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________________ ( ८४ ) की नेक सूचना, अपनी गुरु परम्परा, कब, किसके लिये, किसके राज्य या श्राश्रय मे अथवा प्रेरणा पर ग्रन्थ की रचना हुई, इत्यादि बातों की सूचना देता है । (२) प्रति लेखक अथवा लिपि कर्त्ता की प्रशस्ति, लिपिकार का परिचय, लेखन तिथि तथा जिसके लिये वह प्रति लिखी गई अथवा जिसके द्वारा लिखवाई गई, आदि सूचनाएँ दी होती हैं । (३) दानी की प्रशस्ति मे उक्तदानी का तथा उसके परिवार, वश यादि का परिचय तथा किस साधु या मंदिर को वह प्रति दान की गई, आदि बातो का उल्लेख रहता है। ना इस प्रकार की सूच कर्णाटक एव तामिल देश की प्रतियो की अपेक्षा गुजरात, मध्य भारत प्रादि की प्रतियो मे अधिक बहुलता के साथ पाई जाती है । श्रहमदाबाद से एक विशाल, लेखक प्रशस्ति संग्रह प्रकाशित हो चुका है, स्व० पूर्णचन्द नाहर 1 भी, एक प्रशस्ति संग्रह प्रकाशित किया था जैन सिद्धान्त भवन आारा से, ५४ दिगम्बर जैन ग्रन्थो की प्रशस्तियों का संग्रह प्रकाशित हुआ है । वीर सेवा मंदिर, देहली से सस्कृत तथा अपभ्रंश प्रशस्तियो के दो पृथक पृथक सग्रह प्रकाशित होने की योजना है, आमेर भडार का प्रशस्ति संग्रह भी प्रकाशित होने वाला है । ऐ० पन्नालाल दि० जैन सरस्वती भवन बम्बई व झालरापटन की वार्षिक रिपोर्टों में भी कुछ प्रशस्तिये प्रकाशित हुई हैं । यदि प्रयत्न किया जाय तो ऐसे कितने ही अन्य सग्रह सुगमता से प्रकाशित किये जा सकते है । प्रो० एस० श्री कठ शास्त्री द्वारा संकलित 'कर्णाटक इतिहास के साधन - भा० १' (मैसूर १९४०) से स्पष्ट है कि ऐतिहासिक रचनाओ को अशत अथवा पूर्णत सकलित करने के लिए, तथा उनका परस्पर संबध बैठाने के लिए जैन ग्रन्थ प्रशस्तिया एक प्रत्यन्त मूल्यवान साधन है । हमने स्वय कई प्राचीन एव मध्यकालीन लेखको के इतिवृत्त का निर्माण करने मे विभिन्न प्रशस्तियों का उपयोग किया है । डा० वासुदेव शरण अग्रवाल ने भी जैन ग्रन्थ प्रशस्तियो एव पुष्पिका के महत्त्व पर प्रकाश डाला है । यदि इन प्रशस्त्यादि का सुचारू सकलन कर लिया जाय तो उन अनगिनत प्रतिमाभिलेखो के साथ, जो जैन मूर्तियो पर खुदे मिलते है और जिनमे कुछ प्रकाशित भी हो चुके हैं, तथा अन्य जैन
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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