक एक प्रति ही मेज देने की कृपा करेंगे उनके हम अत्यन्त बाभारी होगे और तब उनके लिये अलग से उक्त विवरण भेजने की जरूरत नही रहेगी। 'नवदक पन्नालाल जैन अग्रवाल ३८७२, मोहल्लाच वालान गली कन्हैया लाल प्रसार (दिल्ली) Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धि-पत्र बिन्दु-विसर्गादि को साधारण तथा सहम-बोष-गम्य अशुद्धियों को छोडकर छापेकी शेष अशुद्धियों का शुद्धि-पत्र निम्न प्रकार है:पृष्ठ पति अशुद्ध वैशिष्टय वैशिव्य जन साहित्य जैन साहित्य समयापयुक्त समयोपयुक्त सहस्त्र सहन जैन अन्य नामावली जैन ग्रन्यावली सूचिये मे प्रकाशित सूचिये प्रकाशित किन्तु महावीर जी महावीर जी प्रशास्ति प्रशस्ति तप्यारी रचियतामों रचयितामो प्रतिलेखको प्रति लेखकों अक्षण भक्षण तत्तद सस्कृति सत्ततु सस्कृति विज्ञान विद्वान अन्तिम किन्तु स्वातन्त्रय स्वातन्त्र्य अपेक्षा-पौर अपेक्षा कती की, आवश्यता आवश्यकता तत्तद समाज तत्तद समाज ru r2.9MAAR तय्यारी जैन Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ २६ २७ २८ 75 * * * * २६ 4 י r :: " " ३० ३१ ३२ ३६ " " १५ ४६ YO - १७ २ १६ १८ १ ५ १२ २०-२१ २५ १६ ११ ७ २३ १२ १७ अन्तिम २५ ५ ५ ११ १२ १५ अन्तिम १६ ( ३१४ ) सहस्त्राब्द उपलब्ध चालसं विल्फ डका १६ शताब्दी राजकाय पूज्यनीय जाता जाता था होने कारण विनय प्रविष्कृत प्रमाणीकता नियतानुसार महाक्षयो १९५० १८५७ श्र गविशेष जैन समाज इटाया चतन्य लेखक के रचनाएं सख्या वर्णीमय अधिष्ठातातृत्य व्यवसायिक दोनों सहस्राब्द उपलब्ध चार्ल्स विल्फ डको १९वी शताब्दी राजकीय पूजनीय जाता था होने के कारण अविनय श्राविष्कृत प्रामाणिकता नियमानुसार महाशयो १६४७ १८७५ गविशेष को दिगम्बर जन समाज इटावा चैतन्य इन पक्ति लेखक के रचनाएं जितनी संख्या वर्णीत्रय अधिष्ठातृत्व व्यवसायिक अव्यवसामिक दोनों Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 १० १४ D. RR १६ १८ ५६ ६१ ६२ ६३ ૬૪ ६५ " 27 ६६ "" ६० " л м २२ २२-२ ७ १६ २०-२१ ~ ~ ~ x & x ११ २२ २ ૪ ११ १४ २३ २५ २-६ r १६ १५ ะ २३ + (x) सफल रामचन्द्र प्रगति का बहुत कुछ इसी पुस्तक के अन्त मे प्रकाशित स्वतंत्र लेख से तपा संख्याओं सार्व संस्थाने स्वातन्त्र जन हितेच्छु जन सामायिक १३०३ स्तोत्र स्तुति शिक्षा विषय-विभाजन पाठ मासिक ६६ वीर वाणा जिन निर्माण करने के सफल याय रायचन्द्र प्रगति का सम्बन्ध है उसका बहुत कुछ इमी भूमिका के अन्त में (पृष्ठ ६वार) दिए हुए तद्विषयक लेखसे, तथा संस्थाओ सार्वजनिक संस्थाने स्वातन्त्र्य जैनहितेच्छु जैन सामयिक १३०० (८) स्तोत्र स्तुति शिक्षा १०३ विषय-विभाजन