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( ११२) भाग समाज जिन्दा है मामा प्रसार मोमतीय, म. हिन्दी विद्या मदिर न्यू देहली, भा० हि पृ० ३२; १० १९३८; प्रा० अभय ।।
स्या घेद्र ईश्वर है . मगलसेन, स्वये अम्बाला छावनी; । मा० हि० पृ० २०.१९३१, मा प्रथम
करपतु चरित-ले० पुनि कपकामर, समा० प्रो. हीसवाल, गोपाल मम्बादास चवरे कारजा; भा० अप०, पृ० २८४ ब १६३४ श्रा० प्रथम
करकंड स्वाभी की कथा-ले० भज्ञात, प्रश, जैन ग्रंथ प्रचार पुस्तकालय देवबन्द भा० हिपृ० २०, २०१९०९; मा प्रथम ।
कटिक जैन कवि-ले०५० नाथूगम प्रेमी; प्र. जैन प्रथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई; मा हि, पृ० ३६, व• १६१४; प्रा प्रथम ।
कर्म ग्रंथ भाग चौवा-पड शीति-ले. देवेन्द्र सूरि; अनु० पं० सुखलाल संघवी; प्र० प्रात्मानन्द पुस्तक प्रचारक मडल मागस, भा० मा हि, पृ० २६२; व० १६२२, प्रा० प्रथम ।
कर्तव्य कीमुदी-प्र० जैन पुस्तक प्रकाशक कार्यालय व्यावर, भा० हि .. पृ० ५५०, व० १९२४ ।
कर्म प्रगति-ले शिवशर्म सूरि, भाषा, पृ० २८, २०१६२७,
कर्मप्रकृति टीका-ले शिवशर्मसूरी, टी० मलयगिरि व यशोविजय, भा०प्र० सं० पृ. ३९२, ५० १६३४ ।
कर्मग्रथ शतक-ले० देवेन्द्र सूरि; अनु० संपादन ५० कैलाशचन्द्र शास्त्री
मात्मानन्द पुस्तक प्रचारक मल पागरा, भा० प्रा० हि०, पृ० ३७०व. १६४२, प्रा. प्रथम ।
कर्मवहम विधान-ले० कवियन्द्र, प्र० जिनवाली प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० स० पृ० १२ ।
कमंदहन व्रत विधान आदि-ले० पं आशाधर, प्र० मूलचन्द किशनदास कापड़िया सूरत, भा० सं० पृ. ६८, २० १६३८ मा प्रथम । ___ कर्मफल कैसे देते हैं-ले. स्वामी कर्मानन्द, म. जैन प्राधि अपनाया