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________________ हुई। बाल विवाह वृद्ध विवाह बह विवाह प्रादि का विरोध अन्तर्जातीय विवाह और विधवा विवाह का समर्थन, विवाह प्रादि में फिजूल खर्ची पर प्रतिबन्ध, वेश्या नृत्य, भडवे, नक्कालो आदि का नाच गाना और कन्या विक्रय की बन्दी, दहेज मे कमी, जनविधि से सस्कारो का किया जाना, मादि सुधारों का प्रचार किया जाने लगा। स्त्री शिक्षा, दस्सा पूजाधिकार तथा शुद्धि प्रान्दोलन उठाये गये देवबन्द के एक जैनी वकील जो मुसलमान हो गये थे उन्हें बा० सूरजभान जी और उनके साथियों ने तीव्र विरोध की उपेक्षा करके फिर से जैनी बनाया और समाज मे शामिल किया। दस्सो के पूजाधिकार को लेकर मेरठ मे एक युगान्तरकारी मुकद्दमे बाजी भी हुई जिसमे प० गोपाल दास जी बरैया ने भी दस्सा पूजाधिकार का ही समर्थन किया। श्राविकाश्रम, विधवाश्रम, अनाथालय, गुरुकुल, छात्रालय आदि खोले गये। और अखिल भारतीय जैन समाज के विभिन्न उपसम्प्रदायो के बीच सद्भाव एव सामजस्य स्थापित करने के प्रयत्न चालू हुए। किन्तु साथ ही तीर्थों को लेकर उभय सम्प्रदायों के मध्य मुकद्दमेबाजी भी खूब चल निकली। इन कार्यों मे भी प्राय बा० सूरज भान जी ही अग्रणी थे, उनके कई एक साथियो ने अपनी शुद्ध साहित्यिक अभिरुचि के कारण प्रचार कार्य मे धीरे धीरे उनका साथ छोड दिया, किन्तु उनके स्थान मे उन्हे कितने ही अन्य उत्साही साथी प्राप्त होते गये, और उपरोक्त विषयो एव समस्याओ पर भी पर्याप्त साहित्य प्रकाशित हुआ। समाज सुधार के अतिरिक्त इस युग की दूसरी प्रवृति धर्म प्रचार थी। मार्य समाज के बढ़ते हुए प्रचार से प्रभावित होकर जन नेताओं ने भी वाह्य जनता मे स्वधर्म प्रचार करना प्रारम्भ किया । इस कार्य का श्रीगणेश वस्तुत. पंजाबी स्थानकवासी (बाद को श्वेताम्बर मन्दिर मार्गी) साधु स्वामी आत्माराम जी ने किया था। उन्होने अन्य जैन नेताओ के साथ साथ आर्य समाज के विरोध का दृढता से मुकाबला किया, जैनियों का स्थितिकरण किया और कई एक अग्रेजो को भी जैन बनाया। उन्होंने स्वयं कई पुस्तकें लिखी तथा उनकी 'स्मृति मे स्थापित आत्माराम जैन ट्रेक्ट सोसाइटी अम्बाला से अनेक उपयोगी
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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