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________________ ( २५० ) देहली, भा० सं०, पृ० २७, ० १६१५ । सुबोध दर्पण (रत्नत्रय धर्म प्रकाश ) - लेखक प० दीपचन्द्र वर्णी, प्र० दिग० जैन पचान लाकरौड़ा, भाषा हि०, पृ० ७६, १० १६३६, ० प्रथम सुभाषितरत्न सदोह - ले० श्रमितगति आचार्य, सपा० प० काशीनाथ शास्त्री व भावदत्त शास्त्री, प्र० निर्णयसागर प्रंस बम्बई, भा० स० हि०, पृ० १०४, व० १६०३, ग्रा० प्रथम । सुभाषितरत्न संदोह - ले० श्रमितगति प्राचार्य, अनु० प० श्रीलाल का० ती० प्र० भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशनी सस्था कलकत्ता, भा० सं० हि०, पू० २८२ व० १९६१७, प्रा० प्रथम पृष्ठ २४३, १० १६३६, प्रा० द्वितीय | सुभाषित शतकम् - - सव्य० अनु० प० माणिक चन्द्र, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सरत, भा० स० हि०, पृ० २८, व० १६४५, प्रा० प्रथम । सुमन संचय - ०० प्रेमसागर, प्र० बैनीप्रसाद गुलाब चंद रेपुरा, • हि०, १० ७२, १० १९४१, ० प्रथम । मा० सुलोचना चरित्र - ले० ब० शीतल प्रसाद, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत भा० हि०, पृ० ११५ ० १९२४; आ० प्रथम । सुवर्ण सूत्रम - ० कु थमागर, प्र० उत्तम चंद के लचद दोशी ईडर, भा० सं० पृ० २४, व० १९४१, प्रा० प्रथम । सुशीला उपन्यास - ले० पं० गोपालदास बैरया, प्र० जैन मित्र कार्यालय बम्बई, भा० ६ि०, पृ० ३१२, ० १६१४, प्रा० प्रथम । सुसराल जाते समन पुत्री को माता का उपदेश :- सपा० प० दीपचन्द ; प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत, भा० हि०, पृ० ४७, १० १९४३, प्रा० पष्टम । सुहाग रक्षक विधान - ले० मोतीलाल पहाख्या; भा० हि० पृ० ४१३ ब० १६२४ । सूत्र पाहुड़ (सूत्र प्राभूत) --- ले० कुन्द कुन्द; भा० प्रा० स०, (अष्टपाहुड प्राभूतादि संग्रह में प्र०)
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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