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________________ ( २०६ ) काशलीवाल, प्र० जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, भा० स० हिन्दी, पृ० ४६२, प्रा० सातवी। रत्नकरंडश्रावकाचार-लेखक समन्तभद्राचार्य, टी० पंडित सवासुख जी काशलीवाल, प्र. जैनप्रथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० सं० हिन्दी, पृ० २८१, व० १६०८, प्रा० प्रथम । रत्नकरंडश्रावकाचार-लेखक समन्तभद्राचार्य, टी० पडित सदासुख जी काशलीवाल, प्र. हिन्दी जैन साहित्य प्रमारक कार्यालय बम्बई, भा० हिन्दी, पृ० २७६, व० १९१७, आ० तृतीय । रत्नकरंडश्रावकाचार-लेखक समन्तभदाचार्य, टी० ५० सदासुखनी काशलीवाल, प्र० ब्र० नन्दलाल भिण्ड, भा० सं० हि०, व० १९३९, प्रा० प्रथम । रत्न करंड श्रावकाचार-लेखक समतभद्राचार्य, टी० ५० पन्नालाल बाकलीवाल, प्र० जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, भा० स० हिन्दी, पृ० ६६, व०१६३६। रत्न करंड श्रावकाचार की प्रस्तावना-लेखक प० जुगलकिशोर मुख्तार, भा० हिन्दी, पृ० ८४, व० १९२४ । रत्न परीक्षक-लेखक घामीगम जैन, भा० हि०, पृ० ४४ । रत्न माला--लेखक शिवकोटि भट्टारक, टी० अनु० पं० गौरीलाल, प्र० अनु० स्वय, भा० सं० हि०, पृ० ८४, व० १६३३, प्रा० प्रथम । रल माला-लेखक शिवकोटि भट्टारक, अनु० जिनदास पार्श्वनाथ शास्त्री मा० स० हि । रत्नत्रय कुब्ज -लेखक बैरिस्टर चम्पतराय, अनु० कामता प्रमाद जैन, प्र. जैन मित्र मंडल देहली, भा० हि०, पृ० ५६, व. १९३०, प्रा० प्रथम । रत्नत्रय धर्म-लेखक पन्नालाल सा०, आ. प्र. जैन भ्रातृ सघ सागर, भा० हिन्दी, पृ० ३८; व० १९४४ । रत्न कवि प्रशस्ति-मा० कन्नड ।
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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