SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 44 ) S जीवालील जैनी में इस भार्य जैन द्वन्द का नेतृत्व किया, उन्होंने स्वयं समाज के मन्तव्यों के विरोध में कई पुस्तकें लिखी, प्रार्य संभाजी विद्वानों अनेक शास्त्रार्थ किये, जैन ज्योतिष का भी प्रचार किया तथा जैन पञ्चनि का प्रकाशन प्रारंभ किया, और सेतु १८८४ मे 'जैन प्रकाश' नामक एक सम चार पत्र निकाला जोकि जैन समाज का सर्व प्रथम सामयिक पत्र था । देवबंद निवासी स्व० बा० सूरजभान जी वकील ने, जोकि जैन छापा आन्दोलन के प्रारण थे, इस परिस्थिति से पूरा पूरा लाभ उठाया । सामाजिक अत्याचार, बहिष्कार, र, अपमान, लाञ्छना आदि अनेक विघ्न-बाधाश्रो और अड़चनों की अवहेलना करते हुए वे सफलता प्राप्त करते ही चले गये । प्रार्य समाज के प्रति खडन मंडन मे भी उन्होने पर्याप्त भाग लिया । शनं शनै उनके सहयोगियों की संख्या पर्याप्त हो गई, जिनमे कि प० चन्द्रसेन जैन वैद्य इटाया, प० जुगलकिशोर मुख्तार सरसावा, १० मंगलसेन जैन वेद विशारद, मा० बिहारीलाल चैतन्य बुलन्दशहरी, ला० शिब्वा मल, अम्बाला छावनी, ला०ज्योति प्रशाद प्रेमी, देवबन्द विशेष उल्लेखनीय है । इस खडन मंडन के लिए अपने आर्ष ग्रन्थो में निबद्ध जैन सिद्धात के वास्तविक रहस्य को जानने और समझने की भी आवश्वकता थी और इस त्रुटि की पूर्ती स्व० गुरुवर्य १० गोपाल दास जी बरैया ने की, जोकि अपने समय के सर्व श्रेष्ठ जैन सिद्धात पारगामी एव दार्शनिक तो थे ही साथ ही साथ उदार विचारक एव सुधारवादी विद्वान भी थे । उन्होंने स्वयं भी आर्य समाजी विद्वानो के साथ कई शास्त्रार्थों में भाग लिया । उनके सहयोग से आर्य समाज विरोधी और छापा प्रचार सम्बधी दोनो ही आन्दोलनों at भारी बल मिला । धीरे धीरे जैन आर्य द्वन्द शिथिल होने लगा, अब थोडे से ही विद्वान उनके लिए पर्याप्त थे, जिनके प्रयत्नो के फलस्वरूप और विशेष कर लाभ शिब्बामल के उत्साह पूर्ण सहयोग से आगे चलकर अम्बाला दिगम्बर जैन शास्त्रार्थ सघ की स्थापना हुई। कई दशक पर्यन्त इस संघ के विशेषज्ञ विद्वानो ओर वादियो ने आर्य समाज से खूब लोहा लिया । कुछ समय के उपरात इसकी भी आवश्यकता नही रह गई । फलस्वरूप उक्त सघ ने प्रबं
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy