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________________ यह नितान्त आवश्यक है कि कोई विद्वान, जो ऐसे केन्द्र मे कार्य कर रहा हो, जहाँ पुरातत्त्व व अभिलेखादि सम्बन्धी समग्र प्रकाशन एव अन्य सामग्री उपलब्ध अथवा सुलभ हो, गिरनाट के उपर्यु लिखित महत्वपूर्ण ग्रन्थ का सशोधन सवर्द्धन करके, उसे वर्तमान काल तक पूर्ण करने का प्रयत्न करे । बा० छोटेलाल ने अपनी 'जैन बिबलियोग्रेफी' मे सन् १९०६ से १९२५ तक के प्रकाशित अग्रेजी जैन साहित्य, उद्धरण एव अभिलेख सूचनामो को सकलित करने का प्रयत्न किया है । किन्तु शिलालेखो के सम्बन्ध मे यह प्रथ उतना सतोषजनक एव प्रमाणीक नही है। देश के विभिन्न भागो से प्राप्त अनेक जैन शिलालेख प्रकाश मे आ चुके हैं। किन्तु एक पूर्ण 'जैना एविग्रेफी' के प्रभाव मे उनमे निहित तथ्यो का यथोचित लाभ उठाया जाना कठिन है । समस्त प्रकाशित जैन शिलालेखो के एक आधुनिकतम विवरण से जैनाध्ययन को निश्चयत भारी प्रगति मिलेगी। मूर्तिकला-~जैन मूर्तिकला भारतीय मूर्तिकला का महत्वपूर्ण अग है। भारतवर्ष के अनगिनत मदिरो में विद्यमान असख्य जैन मूत्तियो तथा जन ग्रन्थो मे उपलब्ध तत्सबधी प्रचुर साहित्य के होते हुए भी, जैन मूर्तिकला एव विज्ञान का अध्ययन अभी तक अपनी शैशवावस्था में ही है । इस दिशा में जो महत्त्वपूर्ण कार्य हुआ है, उसमे जे० बरगेस तथा जे० एल० जैनी की, 'दिगम्बर जैन' 'आइकोनोफिये' बी० सी० भट्टाचार्य की 'दी जैना आइकोनोग्रफी' (लाहौर १९३६) इत्यादि है किन्तु इनमे संशोधन सवर्द्धन की पर्याप्त आवश्यक्ता है । इस विषय की और अधिक उल्लेखनीय कृतियाँ, डा. एच. डी. सॉकलिया कृत 'जैना प्राइकोनोग्रफी' (एन आई ए,२८) 'जैन यक्ष यक्षणिया', 'बडौदा राज्य की तथा कथित बौद्ध मूर्तियाँ' (बुलेटिन आफ दी डेकन कालिज, पार पाई I, २-४), 'नेमिनाथ के ससार त्याग कल्याणक का प्रस्तराँकन' (आई० एच० क्यू xVII, भा० २) 'एक जैन देवी की अद्भुत प्राकृति,' 'पीतल का जैन गणेश' (जे. ए.-IV पृ० ८४, v पृष्ठ ४६) इत्यादि हैं। डा० विनयदेव भट्टाचार्य (प्राच्य विद्याभवन, बडौदा) के निर्देशत्व मे, बडौदा के श्री यू पी शाह ने जैन
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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