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________________ ( ४ ) बोर्ड स्थापित किया और उत्कट शिक्षा प्रेमी सेठ मासिक चद्र बम्बई वालों ने भी एक 'मारिपक चंद्र' दि. जैन परीक्षा बोर्ड स्थापित किया। उक्त विद्यालयों में अध्ययन करके सैकड़ों विद्यार्थी प्रतिवर्ष इन परीक्षा बोडों की परिक्षायें पास करने लगे। परीक्षा बोडों द्वारा निर्धारित पाठय क्रमो के लिए उपयुक्त पाठ्य पुस्तको की आवश्यकता हुई जिसकी पूर्ति के प्रयत्न से भी जैन पुस्तक प्रकाशन को अच्छी प्रगति मिली। जैन बाल पाठशालामो मे धार्मिक शिक्षा देने की मोर विशेष ध्यान रक्खा गया और उसके लिये बाल बोध जैन धर्म जैसी अनेक छोटी २ बालकोपयोगी पुस्तको का निर्माण हुमा । किन्तु नित्य प्रति वृद्धि को प्राप्त होता हुआ प्राधुनिक अंग्रेजी प्रणाली से शिक्षित समुदाय इन बाल पाठशालामो और सस्कृत विद्यालयो से ही सन्तुष्ट न रह सका, उसकी दृष्टि मे जैन बोर्डिंग हाउस, स्कूलो और कालिजो का उपयुक्त केन्द्रो में स्थापित किया जाना समय की परम आवश्यकता थी। सेठ माणिक चन्द्र ने तो स्थान स्थान में जाकर जैन छात्रालय स्थापित कराने का बीड़ा ही उठा लिया था । अनेक स्थानो मे जैन हाई स्कूल खुले और दो-एक जैन कालिज भी स्थापित हुए। कुछ एक महाप्राण जैन नेतानो की यह भी उत्कट अभिलाषा थी कि एक जैन विश्व विद्यालय स्थापित हो जाय। इसके लिए प० गणेश प्रसाद जी, पं० दीप चन्द्र जी और बाबा भागीरथ जी-ये वर्णीमय प्रयत्न शील भी हुए, किन्तु समाज के श्रीमानो की मोर से कोई सहयोग न मिलने के कारण असफल रहे और माजतक भी जैन विश्व विद्यालय की स्थापना न हो पाई । इसी समय कुछ नेताओं का यह विचार हुआ कि पाश्चात्य शिक्षा प्रणाणी किन्ही अंशों मे उपयोगी होते हुए भी सांस्कृतिक नैतिक एव राष्ट्रीय दृष्टि से प्रति दोष पूर्ण एव हानिकर है, अतएव ऐसे गुरुकुल स्थापित किये जाय जिनमे भारतीय एवं पश्चिमी शिक्षा प्रणालियो का समन्वय करते हुए नवीन सन्तति को धार्मिक, चारित्रवान, देश भक्त एवं सुशिक्षित बनाया जा सके । फल स्वरूप सन् १९११ में बा० सूरजभान जी के। प्रबन्ध और देश भक्त महात्मा भगवान दीन जी के प्रषिष्ठा तृत्य में हस्तिनागपुर
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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