षाण्मासिक ७६ वीरवाणी इन निर्माण के 3 Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ r ६९ 23 17 73 " 39 " 37 11 "7 "" " ७२ " ७५ 1 ७६ 23 ७७ १६ १२ १७ २४ ४ ५-८ ६ ११ १४ १५ १६ १८ फुटनोट " ८ १३ ८ फुटनोट १३ 5 १७ २३ ( ५ ) दृष्टि में वह उपनिष प्रच्य तत्व जन धर्म दान देना सस्करणो प्रकाशन प्रमाणिक प्रमाणीक कभी पूर्ति देहली जन महाराष्ट्री पूर्ववती 'वलासवई कहा ' थमिक अपताम जेना सेटी क्वोरी मेद स भी नियुक्तियों कर्तव्य गत दर्शक जो इन्दु के मांगं सार उद्रम काम चलान से लिए चरणों भेद पक अतएवर्ष भारत व हॉट में उपनिष प्रश्न तस्य जैन धर्म योग दान देना सस्करणो के प्रकापान प्रामाणिक कमी पूर्ति सरसावा ( देहली) जैन महाराष्ट्री पूर्ववर्ती 'विलासवई कहाँ' प्राथमिक उपनाम जैन ए टीक्वेरी भेद से भी नियुक्तियाँ कसूत्व गत दशक जोइन्दु के योगसार उपम काम चलाने के लिए चारणों भेदपरक अतएव भारतवष Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१.) . २३ २२-२३ १० " " २०-२१ २० २३ U अन्तिम १० Rond::223°432zzbasiez प्राच्य विक्षों के प्रत्यन्त विशद वि. भू० उक्त युक्तयानुशासन जैनपथ नामावली हीरानन्दा अोझा ज्ञान तिथियो जनसध प्राप्ति ७-२१ दरियागज लघीस्त्रयम् अध्यात्माष्टयाम् पदमानुवाद १९२४ १६४२ पृ० पृ० छिन्द राडा १९२६ । -ग्रा० प्रथम ६१८ प्राच्यविदी के साथ अत्यन्त विषद वि० भू० ने उक्त युक्त्यनुशासन जैन प्रथावली हीराचन्द मोझा ज्ञात तिथियो जैन सध प्रगति २१ दरयागज लघीयस्त्रयम् अध्यात्माष्टकम् पद्यानुवाद १६१४ १६२२ पृ० १७ प्रकाशित छिन्दवाडा १९२५, प्रा० प्रथम । १८ १६ 88 १.२ अन्तिम १०५ पृ० . ४६ १६१८ भा० हि०, पृ० १४६ १८३ २३ १०८ १. १०१ २१ ६ ११ १८३२ १९८६ २६ १८३६ १८६८ ३६ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१%) १.९ ११२ २० १३ २५६ कर्म भाषा; ले० उग्रादित्या चार्य प्रथम २३ १८९६ कर्मप्रकृति भाषा प्राण ले० ब० सुन्दरलाल, प्र० स्वयं मुरादाबादा मा) हि०, पृ०६६, २०१९३५) मा० प्रथम कल्याणालोयरणा (कल्याणालोचना) सा० २० शर्ववर्माचार्य पृ० २३६ स्वामी कानमल कुप्पुम्वामी सुब्रह्मण्य नेटसन प्रज्ञात प्रा० भा० २६०; व. १६३६, मा० प्र० प्र० सद्बोधरत्नाकर जिनशतकम हरिश्चन्द्र १६३६ अभय मन्दि (महावृति) जोगीरासा २१-२३ कल्याण लोभना , (कल्याण लोचना) प्रा० र० १७,२० सर्वधर्माचार्य प्र० २२३६ २४ स्वामी काद मल; १३ कुन्घु स्वामी सुवह्मान्य नेटसमन १६ अक्षात १० प्र० भा० २ २६ व ११७ १२४ १२६ १२७ पं० सद्बोष रत्नाकर १२६६ जिन शतकार १३२ अनिम भारतेन्दु हरिश्चन्द १३७ ११ १९६६ १४८ १३ देवनन्दि (महाकृति) जोगशिक्षा Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९) गायकुमारचरित प्रा० हिन्दी गोयकुमार परित सं० हिन्दी पृ. २१३ जैन संस्कृत संरक्षक भा० हि. भा०प्र० हि. १५२ ४ जन सस्कृति संरक्षक ' भा० प्रा० हि० भा० हि २०६ संग्रह ६६८ ७ ર૪ १५७ सग्राहक १६३ २१२ वर्ष १९४६ २०८; वर्ष १९४० २४ १८४२ १६४२ बा० ब्र० १६६ १८२८ १६२२ १८,२१,२४ भा०सं० हि. भा० स० २७३ २२,२३ पन्नालाल, संपा० मनो- पन्नालाल बाकलीवाल, हरलाल बाकलीवाल सपा० मनोहरलाल व० ६१४ व० १६१४ १७४ पट्ठावली समुच्चय पट्टावलीसमुच्चय १६२ १६१२ १८१ पाठ्यय पूजा संग्रह पाठ्य पूजा संग्रह प्रा० १९३१ १९३३ १८६, १६ ब्याहला बहु ब्याहली बहू १९०७ बोध प्राभृन्म बोवप्राभतम् अन्तिम पृ०८० पृ० २० १६४ १५ पं० अं० २९६ १६ पा. सपा Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (R) १५ २०१३ २०५ १८४० टोत. ए. २० २ ४६२ ।। अन्तिम रत्म कवि २१२६ १८१६ १९४३ १९४० टी.ए. intent ४३२ रन्न कवि १९१६ ८० २५ १६६६ व०११० ११० सिद्धान्त सागदि भा० पृ. ३२ हि. अन्तिम १ ११ २२६ २२७ २२८ २३६ २३७ Mmm गोपाल सहाय पूज्य पादाचार्य, १६ १६१६ व० १६०११७ सिद्धान्तसारादि भा०हि०, पृ० ३२ १९१५, प्रा० तृतीय गोपालसाह पूज्यपादाचार्य, स. टी० प्रभाचन्द्र, वार्य भाषा म०हि०प्र० सम्यक् ज्ञानदीपिका साहित्य प्रसारक पृ० २१८ व०१९३६ पं० दरबारीलाल मलूना पूजन हि० टी०, संपा० व०१९४३ २३८ i on power count २३४ २३६ २४० २० भाषा स० प्र० सम्यक् दीपिका माहित्य पुस्तक पृ० २३८ व० १९३८ पं० दरबारी सनूना पूजन संपा० व०१३२६ २४१६ सूतत सूरत Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { ३२१ । २४६ २४७ ४८ १६ २० सिदान्त साराविसंग्रह सिवान्तसारादि नाबूलाल सिरिसिरि बालकहा सुदृष्टितरगिणी सक. २४६ १३,१५ १. २५० २५१ सिद्धान्त सग्रह सिवान्त सरादि नाथूराम सिर सिर बाल कहा सुदृष्टि वरगिरणी संपा० सूक्र मुक्तावली सोनाहीर धर्म प्रभावती सभा साभी लेखक सृष्टि कतव्य मीमासा (भाग) सूक्तमुक्तावली २५२ व. २५३ २५४ वथूमल पादि व०, सरल प्रज्ञा पुस्तक माला २५५ सोनागिर धर्मप्रभावनी सभा सांभर लेक सष्टिकर्तृत्वमीमांसा (दो भाग) व०१६१६ नन्नूमल मादिपुराण व० १६२१ प्र० सरल प्रज्ञा पुस्तक माला तिलोपण्णत्ती विद्यदेव परिणकाचार देवेन्द्रप्रसाद बुढेले म्लेजनेप १०-५-१९३५ लखनऊ परिषद २५६ १ तिलोयपाति विध देव वरिणकाचार वेक्षेन्द्र प्रसाद कुठेले ग्लेबनेय १०-१९३५ लखनख परिशद २५७ २५८ २५६ " Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AME २० ( ३२२ ) १९२६ (पाली तारण) खन्देलवाल जैन हिनेछ १९२१ पाली तारणा; खण्डेमवाल जनहित २२,२४ जंम २६२ २६३ २६३ हीरासव बड़े जैन एण्डी क्वेरीदी जैना प्रोस्पिटल अजमेर यशपाय लोकशाह माहटा एण्टी क्लोरी बीरडी जानकारी जीमालास प्रकाश जैन सघासार जैन दर्शक पति दन्दा विकत जल्बए मजहब जैन ममजहब हीग्रसाव चवडे दी जैन एण्टी वेरी जैन मोरियंटल अजमेरा यशपाल लोकाशाह नाहटा एण्टीक्वेरी वोरडी विशेष जानकारी जीवालाल प्रकाश जैनेतिहाससार जैनदर्शन यति दन्दाशिकन खुलासाए मजहब जैन माहब २६४ २६७ २६६ २७० १३ २७३ २७५ अन्तिम १९८८ वरम्जे म्ज हकीकत नौत तत्व १८९८ १८१८ ब रम्ज हकीकत नी तत्त्व १८६६ १९३८ २७८ २७६ १८ Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८१ २८२ २८३. २८४ 37 २८५ 19 २८६ 13 ८ २८७ " 289 290 23 294 301 302 303 304 x x x x or w r २० २२ ४ १५ २५ ६ २२ २३ १३ १४ w ६ २६ ११ १७ 15 11 Last 956 16 2 23 27 ( ३२३ ) १३३८ १८२६ Haftaar व० १८६ न्यान विजय जन साहित्यी श्री महावीर जीवन विस्तार शीलरक्षा व० १२१ ४६७ जैन दर्शनने कार्मवाद वाराति कृपा चरित्र द्वादशनुप्रेक्षा प्रमारणाथ Vigaya Rikhar Dass Swet order Kaand jine Ed. and trad. J. L. Jaini Buhter Jainasm 1214 १६२८ " १८६६ safरणकाचार व० १८४७ न्यtefore जैन साहित्यनो श्री महावीर - जीवन विस्तार शीलरक्षा व० १६२१ ४१७ जैन दर्शने कर्मवाद वरित कृष्णचरित्र द्वादशानुप्रेक्षा प्रसारण Vijaya Rikhab Das Swetambar Khandgiri (Bib. Ind. Dr S. C. (Vidya Bhushan) Buhler Jainism 1294 Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन मित्र मंडल के कुछ महत्वपूर्ण प्रकाशन १ श्री भूवलय अन्य राज सर्व भाषा मयी अन्य (ससार का पाठवा पाश्चर्य) २ बर से नारायण ३ उपदेशसार संग्रह (प्राचार्य श्री देशभूषण महाराज के उपदेश-). प्रथम भाग द्वितीय तृतीय , चतुर्थ , ४ ग्रन्थराज भूवलय के पठनीय श्लोक ५ नारी शिक्षादर्श ६ भगवान महावीर का हृदयग्राही तिरंगा चित्र ७ चौदह गुणस्थान चर्चाकोष ८ भगवान महावीर (प्राचार्य श्री देशभुषण जी) 6 भगवान महावीर (प्रो० सुशील कुमार दिवाकर) १० भजन शतक ११ मोतियो की लडी-उर्दू मे (महावीर जयन्ती पर पड़ी गई नज्मो का सग्रह) १२ श्री भगवान के प्रति श्रद्धाजलिया 13. What Jainism Stands For (Dr. Hira Lal Jain) 14. Some Historical Jain Kings and Heroes 15 Jain Institutions in Delhi. (L. Panna Lal Jain) 16. Pure Thoughts (सामायिक पाठ) १७ श्री भूवलयान्तर्गत जय भगवद् गीता १८ जनमतसार -उर्दू प्राप्ति स्थान जैन मित्र मंडल, धर्मपुरा, बेहली Eccccee Esses Page #347 -------------------------------------------------------------------------- _