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________________ जैन धर्म ही भूमंडल का सार्वजनिक सिद्धान्त हो सकता है-ले० माईदयाल जैन; प्र. जैन मित्र मंडल देहली, भा० हि०, पृ० १४, व० १९२७ प्रा० प्रथम । जैन धर्मादर्श-ले० रावजी नेमचन्द शाह; प्र० स्वय, पृष्ठ २३२, व. १९१०। जैन धर्मामृत-(प्रथम भाग)-सपा० सिद्धसेन गोयलीय:प्र० स्वयं किरठल (मेरठ); भा० हि०; पृ०७४, २० १९३४, मा० प्रथम । जैन धर्मामृत सार-ले० नेमिचन्द्र सीताराम (मराठी), अनु० ५० पन्नालाल बाकलीवाल, प्र० जैन सभा वर्धा, भा० हि०, पृ०, १३१, १० १८६१, मा० प्रयम। जैन धर्मोन्नति कारक-प्र० धन्ना लाल प्रासकरम दुर्गापुर, भा० हि०; पृ० ३४ व १८११। जैन नारी गीतावली-प्र० जैनी लाल, भा० हि०; पृ० ३० । जैन नारी मंगलाचार-सपा०प्र० पी० सी जैन आगरा , भा० हि०, पृ० १६ । जैन नित्य पाठ संग्रह (१६ पाठो का सग्रह)--प्र० निर्णय सागर प्रेस बबई , भा० स०, पृ० १८८ , व० १६१२ , प्रा० चतुर्थ , जैन नित्य पाठ संग्रह - सन० व प्र० अज्ञात , भा० हि०, पृ० १८० , जैन नियम पोथी-सग्र० ब० शीतल प्रसाद , प्र. जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय बबई, भा० हि०, पृ० ३२, ५० १६३०, आ० चतुर्थ । जैन पथ प्रदर्शक गीतांजली-ले० पन्नालाल जैन, प्र० स्वय सिबमी, भा० हि०; पृ० ५२, व० १६२१, प्रा० प्रथम । जैनपद संग्रह-ले० सन्तलाल, प्र. ज्ञानचन्द जैन लाहौर, भा० हि. पृ. ३२, २०१६.. । जैनपद संग्रह-प्रथम भाग-ले. कविवर दौलतराम जी, प्र. जैन प्रन्थ
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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