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________________ ( है ) (मेरठ) की प्राचीन पवित्र भूमि पर श्री ऋषम मापाश्रम नामक अपम जैन दुरुकुल की स्थापना हुई। बारम में इस संस्था की देश भर मामी, विद्वानों एव समाज सेवियो की सहायता और स्मैहें प्राप्त हुप्रो, किन्तु प्रबन्धकी मैं । शीघ्र ही मतभेद हो जाने के कारण वह अपने मूल स्थान, मौलिक रूप एवं उच्च प्रादों पर तीन चार वर्ष से अधिक स्थिर न रह सका, वैसे दि० बैंग संघ के प्रबन्ध मे मथुरा में वह अमी तक विश्वमानं है। उपरोक्त जैन छात्रोंवासों, स्कूलों, कालिंजो के विद्यार्थियो को धार्मिक शिक्षा देने के लिए भी साहित्य प्रकाशित हमा। तत्त्वार्थसूत्र, रत्न करेंड श्रावकी धार, पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, द्रव्य संग्रह, छहढाला आदि प्राचीन मौलिक ग्रन्थो के शब्दार्थ भावार्थ टिप्परिण आदि सहित विद्यार्थियोपयोगी संक्षिप्त सस्करण निकले। जैन स्त्री समाज मे शिक्षा प्रचार का व्यवस्थित कार्य महिलारल स्व. मगनबेन, पडिता ललिता बाई व पडिता चन्दा बाई जी प्रादि विदुषियो ने अपने हाथ मे लिया । बम्बई और पारा मे आदर्श जैन बाला विश्राम स्थापित हुए, जैन महिला परिषद बनी और महिलामो द्वारा ही सुसम्पादित, सञ्चालित 'जैन महिलादर्श' नामक मासिक पत्रिका चालू हुई। __ इस युग मे व्यवसायिक दोनो ही प्रकार के कई एक प्रकाशको का अविर्भाव हुश्रा । हिंदी के कई मासिक, पाक्षिक, साप्ताहिक तथा मराठी, गुजराती, कन्नडी, अग्रेजी और उर्दू के भी कई प्रच्छे जैन सामयिक पत्र निकलने लगे। मारिणकचन्द्र दि० जैन ग्रन्थ माला, मुनि अनन्तकीर्ति दि० जैन अन्य माला, रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला सनातन जैन अथ माला प्रादि कई एक उच्च कोटि की अव्यवसायिक ग्रथ मालाएँ चालू हुई । इनके द्वारा प्राचीन जैन प्रथ सूल रूप में ही सुसम्पादित होकर अथवा टीका अनुवादादि सहित प्रकाशित होने लगे और प्राय. सर्व ही महत्त्वपूर्ण एव उपलब्ध अथ जैसे तैसे प्रकाश में आ गये। प० जुगलकिशोर मुख्तार, ५० नाथूराम प्रेमी आदि कई योग्य विद्वान इस नव प्रकाशित प्राचीन साहित्य के साहित्यक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से तुलनात्मक अध्ययन मे जुट मये । फलस्वरूप अनेक प्रयो की समीक्षा परीक्षाएं प्रकाशित
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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