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________________ इंग प्रवराय प्रकाशित हुए। जिस प्रकार स्वामी समायण शाम के प्रतिभा शाली शिष्य स्वामी विवेकानन्द अमेरिका प्रादि देखने में दिन धर्म का प्रचार करने के लिये गये थे, उसी प्रकार मोर लपप गी समय स्वामी असारमा के सुयोग्य शिष्य स्व० वीरवन्द राघव जी प्रात्री भी वगुरु की प्रेरणा से यूसेस अमेरिकन मदि मे जैन धर्म के प्रचारार्थ पये मोर उन्होने शिकाओं के सर्व धर्म सम्मेलन में भी महत्व पूर्ण भाग लिया । उबके पश्चात स्व. बैरिस्टर, बममन्दर लाल जैनी, चीफ जज इन्दौर ने तो यूरोप मे जैन धर्म प्रचार को अपने जीवन का व्रत ही बना लिया था। उन्होने कई बार विदेश यात्रा की और इग्लैंड मे तो वे पर्याप्त समय तक रहे भी। कितने ही अंगरेजो को उन्होने जैनी बनाया जिनसे श्री हर्बर्ट वारेन, जे० गौईन उनकी पत्नी आदि उल्लेखनीय है। इन जे० एल० जैनी ने ही लन्दन से 'कृषभ जैन फी लैन्डिा लायब्रेरी' नामक पुस्तकालय तथा जैन केन्द्र की स्थापना की, जैन धर्म पर अग्रेजी मे स्वय कई स्वतन्त्र पुस्तके लिखी तथा तत्त्वार्थ मुगादि प्राचीन ग्रन्थों के अनुवादादि तैयार करके प्रकाशित कराये, वर्षो पर्यन्त मंगरेजी जैन राजट का योग्यता के साथ सुसम्पादन किया, और मृत्यु के समय अपनी समस्त सम्पत्ति का इन्ही उद्देश्यो मे उपयोग किये जाने के लिये एक ट्रस्ट कर गये। उन्ही की भाँति स्व० बैरिस्ठर चम्पतराय जी ने भी विदेशो मे जैन धर्म प्रचार को ही अपना लक्ष्य बनाया, इसी उद्देश्य से अनेक बार यूरोप और अमेरिका की यात्रा की और कितने ही यूरपियन स्त्री पुरुषो को जैन धर्म मे दीक्षित किया । जैन धर्म पर अगरेजी मे जो स्वतन्त्र पुस्तके लिखी गई उनमे बैरिस्टर साहब की कृतिये ही सर्वाधिक है। इन्होने अपने पिता की स्मृति मे देहली मे 'सोहन लाल बाँकेराय जैन एकेडेमी' की स्थापना की और अपनी समस्त सम्पत्ति को विदेशो मे जैन धर्म का प्रचार करने के लिये दान कर दिया । बाड़ीलाल मोतीलाल शाह, ऋषभदास वकील, पारसदास खजानची, राक ब० लठ्ठ, पूर्णचन्द्र नाहर, मुन्शी लाल एम० ए०, डा. बनारसी दास, बा अजित प्रसाद अ शीतल प्रसाद प्रादि सज्जनों ने भी अंगरेजी पत्र पत्रिकामों में प्रकाशित
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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